Source: ਮਾਲਾ ਫੇਰਨਾ ਤੇ ਜਪਨੀ

माला फेरना ते जपनी

सिखां दे घरां विच लगीआं गुरूआं दी पेंटिंग विच अकसर गुरूआं दे हथ विच माला फड़ी दिसदी है। कई सिख प्रचारक जथेदार वी हथ विच माला फड़ी विख जांदे हन। इंझ जापदा है जिवें माला तों बिनां भगती नहीं हो सकदी। गुरमति दी रोस़नी विच विचार करदे हां के गुरमति गिआन, सोझी लई जां नाम जपण लई संसारी, काठ दी माला जां जपनी सहाइक है जां नहीं।

असीं पहिलां विचार कर चुके हां के नाम की है ते नाम जपणा दी गुरमति विधी की है। असीं आस करदे हां के जे तुसीं इह लेख नहीं पड़े तां पहिलां इह लेख पड़्ह लवो

जपणा ते सिमरन करना ? नाम जापण दी गुरमति विधी की है ?

नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?

गुरमति अधिआतमिक गिआन है। आपणे आप दी पहिचान करना, परमेसर नूं उसदे गुणां राही प्रापत करन दी विधी। जे उपरोकत लेख तुसीं पड़्हे हन तां समझ ही गए होणे के परमेसर नूं इक नाम नाल पुकार के प्रापत नहीं कीता जा सकदा ते ना ही रटणा नाम जपणा है। फेर माला जां माला फेरन बारे गुरबाणी दा की कहिणा है।

भगत नाम दे जी महाराज आखदे हन "नामु तेरो तागा नामु फूल माला भार अठारह सगल जूठारे॥ तेरो कीआ तुझहि किआ अरपउ नामु तेरा तुही चवर ढोलारे॥३॥ – तेरा नाम भाव सोझी ही तागा है ते नाम ही तेरा फूल माला है। कहिण दा भाव बाहरी फुलां दी माला दी लोड़ नहीं। सोझी ही माला है। जे नाम फुलां दी माला है तां फेर हथ विच फड़ी मणकिआं दी माला किवें लाभदाइक हो सकदी है। अगे होर प्रमाण वेखदे हां।

भगत कबीर जी आखदे "नित उठि कोरी गागरि आनै लीपत जीउ गइओ॥ ताना बाना कछू न सूझै हरि हरि रसि लपटिओ॥१॥ हमारे कुल कउने रामु कहिओ॥ जब की माला लई निपूते तब ते सुखु न भइओ॥१॥ – रोज सवेरे उठ के कोरी गाहर भर के लिआ के थां लिपदे सी जिथे बहि के माला फड़ के भगती करदे सी आखदे, जदों तों इह माला फड़ी उदों तो सुख नहीं मिलिआ। जदों उहनां नूं गिआन होइआ उहनां आपणी माला तिआग दिती ते केवल गिआन तों प्रापत सोझी भाव नाम वल धिआन ला लिआ।

गिणती मिणती नाल भगती नहीं हुंदी। कोई कहे जी मैं सौ वार माला फेरदा, १०० जपजी साहिब दे पाठ करदां। इस नाल कोई लाभ नहीं। जदों तक गिआन लैके सोझी दा चानणा घट अंदर नहीं हुंदा उदों तक भगती नहीं हुंदी। फोकट करम ही हन। जिहड़े माला फेरन नूं भगती मंनदे सी उहनां नूं तां सिधा ही पंचम पातिस़ाह ने कहिआ खटु करमा अरु आसणु धोती॥ भागठि ग्रिहि पड़ै नित पोथी॥ माला फेरै मंगै बिभूत॥ इह बिधि कोइ न तरिओ मीत॥३॥ सो पंडितु गुरसबदु कमाइ॥ त्रै गुण की ओसु उतरी माइ॥ चतुर बेद पूरन हरि नाइ॥ नानक तिस की सरणी पाइ॥ – जिहड़े नित पोथी पड़ रहे हन, माला फेरदे हन, आखदे इस बिध (विधी) नाल कोई नहीं तरिआ। जो पड़्ह के गल नूं समझदा है उह पंडत है। जो गुरसबद दी कमाई करदा है। गुर स़बद नूं पड़्ह के समझ के बुध विच धारण करदा है। फेर त्रै गुण माइआ दा जदों असर मनुख दी बुध तों खतम होवे तां उसनूं चतुर सुजाण समझिआ जाणा। जिस कोल हरि दा पूरन नाम (सोझी) होवे। त्रै गुण माइआ बारे विचार पड़न लई वेखो "त्रै गुण माइआ, भरम अते विकार

किनही घूघर निरति कराई॥ किनहू वरत नेम माला पाई॥किनही तिलकु गोपी चंदन लाइआ॥ मोहि दीन हरि हरि हरि धिआइआ॥५॥ – आखदे कोई घूघर पा के निरत करके परमेसर रिझाउण दा जतन करदा, कोई वरत करदा, नेम, जां माला नाल। कोई तिलक चंदन नाल परमेसर प्रापती दा जतन करदा। आखदे मैं तां हरि ही धिआइआ (भाव धिआन विच रखिआ)

कबीर जी आखदे "माथे तिलकु हथि माला बानां॥ लोगन रामु खिलउना जानां॥१॥ – लोकां तिलक ला के, हथ विच माला फड़ लई, भांत भांत दे बाणे पा लए ते राम नूं खिडोणा समझ लिआ। जिवें आह बाहरी भेख नाल बिनां गुणां दे गिआन तों राम प्रापत हो जाणा। राम समझण लई वेखो "गुरमति विच राम

नानक पातिस़ाह आखदे "पड़ि॑ पुस्तक संधिआ बादं॥ सिल पूजसि बगुल समाधं॥ मुखि झूठु बिभूखन सारं॥ त्रैपाल तिहाल बिचारं॥ गलि माला तिलक लिलाटं॥ दुइ धोती बसत्र कपाटं॥ जो जानसि ब्रहमं करमं॥ सभ फोकट निसचै करमं॥ कहु नानक निसचौ धॵिावै॥ बिनु सतिगुर बाट न पावै॥१॥ – भाव इह है के उस समें बहुत सारे पंडत, विदवान, गिआनी अखौण वाले वख वख पोथीआ पड़दे सी, ग्रंथ पड़दे सी, सिल (पथर) पूजदे सी, बगुले वांग इक पैर ते खड़ के तप करदे सी, संधिआ काल उस़ा काल दे पाठ पूजा करदे सी। बिनां गिआन बिनां सोझी (नाम) तों इहनां सारिआं करम कांड नूं फोकट करम आखदे ने। सवाल इह है, की रब, परमेसर, खुदा साडे तों इह सब मंगदा? चाहुंदा है के असीं इह सब करीए? की रब इस सब नाल खुस़ हुंदा? साडे किरदार साडे गुणां विच की फरक पैंदा? की साडे अवगुण, साडे डर, हउमे आदी विच कोई फरक पैंदा? इही सब अज सिख वी कर रहे हन पर रूप बदल गिआ है। गुरबाणी विच पातिस़ाह आखदे हन "गुरमति सुनि कछु गिआनु न उपजिओ पसु जिउ उदरु भरउ॥। नानक पातिस़ाह उपर स़बद विच आखदे हन बिनां सतिगुर (सति – सचा जो हमेस़ा है, गुर – गुण) भाव सचे दे गुणां नूं प्रापत कीते बिनां बाट (राह) नहीं पा सकदा।

"भूखे भगति न कीजै॥ यह माला अपनी लीजै॥हउ मांगउ संतन रेना॥ मै नाही किसी का देना॥१॥ – जदों भगतां माला तिआग के गिणती मिणती दी भगती छड के उह भगती फड़ी जिस विच आखदे हन के "हरि जीउ तुधु नो सदा सालाही पिआरे जिचरु घट अंतरि है सासा॥ इकु पलु खिनु विसरहि तू सुआमी जाणउ बरस पचासा॥ फेर की कारण है सिखां ने दुबारा अज माला चक लई? जे हर साह जपनी दा मणका बणाउण नूं आखदी है गुरमति तां की कारण है बाहर काठ दी जां मणकिआं दी माला दी लोड़ पै रही है? की इह अगिआनता है जां इह केवल धरमी होण दा विखावा है।

कई सवाल कर सकदे हन के नानक ने वी तां फड़ी होई है फोटो विच। फेर असीं किउं ना फड़ीए? तां निहंग धरम सिंघ जी ने इक सवाल पुछिआ सी के जे कोई नानक दे हथ विच एके ४७ फड़ा के फोटो बणा देवे तां की फेर इह मंन लैणा चाहीदा है के नानक ने वी एके ४७ फड़ी सी, ५०-१०० साला विछ उह फोटो वेख के लोकां ने सच मंन लैणा। की इह ठीक है? कलाकार ने आपणी भावना नाल नानक दी माला नाल पेंटिंग बणाई पर इह ज़रूरी तां नहीं के उस कलाकार नूं गुरमति दा पता सी। नानक दे समें दी नानक दी किहड़ी तसवीर साडे कोल है? नानक ने आपणे विचार लिख के आपणा गिआन साडे नाल सांझा कीता है ते आखदे हन "ना सुचि संजमु तुलसी माला॥ गोपी कानु न गऊ गोुआला॥ तंतु मंतु पाखंडु न कोई ना को वंसु वजाइदा॥, "गलि माला तिलक लिलाटं॥ दुइ धोती बसत्र कपाटं॥ जो जानसि ब्रहमं करमं॥ सभ फोकट निसचै करमं॥ कहु नानक निसचौ धॵिावै॥ बिनु सतिगुर बाट न पावै॥१॥। जदों नानक ने नाम भाव सोझी नूं गिआन नूं किसे वी दुनिआवी करम कांड तों उपर मंनिआ है तां फेर असीं किउं भटकी जांदे हां? नाम नूं ही सरवउच मंनिआ है गुरमति ने "नामु तेरो तागा नामु फूल माला भार अठारह सगल जूठारे॥ तेरो कीआ तुझहि किआ अरपउ नामु तेरा तुही चवर ढोलारे॥३॥ पर अज दे सिख नूं नाम की है नहीं पता। नाम बारे जानण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?

धोती ऊजल तिलकु गलि माला॥ अंतरि क्रोधु पड़हि नाट साला॥ नामु विसारि माइआ मदु पीआ॥ बिनु गुर भगति नाही सुखु थीआ॥४॥ – सिखी बाहरी भेख, विखावा नहीं है।

भगत जी महाराज आखदे "जब की माला लई निपूते तब ते सुखु न भइओ॥ – मनुख माला फड़ी होवे गिणती मिणती विच ही फस जांदा। फेर दस हजार वार माला फेरी, इक लख माला फेरी , बस इही चल रहिआ हुंदा, ना गिआन विच वाधा ना विकार घटणे। ना ही नाम दी प्रापती होणी। पंचम पातिस़ाह वी आखदे "एकै सूति परोए मणीए॥ गाठी भिनि भिनि भिनि भिनि तणीए॥ फिरती माला बहु बिधि भाइ॥खिंचिआ सूतु त आई थाइ॥

फेर पंचम पातिस़ाह ने तां सपस़ट ही कहि दिता "माला फेरै मंगै बिभूत॥ इह बिधि कोइ न तरिओ मीत॥

कबीर जपनी काठ की किआ दिखलावहि लोइ॥ हिरदै रामु न चेतही इह जपनी किआ होइ॥७५॥ – भगत जी आखदे राम तेरे हिरदे विच तां है नहीं, नां तूं राम नूं समझिआ ते बाहर हथ विच काठ दी जपनी की विखा रहिआं हैं? जे हिरदे विच राम ना होवे बाहर जपनी की करू? राम कौण है समझण लई वेखो "गुरमति विच राम

माला/जपनी छड गुरबाणी तों गुरमति गिआन दी विचार करीए तां पता लगदा गु्रू साहिबान आखदे हन "किनही कहिआ बाह बहु भाई॥ कोई कहै मै धनहि पसारा॥ मोहि दीन हरि हरि आधारा॥४॥ किनही घूघर निरति कराई॥ किनहू वरत नेम माला पाई॥ किनही तिलकु गोपी चंदन लाइआ॥ मोहि दीन हरि हरि हरि धिआइआ॥५॥ किनही सिध बहु चेटक लाए॥ किनही भेख बहु थाट बनाए॥ किनही तंत मंत बहु खेवा॥ मोहि दीन हरि हरि हरि सेवा॥६॥ कोई चतुरु कहावै पंडित॥ को खटु करम सहित सिउ मंडित॥ कोई करै आचार सुकरणी॥ मोहि दीन हरि हरि हरि सरणी॥७॥ सगले करम धरम जुग सोधे॥ बिनु नावै इहु मनु न प्रबोधे॥ कहु नानक जउ साधसंगु पाइआ॥ बूझी त्रिसना महा सीतलाइआ॥

असल गल है के लोकां परमेसर नूं खिडौणा मंनिआ होइआ है के जी असीं बार बार इक स़बद नूं रटांगे, गा के जां मथे टेक के रब नूं भावुक करके जां लालच दे के काबू कर लवांगे। भगत जी आखदे "माथे तिलकु हथि माला बानां॥ लोगन रामु खिलउना जानां॥१॥ रब काबू आउंदा गुणां दे गिआन नाल, गुण विचार के गुणां नूं हासिल करके। हरिजन आखदे किदां दा होवे? जिहो जिहा हरि है। हरि वरगा बणन लई हरि दे गुण धारण करने पैणे। नौटंकी नाल नहीं गल बणनी। सुच ते सच दी माला (गिआन) गुणां दी माला दी लोड़ पैणी। "जा कै करमु नाही धरमु नाही नाही सुचि माला॥सिव जोति कंनहु बुधि पाई सतिगुरू रखवाला॥ – इह विरलिआं नूं सोझी हुंदी है। फेर आखदे हन "कबीर बैसनो हूआ त किआ भइआ माला मेलीं चारि॥ बाहरि कंचनु बारहा भीतरि भरी भंगार॥ – आखदे की होइआ जे तूं बैसनो हो गिआ, मास दा तिआगी हो गिआ, माला वी फेर लई, बाहरों भेख सोने वरगा बणा लिआ अंदर तां अवगुणां दी विकारां दी भंगार (कूड़ा/करकट/मैल) भरी पई है। गुरमति दी मास बारे विचार समझण लई वेखो "मास खाणा (Eating Meat) अते झटका (Jhatka)

माला/ जपनी किहड़ी चाहीदी है सिख नूं?

सिख नूं जिहड़ी माला चाहीदी है गुरमति ने समझाइआ है

हरि हरि अखर दुइ इह माला॥ जपत जपत भए दीन दइआला॥१॥ करउ बेनती सतिगुर अपुनी॥ करि किरपा राखहु सरणाई मो कउ देहु हरे हरि जपनी॥१॥ रहाउ॥ हरि माला उर अंतरि धारै॥ जनम मरण का दूखु निवारै॥२॥ हिरदै समालै मुखि हरि हरि बोलै॥ सो जनु इत उत कतहि न डोलै॥३॥ कहु नानक जो राचै नाइ॥ हरि माला ता कै संगि जाइ॥

आपे बखसे दइआ करि गुर सतिगुर बचनी॥ अनदिनु सेवी गुण रवा मनु सचै रचनी॥ प्रभु मेरा बेअंतु है अंतु किनै न लखनी॥ सतिगुर चरणी लगिआ हरि नामु नित जपनी॥ जो इछै सो फलु पाइसी सभि घरै विचि जचनी॥१८॥

हिरदै जपनी जपउ गुणतासा॥ हरि अगम अगोचरु अपरंपर सुआमी जन पगि लगि धिआवउ होइ दासनि दासा॥१॥

भाव मनुख जपनी घट/घर/हिरदे विच लै के जनमिआं है। मनुख दा हर साह चलदा ही जपनी है। हर वेले, हर समें गिआन वल धिआन रखणा है, गुणां वल धिआन रहे। अवगुण पैदा ना होण। हरि दे गुणां दी विचार निरंतर चके। प्रेमा भगती विच अठे पहिर लीन रहे। इही भगती है। भगती अते पूजा की है समझण लई वेखो "भगती अते पूजा। सिख दा हर वेला अंम्रित वेला होवे। अंम्रित वेला समझण लई वेखो "भलका, अंम्रित वेला, रहिरास अते गुरबाणी पड़्हन दा सही समा। इस गिआन दी माला नाल संसारी, आतमिक स़ांती, सदभाव बणे। किसे नाल वी वैर विरोध ना रहे। गुरमति (गुणां दी मति) दा प्रचार होवे। लोकां नूं मनुखी धरम दी सोझी पवे। धरम समझण लई वेखो "धरम


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