
Source: ਕੀ ਦਸਮ ਗ੍ਰੰਥ ਤੀਰਥ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ?
की दसम ग्रंथ तीरथ इस़नान करन नूं कहिंदा है ?
भेखी जोगन भेख दिखाए ॥ नाहन जटा बिभूत नखन मै नाहिन बसत्र रंगाए ॥ जौ बन बसै जोग कहु पईऐ पंछी सदा बसत बन ॥ कुंचर सदा धूर सिर मेलत देखहु समझ तुमही मन ॥ दादर मीन सदा तीरथ मो करयो करत इस़नाना ॥ धयान बिड़ाल बकी बक लावत तिन किआ जोगु पछाना ॥ जैसे कस़ट ठगन कह ठाटत ऐसे हरि हित कीजै ॥ तबही महां गयान को जानै परम पयूखहि पीजै ॥२४॥९८॥
भाव – पखंडी जोगी भेख दिखा के, जटावां वधा के सवाह सरीर ते मल के, लंबे नोह वधा के भगवे कपड़े पा के भेख करदे ने… जे जंगल विच रहि के ही जोग पाइआ जांदा तां पंछी जंगल विच रहिंदे ने, हाथी हमेस़ां मिटी विच ही बैठा रहिंदा है… सिआणा बंदा इस चीज नूं देख के ही सम्हज जांदा के इह सारा पखंड है। डडु ते मछीआं हमेस़ां पाणी विच रहिंदे ने सो फिर जे तीरथ नातिआं ही कुछ मिलदा तां फिर इहना नूं मिल जाणा सी ! बगला धिआन ला के बैठा रहिंदा। सो जे धिआन लाईआं जोग हुंदा तां फिर इह वी जोगी बण जांदा। तूं सरीर ते कस़ट सहि के लोकां नूं ठगदा फिरदा है। जे इंना जोर परमेस्वर दी बंदगी विच लाइआ हुंदा तां परम पुरख परमेस्वर दे गिआन दी प्रापती कर के परम रस पी लैंदा
तीरथ नान दइआ दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥ बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै॥ पउन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजार क देखै ॥ स्री भगवान भजे बिनु भूपति एक रती बिनु एक न लेखै ॥४ ( स्री दसम ग्रंथ )
तीरथ नहा के देख लिआ लोकां ने, दान पुन कर लिआ तूं, संजम , नेम अनेकां किसम दे कर के देख लए। बेद , पुरान , बाईबल , कुरान आदिक जिनीआं वी जमीन असमान दीआं किताबां सभ देख लईआं तूं। हवा दा आहार कर लिआ, जती सती आदिक क्रम हजारां बार बिचार के देख लए। पर परमेस्वर दी बंदगी बिना इह सारीआं चीजां इक कोडी दीआं वी नहीं
कहूं निवली करम करंत ॥ कहूं पउन अहार दुरंत ॥ कहूं तीरथ दान अपार ॥ कहूं जग करम उदार ॥१३॥४३॥ कहूं अगन होत्र अनूप ॥ कहूं निआइ राज बिभूत ॥ कहूं सासत्र सिंम्रिति रीत ॥ कहूं बेद सिउ बिप्रीत ॥१४॥४४॥ कई देस देस फिरंत ॥ कई एक ठौर इसथंत ॥ कहूं करत जल महि जाप ॥ कहूं सहत तन पर ताप ॥१५॥४५॥ कहूं बास बनहि करंत ॥ कहूं ताप तनहि सहंत ॥ कहूं ग्रिहसत धरम अपार ॥ कहूं राज रीत उदार ॥१६॥४६॥ कहूं रोग रहत अभरम ॥ कहूं करम करत अकरम ॥ कहूं सेख ब्रहम सरूप ॥ कहूं नीत राज अनूप ॥१७॥४७॥ कहूं रोग सोग बिहीन ॥ कहूं एक भगत अधीन ॥ कहूं रंक राज कुमार ॥ कहूं बेद बिआस अवतार ॥१८॥४८॥ कई ब्रहम बेद रटंत ॥ कई सेख नाम उचरंत ॥ बैराग कहूं संनिआस ॥ कहूं फिरत रूप उदास ॥१९॥४९॥ सभ करम फोकट जान ॥ सभ धरम निहफल मान ॥ बिन एक नाम अधार ॥ सभ करम भरम बिचार ॥२०॥५०॥
भाव – समेत तीरथ असथान दे इस़नान करन दे उपर जीने वी करम दिते होए ने , इहना सारीआं नूं ” फोकट करम ” जानो। इहना दा कदीं कोई फल नहीं मिलणा। इक परमेस्वर दे नाम दे अधार बिना जीने वी इह पखंड करम ने इह भरम जाल हन
कहूं बेद रीति जग आदि करम ॥ कहूं अगनिहोत्र कहूं तीरथ धरम ॥१२॥१३२॥ कई देसि देसि भाखा रटंत ॥ कई देसि देसि बिदिआ पड़्हंत ॥ कई करत भाति भातन बिचार ॥ नही नेकु तासु पायत न पार ॥१३॥१३३॥
भाव – बहुत लोक बेद पड़ी जांदे ने, जग करी जांदे ने , अगनी पूजा करदे ने , तीरथां ते जांदे ने, वख वख बोलीआं रटी जांदे ने, विदिआ पड़ी जांदे ने… कई अनेकां विचार करी जांदे ने … पर परमेस्वर इह तेरा पर नहीं पा सकदे
कई तीरथ तीरथ भरमत सु भरम ॥ कई अगनिहोत्र कई देव करम ॥ कई करत बीर बिदिआ बिचार ॥ नहीं तदपि तासु पायत न पार ॥१४॥१३४॥
भाव – कई तीरथां ते भटकदे रहिंदे ने, कई अग दी पूजा करदे रहिंदे ने, कई देवते पूजी जांदे ने, कई भांत भांत दी विदिआ विचारी जांदे ने… पर हे परमेस्वर तेरा पर कोई वी नहीं पा सकदा
तीरथ जात्र न देव पूजा गोर को न अधीन ॥
भाव परमेस्वर तीरथ जान नाल नहीं मिलदा , देवते पूजन नाल नहीं मिलदा , कबरां ते जा के परमेस्वर प्रापती नहीं हुंदी
तीरथ कोट कीए इसनान दीए बहु दान महा ब्रत धारे ॥ देस फिरिओ कर भेस तपो धन केस धरे न मिले हरि पिआरे ॥ आसन कोट करे असटांग धरे बहु निआस करे मुख कारे ॥ दीन दइआल अकाल भजे बिनु अंत को अंत के धाम सिधारे ॥१०॥ ( स्री दसम ग्रंथ )
तूं तीरथां ते जा के देख लिआ, महा दान दे के देख लिआ , वरत रख के देख लए … भेस धारन कर लए , जटावां वधा के बैठ गिआ पर परमेस्वर नहीं मिलिआ… अनेकां आसन लगा लै, निआस कर लै …पर दीन दिआल दी दी बंदगी कीते बिना सभ संसार विच जीवन नूं काल हथो गवा बैठे
अनंत तीरथ बासनं ॥ न एक नाम के समं ॥११॥८९॥
भाव अनेकां तीरथां ते इस़नान कर लै , पर इक नाम दे तुल होर कुछ नहीं ( स्री दसम ग्रंथ )
ब्रतादि दान संजमादि तीरथ देव करमणं ॥ है आदि कुंज मेद राजसू बिना न भरमणं ॥ निवल आदि करम भेख अनेक भेख मानीऐ ॥ अदेख भेख के बिना सु करम भरम जानीऐ ॥३॥१०६॥
भाव तीरथ जाणा वरत रखणा , देवते पूजने , निवल क्रम करने सभ भेख है
अनंत तीरथ आदि आसनादि नारद आसनं ॥ बैराग अउ संनिआस अउ अनादि जोग प्रासनं ॥ अनादि तीरथ संजमादि बरत नेम पेखीऐ ॥ अनादि अगाधि के बिना समसत भरम लेखीऐ ॥५॥१०८॥
भाव – अनेकां तीरथां ते जा आ, अनेकां आसन रख लै , बैरागी बण जा … पर परमेस्वर बंदगी तों बिना सभ भरम है
बिन एक नाहिन स़ांति ॥ सभ तीरथ कियुं न अन्हात ॥ जब सेवि होइ कि नाम ॥ तब होइ पूरण काम ॥४७८॥
भाव इक परमेस्वर बिना स़ांती नहीं मिलणी , भावे सारे ही तीरथ नहा के किओं ना देख लै… जदों परमेस्व दा नाम ज्पेंगा तां ही कंम पूरे होणे ने !!! ( स्री दसम ग्रंथ )
इतिहास गवाह के गुरू साहिबा वलों प्रचार फेरीआं कीतीआं जांदीआं रहीआं ने। जिस तरह गुरू नानक देव जी ने उदासीआं कीतीआं , ओसे तरह गुरू तेग बहादुर साहिब ने पूरब वाले पासे प्रचार डोर कीता। पहिलां प्रचार वासते कोई पैंफ़लिट नहीं सी वंडे जांदे। प्रचार फेरी दे तरीके होर सन। हिंदुआं दे तीरथ सथान ते मेले लगदे हुंदे सन ते एहो जहीआं जगह ते इकठ आम होण करके प्रचार वासते चुण लिआ जांदा सी। जिस तरह गुरू नानक देव जी हरदवार कुंभ दे मेले ते गए , जगण नाथ पूरी गए आदिक। गुरू नानक देव जी साहिब ने हरिद्वार इस़नान कीता। पर पाणी उलट पासे सुटिआ। पहिलां कोई नहाउण वासते टूटीआं तां लगीआं नहीं सी हुंदीआ। जे नहाउणा हुंदा तां दरिआवां ते ही नहाइआ जांदा सी। हुण जे बंदा दरिआ विच इह सोच के इस़नान करे के मेरे इथे नहाउण नाल पाप कटे जाणगे तां ओह गलत है , पर जे सरीरक दी सफाई वासते इस़नान कर लिआ तां की गलत हो गिआ? गुर तेग बहादुर साहिब पूरब वल जदों प्रचार लई गए ने तां इतिहास गवाह है के गुरू साहिब पराग विच प्रचार फेरी समे रुके ते प्रचार कीता। हुण गुरू दान पुन की करदा है। गुरू नाम दान करदा है। गुरमत दान करदा है। ते लोड़ वंद नूं माइआ वी दे दिंदा, लंगर वी छका दिंदा है। इह कंम ना तां गुरमत दे विरुध है ते ना ही किसे तरह गलत। गुरू राम दास पातस़ाह दा स़बद है गुरू ग्रंथ साहिब विच :
तीरथ उदमु सतिगुरू कीआ; सभ लोक उधरण अरथा ॥ मारगि पंथि चले; गुर सतिगुर संगि सिखा ॥२॥
इसे स़बद विच इह पंकतीआं वी आउंदीआं ने :
हरि आपि करतै, पुरबु कीआ; सतिगुरू, कुलखेति नावणि गइआ ॥ नावणु पुरबु अभीचु; गुर सतिगुर दरसु भइआ ॥१॥
हुण की दसम विरोधी इस दा अरथ इह करन गे के परमेस्वर ने खुद दया कीती, इसे वासते गुरू साहिब( सतिगुरु) कुलखेत विच नहाउण गए ? जदों गुरू साहिब तीरथ विच जा के नहाए तां ओहना नूं दरस़न होए? याद रहे कुलखेत करूकस़ेतर नूं किहा जांदा है ते इह हिंदुआ दा तीरथ असथान है… हुण इसे स़बद विच गुरू राम दास जी पातस़ाह दसदे हन के सतगुरु ने तीरथ इस़नान करन तों बाअद की पुन दान कीता? पड़ो :
कीरतनु पुराण नित पुंन होवहि; गुर बचनि नानकि हरि भगति लही ॥ मिलि आए, नगर महा जना; गुर सतिगुर ओट गही ॥६॥४॥१०॥
इक होर नोट करन वाली गल है के इथे लिखिआ है के कीरतन “पुराण ” नित पुंन होवे… होर मेरे दसम विरोधी वीर इह ना कहि देण के असीं गुरू ग्रंथ साहिब जी नूं वी नहीं मनणा!
आओ हुण बचितर नाटक दी ओस पंकति वल चलदे हां :
मुर पित पूरबि कियसि पयाना ॥ भांति भांति के तीरथि न्हाना ॥ जब ही जाति त्रिबेणी भए ॥ पुंन दान दिन करत बितए ॥१॥ तही प्रकास हमारा भयो ॥ पटना सहर बिखै भव लयो ॥ मद्र देस हम को ले आए ॥ भांति भांति दाईअन दुलराए ॥२॥ बचित्र नाटक अ. ७ – २ – स्री दसम ग्रंथ साहिब
भाव मेरे पिता ने पूरब वल पिआन कीता, ते भांत भांत दे हिंदुआं दे तीरथां ते गए ने। इक आम बोली विच विच इस नूं तीरथ नहाउण वी कहि दिता जिस तरह उपर दिते गुरू ग्रंथ साहिब जी दे स़बद विच वी लिखिआ है! बाकी जो दसम ग्रंथ दे लिखारी दे तीरथ नहाउण प्रती विचार ने ओह खुल के उपर दिते जा चुके ने दसम ग्रंथ विचों पंकतीआं लै के। हुण जिस तरह गुरू ग्रंथ साहिब दे उपर दिते स़बद विच लिखिआ है के सतगुरु ने तीरथ ते जा के की पुन दान कीता, ओही पुन दान इथे वी कीता। हुण की कल नूं गुरू ग्रंथ साहिब जी दे इस स़बद दा वी विरोध स़ुरू कर देवोगे ? इक होर गल धिआन नाल देखो, विरोधी कहिंदे हन के लिखारी लिख रिहा है के तीरथां ते जा के दान पुन कीता तां मेरा जनम होइआ, जो विआकरन अनुसार गलत है, इथे स़बद है “तही” भाव “ओथे “, ना के “तां ही” भाव “इस करके”, विचारवान वीर नोट करन “तां ही” पंजाबी दा लफज है पर उपरोकत पंकतीआं ब्रिज भास़ा दीआं ने। सो स़बद दा पूरा भाव है के के पिता जी पूरब वल प्रचार फेरी दोरान गए जिथे वख वख तीरथां ते जिथे लोक इकतर हुंदे सन, ओथे स़बद दी इस़नान कीता ( हरि आपि करतै, पुरबु कीआ; सतिगुरू, कुलखेति नावणि गइआ॥ स्री गुरू ग्रंथ साहिब ), त्र्बेनी पराग विच वी नाम दा पुन दान भाव गुरमत गिआन दिता (कीरतनु पुराण नित पुंन होवहि; गुर बचनि नानकि हरि भगति लही ॥ मिलि आए, नगर महा जना; गुर सतिगुर ओट गही ॥६॥४॥१०॥ स्री गुरू ग्रंथ साहिब ), ओथे ही साडा प्रकास़ होइआ।
आदि बाणी तीरथ किस नूं मंनदी है समझण लई वेखो "स़रधा, करम, तीरथ ते परमेसर प्रापती अते दान बारे की आखदी है समझण लई वेखो "दइआ, दान, संतोख अते मइआ