Source: ਪੂਤਾ ਮਾਤਾ ਕੌਣ ਹੈ?

पूता माता कौण है?

सिखां दे घरां विच किसे प्रकार दी खुस़ी दा समा होवे सब तों जिआदा पड़्हिआ जाण वाला स़बद है "पूता माता की आसीस॥। पर सवाल इह है के इस स़बद दी समझ किस नूं है? कौण जाणदा पूता माता कौण है? इह किस दी जिंमेवारी बणदी है के सिखां नूं इस स़बद दी सही समझ होवे? आओ पूरा स़बद विचारदे हां

जिसु सिमरत सभि किलविख नासहि पितरी होइ उधारो॥ सो हरि हरि तुम॑ सद ही जापहु जा का अंतु न पारो॥१॥ पूता माता की आसीस॥ निमख न बिसरउ तुम॑ कउ हरि हरि सदा भजहु जगदीस॥१॥ रहाउ॥ सतिगुरु तुम॑ कउ होइ दइआला संतसंगि तेरी प्रीति॥ कापड़ु पति परमेसरु राखी भोजनु कीरतनु नीति॥२॥ अंम्रितु पीवहु सदा चिरु जीवहु हरि सिमरत अनद अनंता॥ रंग तमासा पूरन आसा कबहि न बिआपै चिंता॥३॥ भवरु तुम॑ारा इहु मनु होवउ हरि चरणा होहु कउला॥ नानक दासु उन संगि लपटाइओ जिउ बूंदहि चात्रिकु मउला॥४॥३॥४॥(रागु गूजरी, म ५, ४९६)

पंचम पातिस़ाह आखदे जिस सिमरत (चेते कीतिआं) सारे किलविख भाव पाप, रोग संसे (स़ंके) नासहि (भज) जांदे हन दूर हो जांदे हन अते पितरां दा उधार हो जांदा है। मनुख नूं केवल आपणी ही नहीं अपणे पितरां दी वी चिंता रही है। आपणे पाप, कुलां दे पाप धोण खातर कई जतन करदा स़राध करदा संसारी दान पुंन करदा। आखदे सो ऐसा हरि (हरि समझण लई वेखो "हरि) नूं तुसीं सदा ही जापहु (पछाणो "जपणा ते सिमरन करना ? नाम जापण दी गुरमति विधी की है ?) जिसदा अंत नहीं पाइआ जा सकदा। गुण रूप विच उसदा नाम (सोझी) प्रापत कर उसनूं जापिआ (पछाणिआ जा सकदा है। इही पूता माता की आसीस है। माता कौण है, गुरबाणी मति नूं माता मंनदी है "मति माता संतोखु पिता सरि सहज समायउ॥, गुरमति माता है, गुरमति भगउती है उतम भगती दी मति। "भगउती कौण/की है ?। मति नूं माता कहिआ है गुरमति ने इसदे होर वी प्रमाण मिलदे हन

गुरमुखि जिंदू जपि नामु करंमा॥ मति माता मति जीउ नामु मुखि रामा॥(रागु गउड़ी माझ महला ४, १७२)

माता मति पिता संतोखु॥ सतु भाई करि एहु विसेखु॥१॥(रागु गउड़ी महला १, १५१)

पूत कौण है इह वी दस रहे ने पातिस़ाह। आखदे

सतिगुर साचै दीआ भेजि॥ चिरु जीवनु उपजिआ संजोगि॥ उदरै माहि आइ कीआ निवासु॥ माता कै मनि बहुतु बिगासु॥१॥ जंमिआ पूतु भगतु गोविंद का॥ प्रगटिआ सभ महि लिखिआ धुर का॥ – घट विच राम (रमे होए दा) हरि (गिआन दी हरिआली) नाल मंने होए मनु भाव पूत दी उतपति सुहागण, गुरमति दी धारणी बुध दुआरा होई है।

पंच पूत, भाव विकार वी बुध दे ही पूत हन जदों इसनूं गिआन नहीं "पंच पूत जणे इक माइ॥ उतभुज खेलु करि जगत विआइ॥ तीनि गुणा कै संगि रचि रसे॥ इन कउ छोडि ऊपरि जन बसे॥३॥

सो जदों इह समझ आ जावे के मात मति नूं कहिआ, बुध नूं कहिआ जो उतम भगती विच लीन है तां फेर इस मति रूपी माता दा पूत समझणा औखा नहीं है। पूत है सोझी, गिआन, गुण रूपी हरि, राम जिसदा जनम बुध विच रतन माणिक वांग है "मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥

सो स़बद विच गुरमति धारणी मति दा वरणन है जिस नाल बुध विच हरि/राम दा चानणा/परगास हुंदा है। इस नाल की होणा "निमख न बिसरउ तुम॑ कउ हरि हरि सदा भजहु जगदीस॥ फेर निमख मात्र वी, इक पल लई वी परमेसर दे गुण नहीं बिसरने, भाव भुलणे। सदा जगदीस दी भगती घट विच रहिणी। "सतिगुरु तुम॑ कउ होइ दइआला संतसंगि तेरी प्रीति॥ सति गुरु सचे दे गुय जिहड़े घट विच धारण कीते होण उह सदा दइआल हुंदे हन ते संत (घट विच वसदा हरि, राम, परमेसर दा गुण) उस नाल सदा प्रीत बणी रहिंदी है। "कापड़ु पति परमेसरु राखी भोजनु कीरतनु नीति॥२॥, मनुख दी देही (काइआ/घट) दा पति रूपी कपड़ा परमेसर आप रखदा। कीरती दा गिआन दा भोजन हमेस़ा प्रापत हुंदे रहिणा।

"अंम्रितु पीवहु सदा चिरु जीवहु हरि सिमरत अनद अनंता॥ रंग तमासा पूरन आसा कबहि न बिआपै चिंता॥३॥ – अंम्रित गिआन, सोझी नाम लई वरतिआ गिआ है गुरमति विच ("अंम्रित अते खंडे दी पहुल (Amrit vs Khandey di Pahul)। गिआन/नाम/सोझी दा अंम्रित पीण नाल जीव नूं आपणे अकाल रूप होण दी सोझी हुंदी है। इह जोत सदीव रहिंदी है आदि तों अंत तक रहिण वाली है, इह समझ प्रापत हुंदी है। इस जोत दा गिआन हरि चेते करदिआं, चेते रखिआं कदे ना खतम होण वाला आनंद प्रापत हुंदा है। जीव लई संसारी रंग तमास़ा अते इहनां दी आसा पूरन हुंदी है ते कदे वी चिंता नहीं हुंदी। इस अवसथा विच माता (भगउती) दा सदका हुकम दी सोझी घट विच चानण बणा के रखदी है।

इही गल इक होर स़बद विच पातिस़ाह ने कही है "सतिगुर साचै दीआ भेजि॥ चिरु जीवनु उपजिआ संजोगि॥ उदरै माहि आइ कीआ निवासु॥ माता कै मनि बहुतु बिगासु॥१॥ जंमिआ पूतु भगतु गोविंद का॥ प्रगटिआ सभ महि लिखिआ धुर का॥ रहाउ॥ दसी मासी हुकमि बालक जनमु लीआ॥ मिटिआ सोगु महा अनंदु थीआ॥ गुरबाणी सखी अनंदु गावै॥ साचे साहिब कै मनि भावै॥२॥ वधी वेलि बहु पीड़ी चाली॥ धरम कला हरि बंधि बहाली॥ मन चिंदिआ सतिगुरू दिवाइआ॥ भए अचिंत एक लिव लाइआ॥३॥ जिउ बालकु पिता ऊपरि करे बहु माणु॥ बुलाइआ बोलै गुर कै भाणि॥ गुझी छंनी नाही बात॥ गुरु नानकु तुठा कीनी दाति॥४॥७॥१०१॥

गुणां दी मति, गुण वाली बुध ही पूता है "आई पूता इहु जगु सारा॥ प्रभ आदेसु आदि रखवारा॥ आदि जुगादी है भी होगु॥ ओहु अपरंपरु करणै जोगु॥११॥ – जदों बुध विच इह सोझी इह गिआन वाली पूता पैदा हो जादी है उसदा वरणन कर रहे ने पातिस़ाह।

सो इह समझण वाली गल है के संसारी पदारथ दी प्रापती, संसारी पुत धी घर आदी दी गल नहीं कर रहे पातिस़ाह ते इहनां नूं पूता माता दी आसीस नहीं कहि रहे पातिस़ह। संसारी पदारथ तां परमेसर ने बिनां मंगे वी देई जाणे। विसथार विच समझण लई वेखो "अरदास की है अते गुरू तों की मंगणा है?। संसारी पुत धी पदारथ परमेसर तों मंगण वाले नूं तां पातिस़ाह आखदे "पूत मीत माइआ ममता सिउ इह बिधि आपु बंधावै॥ म्रिग त्रिसना जिउ झूठो इहु जग देखि तासि उठि धावै॥१॥

सो भाई मीत सखा पिआरे जी गुरबाणी नूं समझ बूझ के ही विचार कीती जा सकदी है। बुध विच रतन जवाहर माणिक गुर दी गल समझ के ही मिलणे। इह बस चेते गखीए। धीरज नाल सहज विच आउण लई गुरबाणी दी विचार करी चलीए ते जनम सुहेला करी चलीए।


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