Source: ਡਰ / ਭੈ
भै दी परिभास़ा की है? भै किउं लगदा? भै हुंदा की है? जे अकाल पुरख सारिआं नूं पिआर करदा है फेर डर किउं लगदा है? किउं दुख दिंदा है लोकां नूं? सारिआं नूं सुखी किउं नहीं कर दिंदा। इदां दे बहुत सारे सवाल सिख वीर भैणां पुछदे हन ते जवाब ना मिलण करके सिखी तों बेमुख वी हो जांदे हन।
असल विच डर मन दी अवसथा दा नाम है। इह चार भार जो जीव आपणे सिर ते लै के चलदा है उहनां विचों इक है। गुरबाणी दा फुरमान है "हउमै मोह भरम भै भार॥, पूरा स़बद है "जह आपि रचिओ परपंचु अकारु॥ तिहु गुण महि कीनो बिसथारु॥ पापु पुंनु तह भई कहावत॥कोऊ नरक कोऊ सुरग बंछावत॥ आल जाल माइआ जंजाल॥ हउमै मोह भरम भै भार॥ दूख सूख मान अपमान॥ अनिक प्रकार कीओ बखॵान॥ आपन खेलु आपि करि देखै॥ खेलु संकोचै तउ नानक एकै॥७॥ – भाव इस स्रिसटी दी रचना परमेसर ने आप कीती है। दुख सुख, मान अपमान भाव जस अपजस, जीवन मरन, लाभ हानी दी खेड इस संसार दी कार आप बणाई है। जिवें रात ना होवे तां दिन दा मुल ना पवे। स्रिसटी दी रचना आप करके, नीअम बणा के इह खेल उसने आप रचिआ ते साडे कोल इतनी छूट है के असीं सोच सकीए। साडी सोच साडे करम बण जांदे हन। जे चंगी सोच है, गिआन है सब हुकम दिसदा। हुकम दी सोझी ना होवे तां विकार पैदा हुंदे। "खंडा प्रिथमै साज कै जिन सभ सैसारु उपाइआ॥ – फेर पाप पुंन, दुख सुख दा खंडा साजिआ। पाप पुंन समझण लई वेखो "पाप पुंन (paap/punn)। जदों मनुख हुकम तों बाघी हुंदा है नहीं समझदा अगिआनता डर/भै दा रूप धारण करदी है। जदों समझ आ जावे के मन मरना की है तां मरन दा डर खतम हो जांदा है। समझण लई वेखो "Death मरना की है। जे कोई हुकम दे गिआन तों आकी होवे, विकार ना छडे तां अकाल क्रूर करमे वी है। जिवें पिता आपणे बचे नूं सही राह पाउण लई सजा दिंदा है उदां ही अकाल दे गुण हन। भाणा है जो परमेसर नूं पसंद है, हुकम है जे उसनूं ना पसंद होवे फेर वी उसनूं सही राह दिखालण लई करना पवे। डर मन दा स़ोर है "डरि घरु घरि डरु डरि डरु जाइ॥ सो डरु केहा जितु डरि डरु पाइ॥ तुधु बिनु दूजी नाही जाइ॥ जो किछु वरतै सभ तेरी रजाइ॥१॥ डरीऐ जे डरु होवै होरु॥ डरि डरि डरणा मन का सोरु॥१॥ – जदों मनुख नाम (सोझी) प्रापत करके मन (अगिआनता) मारण उपरंत मनुख भगती करदा है "मन मारे बिनु भगति न होई॥२॥, गुणां दी विचार करदा है तां मन दा स़ोर ना होण कारण भै मुकत हुंदा है। तां इह अवसथा बणदी है "किआ डरीऐ डरु डरहि समाना॥ पूरे गुर कै सबदि पछाना॥१॥। गुरमुख गिआन खड़ग करदा है मन नाल लूझण लई "गिआन खड़गु लै मन सिउ लूझै मनसा मनहि समाई हे ॥३॥। इही भगउती है।
डर चूके बिनसे अंधिआरे॥प्रगट भए प्रभ पुरख निरारे॥ आपु छोडि पए सरणाई जिस का सा तिसु घालणा॥१४॥
डर दूर करन दा केवल इक मारग है, उह है नाम (गिआन/सोझी)। डर दुहागण बुध नूं लगदा जिसदा खसम (हरि/राम/प्रभ/परमेसर) नाल पिआर नहीं। जदों उसदे हुकम ना एका हो के सुहागण हो जावे बुध फेर डर नहीं लगदा "सुणि मन भूले बावरे गुर की चरणी लागु॥ हरि जपि नामु धिआइ तू जमु डरपै दुख भागु॥ दूखु घणो दोहागणी किउ थिरु रहै सुहागु॥१॥। जदों हुकम दा गिआन हो जावे, समझ आ जावे के जो हो रहिआ है उह हुकम विच हो रहिआ है ते हुकम तों बाहर कुझ नहीं तां जीव निरभै अवसथा प्रापत कर लैंदा है। जदों इह समझ आ जावे के मेरे वस विच कुझ नहीं फेर किसे नूं डराउंदा नहीं। जिसनूं हुकम दी सोझी हो जांदी है उसनूं क्रोध नहीं हुंदा, बैरी मीत समान हो जांदे हन उह मुकत अवसथा हासिल कर लैंदा है "हरखु सोगु जा कै नही बैरी मीत समानि॥ कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जानि॥१५॥ भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन॥ कहु नानक सुनि रे मना गिआनी ताहि बखानि॥१६॥।
जिस नूं हरि दी राम दी सोझी हो जावे उसनूं ना डर लगदा है ना उह किसे नूं डराउंदा है। हरि समझण लई वेखो "हरि, ते गुरमति वाले राम बारे समझण लई वेखो "गुरमति विच राम। गुरबाणी दा फुरमान है "हरि इको करता इकु इको दीबाणु हरि॥ हरि इकसै दा है अमरु इको हरि चिति धरि॥ हरि तिसु बिनु कोई नाहि डरु भ्रमु भउ दूरि करि॥ हरि तिसै नो सालाहि जि तुधु रखै बाहरि घरि॥ हरि जिस नो होइ दइआलु सो हरि जपि भउ बिखमु तरि॥१॥ – हरि ही करता है जिसनूं चित विच धारण करना है। धारण कर के डर मुकदा। गुरमति अनुसार पुंन केवल गोबिंद दे गुण गाउणा है "कलि महि एहो पुंनु गुण गोविंद गाहि॥ ते गोबिंद है की, जो दिस रहिआ है सब गोबिंद ही है "सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई॥ सूतु एकु मणि सत सहंस जैसे ओति पोति प्रभु सोई॥, गोबिंद भाव परमेसर दा बिंद, ब्रहम बिंद "ब्रहम बिंदु ते सभ उतपाती॥१॥। हरि नूं धिआन विच रखणा है "हरि अंदरि बाहरि इकु तूं तूं जाणहि भेतु॥ जो कीचै सो हरि जाणदा मेरे मन हरि चेतु॥ सो डरै जि पाप कमावदा धरमी विगसेतु॥ तूं सचा आपि निआउ सचु ता डरीऐ केतु॥ जिना नानक सचु पछाणिआ से सचि रलेतु॥, जो गोबिंद बारे नहीं जाणदा, गोबिंद दा धिआन नहीं धरदा उही पापी है, होर इस दुनीआं विच कोई पाप पुंन नहीं है।
जिस जीव ने सचे (अकाल/हुकम) दे गुण धिआन विच रखे हन उसनूं डर नहीं लगदा "सतिगुरु जिनी धिआइआ से कड़ि न सवाही॥ सतिगुरु जिनी धिआइआ से त्रिपति अघाही॥ सतिगुरु जिनी धिआइआ तिन जम डरु नाही॥ जिन कउ होआ क्रिपालु हरि से सतिगुर पैरी पाही॥ तिन ऐथै ओथै मुख उजले हरि दरगह पैधे जाही॥१४॥"। जिहनां नूं नाम (सोझी) प्रापत हो जावे, जो गुणां नूं मुख रखदे हन उहनां दा डर मुक जांदा है "सो कत डरै जि खसमु सम॑ारै॥ डरि डरि पचे मनमुख वेचारे॥१॥।
सबदि मरै ता मारि मरु भागो किसु पहि जाउ॥ जिस कै डरि भै भागीऐ अंम्रितु ता को नाउ॥ मारहि राखहि एकु तू बीजउ नाही थाउ॥१॥
सो गिआन गुरू दी स़रण पवो, गुरमति गिआन लवो तां के मन तन सीतल होवे, विकार खतम होण, हुकम दी सोझी होवे "पउ सरणाई जिनि हरि जाते॥ मनु तनु सीतलु चरण हरि राते॥१॥ भै भंजन प्रभ मनि न बसाही॥ डरपत डरपत जनम बहुतु जाही॥१॥ रहाउ॥ जा कै रिदै बसिओ हरि नाम॥ सगल मनोरथ ता के पूरन काम॥२॥ जनमु जरा मिरतु जिसु वासि॥ सो समरथु सिमरि सासि गिरासि॥३॥ मीतु साजनु सखा प्रभु एक॥ नामु सुआमी का नानक टेक॥४॥८७॥१५६॥। ना डरीए ना किसे नूं डराईए। सारिआं नाल एका होवे। प्रेम भावना होवे। द्वेस़ खतम होवे।
जिन कउ आपि देइ वडिआई जगतु भी आपे आणि तिन कउ पैरी पाए॥ डरीऐ तां जे किछु आप दू कीचै सभु करता आपणी कला वधाए॥ देखहु भाई एहु अखाड़ा हरि प्रीतम सचे का जिनि आपणै जोरि सभि आणि निवाए॥ आपणिआ भगता की रख करे हरि सुआमी निंदका दुसटा के मुह काले कराए॥ सतिगुर की वडिआई नित चड़ै सवाई हरि कीरति भगति नित आपि कराए॥ अनदिनु नामु जपहु गुरसिखहु हरि करता सतिगुरु घरी वसाए॥ सतिगुर की बाणी सति सति करि जाणहु गुरसिखहु हरि करता आपि मुहहु कढाए॥ गुरसिखा के मुह उजले करे हरि पिआरा गुर का जैकारु संसारि सभतु कराए॥ जनु नानकु हरि का दासु है हरि दासन की हरि पैज रखाए॥२॥
भै जे रखणा है तां इही रखणा है के किते विकार ना पैदा होण। गुण विसर ना जाण। किते हुकम तो धिआन हट ना जावे। जो हो रहिआ है उह हुकम है।
मन रे सचु मिलै भउ जाइ॥ भै बिनु निरभउ किउ थीऐ गुरमुखि सबदि समाइ॥१॥ रहाउ॥ केता आखणु आखीऐ आखणि तोटि न होइ॥ मंगण वाले केतड़े दाता एको सोइ॥ जिस के जीअ पराण है मनि वसिऐ सुखु होइ॥२॥
गोविदु गुणी निधानु है अंतु न पाइआ जाइ॥ कथनी बदनी न पाईऐ हउमै विचहु जाइ॥ सतगुरि मिलिऐ सद भै रचै आपि वसै मनि आइ॥१॥ भाई रे गुरमुखि बूझै कोइ॥ बिनु बूझे करम कमावणे जनमु पदारथु खोइ॥१॥"
भै विचि पवणु वहै सदवाउ॥ भै विचि चलहि लख दरीआउ॥ भै विचि अगनि कढै वेगारि॥ भै विचि धरती दबी भारि॥ भै विचि इंदु फिरै सिर भारि॥ भै विचि राजा धरम दुआरु॥ भै विचि सूरजु भै विचि चंदु॥ कोह करोड़ी चलत न अंतु॥ भै विचि सिध बुध सुर नाथ॥ भै विचि आडाणे आकास॥ भै विचि जोध महाबल सूर॥ भै विचि आवहि जावहि पूर॥ सगलिआ भउ लिखिआ सिरि लेखु॥ नानक निरभउ निरंकारु सचु एकु॥१॥ – इथे पवणु, दरिआउ, अगन, धरती, इंदु, चंद, आकास आदी सब अलंकार हन जिहनां दे अरथ गुरमति विचों खोजण दी लोड़ है। भाव इह बणदा है के सब परमेसर/अकाल दे हुकम विच चलदे हन। उसदे हुकम तों बाहर कोई नहीं।
सो भाई नाम (हुकम दा गिआन/सोझी) लैणा ही गुरमुख दा मूल उपदेस़ है। वैर विरोध गवाउणा है। जदों जमणा मरना हुकम दिसू उदों सरीरिक मौत दा डर खतम हो जाणा। जदों इह समझ आ गिआ के जो प्रापत होणा हुकम विच प्रापत होणा लाभ हानी दा डर मुक जाणा। जदों इह समझ आ गिआ के उसदी रजा विच मान अपमान मिलणा तां जस अपजस दा डर खतम हो जाणाड़ इस जीवन विच आउण दा कारन ही गिआन लैणा सी। गुणां नूं धारन करना सी। जदों कोई पराइआ नहीं दिसणा विकार खतम हो जाणे। वेखो "विकारः काम, क्रौध, लोभ, मोह, अहंकार
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