Source: ਕੂੜ
कई वीरां तों इह स़बद बहुत वार सुणिआ है। जिहड़ी वसतू, ग्रंथ, खिआल जां सोच चंगी ना लगे उसनूं कूड़ आख दिता जांदा है। टीकिआं ने वी इसदा स़बदी अरथ झूठ जां मंदा कीता है। सो गुरमति दी रोस़नी विच झूठ तां सारी जग रचना नूं ही कहिआ है, बिनस जाण वाली हर वसतू ही झूठ है। सच केवल अकाल, काल अते हुकम है। सो अज विचारदे हां के कूड़ गुरमति ने किस नूं मंनिआ है। बाणी दीआं पंकतीआं विच नानक पातिस़ाह फरमाउंदे हन
कूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारु॥ कूड़ु मंडप कूड़ु माड़ी कूड़ु बैसणहारु॥ कूड़ु सुइना कूड़ु रुपा कूड़ु पैन॑णहारु॥ कूड़ु काइआ कूड़ु कपड़ु कूड़ु रूपु अपारु॥ कूड़ु मीआ कूड़ु बीबी खपि होए खारु॥ कूड़ि कूड़ै नेहु लगा विसरिआ करतारु॥ किसु नालि कीचै दोसती सभु जगु चलणहारु॥ कूड़ु मिठा कूड़ु माखिउ कूड़ु डोबे पूरु॥ नानकु वखाणै बेनती तुधु बाझु कूड़ो कूड़ु॥१॥ – राजा ते राज वी कूड़, कूड़ सोइना, कूड़ कपड़े, कूड़ पाउणवाले, कूड़ काइआ वी, कूड़ हरेक वसतू जो चलणहार है, इस दुनिआं ते temporary असथाई है, बिनसजाण वाली है। कूड़ माइआ नाल नेह, रिस़ते। परमेसर (अकाल) उसदे नाम (सोझी) हुकम दे इलावा हरेक दिसणवाली वसतू ही कूड़ है। जो अखरां विच दरज गलां हन इह वी थिर नहीं हन "ए अखर खिरि जाहिगे ओइ अखर इन महि नाहि॥ – आखदे अखर खिंड जाणगे उह अखर जो कदे खरदा नहीं इहनां विच नहीं है। अखरां राहीं केवल बिान कीता जा सकदा है, पर अखरां तों गिआन बुध ने लैके घट अंदर ही अखर (जो खरदा नहीं, जिस विच घाट वाध नहीं हुंदा) नूं खोजणा है।
लबु कुता कूड़ु चूहड़ा ठगि खाधा मुरदारु॥ पर निंदा पर मलु मुख सुधी अगनि क्रोधु चंडालु॥ रस कस आपु सलाहणा ए करम मेरे करतार॥१॥ बाबा बोलीऐ पति होइ॥ ऊतम से दरि ऊतम कहीअहि नीच करम बहि रोइ॥१॥ – निंदा, झूठ, लालच क्रोध चंडाल, इहु सारे रस करम हन संसार विच रहिंदिआं।
अमलु गलोला कूड़ का दिता देवणहारि॥ मती मरणु विसारिआ खुसी कीती दिन चारि॥ सचु मिलिआ तिन सोफीआ राखण कउ दरवारु॥१॥ – कूड़ (झूठ) भाव जो सदीव रहिण वाला नहीं है, जग रचना इस दा अमलु गलोला (नस़ा) वी देणवाले ने आप ही दिता है, इह सदीव रहिण वाला नहीं है इक दिन बिनस जाणा, इस मरन नूं विसार के चार दिन दी खुस़ी रंग माणदा हैं, सच उहनां सोफिआं जिहड़े माइआ दा नस़ा नहीं करदे उहनां नूं मिलदा है। अगे आखदे "नानक साचे कउ सचु जाणु॥ जितु सेविऐ सुखु पाईऐ तेरी दरगह चलै माणु॥१॥
इक पासे मंनदे हां के जो हो रहिआ है सब हुकम विच है, हुकम तों बाहर कुझ नहीं, दूजे पासे सही गलत, कूड़, सही गलत दी विचार विच फसे होए हां। दोवें नाल नहीं चल सकदे। जां तां मंन लवो के गलत होण वाला हरेक कंम हुकम तों बाहर है जां मंन लवो के जी जग रचना ही कूड़ (झूठ) है ते सच नूं गिआन नाल प्रापत करना है। मंन लवो के "जो होआ होवत सो जानै॥प्रभ अपने का हुकमु पछानै॥
मन मेरे साचा सेवि जिचरु सासु॥ बिनु सचे सभ कूड़ु है अंते होइ बिनासु॥ – सच है अकाल, काल ते हुकम। गुरमति सचि है किउंके इहनां दे गिणां दा गिआन है। गुणां दी विचार साचे दी सेवा है "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥। सच (अकाल/काल/हुकम) दे इलावा हर वसतू, संसार, जग रचना सब कूड़ मंनी है गुरमति ने, कूड़ दी पंकती इह है ते झूठ वाली है "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति॥
नाम (गुणा दी सोझी, गुरमति गिआन तों प्रापत सुरत) तों बिनां हरेक वसतू ही कूड़्ह है "होरु कूड़ु पड़णा कूड़ु बोलणा माइआ नालि पिआरु॥ नानक विणु नावै को थिरु नही पड़ि पड़ि होइ खुआरु॥२॥
जो मन दी मरज़ी करे, अगिआनता विच काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईरखा, द्वेस़, झूठ, निंदा, चुगली, अवगुण करदा उह मनमुख है, मनमुख दा धिआन माइआ वल हुंदा है ते कूड़ कमाउंदा, गुरमुख नाम (गिआन तों सोझी) दी कमाई करदा। उस बारे गुरमति आखदी "मनमुखु लोकु समझाईऐ कदहु समझाइआ जाइ॥ मनमुखु रलाइआ ना रलै पइऐ किरति फिराइ॥ लिव धातु दुइ राह है हुकमी कार कमाइ॥ गुरमुखि आपणा मनु मारिआ सबदि कसवटी लाइ॥ मन ही नालि झगड़ा मन ही नालि सथ मन ही मंझि समाइ॥ मनु जो इछे सो लहै सचै सबदि सुभाइ॥ अंम्रित नामु सद भुंचीऐ गुरमुखि कार कमाइ॥ विणु मनै जि होरी नालि लुझणा जासी जनमु गवाइ॥ मनमुखी मनहठि हारिआ कूड़ु कुसतु कमाइ॥ गुरपरसादी मनु जिणै हरि सेती लिव लाइ॥ नानक गुरमुखि सचु कमावै मनमुखि आवै जाइ॥२॥
गुरमुख उह है जो गिआन, गुणां दी विचार, हुकम दी सोझी वल धिआन रखदा है। मनमुख नूं कूड़िआर आखदी गुरबाणी किउं के मनमुख दा धिआन गिआन वल नहीं मन दी मति, विकार, संसारी पदारथां, निंदा, चुगली, झुठ वल हुंदा है "सचा तेरा हुकमु गुरमुखि जाणिआ॥ गुरमती आपु गवाइ सचु पछाणिआ॥ सचु तेरा दरबारु सबदु नीसाणिआ॥ सचा सबदु वीचारि सचि समाणिआ॥ मनमुख सदा कूड़िआर भरमि भुलाणिआ॥ विसटा अंदरि वासु सादु न जाणिआ॥ विणु नावै दुखु पाइ आवण जाणिआ॥ नानक पारखु आपि जिनि खोटा खरा पछाणिआ॥
दोवै तरफा उपाइ इकु वरतिआ॥ बेद बाणी वरताइ अंदरि वादु घतिआ॥ परविरति निरविरति हाठा दोवै विचि धरमु फिरै रैबारिआ॥ मनमुख कचे कूड़िआर तिन॑ी निहचउ दरगह हारिआ॥ गुरमती सबदि सूर है कामु क्रोधु जिन॑ी मारिआ॥ सचै अंदरि महलि सबदि सवारिआ॥ से भगत तुधु भावदे सचै नाइ पिआरिआ॥ सतिगुरु सेवनि आपणा तिन॑ा विटहु हउ वारिआ॥५॥
सचा सतिगुरु सेवि सचु सम॑ालिआ॥ अंति खलोआ आइ जि सतिगुर अगै घालिआ॥ पोहि न सकै जमकालु सचा रखवालिआ॥ गुर साखी जोति जगाइ दीवा बालिआ॥ मनमुख विणु नावै कूड़िआर फिरहि बेतालिआ॥ पसू माणस चंमि पलेटे अंदरहु कालिआ॥ सभो वरतै सचु सचै सबदि निहालिआ॥ नानक नामु निधानु है पूरै गुरि देखालिआ॥
मनमुख माइआ मोहु है नामि न लगो पिआरु॥ कूड़ु कमावै कूड़ु संग्रहै कूड़ु करे आहारु॥ बिखु माइआ धनु संचि मरहि अंते होइ सभु छारु॥ करम धरम सुच संजम करहि अंतरि लोभु विकारु॥ नानक जि मनमुखु कमावै सु थाइ ना पवै दरगहि होइ खुआरु॥२॥
सूरजु तपै अगनि बिखु झाला॥ अपतु पसू मनमुखु बेताला॥ आसा मनसा कूड़ु कमावहि रोगु बुरा बुरिआरा हे॥
अंदरि तिसना अगि है मनमुख भुख न जाइ॥ मोहु कुटंबु सभु कूड़ु है कूड़ि रहिआ लपटाइ॥ अनदिनु चिंता चिंतवै चिंता बधा जाइ॥ जंमणु मरणु न चुकई हउमै करम कमाइ॥ गुर सरणाई उबरै नानक लए छडाइ॥२६॥
जे कोई वसतू जां कोई गल कूड़ लगदी वी है तां छडो उसनूं, केवल गुरमति गिआन वल धिआन देवो, "परहरि लोभु निंदा कूड़ु तिआगहु सचु गुर बचनी फलु पाही जीउ॥ जिउ भावै तिउ राखहु हरि जीउ जन नानक सबदि सलाही जीउ॥। जे अंदर विकार हन तां ही काम क्रोध लोभ मोह निंदिआ प्रबल है। "कूड़ु छोडि साचे कउ धावहु॥ जो इछहु सोई फलु पावहु॥ साच वखर के वापारी विरले लै लाहा सउदा कीना हे॥ – जिसदा धिआन सच वल हुंदा उह सच दी गल ही करदा।
धिआन विकारां वल रखणा है, निंदिआ वल रखणा है, संसारी पदारथां वल जां हुकम नूं समझ के नाम प्रापती वल रखणा है इह सिख ने पड़चोल करनी है। गुणां दी विचार, सच दी खोज, दिल विच प्रेम भावना इह मन ते लगी कूड़ (विकार) दी मल नूं धो दिंदी है। सो भाई सब छड के गुर चरनी लग। गुणां ने ही सदीव रहिण वाले अनंद दी प्रापती कराउणी है। जिस कोल गिआन है उस लई सब गोबिंद है, सब हुकम है, हरेक वसतू हर वसतू हर सथिती लई सहिज है, जो अगिआनी, अंधा, सुता, मनमतीआ है विकारां विच फसिआ उस लई हर वसतू ही कूड़ है। जिसदा विस़ा गिआन होवे उह हरि का बिलोवना बिलो के मखण (नाम/सोझी) कढ लैंदा है।
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