Source: ਸਿਖਿਆ ਦੀਖਿਆ
लगभग सारे ही दुनिआवी धरम इह मंनदे हन के किसे नूं गुरू धार के उस तों दीखिआ (गिआन) लैणा पैंदा है दान विच। कोई इस नूं नाम दान आखदा है ते कोई इसनूं दीकस़ा आखदा है। केवल गुरमति ही इस तों मुनकर है ते केवल गिआन नूं गुरू मंनदी है। गिआन प्रापत करन दा मारग गुणां दी विचार नूं आखिआ है गुरमति ने ते देह धारी मनुख नूं गुरू मंनण ते रोक है गुरमति विच। गुरबाणी विच दरज है "मानुख की टेक ब्रिथी सभ जानु॥देवन कउ एकै भगवानु॥ – भाव मानुख उते, बंदे उते आस नहीं रखणी। मनुख तां दीखिआ दे बदले विच लोकां दे सिर, लोकां दे अंगूठे, जनानी, बचे, धन, राज दान वजों लैंदे रहे ने। गुरमति दान किस नूं मंनदी समझण लई वेखो "दइआ, दान, संतोख अते मइआ। हरेक गल दा अडंबर बणा दिता। अज वी मुला जे अज़ान इक खास ढंग नाल ना बोले तां लोक उस अज़ान नूं ठीक नहीं मंनदे। जे पंडत मंतर पड़्हन लगे खास लहिजे नाल ना बोले लोक आख दिंदे इह मंतर गलत पड़्हदा। इही हाल साडे विच बाणी, कीरतन जे कंनां नूं चंगा ना लगे असीं आख दिंदे हां के सही नहीं पड़्हदा। इहनां सारिआं विच केवल लोक पचारा है, अज किसे नूं अज़ान, मंतर, बाणी दे पिछे गिआन तों भाव नाल कोई मतलब नहीं। केवल सुणन नूं चंगा लगणा चाहीदा। जिहड़े मंतर उचारण सिखण जादे हन जां साडे विच वी संथिआ लैण जांदे हन कोई विरला ही होणा जो बाणी की आखदी समझण लई बाणी स़ुध किवें पड़्हनी सिखण जांदा होणा, बाकी तां सारे कंनां नूं चंगी किदां लगे उदां बाणी पड़्हना सिखण लई जांदे ते नाम स़ुध उचारण दा दिंदे ने। गुरबाणी विच नाम समाइआ होइआ है, गुरबाणी विच गुणां दी सांझ है जो भगतां ने साडे नाल कीती है। जो गुणां दी दीखिआ उहनां नूं परमेसर तों, गिआन गुरू तों मिली उही उहनां सानूं अगे दिती है। जिवें नानक पातिस़ाह आखदे "सतिगुरु देखिआ दीखिआ लीनी॥ मनु तनु अरपिओ अंतर गति कीनी॥ गति मिति पाई आतमु चीनी॥४॥(म १, रागु गउड़ी, २२७) – भाव सति (सचे) गुरु (गुण) देखिआ, अखां नाल नहीं गिआन अंजन नाल, दीखिआ लीनी दीखिआ गुरू चेले विच इक तरिह दी संधी दा नाम है के चेला गुरू दी स़रण विच है ते गुरू तों गिआन (नाम/सोझी) लवेगा गुरू दी गल नूं विचार ते मंन के। अगे इह वी दस रहे ने किवें, मनु तनु अरपण करके, आतम (आतम भाव घट विच वसदी जोत) चीनी (चिनहित करना भाव खोज लैणा समझ लैणा)। हुण जिहनां नूं इह गल समझ नहीं लगणी उहनां आखणा नानक दा वी कोई दुनिआवी गुरू होणा जिस तों उहनां नाम लिआ। पर नानक पातिस़ाह ने इह दुनिआवी गुरू वाली गल ही कट दिती आख के "सबदु गुरू सुरति धुनि चेला॥। अगे विचारदे हां के गुरमति दीखिआ किस नूं आख रही है।
नानक कउ गुरि दीखिआ दीन॑॥ प्रभ अबिनासी घटि घटि चीन॑॥ – भाव नानक नूं इह दीखिआ मिली है के घट घट विच प्रभ अबिनासी आप वसदा है "घट घट मै हरि जू बसै संतन कहिओ पुकारि॥ कहु नानक तिह भजु मना भउ निधि उतरहि पारि॥१२॥। हरेक जीव दे घट भाव हिरदे विच प्रभ अभिनासी भाव अकाल दी जोत जिसदा नास नहीं हुंदा उह वसदी है। "अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी ॥। प्रभ बारे जानण लई वेखो "ठाकुर अते प्रभ।
सचे दे गुणां अगे सीस भेंट करना पैंदा। गुणां मुहरे अवगुण छडणे पैंदे, अहंकार, विकार मारने पैंदे तां हरि रस (नाम दा अंम्रित) प्रापत हुंदा। इही रस नूं पा के मनुख पारस (पा+रस = रस दी प्रापती) हुंदा "सतिगुरु भेटे ता पारसु होवै पारसु होइ त पूज कराए॥ जो उसु पूजे सो फलु पाए दीखिआ देवै साचु बुझाए॥२॥ – जदों इह दीखिआ मिलदी तां सच दा पता लगदा। सच केवल जोत है, अकाल है ते अकाल दा हुकम है बाकी "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति॥४९॥
गुरबाणी दा फुरमान है "गुर सेवी गुर लागउ पाइ॥ भगति करी राचउ हरि नाइ॥ सिखिआ दीखिआ भोजन भाउ॥ हुकमि संजोगी निज घरि जाउ॥६॥ – गुर दी सेवा की है? "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ अते "गुर का सबदु सहजि वीचारु॥। निराकार दे पाइ भाव पैर की हन? निराकार दा हुकम। उसदे गुणां, उसदे हुकम विच उसदे रंग विच रंगिआ जाणा उसदे नाम (सोझी) विच रच जाणा है। इही सिखिआ उसदी दीखिआ (दकझणा/दान) है। "साधू की मन ओट गहु उकति सिआनप तिआगु॥ गुर दीखिआ जिह मनि बसै नानक मसतकि भागु॥१॥ – साधू कौण? मन साधिआ जाणा काबू विच हो जाणा साध है। मन असाध है कोई विरला ही नाम (सोझी) लैके मन नूं साध लैंदा है। होर वी परमाण मिलदे हन बाणी विच
हलतु पलतु दुइ लेहु सवारि॥ राम नामु अंतरि उरि धारि॥ पूरे गुर की पूरी दीखिआ॥ जिसु मनि बसै तिसु साचु परीखिआ॥ मनि तनि नामु जपहु लिव लाइ॥ दूखु दरदु मन ते भउ जाइ॥ सचु वापारु करहु वापारी॥ दरगह निबहै खेप तुमारी॥ एका टेक रखहु मन माहि॥ नानक बहुरि न आवहि जाहि॥६॥ – भाव पूरे गुर (गुण) दी पूरी दीखिआ राम नाम (सोझी) है। इह गुण मनि भाव मन अंदर बसै भाव वस जावे इही सच दी परीखिआ है। जे डर है, दुख दरद है हजे तां गुर दी दीखिआ प्रापत नहीं होई हजे।
सा सेवा कीती सफल है जितु सतिगुर का मनु मंने॥ जा सतिगुर का मनु मंनिआ ता पाप कसंमल भंने॥ उपदेसु जि दिता सतिगुरू सो सुणिआ सिखी कंने॥ जिन सतिगुर का भाणा मंनिआ तिन चड़ी चवगणि वंने॥ इह चाल निराली गुरमुखी गुर दीखिआ सुणि मनु भिंने॥२५॥ – विचारन वाली गल है के सतिगुर का मनु मंने तों की भाव है? सेवा की है? सेवा है "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥हउमै मारे करणी सारु॥७॥ – सबद विचार दी सेवा सफल है जे सति गुर (गुण) नाल मन मंन जावे, विकार तिआग देवे।
सिख सभा दीखिआ का भाउ॥ गुरमुखि सुणणा साचा नाउ॥ नानक आखणु वेरा वेर॥ इतु रंगि नाचहु रखि रखि पैर॥
गुर दीखिआ ले जपु तपु कमाहि॥ ना मोहु तूटै ना थाइ पाहि॥५॥ नदरि करे ता एहु मोहु जाइ॥ नानक हरि सिउ रहै समाइ॥६॥
ऐसी दीखिआ जन सिउ मंगा॥ तुम॑रो धिआनु तुम॑ारो रंगा॥ तुम॑री सेवा तुम॑ारे अंगा॥१॥ – भाव मैं तां ऐसी दीखिआ मंगदा हां के तेरा धिआन हमेस़ा रहे ते तेरे गिआन विच हमेस़ा रंगिआ रहां। गिआन किउं, किउंके निराकार दा रंग उसदा गिआन उसदे गुण ही हन। गुरमुख नूं इसे गिआन दा मजीठ (ना उतरण वाला पका) रंग लगदा "इहु मनु सुंदरि आपणा हरि नामि मजीठै रंगि री ॥, "काइआ रंङणि जे थीऐ पिआरे पाईऐ नाउ मजीठ॥ रंङण वाला जे रंङै साहिबु ऐसा रंगु न डीठ॥२॥। दीखिआ दा रंग मजीठ हुंदा फेर नहीं उतरदा "सूहवीए सूहा सभु संसारु है जिन दुरमति दूजा भाउ॥ खिन महि झूठु सभु बिनसि जाइ जिउ टिकै न बिरख की छाउ॥ गुरमुखि लालो लालु है जिउ रंगि मजीठ सचड़ाउ॥ उलटी सकति सिवै घरि आई मनि वसिआ हरि अंम्रित नाउ॥ नानक बलिहारी गुर आपणे जितु मिलिऐ हरि गुण गाउ॥१॥
सहज भाइ मिलीऐ सुखु होवै॥ गुरमुखि जागै नीद न सोवै॥ सुंन सबदु अपरंपरि धारै॥ कहते मुकतु सबदि निसतारै॥ गुर की दीखिआ से सचि राते॥ नानक आपु गवाइ मिलण नही भ्राते॥५४॥
बिनु गुर दीखिआ कैसे गिआनु॥ बिनु पेखे कहु कैसो धिआनु॥ बिनु भै कथनी सरब बिकार॥ कहु नानक दर का बीचार॥ – देखणा ते पेखणा विच फरक है। इसदा गिआन गुरमति तों मिलदा है।
सो पंडितु जो तिहां गुणा की पंड उतारै॥ अनदिनु एको नामु वखाणै॥ सतिगुर की ओहु दीखिआ लेइ॥ सतिगुर आगै सीसु धरेइ॥ सदा अलगु रहै निरबाणु॥ सो पंडितु दरगह परवाणु॥३॥
बाघु मरै मनु मारीऐ जिसु सतिगुर दीखिआ होइ॥आपु पछाणै हरि मिलै बहुड़ि न मरणा होइ॥ – दीखिआ, दान, गिआन विचार सब मन (अगिआनता/दलिदर) नूं खतम करन लई है आपणे मूल दी पछाण कराउण लई है "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥ मन हरि जी तेरै नालि है गुरमती रंगु माणु॥ मूलु पछाणहि तां सहु जाणहि मरण जीवण की सोझी होई॥ गुरपरसादी एको जाणहि तां दूजा भाउ न होई॥ मनि सांति आई वजी वधाई ता होआ परवाणु॥ इउ कहै नानकु मन तूं जोति सरूपु है अपणा मूलु पछाणु॥५॥
सो नानक पातिस़ाह ने, भगतां ने गुरूआं ने तां नाम (सोझी) दी दीखिआ सतिगुर (अकाल/हुकम दे गुण) तों लई है। गुण हासल करके अकाल विच ही समाए हन। हरेक सिख ने इही दीखिआ दी आस रखणी है परमेसर तों। गुरबाणी विचार करो, पड़्हो समझो ते गुणां नूं धारण करन दी आस रखो।
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