Source: ਬੰਦੀ ਛੋੜੁ, ਦੀਵਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਲੀ

बंदी छोड़ु, दीवा अते दीवाली

"जगु बंदी मुकते हउ मारी॥ जगि गिआनी विरला आचारी॥ जगि पंडितु विरला वीचारी॥ बिनु सतिगुरु भेटे सभ फिरै अहंकारी॥६॥( म १, रागु आसा, ४१३) – भाव जग बंदी है ते मुकत हउमै मार के होणा। जग इच इहो जिहा पंडत विरला है जो इस दी विचार करे। ते सचे दे गुणां नूं समरपित होए बिना सारे ही अहंकार विच फिर रहे हन।

हउमै दा बंधन है हउमै मार के मुकत होण दी गल हुंदी। गुरु अरजन देव पातिस़ाह जी ने तां इही कहिआ। "गई बहोड़ु बंदी छोड़ु निरंकारु दुखदारी॥ करमु न जाणा धरमु न जाणा लोभी माइआधारी॥ नामु परिओ भगतु गोविंद का इह राखहु पैज तुमारी॥१॥ – साहिब बंदी छोड़ है पर साहिब कौण। गुरमुख लई धरम की है समझण लई वेखो "धरम। गुरमति विचों साहिब दी पछाण हुंदी। साहिब घट घट विच वसदा जोत सरूप नाम/गिआन दा चानणा है "तू घटि घटि इकु वरतदा सचु साहिब चलतै॥। इही साहिब है जिसने बंधन मुकत करना "बंधन काटि करे मनु निरमलु पूरन पुरखु बिधाता॥। बंधन हन विकार। अहंकार वाली बुध "अहंबुधि सुचि करम करि इह बंधन बंधानी॥। पूरा स़बद धिआन नाल पड़्ह के विचारो।

गई बहोड़ु बंदी छोड़ु निरंकारु दुखदारी॥ करमु न जाणा धरमु न जाणा लोभी माइआधारी॥ नामु परिओ भगतु गोविंद का इह राखहु पैज तुमारी॥१॥ हरि जीउ निमाणिआ तू माणु॥ निचीजिआ चीज करे मेरा गोविंदु तेरी कुदरति कउ कुरबाणु॥ रहाउ॥ जैसा बालकु भाइ सुभाई लख अपराध कमावै॥ करि उपदेसु झिड़के बहु भाती बहुड़ि पिता गलि लावै॥ पिछले अउगुण बखसि लए प्रभु आगै मारगि पावै॥२॥ हरि अंतरजामी सभ बिधि जाणै ता किसु पहि आखि सुणाईऐ॥ कहणै कथनि न भीजै गोबिंदु हरि भावै पैज रखाईऐ॥ अवर ओट मै सगली देखी इक तेरी ओट रहाईऐ॥३॥ होइ दइआलु किरपालु प्रभु ठाकुरु आपे सुणै बेनंती॥ पूरा सतगुरु मेलि मिलावै सभ चूकै मन की चिंती॥ हरि हरि नामु अवखदु मुखि पाइआ जन नानक सुखि वसंती॥४॥१२॥६२॥( म ५, रागु सोरठि, ६२४-६२५) – पंजवें पातिस़ाह दा इह स़बद साहिब लई है। साहिब जो जीव नूं विकारां दे बंदन तों मुकत करदा है। जीव दे घट विच बैठा हरि/राम/ठाकुर/प्रभ/साहिब बंदी छोड़ है। सारे भगत सारे गुरु साहिब आप जोत सरूप हन ते सानूं इह गिआन दे रहे ने के साहिब गुणां नाल किवें जुड़ना दा, बंधन तों मुकती दा मारग दस रहे ने इस लई सारे ही बंदी छोड़ हन वेखिआ जावे तां। "प्रभ जी तू मेरो सुखदाता॥ बंधन काटि करे मनु निरमलु पूरन पुरखु बिधाता॥। सारे गुरु साहिबां ने भगतां ने अनेकां दे बंधन हर रोज ही बाणी राहीं कटे हन। सोझी दे के।

खुस़ी किहड़े दिन दी मनाउणी है गुरसिख ने, किहड़ा दिन सुहावना है?

"नानक सोई दिनसु सुहावड़ा जितु प्रभु आवै चिति॥ जितु दिनि विसरै पारब्रहमु फिटु भलेरी रुति॥१॥। जे भगती वेला वखत विचार के समां देख के, दिन देख के करीए तां उह भगती नहीं मंनदी गुरमति "जे वेला वखतु वीचारीऐ ता कितु वेला भगति होइ॥ अनदिनु नामे रतिआ सचे सची सोइ॥ इकु तिलु पिआरा विसरै भगति किनेही होइ॥ मनु तनु सीतलु साच सिउ सासु न बिरथा कोइ॥१॥ – सो हरि वेला ही गिआन दा दीवा घट विच बालण वाला होणा चाहीदा है। इह जोत घट विच हमेस़ा बलदी रखणी है।

गुरमति दा दीवा

बाहर दीवा तां सारे ही बाल लैंदे हन। गुरमुखि दा दीवा ता नाम है ते उस विच आपणे सारे दुख पा के समरपित करके हुकम दी सोझी दी रोस़नी करदा है "दीवा मेरा एकु नामु दुखु विचि पाइआ तेलु॥ उनि चानणि ओहु सोखिआ चूका जम सिउ मेलु॥१॥। एक नाम समझण लई वेखो "एक, एकु, इक, इकु अते अनेक दा अंतर, नाम समझण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?

नाम (गिआन/सोझी) ही दीवा है, नाम ही इस दीवे विच बाती वी है ते नाम दा ही चानणा भवन (घट/हिरदे) विच होणा "नामु तेरा दीवा नामु तेरो बाती नामु तेरो तेलु ले माहि पसारे॥ नाम तेरे की जोति लगाई भइओ उजिआरो भवन सगलारे॥ इस दीवे नाल ही घट अंदर दी मैल, अगिआनता दा हउमै, मोह भरम ते भै दा हनेरा दूर होणा "दीवा बलै अंधेरा जाइ॥

अंधेरा की है जिसनूं गिआन दे दीवे ने रौस़न करना?

अंधेरा है अगिआन, विकार, हउमै। प्रमाण "गुर गिआनु प्रचंडु बलाइआ अगिआनु अंधेरा जाइ ॥२॥, "माणु ताणु तजि मोहु अंधेरा॥, "अगिआनु अंधेरा बिनसि बिनासिओ घरि वसतु लही मन जागे ॥३॥, "अगिआन अंधेरा मिटि गइआ गुर गिआनु दीपाइओ ॥२॥, "दूखु अंधेरा घर ते मिटिओ ॥, "गिआन रतनु बलिआ घटि चानणु अगिआनु अंधेरा जाइ ॥१॥, "अगिआनु अंधेरा कटिआ गुर गिआनु घटि बलिआ॥

गुर सेवा ते मनु निरमलु होवै अगिआनु अंधेरा जाइ॥, ते गुर दी सेवा है "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ अते "गुर का सबदु सहजि वीचारु॥

इही गुरमुख दी दिवाली है जो हर वेले हर समे रहिणी किसे इक खास दिन दी मुहताज नहीं "आपे नदरि करे जा सोइ॥ गुरमुखि विरला बूझै कोइ॥ तितु घटि दीवा निहचलु होइ॥ पाणी मरै न बुझाइआ जाइ॥ ऐसा दीवा नीरि तराइ॥३॥। इसे नाम दे दीवे नाल प्रभ दा अडोल आसण घट विच दिसदा "डोलै वाउ न वडा होइ॥ जापै जिउ सिंघासणि लोइ॥ खत्री ब्राहमणु सूदु कि वैसु॥ निरति न पाईआ गणी सहंस॥ ऐसा दीवा बाले कोइ॥ नानक सो पारंगति होइ॥। इह दीवा गुर (गुण) दी सिखिआ तों बलणा, हुकम दी सोझी प्रापत कर के "गुर साखी जोति जगाइ दीवा बालिआ॥ मनमुख विणु नावै कूड़िआर फिरहि बेतालिआ॥

"चारे कुंडा देखि अंदरु भालिआ॥ सचै पुरखि अलखि सिरजि निहालिआ॥ उझड़ि भुले राह गुरि वेखालिआ॥ सतिगुर सचे वाहु सचु समालिआ॥ पाइआ रतनु घराहु दीवा बालिआ॥ सचै सबदि सलाहि सुखीए सच वालिआ॥ निडरिआ डरु लगि गरबि सि गालिआ॥ नावहु भुला जगु फिरै बेतालिआ॥ – दिवाली ते बाहर दीवा बालदे रहे पर पातिस़ाह आखदे सारे पासे लभ के दीवा तां "अंदर ही घट विच, निज घर, हिरदे विच ही मिलिआ। इस दीवे विच तेल दुख दा पैणा, नाम (सोझी) दा पैणा, हुकम नूं समरपण दा पैणा। "पोथी पुराण कमाईऐ॥ भउ वटी इतु तनि पाईऐ॥ सचु बूझणु आणि जलाईऐ॥२॥ इहु तेलु दीवा इउ जलै॥ करि चानणु साहिब तउ मिलै॥१॥

सो भाई दीवे बालो, आतिस़बाजी करो, मिठाई वी वंडो पर इह ना भुल जाणा के गुरमुख लई दिवाली की है ते गुरमुख इह दिवाली किवें मनाउंदे हन। घट अंदर वी गिआन दा दीवा बालणा ना भुल जाणा। कबीर जी दे बोल हन (पर गुरबाणी विच दरज नहीं हन) के "कबीर सदा दिवाली संत की, आठो पहर आनंद। अकलमता कोरो उपजा, गिने इंद्र को रंक।


Source: ਬੰਦੀ ਛੋੜੁ, ਦੀਵਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਲੀ