Source: ਸਿੱਖੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖਣ ਲਈ ਸਵਾਲ

सिखी अते सिखण लई सवाल

सिख दा अरथ हुंदा सिखण वाला, गुरसिख दा अरथ गुर (गुणां) दी सिखिआ लैण वाला। गिआनी जो गुणां दी विचार करे गिआन प्रापत कर लवे ते लोकां नूं गुणां बारे दस सके "गुण वीचारे गिआनी सोइ॥ गुण महि गिआनु परापति होइ॥ गुणदाता विरला संसारि॥ साची करणी गुर वीचारि॥। गुरबाणी आखदी "सिखी सिखिआ गुर वीचारि॥ नदरी करमि लघाए पारि॥ – भाव सिख लई सिख सिखिआ, गुर (गुणा) दी विचार ज़रूरी है। सिख दा सवाल पुछणा गुरमति दी सिखिआ लैणा गुरमति बारे सवाल पुछणा बहुत जरूरी है। नीचे कुझ सवाल हन, उदाहरण हन जिहनां दे जवाब सानूं लबणे हन।

  1. सिखी दा विस़ा की है ? गुरसिख दा असल कारण संसार विच जनम लैण दा की है?
  2. गुरबाणी किउं संसार नूं सुपना , तमास़ा कहिंदी है, जग रचना सभ झूठ है किउं कहिंदी है ?
    जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत || कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति || ( पंना 1429)

इह सवाल वी गुरबाणी विच हन अते जवाब वी गुरबाणी विच हन, जेकर इह पड़्ह के वी साडे अंदर सवाल नही उठिआ, कि असीं तां इह सभ सच मंन रहे हां, गुरबाणी किउं सुपना अते झूठ कहि रही है, तां मतलब असीं सुते पए पड़्ही जानें हां, जां फिर इमानदारी नही साडे विच?

  1. गुरबाणी कहिंदी है आतम खोज कीते बिनां भरम नही दूर होणा। भरम की है ? की असीं आपणे गिआनी परचारकां कोलो पुछिआ कदे कि सानूं गुरबाणी विचों 5-7 प्रमाण देके दसो भरम की है?

जन नानक बिनु आपा चीनै मिटै न भ्रम की काई॥( पंना 684)

4. गुरबाणी कहिंदी है कले पड़्हन नाल नही कोई लाभ। पड़्ह के खोज के बुझणा है, जो तत है इस विच। फिर तां गिणती करके कीते पाठां दा वी लाभ नही। गुरबाणी कहि रही है देखो अगे प्रमाण,

केते कहहि वखाण कहि कहि जावणा ॥ वेद कहहि वखिआण अंतु न पावणा ॥ पड़िऐ नाही भेदु बुझिऐ पावणा ॥(पंना 148)

गुरबाणी कहिंदी इहना अखरां विचों खोज के बुझणा है।

एना अखरा महि जो गुरमुखि बूझै तिसु सिरि लेखु न होई ॥( पंना 432)

इह जो सवाल हन, जिथे वी कथावाचक कथा करदे हन , उथे आपणी मरजी दी कथा करनी छड के संगत नूं इहना सवालां दे जवाब देण परचारक अते गिआनी। संगत वी इह सवाल करे, इस तरां विचारां नाल गिआन वधेगा। होर मतां दे परचारक वी अज कल इसे तरां परचार कर रहे हन, संगत विच माईक दे दिंदे हन, संगत सवाल करदी है परचारकां नूं?

  1. गुरबाणी ने सानू गिआन मारग दसिआ है, गुरबाणी विच ब्रहमगिआन है। गुरसिख तां उही है जो गिआन लै रिहा है, गुर की मति लै रिहा है, जेकर मथा टेकण तक सीमित है , अते गुरू तों गिआन नही लै रिहा, फिर पास वी नही हुंदा। किसे सकूल दा student, कली वरदी पाई फिरे अते पड़्हाई करे नां, उह फेल वी होवेगा अते आपणे आप नूं धोखा दे रिहा है।
  2. की रब नूं साडी भगती दी लोड़ है? जिसने स्रिसटी दी रचना कीती, जिस स्रिसटी विच धरती दी होंद इक तिल बराबर वी नहीं, उस स्रिसटी विच धरती दे इक हिसे विच बैठे मनुख दी भगती तों परमेसर ने की लैणा? लोड़ साडी है, असीं आपणे आप नूं समझणा सी। परमेसर दा अंत नहीं पाइआ जा सकदा, उह किसे दे वस विच नहीं हो सकदा इह तां गुरबाणी कहि रही है। फेर की लभदे हां असीं। जदों कबीर जी आखदे हन "कबीर जा कउ खोजते पाइओ सोई ठउरु॥ सोई फिरि कै तू भइआ जा कउ कहता अउरु॥८७॥ कौण मिलिआ कबीर जी नूं, किथे ते किवें? जो निरगुण सरूप है, निराकार है, अथाह है, किवें मिलदा? किहड़ी वसत गुर बे कबीर नूं दिती जिहड़ी उहनां अगे संसार नूं दिती? "कोठरे महि कोठरी परम कोठी बीचारि॥ गुरि दीनी बसतु कबीर कउ लेवहु बसतु सम॑ारि॥४॥ कबीरि दीई संसार कउ लीनी जिसु मसतकि भागु॥ अंम्रित रसु जिनि पाइआ थिरु ता का सोहागु॥
  3. की असीं गुरू नूं ए टी ऐम तां नहीं समझ लिआ? के बस पैसे पाओ ते मन चाही वसतू मंग लवो। केवल संसारी वसतूआं ही मंगी जांदे हां। गुरबाणी तां मंनदी हरेक जीव राजा है अगिआन दी नींद विच सुता भिखारी बणिआ होइआ है "नरपति एकु सिंघासनि सोइआ सुपने भइआ भिखारी॥ अछत राज बिछुरत दुखु पाइआ सो गति भई हमारी॥२॥, की सानूं समझ है के मंगणा की है ते मिलणा की है? पखंड की है? भगती ते पखंड दे किहड़े फ़रक गुरबाणी ने दसे हन?
  4. जिहड़े खंडे दी पहुल नूं अंम्रित कहि के प्रचार रहे हन, उहनां कदे विचारिआ के गुरबाणी आखदी के अंम्रित पीण वाला सदा रहिंदा कदे मरदा नहीं "इहु हरि रसु पावै जनु कोइ॥ अंम्रितु पीवै अमरु सो होइ॥ उसु पुरख का नाही कदे बिनास॥ उह किहड़ा अंम्रित है जिसदी गल गुरबाणी कर रही है?
  5. केवल गुरबाणी पड़्हन जा गाउण नाल गिआन हो जाणा? बाणी रटण नाल की होणा? गुरबाणी किउं आखदी "पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ॥ पड़ि पड़ि बेड़ी पाईऐ पड़ि पड़ि गडीअहि खात॥ पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास॥ पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास॥ नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख॥१॥
  6. बाणी रागां विच लिखी है। गाईण नूं कीरतन आखदे हां ते फेर गुरबाणी किउं आखदी "कोई गावै रागी नादी बेदी बहु भाति करि नही हरि हरि भीजै राम राजे॥
  7. सानूं इक स़बद दे उचारन नाल की लाभ? बार बार इक स़बद बोलण वाले नूं सबदी आखदे हन ते गुरबाणी आखदी "नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ॥२॥ भगति नारदी रिदै न आई काछि कूछि तनु दीना॥ राग रागनी डिंभ होइ बैठा उनि हरि पहि किआ लीना॥३॥", नारदी भगती किहड़ी हुंदी है?
  8. गुरबाणी आखदी "मन अंतरि बोलै सभु कोई॥ मन मारे बिनु भगति न होई॥२॥ कहु कबीर जो जानै भेउ॥ मनु मधुसूदनु त्रिभवण देउ॥, मन की है? मन किवें ते किउं मारना? "जानउ नही भावै कवन बाता॥ मन खोजि मारगु॥ – गुरमति रब खोज मारग नहीं मन खोज मारग है। "इसु मन कउ कोई खोजहु भाई॥ तन छूटे मनु कहा समाई॥४॥
  9. जेकर सचे गुरसिख हां असीं फिर सानूं पता होणा चाहीदा जो सानूं साडा टारगेट गुरबाणी दसदी है, उह है परमतत दी प्रापती। जे असीं इमानदार हां, तां साडे अंदर सवाल पैदा होणगे, कि जो गुरबाणी कहि रही है सच है, लेकिन सानूं इह पता नही। जे पता लगे फिर उस इमानदारी विचों इहना सभ सवालां दे उतर खोजण दी भुख पैदा होवेगी, इस गिआन दी भुख पैदा होवेगी।
  10. जिसनूं भुख नही लगदी उह अभागा है, साडे बाहरले स़रीर नूं जेकर रोटी दी भुख नां लगे तां डाकटर तों भुख दी दवाई लैण जांदे हां। इस आतमा दे खाण वाले गिआन रूपी भोजन दी भुख बारे वी सानूं आपणे अंदर देखणा चाहीदा। गुरबाणी आखदी "भोजन गिआनु महा रसु मीठा॥ जिनि चाखिआ तिनि दरसनु डीठा॥ दरसनु देखि मिले बैरागी मनु मनसा मारि समाता हे॥१६॥ किसदा दरस़न होणा? गिआन दे भोजन दा लंगर किथे ते किवें लगदा?

इस आतम गिआन दी भुख लगण ते ही मन रागी तों बैरागी हुंदा है, उदास हुंदा है संसार तो, अते अगे जाके बैरागी तों अनुरागी हुंदा है। इथों असल सफर स़ुरू हुंदा है गुरसिख दा। जेकर इहदे बारे नही विचार रहे असीं तां गुरमति मारग उते सफर स़ुरू ही नहीं कीता।

सवाल पुछण वाले नूं नासतिक आख दिंदे हन। नानक पातिस़ाह ने वी सवाल पुछे ते उहनां नूं कोई भूतना कोई बेताला आखदा सी। जे सवाल नहीं उठ रहे? जे गुरबाणी सुण, पड़्ह, गा अते विचार के कुझ गिआन नहीं उपज रहिआ तां गुरबाणी दा फुरमान है "गुरमति सुनि कछु गिआनु न उपजिओ पसु जिउ उदरु भरउ॥ कहु नानक प्रभ बिरदु पछानउ तब हउ पतित तरउ॥। सो भाई सिख लई तां गिआन अते गिआन दी विचार तों बाहर कुझ वी नहीं है। सिख ने सवाल पुछणे हन। जवाब वी लभणे हन गुरबाणी विचों। गुरमति लैण लई आपणी काइआ नूं निरमल करन लई।


Source: ਸਿੱਖੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖਣ ਲਈ ਸਵਾਲ