Source: ਸੁੱਖ ਕਿਵੇਂ ਮਿਲੇ?
जउ सुख कउ चाहै सदा सरनि राम की लेह ॥ कहु नानक सुनि रे मना दुरलभ मानुख देह॥२७॥ (राम कौण – सातैं सति करि बाचा जाणि॥ आतम रामु लेहु परवाणि॥* छूटै संसा मिटि जाहि दुख*॥ सुंन सरोवरि पावहु सुख॥८॥)
सति सति हरि सति सति सते सति भणीऐ॥ दूसर आन न अवरु पुरखु पऊरातनु सुणीऐ॥ अंम्रितु हरि को नामु लैत मनि सभ सुख पाए॥ जेह रसन चाखिओ तेह जन त्रिपति अघाए॥ जिह ठाकुरु सुप्रसंनु भयोु सतसंगति तिह पिआरु॥ हरि गुरु नानकु जिन॑ परसिओ तिन॑ सभ कुल कीओ उधारु॥६॥
तजहु सिआनप सुरि जनहु सिमरहु हरि हरि राइ॥ एक आस हरि मनि रखहु नानक दूखु भरमु भउ जाइ॥१॥ – आपणी सिआणप मनमति छड के हुकम दी सोझी प्रापत करन नाल ही दूख भरम ते भउ जांदा है।
असटपदी॥ मानुख की टेक ब्रिथी सभ जानु॥ देवन कउ एकै भगवानु॥ जिस कै दीऐ रहै अघाइ॥ बहुरि न त्रिसना लागै आइ॥ मारै राखै एको आपि॥ मानुख कै किछु नाही हाथि॥ तिस का हुकमु बूझि सुखु होइ॥ तिस का नामु रखु कंठि परोइ॥ सिमरि सिमरि सिमरि प्रभु सोइ॥ नानक बिघनु न लागै कोइ॥१॥ – जे इह समझ आगिआ के मेरे वस विच कुझ है ही नहीं उसदे हुकम विच होणा जो होणा बहुत संसा तां उदां ही मिट जाणी।
गुर बिनु किउ तरीऐ सुखु होइ॥ जिउ भावै तिउ राखु तू मै अवरु न दूजा कोइ ॥१॥ रहाउ॥
गुर – परमेसर दे गुण जो धारण करने ने गुरमति गिआन लैण नाल। जिवें निरवैरता, सारिआं नूं सम द्रिस़टी नाल वेखणा। निरभउ – हुकम विच रहण वाले नूं भउ नहीं हुंदा। दुख सुख समान लगदे ने हुकम विच प्रापत होए लगदे ने। "गउड़ी महला ५॥ जा कै दुखु सुखु सम करि जापै॥ ता कउ काड़ा कहा बिआपै॥१॥ सहज अनंद हरि साधू माहि॥ आगिआकारी हरि हरि राइ॥१॥ रहाउ॥ जा कै अचिंतु वसै मनि आइ॥ ता कउ चिंता कतहूं नाहि॥२॥ जा कै बिनसिओ मन ते भरमा॥ ता कै कछू नाही डरु जमा॥३॥ जा कै हिरदै दीओ गुरि नामा॥ कहु नानक ता कै सगल निधाना॥४॥३४॥१०३॥ "सोई भगतु दुखु सुखु समतु करि जाणै हरि हरि नामि हरि राता ॥
हुकमी उतमु नीचु *हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि *॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ॥ सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥
नानक साचे कउ सचु जाणु॥ जितु सेविऐ सुखु पाईऐ तेरी दरगह चलै माणु ॥१॥ रहाउ ॥
जा कउ आए सोई बिहाझहु हरि गुर ते मनहि बसेरा॥ निज घरि महलु पावहु सुख सहजे बहुरि न होइगो फेरा ॥३॥
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