Source: ਨਾਮ, ਜਪ ਅਤੇ ਨਾਮ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ ਕਿਵੇਂ ਹੁੰਦਾ?
नाम दे गुरबाणी विच जो अरथ सपस़ट हुंदा है उह है "गिआन तों प्रापत सोझी (awareness) अते इस दी प्रापती दी क्रिआ "हुकम भाव गुरप्रसाद राहीं होणी इस लई गुरमति विच जिथे वी इह स़बद आइआ है उह जां तां सोझी जां इस सोझी दी प्रापती दी क्रिआ हुकम बणदा है। कुझ वीर इसदा अरथ वाहिगुरू करदे हन ते इह इस लई सही नहीं बणदा किउंके बाणी विच कहिआ "तिन के नाम अनेक अनंत॥, "तेरे नाम अनेका रूप अनता कहणु न जाही तेरे गुण केते॥१॥ अते दसम बाणी विच पातस़ाह ने परमेसर नूं "नमसतं अनामं॥ कह के सिध करता के परमेसर (अकाल) हुकम तों बाहर है ते परमेसर नूं इक नाम नाल संबोधन नहीं कर सकदे। कोई अकाल आखदा, कोई परमेसर, कोई अलाह, कोई वाहिगुरू, कोई भगवान ते होर अनेको नाम नाल लोग संबोधन करदे हन।
कुझ वीर भैणा इसदे अरथ कुदरती निजाम/नीअम जां वरतारा वी करदे हन। इह वी सही नही है किउंके नाम नूं उह केवल संसारी पसारे वांग ही वेखदे हन भुलेखा तां पैंदा किउंके गुरबाणी विच पंकती लैंदे हन "किरतम नाम कथे तेरे जिहबा॥ सति नामु तेरा परा पूरबला॥ इसदे अरथ समझे नहीं। इहनां पंकतीआं दा भाव है के मेरी जिहबा (सोच) तेरे किरत (कंम) कीते होए कथे (कहिंदी) है पर सति (सच जिसदा नास नहीं हुंदा, सदीव रहिण वाला) तेरा नाम (सोझी/सुरत/हुकम) परा पूरबला है। गुरबाणी आखदी "जेता कीता तेता नाउ॥ पर नाल इह वी आखदी है नाम दे केवल संसारी अरथ नहीं हन इसनूं पदारथ कहि के वी संबोधन कीता गिआ है जिवें "प्रेम पदारथु नामु है भाई माइआ मोह बिनासु॥, "गुर गिआनु पदारथु नामु है हरि नामो देइ द्रिड़ाइ ॥। संसारी मनुखां दा धिआन उहनां दी सोच द्रिस़टमान पसारे तक ही सीमित हुंदी है। भुल जांदे हन जां विचार नहीं करदे के "भगता तै सैसारीआ जोड़ु कदे न आइआ॥, भगतां दा धिआन आतम खोज गुणां दी खोज वल रहिंदी ते संसारी हरेक वसतू नूं बाहर भालदे। विगिआन दे द्रिसटीकोण नाल गुरमति गिआन नूं वेखदे जिस नाल गुणां वल धिआन नहीं जांदा ते संसारी दिसण वाले पसारे निजाम/निअम वल वी सोच सीमित रहि जांदी है। इह तां वी हुंदा जे सति दे गुरमति अरथ ना पता होण। जग रचना, द्रिसटमान संसार नासवंत है झूठ है थिर नहीं रहिंदी। अरबां साल पहिलां नहीं सी, अगे नास हो जाणा। जो स्रिसटी दे नीअम धरती ते लागू होए दिसदे हन दूजे ग्रिहां ते लागू नहीं हुंदे ताही कहिआ "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति॥। नाम (सोझी/सुरत/हुकम) आदि तों अंत तक सदीव थिर है जिस विच कदे बदलाव नहीं होणा ताहीं सति/सच है। नाम सोझी इस लॲॳि वी है किउंके इह सोझी बुध लई बीज वांग है जिस नाल संतोख पैदा होणा। "नामु बीजु संतोखु सुहागा रखु गरीबी वेसु॥। भरम विच हन जे धिआन केवल संसारी, बाहरी है तां "सभ किछु घर महि बाहरि नाही॥ बाहरि टोलै सो भरमि भुलाही॥ गुरपरसादी जिनी अंतरि पाइआ सो अंतरि बाहरि सुहेला जीउ॥१॥
गुरबाणी विच वी परमेसर नूं कई किरतम अते संबोधक नामां नाल संबोधन कीता गिआ है। जिवें गुरबाणी आखदी "अलाह पाकं पाक है सक करउ जे दूसर होइ॥। उसदे नाम (सोझी/सुरत/हुकम) तों वांझी कोई थां नहीं है "विणु नावै नाही को थाउ॥। पूरी जप ते जाप बाणी विच परमेसर दे गुणां अते हुकम बारे समझाइआ ना के इक स़बद नूं ही नाम कहिआ। इस बारे अगे विसथार विच समझांगे के नाम असल विच है की। असल विच असीं नाम दे अरथ ही नहीं समझदे। नाम केवल किसे नूं पुकारन दा ज़रीआ मातर नहीं है। जदों कोई आखे जवाक वडा हो के नाम रोस़न करेगा जां किसे दा बड़ा नाम है तां उसदा अरथ इह नहीं के किसे दे नाम दे अखर वडे हो जाणे जां नाम दी तखती ते लाईटां लग जाणीआं। जे किसे दा जवाक काला होवे नाम गोरा रखण नाल गोरा नहीं हो जांदा। इह समझण वाली गल है। बाणी नूं मंतरां वांग पड़्हन दी थां जे समझण लई पड़्हिआ जावे विचारिआ जावे तां इसदी सोझी प्रापत होवे। अज सिखी विच उलझण पैदा कीती जा चुकी है ते कई आखदे "नानक नाम चड़्हदी कला तेरे भाणे सरबत दा भला किसे ने नहीं खोजिआ के इह बाणी किथे दरज है किसने कही ते कदों? जे नानक नाम है तां वाहिगुरू नाम किवें? की नानक तों बाद विस़राम है ते किते इह तां नहीं कहि रहे के नाम (सोझी) कारण चड़्हदी कला सरबत दा भला जां किते इह लोकां नूं गुमराह करन लई घड़ी कची बाणी है? किथे कची बाणी किथे गुरमति वाली बाणी वरती जा रही अज दे सिख नूं कोई पता नहीं। नानक पातिस़ाह तां आख रहे ने "नानकु वेचारा किआ कहै॥ सभु लोकु सलाहे एकसै॥ सिरु नानक लोका पाव है॥ बलिहारी जाउ जेते तेरे नाव है॥। जिहड़े वीर भैणां वाहिगुरू नूं नाम मंनदे हन उहनां नूं समझणा चाहीदा के वाहि गुरू दो स़बदां दा मेल है ते परमेसर दी सिफ़त है। वाहिगुरू स़बद दी वरतो पहिली वार भटां ने कीती ते गुरबाणी विच १४०२ पंने ते पहिली वार वाहिगुरू लिखिआ मिलदा। भटां तों पहिलां किसे भगत ने जां गुरू साहिब जी ने इस स़बद दी वरतो नहीं कीती पर नाम दे बिअंत गुण दसे। बाणी विच परमेसर दे गुणां दी सिफ़त होर कई प्रकार नाल होई है जिवें राम नाम, गोबिंद नाम, नाम जगदीस, हरि नाम, किरतम नाम आदी। गुरबाणी नाम बारे आखदी है
करमु होवै सतिगुरु मिलै बूझै बीचारा॥ नामु वखाणै सुणे नामु नामे बिउहारा॥९॥ – जे उसदी रजा होवे, उसदी मिहर होवे तां सति (सच) गुरु (गुण) अरथ सचे दे गुण मिलदे हन बूझ बीचार कीतिआं, गुर दी सेवा कीतिआं। फेर नाम (सोझी) दी विआखिआ होणी, नाम (सोझी) मिलनी ते नाम (सोझी) दा ही बिउहार (आचरण) होणा।
जपसि निरंजनु रचसि मना॥ काहे बोलहि जोगी कपटु घना॥१॥ – इह उपदेस नानक पातिस़ाह दुआरा दिता गिआ है। ओना अनुसार जोगी अखर बोलण या रटण नूं नाम मंनदा है। इह सरासर कपट है। बदकिसमती नाल इह रवैत सिखां ने भी अपणा लई। अगर अखर रटणा गुरमति ने कपट मंनिआ है फिर असीं इस कपट नूं कदो तिआगणा है? गुरमति वाला जोगी उह नहीं जो राम राम, अलाह अलाह, जां वाहिगुरू वाहिगुरू रटी जावे। बाणी विच तीजे पातिस़ाह दी बाणी दरज है, आखदे "सो जोगी जुगति सो पाए जिस नो गुरमुखि नामु परापति होइ॥ तिसु जोगी की नगरी सभु को वसै भेखी जोगु न होइ॥ नानक ऐसा विरला को जोगी जिसु घटि परगटु होइ॥ – नाम (सोझी) प्रापत होण वाली वसतू है गिआन दुआरा परगट हुंदी ते कोई विरला ही है जिस नूं इह प्रापत हुंदी है।
बार बार इक स़बद दा उचारण बहुत पहिलां तो ही लोक करदे रहे ने, कोई अलाह अलाह कोई राम राम, कोई हरि हरि बार बार रटण नूं जपणा आखदा। दसम बाणी विचों सनसाहर सुखमना सिखां ने बिनां विचारे हटा दिती। पड़न लई वेखो "संसाहर सुखमना (Sansahar Sukhmana) जिस विच दरज है "न रटन मै॥ न जटन मै॥ ाव परमेसर ना रटन विच है ते ना जटावां (केसां) विच है ना इहनां नाल प्रापत हुंदा, इही गल आदि बाणी विच दरज है "कबीर प्रीति इक सिउ कीए आन दुबिधा जाइ॥ भावै लांबे केस करु भावै घररि मुडाइ॥२५॥। खैर गल रटन दी चलदी सी, गुरबाणी विच दरज है।
राम राम सभु को कहै कहिऐ रामु न होइ॥ गुरपरसादी रामु मनि वसै ता फलु पावै कोइ॥१॥ अंतरि गोविंद जिसु लागै प्रीति॥ हरि तिसु कदे न वीसरै हरि हरि करहि सदा मनि चीति॥१॥ रहाउ॥ हिरदै जिन॑ कै कपटु वसै बाहरहु संत कहाहि॥ त्रिसना मूलि न चुकई अंति गए पछुताहि॥२॥ अनेक तीरथ जे जतन करै ता अंतर की हउमै कदे न जाइ॥ जिसु नर की दुबिधा न जाइ धरम राइ तिसु देइ सजाइ॥३॥ करमु होवै सोई जनु पाए गुरमुखि बूझै कोई॥ नानक विचहु हउमै मारे तां हरि भेटै सोई॥४॥४॥६॥ (रागु गूजरी महला ३, ४९१)
जगि हउमै मैलु दुखु पाइआ मलु लागी दूजै भाइ॥ मलु हउमै धोती किवै न उतरै जे सउ तीरथ नाइ॥ बहु बिधि करम कमावदे दूणी मलु लागी आइ॥ पड़िऐ मैलु न उतरै पूछहु गिआनीआ जाइ॥१॥ मन मेरे गुर सरणि आवै ता निरमलु होइ॥ मनमुख हरि हरि करि थके मैलु न सकी धोइ॥१॥ रहाउ॥ मनि मैलै भगति न होवई नामु न पाइआ जाइ॥ मनमुख मैले मैले मुए जासनि पति गवाइ॥ गुरपरसादी मनि वसै मलु हउमै जाइ समाइ॥ जिउ अंधेरै दीपकु बालीऐ तिउ गुर गिआनि अगिआनु तजाइ॥२॥ हम कीआ हम करहगे हम मूरख गावार॥ करणै वाला विसरिआ दूजै भाइ पिआरु॥ माइआ जेवडु दुखु नही सभि भवि थके संसारु॥ गुरमती सुखु पाईऐ सचु नामु उर धारि॥३॥ जिस नो मेले सो मिलै हउ तिसु बलिहारै जाउ॥ ए मन भगती रतिआ सचु बाणी निज थाउ॥ मनि रते जिहवा रती हरि गुण सचे गाउ॥ नानक नामु न वीसरै सचे माहि समाउ॥४॥३१॥६४॥(रागु सिरीरागु, म ३, ३७)
अज गुरबाणी विचों कुझ वी खोजणा बहुत आसान है। कई फोन ऐपस हन ज़िहनां नाल गुरबाणी विचों किसे स़बद बारे वी असानी नाल खोजिआ जा सकदा है। जे गुरबाणी दे अरथ गुरबाणी तों खोजे जाण, गुरमति विआकरण दा थोड़ा बहुत गिआन वी होवे तां समझणा वी सौखा हो जांदा है। नीचे पहिलां कुझ पंकतीआं हन गुरबाणी चों उहनां नूं वेखदे हां फेर विचार करांगे के नाम अते जप की है।
गुर गिआनु पदारथु नामु है हरि नामो देइ द्रिड़ाइ॥ – गुर गिआन पदारथ ( गुरबाणी विच जो गिआन है ) उह नाम है। "देखौ भाई गॵान की आई आंधी॥ सभै उडानी भ्रम की टाटी रहै न माइआ बांधी॥१॥ दुचिते की दुइ थूनि गिरानी मोह बलेडा टूटा॥ तिसना छानि परी धर ऊपरि दुरमति भांडा फूटा॥१॥ गिआन दी आंधी ने भरम दा नास करना। गिआन दी आंधी तो बाद जद भरम दा नास होणा फेर नाम (सोझी) दा अंम्रित जल वरना "आंधी पाछे जो जलु बरखै तिहि तेरा जनु भीनां॥ कहि कबीर मनि भइआ प्रगासा उदै भानु जब चीना ॥२॥४३॥"
प्रेम पदारथु नामु है भाई माइआ मोह बिनासु ॥ (म ५, रागु सोरठि, ६४०)
हरि हरि उतमु नामु है जिनि सिरिआ सभु कोइ जीउ ॥ (म ४, रागु सिरीरागु वणजारा, ८१)
पउड़ी॥ हरि का नामु निधानु है सेविऐ सुखु पाई॥ नामु निरंजनु उचरां पति सिउ घरि जांई॥ गुरमुखि बाणी नामु है नामु रिदै वसाई॥ मति पंखेरू वसि होइ सतिगुरू धिआईं॥ नानक आपि दइआलु होइ नामे लिव लाई॥४॥(म २, रागु सारंग, १२३९) – गुरमुखि लई पूरी बाणी ही नाम है। मन (अगिआनता/ विकार/दलिदर) नूं गिआन दे अंम्रित नाल हरिआ करदी है "सूके हरे कीए खिन माहे॥अंम्रित द्रिसटि संचि जीवाए॥१॥
"नामु निधानु जा के मन माहि॥ तिस कउ चिंता सुपनै नाहि॥३॥ – जे किसे वी प्रकार दी चिंता है तां फिर नाम (सोझी) दी प्रापती नहीं होई। नाम प्रापती नाल पता लग जांदा के सब हुकम विच हो रहिआ है। जो हो रहिआ भाणे विच है ते साडे वस नहीं है। नाम नाल भरोसा वध जांदा है। भरोसे नाल चिंता मुक जांदी है।
माहा रुती सभ तूं घड़ी मूरत वीचारा॥ तूं गणतै किनै न पाइओ सचे अलख अपारा॥ पड़िआ मूरखु आखीऐ जिसु लबु लोभु अहंकारा॥ नाउ पड़ीऐ नाउ बुझीऐ गुरमती वीचारा॥ गुरमती नामु धनु खटिआ भगती भरे भंडारा॥ निरमलु नामु मंनिआ दरि सचै सचिआरा॥ जिस दा जीउ पराणु है अंतरि जोति अपारा॥ सचा साहु इकु तूं होरु जगतु वणजारा॥६॥
"बिनु जिहवा जो जपै हिआइ॥ कोई जाणै कैसा नाउ ॥२॥ कथनी बदनी रहै निभरांति॥ सो बूझै होवै जिसु दाति ॥ – भाव: (परमेसर दा सरूप बिआन करना तां असंभव है, पर जे कोई मनुख विखावा छड के आपणे हिरदे विच उस दा नाम (गिआन/सोझी) जपदा (पछाणदा/विचारदा) रहे तां इह समझ लैंदा है कि उस परमेसर दा नाम (सोझी) जपण (प्रापत करन) विच आनंद किहो जिहा है। उह मनुख (चुंच-गिआनता दीआं गलां) कहिण बोलण वलों रुक जांदा है। इह उही समझ सकदा है जिसनूं परमेसर वलों इह दात मिली होवे। बाकी कई धरमां विच उची उची चीकां मार के सिर पटक के रब दा नाम बार बार रट के आखदे रब नूं जपदे (पछाणदे) पए हां जिवें गुरबाणी आखदी "कबीर मुलां मुनारे किआ चढहि सांई न बहरा होइ॥ जा कारनि तूं बांग देहि दिल ही भीतरि जोइ॥।
नाम धन
अगनि न दहै पवनु नही मगनै तसकरु नेरि न आवै॥ राम नाम धनु करि संचउनी सो धनु कत ही न जावै॥१॥ हमरा धनु माधउ गोबिंदु धरणीधरु इहै सार धनु कहीऐ॥ जो सुखु प्रभ गोबिंद की सेवा सो सुखु राजि न लहीऐ॥१॥ रहाउ॥ इसु धन कारणि सिव सनकादिक खोजत भए उदासी॥ मनि मुकंदु जिहबा नाराइनु परै न जम की फासी॥२॥ निज धनु गिआनु भगति गुरि दीनी तासु सुमति मनु लागा॥ जलत अंभ थंभि मनु धावत भरम बंधन भउ भागा॥३॥ कहै कबीरु मदन के माते हिरदै देखु बीचारी॥ तुम घरि लाख कोटि अस्व हसती हम घरि एकु मुरारी॥४॥१॥७॥५८॥(रागु गउड़ी, भगत कबीर जी, ३३६)
नाम धन दी परिभास़ा कबीर जी ने दिती है। जिहड़ा किते नहीं जांदा, कदे गवाचदा नहीं। इसनूं अग नहीं जला सकदी तसकर चोरी नहीं करदा। इह है गिआन। गोबिंद है परमेसर दा बिंद "सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई ॥।
नाम प्रापती किवें होणी ?
सतिगुरु सिख कउ नाम धनु देइ॥ गुर का सिखु वडभागी हे ॥
सतिगुरु (सचे दे गुण ते गुणां दे धारनी ) ने सिख नूं नाम धन देणा है, इह किसे साध दा कंन विच फूक मार के देण नाल नहीं मिलणा। गुर (गुणां) दा सिख वडभागी है जिसनुं इह मिलदा।
सबदि मुआ विचहु आपु गवाइ॥ सतिगुरु सेवे तिलु न तमाइ॥ निरभउ दाता सदा मनि होइ॥ सची बाणी पाए भागि कोइ॥१॥ गुण संग्रहु विचहु अउगुण जाहि॥ पूरे गुर कै सबदि समाहि॥१॥ रहाउ॥ गुणा का गाहकु होवै सो गुण जाणै॥ अंम्रित सबदि नामु वखाणै॥ साची बाणी सूचा होइ॥ गुण ते नामु परापति होइ॥२॥ गुण अमोलक पाए न जाहि॥ मनि निरमल साचै सबदि समाहि॥ से वडभागी जिन॑ नामु धिआइआ॥ सदा गुणदाता मंनि वसाइआ॥३॥ जो गुण संग्रहै तिन॑ बलिहारै जाउ॥ दरि साचै साचे गुण गाउ॥ आपे देवै सहजि सुभाइ॥ नानक कीमति कहणु न जाइ॥४॥२॥४१॥(म ३, रागु आसा, ३६१) – महाराज आखदे सबद दे दुआरा जो मर जावे (मैं मार देवे) आपा गवा देवे सतिगुर दी सेवा करे ("गुर की सेवा सबदु वीचारु॥) अते तिल समान वी तमो रोग ना होवे, जिस दे मन विच निर भउ दाता होवे, हुकम दी सोझी होवे, सची बाणी होवे भागां वाले कोल। गुणां दी विचार करके गुण संग्रह (कठे) करे। सबदु (हुकम) विच समाइआ होवे, गुणां दा वापारी होवे उसनूं गुणां दुआरा नाम (सोझी) दी प्रापती होणी। उही अंम्रित (सदीव रहण) वाले सबदु (हुकम) दी नाम (सोझी) नाल वखिआण कर सकदा है।
सिफति सालाहणु तेरा हुकमु रजाई॥ सो गिआनु धिआनु जो तुधु भाई॥ सोई जपु जो प्रभ जीउ भावै भाणै पूर गिआना जीउ॥१॥
पातस़ाह आखदे ने के नाम (हुकम) ने ही सारे आकास़ पाताल जीव जंत साजे ने। आह निचलीआं पंकतीआं तो सिध हुंदा के नाम हुकम है।
नाम के धारे सगले जंत॥ नाम के धारे खंड ब्रहमंड॥ नाम के धारे सिम्रिति बेद पुरान॥ नाम के धारे सुनन गिआन धिआन॥ नाम के धारे आगास पाताल॥ नाम के धारे सगल आकार॥ नाम के धारे पुरीआ सभ भवन॥ नाम कै संगि उधरे सुनि स्रवन॥करि किरपा जिसु आपनै नामि लाए॥ नानक चउथे पद महि सो जनु गति पाए॥५॥
"हरि का नामु किनै विरलै जाता॥ पूरे गुर कै सबदि पछाता॥ – सबद दी पछाण हुकम दी सोझी कोई विरला विचारदा।
"तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी॥ कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी ॥२७॥ – सारा संसार भरम दी, अगिआनता दी कामनावां दी नींद सुता पिआ है। ते जिसनूं परमेसर दा, हरि दा गिआन, तत गिआन प्रापत होणा उसने ही जागणा। इह इक सबद दी रटण नाल नहीं होणा। "नींद विआपिआ कामि संतापिआ मुखहु हरि हरि कहावै॥ बैसनो नामु करम हउ जुगता तुह कुटे किआ फलु पावै॥ – मन दी बेहोस़ी या अगिआनता वाली नींद, किसे अखर रटण नाल नहीं टुट सकदी। केवल ओचे दरजे दी लगातार होण वाली सबद वीचार ही, मन नूं इस गहिरी नींद विचों जगा सकदी है।
"सो निहकरमी जो सबदु बीचारे॥ अंतरि ततु गिआनि हउमै मारे॥ नामु पदारथु नउ निधि पाए त्रै गुण मेटि समावणिआ॥ – नाम (परमेसर दा गिआन ते हुकम दी सोझी) त्रै गुण माइआ खतम कर दिंदी है।
"नानक नामु वसै घट अंतरि जिसु देवै सो पावणिआ "नानक नामु वसै घट अंतरि आपे वेखि विखालणिआ "नानक नामु वसै घट अंतरि गुर किरपा ते पावणिआ
"गुरमुखि होवै राम नामु वखाणै आपि तरै कुल तारे॥ नानक नामु वसै घट अंतरि गुरमति मिले पिआरे॥ – राम नाम दा वखिआण किवें करना? सोझी दा वखिआन ही गुरमति दा विस़ा है, पूरी बाणी ही नाम है ताहीं आखिआ गुरबाणी मै हरि नाम समाइआ।
"पड़हि मनमुख परु बिधि नही जाना॥ नामु न बूझहि भरमि भुलाना॥ – नाम बूझण दा विस़ा है। हुकम दी सोझी बाणी नूं समझ के मिलनी। गिआन मिलदा अकाल/परमेसर दे गिणां दी विचार कीतिआं "गुण वीचारे गिआनी सोइ॥ गुण महि गिआनु परापति होइ॥ गुणदाता विरला संसारि॥ साची करणी गुर वीचारि॥ पर पड़ना समझणा औखा असीं आप खोजण दी जगह लोकां तों पुछदे हां के स़ोरटकट दसो,आसान तरीका दसो नाम प्रापती दा ते अगला वी कंन विच फूक मार दिंदा कुझ वी अगड़म बगड़म बोल दिंदा, इही साडी पहिली गलती है के असीं बाणी आप नहीं पड़दे ते विचारदे ते दूजिआं ते टेक रखदे हां आप समझण दी थां ते। बाणी आखदी "मानुख की टेक ब्रिथी सभ जानु॥ देवन कउ एकै भगवानु॥। नीचे विचारण लई कई प्रमाण दिते हन गुरबाणी विचों। इहनां ते विचार वी करांगे।
नानक की बेनतीआ करि किरपा दीजै नामु॥ हरि मेलहु सुआमी संगि प्रभ जिस का निहचल धाम॥१॥ (बारह माहा मांझ महला ५ घरु ४, ल१३३)
"राजा राम नामु मोरा ब्रहम गिआनु ॥१॥ – राम राजा है दरगाह दा रमिआ होइआ है परमेसर दे गुणां विच। इह दस़रथ दा पुतर नहीं परंतू घट घट विच वसण वाली जोत है। इसदा नामु (सोझी) ब्रहम दा गिआन है।
"राम नामु साधसंगि बीचारा – राम नाम (सोझी) दी विचार साध संगत नाल होणी। साध गुरमति उसनूं मनदी जिसने मन साध लिता होवे। साध बाहर नहीं हुंदे "ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ॥
"हउ वारी जीउ वारी सबदि सुहावणिआ॥ अंम्रित नामु सदा सुखदाता लगुरमती मंनि वसावणिआ॥
"बिनु गुर नामु न पाइआ जाइ॥ – बिनां परमेसर दे गुर (गुण) नूं उजागर कीते नाम (गुरमति गिआन तों सोझी) प्रापत नहीं कीता जा सकदा।
"गुरमुखि होवै सु इकसु सिउ लिव लाए॥ दूजा भरमु गुर सबदि जलाए॥ काइआ अंदरि वणजु करे वापारा नामु निधानु सचु पावणिआ॥६॥
"नावै जेवडु होरु धनु नाही कोइ॥ जिस नो बखसे साचा सोइ॥ पूरै सबदि मंनि वसाए॥ नानक नामि रते सुखु पाए॥ – नाम (गुरमति दी सोझी) धन बखस़े ते मिलणा जोर ला के नहीं लिआ जा सकदा।
"तेरीआ खाणी तेरीआ बाणी॥ बिनु नावै सभ भरमि भुलाणी॥ गुर सेवा ते हरि नामु पाइआ बिनु सतिगुर कोइ न पावणिआ ॥१॥ – गुर सेवा नाल नामु पाइआ जाणा ते "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ नूं आखिआ।
"एको नामु हुकमु है नानक सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ॥ – सति (परमेसर) गुर (गुण) ने नाम बुझाइआ (समझाइआ) गिआन दिता
"सतिगुरु मिलिआ जाणीऐ॥ जितु मिलिऐ नामु वखाणीऐ॥
"गुर सेवा ते हरि पाईऐ जा कउ नदरि करेइ॥ माणस ते देवते भए धिआइआ नामु हरे॥ हउमै मारि मिलाइअनु गुर कै सबदि तरे॥ नानक सहजि समाइअनु हरि आपणी क्रिपा करे॥
"चरण कमल जन का आधारो॥ आठ पहर राम नामु वापारो॥ सहज अनद गावहि गुण गोविंद प्रभ नानक सरब समाहिआ जीउ ॥४॥३६॥४३॥ – आठ पहिर नाम दा वापार किवें करना? गुरमति गिआन चरचा अते हुकम दी सोझी नाल।
"बिनु सतिगुर नाउ न पाईऐ बिनु नावै किआ सुआउ॥ "बिनु सतिगुर नामु न पाईऐ भाई बिनु नामै भरमु न जाई॥ "नामै ही ते सभु किछु होआ बिनु सतिगुर नामु न जापै॥ "नानक बिनु सतिगुर नाउ न पाईऐ जे सउ लोचै कोई॥ – नाम पदारथ मिलना सौखा?
"नानक भाग वडे तिना गुरमुखा जिन अंतरि नामु परगासि – जिनां गुरमुखां नूं गुरमति गिआन दा चानण हुंदा उहनां दे भाग वडे ने।
"मुकते सेई भालीअहि जि सचा नामु समालि॥ "निमख एक हरि नामु देइ मेरा मनु तनु सीतलु होइ – नाम (गिआन / हुकम दी सोझी) प्रापत होण ते मन तन सीतल हुंदा। निमख एक हरि नाम दे अरथ, भावें रती मातर ही हरि दा गिआन हरि दी सोझी बख़स़ दे जिस नाल मेरा मन अते तन दोवें सीतल होण।
"जिन कउ मसतकि लिखिआ तिन पाइआ हरि नामु॥
"जिउ भावै तिउ राखु तूं हरि नामु मिलै आचारु – नामु (गुरमति गिआन) तो मिले आचरण विच रहिणा हुकम विच रहिणा।
"जग महि लाहा एकु नामु पाईऐ गुर वीचारि – गुरबाणी गिआन दी प्रापती परमेसर दे गुर (गुणां) दी वीचार तो होणी। एक नाम भाव परमेसर दे हुकम नाल एका।
"पति सिउ लेखा निबड़ै राम नामु परगासि॥ "नामु पदारथु पाइआ लाभु सदा मनि होइ॥ "सहजे हरि नामु मनि सिआ सची कार कमाइ॥
"नाम रजादु आइआ कलि भीतरि बाहुड़ि जासी नागा॥ – नाम दी रजादु (सहिजादा) आउण ते अरथ सोझी मिलण ते कलपना दे युग विच। पर जे नाम (सोझी) नहीं लिआ तां इसनूं किरपा दा कपड़ा नहीं मिलेगा। "जैसी कलम वुड़ी है मसतकि तैसी जीअड़े पासि॥ जिस तरां दा हुकम इसदे होवेगा करते दा ओही वसतू इसनूं मिलेगी। कहु नानक प्राणी पहिलै पहरै हुकमि पइआ गरभासि॥१॥सिरीरागु पहरे (म: १) – ७५ गुर नानक देव जी फुरमा रहे ने कि जिंदगी दी स़ुरआत लई जीव गरभ विच आइआ।
कबीर सेवा कउ दुइ भले एकु संतु इकु रामु॥ रामु जु दाता मुकति को संतु जपावै नामु॥१६४॥ (१३७३)
जदों जीव मुकति नूं प्रापत हुंदा उह सवा लख विकारां नाल लड़ रिहा हुंदा। फ़िर जोति सबद विच समा जांदी। कबीर जी ने एक अते इक दोनो स़बद कठे वरते ने ते जे असल गल समझणी है ते इक अते एक दा फरक समझणा जरूरी है।
इक = जोति (अंदरला गुर/ आतमराम)
एक = इको जिहीआं जोतां ( सबद गुरू /परमेसर / हुकम), एका/एकता/ॲक मति होणा।
हर घट अंदरला राम वखरा विचर रिहा इस लई इक वरतिआ, संत समूह एक मती के हुंदे ने कलोन हुंदे इस लई एक वरतिआ।
गुरबाणी दा फुरमान है "वेदा महि नामु उतमु सो सुणहि नाही फिरहि जिउ बेतालिआ॥(रागु रामकली, म ३, ९१९) ते जे वाहि गुरू नाम होवे तां वेदां विच लिखिआ मिलणा चाहीदा। जे नाम नूं गिआन हुकम दी सोझी मंन लईए तां इह बाणी दे अरथ सही बणदे।
फेर वाहिगुरू वाहिगुरू रटण किथों आइआ? इह सनातन मति विच राम राम रटणा ते सूफी़ मत विच इक स़बद नूं बार बार रटण दा चलन है। पातस़ाह सपस़ट करदे ने।
ताप के सहे ते जो पै पाईऐ अताप नाथ तापना अनेक तन घाइल सहत हैं॥ जाप के कीए ते जो पै पायत अजाप देव पूदना सदीव तुहीं तुहीं उचरत हैं॥ (स्री दसम ग्रंथ साहिब जी, १५)
स़रीर नूं कस़ट दे के अगर अताप नाथ (पारब्रहम जो तिन लौक दे तापा तौ परे है) ओह नाथ मिलदा होवे जिस दे हुकम दी नथ हरि घट पाई होइ है तां किंने ही जखमी इनसान सरीर विच किंनां दरद भोगदे हन। एथे दसवे पातसाह “जोग मति” अते इसलाम दे “स़ीआ जो सरीरक कसट आपणे आप नूं दिंदे हन ओहनां वल इस़ारा मातर ग़ल केहि कि इहना नू मूरख दस रहे ने। जे सरीरक कसट देण नाल प्रमेसर अपणे मूल दे दरसन हुंदे होण तां एने गिआन दे ग्रंथ लिखण दी की लोड़ सी
“जाप के कीए ते जो पै पायत अजाप देव“
जाप दा अरथ वैसे समझणा हुंदा है पर आम परचार कीता जा रहिआ है माला फेरनी जां वाहिगुरू वाहिगुरू रटी जाणाἦराम राम..हरी हरीἦइह जाप नहीं तोता रटण हैἦउह प्रमेसर दी सोझी करवाउण वाला अजाप देव है जिवें साडे कोल गुरबाणी है जिस नुं समझ कि ओह अजप (सोझि) मिलनी है जो संसारी बुधी दी पहुंच तों वी परे है समझण तों परे अजाप है, अजपा जाप है उह।
सारी उमर किसे इक अखर दे रटण नाल अगर प्रमेसर मिलदा होवे तां “पूदना सदीव तुहीं तुहीं उचरत हैं‘” पूदना नामी जीव हमेस़ां तूं-ही, तूं-ही उचरदा है। फिर ते तोता रटण वालिआं तौ पेहला प्रमेसर पूदने नू मिलणा चाहीदा है, दसम पातस़ाह उदाहरण दे के ग़ल समझा रहे ने। इही गल आदि बाणी विच वी दसी है "रामु रामु करता सभु जगु फिरै रामु न पाइआ जाइ॥ सानूं आसेस है पहिचान करण दा। जप हुंदा पछाण करना "ऐसा गिआनु जपहु मन मेरे॥ होवहु चाकर साचे केरे॥१॥ ( रागु सूही महला १ घरु २, ७२८) नहीं तां जप ते जाप बाणी विच इको अखर बार बार लिखिआ होणा सी परमेसर दे गुणां दे वरणन दी थां। जे बाणी आखदी रामु रामु करन नाल राम नहीं मिलणा फेर वाहिगुरू वाहिगुरू करन नाल वाहिगुरू वी नहीं मिल सकदा। साडे विच कई सनातनी सिख बणे पर बिना बाणी पड़्हे समझे कई धारनावां नाल लै के आए।
"नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ॥२॥ (भगत कबीर जी, रागु सोरठ, ६५४)। कोई नाद वजा के परमेसर नूं पुकार रहिआ, कोई धूणी बाल के, कोई पुठा लटक के, कोई इक पैर ते खड़ा होके, कोई बेद पड़्ह पड़्ह के सोचदा रब मिल जाणा "जिनै बेद पठिओ सु बेदी कहाए॥। सबदी हुंदे जिहड़े राम राम अलाह अलाह करी जांदे, कई मौन धारण करके धिआन लौंदे। महाराज कहिंदे सबने जमां दे पटे लिखाए ने अरथ उहनां बार बार जनम लै के दुख भोगणे ने। इह सनातन मत है के बार बार परमेसर दा ना लैण ते परमेसर प्रापती हो जांदी। गुरमति इसनूं नहीं मंनदी। जिस नूं उची उची वाजां मार के राम राम, वाहिगुरू वाहिगुरू जां अलाह अलाह पुकारदे हों। तीरथां, मंदरा, गुरदुआरे विच लभदे हों उह तां दिल विच ही बैठा "कबीर मुलां मुनारे किआ चढहि सांई न बहरा होइ॥ जा कारनि तूं बांग देहि दिल ही भीतरि जोइ॥
सानूं नाम (गुरमति गिआन हुकम दी सोझी) नूं जाप के (पहिचान के) फेर जप (चेते) करके साचे दा चाकर बणना है।
"डूबे नरक धार मूड़्ह गिआन के बिना बिचार भावना बिहीन कैसे गिआन को बिचार हीं ॥१३॥८३॥
"गिआनी धिआनी बहु उपदेसी इहु जगु सगलो धंधा॥ कहि कबीर इक राम नाम बिनु इआ जगु माइआ अंधा॥ – कबीर जी आखदे राम दे नाम (सोझी) तों वांझा इह सारा संसार ही अंना है। अंना इथे अलंकार है जिसदा अरथ अखां तो अंना नहीं सोझी तों अंना होणा है। जिसने आपणे आप नूं राम (रमिआ होइआ) परवान नहीं कीता उसदा गिआन लैणा धिआन लौणा उपदेस़ सुणना गाउणा विअरथ है दुनिआ दिखावा धंधा मातर है।
सेवा की है?
तोता रटण नूं सेवा मंनदे ने कई वीर, पर बाणी आखदी "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ हउमै मारे करणी सारु ॥७॥(रागु गउड़ी, म १, २२३) बिनां विचार कीतिआं परमेसर दे गुण हुकम दी सोझी प्रापत नहीं हुंदी। ते कई आखदे ने परमेसर नूं पुकारण नाल उह खुस़ हुंदा। बाणी आखदी उह सच दे मारग ते चलण नाल खुस़ हुंदा। जे किसे वसतू नूं पुकारण नाल उह वसतू मिल जांदी फेर जवाक सकूल जा के पड़्हाई करन दी थां विगिआन विगिआन, गुरमुखी गुरमुखी, गणित गणित करन लग जाण। किसान सारे अनाज अनाज रटण लग जाण। इह सारीआं वसतूआं नाम तो छोटीआं हन, जे वाहि गुरू वाहि गुरू रटण नाल वाहि गुरू मिलदा है तां इह वी मिलणीआं चाहीदीआं। की उहनां नूं इक स़बद रटण नाल प्रापती हो सकदी फेर जे नहीं तां वाहिगुरू वाहिगुरू करन नाल परमेसर प्रापती किवें हो सकदी? असल गल इह है के गिआन नूं प्रापत करन समझण लई मिहनत लगदी। रटण सौखा। नाले जे लोकां नूं गिआन हो जावे हुकम दी सोझी हो जावे तां कईआं दी दुकान बंद हुंदी। कई तां वीर भुलेखे विच ने। किसे ने जो दसिआ लाई लग बस उही अगे दसी जांदे विचारन दी थां। मेरे वडे वडेरे आखदे सी के लाईलग मौमन तों खोजी काफ़र चंगा हुंदा है।
जपणा दा अरथ की है ? जपणा किवें है?
जप – हुंदा समझणा, गिआन लैणा, पहिचान करना।
सिमरन – याद करना, याद रखणा। चेते रखणा
धिआउणा – धिआन रखणा गिआन वल, सहजे उठदे बहिंदे गुरमति दी सोझी होणी हर वेले
अराधणा – समझण उपरंत बूझणा, समझे ते टिके रहिणा।
नाम (सचे दे हुकम दी सोझी अते सचे दे गिआन) नूं बूझणा है। इक सबद नूं बार बार बोलणा जा रटणा नाम नूं जपणा (पछाणना) नहीं है। इक सबद नूं बार बार बोलन वाला सबदी अखाउंदा ते पातस़ाह आखदे "नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ नादी (जिहड़े स़ंख वजा के), बेदी – जिहड़े केवल बेद पड़्ह रहे ने बूझ नहीं रहे, सबदी – राम राम अलाह अलाह जा किसे होर सबद नूं रटण वाले, मोनी – जिहड़े मौन धारन करके, परमेसर दा आगाज़ करदे ने। नाम बूझन दा जापण दा विस़ा है। नाम द्रिड़ करन दा भाव हुंदा है मन विच सचा निसचा करना के जो हो रिहा उह परमेसर भाणे विच है। करता उह है मै नहीं। कई वीर भैण राम राम जां अलाह अलाह बार बार बोलदे सी उहनां बारे गुरबाणी विच लिखिआ "रामु रामु करता सभु जगु फिरै रामु न पाइआ जाइ॥ अगमु अगोचरु अति वडा अतुलु न तुलिआ जाइ॥ ते जदों सिख वीर भैणां वाहिगुरू वाहिगुरू बार बार बोलदे ने तां आ के साडे तों सवाल पुछे जाणे के तुहाडी बाणी कह रही है के राम राम बोल के जे राम नहीं मिलणा ते वाहिगुरू वाहिगुरू बोल के वाहिगुरू किवें मिल जाणा। ते जे मंन लवो वाहिगुरू वाहिगुरू बोल के वाहिगुरू मिल जांदा होवे तां गडी गडी जां रोटी रोटी बार बार बोल के फेर गडी ते रोटी वी मिल जाणी। गिआन प्रापत कर सोझी लै के मिहनत करण दी की लोड़ है फेर? फेर इह स़बद "इसु काइआ अंदरि नामु नउ निधि पाईऐ गुर कै सबदि वीचारा॥४॥ लिखण दा मतलब नहीं रहि जांदा।
गुरबाणी अलंकार दी भास़ा है। जे इसनूं बूझिआ नहीं तां उलझण विच फस जावांगे। जिवें गुरबाणी आखदी "सूरज चंदु करहि उजीआरा॥ सभ महि पसरिआ ब्रहम पसारा॥२॥ कहु कबीर जानैगा सोइ॥ हिरदै रामु मुखि रामै होइ॥ अते "कबीर मेरी सिमरनी रसना ऊपरि रामु॥, "हम देखत जिनि सभु जगु लूटिआ॥ कहु कबीर मै राम कहि छूटिआ॥ जे किसे नूं इह समझ नां आवे तां कई राम राम दा रटण स़ुरू कर देणगे फेर जे इह पड़्हिआ के "हरि हरि उतमु नामु है जिनि सिरिआ सभु कोइ जीउ ॥ ते हरि हरि दा उचारन करन लग पैणा। कोई आख सकदा के नानक पातस़ाह तां नानक नानक उचारन नूं आख रहे ने किउंके बाणी आखदी "नानक नामु न वीसरै करमि सचै नीसाणु॥ ते गुर अमरदास पातिसाह वी आखदे "नानक नामु धिआईऐ सभना जीआ का आधारु॥ इस कारण गुरबाणी नूं पड़्ह के इसदे भेद समझणे पैणे के गुरबाणी मुताबक उचारण की है, जप की है, जाप की है, जिहवा की है, रसना दा अरथ की है नहीं तां उलझण वध जाणी।
काईआ पंज भूतक सरीर नही ?
"देही गुपत बिदेही दीसै॥ बाहरला स़रीर बदेही है जिसनूं कपड़/कपड़ा वी आखिआ। देही है घट/घर/हिरदा जिथे बुध वसदी मन रहिंदा। काइआ निराकारी सरीर नूं लिखीआ जिस दे अंदिर त्रै गुण माईआ, तिन लौक जिस दे अंदिर ने। नामु मिलणा है जदो नवा खजाना गिआन दा ता भरम (आगिआनता) दा परदा चुकिआ जाणा। प्रापत होण ते गुर (गिआन) दी, गुरबाणी दी स़बद विचार चो पाउणा है नामु ( गिआन /हुकम दी सोझी ) अपने मूल आतम सरूप दी पड़ के, सुण के, विचार के जो सानू रस ( गिआन ) दा मिलणा।
कहि कबीर निरधनु है सोई॥ जा के हिरदै नामु न होई॥४॥८॥ (भगत कबीर जी, रागु भैरउ, ११५९)
किंना धन कठा कर लिआ। सोना किंना कठा कीता जा दान कीता इह सब माइआ है इस लई गुरमति विच इहनां दा मोल नहीं। भगत जी आखदे उह निरधनु है जिसने नाम (गुरमति गिआन ते हुकम दी सोझी) नहीं प्रापत कीती।
गुरमुखि सासत्र सिम्रिति बेद॥ गुरमुखि पावै घटि घटि भेद॥ गुरमुखि वैर विरोध गवावै॥ गुरमुखि सगली गणत मिटावै॥ गुरमुखि राम नाम रंगि राता॥ नानक गुरमुखि खसमु पछाता॥३७॥ बिनु गुर भरमै आवै जाइ॥
गुरमुखि नूं आदेस़ है वैर विरोध मिटाण दा। गुरमुखि ने सारिआ नाल प्रेम वधाणा सारिआं विच उस परमेसर दी एक जोत वेखणी । गुरमुखि ने आतम राम हरि दे हुकम दे विच रंगणा। सिर तली (तल) ते रख के प्रेमा भगती विच लीन होणा । परमेसर दा गुर (गुण) समझण वाला ही मोख दुआर दा हकदार है नहीं तां फेर जम के पटे ते जुगां दी चाकरी जनम मरण दे गेड़ चली जाणे।
सतिगुरु सहजै दा खेतु है जिस नो लाए भाउ॥ नाउ बीजे नाउ उगवै नामे रहै समाइ॥ हउमै एहो बीजु है सहसा गइआ विलाइ॥ ना किछु बीजे न उगवै जो बखसे सो खाइ॥ अंभै सेती अंभु रलिआ बहुड़ि न निकसिआ जाइ॥ नानक गुरमुखि चलतु है वेखहु लोका आइ॥ लोकु कि वेखै बपुड़ा जिस नो सोझी नाहि॥ जिसु वेखाले सो वेखै जिसु वसिआ मन माहि॥१॥ (म ३, रागु रामकली, ९४७)- नाउ अरथ है नाम।
सहज भावना हुकम विच चलणा मै तिआगण बारे पातस़ाह दस ॲहे ने। सहज ऐसा खेत है जिस विच नाउ (नाम = गिआन, हुकम नूं बूझण दा गिआन) बीजीए ता गिआन होर वध जांदा। जे किसे नूं सोझी परमेसर आप देवे उसनूं ही इह गुर (गुण) मिलणा ।
आखा जीवा विसरै मरि जाउ॥ आखणि अउखा साचा नाउ॥ साचे नाम की लागै भूख॥ उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख॥१॥ सो किउ विसरै मेरी माइ॥ साचा साहिबु साचै नाइ॥१॥ रहाउ॥ साचे नाम की तिलु वडिआई॥ आखि थके कीमति नही पाई॥ जे सभि मिलि कै आखण पाहि॥ वडा न होवै घाटि न जाइ॥ (म १, सो दर, ९) – सचे नाम दी तिल समान वी वडिआई करन दी साडी समरथता नहीं है, आख आख थक जाणा पर इसदी कीमत नहीं पैणी। जे सारे मिल के वी सिफत करन ते इसने वडा नहीं होणा ते ना सिफत करन नाल छोटा नहीं हो जाणा।
वाहिगुरू
वाहिगुरू गुरू दी सिफत है जिहड़े इसनूं नाम समझ के भलेखा खा रहे ने उहनां नूं सवाल के पातस़ाह ने किउं किहा "आखणि अउखा साचा नाउ। नाम = गिआन पदारथु "गुर गिआनु पदारथु नामु है हरि नामो देइ द्रिड़ाइ। गिआन पदारथ परापत करना औखा है, मैं छडणी पैणी, सची गिआन दी गल करनी बहुत औखी है। लोक गल पैण नूं आउंदे ने, बोल चाल बंद कर दिंदे ने, गलत बोलदे ने। पर सच दी गल बोलण वाला ही दरगाह वलों जिओंदा हां, जे सच दी गल ना करीए तां दरगाह विचों बाहर हुंदे हां, दरगाह वालिआं वासते नाम विहूणे मरिआ होए हुंदे ने।
कई आखदे "वाहिगुरू गुर मंत्र है जपि हउमै खोई॥ ते जपण दा अरथ रटण कर लैंदे हन। गुरबाणी दा फुरमान है "अउखध मंत्र तंत सभि छारु॥ करणैहारु रिदे महि धारु ॥३॥ ( म ५, रागु गउड़ी, १९६)
बहुतिआं कोल तां टाईम नहीं गुरू दी गल सुणन दा, बहुते इस भरम विच ने की बस जो ओहो सोचदे उही सच है, बहुते कंमां कारा विच विअसत ने , बाकीआं लई खाणा पीणा सोणा मर जाणा ही ज़िंदगी है।
आइओ सुनन पड़न को बाणी नाम विसार विरथा जनम प्रानी॥
भई परापति मानुख देहुरीआ गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ
ए सरीरा मेरिआ इसु जग महि आइ कै किआ तुधु करम कमाइआ॥
पेटु भरिओ पसूआ जिउ सोइओ मनुखु जनमु है हारिओ ॥
चले थे हरि मिलन को विचे अटकिउ चित॥
इस पौड़ी ते जो नर चुके आए जाए दुख पाईदा॥
सच सुणके अज़ कोई राजी नही इह गल गुरू ने तां कही सी
पर मै अजमा वी लई आ, इह गला पड़्ह के कईआं नूं माड़ा लगणा पर जदों तक हंकार है राह सुझ ही नहीं सकदी।
सतिगुरु सेवै सो जनु बूझै॥ हउमै मारे तां दरु सूझै ॥
हउमै बूझै तां दर सूझै ॥
गिआन विहूणा कथि कथि लूझै॥
हंकार करके ही जनम होइआ है। हंकार करके ही जूनां विच धके खा रिहा हंकार करके ही सच नही सुणदा मंनदा।
सोई गिआनी जि सिमरै एक॥ सो धनवंता जिसु बुधि बिबेक॥
बुध दा बिबेक रखणा सी। धनवान ओही आ जिसदे कोल नाम गिआनु है पर मास, किसे दे हथ दी बणी रोटी छड के बिबेक मंनी फिरदे ने।
गिआनीआ का धनु नामु है सहजि करहि वापारु॥
गिआनीआ (gurmukha) दा धन वी नाम (gyan) ही हुंदा है। ते गुरमुख उसी गिआन दा वापार करदे ने। गुरमुख माया पिछे नहीं भजदे गुरमुखां नूं सिरफ नाम (gyan) नाल ही मतलब हुंदां है। सोझी ते हुकम ते भरोसा हुंदा है।
गोंड महला ५॥ नामु निरंजनु नीरि नराइण॥ रसना सिमरत पाप बिलाइण॥१॥ रहाउ॥ नाराइण सभ माहि निवास॥ नाराइण घटि घटि परगास॥ नाराइण कहते नरकि न जाहि॥ नाराइण सेवि सगल फल पाहि॥१॥ नाराइण मन माहि अधार॥ नाराइण बोहिथ संसार॥ नाराइण कहत जमु भागि पलाइण॥ नाराइण दंत भाने डाइण॥२॥ नाराइण सद सद बखसिंद॥ नाराइण कीने सूख अनंद॥ नाराइण प्रगट कीनो परताप॥ नाराइण संत को माई बाप॥३॥ नाराइण साधसंगि नराइण॥ बारं बार नराइण गाइण॥ बसतु अगोचर गुर मिलि लही॥ नाराइण ओट नानक दास गही॥४॥१७॥१९॥ (म ५, ८६८)
गिआन हीणं अगिआन पूजा॥ अंध वरतावा भाउ दूजा॥२२॥ गुर बिनु गिआनु धरम बिनु धिआनु॥ सच बिनु साखी मूलो न बाकी॥२३॥ माणू घलै उठी चलै॥ सादु नाही इवेही गलै
परमेस़र दा कोई वी नाम नही हुंदा, जाप साहिब विच परमेसर नूं अनामं दसिआ गिआ है, नाम दा अरथ है गिआन तों मिली सोझी
कहु रे पंडीआ कउन पवीता॥ ऐसा गिआनु जपहु मेरे मीता ॥१॥ रहाउ ॥ गउड़ी (भ. कबीर)
ऐसा गिआनु पदारथु नामु ॥ गुरमुखि पावसि रसि रसि मानु ॥१॥ रहाउ ॥ बिलावलु (म: १)
गुरबाणी दे गिआन नूं समझना ते मंनणा ही नाम जपणा हुंदा है।
गुर परसादी वेखु तू हरि मंदरु तेरै नालि॥ हरि मंदरु सबदे खोजीऐ हरि नामो लेहु सम्हालि ॥१॥ मन मेरे सबदि रपै रंगु होइ ॥सची भगति सचा हरि मंदरु प्रगटी साची सोइ ॥१॥ रहाउ ॥ हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ ॥ मनमुख मूलु न जाणनी माणसि हरि मंदरु न होइ ॥२॥ हरि मंदरु हरि जीउ साजिआ रखिआ हुकमि सवारि ॥
हरि कौण है ? हरि मंदरि की है ? पातस़ाह दस रहे ने हरि घट विच ही है। हरि गिआन पदारथ नाल परगट होणा । मनमुख नूं इह समझ नहीं आणी । "घट घट मै हरि जू बसै संतन कहिओ पुकारि॥ कहु नानक तिह भजु मना भउ निधि उतरहि पारि॥१२॥
गिआन खड़ग उह स़सतर है जो कोई खोह नहीं सकदा। इह स़सतर हर जंग जित सकदा है। मन नूं मार सकदा है मन ते जित प्रापत कर सकदा है। इस नाल ही मन नूं मारना है ते भगती स़ुरू होणी "मन मारे बिनु भगति न होई ॥२॥(भगत कबीर जी, ३२९)
तसकर पंच सबदि संघारे॥ गिआन खड़गु लै मन सिउ लूझै मनसा मनहि समाई हे ॥३॥
हरि हरि नामु जिनी आराधिआ तिन के दुख पाप निवारे॥ सतिगुरि गिआन खड़गु हथि दीना जमकंकर मारि बिदारे॥
गिआन खड़गु करि किरपा दीना दूत मारे करि धाई हे॥९॥
गिआन खड़ग पंच दूत संघारे गुरमति जागै सोइ॥
गिआन की है ?
सुणिऐ सतु संतोखु गिआनु ॥
गिआन महारसु भोगवै बाहुड़ि भूख न होइ ॥
गुर गिआनु प्रचंडु बलाइआ अगिआनु अंधेरा जाइ ॥२॥
"साचे नाम की लागै भूख॥ – इस भूख दे चलदिआं "उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥ – गिआन दी भूख कारण ही दूख लगदे ने मन नूं ता हीं आखिआ "ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन॥। इस गिआन ने ही मन नूं बंन के रखणा विकारां तो "गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥
गिआन विहूणी पिर मुतीआ पिरमु न पाइआ जाइ ॥
अगिआन मती अंधेरु है बिनु पिर देखे भुख न जाइ ॥
मनि मुखि सूचे जाणीअहि गुरमुखि जिना गिआनु ॥४॥
गिआन पदारथु पाईऐ त्रिभवण सोझी होइ ॥
गिआन पदारथु खोइआ ठगिआ मुठा जाइ ॥१॥
गुर बिनु गिआनु न पाईऐ बिखिआ दूजा सादु ॥
गिआनी कैसा होवे ?
प्रणवति नानक गिआनी कैसा होइ॥ आपु पछाणै बूझै सोइ ॥
गुर परसादि करे बीचारु॥ सो गिआनी दरगह परवाणु॥४॥३०॥
जिउ अंधेरै दीपकु बालीऐ तिउ गुर गिआनि अगिआनु तजाइ॥२॥
गिआनीआ का धनु नामु है सहजि करहि वापारु॥
गिआनीआ का धनु नामु है सद ही रहै समाइ॥
गिआनी गिआनु कमावहि॥
साधिक सिध धिआवहि धिआनी॥
गिआन किसनूं मिलना है ?
जिन कउ आपि दइआलु होइ तिन उपजै मनि गिआनु॥
एक जोति एका मिली किंबा होइ महोइ॥ जितु घटि नामु न ऊपजै फूटि मरै जनु सोइ॥१॥ – नाम (सोझी) घट (हिरदे) विच उपजदा है गिआन तों। सोझी दा प्रकास़ हुंदा गिआन प्रापती नाल, हुकम मंनण नाल, गुणां दी विचार नाल।
भाई रे गुर बिनु गिआनु न होइ ॥
उपजै सहजु गिआन मति जागै ॥
गुर गिआन अंजनु सचु नेत्री पाइआ॥ अंतरि चानणु अगिआनु अंधेरु गवाइआ ॥
आपु बीचारे सु गिआनी होई ॥१॥ रहाउ ॥
मनमुखि सूता माइआ मोहि पिआरि ॥ गुरमुखि जागे गुण गिआन बीचारि ॥
आठ पहर आराधीऐ पूरन सतिगुर गिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
गिआनी बूझहि सहजि सुभाए ॥५॥
कईआं नूं इह नहीं पता के कुझ धिड़िआं ने कुझ समे पहिलां मुहिम छेड़ी होई सी भगत बाणी नूं ग्रंथ जो हटौण दी। जिसनूं गुरू घर दे प्रेमीआं ने सिरे नहीं चड़न दिता।
गुरमुखि दरगह मंनीअहि हरि आपि लए गलि लाइ॥२॥ गुरमुखा नो पंथु परगटा दरि ठाक न कोई पाइ॥ हरि नामु सलाहनि नामु मनि नामि रहनि लिव लाइ॥ अनहद धुनी दरि वजदे दरि सचै सोभा पाइ॥३॥ जिनी गुरमुखि नामु सलाहिआ तिना सभ को कहै साबासि॥ तिन की संगति देहि प्रभ मै जाचिक की अरदासि॥ नानक भाग वडे तिना गुरमुखा जिन अंतरि नामु परगासि॥४॥३३॥३१॥६॥७०॥
पड़हि मनमुख परु बिधि नही जाना॥ नामु न बूझहि भरमि भुलाना॥(रागु मारू, म १, १०३२)
नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा अते किस ने करवाउणा?
अज कई जथेबंदीआं आपणे आप नूं गुरू तों उपर समझ के नाम द्रिड़्ह करवाउण दा दाअवा करदीआं हन अते भोले भाले सिखां दी सरदा दा मज़ाक बणा छडदीआं हन। नाम द्रिड़्ह करन बारे गुरबाणी दीआं कुझ पंकतीआं दी विचार करदे हां
गुरि पूरै हरि नामु द्रिड़ाइआ हरि भगता अतुटु भंडारु॥१॥ 28
किरपा करे गुरु पाईऐ हरि नामो देइ द्रिड़ाइ ॥33
बिनु नावै जीवणु ना थीऐ मेरे सतिगुर नामु द्रिड़ाइ ॥१॥ रहाउ ॥40
गुरु नामु द्रिड़ाए रंग सिउ हउ सतिगुर कै बलि जाउ ॥40
गुरि पूरै नामु द्रिड़ाइआ हरि मिलिआ हरि प्रभ नाउ ॥१॥ रहाउ ॥ 82
जन नानक कउ हरि किरपा धारी मति गुरमति नामु द्रिड़ावै ॥४॥१२॥२६॥६४॥ 172
अनदिनु भगति हरि नामु द्रिड़ाइआ ॥१॥ रहाउ ॥230
हरि नामु द्रिड़ावहि हरि नामु सुणावहि हरि नामे जगु निसतारिआ ॥ 311
गुरि हरि हरि नामु मोहि मंत्रु द्रिड़ाइआ ॥371
गुरि पूरै हरि नामु द्रिड़ाइआ ॥ 386
नाम द्रिड़ करवाउणा गुर (गुणां) ने, नाम प्रदान करना गुर ने। नाम द्रिड़ होणा सचे दे गुणां दी विचार करके, गुरबाणी नूं समझ के। नाम सोझी है, हुकम बूझ के सुख मिलणा। गुरमति गिआन ते भरोसा, हुकम ते भरोसा होण ते नाम (सोझी) द्रिड़ होणी।
नाम (गिआन) बूझण दा विस़ा है।
राम राम सभु को कहै कहिऐ रामु न होइ॥ गुरपरसादी रामु मनि वसै ता फलु पावै कोइ॥१॥ अंतरि गोविंद जिसु लागै प्रीति॥ हरि तिसु कदे न वीसरै हरि हरि करहि सदा मनि चीति॥१॥ रहाउ॥ हिरदै जिन॑ कै कपटु वसै बाहरहु संत कहाहि॥ त्रिसना मूलि न चुकई अंति गए पछुताहि॥२॥ अनेक तीरथ जे जतन करै ता अंतर की हउमै कदे न जाइ॥ जिसु नर की दुबिधा न जाइ धरम राइ तिसु देइ सजाइ॥३॥ करमु होवै सोई जनु पाए गुरमुखि बूझै कोई॥ नानक विचहु हउमै मारे तां हरि भेटै सोई॥४॥४॥६॥(रागु गूजरी, म ३, ४९१) केते कहहि वखाण कहि कहि जावणा॥ वेद कहहि वखिआण अंतु न पावणा॥ पड़िऐ नाही भेदु बुझिऐ पावणा॥ खटु दरसन कै भेखि किसै सचि समावणा॥ सचा पुरखु अलखु सबदि सुहावणा॥ मंने नाउ बिसंख दरगह पावणा॥ खालक कउ आदेसु ढाढी गावणा॥ नानक जुगु जुगु एकु मंनि वसावणा॥२१॥(रागु माझ, म १, १४८)
आवन आए स्रिसटि महि बिनु बूझे पसु ढोर॥ नानक गुरमुखि सो बुझै जा कै भाग मथोर ॥१॥(राग गउड़ी, म ५, २५१)
गुरमुखि नामु धिआईऐ मनमुखि बूझ न पाइ॥(म ३, रागु सिरीरागु, ६६)
जिनि गुरमुखि नामु न बूझिआ मरि जनमै आवै जाइ ॥१॥ (म १, सिरीरागु, १६)
गुरमुखि नामु धिआईऐ बूझै वीचारा॥ (म ३, रागु आसा, ४२४)
हरि नामु धिआए मंनि वसाए बूझै गुर बीचारा ॥(म ३, रागु वडहंसु, ५६८)
राम नाम की गति कोइ न बूझै गुरमति रिदै समाई॥ (म ३, रागु सोरठि, ६०२)
नामु न बूझहि भरमि भुलाना॥ (म १, रागु मारू, १०३२)
अंम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो॥ जे को खावै जे को भुंचै तिस का होइ उधारो॥ – गुरबाणी विचो नित पड़्हदे हां के ठाकुर दा नाम (गिआन/ सोझी) अंम्रित है ना मरन वाली है जो सबसु (हर वसतू हर जी) दा आधार है। जे को खावे भाव जे को ग्रहण करे किउंके "ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन॥ है, जिवें सरीर दा भोजन दाल रोटी मास मछी है, गिआनी दा, मन दा भोजन गिआन है। जे को भुंचे, भुंचे दा अरथ है भोग करना छकणा जिसदा अरथ बणदा ग्रहण करना समझणा, धारण करना विचार करना। गिआन नूं भुंचण दा तरीका विचार हुंदा है। ते इस भुंच नाल ही भोग नाल ही उधार होणा। "अंम्रित नामु सद भुंचीऐ गुरमुखि कार कमाइ॥
सतिगुर नामु एक लिव मनि जपै दि्रड़्हु तिन्ह जन दुख पापु कहु कत होवै जीउ ॥
बेद पड़हि हरि नामु न बूझहि॥ माइआ कारणि पड़ि पड़ि लूझहि॥ अंतरि मैलु अगिआनी अंधा किउ करि दुतरु तरीजै हे॥१४॥ बेद बाद सभि आखि वखाणहि॥ न अंतरु भीजै न सबदु पछाणहि॥ पुंनु पापु सभु बेदि द्रिड़ाइआ गुरमुखि अंम्रितु पीजै हे॥१५॥(म ३, रागु मारू, १०५०)
हरि मंदर महि नामु निधानु है ना बूझहि मुगध गवार॥ (म ३, रागु प्रभाती, १३४६) अते हरि मंदर की है " गुरपरसादी वेखु तू हरि मंदरु तेरै नालि॥ हरि मंदरु सबदे खोजीऐ हरि नामो लेहु सम॑ालि॥१॥ मन मेरे सबदि रपै रंगु होइ॥ सची भगति सचा हरि मंदरु प्रगटी साची सोइ॥१॥ रहाउ॥ हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ॥मनमुख मूलु न जाणनी माणसि हरि मंदरु न होइ॥२॥ हरि मंदरु हरि जीउ साजिआ रखिआ हुकमि सवारि॥ धुरि लेखु लिखिआ सु कमावणा कोइ न मेटणहारु॥३॥ (म ३, रागु प्रभाती, १३४६)"
इक स़बद नूं बार बार बोलण नूं जप मंनण वाले वीरां नूं सवाल के इह निचलीआं पंकतीआं विच की मुकंद मुकंद बोलण नूं कहिआ जा रहिआ है?
ॴ सतिगुर प्रसादि॥ मुकंद मुकंद जपहु संसार॥ बिनु मुकंद तनु होइ अउहार॥ सोई मुकंदु मुकति का दाता॥ सोई मुकंदु हमरा पित माता॥१॥ जीवत मुकंदे मरत मुकंदे॥ ता के सेवक कउ सदा अनंदे॥१॥ रहाउ॥ मुकंद मुकंद हमारे प्रानं॥ जपि मुकंद मसतकि नीसानं॥ सेव मुकंद करै बैरागी॥ सोई मुकंदु दुरबल धनु लाधी॥२॥ एकु मुकंदु करै उपकारु॥ हमरा कहा करै संसारु॥ मेटी जाति हूए दरबारि॥ तुही मुकंद जोग जुग तारि॥३॥ उपजिओ गिआनु हूआ परगास॥ करि किरपा लीने कीट दास॥ कहु रविदास अब त्रिसना चूकी॥ जपि मुकंद सेवा ताहू की॥४॥१॥(रागु गोंड, बाणी रविदास जीउ की घरु २, ८७५)
अनभउ नेजा नामु टेक जितु भगत अघाणे॥
नेजा नाम नीसाणु सतिगुर सबदि सवारिअउ ॥१॥
गुरमति गिआन तों प्रापत सोझी दा अनुभव होणा जीव दे मन दा मनु (मंन) जाणा, हिरदे ते गिआन दा रंग लग जाणा निस़ान बण जाणा नामु दी टेक है। इस गिआन तों सोझी नाल सवारिआ जाणा।
सो भाई गुरमति गिआन तो सोझी लवो जे नाम प्रापती दी इछा है, गुरबाणी ब्रहम दा गिआन है ब्रहम हिरदे/घट/घर विच वसदा बाहरले भोजन दा इस नाल कोई रिस़ता नहीं है "ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन॥।
सभ किछु घर महि बाहरि नाही॥ बाहरि टोलै सो भरमि भुलाही॥ गुरपरसादी जिनी अंतरि पाइआ सो अंतरि बाहरि सुहेला जीउ॥१॥
एहु अहेरा कीनो दानु॥ नानक कै घरि केवल नामु ॥४॥४॥
नानक पातिस़ाह ने सानूं इही नाम (सोझी) दा गिआन बखस़िआ है। नानक दे घर केवल नाम है माइआ मंगो कुझ होर मंगो देवे ना देवे, नाम मंगण ते मिल जांदा।
कई वीर भैण सरीर नूं कस़ट दे के नाम प्रापती जां मुकती दा मारग खोजदे ने भुलेखे विच जिवें कई मतां विच समझिआ जांदा है के सरीर नूं कस़ट दितिआं परमेसर ने दया करनी पर ना परमेसर सरीर नूं कस़ट दितिआं काबू हुंदा ना धोखे नाल। गुरमति आदेस़ है "कांइआ साधै उरध तपु करै विचहु हउमै न जाइ॥ अधिआतम करम जे करे नामु न कब ही पाइ॥। गुरमति मंनदी है के हुकम विच मनुखा जनम मिलिआ इह दुरलब है इसनूं विअरथ नहीं गवाउणा "माणस जनमु दुलभु है जग महि खटिआ आइ॥ पूरै भागि सतिगुरु मिलै हरि नामु धिआइ ॥६॥" जे भाग होण तां सचे दे गुण प्रापत होणे गिआन तों। गिआन खंड विच उतरना ही पैणा सोझी प्रापत करन लई केवल लीड़े पा के, बाणी गा के, सुण के मंतरां वांग पड़्ह के, चंगा आचरण रख के गल नहीं बणनी "आचारी नही जीतिआ जाइ॥ पाठ पड़ै नही कीमति पाइ॥ असट दसी चहु भेदु न पाइआ॥ नानक सतिगुरि ब्रहमु दिखाइआ॥।
जपु तपु संजमु होहि जब राखे कमलु बिगसै मधु आस्रमाई ॥२॥ - इस पंकती विच दसिआ जपु किदा होहि (होवे)
"जपु तपु संजमु साधीऐ तीरथि कीचै वासु॥ - तीरथ की है "तीरथि नावण जाउ तीरथु नामु है॥ तीरथ सोझी है।
सोई जपु जो प्रभ जीउ भावै भाणै पूर गिआना जीउ ॥१॥
अंम्रित नामु जपउ जपु रसना ॥
गुर दीखिआ ले जपु तपु कमाहि ॥
राम नाम जपु हिरदै जापै मुख ते सगल सुनावै ॥२॥
ऐ जी जपु तपु संजमु सचु अधार॥
जपु तपु संजमु सभु गुर ते होवै हिरदै नामु वसाई॥
नाम दा सरीर दे भोजन नाल की रिस़ता है इह समझण लई मास बारे पड़ो।
अगे होर विचारण जोग जपु वाले सबद। इहनां नूं समझणा ते बूझणा है
गुर कै सबदि वीचारि अनदिनु हरि जपु जापणा॥
आपे नाउ जपाइदा पिआरा आपे ही जपु जापै ॥
जपु तपु सभु इहु सबदु है सारु ॥
नाहिन गुनु नाहिन कछु जपु तपु कउनु करमु अब कीजै॥ नानक हारि परिओ सरनागति अभै दानु प्रभ दीजै॥
जपु तप संजम वरत करे पूजा मनमुख रोगु न जाई॥
हरि हरि जपु जपीऐ दिनु राती लागै सहजि धिआना॥
रवि रहिआ प्रभु सभ महि आपे॥ हरि जपु रसना दुखु न विआपे॥१॥
मन तन निरमल होई है गुर का जपु जपना ॥१॥
किआ जपु जापउ बिनु जगदीसै॥ गुर कै सबदि महलु घरु दीसै॥१॥
सीलु धरमु जपु भगति न कीनी हउ अभिमान टेढ पगरी ॥१॥
हरि जपु मंतु गुर उपदेसु लै जापहु तिन॑ अंति छडाए जिन॑ हरि प्रीति चितासा ॥
करमि मिलै पावै सचु नाउ॥ तुम सरणागति रहउ सुभाउ॥ तुम ते उपजिओ भगती भाउ॥ जपु जापउ गुरमुखि हरि नाउ॥७॥
मेरे मन जपु जपि हरि नाराइण ॥
नित हरि जपु जापै जपि हरि सुखु पावै॥
आजु कालि मरि जाईऐ प्राणी हरि जपु जपि रिदै धिआई हे ॥५॥
अहिनिसि राम रहहु रंगि राते एहु जपु तपु संजमु सारा हे ॥३॥
जिनि जपु जपिओ सतिगुर मति वा के ॥
जपु तपु संजमु होरु कोई नाही॥ जब लगु गुर का सबदु न कमाही॥ गुर कै सबदि मिलिआ सचु पाइआ सचे सचि समाइदा॥१२॥
हरि का जापु जपहु जपु जपने ॥
पूरै करमि गुर का जपु जपना ॥
गुर जपु जापि जपत फलु पाइआ गिआन दीपकु संत संगना ॥१२॥
मनि वीचारि हरि जपु करे हरि दरगह सीझै ॥११॥
अंतरि जपु तपु संजमो गुरसबदी जापै ॥
नानक सोहं हंसा जपु जापहु त्रिभवण तिसै समाहि ॥१॥
सखा सैनु पिआरु प्रीतमु नामु हरि का जपु जपो ॥२॥
जिस के राखे होए हरि आपि॥ हरि हरि नामु सदा जपु जापि॥ साधसंगि हरि के गुण गाइआ॥ नानक सतिगुरु पूरा पाइआ॥
चरन कमल सिउ लागो हेतु॥ खिन महि बिनसिओ महा परेतु॥ आठ पहर हरि हरि जपु जापि॥ राखनहार गोविद गुर आपि॥२॥
सो जपु तपु सेवा चाकरी जो खसमै भावै ॥
मेरे मन जपु जपि जगंनाथे ॥
गिआन धिआन मान दान मन रसिक रसन नामु जपत तह पाप खंडली॥१॥ जोग जुगति गिआन भुगति सुरति सबद तत बेते जपु तपु अखंडली॥ ओति पोति मिलि जोति नानक कछू दुखु न डंडली॥
कुरबाणु जाई गुर पूरे अपने॥ जिसु प्रसादि हरि हरि जपु जपने॥१॥
गुरू गुरु गुरू गुरु गुरू जपु प्रानीअहु॥ सबदु हरि हरि जपै नामु नव निधि अपै रसनि अहिनिसि रसै सति करि जानीअहु॥ फुनि प्रेम रंग पाईऐ गुरमुखहि धिआईऐ अंन मारग तजहु भजहु हरि गॵानीअहु॥ बचन गुर रिदि धरहु पंच भू बसि करहु जनमु कुल उधरहु द्वारि हरि मानीअहु॥ जउ त सभ सुख इत उत तुम बंछवहु गुरू गुरु गुरू गुरु गुरू जपु प्रानीअहु॥१॥१३॥
गुरू गुरु गुरू गुरु गुरू जपु मंन रे॥ जा की सेव सिव सिध साधिक सुर असुर गण तरहि तेतीस गुर बचन सुणि कंन रे॥ फुनि तरहि ते संत हित भगत गुरु गुरु करहि तरिओ प्रहलादु गुर मिलत मुनि जंन रे॥ तरहि नारदादि सनकादि हरि गुरमुखहि तरहि इक नाम लगि तजहु रस अंन रे॥ दासु बेनति कहै नामु गुरमुखि लहै गुरू गुरु गुरू गुरु गुरू जपु मंन रे॥४॥
सो ब्रहमणु जो बिंदै ब्रहमु॥ जपु तपु संजमु कमावै करमु॥ सील संतोख का रखै धरमु॥ बंधन तोड़ै होवै मुकतु॥ सोई ब्रहमणु पूजण जुगतु॥१६॥
दिसंतरु भवै पाठ पड़ि थाका त्रिरिसना होइ वधेरै॥ काची पिंडु सबदु न चीनै उदरु भरै जैसे ढोरै॥ (१०१३) – देस परदेसां विच परचार करदा फिरदा है गुरबाणी पड़्ह के थक चुका है, केवल इस दी त्रिस़ना वध रही है। गुरबाणी वीचार तों सखणा है, अते माइआ दे स़रीर नाल जुड़िआ, पस़ूआं वांग ढिड भरन तक ही सीमत है।
जे हजे वी तुहानूं लगदा वाहिगुरू वाहिगुरू पुकारन नाल वाहिगुरू मिल जांदा तां सोचो गुरमति आखदी "गुर की मति तूं लेहि इआने॥ भगति बिना बहु डूबे सिआने ॥" सोचो के वाहिगुरू वाहिगुरू बोलण नाल गुर की मति किवें मिल जाणी?
गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥
गुरमति नामु (सोझी) मेरे प्राणां दी सखा (मितर/दोसत) है ते हरि दी कीरती ही हमरी (साडी) रहरासि (रहत) है।
गुर की बाणी सिउ रंगु लाइ॥ गुरु किरपालु होइ दुखु जाइ॥२॥ गुर बिनु दूजा नाही थाउ॥ गुरु दाता गुरु देवै नाउ॥३॥ गुरु पारब्रहमु परमेसरु आपि॥ आठ पहर नानक गुर जापि॥
राग देवगंधारी पातिसाही १०॥ बिन हरि नाम न बाचन पैहै॥ चौदहि लोक जाहि बस कीने ता ते कहां पलै है॥१॥ रहाउ॥ राम रहीम उबार न सकहै जा कर नाम रटै है॥ ब्रहमा बिसन रुद्र सूरज ससि ते बसि काल सबै है॥१॥ बेद पुरान कुरान सबै मत जा कह नेत कहै है॥ इंद्र फनिंद्र मुनिंद्र कलप बहु धिआवत धिआन न ऐहै॥२॥ जा कर रूप रंग नहि जनियत सो किम स्याम कहै है॥ छुटहो काल जाल ते तब ही तांहि चरन लपटै है॥३॥२॥१०॥(स़बद हज़ारे पाः १०, ७१२)
रागु गोंड बाणी रविदास जीउ की घरु २॥ ॴ सतिगुर प्रसादि॥ मुकंद मुकंद जपहु संसार॥ बिनु मुकंद तनु होइ अउहार॥ सोई मुकंदु मुकति का दाता॥ सोई मुकंदु हमरा पित माता॥१॥ जीवत मुकंदे मरत मुकंदे॥ ता के सेवक कउ सदा अनंदे॥१॥ रहाउ॥ मुकंद मुकंद हमारे प्रानं॥ जपि मुकंद मसतकि नीसानं॥ सेव मुकंद करै बैरागी॥ सोई मुकंदु दुरबल धनु लाधी॥२॥ एकु मुकंदु करै उपकारु॥ हमरा कहा करै संसारु॥ मेटी जाति हूए दरबारि॥ तुही मुकंद जोग जुग तारि॥३॥ उपजिओ गिआनु हूआ परगास॥ करि किरपा लीने कीट दास॥ कहु रविदास अब त्रिसना चूकी॥ जपि मुकंद सेवा ताहू की॥४॥१॥
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