Source: ਨਸ਼ਾ, ਦਾਰੂ, ਮਦ, ਅਮਲ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ
बहुत सारे वीर भैणां नस़े बारे सवाल करदे हन। नस़ा की है ते माड़ा किउं है? गुरमति इस बारे की आखदी है? नस़ा करना ठीक है जां नहीं? निहंग सिंघ सुखा छकदे हन की इह माड़ी गल है?
नस़ा मन दी उह सथिती है जिस विच मनुख नूं सोझी ना रहे। गुरमति नस़े अरथ मद बारे आखदी है "काम क्रोध मदि बिआपिआ फिरि फिरि जोनी पाइ॥२॥ – विकार जिवें काम क्रोध लोभ मोह अहंकार नूं मदि आखिआ है गुरमति ने, जिसदे नस़े विच गोबिंद दा गिआन आपणे मूल दा गिआन बिसर जांदा है, सोझी नहीं रहिंदी मनुख नूं। "रे नर गरभ कुंडल जब आछत उरध धिआन लिव लागा॥ मिरतक पिंडि पद मद ना अहिनिसि एकु अगिआन सु नागा॥ ते दिन संमलु कसट महा दुख अब चितु अधिक पसारिआ॥ गरभ छोडि म्रित मंडल आइआ तउ नरहरि मनहु बिसारिआ॥१॥ – भगत बेणी जी आखदे हे नर तूं उरध तप यानी उलटे तप विच (माइआ विच) धिआन धरके, आप गरब वास राहीं मिरतक लोक विच आइआं है अगिआनता दे मद (नस़े) कारण। इथे हुण कसट भोगदा है नरहरि प्रभ नूं बिसार के। इथे माइआ दा मोह, विकारां दा नस़ा होइआ पिआ है इसनूं "बिआपत अहंबुधि का माता॥ बिआपत पुत्र कलत्र संगि राता॥ बिआपत हसति घोड़े अरु बसता॥ बिआपत रूप जोबन मद मसता॥२॥ बिआपत भूमि रंक अरु रंगा॥ बिआपत गीत नाद सुणि संगा॥ बिआपत सेज महल सीगार॥ पंच दूत बिआपत अंधिआर॥३॥ बिआपत करम करै हउ फासा॥ बिआपति गिरसत बिआपत उदासा॥ आचार बिउहार बिआपत इह जाति॥ सभ किछु बिआपत बिनु हरि रंग रात॥४॥। बिआपक/विआपक दा अरथ हुंदा है फैलिआ होइआ जां पसरिआ होइआ। माइआ दे नस़े दे उतरन दा इको मारग है, उह है मन साध के "काम क्रोध लोभ मद खोए॥ साध कै संगि किलबिख सभ धोए॥३॥ साध कोई बाहर दुनीआं विच नहीं मिलणे जिवें कोई संसारी बंदा आपणे नाम दे अगे साध लगाउण लग पए जां चेलिआं दे प्रचार कारन लोग किसे नूं साध आखणा स़ुरू कर देण उह साध नहीं हुंदा। इह मन नूं साध के काबू करके मिलणा "ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ ॥
जग रचना नूं झूठ कहिआ गुरमति विच ते सति/सच केवल जोत है, अकाल है उसदा हुकम है जो खरदा नहीं सदीव रहिंदा है बदलदा नहीं "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति ॥४९॥", जिहड़े विकारां दी सेवा करदे हन मन दी मति ते चलदे हन उह माइआ दे नस़े विच चूर गुरमति तों सदीव दूर रहिंदे हन। इक पासे उह हन जो सच दी खोज करदे हन गुरमति दे गिआन दी इछा रखदे हन ते दूजे पासे उह हन जो आपणी मति जां मनमति दे नस़े विच चूर रहिंदे हन "सालाही सचु सालाहणा सचु सचा पुरखु निराले॥ सचु सेवी सचु मनि वसै सचु सचा हरि रखवाले॥ सचु सचा जिनी अराधिआ से जाइ रले सच नाले॥ सचु सचा जिनी न सेविआ से मनमुख मूड़ बेताले॥ ओह आलु पतालु मुहहु बोलदे जिउ पीतै मदि मतवाले॥१९॥। गुरमति दा फ़ुरमान है के विकारां दे, माइआ दे, मनमति दे नस़े विच चूर मनुख अगिआनता दी नींद सुता हुंदा है "धोहु न चली खसम नालि लबि मोहि विगुते॥ करतब करनि भलेरिआ मदि माइआ सुते॥ फिरि फिरि जूनि भवाईअनि जम मारगि मुते॥ कीता पाइनि आपणा दुख सेती जुते॥ नानक नाइ विसारिऐ सभ मंदी रुते॥१२,॥, "कलि कलवाली माइआ मदु मीठा मनु मतवाला पीवतु रहै॥ आपे रूप करे बहु भांतीं नानकु बपुड़ा एव कहै॥४॥
काम क्रोध माइआ मद मतसर ए खेलत सभि जूऐ हारे॥ सतु संतोखु दइआ धरमु सचु इह अपुनै ग्रिह भीतरि वारे॥१॥
दुरमति दे नस़े विच तां हर प्राणी है पर जो राम दे नाम (सोझी) विच रते ने, भिजे ने उहनां नूं सचा अमली आखिआ है गुरमति ने "दुरमति मदु जो पीवते बिखली पति कमली॥ राम रसाइणि जो रते नानक सच अमली॥
गुरमति ने जिसनूं मद/नस़ा मंनिआ है, निचलीआं पंकतीआं पड़्ह के दसिओ नस़े विच कौण कौण नहीं है?
काम क्रोध मद लोभ मोह दुसट बासना निवारि॥ राखि लेहु प्रभ आपणे नानक सद बलिहारि॥१॥
मदि माइआ कै भइओ बावरो हरि जसु नहि उचरै॥ करि परपंचु जगत कउ डहकै अपनो उदरु भरै॥१॥
सुआद बाद ईरख मद माइआ॥ इन संगि लागि रतन जनमु गवाइआ॥३॥
पुत्र कलत्र ग्रिह देखि पसारा इस ही महि उरझाए॥ माइआ मद चाखि भए उदमाते हरि हरि कबहु न गाए॥२॥
काम क्रोध माइआ मद मतसर इन पंचहु मिलि लूटे॥१॥
लालच झूठ बिकार महा मद इह बिधि अउध बिहानि॥ कहि कबीर अंत की बेर आइ लागो कालु निदानि॥ – लालच झूठ बिकार/विकार नूं महा मद आखिआ है कबीर जी ने।
सभ मद माते कोऊ न जाग॥ संग ही चोर घरु मुसन लाग॥१॥
ता ते करण पलाह करे॥ महा बिकार मोह मद मातौ सिमरत नाहि हरे॥१॥
जोबन रूप माइआ मद माता बिचरत बिकल बडौ अभिमानी॥
मिथिआ वसतु सति करि मानी॥ हितु लाइओ सठ मूड़ अगिआनी॥ काम क्रोध लोभ मद माता॥ कउडी बदलै जनमु गवाता॥ अपना छोडि पराइऐ राता॥ माइआ मद मन तन संगि जाता॥ त्रिसन न बूझै करत कलोला॥
ऊने काज न होवत पूरे॥ कामि क्रोधि मदि सद ही झूरे॥ करै बिकार जीअरे कै ताई॥ गाफल संगि न तसूआ जाई॥२॥
कलि कलवाली कामु मदु मनूआ पीवणहारु॥ क्रोध कटोरी मोहि भरी पीलावा अहंकारु॥ मजलस कूड़े लब की पी पी होइ खुआरु॥ करणी लाहणि सतु गुड़ु सचु सरा करि सारु॥ गुण मंडे करि सीलु घिउ सरमु मासु आहारु॥ गुरमुखि पाईऐ नानका खाधै जाहि बिकार॥१॥
काइआ लाहणि आपु मदु मजलस त्रिसना धातु॥ मनसा कटोरी कूड़ि भरी पीलाए जमकालु॥ इतु मदि पीतै नानका बहुते खटीअहि बिकार॥ गिआनु गुड़ु सालाह मंडे भउ मासु आहारु॥ नानक इहु भोजनु सचु है सचु नामु आधारु॥२॥
गुरमति ने सचा मद/नस़ा दसिआ है नाम (सोझी) नूं गिआन नूं "माणसु भरिआ आणिआ माणसु भरिआ आइ॥ जितु पीतै मति दूरि होइ बरलु पवै विचि आइ॥ आपणा पराइआ न पछाणई खसमहु धके खाइ॥ जितु पीतै खसमु विसरै दरगह मिलै सजाइ॥ झूठा मदु मूलि न पीचई जे का पारि वसाइ॥ नानक नदरी सचु मदु पाईऐ सतिगुरु मिलै जिसु आइ॥ सदा साहिब कै रंगि रहै महली पावै थाउ॥१॥
काम क्रोध मद मान मोह बिनसे अनरागै॥ आनंद मगन रसि राम रंगि नानक सरनागै॥
मान मोह महा मद मोहत काम क्रोध कै खात॥ करु गहि लेहु दास नानक कउ प्रभ जीउ होइ सहात॥
जिहवा सुआद लोभ मदि मातो उपजे अनिक बिकारा॥ बहुतु जोनि भरमत दुखु पाइआ हउमै बंधन के भारा॥
अगिआनता दे मद/नस़े कारण इसनूं चेता ही नहीं के इह आप जोत सरूप है "मदि माइआ कै भइओ बावरो सूझत नह कछु गिआना॥ घट ही भीतरि बसत निरंजनु ता को मरमु न जाना॥२॥
साधो इहु जगु भरम भुलाना॥ राम नाम का सिमरनु छोडिआ माइआ हाथि बिकाना॥१॥ रहाउ॥ मात पिता भाई सुत बनिता ता कै रसि लपटाना॥ जोबनु धनु प्रभता कै मद मै अहिनिसि रहै दिवाना॥१॥
अनद बिनोद भए नित सखीए मंगल सदा हमारै राम॥ आपनड़ै प्रभि आपि सीगारी सोभावंती नारे राम॥ सहज सुभाइ भए किरपाला गुण अवगण न बीचारिआ॥ कंठि लगाइ लीए जन अपुने राम नाम उरि धारिआ॥ मान मोह मद सगल बिआपी करि किरपा आपि निवारे॥कहु नानक भै सागरु तरिआ पूरन काज हमारे॥३॥
सिमरनु नही आवत फिरत मद मावत बिखिआ राता सुआन जैसे॥ अउध बिहावत अधिक मोहावत पाप कमावत बुडे ऐसे॥१॥
मन का कहिआ मनसा करै॥ इहु मनु पुंनु पापु उचरै॥ माइआ मदि माते त्रिपति न आवै॥त्रिपति मुकति मनि साचा भावै॥१॥ तनु धनु कलतु सभु देखु अभिमाना॥ बिनु नावै किछु संगि न जाना॥१॥
माइआ मदि माता होछी बाता मिलणु न जाई भरम धड़ा॥कहु नानक गुर बिनु नाही सूझै हरि साजनु सभ कै निकटि खड़ा॥१॥
माई मै मन को मानु न तिआगिओ॥ माइआ के मदि जनमु सिराइओ राम भजनि नही लागिओ॥१॥ रहाउ॥ जम को डंडु परिओ सिर ऊपरि तब सोवत तै जागिओ॥ कहा होत अब कै पछुताए छूटत नाहिन भागिओ॥१॥
झूठो माइआ को मद मानु॥ ध्रोह मोह दूरि करि बपुरे संगि गोपालहि जानु॥१॥
हुण पड़्हन वाले इह सोचण के उह नस़े विच हन के नहीं? जिहड़ा स़राब/अफ़ीम/गांजे दा नस़ा है उह तां १०-१२ घंटिआं विच भावें उतर वी जावे पर विकारां दा नस़ा, हउमै दा नस़ा ता सारा जीवन नहीं उतरदा। हुण इथे इह नहीं कहिआ जा रहिआ के स़राब/अफ़ीम/गांजे दा नस़ा करना सही है। इह वखरा विस़ा है।
दारू दा अरथ गुरमति विच दवा दे रूप विच वी होइआ है जिवें
दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई॥,
हरि हरि नामु दीओ दारू ॥
संसारु रोगी नामु दारू मैलु लागै सच बिना ॥
निहंग नस़ा किउं करदे?
बचा पैदा करन वेले जे वडा आपरेस़न करना होवे, नस़ा दे के जे बीबी नूं ना आपरेस़न कीता जावे मौत हो सकदी है। आपरेस़न करन लगे वी बेसुध करना पैंदा। इह इलाज करन लई ज़रूरी है। जंगा जुधां विच सट लगदी, फट पैंदे, नील पैंदे, घुड़सवारी करदे अनेकां सटां वजदीआं। जदों मकसद वडा होवे सच लई लड़ना होवे तां दवा दारू करनी पैंदी है। जा के वेखो कदे निहंगां दी छौणीआं विच निहंग सिंघां नूं विचरदे वेखो पता लगी के फौजी जीवन विच की की हुंदा। जिहनां दे ढिड भरे घरे बैठे गलां करना बहुत सौखा। निहंग ही केवल इक तबका है सिखां विच जिहनां जंगी जीवन अज वी रखिआ। जिसनूं नस़ा आखदे अंग्रेजां दे आउण तों पहिलां तकरीबन हर घर विच सखे दी वरतो हुंदी सी। किसान थक के इसदी वरतो करदे सी थकान दूर करन लई। पसूआं नूं चारे विच पा के दिंदे सी उहनां नूं बिमारी तो बचाउण लई। मानसिक रोगीआं नूं मन स़ात करन लई सुखा दिता जांदा सी। इह पिंडां विच घरां विच आम ही उग जांदा है। अज रिसरच तों साबित हो गिआ है के इस नाल कैंसर, डिपटैस़न, माईग्रेन ते होर अनेकां बिमारीआं ठीक हो जांदीआं हन। सुखे दी वरतो, गांजा, अफ़ीम दी वरतो दवा दारू लई दुनीआं भर विच आम हुंदा रहिआ है। अज इह छड के लखां दीआं दवाईआं खाण नूं आपरेस़न तक नूं लोग तिआर हन पर परमेसर ने स्रिसटी विच मुफ़त जो इलाज दिता है उसनूं नहीं वरतणा। हर वसतू दी दुर वरतो हुंदी है। सही मात्रा विच लए दवाई दा कंम करदी हे जे लोड़ तों जिआदा सेवन होवे हर खाड़ पीण दी वसतू नुकसान करदी है। चीनी घिउ जिआदा खा के लोग स़ूगर मोटापा कैंसर तक करा लैंदे हन, सुखा वी जे सहज नाल वरतिआ जावे तां देसी दवाईआं विच इसदी वरतो परवान है। दसम पातिस़ाह ने सुखे दी वरतो दी मनाही नहीं कीती है। पुरातन ग्रंथां विच इसदी वरतो दे प्रमाण वी मिलदे हन। आयुरवेद, यूनानी ते होर कई देसी दवाईआं विच सुखा बेस हुंदा सी जिवें कई ऐलोपैथी दीआं दवाईआं विच ऐलकोहोल बेस है। सुखे दी वरतो ब्रहम गिआन नहीं है इस लई इसदा वरणन आदि बाणी जा दसम बाणी विच ब्रहम गिआन देण लई नहीं होइआ। अमल तां मनुख कई संसारी वसतूआं दा करी बैठा है। माइआ दे ते विकारां दे नस़े विच चूर बैठा है। जे नस़ा छड के धरमी बणना है तां पहिलां माइआ दा, लोभ दा, चुगली दा, झूठ दा, काम, क्रोध अहंकार दा नस़ा वी छडो जिहनां नूं गुरमति महा मद आख रही है।
चेते रहे "दुरमति मदु जो पीवते बिखली पति कमली॥ राम रसाइणि जो रते नानक सच अमली॥, इस लई गुरमति नूं पड़्ह के, समझ के, खोज के, सहज नाल प्रेम नाल विचार करो। बाणी नूं मंत्रां वांग रट के नहीं ब्रहम विदिआ समझ के इस तों नाम (सोझी) लैणी है तां के दुरमति मद अरथ विकारां दा नस़ा उतर सके।
Source: ਨਸ਼ਾ, ਦਾਰੂ, ਮਦ, ਅਮਲ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ