Source: ਸੰਸਾਰ ਕਿਵੇਂ ਬਣਿਆ?
इह सवाल कई वार पुछिआ जांदा है के रब कौण है? की है? उसने संसार किवें बणाइआ। रब बारे असीं विचार कीती "रब कौण है? की है रब?।
इक वीर ने सवाल पुछिआ के "कुदरत अखर नूं तोड़ के समजाइओ किवें बणिआ?। ‘कुदरत’ स़बद फारसी (Persian) भास़ा तों आइआ है, जिथे इसदा असल अरथ “तबीअत” जां “Nature” है स्रिसटी नहीं। अरबी विच इह “क़ुद्रत” (قدرت) वजों आउंदा है, जिथे अरथ "power, "ability, "creation, "nature हुंदा है।
उहनां दे सवाल विच कुदरत दा भाव स्रिसटी जाप रहिआ सी। कई वीर भैण वी गुरबाणी विच आए कुदरत स़बद नूं संसार जां स्रिस़टी ही समझदे हन। सवाल विच अखर वी वरतिआ सी उहनां ने। दो स़बद हन जो गुरबाणी विच इको तरीके नाल लिखे गए हन। अखर (अ-खर भाव जो खरे ना) जिस विच बदलाव ना आवे, जो सदा सच है), अते दूजा है अखर (अखर – स़बदा नूं लिखण दा तरीका, लिपी जां बोल), किउंके गुरबाणी लिखण समें अधक नहीं वरती गरी, इस लई भुलेखा पैंदा है जिथे वी अखर वरतिआ गिआ है गुरबाणी विच, उथे हर थां अखर ही अरथ हन। असल विच अखर ते अखर दोवें अरथां नाल अखर वरतिआ गिआ है गुरबाणी विच। इसदी समझ सानूं लिखत विच संधरब जां प्राकरण तों पता लगदा है। सो जो कुदरत है इह अखर (अ-खर) तों जां अखर (सच) दुआरा साजी गई है। जिवें "अखरी नामु अखरी सालाह॥ अते "एक अखरु हरि मनि बसत नानक होत निहाल ॥, इहनां उदाहरणा विच अखर तों भाव है सच जो खरे नहीं। जो सदीव सच है उसदे गुणां दी विचार तों गल सपस़ट हुंदी है। इस सच ने ही कुदरत साजी है "सचु पातिसाही अमरु सचु सचे सचा थानु॥ सची कुदरति धारीअनु सचि सिरजिओनु जहानु॥ नानक जपीऐ सचु नामु हउ सदा सदा कुरबानु॥। इह सच नाम भाव सच दी सोझी ही असीं सारिआं ने जपणी भाव समझणी है। साडा धिआन केवल सच दे गुणां नूं जपण (समझण) विच होणा चाहीदा है।
स्रिसटी किउं अते किवें बणी इह गुरमति दा विस़ा है ही नहीं। साडी धरती कुल काइनात दा इक रती तों वी छोटा हिसा है। कदों बणिआ, किवें बणिआ इस बारे गुरमति ने कहि दिता है के अंत नहीं पाइआ जा सकदा। सारे ही अंदाजे अंदेस़े ला के थक गए पर उथे तक कोई पहुंच नहीं सकिआ। नासा दी इक फोटो है वेखो
निरीखण योग ब्रहमंड दी अंदाज़न उमर 13.799 अरब साल है। निरीखण योग ब्रहमंड लगभग 93 अरब प्रकास़ वर्हे (93 billion light-years) विस़ाल है। इसतों भाव है कि असीं हर दिस़ा विच लगभग 46.5 अरब प्रकास़ वर्हे तक दी दूरी तक दी चीज़ां नूं जंतरां नाल देख सकदे हां। इह गिणती सिरफ़ उन्हां चीज़ां दी है जिन्हां दी रोस़नी सानूं अजे तक पहुंची है। ब्रहमंड दा असल आकार इस तों वी कई गुणा वडा हो सकदा हैἔपर उह साडी निगाह तों बाहर है। जो रोस़नी सानूं अज दिस रही है उह कई अरब साल पहिलां दी छवी है, सो अज दी सथिती की है ग्रिहां दी उह सानूं नहीं पता। जितनी जग रचना नूं समझण दी लोड़ सी उतनी जिही गल गुरबाणी ने समझाई है।
उसतति करहि अनेक जन अंतु न पारावार॥ नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार॥१॥
जैसे जल ते बुदबुदा उपजै बिनसै नीत॥ जग रचना तैसे रची कहु नानक सुनि मीत॥२५॥
मनुख आप कदे धरती तों ४०१,१७१ किलो मीटर तों जिआदा दूर नहीं गिआ। दूरबीनां, जंत्रा नाल स्रिसटी नूं वेख के स्रिसटी दी होंद, ग्रिहां आदी दे अंदाजे ला रहिआ है। सोचण वाली गल है के जे सानूं पता लग वी जावे के स्रिसटी बणी किवें, किथों आई, किथे जाणी तां इस नाल साडे विच की बदलाव आउणा? गुरमति गुणां दी मति है, गुरबाणी गुणां नूं समझण दा ज़रीआ है। बाहर वल वेखण नाल साडे गुणां, साडे किरदार जां साडे जीवन विच की बदलाव आउणा? समाज विच सुधार किवें आउणा? इह विचारन दे विस़े हन।
गुरमति ने संसार नूं संसा (स़ंका) आखिआ है। इक बुझारत है इह संसार अते मनुख अगिआनता दी नींद विच ही सारा जीवन बतीत कर दिंदा है "संसा इहु संसारु है सुतिआ रैणि विहाइ॥
गुरमति आतम खोज मारग है। आपणे आप दी पछाण कराउंदी है गुरबाणी। अंदर झांक के आपणे किरदार आपणी काइआ ते कंम करन नूं आखदी है। अंदर खोजण नूं आखदी है। जदों मन नूं आपणी होंदा दा चेता कराइआ जावे इह बाहर नूं भजदा अते धिआन बाहर नूं लै जांदा किउं के उसनूं पता गिआन ने उसनूं बंन लैणा। जदों मन विच इहो जिहे सवाल उठण उसनूं वापस समझाउणा है के अंदर वेख। मन दी कोस़िस़ रहिंदी है के बाहर माइआ वल धिआन रहे। गुरबाणी अंदर खोजण दी गल करदी है। जदों तक धिआन बाहर मुखी है तत खोज जो गुरमति दस रही है उह असीं नहीं कर सकदे ना ही गुण आपणे ते लागू कर सकदे हां। संसार ने बहुत कुझ परवान कीता होइआ है पर जिसने इह नहीं समझिआ के खोज करनी की है उसनूं तत गिआन बारे पता नहीं लगणा
"सभ किछु घर महि बाहरि नाही॥ बाहरि टोलै सो भरमि भुलाही॥ गुरपरसादी जिनी अंतरि पाइआ सो अंतरि बाहरि सुहेला जीउ॥
"अंदरु खोजै ततु लहै पाए मोख दुआरु॥
"आपु खोजि खोजि मिले कबीरा ॥४॥७॥
"गुरमुखि होवै सु काइआ खोजै होर सभ भरमि भुलाई॥
"हरि खोजहु वडभागीहो मिलि साधू संगे राम॥
"खोजहु संतहु हरि ब्रहम गिआनी॥
"गुरमति खोजहि सबदि बीचारा ॥
"पुहप मधि जिउ बासु बसतु है मुकर माहि जैसे छाई॥ तैसे ही हरि बसे निरंतरि घट ही खोजहु भाई॥१॥
"खोजत खोजत सहजु उपजिआ फिरि जनमि न मरणा॥
"खोजत खोजत प्रभ मिले हरि करुणा धारे॥
"मनु खोजत नामु नउ निधि पाई ॥१॥
"गुरमुखि होवै मनु खोजि सुणाए ॥
"एका खोजै एक प्रीति॥ दरसन परसन हीत चीति॥ हरि रंग रंगा सहजि माणु॥ नानक दास तिसु जन कुरबाणु॥
"जो ब्रहमंडे सोई पिंडे जो खोजै सो पावै ॥
"खोजत खोजत ततु बीचारिओ दास गोविंद पराइण॥
"त्रिभवणु खोजि ढंढोलिआ गुरमुखि खोजि निहालि॥
"जानउ नही भावै कवन बाता॥ मन खोजि मारगु॥१॥ रहाउ॥ धिआनी धिआनु लावहि॥ जानउ नही भावै कवन बाता॥ मन खोजि मारगु॥१॥ रहाउ॥ धिआनी धिआनु लावहि॥ गिआनी गिआनु कमावहि॥ प्रभु किन ही जाता॥१॥
"जा कउ खोजहि सरब उपाए॥ वडभागी दरसनु को विरला पाए॥ ऊच अपार अगोचर थाना ओहु महलु गुरू देखाई जीउ॥३॥
"नानक दूजी कार न करणी सेवै सिखु सु खोजि लहै॥
"तनु मनु खोजे ता नाउ पाए॥
"बाहरु खोजि मुए सभि साकत हरि गुरमती घरि पाइआ ॥३॥
"खोजत खोजत निज घरु पाइआ॥ अमोल रतनु साचु दिखलाइआ॥ करि किरपा जब मेले साहि॥ कहु नानक गुर कै वेसाहि॥
"जिन गुरमुखि खोजि ढंढोलिआ तिन अंदरहु ही सचु लाधिआ ॥
"इसु मन कउ कोई खोजहु भाई॥ तन छूटे मनु कहा समाई॥४॥
"खखा खोजि परै जउ कोई॥ जो खोजै सो बहुरि न होई॥ खोज बूझि जउ करै बीचारा॥ तउ भवजल तरत न लावै बारा॥४०॥
"खोजत खोजत खोजि बीचारिओ ततु नानक इहु जाना रे ॥
"गुरमुखि खोजि लहै घरु आपे ॥१॥
"जा कउ खोजहि असंख मुनी अनेक तपे॥ ब्रहमे कोटि अराधहि गिआनी जाप जपे॥
"ए मन ऐसा सतिगुरु खोजि लहु जितु सेविऐ जनम मरण दुखु जाइ ॥
"खोजत खोजत मारगु पाइओ साधू सेव करीजै ॥
"खोजत खोजत खोजि बीचारिओ राम नामु ततु सारा ॥
"मेरे राम हउ सो थानु भालण आइआ॥ खोजत खोजत भइआ साधसंगु तिन॑ सरणाई पाइआ॥१॥
"सेवक गुरमुखि खोजिआ से हंसुले नामु लहंनि ॥२॥
"वडभागी घरु खोजिआ पाइआ नामु निधानु ॥
"मै खोजत खोजत जी हरि निहचलु सु घरु पाइआ॥
"खोजत खोजत खोजिआ नामै बिनु कूरु ॥
"खोजत खोजत घटि घटि देखिआ ॥
"खोजी खोजि लधा हरि संतन पाहा राम ॥
"जा महि सभि निधान सो हरि जपि मन मेरे गुरमुखि खोजि लहहु हरि रतना ॥
"खोजत खोजत दुआरे आइआ॥ ता नानक जोगी महलु घरु पाइआ॥
"काइआ नगरी सबदे खोजे नामु नवं निधि पाई ॥२२॥
"सुरि नर मुनि जन अंम्रितु खोजदे सु अंम्रितु गुर ते पाइआ ॥
"खोजत खोजत अंम्रितु पीआ ॥
"गुरमुखि खोजत भए उदासी॥
"बाहरि मूलि न खोजीऐ घर माहि बिधाता ॥
"मै मनु तनु खोजि ढंढोलिआ किउ पाईऐ अकथ कहाणी ॥
"इह बिधि खोजी बहु परकारा बिनु संतन नही पाए ॥
"ग्रिहि सरीरु गुरमती खोजे नामु पदारथु पाए ॥८॥
"गुरपरसादी काइआ खोजे पाए जगजीवनु दाता हे ॥८॥
"अंदरु खोजे सबदु सालाहे बाहरि काहे जाहा हे ॥६॥
"दिल महि खोजि दिलै दिलि खोजहु एही ठउर मुकामा ॥२॥
"जहा जाईऐ तह जल पखान॥ तू पूरि रहिओ है सभ समान॥ बेद पुरान सभ देखे जोइ॥ ऊहां तउ जाईऐ जउ ईहां न होइ॥२॥
"दखन देसि हरी का बासा पछिमि अलह मुकामा॥ दिल महि खोजि दिलै दिलि खोजहु एही ठउर मुकामा॥२॥
जे फेर वी स्रिसटी किवें बणी समझणा होवे तां पहिलां अकाल दे गण विचार लवो। समझ लवो के रब की है? कौण है? इह समझ लगू के सुरत (awareness) दा अथाह समुंदर है, पूरी स्रिसटी विच, जिस विचों जीव दी सुरत बूंद वांग निकलदी है, माइआ दा सरीर उस समुंदर दे ही गुणां, बिंद रूप विचों बणदी है, अते आपणे जीवन नूं भोग के उस समुंदर विच ही समा जांदी है। अते जो माइआ दा सरीर सी उह वापस बिंद रूप विच विलीन हो जांदा है। दसम बाणी अते आदि बाणी दोहां विच इसदे अनेक उदाहरण हन
हरि का सेवकु सो हरि जेहा॥ भेदु न जाणहु माणस देहा॥ जिउ जल तरंग उठहि बहु भाती फिरि सललै सलल समाइदा॥८॥
हरि हरि जन दुइ एक है बिब बिचार कछु नाहि॥ जल ते उपज तरंग जिउ जल ही बिखै समाहि॥६०॥
असल विच इह जीवन, सानूं जो दिख रहिआ है, समां इह सब छलावा है, इक सुपने वांग। इक रंग मंच है, उस अथाह समुंदर दा ही रचिआ होइआ चलचित्र है। आपणे जीवन नूं गुण धार के सुहेला करना सी, संसार विच बाकी मनुखां नाल सुहिरद पैदा करना सी। इस संसार विच लड़ाई झगड़े मुका के इक इहो जिहा समाज रचना सी जिस विच सारे आनंद विच होण। पर असीं द्वेस़ नहीं मुका रहे। लालच दिन पर दिन वध रहिआ है। विकारां दा पसारा मनुखां दे विच वध ही रहिआं है घट नहीं रहिआ। इह इसे लई हो रहिआ है किउं के असीं अंदर वेखण दी प्रविरती नहीं बणाई। बाहर वेख के कमीआं लबदे। दूजिआं दे कंम असीं वेख के उहनां विच कमीआं लभदे हां। अवगुणां दा वपार करन लग पए। सारिआं विच एका बणाउण दी थां सारिआं नूं वख कर के जां वख समझ के वडा छोटा मंन रहे हां। माइआ दीआं सारीआं परतां थले अंदर जो सुरत बैठी है, जिसनूं गलत सही समझ आउंदा है, जो सबै घट राम वाला राम है, जो गिआन नाल हरिआ हरि है, उसनूं सारिआं अंदर एक समान समझे बिनां सुहिरद नहीं पैदा कीता जा सकदा। एका असीं समझदे नहीं तां एका होवेगा किवें? वेखो "एक, एकु, इक, इकु अते अनेक दा अंतर
कुदरत दे फ़ारसी अरथ जो उपर दसे हन, लै के गुरबाणी दीआं पंकतीआं पड़्हन नाल अरथ बिहतर समझ लगणे।
सो गुरबाणी दी विचार करो ते गुण धारण करो जो गुरमति ने दसे हन। स्रिसटी साडी पकड़ अते समझ तों बाहर है। गुण साडी पकड़ विच आ सकदे हन, गुरमति विचार राहीं। गुरमति दा विस़ा संसार ते माइआ नहीं है। गुरमति आतम खोज मारग है, आपणे अवगुण समझ के गुण धारण होणे हन। झगड़े मुका के साडे जीवन विच सदा रहिण वाला आनंद पैदा करना ही गुरमति दा विस़ा है।
Source: ਸੰਸਾਰ ਕਿਵੇਂ ਬਣਿਆ?