Source: ਮਾਸ ਖਾਣਾ (Eating Meat) ਅਤੇ ਝਟਕਾ (Jhatka)

मास खाणा (Eating Meat) अते झटका (Jhatka)

Eating meat is one of the most controversial topic today amongst Sikhs and many groups are divided over this topic. Most Sikhs try to run away from discussions around this topic citing examples of one or two lines from Gurbani. There is a need to understand and eliminate this confusion once for all. We highly recommend you read the post about “करम अते हुकम, करता कौण?“, “पाप पुंन” and “सुरग ते नरक (Swarg te Narak)” before you continue. It is important to understand the correct message from gurbani

पाप पुंन हमरै वसि नाहि॥

Without the Hukam (will) of Akaal Purakh (The almighty) not even a leaf can turn how can we think we can kill a living being. It is because we think we are the doers. नाले रोज पड़्ही जाणा के "हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ॥ सब कुझ उसदे हुकम वस है पर डरी जाणा के मैं जीव हतिआ कीती। जे परमेसर दा हुकम ना होवे ता पता वी नही हिल सकदा तुसी उसदी आगिया तो बिना कोई जीव किदां मार सकदे हो? पैदा करन दा, मारन दा अते रखण दा कंम परमेसर दा है उही करता है उही क्रूर करमे वी है "नमो नित नाराइणे क्रूर करमे॥ उसदा हुकम होवे हज़ारां जीव पैदा कर दिंदा उसदी मरज़ी इक पल विच परलो लिआ के सब राख कर दिंदा "कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ॥२॥ । बाणी आखदी असीं रोज पड़्हदे वी हां "तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई॥१॥ करता तूं हैं मैं नहीं, जे मैं करां वी तां वी नहीं कर सकदा। जे बाणी मंतरां वांग पड़्हन दी थां विचारी हुंदी तां समझ आउणी सी। "देही माटी बोलै पउणु॥ बुझु रे गिआनी मूआ है कउणु॥ मूई सुरति बादु अहंकारु॥ ओहु न मूआ जो देखणहारु॥२॥

"कोई जाणहु मास काती कै किछु हाथि है सभ वसगति है हरि केरी॥ (काती – sharp object capable of cutting)

Every living organism plant or animal has life. हर जीव विच हरि आप वसदा है भावें साग होवे भांवें मास ।

"घट घट मै हरि जू बसै संतन कहिओ पुकारि ॥

अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी ॥” (अंडज – Born from egg, सेतज- Born from sweat/dirt। इहनां नूं गुरमति ने खाणीआं (स़्रेणीआं) वी आखिआ है। "गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे॥, इह चारे स़्रेणीआं हर वेले परमेसर दी सिफ़त भाणा मंन के गा रहीआं हन। "कई कोटि खाणी अरु खंड॥

गुरबाणी दा फुरमान है "एका सुरति जेते है जीअ॥ सुरति विहूणा कोइ न कीअ॥ – सारिआं जीवां विच सुरत एको जही है कोई फ़रक नहीं है, फिर कीड़ी जां जरासीम (germs) होण, खेतां, पेड़ां नूं खाण/लगण वाले कीड़े होण जां बकरा। जीव चारे स्रेणीआ तौ पैदा हुंदे ने , अंडे तौ, जेरज(पसीने) तौ, उतभुज (जमीन तों) स्रेणी तौ , पेड़, पौदे वी ते जेरज अरथ मात गरब विच वी समान जोत है। "जिमी जमान के बिखै, समसत एक जोति है॥ न घाट है, न बाढ है, न घाट बाढ होत है ॥ उह १ परमेस़र जोति सरूप किसे वी जीव आतमा धरती ते अकास विच रहण वालिआ विच घट वध नहीं है उह सभ अमीर गरीब पस़ू पंछी आदि जीवा विच इक समान समाइआ होइआ है "हसत कीट के बीच समाना॥ ऐसा नहीं है कि १ परमेस़र जोत रूप किसे विस़ेस़ सरीर देही हाथी जा कीड़ी अंदर बहुत वध, घट, वध आकार विच होवे, ऐसा वी नहीं है कि उह १ परमेस़र जोत रूप जीवां अंदर वधदा घटदा है उह सभ विच इक समान निरंतर वरत रिहा है। गुरमति तां इह वी आखदी के कोई मरदा नहीं जोत अखर है खरदी नहीं, सरीर मिटी है पर जोत कदे नहीं मरदी "नह किछु जनमै नह किछु मरै॥ आपन चलितु आप ही करै॥ आवनु जावनु द्रिसटि अनद्रिसटि॥ आगिआकारी धारी सभ स्रिसटि॥

अंडज जेरज सेतज उतभुज बहु परकारी पालका ॥४॥

जत्र तत्र दिसा विसा जिह ठउर सरब निवास॥ अंड जेरज सेत उतभुज कीन जास पसार॥

अंडज जेरज सेतज उतभुजा प्रभ की इह किरति॥

अंडज जेरज सेतज उतभुज सभि वरन रूप जीअ जंत उपईआ॥

"कउनु मूआ रे कउनु मूआ॥ ब्रहम गिआनी मिलि करहु बीचारा इहु तउ चलतु भइआ॥१॥

Akaal Purak/ Almighty/har is omnipresent, he is present in all living beings.

आपे अंडज जेरज सेतज उतभुज आपे खंड आपे सभ लोइ॥

"जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ॥ – जितने वी दाणे हन अंन दे सारिआं विच जीव आतमा है।

साचे ते पवना भइआ पवनै ते जलु होइ ॥
जल ते त्रिभवणु साजिआ घटि घटि जोति समोइ ॥

पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ ॥

जितने वी अंन दे दाणे हन कोई वी जीआं बाझ अरथ जीव तों बिनां नहीं है। Science today acknowledges that every grain has life in it that is why a new plant is born from it, even micro organisms live on it, both good and bad. Also every seed and grain has life because of which the moment right conditions and nourishment becomes available the seed starts to sprout no matter how long it has been kept. On the contrary if an animal dies it cannot come to life. If a seed kept for millions of years can still sprout, did it have life or not? पेड़ पौदे जिधर नूं सूरज दी रोस़नी हुंदी उस पासे नूं वधण लग जांदे दसो जींदे ने जां मरे होए? कोई इक मुरगी मार के खा रहिआ कोई हजारां दाणिआं विच वसदे जीव जींदिआं उबाल के दाल पका के खा रहिआ जां पीस के रोटी बणा के खा रहिआ। कोई आख सकदा के जी जानवर बोल सकदे हन तकलीफ़ चीखां मार के दस सकदे हन अथरू राहीं दस सकदे हन, ते सवाल इह वी पुछिआ जा सकदा के हो सकदा अंन दे दाणे विच वी जीव चीखां मारदा होवे जे तुसीं सुण नहीं सकदे उस विच वसदे जीव नहीं देख सकदे तां उह परवान है? जे कोई जीव अंना बोला काणा जा vegetative state विच (coma) कोमा विच होवे चीखां ना मार सकदा होवे तकलीफ़ ना बिआन कर सकदा होवे तां की उसनूं मारना justified परवान है?

गुरबाणी दा फुरमान है "जीआ का आहारु जीअ खाणा एहु करेइ॥। जे अज दा सिख स़िकार खेडदा जंगल विच जा के जां खेतां विच वेखदा तां पता लगदा के घोड़े, हिरन स़ाकाहारी समझे जाण वाले जीव वी कदे कदे मास दा आहार करदे हन। इस पेज दे अंत ते कुझ वीडीओ प्रूफ़ पाए हन। इह खास उहनां लई है जो मंनदे हन के स़ाकाहारी जीवां दा सरीर मास खाण लई ते पचाउण लई नहीं बणिआ।

सरीर दे भोजन दा विस़ा वखरा है मन दे भोजन दा विस़ा वखरा। मन दे भोजन दी गल छड के देह दे भोजन मगर लगे होए ने लोक। गुरमति दा आदेस़ है

सचु खाणा सचु पैनणा सचे ही विचि वासु॥ सदा सचा सालाहणा सचै सबदि निवासु॥ सभु आतम रामु पछाणिआ गुरमती निज घरि वासु॥३॥ – सचु खाणा सचु पैनणा कदों करना असीं। सरीर दा भोजन सच नहीं है। "सचु खाणा सचु पैनणा सचु नामु अधारु॥ गुरि पूरै मेलाइआ प्रभु देवणहारु॥ भागु पूरा तिन जागिआ जपिआ निरंकारु॥ साधू संगति लगिआ तरिआ संसारु॥ नानक सिफति सलाह करि प्रभ का जैकारु॥३५॥

वैस़नव मति मास खाण नूं रोकदी है, साडे विच वी कई स़ामिल हन जो इस मति नूं नहीं छड सके भावें आपणे आप नूं सिख अखाउण लग पए। जिंने अंन दे दाणे ने हर दाणे विच जीव वी है अते हर दाणे नाल सूखम जीव है, विगिआन ने अज इहनां नूं किटाणू दसिआ है जो भोजन नाल असीं छकदे हां, इस कारण असीं जीव हतिआ तों बच नहीं सकदे, ते हर दाणे विच जान वी है जिस कारण दाणे नूं जमीन विच नपण ते पूरा बूटा बण जांदा। गुरबाणी दसदी है के पहिला पाणी जीव है जान है जिसदे कारण हर जीव विच जान पैदा हुंदी है सुका पेड़ तक हरा हो जांदा पर घट अकल कारण असीं मास साग दे चकरां विच फसे होए हां। भगत नामदेव जी वी आखदे "आनीले कुंभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ॥ बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ॥१॥ जत्र जाउ तत बीठलु भैला॥ महा अनंद करे सद केला॥१॥" आखदे कुंभ (गागर) भर के लिआ के ठाकुर नूं इसनान करावां पर उसदे विच तां लखां जीव हन ते इसदे नाल बीठल जूठा किवें करां। आखदे मैं जिदर वेखदां बीठल/ठाकुर/अकाल/जोत सारे पासे दिसदी। असीं गिआन धिआन छड मनमत विच लगे होए हां इस कारण गल समझ नहीं लगदी "मासु मासु करि मूरखु झगड़े गिआनु धिआनु नही जाणै॥। असल गल इह है के गुरबाणी ब्रहम दा गिआन है ते बहुतिआं नूं इह ही नहीं पता के ब्रहम की है। गुरमति गिआन ब्रहमा, ब्रहम, पूरनब्रहम अते पारब्रहम अवसथा दा भेद दसदी है। असीं ब्रहम गिआन नूं छड सुखसागर नूं छड देही नूं छड के भवसागर, बदेही, माइआ दे जंजाल विच फसे होए हां, पाखंड विच फसे होए हां। कदे गुरबाणी तों आपा चीनण दी कोस़िस़ ही नहीं करदे। सरीर दा भोजन वखरा ते मनु दा भोजन वखरा है नहीं समझदे ते सनातन मत अते इसलाम मत तों प्रभावित हो सोचदे हां के सरीर दे भोजन दा मन दे भोजन नाल रिस़ता है। जद के गुरमति इसनूं नकारदी है ते नहीं मंनदी के सरीर दे भोजन दा मनु दे भोजन ते कोई असर हुंदा।

गुरबाणी दे अरथ गलत करने होण तां पंना ५५३ ते भाई मरदाना जी दी बाणी है जिस विच साफ़ ही लिखिआ "गुण मंडे करि सीलु घिउ सरमु मासु आहारु॥नानक इहु भोजनु सचु है सचु नामु आधारु॥२॥ ते बिनां समझे कोई आख सकदा है के जी मास आहार करन नूं कहिआ जा रहिआ है। साडा मकसद मास खाणा सही सिध करना नहीं है। साडी मनस़ा केवल इह है के गुरमति दा उपदेस़ की है समझिआ जावे ते गुरमति दा उपदेस़ केवल गिआन दे भोजन दा है। सरीर दा भोजन ब्रहम गिआन विच ना रोड़ा है ते ना ही गुरमति दा विस़ा। जिसनूं छकणा छके जिसनूं नहीं छकणा ना छके। सरीर दा भोजन गुरमति दा विस़ा जबरन पंडत बणाउंदा।

कई हन जिहनां नूं इह गल समझ आ गई के जितने वी अंन दे दाणे हन जीआं बाझ नहीं हन। घाह, फल, सबजीआं विच वी जीव हन। ते इह गल समझण तों बाद वी उह होर थले ही जा डिगे। अंन वी छड दिता ते पउन (हवा) दे आहारी बण गए। अज वी कई मिल जाणगे जिहड़े मूंह तों कुझ वी नहीं छकदे। उह आपणी दिन चरिआ विच बहुत घट कंम करदे हन। देह नूं उरजा घट खरचण ते ला दिंदे हन। इहनां बारे दसम बाणी विच दरज है ते असीं रोज पड़्हदे वी हां पर समझिआ नहीं। पातिस़ाह आखदे "पउन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजार क देखै॥ स्री भगवान भजे बिनु भूपति एक रती बिनु एक न लेखै॥ – भाव पउन आहार कर, जती बणजा जत धार के, सु बिचार अरथ चंगे विचार वी हजार रख लै, पर जिहड़ी भागां वाली जोत तेरे अंदर वसदी है उस नूं गिआन राहीं समझ के, उसदे गुण धारे बिनां तूं इक रती मातर वी एके दा लेखा नहीं लिखा सकदा। सो सारी गल गिआन दी है ते लोक अंन छोड़ के पखंड करदे हन।

जिहड़े मास नूं नकारदे हन गुरमति दा हवाला दे के, उही रोटीआं घिओ नाल चोपड़ चोपड़ पनीर ते खीर नाल ला ला के खा रहे हुंदे ने अते चोपड़ी ना होवे तां जजमान (घरे सदण वाले) नूं गलां सुणां दिंदे ने के रोटी सादी सी। उहनां इह किउं नहीं प्रचारिआ "फरीदा रोटी मेरी काठ की लावणु मेरी भुख॥ जिना खाधी चोपड़ी घणे सहनिगे दुख॥। जे बाणी सही प्रचार रहे ने लोकां नूं, मास तों हटा के, तां खांदे रोटी काठ (लकड़) दी।

If you eat a plant and it is your flesh that grows how are plants different from animals? It has been scientifically proven that the flesh and plants all consist of same basic elements. Both plants and animals are considered living beings. The difference is created by humans. In the eyes of Almighty Akaal Purakh all living beings are same. खांदा जीव घाह/अन है पर वद रिहा उसदा मास दा बणिआ स़रीर है।

"कउणु मासु कउणु सागु कहावै किसु महि पाप समाणे ॥

 "पांडे तू जाणै ही नाही किथहु मासु उपंना ॥

The gurmukh brahm gyani learned scholar will not see a difference in the living beings.

ब्रहम गिआनी कै द्रिसटि समानि ॥

There is no need to differentiate between plant and animals. The difference is what puts us in confusion. Humans fight over the difference created by humans instead of focusing on the will of Akaal Purakh. मास साग दे वीचार करण दी लोड़ नहीं बस बाणी दा वीचार अते धिआन ही गुर दा हुकम है । निचले स़बद दी वरतो करके मास दी विचार तों ही भज जांदे हन विचार नूं वी झगड़ा आख दिंदे हन। लोकां नूं धके नाल बिनां विचार करे गिआन तों ही सखणा कर दिंदे हन। बाणी –

"मासु मासु करि मूरखु झगड़े गिआन धिआन नही जाणै ॥

परमेसर दे हुकम नाल जो रिजक उह देवे विचार करे बिना उसदा हुकम मन के छक लैणां ही ठीक है।

"खाणा पीणा पवित्रु है दितोनु रिजकु संबाहि॥

Some people have allergies to milk, nuts, gluten or if they are not comfortable with eating meat, it is okay but it is unfair and a sin to promote or force anyone to believe eating meat is wrong specially in the name of religion. There are diseases associated with salads and plant based diets too. जे किसे नूं अंन, साग, मास, दुध आदी नहीं पचदा अते उसदे मन विच विकार उठे भावें उह ना खावे उह उसदा निजी मसला है उसनूं धरम नाल जोड़ना ठीक नही। इसे तरह कई होर खान पान दी वसतूआं तन नूं तकलीफ दिंदीआं ने। जिदां कई लोकां नूं दुध नाल ऐलरजी है। की तुसीं उसनूं गलत कह सकदे हो जे उह दुध ना पीवे ?

"बाबा होरु खाणा खुसी खुआर॥ जितु खाधै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥

You cannot bring a dead animal back to life but the seeds in fruit you eat, lentils, onions, potato, tomatoes and vegetables you consider vegan, all have life and will grow back into plants if you sow them and the right conditions are provided which means they still have life when they are stored or cooked. Even if the plants cannot speak, cry or run they are still living beings.

In some cultures caste based discrimination was prominent. The low caste people outnumbered religious leaders, soldiers and high caste people. To prevent an uprising from happening it was important to keep the masses weak and scared so a false narrative was created for general masses to keep them away from slaughtering animals and from eating meat. They were slowly trained to be scared of blood and flesh. The high class priests had enough knowledge to understand that the meat or flesh was required for strength and certain essentials minerals and vitamins which are found in plants but in a very less quantity. They themselves continued with their animal slaughter and eating practices under the garb of religious offerings to demi gods and that right was strictly reserved for the upper caste. It was a systematic way to control masses. These practices have been adopted by some sects within Sikhism who do not really believe in hukam and who do not really do a deep study on Gurbani.

Khalsa army was created to be almighty’s own army and to uphold the law of the almighty. To spread peace, harmony, help the weak and also to propagate the true message in the Gurbani which teaches to look inwards and retrospect. Live in Akaal Purakh’s will.

जे फेर वी गल समझ ना लगी ता समझो के असीं मनमति (आपणी मत), सनातन मत, इसाई मत जां होर मतां नूं गुरमत तो उपर रखिआ। मास खाणा या ना खाणा तुहाडा निजी मसला है जे दिल कमजोर है ते जे लगदा तुसीं करता हों तुसीं जीव ते दइआ करनी मास नहीं छकणा ता कोई मसला नहीं ना छको कोस़िस़ करी जावो दया/दइआ कर रहिआ हां सोच के करता बणन दी पर करता उही रहिणा। गुरमति तों खोज लवो जीव ते दइआ की है ते कौण कर सकदा है। गुरमति दा नाम वरत के किसे वी दुनिआवी गल दे आधार ते किंतू परंतू करना ठीक नहीं, आपस विच मतभेद ठीक नहीं, इह मंन लैणा कि जीव हतिआ पाप है ते ना मारना गुरमति है ता बाणी दा फुरमान है "पाप पुंन हमरै वसि नाहि॥ ते हुकम वस है पाप पुंन। पाप पुंन नाल ही स्रिसटी बणी है "काइआ अंदरि पापु पुंनु दुइ भाई॥ दुही मिलि कै सि्रसटि उपाई॥। गुरबाणी दी विचार समझ तों वांझे, आपसी मत भेद ने कौम दा बहुत नुकसान कीता है, कौम नूं कमज़ोर दिल बुज़दिल बणा गुरमति तों दूर लै जा रहे ने मास दे विरोध दा प्रचार करके। बहि के विचार करण दी लोड़ है गुरबाणी दी। गुरमति हुकम ते भाणा मंनण ते जोर दिंदी है "मारै राखै एको आपि॥ मानुख कै किछु नाही हाथि॥ पर साडे आस पास दूजीआं मतां जो करम विच फस़ीआं ने उहनां दा प्रभाव होण कारण कई स़रदावान सिख अंदरों डर जांदे हन। अंग्रेजी विच इसनूं FOMO (Fear OF Missing Out) वी आखदे ने। लोकां नूं लगदा किते सानूं सुरग मिलण तों ना रहि जावे इस लई जो जो बाकी कर रहे ने उहनां दी खिचड़ी बणा लई है। सुरग नरक दी विचार करन वालिआं लई बाणी आखदी "कवनु नरकु किआ सुरगु बिचारा संतन दोऊ रादे॥ गुरबाणी तों सुरग नरक समझण लई वेखो "सुरग ते नरक (Swarg te Narak)"। गुरबाणी विचारन दी थां भेड चाल चली जांदी ने। कई तां लालच वस सिखी विच आए ने पर गुरमति गिआन लैण नालों आपणी मतां दी खिचड़ी नाल लई फिरदे हन। जिहड़ी सनातन मति दी खिचड़ी कारन इह पाप पुंन दी अते सुरग नरक दी विचार करदे हां उस बारे लिखिआ "सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी॥ ततै सार न जाणी गुरू बाझहु ततै सार न जाणी॥ तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी॥ अते "नानक नावै बाझु सनाति॥ अरथ सनातन मति कोल नावै/नाम (सोझी) नहीं है इह नावै बाझ हन, ते तत सार नहीं है इहनां कोल परमेसर दा। कुझ मतां विच तां लोकां नूं मोकस़ देण लई सीस जां सरीर कटाउण लई आखिआ जांदा सी। आखदे सी जे मुकती चाहीदी तां आरे लगे खूह विच छाल मार देवो, उहनां लई गुरमति ने कहिआ "निमख निमख करि सरीरु कटावै॥ तउ भी हउमै मैलु न जावै॥

मासु = Molecule = कण कण

साग = Molecule = कण कण

मूरख सच नहीं जाणदे। कण विच जोत नहीं है। दिमाग (Brain) कण कण दा बणिआ। इह मासु ही है। रोटीआं कण कण दीआं बणीआ। इह भी मासु है। गुरमति अनुसार: 

कहो मासु खादा, लंगर नहीं, इस मासु दी बिसटा भी बणदी। लंगर मन जोत सरूप लई है दिमाग़ जोत सरूप नहीं!

मात पिता की रकतु निपंने मछी मासु न खांही॥

कि जिंने वी हा, असीं सभ तां मां ते पिउ दी रकत (खून) अते बिंद तों ही पैदा होए हां, हुण असीं सिख विदवान पंडित दे पिछे लग कि मछी आदिक दे मास तों परहेज़ करदे हां भाव, मास तों ही पैदा हो के मास तों परहेज़ करन दा की भाव? पहिलां भी तां मां दे गरभ विच पिउ दे मास बीज तों ही सरीर बणिआ है, हुण वी आतमा मास दे सरीर विच ही रहिंदी है।

इसत्री पुरखै जां निसि मेला ओथै मंधु कमाही॥

जो बाहर धरमी बनण दा नाटक करदे कि मास दे खिलाफ ने जो वी सिख विदवान पंडित (फिर), जदों रात नूं ज़नानी ते मरद इकठे हुंदे हन तदों भी (मास नाल ही) ” ओथै मंधु कमाही “(भाव, भोग) करदे ने, भाव मास तौ ही स्रिसटी पैदा हुंदी ए मास तौ नफरत करदा बंदा, सरीर वी मास दा ही है जिस विच जीव आतमा रहिंदी है, सरीर आतमा दा घर ही जद मास दा फिर मास तौ नफरत किउं करदे ने विदवान पंडित पुठा प्रचार किउं करदे ने। आप जवाक जंमदे ने ते दूजिआं नूं प्रचार करदे ने के इह भोग विलास माइआ है विकार है। माइआ जां वासना इसत्री बंदे दा मिलाप नहीं नज़र दा खराब होणा है, पराई इसत्री बंदे ते गलत नज़र रखणा विकार है। जिस कंम तों स्रिसटी चलदी उह गलत नहीं है किसी दा सरीरिक फाइदा चकणा, मरज़ी तों बिनां संबंध बणाउणा जां गलत नज़र रखणा विकार है।

मासहु निंमे मासहु जंमे हम मासै के भांडे ॥

असीं सारे मास दे पुतले हां, साडा मुढ मास तों ही बझा, असीं मास तों ही पैदा होए, जो साडि अंतर आतमा है ऊस दा वास ते सरीर विच है, जो साडी निराकारी आतमा देहि है ओह ते बदेहि मास दे बणे सरीर च रहिंदी है।

गिआनु धिआनु कछु सूझै नाही चतुरु कहावै पांडे॥

(मास दा तिआगी) विदवान पंडित जो सिखां विच वी ने (मास दी चरचा छेड़ के ऐवें आपणे आप नूं) चतुर अखवा रिहा, पता है पंडित नूं वी की लिखीआ होइआ बाणी विच।

पहिलां मासहु निंमिआ मासै अंदरि वासु ॥

देखो गुर नानक पातस़ाह पांडे नू केहि रहे ने केहदे पेहला ता तूं मास विचों ही जनम लिआ तेरी आतमा दा वासु पंज भूतक मास ते लहू दे सरीर विच है आखदे फिर

जीउ पाइ मासु मुहि मिलिआ हडु चंमु तनु मासु ॥

मासहु बाहरि कढिआ ममा मासु गिरासु ॥

मुहु मासै का जीभ मासै की मासै अंदरि सासु ॥

सारे सरीर दी बणतर वी साडी मास दी है, जदो जनम होइआ ता मूह विच दुध चुंघण नूं वी मास मिलिआ। मां दे गरभ विच वी वास, मास विच ही सी ९ महीने सारा सरीर बणाइआ, मास दी जीभ वी मास, ते मास दे अंदर ही असीं ( जीव आतमा ) साह लै रही है फिर वडा होआ वीआहिआ घरि लै आइआ मासु। "मासहु ही मासु ऊपजै मासहु सभो साकु॥ वडा हो गिआ विआहिआ गिआ घर वहुटी वी मास दी ले आईआ अगो ओस नाल वी मास नाल सबंध बणा के परिवार वी मास दा बणां लिआ बाल बचे फिर "मासु मासु करि मूरखु झगड़े गिआनु धिआनु नही जाणै॥ कउणु मासु कउणु सागु कहावै किसु महि पाप समाणे ॥ मास मास करके लोकी झगड़ रहे ने पुन पाप दी विचार करदे ने पर लौक मूरख ने इहना नूं नहीं पता एना गिआन नहीं हैगा मास ते ( सरो ) दे साग विच बराबर जोति, इको जिही जान ( जीव आतमा ) है मतलब जे असीं साग जा गोभी, आलू , मटर विच वी उही जान है जो बकरे जा मुरगे विच है गुरबाणी ते पाणी विच वी जीव मंनदी है फिर जो मास खाण ते रोला पाउंदे ने ओहनां नूं एस ते विचार जरूर करन जा फिर पाणी तौ लै कि फ़ल सबज़ीआ वी छडण खाण तौ, इहनां विच बराबर जान मंनदी है गुरबाणी, " पांडे तू जाणै ही नाही किथहु मासु उपंना॥ तोइअहु अंनु कमादु कपाहांतोइअहु त्रिभवणु गंना॥ इह पंकती पंडिता ते मास दे तिआगी लई कही गई है, थोडे वरगे पंडित नूं दसिआ गुरबाणी ने के पंडित तूं जाणिआ ही नही है मास किथो पैदा होइआ है अगे वी पड़ो पंडित, "तोइअहु अंनु कमादु कपाहां तोइअहु त्रिभवणु गंना॥ इह पंकती धिआन नाल पड़ो पांडे तोइअहु किहा पाणी नूं पाणी तो की की पैदा होइआ अंन, कमादु, कपाहां, तोइअहु त्रिभवणु गंना, इह सभ पाणी तो पैदा होइआ गुरबाणी अनुसार पाणी विच वी जीव आतमा है स़ुरूआत इथो होई है जि इथे वी समझ नही लगी ता पांडे फिर मुस़किल है। बहुत सारे धरमी दिसण वाले दूजिआं नूं कहणगे बई ग्रसत जीवन तिआगो, बंदे जनानी दा स़रीरिक रिस़ता विकार है पर उही धरमी पांडे आपणे निआणिआं दे विआह वी कर दिंदे ने। जो प्रचार करदे ने आप नहीं मंनदे। इह लोकां नाल ठगी है।

जीअ बधहु सु धरमु करि थापहु अधरमु कहहु कत भाई॥ आपस कउ मुनिवर करि थापहु का कउ कहहु कसाई॥२॥ मन के अंधे आपि न बूझहु काहि बुझावहु भाई॥ माइआ कारन बिदिआ बेचहु जनमु अबिरथा जाई॥३॥

कबीर जी आखदे आपणे आप नूं मुनी वर कहा रहे हो ते मैनूं कसाई आखदे हों, माइआ लैके विदिआ बेचदे हों, जदों कोई मुकती दा मारग पुछण आउंदा तां उहनां नूं कदे खूह विच छाल मारन नूं आख दिंदे, कदे अग विच झोक देणा, कदे सिर कट देणा। जीव दा वध धरम दे नाम ते करदे सी पांडे ते दूजे नूं जीव हतिआ हुंदी है कह के रोकदे ने। आप करदे हन तां मुनिवर कहाउंदे ने ते जे कोई भोजन लई रिजक लई करे तां उसनूं कसाई आख दिंदे ने। इक पासे आखदे ने के रब दी मरज़ी तों बिनां कुझ हो नहीं सकदा दूजे पासे जीव हतिआ दा दोस़ दूजे नूं लाई जांदे ने। गुरमति साफ़ आखदी है "कोई जाणहु मास काती कै किछु हाथि है सभ वसगति है हरि केरी॥ अते "पाप पुंन हमरै वसि नाहि॥

मीनु पकरि फांकिओ अरु काटिओ रांधि कीओ बहु बानी॥ खंड खंड करि भोजनु कीनो तऊ न बिसरिओ पानी॥२॥ इथे मीन (मछी) खाण दा प्रसंग है।

इतिहास दीआं साखीआं पड़्हदे हां जिस विच भाई घनईआ जी दी साखी आउंदी है जो जंग विच जखमी फौजीआं नूं पाणी पिलाउंदे सी दवा दारू करदे सी। कदे सोचिआ जिस मस़क नाल उह पाणी पिलाउंदे सी किस दी बणदी सी? उस समे मस़कां आम वरतो विच सी, लंगर विच वी मस़कां राहीं पाणी पिलाइआ जांदा सी। बालटीआं ते ड्रंम बहुत समे बाद वरतो विच आउण लगे। बालटी ते ड्रंम नूं चक के तुरना औखा है, मस़कां मोडे ते बसते वांग टंग के तुरना सौखा है, मस़कां बणाउण लई जानवर दे चमड़े ते पेट दी थैली दी वरतो करदे सी ते उहनां समिआं विच मास नाल ऐलरजी नहीं हुंदी सी सिखां नूं। जखमी फौजी इह वी नहीं पुछदा सी के जानवर किहड़ा है ज़िबा (हलाल) कीता के झटका। मैं जिआदा पुराणी नहीं कुझ दहाकिआं पहिलां तक मस़कां गुरू घर विच आम वरतो हुंदीआं वेखीआं ने। तबले मास दे बणदे ने, सारंगी विच लगी डोर जानवर दी आंतड़ीआं तों बणदी है। हारमोनीअम ते पुरातन साज़ सारिआं विच जानवर दे हड, मास, आंत आदी दी वरतो हुंदी है।

झटका करन दे कुझ खास कारन

1) औरंगजेब ने हिंदूसतान नूं इसलामी देस़ बनोण लई बहुत कोझीआ चालां चलीआं। ओसने रहिण सहिण विच कई तबदीलीआं कर दितीआं। हिंदू झटका मास ही छकदे सी, पर औरंगजेब ने झटके दीआं दुकानां बंद करा के हर पासे हलाल मास दीआं दुकानां खोल दितीआं ते दूजीआं ते रोक लगा दिती। सारे हिंदूसतान विच इह ऐलान कर दिता की तुरकां तों बिनां ना कोई लंबा बाना पावेगा, ना घोड़े ते चड़्हेगा, ना स़सतर रखेगा, ना नगारा वजाएगा, ना स़िकार खेडेगा ते ना ही झटका छकेगा। इह ऐलान जदों अनंदपुर बैठे कलगीधर पातस़ाह धंन धंन गुर गोबिंद सिंघ जी महाराज जी नूं पता चलेआ तां अनंदपुरों वी इक ऐलान होइआ की मेरा सिंघ उचा दुमाला वी सजाएगा, लंबा बाना वी पाएगा, घोड़े ते वी चड़्हेगा, स़सतर वी चंगे तों चंगा रखेगा, नगारा वी वजाएगा, स़िकार वी खेडेगा ते झटका वी करेगा। झटका तां बहुत पहिलां तों सिख करदे सी पर ओस वेले दसम पातस़ाह ने खालसा फौज दी मरियादा च इह गल लिखती सी जो अज वी फौज चंगी तर्हां निभा रही है।

2) झटका करना तलवारबाज़ी दा बहुत ही ज़रूरी अंग है। इह कीते बिनां तलवारबाज अधूरा है, भांवे ओह किंने ही दाओ पेच जाणदा होवे पर जिथे निरभैयता ते समें अनुसार कठोर होण दी गल आंदी ओथे ओह नाकामयाब होवेगा। इको झटके च सीस लाउणा आम गल नहीं, इस लई कड़ी मेहनत लगदी है, एकागरता चाहीदी है, संतोख चाहीदा है ते ऐसा तीरछा वार मारना है जो तलवार सुकी लंघ जावे ते चोटंगे नूं पता ना लगे कदो मुकत हो गिआ।

3) दसम पातस़ाह ने चंडी दी वार विच चंडी दे युध भाव बिबेक बुधी दी जंग दा वरनण कीता है कि किस तर्हां चंडी ने दैंतां (विकारां) दे झटके कीते। चौटंगे दा झटका करना इस गल दा प्रतीक है की जिस तर्हां इस चौटंगे दा झटका होइआ सरबलोह दी तेग नाल ओसे तर्हां गिआन खड़ग नाल असीं दुरमति दे झटके करने ने जिस तर्हां चंडी ने दैंतां दे कीते।

मास खाणा यां ना खाणा इह धरम दा विस़ा नहीं, अज वी दलपंथ विच कई झटकई सिंघ ने जो झटका तां करदे ने पर डले नी छकदे। इह साडे स़रीर दी जरूरत ते निरभर आ की छकणा जां नहीं ते स़रीर मिटी आ , गुरबाणी मिटी नूं मिटी ही दसदी ओसदी खुराक मिटी ही आ, गुरबाणी ने सारी आतमा दी खुराक दी गल कीती है जो गुरमति विचों ही मिल सकदी होर किसे दुनिआवी बाबे, संत , महंत नूं मथे टेक के, चौंकड़े मारके जां माला फेरके नी होणी। इह अमुल गुण, अमुल वपार है।

मास दा काम नाल रिस़ता

इक धारणा इह है के मास खान नाल काम विच वाधा हुंदा है। इह सरा सर निराधार गल है। इसदा विगिआनिक प्रमाण नहीं है के मास खाण नाल काम दा कोई रिस़ता है। काम उतेजना वाले नूं अकसर घोड़े नाल खरगोस़ नाल जोड़िआ जांदा है। दोवें जानवर स़ाकाहारी हन मास नहीं खादे। गुरबाणी विच कई जगह हाथी नाल काम दे स़बद आए हन हुण हाथी वी स़ाकाहारी है। कुझ उदाहरण

मैगलहि कामै बंधु॥ – मैगुल हुंदा हाथी।

काम रोगि मैगलु बसि लीना॥

मैगल जिउ फाससि कामहार॥

इह आम धारणा है के सिंघ/स़ेर जीवन विच संभोग बहुत घट करदा है। जंगल विच स़ेर दो साल विच इक वार ही संभोग करदा है तुसीं गूगल ते सरच करके इह गल चैक कर सकदे हों। हुण जे मास खाण नाल काम वास़ना वध जांदी है तां फेर स़ेर वरगा जानवार संभोग इतना घट किओ करदा। हिंदुसतान वरगे देस़ विच दुनीआं दे सभ तों जिआदा स़ाकाहारी लोग वसदे ने ते इथे लोकां दी गिणती सभ तों जिआदा वध रही है। इह सोचण वाली गल है के मास तों धारमिक लोकां नूं की तकलीफ़ है। साडी तुलणा पातिस़ाह ने सिंघ नाल, बाज नाल, मगरमछ नाल कीती है ते इह सारे ही जानवर मास खांदे हन। जे मास खाण नाल परहेज करना हुंदा तां पातिस़ाह किसे स़ाकाहारी जानवर नाल पंछी नाल तुलणा कर सकदे सी। पंडत नूं लोग तकड़े, सिआणे नहीं चाहीदे तां ही पंडत मास दा विरोधी रहिआ है। आप लोकां दी ते जानवर दी बली दिंदा रहिआ है। उहनां बारे बाणी ने आखिआ है

जीअ बधहु सु धरमु करि थापहु अधरमु कहहु कत भाई॥ आपस कउ मुनिवर करि थापहु का कउ कहहु कसाई॥

धोती खोलि विछाए हेठि॥ गरधप वांगू लाहे पेटि॥१॥ बिनु करतूती मुकति न पाईऐ॥ मुकति पदारथु नामु धिआईऐ॥१॥ रहाउ॥ पूजा तिलक करत इसनानां॥ छुरी काढि लेवै हथि दाना॥२॥ बेदु पड़ै मुखि मीठी बाणी॥ जीआं कुहत न संगै पराणी॥३॥ कहु नानक जिसु किरपा धारै॥ हिरदा सुधु ब्रहमु बीचारै॥४॥१०७॥

हिरदा सुध मास छडण नाल नहीं होणा ब्रहम बीचार नाल होणा। कई वीर भैण इह तरक दिंदे हन के पातिस़ाह तां स़िकार जीव नूं मुकत करन लई करदे सी। ते जे पातिस़ाह जानवर नूं तीर मार के मुकत कर सकदे सी तां मनुखां नूं वी कर दिंदे फेर। असल गल है के पंडत बिरती वालिआं नूं इह सोझी ही नहीं है के पातिस़ाह लई जीवां विच कोई फरक नहीं सी। सारिआं विच एक जोत दिसदी सी ते जंमणा मरना, पाप पुंन हुकम वस मंनदे सी ते इही गिआन दी गल उहनां सिंघां नूं दसी है।

Other references

सरवर अंदरि हीरा मोती जे होवै सो हंसा का खाणा॥
बगुला कागु न रही सरवर जे होवै अति सिआणा॥
ओना रिज़कु न पइओ ओथे ओनां होरे खाणा॥ (पंना: ९५६)

मास है की?

पुराणे समें मास बिनां संकोच खाधा जांदा सी अते वरतींदा सी। हिंदू धरम दे ग्रंथां अनुसार, विस़नूं पुराण अंस ३, अ: १६ वमिस़न मिम्रिती अ:४, मनू सिम्रिती अ:३, सलोक २६८ तों २७१।

यजुरवेद दी ब्रिहदारवयक उपनिस़द विच पुतर दे इछावान इसतरी पुरख नूं मास ते चावल पका के खाणे दसे हन। जैमिनी अस़वमेध विच अनेक प्रकार दे मास, जो क्रिस़न ने खाधे सन, उन्हां दा विसथार नाल ज़िकर कीता गिआ है। मनू ने स़राध यग आदि विच तिआर कीते मास नूं ना खाण वाले लई २१ जनम पस़ू दे प्रापत होणे दसे हन। गुरमति इहनां नूं पाखंड दसदी है पर मास खाण तों रोक नहीं।

भारत विच मास दा तिआग बुध धरम दे प्रचार तों होइआ है। इस तों पहिलां हरेक मत दे लोक मासाहारी सन। सिख धरम विच मास दा खाणा हिंदू धरम स़ासतरां वांग विधान नहीं और ना ही बोधीआं, जैनीआं वांग इसदा तिआग है। (गुरमति मारतंड, भाई कान्ह सिंघ नाभा)

आदि ग्रंथ साहिबἙ विच

गुरबाणी विच Ἐमास खाणἙ बारे कोई ἘहांἙ जां ἘनांहἙ दे रूप विच सिधा उतर नहीं मिलदा किउंके इह गुरमति दा विस़ा नहीं है। बाणी विच सिधा नहीं लिखिआ के "मास ना खाओ जा "मास खा लवो किउं? किउंके इह ब्रहम गिआन दा विस़ा है ही नहीं है। ब्रहम गिआन दा विस़ा है आपणे आप नूं पछानणा "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥। गुरमति दा विस़ा संसारी ना होण कारण कई इस दा फाइदा वी चकदे ने लोकां नूं भरम विच पा के रखण लई पर जे किसे दा विस़ा गुरमति गिआन तों सोझी लैणा होवे तां उह बाणी दी विचार, खोज, बूझ के सोझी लै सकदा है। ब्रहम गिआन है मन नूं जितण लई उसनूं चेता कराउण लई के उह जोत सरूप है। इस कारन बदेही दे रिजक दा मसला है ही नहीं। असल विच बाणी विच खाण पीण बारे सुतंतर विधान पेस़ कीता गिआ है। भोजन केवल सरीर दी सुरखिआ (जिंदा रहिण) लई ज़रूरी है, इस लई की खाणा है ते की नहीं खाणा, इस प्रस़न दा उतर Ἐइह नहीं खाणाἙ ते Ἐऔह ज़रूर खाणा हैἙ दे रूप विच नहीं दिता गिआ सगों विगिआनिक ढंग नाल नसीहत कीती गई है कि अजिही कोई वी वसतू, जिसनूं खाण नाल सरीर रोगी होवे ते बुधी विकार-ग्रसत होवे, तिआगण-योग समझी जाणी चाहीदी है।

बाबा होरु खाणा खुसी खुआर॥ जितु खाधै तन पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार॥(पंना: १६)

हुण जे तां किसे दे सरीर नूं मैडीकल तौर ते मास खाण नाल कोई रोग लग गिआ होवे जां रोग लगण दा खतरा होवे (जिस तर्हां अजकल कई देस़ां विच बरड फलू दा खतरा बणिआ होइआ है), उह मास दा तिआगी हो जावे जां वैसे ही किसे नूं मास खाणा चंगा ना लगदा होवे, उह वखरी गल है। अजिहे विअकती मीट ना खाण, किसे नूं कोई इतराज़ नहीं हो सकदा, पर किसे भरम अधीन इह समझणा कि मीट खाणा सिख धरम विरोधी करम है ते मीट ना खा के मनुख ज़िआदा धरमी जां वधीआ सिख बण जांदा है, सिखी प्रती अगिआनता ही कही जा सकदी है। असल विच मीट खाण जां ना खाण दा उसे तर्हां सिखी नाल कोई सबंध नहीं, जिस तर्हां किहा जांदा है कि किसे नूं मांह वादी ते किसे नूं सवादी।

अकाल पुरख दी प्रापती दे मारग विच असल विघनकारी चीज़ मास नहीं, सगों मन दीआं बुरीआं बिरतीआं हन, विकार हन, जिन्हां तों सुरखिअत रहिण लई Ἐअकाल पुरखἙ दे नाम (सोझी) अते हुकम दी पछाण करनी उचित हो जांदी है। गुरु नानक साहिब बाणी विच सपस़ट समझाउंदे हन कि समाजिक विअकतीआं दी उतपती, विकास, पोस़ण अते संभाल मास नाल ही संभव हन:

मासहु निंमे मासहु जंमे हम मासै के भांडे॥
गिआनु धिआनु किछु सूझे नाही चतुरु कहावै पांडे॥
बाहर का मासु मंदा सुआमी घर का मासु चंगेरा॥
जीआ जंत सभि मासहु होए जीइ लइआ वासेरा॥
अभखु भखहि भखु तिज छोडहि अंधु गुरू जिन केरा॥
मासहु निंमे मासहु जंमे हम मासै के भांडे॥(पंना: १२९०)

इस स़बद विच गुरू साहिब समझाउंदे हन कि असीं मास तों, मास राहीं, मास दे बणे होए हां, फिर मास दे तिआगी बण के किउं चतर बणदे फिरदे हां? सारे जीव जंतू वी मास तों ही बणे होए हन। जो असीं छडणा सी (भाव विस़े, विकार, बुरे कंम, ईरखा, दवैस़, नफरत, दूजे नूं नुकसान पहुंचाण दी बिरती) उन्हां नाल भरे पए हां, पर मास दे तिआगी बण के धरमी कहाउंदे हां।

गुरु साहिब फुरमाउंदे हन कि पुराणां (हिंदू धारमिक पुसतकां), मुसलमानी मज़हबी किताबां विच मास खाण दी आगिआ है अते युगां युगां तो ही मास वरतिआ जांदा रिहा है। नारी, नर, राजे ते महाराजे सारे मास तों ही उतपंन हुंदे हन:

मासु पुराणीं मासु कतेबीं चहु जुग मासु कमाणा॥
जजि काजि वीआहि सुहावै उथै मासु समाणा॥(पंना: १२९०)

Ἐमास-आहारἙ दा विरोध करन वाले पंडतां (अजकल दे डेरेदारां) नूं, उसदी ख़ुदग़रज़ी अते अधारहीण प्रचार लई, गुरु साहिब उसनूं झाड़ पाउंदे होए आखदे हन:

मासु मासु करि मूरखु झगड़े गिआन धिआनु नहीं जाणे॥
कउणु मासु कउणु सागु कहावै किसु महि पाप समाणे॥
गैंडा मारि होम जग कीए देवतिआ की बाणे॥
मासु छोडि बैसि नकु पकड़हि राती माणस खाणे॥(पंना: २९०)

गुरु साहिब कहिंदे हन कि मास ते साग (वैजीटेस़न) दा झगड़ा मूरखां दा झगड़ा है किउंकि अगिआनी पुरस़ इह नहीं जाणदे कि किहड़ी चीज़ मास है ते किहड़ी वैजीटेस़न/साग है जां किस दे खाण विच पुंन है ते किस दे खाण विच पाप है। असल विच जिस धरती तों पाणी, हवा ते होर लीड़ींदी खुराक लै के वैजीटेस़न पैदा हुंदी है, उसे वैजीटेस़न नूं खा के मास, खून ते दुध बणदा है, फिर इह फरक किवें कीता जावे कि किहड़ी चीज़ मास है ते किहड़ी वैजीटेस़न है। जिहड़े लोक होर बुरे करम करन तों तां झिजकदे नहीं, पर मास खाण दे तिआगी बण के दूसरिआं (मास) खाण वालिआं नूं नफरत दी निग्हा नाल देखदे हन, उन्हां नूं झाड़ पाउंदे होए गुरू साहिब कहिंदे कि मास दे तिआगी बण के तुसीं नक पकड़दे हो के तुहानूं मास तों बू आउंदी है ते पर चोरी छिपे लोकां दे हक मार के (माणस) खाण विच तुहानूं कोई लजा नहीं (किउंकि गुरू साहिब दीआं नज़रां विच दूजे दा हक मार खाणा मुरदार खाणा है)। अज बथेरे सिख हन जो मास दे तिआगी बण के ही आपणे आप नूं दूजिआं तों चंगा समझदे ने ते दूजिआं नूं नीवां समझण विच कोई कसर नहीं छडदे भावें घरे उहनां दे आपणे किरदार खोखले होण।

भाई गुरदास जी वी आपणीआं वारां विच सपस़ट करदे हन:

मरणे परणे मंनीऐ, जगि परवाण कराई मास पवितर ग्रिहसत नो॥ (१३-२३, वार)

जनम साखीआं ते सूरज प्रकास़ दी इक साखी अनुसार गुरु नानक साहिब जदों सूरज ग्रहिण समें कुरूकस़ेतर गए तां उन्हां उथे इक विअकती वलों भेटा कीता हिरन दा मास रिंन्हणा स़ुरू कीता। लोकीं इकठे हो के गुरू साहिब नूं आखण लगे कि "मास रिन्ह के, पवितर थां ते आ के तुसां मरिआदा भंग कीती है जदों कि सूरज ग्रहिण मौके तां अग बालणा वी पाप है ते तुसीं मास रिंन्ह के वडा अनरथ कीता है तां गुरू साहिब ने उथे ही Ἐपहिलां मासह निमिआ मासै अंदरि वासुἙ वाला स़बद उचार के पांडिआं दे कपाट खोल्हे सन।

झटका की है?

आम धारना अनुसार ἘझटकाἙ तों अरथ उस मास दा है जो तुरंत जां इकदम (बिनां देरी दे) मार के तिआर कीता होवे। पर असल विच हिंदुसतान विच इक हज़ार साल तों वध समां मुसलमान हुकमरानां दा राज रिहा, जो कि सिरफ हलाल (meaning justified- इसलाम कुठे नूं justified मंनदा है) मीट जां कुठा मीट ही खांदे सन। उह जानवर नूं मारन वेले आपणीआं धारमिक कलमां पड़्ह के गला रेत के मारदे हन जिबा करदे हन ते आखदे हन अलाह नूं भेंट कीता। पर हिंदुसतानी लोक स़िकार खेड के जां वैसे ही इक झटके नाल जानवर नूं मार के मास तिआर करदे सन, इस तर्हां मीट लई हलाल ते झटका दो स़बद प्रचलत हो गए। आम सिखां विच झटका करन जां झटका खाण दा अरथ है किसे वी हथिआर नाल जानवर दा सिर वढणा जां बंदूक नाल गोली मारना। बेस़क अज दे तेज रफ़तार समें विच किसे कोल स़िकार करके लिआउण जां आप झटका करन दा समां नहीं, इस लई दुकानां ते मिलदा मास खाण विच कोई हरज नहीं जदों तक पता होवे के बली जां कुरबानी नहीं है। बेस़क पुरातन इतिहासक लिखतां दसदीआं हन कि गुरु नानक साहिब दे समें तों ही सिखां विच मास खाण दी खुल सी, पर सिख इतिहास विच झटका मास खाण दी स़ुरूआत गुरु हरगोबिंद साहिब दे समें स़ुरू होई मंनी जांदी है, जदों उन्हां ने बकाइदा सिखां नूं नाल लै के जंगली जानवरां दा स़िकार करना स़ुरू कीता सी।

जिथे मुसलमानी तरीके नाल पस़ू जां पंछी नूं मारन लगिआं ἘकलमाἙ पड़्ह के मारिआ जांदा है, जिसनूं उह हलाल मास आखदे हन, उथे यहूदी लोक कुझ इसे तर्हां तिआर कीते मास नूं Ἐकोस़रἙ कहिंदे हन। ἘकुठाἙ लफ़ज़ कोहणा तों निकलिआ है, कोह के मारना, जिसदा अरथ ज़िब्हा जां बली करना है। जिथे उह पस़ू आदि मारदे हन, उसनूं ज़िब्हाख़ाना वी आखदे हन। गुरु साहिबान ने ἘकुठाἙ आपणे सिखां लई किउं वरजित कीता, धारमिक नुकता निगाह तों इसदी विआखिआ नहीं कीती जा सकदी। समाजिक ते सिआसी नुकता निगाह तों देखिआ जावे तां मुसलमान हुकमरानां वलों आम हिंदुसतानीआं जां गैर मुसलमानां दे झटका मास जां स़िकार करन ते पाबंधी लगा दिती सी ते उन्हां नूं कुठा/हलाल मीट खाण ते मजबूर कीता जांदा सी। जदों किसे दा जबरी धरम बदल के इसलाम विच लिआंदा जांदा सी तां उसनूं सभ तों पहिलां हलाल (कुठा) मास खुआइआ जांदा सी। गुरु साहिब ने इस वरतारे नूं हिंदुसतानीआं दी गुलामी दे चिंन्ह वजों वेखिआ। इसे लई उन्हां ने सभिआचारक अते सिआसी गुलामी दे प्रतीक कुठा (हलाल) मीट खाण वाले पंडत ते आसा की वार विच विअंग कीता है कि पंडत मुसलमान हाकमां (जिन्हां नूं उह मलेस़ कहिंदा है) दी गुलामी करदा होइआ, उन्हां नूं खुस़ करन लई अंदरखाते कुठा मीट खांदा है ते आपणे लोकां नूं स़ूदर कहि कि चौके नहीं चड़न दिंदा कि उह भिट हो जावेगा।

अभाखिआ का कुठा बकरा खाणा॥ चउके उपरि किसै ना जाणा॥ (आसा की वार)

कुझ सिख ἘझटकाἙ करन समें Ἐसति स्री अकालἙ जां अकाल दा उचारन करदे हन। जो कि बिलकुल गलत है किउंकि जिथे सिख धरम विच बोधी जां जैनी धरमां वांग मास दी मनाही नहीं, उथे इसदे खाण दी धारमिक तौर ते कोई मरियादा वी नहीं, जिवें कि इसलाम जां होर धरमां विच है। इसलाम विच बहुत सारे धारमिक तिउहार मास तों बिनां अधूरे कहे जा सकदे हन। पर सिख धरम विच अजिही कोई गल नहीं। सिख ने मास नूं उसे सहिज नाल वरतणा है जिवें उह आपणी रोज़ाना दी खुराक विच होर दालां, सबजीआं, फल फरूट वरतदा है। गुरू हरि गोबिंद साहिब दे समें तों ही सिख स़सतरधारी हो के स़िकार खेडण लग पए सन। गुरू हरि राइ साहिब दे समें वी सिख स़िकार खेडदे ते खांदे सन। गुरु गोबिंद सिंघ जी ते अकसर स़िकार ते जांदे सन। फ़ारसी दी इक पुराणी पुसतक Ἐदबिसताने-मुज़ाहिबἙ दा लेखक ज़ुलफ़कार अरदसतानी लिखदा है, "ἦसिखां विच हिंदूआं जेहा खाण पीण दा बंधन नहींἦकुझ चिर पिछों उन्हां दे सिख मास खाण लग पए।ἦपिछों (गुरू) अरजन मल दा पुतर गुरू हरिगोबिंद (साहिब) मास खांदा ते स़िकार करदा सी, जिस करके उन्हां दे बहुत सारे सिखां विच इह रीत पै गई। ज़ुलफ़कार आप लिखदा है कि उसने गुरू हरिगोबिंद साहिब दे दरस़न हिजरी संन इक हज़ार पचवंजा (१०५५) विच कीते अते गुरू साहिब नाल उसदा ख़तो-किताबत वी रिहा।

सिंघ रुचै सद भोजनु मास

पंकती दा हवाला दे के किहा जांदा कि सिख मास खा सकदे। इह गल जरूर है के गुरबाणी मास खाण बारे सपस़ट दसदी कि "अंडज जेरज सेतज उतभुज बहु परकारी पालका अते "अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी सभ जीवां दे विच उह हरि आप है। पर उपरली पहली पंकती पंजवें पातस़ाह दी है उस समें सिख नाम अगे सिंघ नहीं सी लगाउंदे इस लई उह पंकती सिखां लई नही है जे अगलीआं पंकतीआं पड़्हीए जो हन "रणु देखि सूरे चित उलास॥ किरपन कउ अति धन पिआरु॥ हरि जन कउ हरि हरि आधारु, पातिस़ाह कहिंदे जिवें स़ेर नूं रूची है मास विच, सूरमे नूं रण दा मैदान वेख खुस़ी हुंदी अते वापारी नूं पैसे नाल चा उठदा, हरि के जन ने प्रेमी ने उहनां नूं हरि दे नाल प्रेम है उहनां नूं हरि दी ही टेक है भरोसा है। मास खाण दा विस़ा बहुत सौखा है परि मनमुख झगड़दे ने बे वजह बाणी सपस़ट कहिंदी "जितु खाधै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार जे खाणा माड़ा लगदा ना खावो। स़रीर दे भोजन दा आतमा दे भोजन नाल की रिस़ता। "कोई जाणहु मास काती कै किछु हाथि है सभ वसगति है हरि केरी॥ तुहानूं लगदा तुसी मार सकदे परि हुकम हरि दा ही है। काती अरथ कटण वाली वसतू, जिवें काती नहीं कट रही हथ है इसनूं फड़दा उदां ही हथ नहीं कट रहिआ हुकम अकाल दा वरत रहिआ सो कटण वाली वसतू नहीं किसे नूं मारना जां कटणा हरि दे हुकम दा वरतारा है।

इह धिआन रहे के सानूं पातिसाह ने आखिआ है के असीं दूजिआं धरमां बारे वी पड़्हीए तां के कोई सवाल करे सानूं जवाब देणा आवे। "बेद कतेब कहहु मत झूठे झूठा जो न बिचारै॥ जे कतेब ना पड़्हिआ हुंदा तां इह निचलीआं पंकतीआं दी विचार नहीं कर सकदा सी।

जउ सभ महि एकु खुदाइ कहत हउ तउ किउ मुरगी मारै ॥१॥

कबीर जी दी बाणी विचों उपरोकत पंकतीआं नूं लै के किहा जांदा के मास नहीं खाणा। इहनां पंकतीआं तो भुलेखा इस करके पैंदा किउंकी अकल घट होण कारण जा अहंकार वस असीं इह नहीं पड़्हदे ते वीचारदे के मुसलमान सभ विच एकु खुदा नहीं मंनदे। मुसलमान वीरां दा मंनणा है के खुदा सतवें आकास़ विच वसदा ते मर के जंनत विच जा के ही मिलना। एथे बहुतिआं ने धिआन नहीं दिता के इक खुदा नही एक खुदा किहा ते इह सवाल मुसलमान पुछ रहे ने ते जवाब उहना नुं अगलीआं पंकतीआं विच दिता "मुलां कहहु निआओु खुदाई॥ तेरे मन का भरमु न जाई॥१॥ रहाउ॥ पकरि जीउ आनिआ देह बिनासी माटी कउ बिसमिलि कीआ॥ जोति सरूप अनाहत लागी कहु हलालु किआ कीआ॥ कबीर जी सवाल पुछदे तूं मेरे मुरगी कटण ते सवाल करदा हैं, आप तूं जीव नूं पकड़ के "देह बिनासी बिनस जाण वाली मिटी दी देह नूं बिसमिल करके हलाल (justify) कीता आखदा है जोत सरूप तां अनाहत (अनहद नाल जा रली) तूं फेर हलाल किसनूं कीता। जदों तक बाणी ते वीचार नहीं हुंदा गुरमति दी सोझी नहीं मिलनी। सानूं केवल vocabulary ही नहीं तत गिआन दी खोज करनीं पैणी बाणी दा गिआन लैण लई ते अज दोनो ही नहीं वरते जा रहे सिखां दुआरा। बाणी दी विचार तों ही भजदा अज दा सिख। कबीर जी दी बाणी तों होर वी उदाहरण मिलदे हन।

कबीर जोरी कीए जुलमु है कहता नाउ हलालु॥ दफतरि लेखा मांगीऐ तब होइगो कउनु हवालु॥१८७॥ कबीर खूबु खाना खीचरी जा महि अंम्रितु लोनु॥ हेरा रोटी कारने गला कटावै कउनु॥१८८॥ कबीर गुरु लागा तब जानीऐ मिटै मोहु तन ताप॥ हरख सोग दाझै नही तब हरि आपहि आपि॥१८९॥ – कबीर जी कुरान स़रीफ़ दा उदाहरण दे रहे ने ते आखदे कुरान विच तुसीं पड़्हदे हों के जोर नाल किसे नूं कुझ कीतिआं ज़ुलम है पर तुसीं चार बंदे रल के जानवर नूं फड़्ह के ज़िबा करदे हों ते उसनूं हलाल आखदे हो ते जदों दफ़तर (कुरान स़रीफ़ दे हिसाब नाल दरगाह) विच लेखा मंगिआ जाणा तां की हवाला देवोंगे। इस उदाहरण नूं ही बिनां समझे साडे परचारक मास दे विरोध लई वरतदे हन बिनां जाणे के गुरमति मास खाण बारे की आखदी है।

कबीर जीअ जु मारहि जोरु करि कहते हहि जु हलालु॥ दफतरु दई जब काढि है होइगा कउनु हवालु॥१९९॥ कबीर जोरु कीआ सो जुलमु है लेइ जबाबु खुदाइ॥ दफतरि लेखा नीकसै मार मुहै मुहि खाइ॥२००॥ कबीर लेखा देना सुहेला जउ दिल सूची होइ॥ उसु साचे दीबान महि पला न पकरै कोइ॥२०१॥

इहनां पंकतीआं दा वी हवाला दिता जांदा के मास नहीं खाणा। इथे कबीर जी मुसलमानां नाल वारतालाप कर रहे ने किउंके मुसलमान वीर मंनदे ने क जोर जबर नहीं करना किसे नाल, मजलूम नाल जोर नहीं करना किउंके खुदा हिसाब लैंदा। फेर कबीर जी उहनां नुं पुछदे पए ने के जानवर नूं तुसीं पकड़ के बंन के जोर ही करदे पए हों आपणे फलसफे तों उलट ते आखदे हो हलाल (justify) करदे पए हां। गुरबाणी तां सपस़ट कर चुकी है के "जिसु हथि जोरु करि वेखै सोइ॥ "जंमणु मरणा हुकमु है भाणै आवै जाइ॥ ते फेर हिसाब किसने ते किउं लैणा किउंके जो हो रहिआ उह तां पहिलां ही भाणे विच ही हो रहिआ है। मुसलमान इह वी आखदे ने के दफतरि (दरगाह) विच लेखा मंगिआ जाणा तां कबीर जी आखदे जे इह जोर है तां तुहाडे दफतर हाजरी भरन ते नहीं सवाल पुछिआ जाणा? फेर हेरा रोटी मुसलमान सब तों उतम रोटी मंनदे ने, आखदे हेरा रोटी (हेरा अरथ जनत दा राजा/राणी or queen of heaven) वासते मिहनत लगदी "गला कटाए कौन दा अरथ इथे सिर देणा मैं मारनी है हुकम समझणा है। फेर आखदे आह सब पाखंड छडो छकणा छको नहीं ता ना सही धरम दा नाम ना देवो इसनूं। गुरु लागा (सोझी प्रापत) होई तब जानीए मिटै मोह तन ताप (जदों मोह माइआ पाप पुंन संताप दी विचार खतम होवे)। जदों हरग (खुस़ी) सोग (गम) सब भलेखे मुक जाण। मूह दे सवाद लई नहीं कीता जावे कंम। कबीर जी आखदे लेखा देणा (सुहेला) सौखा/चंगा जदों दिल सुचा होवे पाप पुंन विकार भरम ना होवे कोई ते खाणा पीणा पवितर दिसे जीव दा जंमणा मरना भाणे विच है समझ आ जावे। फेर दरगाह विच होर कोई कंम, बंदा चंगा मंदा, कम नहीं आउणा केवल हिरदे विच सच दा वास हुकम दी सोझी ही कंम आउणी।

कबीर भांग माछुली सुरा पानि जो जो प्रानी खांहि ॥ तीरथ बरत नेम कीए ते सभै रसातलि जांहि ॥

इहनां बाणी दीआं पंकतीआं दा हवाला दिता जांदा। इह समझणा जरूरी है कि गुरबाणी विच भगत जी दी गलबात बपंडत नाल हो रही है ते भगत जी पुछदे ने दसो की तुहाडी भगती इंनी कमजोर है के इक मरी होई मछी तुहाडी भगती नूं रसातल विच भेज सकदी है। बाणी नूं विचारन दी लोड़ है अगे पिछे दी पंकतीआं नूं समझणा पैणा अते इह समझणा जरूरी है की गुरबाणी विच गिआन चरचा हो रही है इह इक तरफा बिआन या केवल आदेस़ नहीं है। ना गुरबाणी तीरथ ना बरत ते ना हीं नेम (रटण) करन नूं मंनदी है पर फेर वी कई कही जांदे ने कि भांग मास सुरा आदिक नाल भगती दा, तीरथ दा, बरत/वरत दा असर खतम हुंदा। जे सरीरक पदारथ खाण पीण नाल तुहाडा धरम टुटदा तां तुहाडा धरम बहुत कचा है जिहड़ा खाण पीण नाल टुट जांदा। जे मरी होई मछी, मुरगी, बकरा तुहाडे धरम नूं तुहाडे बाणी विचार नूं भगती नूं खतम कर सकदी है फेर इहनां नूं ही रब धार लवो।

अखीरला तरक जदों कुझ होर ना बचे तां आखदे हन जे मास खाणा जाइज़ है तां मनुख दा मास खाणा वी जाइज़ हो जाओ। गल इह हो रही सी मास दे झगड़े दा गिआन नाल कोई लैणा देणा नहीं। मास खाणा ना खाणा धरम दा विस़ा नहीं। तरक वितरक कुतरक नूं किसे पासे वी लैके जाइआ का सकदा है। जो सामाजिक विस़ा है उह वखरा है ते गुरमति दा ब्रहम गिआन दा विस़ा वखरा है। पर जे सवाल पुछिआ गिआ है ता जवाब वी देणा पैणा। दुनीआं दे इक हिसे विच रीत है मिरतक मां नूं खाण दी किउंके उस इलाके विच मंनदे हन के इस नाल मां दे गुण ते मां उहाडे नाल सदीव है। जदों इस गल दा पता लगिआ तां की उस कबीले नूं खतम कर दिता गिआ? इक जहाज दी दुरघटना चिली नाम दे देस़ विच वापरी। बरफ़ां विच जीवन बचाउण लई बचे होए लोकां ने बाकी मरे होए यातरीआं दा मास खाधा? जदों उहनां नूं बचा लिआ गिआ तां सरकार ने उहनां नाल की कीता? जिहड़े सिंघ जंगलां विच रह के बचे आखदे उहनां पहिलां घोड़े फेर आपणे पटां दा मास वी खाधा। सारा सवाल तां मकसद (purpose) दा है। जिवे। पहिलां कहिआ गिआ है के गुरमति दा मुदा खाण पीण नहीं है ब्रहम (मूल/प्रभ) दा नाम (सोझी) है। इस लई गिआन दी वरतो करो समझण लॲॳि के सही गलत की है। इह चेते रहे के "कबीर मानस जनमु दुलभु है होइ न बारै बार॥ जिउ बन फल पाके भुइ गिरहि बहुरि न लागहि डार ॥३०॥"

झटका प्रकास़ ग्रंथ कई होर सवालां दे जवाब दिंदे हन। नीचे youtube दे लिंक हन।

https://youtu.be/5-60htz1508?si=kEJ-Rq4OmIoeLvQ-

स़ाकाहारी जीव मासाहार करदे होए, animals considered vegetarian eating meat

पुरातन सिख ग्रंथां विच मास खाण बारे की लिखिआ

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Source: ਮਾਸ ਖਾਣਾ (Eating Meat) ਅਤੇ ਝਟਕਾ (Jhatka)