Source: ਨਾਹ ਕਿਛੁ ਜਨਮੈ ਨਹ ਕਿਛੁ ਮਰੈ

नाह किछु जनमै नह किछु मरै

नाह किछु जनमै नह किछु मरै। आपन चलितु आप ही करै। आवन जावन द्रिसिट अनद्रिसिट। आगिआकारी धारी सभ स्रिसिट। बाणी ता मंनदी नही कुझ मरदा फेर पाप किदा होईआ ( जीव आतमा ते अमर ए) ओह ते मरदा नहीं ? फिर मरदा ते पंज भूतक सरीर ए ? फिर आ जीव हतिआ, जीव हतिआ, केहि केहि कि रोला किउ पाईआ भेखी संता ने । इह असल च अ डमी डेरेदार संत ( पंडित बिरती आले ) लोका अगे भल बनाउण दे मारे वी असी चंगे अ, जीव हतीआ नही करदे, ता पाखंड करदे ने इह । कई ब्राहमणी सोच दे ( सिख ) विदवान केहदे ने स़िकार दा झटका करके मास खाणा पाप है ओहनां नू जवाब दसम पातस़ाह दे हथ लिखत स्री दसम ग्रंथ साहिब च पिआ कि दसवे पातसाह स़िकार खेडदे सी ।भाति भाति बनि खेलि स़िकारा । मारे रीछ रोझ चंख़ारा ।


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