Source: ਸੂਰਮਾ ਅਤੇ ਪਹਿਲੀ ਜੰਗ

सूरमा अते पहिली जंग

गुरमति सूरमा किस नूं मंनदी है? की देस़, कौम, राज लई मरन वाला गुरमति अनुसार सूरमा है? बथेरे सूरमे बहादर, योधे, सूरबीर होए ने जिहनां नूं लोक स़हीद मंनदे हन। पर गुरमति किस नूं सूरमा मंनदी है इह विचारन दा विस़ा है। सिख ने किहड़े राज लई लड़ना है समझण लई वेखो "अभिनासी राज ते दुनिआवी राज

गुरमति दा फुरमान है "नानक सो सूरा वरीआमु जिनि विचहु दुसटु अहंकरणु मारिआ॥ – भाव सूरा उही है जिस ने आपणे अंदरों अहंकार वरगे दुसट (विकार) मार लए। मन मार के गुणां नूं मुख रखिआ। "गुरमुखि नामु सालाहि जनमु सवारिआ॥। इह सूरमे प्रभ आप थापदा, प्रभ सूरमतई उसनूं साजदा जो हरि नाम धन (सोझी) दा वापारी होवे। नाम धन नूं समझण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?।"हरि धन को वापारी पूरा॥ जिसहि निवाजे सो जनु सूरा॥१॥। सिर (मै) गुर (गुणां) नूं भेट करे तां इसदे बदले उसनूं नाम धन प्रापत हुंदा। गुरमति वाला सचा सौदा की है समझण लई वेखो "सचा सौदा (सच वापार)। जो मन नूं मार दवे उही सूरा है, सूरतण वेस विच उही है "मनूआ जीतै हरि मिलै तिह सूरतण वेस॥ असीं केवल नीले बाणे, हजूरीए, दुमाले, केसरी पग, चिटे कुरते पजामीआं नूं, बाहरी भेख नूं ही सूरमे दा वेस मंन लिआ। जितने भगत होए हन उहनां मन जितिआ ते सीस (हउमै) गुर (गुणां) नूं भेंट कीता है। भगतां दा वेस की सी? बाहरी पोस़ाक नहीं गिआन ते सोझी नूं वेस मंनिआ है गुरमति ने। उही सूरमा भगती स़ुरू करदा है जो मन दी होंद नूं खतम कर लवे। "सो सुरता सो बैसनो सो गिआनी धनवंतु॥ सो सूरा कुलवंतु सोइ जिनि भजिआ भगवंतु॥ भजण दा अरथ गाउणा नहीं हुंदा, भज दा अरथ हुंदा गिआन दी पछाण करके धारण कर लैणा। जदों मन दी होंद गिआन राहीं खतम हो जावे, पंच (उतम) चोर (विकार) काबू हो जाण, मन आपणी होंद नूं मंन के मनु हो जावे तां उही हरि है राम है। राम ते हर बारे जानण लई वेखो "हरि अते "गुरमति विच रामइहु मनु राजा सूर संग्रामि॥ इहु मनु निरभउ गुरमुखि नामि॥ मारे पंच अपुनै वसि कीए॥ हउमै ग्रासि इकतु थाइ कीए॥६॥। मन की है? मन असल विच कुझ नहीं है, जीव ने बस दलिदर दा, विकारां दा दोस़ आपणे उते ना लैण खातर अगे कीता होइआ है मन। मन बारे जानण लई वेखो "मन, पंच अते मनमुख। असल विच घट/बुध/हिरदे अंदर कोई फौज नहीं बैठी। जीव आप ही मन है जदों अगिआनता विच है, जदों गिआन लैके हरिआ है तां हरि, जदों गुणां विच रमिआ हे तां आप ही राम है। मन आप जोत सरूप है पर भुलिआ बैरा, गुरमति राहीं चेते करना है "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥ मन हरि जी तेरै नालि है गुरमती रंगु माणु॥ जे सौखा मंन जावे ठीक नहीं तां मन नाल ही झगड़ा है, पहिली जंग है। "जो जन लूझहि मनै सिउ से सूरे परधाना॥ हरि सेती सदा मिलि रहे जिनी आपु पछाना॥, मन नाल लूझणा (लड़ना) किवें है? इह वी गुरबाणी ने दसिआ है "कामु क्रोधु अहंकारु निवारे॥ तसकर पंच सबदि संघारे॥ गिआन खड़गु लै मन सिउ लूझै मनसा मनहि समाई हे॥३॥। लड़ना भगउती ने है ते भगउती है गिआन खड़ग। विसथार विच जानण लई वेखो "भगउती कौण/की है ?

जिहड़े इह कहि रहे ने के केवल दसम बाणी पड़्ह के वीर रस मिलदा उह दसम बाणी तों अणजाण हन। असल विच वीर रस कहिंदे किसनूं हन इसदा उहनां नूं नहीं पता।

वीर रस की है?
दुनीआं विच हर कोने विच फौजी है जो मरन मारन नूं तिआर है, गुंडे बदमास़ वी हन जो मरन मारन नूं तिआर रहिंदे हन, मरन तों कुट खाण तों डरदे नहीं। कुझ इहो जिहे वी हन जिहनां नूं मजबूरी विच स़सतर चकणे पए। fight or flight कारण वी कई स़सतर चक के लड़दे हन। जदों तों दुनीआं बणी है जंगां हुंदीआं आईआं हन, हुण तां तोपां बंदीकां ते मिसाईल नाल दूरों वार हुंदे, पर इक समें हथां नाल, तीर तलवार नाल लड़िआ जांदा सी। युध इक कला सी, सिखणी पैंदी सी। पर की इहनां नूं गुरबाणी सूरमे योधे जां वीर मंनदी है?

"नानक सो सूरा वरीआमु जिनि विचहु दुसटु अहंकरणु मारिआ॥ गुरमुखि नामु सालाहि जनमु सवारिआ॥ आपि होआ सदा मुकतु सभु कुलु निसतारिआ॥ सोहनि सचि दुआरि नामु पिआरिआ॥ मनमुख मरहि अहंकारि मरणु विगाड़िआ॥ सभो वरतै हुकमु किआ करहि विचारिआ॥ आपहु दूजै लगि खसमु विसारिआ॥ नानक बिनु नावै सभु दुखु सुखु विसारिआ॥१॥

गुरमति तों प्रापत सोझी नूं गुरबाणी ने गिआन महारस मंनिआ है, हरि रस, राम रासाइण बारे वेखो गुरबाणी की आखदी है "मनु बैरागी घरि वसै सच भै राता होइ॥ गिआन महारसु भोगवै बाहुड़ि भूख न होइ॥ नानक इहु मनु मारि मिलु भी फिरि दुखु न होइ॥, "सा मति निरमल कहीअत धीर॥ राम रसाइणु पीवत बीर॥१॥। इह गिआन महारस पीण वाला वीर, जोधा, सूरमा, वरिआम उह है जिसने अंदरों दुस़ट अहंकार मारिआ, विकारां नाल जंग कीती। जे इह वीर रस समझ आ जावे तां इह दोहां ग्रंथां विच समाइआ होइआ है। जिहड़ा इह आखदा है के मैं दूजा ग्रंथ किउं पड़्हां उसनूं पहिला वी समझ नहीं आइआ। जो इह मंनदा है के मैं दुनिआवी पधर ते सूरमा हां उसनूं गुरमति वाली वीरता प्रापत नहीं हो सकदी।

इह वी सारे ही सिख जाणदे हन ते माण नाल पड़दे हन के "सूरा सो पहिचानीऐ जु लरै दीन के हेत॥ पुरजा पुरजा कटि मरै कबहू न छाडै खेतु॥ – पर दीन की है? खेत की है? इह किसे ने नहीं समझाइआ बस अंदाजा है के दीन भाव धरम ते धरम की है पता नहीं। गुरमति धरम किस नूं मंनदी है समझण लई वेखो "धरम। गुरबाणी विच दरज है "सरब धरम महि स्रेसट धरमु॥हरि को नामु जपि निरमल करमु॥। दीन उह है जो परमेसर सरण विच आ जावे, जिसनूं समझ आ जावे के विकार तिआगणे हन ते परमेसर रजा, परमेसर हुकम, परमेसर भाणे नाल एका करना है एक मति होणा है। जो केवल नाम (सोझी) दी आस रखदा होवे। ते खेत है जिथे मन नाल, विकारां नाल जंग हुंदी। इह अंदरूनी जंग है बाहरली जंग नहीं। "खेतु जु मांडिओ सूरमा अब जूझन को दाउ॥ – जीव नूं इह पता लग जावे के मन नाल जंग करनी है, विकार मारने हन।

दोवै तरफा उपाइ इकु वरतिआ॥ बेद बाणी वरताइ अंदरि वादु घतिआ॥ परविरति निरविरति हाठा दोवै विचि धरमु फिरै रैबारिआ॥ मनमुख कचे कूड़िआर तिन॑ी निहचउ दरगह हारिआ॥ गुरमती सबदि सूर है कामु क्रोधु जिन॑ी मारिआ॥ सचै अंदरि महलि सबदि सवारिआ॥ से भगत तुधु भावदे सचै नाइ पिआरिआ॥ सतिगुरु सेवनि आपणा तिन॑ा विटहु हउ वारिआ॥५॥ – गुरमती भाव गुरमत राहीं सबद नूं समझिआं सूरमा है।

इह तां हरेक सिख ने ही सुणिआ है के "जा कउ हरि रंगु लागो इसु जुग महि सो कहीअत है सूरा॥ आतम जिणै सगल वसि ता कै जा का सतिगुरु पूरा॥१॥ – जिस नूं हरि दा रंग लगे भाव हरि दे गुण धारण हो जाण "हरि का नामु धिआइ कै होहु हरिआ भाई॥ उही इस जुग विच सूरमा है। जुग समझण लई वेखो "गुरबाणी विच जुग। उही सूरमा है जिसने आतम वस कर लिआ। जिसदीआं गिआन इंद्रीआं काबू विच हन। विकार काबू विच हन। सतिगुर (सचे दे गुण) पूरे हन। "सूखि अराधनु दूखि अराधनु बिसरै न काहू बेरा॥ नामु जपत कोटि सूर उजारा बिनसै भरमु अंधेरा॥१॥ – नाम (गुरमति गिआन दी सोझी) दुख विच, सुख विच जपत (पछाण) के सूरमा आपणे घट विच नाम दा उजिआरा/चानणा करदा है अगिआनता दे हनेरे नूं मिटाउंदा है। इही सूरमा मुकत है "सूरु मुकता ससी मुकता ब्रहम गिआनी अलिपाइ॥, "सत संतोखी सतिगुरु पूरा॥ गुर का सबदु मने सो सूरा॥ साची दरगह साचु निवासा मानै हुकमु रजाई हे॥

नाम बारे, वापार बारे, राज बारे लेख हन। बिनती है के उहनां नूं पड़्ह के विचार कीती जावे ता हीं अगे गल समझ लगे के राज जोग की है गुरमति विच। पातिस़ाह आखदे "जो इसु मारे सोई सूरा॥ जो इसु मारे सोई पूरा॥ जो इसु मारे तिसहि वडिआई॥ जो इसु मारे तिस का दुखु जाई॥१॥ ऐसा कोइ जि दुबिधा मारि गवावै॥ इसहि मारि राज जोगु कमावै॥१॥ – इस भाव दुबिधा नूं जो गुरमति गिआन तों प्रापत नाम (सोझी) नाल मार देवे भाव मुका देवे उही पूरा है, उही सूरमा है, उसे दा दुख जाणा ते इही सहिज जोग है। "जिन जानिआ सेई तरे से सूरे से बीर॥ नानक तिन बलिहारणै हरि जपि उतरे तीर॥२॥

गुरबाणी करम दी थां हुकम दी विचारधारा है। जिथे दुनिआवी धरम करम (कंम/किसे खास कारज नूं) कीतिआं मुकती दी गल करदे हन, उथे गुरमति हुकम, परमेसर दया, उसदा करम (सुहेली नज़र/नदर), भाणे दी विचारधारा है। गुरमति दा फुरमान है के कोई हीण, कोई चतुर, कोई मूरख जा कोई सूरमा नहीं है, जो हो रहिआ है उह सब भाणे विच ही हो रहिआ है। जो अकाल दा हुकम है उही किसे कमजोर दिखण वाले तों सूरमिआं वाले कंम करा लैंदा है "ना को चतुरु नाही को मूड़ा॥ ना को हीणु नाही को सूरा॥ जितु को लाइआ तित ही लागा॥ सो सेवकु नानक जिसु भागा॥", " न कोई सूरु न कोई हीणा सभ प्रगटी जोति तुम॑ारी॥५॥

हउमै कारण ही पाप पुंन दी, सुरग नरक दी ते मास दे तिआगी होण दी सोच रखदा। पाप पुंन बारे जानण लई वेखो "पाप पुंन (paap/punn)। सुरग ते नरक बारे गुरबाणी दा फुरमान विचारन लई वेखो "सुरग ते नरक (Swarg te Narak)। मास बारे गुरमति विचार समझण लई वेखो "मास खाणा (Eating Meat) अते झटका (Jhatka)। हउमै दा भरिआ अहंकार विच मनुख आप ही आपणे आप नूं वडा दानी, सूरमा, गिआनी, पंडत, देवता (देण वाला), दानी मंन लैंदा है, हउमै कारण ही बिना गिआन दे ही पातिस़ाही दावे करी जांदा। हउमै कारण ही मान अपमान, जस अपजस विच फसिआ। हउमै कारण ही डरदा वी बै अंदरों किउंके वडे वडे दावे ता कर लैंदा पर फेर अरदासां कर कर पूरे होण दी आस करदा। हउमै ही संसा (स़ंका) दा कारण है। "देव संसै गांठि न छूटै॥ काम क्रोध माइआ मद मतसर इन पंचहु मिलि लूटे॥१॥ रहाउ॥ हम बड कबि कुलीन हम पंडित हम जोगी संनिआसी॥ गिआनी गुनी सूर हम दाते इह बुधि कबहि न नासी॥२॥ कहु रविदास सभै नही समझसि भूलि परे जैसे बउरे॥ मोहि अधारु नामु नाराइन जीवन प्रान धन मोरे॥ – ते भगत रविदास जी आखदे सारे बउरे हन, मैं तां हुकम समझ के, नाम (हुकम दी सोझी) नूं आधार बणा लिआ है।

भाई सूरमा तां उही है जिसने पहिली जंग घट अंदर गिआन खड़ग नाल मन नाल लड़दिआं जित लई "सोई चतुरु सिआणा पंडितु सो सूरा सो दानां॥ साधसंगि जिनि हरि हरि जपिओ नानक सो परवाना॥। जिसने मन जित किआ उह तां जग जित लैंदा "आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु॥। जिस ने सीस (मैं/हउमै तिआग के) गुर (गुणां) नूं समरपित कर दिता। साध दा संग कीता। गुरमति साध किस नूं मंनदी जानण लई वेखो "संगत, साध संगत अते सति संगत

दसम बाणी विच वी दुरगा, गुरमति दी धारणी, गिआन खड़ग धारण कीती होई बुध (सुचजी गुणवंती मीरा) दी प्रतीक है जो दुरग (किले रूपी मन) विच वास करके दैतां/असुरां (विकारां) दा नास करदी है। "उगवै सूरु असुर संघारै॥ ऊचउ देखि सबदि बीचारै॥ ऊपरि आदि अंति तिहु लोइ॥ आपे करै कथै सुणै सोइ॥ – भाव दसम बाणी विच, सूरमां (खालसा/ नाम तों सोझी प्रापत कर चुका सूरमा) इहनां असुरां, राकस़स, हरिणाखस दुसट जो भिंन भिंन रूप विच प्रगट हुंदे उहनां नाल देवी (गुरमति दी धारणी बुध) दी लड़ाई दा वरणन कथा कहाणीआं दे रूप विच दरसाइआ गिआ है। साडा दोस़ है के असीं आदि बाणी नूं समझण विचारन तों पहिलां ही दसम बाणी नूं बिनां पड़्हे समझे ते विचारे आपणे आप नूं सिआणा मंन के बाणी ते किंतू परंतू करन लग पए। आपणा मन मारिआ नहीं ते दसम बाणी दा विरोध करन लग पए।

सो भाई बाणी नूं पड़्हो विचारो ते समझो। पहिली जंग अंदरली है। गुरमति वाला सूरमा बणन लई जग जितण लई आपणे मन नूं पहिलां जितणा है। गुरमति गिआन तों सोझी लैणी है। विकार काबू करने हन। असल विच असीं आप काबू नहीं कर सकदे नाम (सोझी) प्रापती नाल हो जाणे। इही गुरप्रसाद है। सरबलोह दी खड़ग चक लैणा माइआ नगरी विच भावें सूरमा समझिआ जावे पर दरगाह विच मन जितण वाले दी हाजरी होणी। बाणी पड़्हो, समझो अते विचारो।


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