Source: ਭਗਤੀ ਅਤੇ ਪੂਜਾ
जितने वी मनुख रब दी होंद नूं मंनदे हन किसे ना किसे तरीके नाल रब दी सिफ़त रब दा स़ुकराना करने चाहुंदे है। कई डर विच वी करदे हन, कई रब काबू करन लई, कईआं नूं पता नहीं किउं करनी है पर कर रहे ने के नाल दे कर रहे ने। कई ठंडे इलाकिआं विच सूरज नूं पूजदे हन किउंके उह रोस़नी ते गरमी दिंदा है। कईआं ने बदलां ते मींह दे देवते बणाए होए ने किउंके सुके ते रेगिसतान विच पाणी दी कमी है। इसे तरह जो कोई वी कुझ देवे उसनूं देवता मंन लिआ, सप तों डर लगदा नाग देवता बणा लिआ। जिसतों कुझ डर होवे जां मिलदा दिसे उसदी मूरती बणा के पूजा करन लग पए। नरक सुरग दा वी इही सिसटम बणाइआ होइआ है। जिथे पाणी दी कमीं है उथे दे मंने जाण वाले सुरग/जंनत विच दुध ते खजूर ते हूरां दा लालच है, जिथे खाण नूं दाणे नहीं उहनां दे सुरग विच रजवीं रोटी दा लालच है ते मदिरा दा लालच है। सुरग नरक बारे गुरमति विचार लई वेखो "सुरग ते नरक (Swarg te Narak)"। पूजा करन दे वी अनेक ढंग हन। कोई मथे टेक रहिआ, देवी देवतिआं दी मूरती बणा के उसदे अगे धूप, दीप, पूजा करदे ने, घंटीआ स़ंख वजाउंदे ने। रब नूं बली देके खुस़ करन दा जतन करदे ने, जिथे केवल मथा टेकिआ घट लगदा उथे डंडउत वी करदे ने मूरती मुहरे। उसदे नाम ते गोलक विच दान करके पंडत दा खरचा पाणी वी चलाउंदे। पर सिखां लई तां गिआन गुरू है, नानक दा गुरू गिआन गुरू है बाणी विच, निराकार है "रूपु न रेख न रंगु किछु त्रिहु गुण ते प्रभ भिंन॥ इस नाल तां सिखां विच दुबिधा बण गई, हुण निराकार नूं किवें पूजीए? डंडउत किस मुहरे करीए? जिहड़ा बाणी आखदी "सतिगुर आगै सीसु भेट देउ जे सतिगुर साचे भावै ॥ इह किस मुहरे करीए? निराकार अगे मथा किवें टेकीए, निराकार नूं सीस किवें भेंट करना? इक सौखा रसता पंडत ने दस दिता के पोथी अगे मथा टेक लवो। गुरू ग्रंथ साहिब अगे मथा टेक लवो। अज सिख बस मथा टेकण जोगा रहि गिआ। मथा टेक के, माइआ भेट करके सेवक अखवा लैंदा है। दुनिआवी दान पुंन ते भोजन दा लंगर ला के खुस़ हो जांदा। गुरमति पुंन दान किस नूं मंनदी ते लंगर किस नूं मंनदी नहीं पता। समझण लई वेखो "लंगरु, भुख अते मन दा भोजन अते दान बारे विचार लई वेखो "दइआ, दान, संतोख अते मइआ। गुरू घर इह सारे दुनिआवी कंम करके, मन परचावा करके घर नूं तुर पैंदा है। ना गु्रू दी गल समझी, ना विकार खतम होए, ना किरदार विच कोई बदलाव आइआ, ना ही सोझी मिली। गिआन गुरू दा उपदेस, गुण विचारन दा उपदेस भुल गिआ। बाणी तां पहिलां ही आखदी "बाणी बिरलउ बीचारसी जे को गुरमुखि होइ॥। अज दा विस़ा है के गुरबाणी अनुसार भगती की है? पूजा की है। गिआन गुरू दी किहड़ी पूजा परवान है।
पूजा अरचा बंदन डंडउत खटु करमा रतु रहता॥ हउ हउ करत बंधन महि परिआ नह मिलीऐ इह जुगता॥५॥ – गिआन गुरू है सारे जग दा उसदी पूजा अरचा बंदन डंडउत इहनां दा कारन हउ भाव हउमे दा कारण बणदा जां हुंदा। पातिस़ाह आखदे इहनां जुगतां नाल नही गिआन मिलदा। पूजा करन दी लोड़ नहीं। पूजा करन पिछे लालच छुपिआ हुंदा है। इछा, त्रिस़ना कुझ प्रापती दी सोच लुकी हुंदी है। पूजा बंधन नूं जनम दिंदी है।
"चरण पखारि करी नित सेवा जीउ॥ पूजा अरचा बंदन देवा जीउ॥ दासनि दासु नामु जपि लेवा जीउ॥ बिनउ ठाकुर पहि कहीऐ जीउ॥३॥ – पूजा अरचा देवां दा बंदन (वंदन) करना इह तां दास लई नाम (सोझी) नूं जपि (जपे भाव पछाणन) उपरंत होणा। इही दास दी विनती वी हुंदी है॥
"करम धरम नेम ब्रत पूजा॥ पारब्रहम बिनु जानु न दूजा॥२॥ – जो मरज़ी करम धरम दे नाम हेठ कर लवो, वरत पूजा कर लवो पारब्रहम नूं समझे बिनां गल नहीं बणनी। गुरबाणी विच ब्रहम, ब्रहमा, पूरनब्रहम अते पारब्रहम स़बदां दी वरतो होई है पर कोई विरले ही ॲैसे सिख हन जिहनां नूं इहनां दा भेद पता होवे। वेखो "ब्रहम, ब्रहमा, पारब्रहम, पूरनब्रहम
"सूतकि करम न पूजा होइ॥ नामि रते मनु निरमलु होइ॥४॥ – मन नूं सूतक लगिआ है "मन का सूतकु लोभु है जिहवा सूतकु कूड़ु ॥, अते "मन का सूतकु दूजा भाउ॥भरमे भूले आवउ जाउ॥१॥ – जदों तक मन दा इह सूतक दूर नहीं हुंदा, मन मनमति करदा है उदों तक भगती नहीं स़ुरू हो सकदी "मन मारे बिनु भगति न होई ॥। जदों नाम (सोझी) विच, गुणां दी लाली विच मन रंगिआ ना जावे, गिआन दे अंम्रित विच मन भिजिआ ना होवे उदों तक मन ने निरमल (मल रहित) नहीं होणा।
"काहू जाप काहू ताप काहू पूजा होम नेम॥ काहू हो गउनु करि हो॥२॥ काहू तीर काहू नीर काहू बेद बीचार॥ नानका भगति प्रिअ हो॥
अंतरि पूजा पड़हि कतेबा संजमु तुरका भाई॥ छोडीले पाखंडा॥ नामि लइऐ जाहि तरंदा॥१॥
पूजा कीचै नामु धिआईऐ बिनु नावै पूज न होइ॥१॥
पूजा करै सभु लोकु संतहु मनमुखि थाइ न पाई॥४॥ – मनमति करन वाले दी, आपणी मति, मन दी, विकारां दी होंद वाली पूजा निस़फल है थाइ नहीं पैंदी।
गुरमति आदेस़ है "साधसंगति बिना भाउ नही ऊपजै भाव बिनु भगति नही होइ तेरी॥ – भाव साध दी संगत तों बिनां भाउ नहीं उपजदा ते भाव तों बिनां भगती नहीं हुंदी। फेर इह पता होणा चाहिदा के साध कौण हुंदा। साध बाहर नहीं हुंदे, मन ने ही गुरमति राहीं साधिआ जाणा "ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ॥ मन दे विकार मतरे जाणे तां भगती स़ुरू होणी "मन मारे बिनु भगति न होई॥२॥। जिसने आपणा मन नहीं मनाइआ, मन नहीं मारिआ उह भगती मारग ते नहीं है।वेखो "संगत, साध संगत अते सति संगत।
पूजा वरत तिलक इसनाना पुंन दान बहु दैन॥कहूं न भीजै संजम सुआमी बोलहि मीठे बैन॥१॥ प्रभ जी को नामु जपत मन चैन॥ बहु प्रकार खोजहि सभि ता कउ बिखमु न जाई लैन॥१॥ रहाउ॥ जाप ताप भ्रमन बसुधा करि उरध ताप लै गैन॥ इह बिधि नह पतीआनो ठाकुर जोग जुगति करि जैन॥२॥ अंम्रित नामु निरमोलकु हरि जसु तिनि पाइओ जिसु किरपैन॥ साधसंगि रंगि प्रभ भेटे नानक सुखि जन रैन॥
उदमु करि लागे बहु भाती बिचरहि अनिक सासत्र बहु खटूआ॥ भसम लगाइ तीरथ बहु भ्रमते सूखम देह बंधहि बहु जटूआ॥ बिनु हरि भजन सगल दुख पावत जिउ प्रेम बढाइ सूत के हटूआ॥ पूजा चक्र करत सोमपाका अनिक भांति थाटहि करि थटूआ॥
जपु तप संजम वरत करे पूजा मनमुख रोगु न जाई॥ अंतरि रोगु महा अभिमाना दूजै भाइ खुआई॥२॥ बाहरि भेख बहुतु चतुराई मनूआ दह दिसि धावै॥ हउमै बिआपिआ सबदु न चीन॑ै फिरि फिरि जूनी आवै॥३॥ नानक नदरि करे सो बूझै सो जनु नामु धिआए॥ गुरपरसादी एको बूझै एकसु माहि समाए॥
जप तप संजम ना ब्रत पूजा॥ ना को आखि वखाणै दूजा॥ आपे आपि उपाइ विगसै आपे कीमति पाइदा॥६॥
पूजा जाप ताप इसनान॥ सिमरत नाम भए निहकाम॥
दास ने केवल नाम (सोझी) लैण दा जतन करना हुंदा है। गिआन लैणा, हुकम नूं जप (पछाण) लैणा, धिआउणा (धिआन विच रखणा), अराधना भाव विचार करना ही गिआन गुरू दी सची बंदना, पूजा है।
गिआन हीणं अगिआन पूजा॥ अंध वरतावा भाउ दूजा॥२२॥ – गिआन तों हीण, गिआन तों बिनां अगिआनता दी ही पूजा हुंदी है ते इह अंध वरतारा है।
मनमुखि हुकमु न बुझे बपुड़ी नित हउमै करम कमाइ॥ वरत नेमु सुच संजमु पूजा पाखंडि भरमु न जाइ॥ अंतरहु कुसुधु माइआ मोहि बेधे जिउ हसती छारु उडाए॥ जिनि उपाए तिसै न चेतहि बिनु चेते किउ सुखु पाए॥ नानक परपंचु कीआ धुरि करतै पूरबि लिखिआ कमाए॥
दसम पातिस़ाह आखदे ने "आंख मूंदि कोऊ डिंभ दिखावै॥ आंधर की पदवी कहि पावै॥ आंखि मीच मग सूझ न जाई॥ ताहि अनंत मिलै किम भाई॥६२॥ – अखां मूंद के रब लभण दी चेस़टा करदा हैं, किउं लोकां नूं डिंभ दिखा रहिआ है? अधे दी पदवी प्रापत कर रहिआ हैं। अख मीचण नाल गिआन नहीं सुझदा। निराकार परमेसर जो घट अंदर है मौजूद है नहीं दिसणा। अनंत है जो उह किवें मिल जाणा अखां बंद करके। धिआन गिआन दा रखणा सी अखां बंद करके डिंभ नूं धिआन नहीं मंनदी गुरबाणी।
फेर किहड़ी पूजा करां? की है भगती ते किवें करां?
कवन सु पूजा तेरी करउ॥ कवन सु बिधि जितु भवजल तरउ॥२॥ कवन तपु जितु तपीआ होइ॥ कवनु सु नामु हउमै मलु खोइ॥३॥ गुण पूजा गिआन धिआन नानक सगल घाल॥ जिसु करि किरपा सतिगुरु मिलै दइआल॥४॥ तिस ही गुनु तिन ही प्रभु जाता॥ जिस की मानि लेइ सुखदाता॥१॥ – भाव केवल गुणां दी विचार ही गिआन गुरू दी पूजा है। किहड़े गुण, जो जप बाणी विच जाप बाणी विच अकाल, काल, हुकम, भाणे दा जप (पहिचान/पछाण) कराउण लई दसे हन। "प्रभ की पूजा पाईऐ मानु॥जा की टहल न बिरथी जाइ॥ सदा सदा हरि के गुण गाइ॥३॥ – दास लई तां गुणां दा गिआन, विचार ही असल पूजा है। कदे गिआन लैण लई गुरबाणी नूं पड़्ह के विचारिआ होवे तां सानूं इह समझ आवे। गुण किवें गाउणे हन समझण लई वेखो "कीरतनु अते गुण किवे गउणे हन।
नामु हमारै बेद अरु नाद॥ नामु हमारै पूरे काज॥ नामु हमारै पूजा देव॥नामु हमारै गुर की सेव॥१॥ गुरि पूरै द्रिड़िओ हरि नामु॥ सभ ते ऊतमु हरि हरि कामु॥१॥
जाप ताप कोटि लख पूजा हरि सिमरण तुलि न लाइण॥ दुइ कर जोड़ि नानकु दानु मांगै तेरे दासनि दास दसाइणु॥ – नानक किहड़ा दान मंगदे पए ने? दान की है? समझण लई वेखो "दइआ, दान, संतोख अते मइआ
प्रभ कै सिमरनि रिधि सिधि नउ निधि॥ प्रभ कै सिमरनि गिआनु धिआनु ततु बुधि॥ प्रभ कै सिमरनि जप तप पूजा॥ प्रभ कै सिमरनि बिनसै दूजा॥ – अज दे सिख नूं सिमरन की है पता ही नहीं है। इक स़बद नूं बार बार उचारन नूं ही सिमरन समझ लैंदे हन। सिमरन दा अरथ गुरबाणी तों खोजणा सी। इस बारे पहिलां वी विचार होई है के सिमरन दा अरथ की है।
फेर पातिस़ाह आखदे "एकस बिनु नाही को दूजा॥ तुम॑ ही जानहु अपनी पूजा॥२॥ आपहु कछू न होवत भाई॥ जिसु प्रभु देवै सो नामु पाई॥३॥ – भाव तूं ही जाणदा है तेरी पूजा किवें होणी। जिसनूं तूं आप देवें उसनूं ही नाम (सोझी) प्रापत होणी। कई पड़्ह के वी नहीं समझ रहे। कई कई वार सहिज पाठ, अखंड पाठ ते होर पता नहीं की की जतन कर चुके हन।
तू वड दाता तू वड दाना अउरु नही को दूजा॥ तू समरथु सुआमी मेरा हउ किआ जाणा तेरी पूजा॥३॥
मंने नामु सची पति पूजा॥ किसु वेखा नाही को दूजा॥ देखि कहउ भावै मनि सोइ॥ नानकु कहै अवरु नही कोइ॥
मै अवरु गिआनु न धिआनु पूजा हरि नामु अंतरि वसि रहे ॥
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंदु॥ गुरु मेरा पारब्रहमु गुरु भगवंतु॥ गुरु मेरा देउ अलख अभेउ॥ सरब पूज चरन गुर सेउ॥१॥ – भाव सरब पूज है चरन गुर सेउ, गुर सेउ है "गुर की सेवा सबदु वीचारु ॥ सो गुर की पूजा, गुर की सेवा केवल सबद विचार है, सहज विचार है। गुणां दी विचार है। "हरि की पूजा दुलंभ है संतहु कहणा कछू न जाई॥१॥ संतहु गुरमुखि पूरा पाई॥ नामो पूज कराई॥१॥
सबदि मरै मनु निरमलु संतहु एह पूजा थाइ पाई॥५॥ पवित पावन से जन साचे एक सबदि लिव लाई॥६॥ – गुर सबद दुआरा, हुकम दी सोझी दुआरा मन नूं (भाव विकारां नूं) मार लैणा ही पूजा है। मन दे मरदिआं ही, विकारां दे खतम हुंदिआं ही भगती स़ुरू हुंदी है। इह हुकम दी सोझी लैणा ही भाणा मंनणा ही पूजा है इह गुणां नूं मुख रखण वाले नूं ही पता हुंदा "गुरमुखि होवै सु पूजा जाणै भाणा मनि वसाई॥११॥, "हरि नामु चेता अवरु न पूजा॥ एको सेवी अवरु न दूजा॥ पूरै गुरि सभु सचु दिखाइआ सचै नामि निवासी हे॥। उसने आपणी इस पूजा ते भगती ते वी आप ही लाउणा "आपन देउ देहुरा आपन आप लगावै पूजा॥ जल ते तरंग तरंग ते है जलु कहन सुनन कउ दूजा॥१॥
अनिक पूजा मै बहु बिधि खोजी सा पूजा जि हरि भावासि॥ माटी की इह पुतरी जोरी किआ एह करम कमासि॥ प्रभ बाह पकरि जिसु मारगि पावहु सो तुधु जंत मिलासि॥१॥
सतिगुरु है गिआनु सतिगुरु है पूजा॥ – सचे दा गुण ही उसदा गिआन है ते सचे दा गुण ही उसदी पूजा है। सति भाव सच केवल अकाल ते उसदा हुकम है बाकी "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति॥ – सदीव रहिण वाला अकाल ते हुकम ही सच है बाकी तां कोई वसतू थिर नहीं है रेते दी कंध वांग है ढहि जाणी। "कीमति कोइ न जाणै दूजा॥ आपे आपि निरंजन पूजा॥ आपि सु गिआनी आपि धिआनी आपि सतवंता अति गाड़ा॥
राम नामु जपि अंतरि पूजा॥ गुरसबदु वीचारि अवरु नही दूजा॥१॥ एको रवि रहिआ सभ ठाई॥ अवरु न दीसै किसु पूज चड़ाई॥१॥
अंतरि पूजा मन ते होइ॥एको वेखै अउरु न कोइ॥ दूजै लोकी बहुतु दुखु पाइआ॥ सतिगुरि मैनो एकु दिखाइआ॥१॥ – जदों क मन एके विच नहीं है हुकम दे नाल उदों तक पूजा भगती नहीं हो सकदी। एका समझण लई वेखो "एक, एकु, इक, इकु अते अनेक दा अंतर।
भगती की है?
सची भगती मनु लालु थीआ रता सहजि सुभाइ॥गुरसबदी मनु मोहिआ कहणा कछू न जाइ॥ जिहवा रती सबदि सचै अंम्रितु पीवै रसि गुण गाइ॥ गुरमुखि एहु रंगु पाईऐ जिस नो किरपा करे रजाइ॥२॥ – सची भगती है जिस नाल मनु नूं गिआन दी लाली दा मजीठ (पका) रंग चड़्ह जावे। "गुरमुखि लालो लालु है जिउ रंगि मजीठ सचड़ाउ॥। मन मोहिआ जावे, मन इस मोह विच विकार छड देवे। इही भगती है। "नानक नाम रते से रंगुले गुर कै सहजि सुभाइ॥ भगती रंगु न उतरै सहजे रहै समाइ॥२॥।
जिस नो मेले सो मिलै हउ तिसु बलिहारै जाउ॥ ए मन भगती रतिआ सचु बाणी निज थाउ॥ मनि रते जिहवा रती हरि गुण सचे गाउ॥ नानक नामु न वीसरै सचे माहि समाउ॥
हरि का भाणा भगती मंनिआ से भगत पए दरि थाइ॥
आतम राम परगासु गुर ते होवै॥ हउमै मैलु लागी गुरसबदी खोवै॥ मनु निरमलु अनदिनु भगती राता भगति करे हरि पावणिआ॥१॥
सो भाई इको पूजा है इको भगती है गुरमति अनुसार के गुणां दी विचार करके गुण हासल कीते जाण। नाम (सोझी) हो जाणा ही गिआन गु्रू के सिख लई भगती दा मारग है। भगत अवसथा पूरनबजोत जदों घट विच गिआन दे चानण नाल हो जावे उह अवसथा है। जदों गिआन खड़ग फड़ी होवे, जदों भगउती सिमरी होवे। वेखो "भगउती कौण/की है ?
बाणी पड़्हो, समझो ते विचारो इही पूजा है इही भगती है।
Source: ਭਗਤੀ ਅਤੇ ਪੂਜਾ