Source: ਅਰਦਾਸ ਕੀ ਹੈ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਤੋਂ ਕੀ ਮੰਗਣਾ ਹੈ?

अरदास की है अते गुरू तों की मंगणा है?

साडे विचों कई सिख ने जो माइआ दीआं अरदासां करदे हन ते सोचदे हन के गुरू कोई ए टी ऐम है ५ डालर दी अरदास करो ते ५ मिलिअन दा घर लै लवो। मेरी किसे नाल गल हुंदी सी ते उहनां "जो मागहि ठाकुर अपुने ते सोई सोई देवै॥ म ५ दी बाणी भेजी। इक वीडीओ वी भेज दिता जिस विच स़बद सी

मुहि मंगां सोई देवदा हरि पिता सुखदाइक॥ (म ५, रागु मारू, ११०१)

मैं जवाब दिता के जिहनां दी उपरोकत बाणी तुसीं भेजी है उह कह रहे ने

"विणु तुधु होरु जि मंगणा सिरि दुखा कै दुख॥ देहि नामु संतोखीआ उतरै मन की भुख॥ (म ५, रागु रामकली, ९५८),
"करि किरपा मिलु प्रीतम पिआरे॥ बिनउ सुनहु प्रभ ऊच अपारे॥ नानकु मांगतु नामु अधारे॥४॥१॥११७॥ (म ५, रागु गउड़ी, २०३),
"आल जाल बिकार तजि सभि हरि गुना निति गाउ॥ कर जोड़ि नानकु दानु मांगै देहु अपना नाउ॥२॥१॥६॥ (म ५, रागु माली गउड़ा, ९८८),
"मेरा मनु एकै ही प्रिअ मांगै॥ पेखि आइओ सरब थान देस प्रिअ रोम न समसरि लागै॥१॥ ( म ५, रागु सारंग, १२०९),
"खिनु पलु बिसरु नही मेरे करते इहु नानकु मांगै दानु॥२॥९०॥११३॥ (म ५, रागु सारंग, १२२६),
" ऐसी मांगु गोबिद ते॥ टहल संतन की संगु साधू का हरि नामां जपि परम गते॥१॥ (म ५, रागु कानड़ा, १२९८),
"नानकु जाचकु हरि हरि नामु मांगै मसतकु आनि धरिओ प्रभ पागी॥२॥७॥१८॥ (म ५, रागु कानड़ा, १३०१),
"राजु न चाहउ मुकति न चाहउ मनि प्रीति चरन कमलारे॥ ( म ५, रागु देवगंधारी, ५३४)

तूंही रस तूंही जस तूंही रूप तूही रंग॥ आस ओट प्रभ तोरी॥१॥(रागु गउड़ी, म ५, २१३)

अरदास तां करनी है किउं के नानक पातिस़ाह दा फुरमान है "करउ अरदासि अपने सतिगुर पासि॥ नानक नामु मिलै सचु रासि॥ – नाम दी अरदास करनी है।

की मंगीए गुरबाणी तां आखदी "विणु बोलिआ सभु किछु जाणदा किसु आगै कीचै अरदासि॥

इक वीर नाल गिआन चरचा हुंदी सी तां आखदा गुरबाणी विच पंचम पातिस़ाह ही आखदे "मानु मांगउ तानु मांगउ धनु लखमी सुत देह॥१॥ ते इह किहड़ा मानु, तानु ते धनु लखमी है जो पातिस़ाह मंग रहे ने? इह खोज दा विस़ा है। जे पातिस़ाह ने कहि दिता के "विणु तुधु होरु जि मंगणा सिरि दुखा कै दुख॥ देहि नामु संतोखीआ उतरै मन की भुख॥ ते फेर मानु की है उहनां दे हिसाब नाल ते खोज कीतिआं उहनां दी ही बाणी है के "तूही मान तूंही धान तूही पति तूही प्रान॥, किउंके गुरबाणी दुहागण नहीं है इक वार जो कह दिता उसदे उलट दूजी वसतू मंग ही नहीं सकदी। ते पंचम पातिस़ाह ही आखदे हन "मानु तानु तजि सिआनप सरणि नानकु आइआ॥। इसे तरीके नाल खोज लवो बाणी विच जे किते बाणी दीआं पंकतीआं आपा विरोधी लगदीआं हन तां।

सहस सिआणप करि रहे मनि कोरै रंगु न होइ॥ कूड़ि कपटि किनै न पाइओ जो बीजै खावै सोइ॥३॥ सभना तेरी आस प्रभु सभ जीअ तेरे तूं रासि॥ प्रभ तुधहु खाली को नही दरि गुरमुखा नो साबासि॥
बिखु भउजल डुबदे कढि लै जन नानक की अरदासि॥४॥१॥६५॥

जिह प्रसादि करहि पुंन बहु दान ॥ मन आठ पहर करि तिस का धिआन ॥ जिह प्रसादि तू आचार बिउहारी ॥ तिसु प्रभ कउ सासि सासि चितारी ॥

पुंन केवल गोबिंद दे गुण गाउणा (हुकम मंनणा है) "कलि महि एहो पुंनु गुण गोविंद गाहि॥

दान केवल नाम (सोझी) मिलणा है "एहु अहेरा कीनो दानु॥ नानक कै घरि केवल नामु

हुकम रजाई चलणा हुकम विछ रहिणा ही गुरमुख दा बिउहार है "नाम रतन को को बिउहारी॥ अंम्रित भोजनु करे आहारी॥१॥ , "नामु भगत कै प्रान अधारु॥ नामो धनु नामो बिउहारु॥१॥, "नाम बिना जेता बिउहारु॥ जिउ मिरतक मिथिआ सीगारु॥२॥ – नाम है हुकम दी सोझी।

"हरि जीउ तूं करता करतारु॥ जिउ भावै तिउ राखु तूं हरि नामु मिलै आचारु॥१॥, "मनहठ बुधी केतीआ केते बेद बीचार॥ केते बंधन जीअ के गुरमुखि मोख दुआर॥ सचहु ओरै सभु को उपरि सचु आचारु॥५॥

इह समझ आ जाणा के मेरा कुझ नहीं है वयकतीगत कुझ नहीं है, सब हुकम ही है इही नाम (सोझी) है। इह सोझी मिल जाणा ही दान है। "विणु तुधु होरु जि मंगणा सिरि दुखा कै दुख॥ देहि नामु संतोखीआ उतरै मन की भुख॥ गुरि वणु तिणु हरिआ कीतिआ नानक किआ मनुख॥२॥

मंगणा की है फेर? भगतां ने माइआ नहीं मंगी नाम (गुरमति दी सोझी) मंगी है बाणी विच। माइआ तां माइआधारीआं नूं चाहीदी हुंदी। गुरमति माइआ नूं, हर बिनस जाण वाली वसतू नूं झूठ आखदी "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति ॥४९॥" अते "जो उपजिओ सो बिनसि है परो अाजु कै कालि॥ फेर जे जग रचना झूठ है ते मंगणां ही किउं है।

"झूठा मंगणु जे कोई मागै॥ तिस कउ मरते घड़ी न लागै॥ पारब्रहमु जो सद ही सेवै सो गुर मिलि निहचलु कहणा॥१॥ (म ५, रागु मांझ, १०९) – गुरबाणी ने ब्रहम, पूरन ब्रहम, पारब्रहम समाझाइआ है। जदों इह समझ आ जावे फेर समझ आणी के मंगणा की है।

"मै किआ मागउ किछु थिरु न रहाई हरि दीजै नामु पिआरी जीउ ॥१॥( म १, रागु सोरठ, ५९७)

"किआ मागउ किछु थिरु न रहाई॥ देखत नैन चलिओ जगु जाई॥१॥( भगत कबीर जी, रागु आसा, ४८१)"

"किआ मांगउ किछु थिरु नाही॥ राम नाम रखु मन माही॥१॥(भगत कबीर जी, रागु धनासरी, ६९२)

"मागना मागनु नीका हरि जसु गुर ते मागना॥४॥(म ५, रागु मारू, १०१८)

"इक अरदासि भाट कीरति की गुर राम दास राखहु सरणाई ॥४॥५८॥ (भट कीरतु, सवईए महले चउथे के, १४०६)

“सलोकु॥ माइआ डोलै बहु बिधी मनु लपटिओ तिह संग॥ मागन ते जिह तुम रखहु सु नानक नामहि रंग॥१॥ पउड़ी॥ ममा मागनहार इआना॥ देनहार दे रहिओ सुजाना॥ जो दीनो सो एकहि बार॥ मन मूरख कह करहि पुकार॥ जउ मागहि तउ मागहि बीआ॥ जा ते कुसल न काहू थीआ॥ मागनि माग त एकहि माग॥ नानक जा ते परहि पराग॥४१॥”

नानकु एक कहै अरदासि॥ जीउ पिंडु सभु तेरै पासि॥

नानक की अरदासि है सच नामि सुहेला॥ आपु गइआ सोझी पई गुरसबदी मेला॥१॥(रागु आसा महला १, ४२१) – नानक पातिस़ाह वी सचे नाम दी अरदास करदे पए ने। आखदे नाम प्रापती नाल आपु (मैं/हउमै) गइआ, सोझी पई ते गुरसबद नाल मेल होइआ।

साडे विचों करी वीर भैणां इह नहीं जाणदे के जो अज सिखां विच प्रचलित अरदास है, जो गुटकिआं विच पाई जांदी है इसनूं लिखे होए १०० साल वी नहीं होए। इह भगतां दी, गुरुआं दी अरदास नाल मेल नहीं खादी। इस विच इतिहास नूं याद कीता गिआ है ते इतिहासिक घटनावां ते सथानां दा धिआन धरण नूं कहिआ गिआ है। गुरबाणी आखदी "गुरि कहिआ सा कार कमावहु॥ गुर की करणी काहे धावहु॥नानक गुरमति साचि समावहु॥२७॥। जिहनां गुरूआं नूं, अकाल नूं, भगतां नूं सथानां नूं असीं वेखिआ नहीं उहनां दा धिआन किवें धरिआ जा सकदा है? भगतआ ते गुरुआं दा धिआन धरन लई उहनां दी कही गल दा धिआन धरणा हुंदा है। जो उहनां आखिआ उस दा धिआन हर वेले रखणा है। उहनां दी सोच दी विचार करनी है सिखा ने। पर अज दा सिख दुनिआवी कंमां नूं समाजिक फरज नूं ही सेवा मंनी बैठा है। ते मंगदा माइआ है। पूरा स़बद जे विचारीए तां गल समझ आउंदी है "रागु आसा महला १॥ केता आखणु आखीऐ ता के अंत न जाणा॥ मै निधरिआ धर एक तूं मै ताणु सताणा॥१॥ नानक की अरदासि है सच नामि सुहेला॥ आपु गइआ सोझी पई गुरसबदी मेला॥१॥ रहाउ॥ हउमै गरबु गवाईऐ पाईऐ वीचारु॥ साहिब सिउ मनु मानिआ दे साचु अधारु॥२॥ अहिनिसि नामि संतोखीआ सेवा सचु साई॥ ता कउ बिघनु न लागई चालै हुकमि रजाई॥३॥ हुकमि रजाई जो चलै सो पवै खजानै॥ खोटे ठवर न पाइनी रले जूठानै॥४॥ नित नित खरा समालीऐ सचु सउदा पाईऐ॥ खोटे नदरि न आवनी ले अगनि जलाईऐ॥५॥ जिनी आतमु चीनिआ परमातमु सोई॥ एको अंम्रित बिरखु है फलु अंम्रितु होई॥६॥ अंम्रित फलु जिनी चाखिआ सचि रहे अघाई॥ तिंना भरमु न भेदु है हरि रसन रसाई॥७॥ हुकमि संजोगी आइआ चलु सदा रजाई॥ अउगणिआरे कउ गुणु नानकै सचु मिलै वडाई॥८॥२०॥

ममा मागनहार इआना॥ देनहार दे रहिओ सुजाना॥ जो दीनो सो एकहि बार॥ मन मूरख कह करहि पुकार॥ जउ मागहि तउ मागहि बीआ॥ जा ते कुसल न काहू थीआ॥ मागनि माग त एकहि माग॥ नानक जा ते परहि पराग॥४१॥

"सभे थोक परापते जे आवै इकु हथि॥ जनमु पदारथु सफलु है जे सचा सबदु कथि॥ गुर ते महलु परापते जिसु लिखिआ होवै मथि॥१॥ – जिहड़ा इक (जोत/राम/हरि) हिरदे/घट/घर विच बैठा है उह प्रापत हो जावे, उसदा गिआन हो जावे तां गुरमति दा फुरमान है के सब कुझ प्रापत हो जांदा जो भगत मंगदा।

देण वाला कौण है?

नानक पातिस़ाह ने किस तों मंगिआ? कौण है दाता? किसे ने देणा? किस बारे कहिआ जा रहिआ है के

ददा दाता एकु है सभ कउ देवनहार॥ देंदे तोटि न आवई अगनत भरे भंडार॥ दैनहारु सद जीवनहारा॥ मन मूरख किउ ताहि बिसारा॥ दोसु नही काहू कउ मीता॥ माइआ मोह बंधु प्रभि कीता॥ दरद निवारहि जा के आपे॥ नानक ते ते गुरमुखि ध्रापे॥३४॥

साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु॥ आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु॥

गुरा इक देहि बुझाई॥ सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई॥

सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा॥ सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा॥ सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा॥हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा॥

सभना का दाता एकु है आपे बखस करेइ॥कहणा किछू न जावई जिसु भावै तिसु देइ॥ नानक गुरमुखि पाईऐ आपे जाणै सोइ॥

देण वाला है हरि (मूल/ हुकम/गिआन) "हरि इको दाता वरतदा दूजा अवरु न कोइ॥ सबदि सालाही मनि वसै सहजे ही सुखु होइ॥ सभ नदरी अंदरि वेखदा जै भावै तै देइ॥२॥। कौण है हरि जानण लई वेखो "हरि

मेरे मन सुखदाता हरि सोइ ॥

थान थनंतरि रवि रहिआ पारब्रहमु प्रभु सोइ॥ सभना दाता एकु है दूजा नाही कोइ॥ तिसु सरणाई छुटीऐ कीता लोड़े सु होइ॥३॥

गुर (गुण गिआन तों प्रापत सोझी) तों वडा कोई दाता नहीं, इस गुर नाल ही जीव दा मन हरिआ होणा।

गुर जेवडु दाता को नही जिनि दिता आतम दानु ॥२॥

मिलणा की है?

"एहु अहेरा कीनो दानु॥ नानक कै घरि केवल नामु॥४॥४॥(म ५, रागु भैरओ, ११३६) – जो किसे कोल होवे उही उह अगे दिंदा है। नानक ने नाम (सोझी) ही लई ते अगे दिती है। पर संसारी बंदे माइआ ही मंगदे ने। "भगता तै सैसारीआ जोड़ु कदे न आइआ॥ म १, रागु माझ, १४५)

"सुखु मांगत दुखु आगै आवै॥ सो सुखु हमहु न मांगिआ भावै॥१॥(भगत कबीर जी, रागु गउड़ी, ३३०)

रोज पड़्हदे हां पर मंनण नूं तिआर नहीं के दुख सुख हुकम विच मिलने ने "हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि॥ अते मंगण ते नहीं दिंदा उह, जिंने मरजी तरले कर लवो "नानक सचा पातिसाहु पूछि न करे बीचारु॥४॥(म १, सिरी रागु, १७), कई आखदे कीरतन करके अरदासां करके मना लईए बाणी आखदी "कोई गावै रागी नादी बेदी बहु भाति करि नही हरि हरि भीजै राम राजे॥ (गुरू रामदास जी, रागु आसा, ४५०)

सानुं निरासा हो के हुकम मंनण दा अतदेस़ है। किवें?

"जो नरु दुख मै दुखु नही मानै॥ सुख सनेहु अरु भै नही जा कै कंचन माटी मानै॥१॥ रहाउ॥ नह निंदिआ नह उसतति जा कै लोभु मोहु अभिमाना॥ हरख सोग ते रहै निआरउ नाहि मान अपमाना॥१॥ आसा मनसा सगल तिआगै जग ते रहै निरासा॥ कामु क्रोधु जिह परसै नाहनि तिह घटि ब्रहमु निवासा॥२॥ गुर किरपा जिह नर कउ कीनी तिह इह जुगति पछानी॥ नानक लीन भइओ गोबिंद सिउ जिउ पानी संगि पानी॥३॥११॥(रागु सोरठि, म ९, ६३३) – सानूं माड़ा जहिआ दुख हुंदा असीं तरले करन लग पैंदे हां, रब नूं दोस़ देण लग पैंदे हां ढोल जांदे हां। सानूं कितनी बाणी समझ आई है इसदा पता ही सानूं तां लगदा जदों दुख मिलदा है। झट माइआ दे पदारथां दीआं अरदासां करन लग पैंदे हां। सानूं आपणे कीते कंम वी भुल जांदे ने "ददै दोसु न देऊ किसै दोसु करंमा आपणिआ॥ जो मै कीआ सो मै पाइआ दोसु न दीजै अवर जना ॥२१॥"

"आसा आस करे सभु कोई॥ हुकमै बूझै निरासा होई॥ आसा विचि सुते कई लोई॥ सो जागै जागावै सोई॥१॥ सतिगुरि नामु बुझाइआ विणु नावै भुख न जाई॥(गुरू अमरदास जी , रागु आसा, ४२३)

"आसा भीतरि रहै निरासा तउ नानक एकु मिलै॥४॥(म १, रागु रामकली, ८७७)

जे माइआ मंगी जां नाम तों इलावा कुझ मंगिआ की होणा?
"सुखु मांगत दुखु आगल होइ॥ सगल विकारी हारु परोइ॥ एक बिना झूठे मुकति न होइ॥ करि करि करता देखै सोइ॥३॥(म १, रागु गउड़ी, २२२)
"माइआ मनहु न वीसरै मांगै दंमा दंम॥ सो प्रभु चिति न आवई नानक नही करंम॥१॥(म ५, रागु मारू, १०९३),

गुरुघरां विच अरदास करदिआं कमाई दी गल करदे हां। "पंजां पिआरिआं, चौहां साहिबज़ादिआं, चाल्हीआं मुकतिआं, हठीआं, जपीआं, तपीआं, जिन्हा नाम जपिआं, वंड छकिआं, देग चलाई, तेग वाही, देख के अणडित कीता, तिन्हां पिआरिआं, सचिआरिआं दी कमाई, दा धिआन धर के बोलो जी वाहिगुरू ।, भगतां दी कमाई की है असीं नहीं जाणदे, कितनिआ ने गुरबाणी तों खोजिआ कमाई की है ते उसदा असीं किवें धिआन धर सकदे हां? उहनां दी कमाई सी "गुरमुखि सबदु कमाईऐ हरि वसै मनि आइ ॥, "सतिगुरु आखै कार सु कार कमाईऐ॥, "कार कमाई खसम रजाइ॥, "सचु संजमो सारि गुणा गुरसबदु कमाईऐ राम॥, "सचु सबदु कमाईऐ निज घरि जाईऐ पाईऐ गुणी निधाना॥, "भाणै बखसे पूरा धणी सचु कार कमाईऐ॥ फेर हुण दसो के अखां बंद करके, केवल बोल के उहनां दी कमाई दा असीं किवें धिआन धर सकदे हां? नाले हठीआं नूं चेते करन दी गल करदी अज दी अरदास, गुरमति विच हठ योग दी कोई थां नहीं। गुरबाणी आखदी "मनहठि किनै न पाइआ करि उपाव थके सभु कोइ॥, हठ करके तां असीं कुझ लै नहीं सकदे परमेसर तों, इह गुरमति दा फुरमान है "रोगी खट दरसन भेखधारी नाना हठी अनेका॥ बेद कतेब करहि कह बपुरे नह बूझहि इक एका॥६॥।

सिखां दी अज दी अरदास भावें लंमी होवे भावें छोटी इक किसम दा आदेस़ बणी जांदा आखदे महाराज आह देणा उह देणा, इदां करना उदां करना। दसो दास कदे कुझ मंगदा हुंदा? दास नूं तां पूरन भरोसा हुंदा। जिहड़ा दास है उह तां आखदा "तेरै भरोसै पिआरे मै लाड लडाइआ॥, "राम जना कउ राम भरोसा ॥, "आस भरोसा खसम का नानक के जीअरे॥ अते "तुम॑री आस भरोसा तुम॑रा तुमरा नामु रिदै लै धरना॥तुमरो बलु तुम संगि सुहेले जो जो कहहु सोई सोई करना॥१॥ तुमरी दइआ मइआ सुखु पावउ होहु क्रिपाल त भउजलु तरना॥ अभै दानु नामु हरि पाइओ सिरु डारिओ नानक संत चरना॥। जिहनां ने बाणी नहीं मंनणी नहीं समझणी उहनां माइआ दीआं ही अरदासां करनीआं, नहीं हटणा। भगतां ने केवल नाम (गुरमति दी सोझी) ही मंगी है ते मंगणी है, उहनां नूं मिल वी जाणी। बाकी तां केवल "पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ॥ पड़ि पड़ि बेड़ी पाईऐ पड़ि पड़ि गडीअहि खात॥ पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास॥ पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास॥ नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख॥१॥( म १, रागु आसा, ४६७) 휽�휼�

Topic: gurmat ardaas and what to pray for?


Source: ਅਰਦਾਸ ਕੀ ਹੈ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਤੋਂ ਕੀ ਮੰਗਣਾ ਹੈ?