Source: Death ਮਰਨਾ ਕੀ ਹੈ

Death मरना की है

जदों वी विकार छालां मारदे हन, जीव ते हावी हुंदे हन, जोत दी पछाण दा मरन घट विच हुंदा है। जदों वी मन मरदा है गिआन कारण, जदों वी विकार मरदे हन उदों जोत दी जित हुंदी है। गुरमति गिआन हुंदे ही इह समझ आउंदा है के मन नूं काबू करना है, जे नहीं हुंदा तां मन भाव, मैं, अहंकार मरना ही पएगा "मन मारे बिनु भगति न होई॥। फेर जीव पुछदा है के

अब कैसे मरउ मरन मन मानिआ॥

मरि मरि जाते जिन राम न जानिआ॥

घट अंदरली जोत दा मरन नहीं हुंदा "अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी ॥ हर जीव भावें उह अंडे तों पैदा होवे, जरासीम होवे, भावें मात गरब तों पैदा होवे जां जमीन तों उगण वाले पेड़ पौधे होण सारिआं विच परमेसर दी जोत है। पर मन इह भुल गिआ तां ही भटकिआ फिरदा "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥ मन हरि जी तेरै नालि है गुरमती रंगु माणु॥ मूलु पछाणहि तां सहु जाणहि मरण जीवण की सोझी होई॥ गुरपरसादी एको जाणहि तां दूजा भाउ न होई॥ मनि सांति आई वजी वधाई ता होआ परवाणु॥ इउ कहै नानकु मन तूं जोति सरूपु है अपणा मूलु पछाणु॥५॥। बदेही जां सरीर तां आतमा दा कपड़ा है इह जदो पता लगा ता कबीर जी विचार कर रहे ने कि मेरा मन तां हुण मंन गिआ है, मरन लई, किस तरीके नाल मरां। हुण अंदिर स़बद गुरू परगट हो गिआ, फिर हुण पता लग गिआ के तूं नहीं मरदा तूं जोत हैं तूं अमर हैं। सहिज अवसथा प्रापत हो कि मन दा तुरना फिरना बंद हो जांदा, मन कलपना करनी बंद कर दिंदा है ते बिबेक बुधि जाग पैंदी है। अंदरो नाद वजदा फिर अवाज़ औंदी है “मरि मरि जाते जिन राम न जानिआ”  मरदे उह ने जिन्हा ने राम नहीं जानिआ, गुर (गुणां) नूं मुखि रखण वाले गुरमुखां लई तां “कबीर ऐसा एकु आधु जो जीवत मिरतकु होइ॥”  जीवत म्रितक होण वाला तां अमर हो जांदा, “मरनो मरनु कहै सभु कोई” हर कोई आख रिहा मरनो मरन ते संसार विच कोई थिर नहीं पर जे इह अपणे मूल दा गिआन लै लवे ता मन (अगिआानता) दा मरन होण ते पिछे घट विच जोत रह जांदी जो आप अजर है अखर है अमर है फेर "सहजे मरे अमरु होइ सोइ” गुरमुखि ता अमर हो जांदा, संसार विच मुकत जो सहिजे मन दा चलणा फिरना बंद हो जांदा मन दी लहिरां मर जांदिआ ने।

कहु कबीर मनि भइआ अनंदा॥

गइआ भरमु रहिआ परमानंदा॥

“कहु कबीर मनि भइआ अनंदा” जदो मन विच गुरबाणी दे गिआन नाल संसारी पदारथा तौ मुकत हो गिआ मन ने सोचणा बंद कर दिता माईआ दे पदारथां बारे फिर अनंद दी अवसथा प्रापत होणी , “कबीर जिसु मरने ते जगु डरै मेरे मनि आनंदु”  जिसु मरन तो जग डरदा है मेरे मन च आनंद ( गिआन नाल टिक गिआ ) पैदा हो गिआ, गुरबाणी ने तां कहिआ है मन जोति सरूप है। कोई मरदा नहीं जोत दे पधर ते, जो मरदा है उह सरीर है "कउनु मूआ रे कउनु मूआ॥ ब्रहम गिआनी मिलि करहु बीचारा इहु तउ चलतु भइआ॥१॥, "नह किछु जनमै नह किछु मरै॥ आपन चलितु आप ही करै॥ आवनु जावनु द्रिसटि अनद्रिसटि॥ आगिआकारी धारी सभ स्रिसटि॥"। जीव ने ही अपणे मूल दी पेहचान करनी है। जदो इह निरमल (निर + मल = मल रहित) हो गिआ ता, असीं इसनूं चित वी कह सकदे हां। मरिआ होइआ मन चित है जिस विच संसारी पदारथा दी कोई आस नही रहे। मन दे मरन ते मुकती होणी, सरीर दे मरन ते जीव मुकत नहीं हुंदा "बेणी कहै सुनहु रे भगतहु मरन मुकति किनि पाई॥। मन ने चित (मर) के स़ुध हो जाणा निरमल हो जाणा फेर विकार पैदा ही महीं होणे "जीवन मुकतु सो आखीऐ जिसु विचहु हउमै जाइ ॥६॥, "हरि प्रेम बाणी मनु मारिआ अणीआले अणीआ राम राजे॥ जिसु लागी पीर पिरंम की सो जाणै जरीआ॥ जीवन मुकति सो आखीऐ मरि जीवै मरीआ॥जन नानक सतिगुरु मेलि हरि जगु दुतरु तरीआ॥२॥। मन ने अपणे मूल गुरु विच मिल (समा) जाणा जद गिआन दा परगास हो जावे। संसार चो सुरत पुटि जाणी। उह मरन कबूल लवेगा सरीर विच रहिंदे होए। सिखी दा पहिला पाठ है पहिलां मरन कबूल जीवन की छड आस, बदेही दा मोह छडाउण वासते कहिआ होइआ है। गुरबाणी उपदेस कर रही है, किउंके ओस वकत सिध ( साध ) तां बदेही नाल लै जाण दा उपदेस़ करदे सी, गुरबाणी बिनसण हार कह रही बदेही ( सरीर नूं) सरीर तां रहिणा नही, इहनू भरमु है के इह सरीर है “गइआ भरमु रहिआ परमानंदा” जदो इह मन दा भरम निकल गिआ कि इह ते स़कती है आतमा है इह ते कदे मरिआ ही नहीं, मरन ते सरीर दा है फिर अंदर भरम भउ डर जांदा रिहा, मन दे मरन ते परमानंद पैदा हो जाणा है अंदर “मरने ही ते पाईऐ पूरनु परमानंदु” मन दा हुकम बंद हो जाणा ही मन दा मरन है, पूरन गिआन होण ते ही पूरन प्रमानंद दी प्रापती हो सकदी है।

जउ त्रिभवण तन माहि समावा ॥

तउ ततहि तत मिलिआ सचु पावा ॥

“जउ त्रिभवण तन माहि समावा” जउ तिंने भवणां दा गिआन हो कि बाहर निकल पार हो गिआ ब्रहम, जोति सरूप वडा हो गईआ अगिआनता दूर हो गई फेर तिंने भवण ब्रहम नूं आपणे देह तन निराकारी सरीर दे विच लगणगे, जदों समझ आ गिआ के "देही गुपत बिदेही दीसै॥ देही तां घट /हिरदे विच जोत सरूप गुपत है ते बदेही केवल हाड मास दा सरीर है, “तउ ततहि तत मिलिआ सचु पावा” जद जोति नाल जोती मिल गई मन चित १ इक हो गइआ ततहि ने तत च समा गिआ फिर इस नूं सच मिलणा १ होए ते सच मिलदा है जाग जांदा है पता चल जांदा है कि मैं कौण हां, फेर सचखंड विच होण दा परम पद अहिसास हुंदा है, जद हुकम नूं बुझ लैंदा है।

कबीर जिसु मरने ते जगु डरै मेरे मनि आनंदु ॥

मरने ही ते पाईऐ पूरनु परमानंदु ॥

जिहड़े मरन तो जग डरदा है  उह मरना कबूल करना है। इह समझ लैणा है के बदेही, सरीर दा मरना केवल बाहर तूमड़ी दा मरना है ते जोत कदे नहीं मरदी।

आई आगिआ पिरहु बुलाइआ॥ ना धन पुछी न मता पकाइआ॥ ऊठि सिधाइओ छूटरि माटी देखु नानक मिथन मोहासा हे॥१०॥

धरम धारण करन वेले  इह उपदेस़ है पहिलां मरन कबूल जीवन की छड आस, बदेही दा मोह  छडाउण वासते है  इह उपदेस़  किउ कि सिध तां बदेही  नाल लै जाण दा उपदेस़ करदे सी पर उसते कबीर जी सवाल करदे ने के

कबीर इहु तनु जाइगा कवनै मारगि लाइ ॥

कै संगति करि साध की कै हरि के गुन गाइ॥

बदेही  तां रहिणी नही कहिंदे जो मरजी उपाव करो। अते  मुसलमान मति कहिंदी है कि बार बार जूनी विच नही आउंदा, गुरमति तां इह कहिंदी है।

एकु सबदु तूं चीनहि नाही फिर फरि जूनी अवहिगा॥

जिहने मरन कबूल कर लिआ उह तां पुछेगा

अब कैसे मरउ मरन मन मानिआ॥

ॳतर नाल ही मिलिआ उहनूं

हुण नहीं मरदा, मरदे उह ने 

जिसने राम नी जानिआ, मरि मरि जाते जिन राम न जानिआ॥। इह मरना सरीर दा मरना है अगिआनता कारण होंद दा मरना है। जोत नहीं मरदी जीव नहीं मरदा आवन जाणा करदा है बस "नह किछु जनमै नह किछु मरै॥ आपन चलितु आप ही करै॥अते जीवत म्रितक होण वाला तां अमर हो जांदा, जो सहिज विच आ जांदा मर जांदा, सहजे मरे अमरु होइ सोइ॥ अते जिसने बदेही नूं सच मंन रखिआ उहदा की बणदा इह वी दसिआ कि फिर जदो जम दा डंडा मूंड विच लगू उदो जागेंगा।

कहु कबीर तब ही नरु जागै॥

जम का डंड मूंडमहि लागै॥

संसरी राम है पंडत दा,  गुरमति वाला राम कौण है वेखो "गुरमति विच राम। पंडत नूं कहिआ सी दसम बाणी विच कि जे तेरे वाला राम अजूनी है मरदा नी तां फिर कौस़लिआ दी कुख विचो किउ पैदा होइआ।

जौ कहौ राम अजौनि अजू अति काहे कौ कोस़ल कुख जयो जू॥

हउमै विच जो मरदा उह चाहे औलीआं अंबीआ होवे,  कोई नहीं बचिआ काल दी जाड़्ह हेठां आउंदा ही आउंदा है।

जिते औलीआ अंबीआ गौस ह्वैहैं ॥

सभै काल के अंत दाड़ा तलैं है॥

जिहड़ी सोच है म्रितक ना होण वाला उह निराकारी सूखम सरूप दा है।

उह तां निरंकार है। उसे निज सरूप दी सोझी होणी है, अते इह बदेही जिसनूं सच मंनिआ होइआ है इसने सदा नही रहिणा। इस दी मौत नूं याद रखण वाला ही सदीवी रहिण वाले नाल जुड़ेगा। जंमण मरन दा भरम टुटणा है। लेकिन बदेही तांवी मरेगी "जो उपजिओ सो बिनसि है परो आजु कै कालि॥ नानक हरि गुन गाइ ले छाडि सगल जंजाल॥५२॥ निज सरूप दी सोझी होणी जदो उदो पता लगणा आपणे आप दा।

जदो गोबिंद नाल लिव लगणी आ फिर पता लगणा जनम मरन दा। "जनम मरन का भ्रमु गइआ गोबिद लिव लागी॥ जीवत सुंनि समानिआ गुर साखी जागी ॥१॥ फिर इह वी पता लगणा कि

मन  महि आप मन अपने माहि॥

फिर कई आखदे मन खालसा है।

जदो मन ही मन कहिंदा कि मन वरगा तां मिलिआ नहीं कोई। 

ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ ॥

मन ही मन सिउ कहै कबीरा मन सा मिलिआ न कोइ ॥

इह स़कती है मन इसदा फिर दरस़ण होणा जदो तांही कहू "इहु मनु सकती इहु मनु सीउ ॥इहु मनु पंच तत को जीउ॥

हाले तां तन तिंना लोकां विच समाइआ है। जदो तिने लोक तन विच समां जाण फिर होणा "ब्रहमगिआनी के मन परगास  जैसे  धर उपर अकास॥ मन ने चित हो के हुकम अगे हार के मनु होणा एके विच आउणा हुकम दे नाल।

"जउ त्रिभवण तन माहि समावा॥ तउ ततहि तत मिलिआ सचु पावा॥ जदों तिंने भवणां दा गिआन हो गिआ, जोत दी सोझी हो गई, अगिआनता दूर हो गई, फेर तिंने भवण ब्रहम दे विचे ने ते सच दी प्रापती होणी। जाग जांदा है जीव। पता चल जांदै कि मैं कौण हां। फेर सचखंड विच होण दा परम अहिसास हुंदा है। जदों तक जागदा नहीं मरिआ होइआ है जां सुता पिआ है "संसा इहु संसारु है सुतिआ रैणि विहाइ ॥, "तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी॥ गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अंम्रित बाणी ॥"। परमेसर प्रेम मारग ते सिर तली ते धर के जाणा पैंदा अरथ मैं मारनी पैंदी "जउ तउ प्रेम खेलण का चाउ॥ सिरु धरि तली गली मेरी आउ॥ इतु मारगि पैरु धरीजै॥ सिरु दीजै काणि न कीजै॥२०॥ कबीर जी ने सूरमां वी उसनूं ही मंनिआ है जो दीन/धरम लई विकारां नाल जंग करे ते विचार तों इस जंग तों भजे नां "सूरा सो पहिचानीऐ जु लरै दीन के हेत॥ पुरजा पुरजा कटि मरै कबहू न छाडै खेतु॥२॥। जिसनूं इह समझ आ गिआ के सरीर दा मरना मरना नहीं है, घट अंदरली जोत अमर अजर है फेर उह गिआन खड़ग लै के पहिलां मन नाल लड़दा है विकार काबू करदा है नाम (सोझी) नाल "कामु क्रोधु अहंकारु निवारे॥ तसकर पंच सबदि संघारे॥ गिआन खड़गु लै मन सिउ लूझै मनसा मनहि समाई हे॥३॥। संसारी जीवन दी आस छड उही परम योदा, सूरमा बणदा है फेर भावें हाथी दे पैर थले सिर होवे, तती तवी होवे यां नीहां दे विच चिणिआ जा रहिआ होवे। डर मुक जांदा सरीर दे मरन दा भै नहीं रहिंदा।

अगिआनता विच सुते नूं वी मरिआ होइआ मंनिआ है गुरमति ने "सतिगुरु जिनी न सेविओ सबदि न कीतो वीचारु॥ अंतरि गिआनु न आइओ मिरतकु है संसारि॥ – सचे दे गुणां दी जदों तक विचार नहीं करदा, जदों तक गिआन नहीं है उदों तक मरिआ ही होइआ है। "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ हउमै मारे करणी सारु ॥ इह नहीं मंनदे ना करदे ते विचार तों भजदे ने। अनेकां उदाहरण ने गुरबाणी विच जिवें

अति सुंदर कुलीन चतुर मुखि ङिआनी धनवंत॥ मिरतक कहीअहि नानका जिह प्रीति नही भगवंत॥१॥

इहु मिरतकु मड़ा सरीरु है सभु जगु जितु राम नामु नही वसिआ॥ राम नामु गुरि उदकु चुआइआ फिरि हरिआ होआ रसिआ॥२॥ 

कबीर ऐसा एकु आधु जो जीवत मिरतकु होइ॥ निरभै होइ कै गुन रवै जत पेखउ तत सोइ॥५॥ 

"संगि होवत कउ जानत दूरि॥ सो जनु मरता नित नित झूरि॥२॥

इस कारण गुणां दी विचार, गुरमति दी विचार तों बिनां, गिआन/नाम/सोझी तों बिनां मनुख मरे होए बराबर है। सुका है ते गिआन ने हरिआ करना इसनूं। जीवित करना। भाई गुरमति लवो। बाणी नूं पड़्हो सारे अरथ बाणी विचों ही मिलदे ने। बाणी आपणे आप विच समरथ है अरथ दसण लई। गुरबाणी दरज करन वाले भगत सी दास सी जिहनां नूं धुरों बाणी दा परगास होइआ। इस बाणी नूं आपणी आपणी मति लगा के दुनिआवी अरथ टीकिआं विच लिखे हन। अनेक टीके हन जिहनां दी सोच इक दूजे नाल नहीं मिलदी। हुकम नहीं बूझ सकदे टीकिआं राहीं। गुरमति हुकम दी सोझी कराउंदी है ते आखदी है के "हुकमु बूझै सोई परवानु॥। इस लई जे बाणी नाल प्रेम है गुर दी मति लैण दी इछा है तां बाणी पड़्ह के विचारो ते स़बदां दे अरथ बाणी विचों ही लवो।

असीं गुरबाणी नूं प्रेम बहुत करदे हां। गुरबाणी दी बे-अदबी लई मरन मारन लई तिआर रहिंदे हां। जदों गल गुरबाणी दे मंनण दी आ जावे विचार करन दी आ जावे तां सिख कोई नहीं लभदा। सिखी दे नां जथेबंदीआं आपस विच ही लड़दीआं नज़र आउंदीआं हन। जदों कोई सिख नहीं रहिआ, विचार नहीं कर रहिआ तां गुरबाणी दी सिखिआ किसने लैणी है? गुरबाणी तां आतम गिआन दी गल करदी है। गुरबाणी तां विचार करन नूं कहि रही है "सिखी सिखिआ गुर वीचारि ॥

गुरबाणी अंदर किसे कौम दाराज दा तां कोई जिकर ही नहीं। गुरबाणी अंदर किसे मरिआदा दी वी कोई गल नहीं साडे लई फुरमान है के रहित पिआरी मुझ को सिख पिआरा नाहि॥

सुरग ते नरक दी विचार लई पड़ो "सुरग ते नरक (Swarg te Narak)"। गुरमति दा आदेस़ है सभु कोई चलन कहत है ऊहां॥ ना जानउ बैकुंठु है कहां॥१॥ रहाउ॥ आप आप का मरमु न जानां॥ बातन ही बैकुंठु बखानां॥१॥ जब लगु मन बैकुंठ की आस॥ तब लगु नाही चरन निवास॥२॥ खाई कोटु न परल पगारा॥ ना जानउ बैकुंठ दुआरा॥३॥ कहि कमीर अब कहीऐ काहि॥ साधसंगति बैकुंठै आहि॥४॥८॥१६॥ ἓ आखदे सारे बैकुंठ दी आस लाई बैठे ने पर पता नहीं के बैकुंठ किथे है किदां दा है। वैसे ही प्रचारकां ने, पंडतां ने सुरग गलां नाल ही घड़ लिआ। कोई आखदा उथे देवीआं हन, कोॲौ आखदा उथे हूरां हन, कोई आखदा उथे कीरतन चलदा। ऐवें ही कहाणीआं घड़ लईआं। कोई जाके मुड़िआ नहीं, जींदिआं ने बस आपणे मन तों घड़ लिआ। सुरग नरक दी विचार विच पाप पुंन दी विचार विच फस गए ते हुकम नूं भुल गए हन। जदों तक बैकुंठ दी आस है उदों तक गिआन नहीं हो सकदा। जे अरदासां कर के मिल जांदा है तां गुरमति गिआन दी की लोड़्ह? पंडत नूं अरदासीए नूं पैसे दे के अरदास करा लवो। इही माइआ दा लालच करन वाले कर वी रहे ने। जदों तक पाप पुंन दी विचार है नाम (सोझी) नहीं मिल सकदी। साध संग (साधिआ होइआ मन ही साध संग है "ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ॥) विच ही बैकुंठ है। पाप पुंन बारे गुरमति दा की फुरमान है जानण लई वेखो "पाप पुंन (paap/punn)

Physical Death is the biggest motivator

सरीरक मौत सब तो वडी प्रेरना है।

मनुख नूं इही तां लगदा आगिआनता वस के उसने मरना नहीं। स़ाइद ही कोई ऐसा मनुख होणा जिसने अमर होण बारे ना सोचिआ होवे। पर मौत अटल सच है। जो पैदा होइआ उसने इक दिन मरना। मां बाप, भाई भैण, दादा दादी, आपणे बचे, रिस़तेदार मितर। सभ ने इक दिन मरना ते नाल कुझ वी नहीं जाणा। किहनां नूं तुसीं छड के आउणा अंतिम संसकार लई ते किहनां ने तुहानूं, इह वी सानूं नहीं पता।

जदों इह गल समझ आ गई, जीण दा ढंग बदल जाणा। दुनीआ ते मनुख दीआं जातीआं ९ मिलिअन सालां तों हन। जिस विचों २ मिलिअन साल तों आज दे इनसान (होमो सेपीअन) विचर रहे ने। ते लिखित इतिहास इनसानां दुआरा केवल ५००० साल दा मिलदा है। जिसदा भाव ५००० साल पहिलां जो हो रहिआ सी सानूं उसदा पता ही नहीं। बलकी साडे विचों बहुत घट हन जिहनां नूं आपणे पड़दादे दा नाम पता होवे, उह की करदे सी, कितनी जमीन दे मालिक सी किहड़े धरम नूं मंनदे सी। सोचो आउण वाले समे विच अज तों २००-३०० साल बाद साडे बारे लोकां ने बिलकुल भुल जाणा। फेसबुक , इनसटा, वटसैप ते लिखे मैसेज आरकाईव हो जाणे। साडीआं खिचीआं फोटुआं किसे ने नहीं देखणीआं। मेरे विआह ते बणी वीडीओ मैं आप पिछले वीह सालां विच इक वार नहीं वेखी। किसे ने नहीं वेखणी। देखण लई जो वी सी आर ते सी डी पलेअर हुंदा सी उह वी अज नहीं मिलदा। साडे कीते दान किसे ने चेते नहीं रखणे। गुरूघर लगे संगमरमर अते पखे ते लिखे नाम मिट जाणे, किसे ने नहीं पड़्हने। पखे लाह के दूजे लग जाणे। इथे तक के कोई लेख, किताब पी डी ऐफ लिखी होई किसे नूं चेते नहीं रहणी। इह साईट वी लाह दिती जाणी पेमैंट ना होण ते। जे कोई किताब किसे लाईब्रेरी दे किसे कोने विच रहि वी गई तां किसे ने पड़्हनी नहीं, पड़्ह वी लई तां लेखक दा नाम केवल नाम ही रहि जाणा। वडीआं वडीआं मूरतीआं ढह जांदीआं। वडे वडे सूरमे बहादर जिहनां ने अधी तों वध दुनीआं जित लई उह वी अज आपणी होंद गवा चुके हन। दुनीआं दे विच उहनां दा नाम वी लोकी चेते नहीं रखदे। काल दा वरतारा इदां ही वरतदा। काल दे मुहरे कोई नहीं टिकदा।

जैसे एक आग ते कनूका कोट आग उठे निआरे निआरे हुइ कै फेरि आग मै मिलाहिंगे॥ जैसे एक धूर ते अनेक धूर पूरत है धूर के कनूका फेर धूर ही समाहिंगे॥ जैसे एक नद ते तरंग कोट उपजत हैं पान के तरंग सबै पान ही कहाहिंगे॥ तैसे बिस्व रूप ते अभूत भूत प्रगट हुइ ताही ते उपज सबै ताही मै समाहिंगे॥१७॥८७॥केते कछ मछ केते उन कउ करत भछ केते अछ वछ हुइ सपछ उड जाहिंगे॥ केते नभ बीच अछ पछ कउ करैंगे भछ केतक प्रतछ हुइ पचाइ खाइ जाहिंगे॥ जल कहा थल कहा गगन के गउन कहा काल के बनाइ सबै काल ही चबाहिंगे॥ तेज जिउ अतेज मै अतेज जैसे तेज लीन ताही ते उपज सबै ताही मै समाहिंगे॥ १८॥८८॥ कूकत फिरत केते रोवत मरत केते जल मैं डुबत केते आग मैं जरत हैं॥ केते गंग बासी केते मदीना मका निवासी केतक उदासी के भ्रमाए ई फिरत हैं॥ करवत सहत केते भूमि मै गडत केते सूआ पै चड़्हत केते दूख कउ भरत हैं॥ गैन मैं उडत केते जल मैं रहत केते गिआन के बिहीन जक जारे ई मरत हैं॥१९॥८९॥ सोध हारे देवता बिरोध हारे दानो बडे बोध हारे बोधक प्रबोध हारे जापसी॥ घस हारे चंदन लगाइ हारे चोआ चारु पूज हारे पाहन चढाइ हारे लापसी॥ गाह हारे गोरन मनाइ हारे मड़्ही मट लीप हारे भीतन लगाइ हारे छापसी॥ गाइ हारे गंध्रब बजाए हारे किंनर सभ पच हारे पंडत तपंत हारे तापसी॥२०॥९०॥

जिउंदे जी गुरबाणी पड़्ह के भाणे नूं समझणा है। सरीरिक मरन ते मरन तों बाद की होणा किसे नूं नहीं पता ते मरना अटल सच है। फेर जीवन मरद दी चिंता ही किउं करनी। कई धरम मरन तों बाद सुरग नरक दी विचार नूं promote करदे हन। जिवें इसलाम जनत ते जनत विच ७२ हूरा दा लालच दे के ते सनातन मति सुरग दीआं अपसरावां दा लालच जां नरक विच गरम तेल विच उबाले जाण दा डरावा दे के लोकां नूं धरम दे नाम ते मरन तों बाद वधीआ जीवन दा भरोसा कराउंदी है। असीं कदे वी गुरमति तों नहीं सिखिआ के जीवन मरन की है। सुरग नरक की है। बाणी पड़्ह के विचारो फेर साडा जीवन मरन अते सुरग नरक दा भुलेखा, चिंता अते लालच मुक सकदे हन।

जनमे कउ वाजहि वाधाए॥ सोहिलड़े अगिआनी गाए॥ जो जनमै तिसु सरपर मरणा किरतु पइआ सिरि साहा हे॥७॥ संजोगु विजोगु मेरै प्रभि कीए॥ स्रिसटि उपाइ दुखा सुख दीए॥ दुख सुख ही ते भए निराले गुरमुखि सीलु सनाहा हे॥८॥ नीके साचे के वापारी॥ सचु सउदा लै गुर वीचारी॥ सचा वखरु जिसु धनु पलै सबदि सचै ओमाहा हे॥९॥


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