Source: ਚੰਡੀ ਅਤੇ ਕਾਲਕਾ

चंडी अते कालका

आदि अपार अलेख अनंत अकाल अभेख अलख अनासा ॥ कै सिव सकत दए स्रुति चार रजो तम सत तिहूं पुर बासा ॥
दिउस निसा ससि सूर कै दीपक स्रिसटि रची पंच तत प्रकासा ॥ बैर बढाइ लराइ सुरासुर आपहि देखत बैठ तमासा ॥१॥

चंडी चरितर दी स़ुरुआत इथो हुंदी है। की इह किसे बाहमणा दी मंनी होई किसे जनानी देवी दे गुण हो सकदे हन? गुर साहिब दी चंडी आदि काल तों है, ओस दा पार नही पाइआ जा सकदा, ओस दा कोई लेखा नही, ओस दा कोई अंत नही, ओह अकाल है भाव काल वस नही, ओस नूं लखिआ नहीं जा सकदा ते ओस दा नास नही हुंदा। इह अठ गुण ने गुर साहिब दी चंडी दे। ओस ने ही सिव सकती नूं पैदा कीता है  ( जिहड़ी हिंदुआ ने मंनी है, ओह वाली तां स़िव जी दी घरवाली है ते गुरू साहिब वाली तां सिव ते सकती नूं पैदा करन वाली ), धरम दे चार थंम पैदा कीते, ते तिन लोक ( रज, तम ते सत) विच वासा कर रही है। गुरू साहिब दी इसे ही चंडी ने चंद भाव मन नूं सूरज भाव आतम तों उजिआरा कीता है  ते इस देह रूप पंज ततां दी स्रिसटी नूं पैदा कीता है। फिर इसे चंडी ने मनमत नूं गुरमत नाल लड़ाइआ है ते आप फिर तमासा देख रही है के इह मन मवासी राजा जितदा किवें है इस मनमत दे प्रकोप तों।  इह गुरू साहिब दी चंडी ( भाव मन नूं चंडण वाली ) गुरमत/हुकम/नाम ही है, होर कोई नही। 

अतदि अपार अलेख अनंत अकाल अभेख अलख अनासा ॥

पिहली पंकती, चंडी चरित्र दसम ग्रंथ जिसनूं पड़्ह के समझ के पता लगदा है के ना इह देवी दी गल हो रही है ना तलवार दी। विचार करो के इसनूं अपार कहिआ है। अलेख – जिसने लेखा नहीं देणा। अनंत – जिसदा अंत नहीं है। सरबलोह दी किरपान नूं जंग लग सकदा टुट सकदी इस लई अनंत ते अकाल नहीं है, अनासा नहीं है।

चंडी (बिबेक बुध) है जिस बारे बारे दसम बाणी विच लिखिआ "तारन लोक उधारन भूमहि दैत संघारन चंडि तुही है॥ कारन ईस कला कमला हरि अद्रसुता जह देखो उही है॥ तामसता ममता नमता कविता कवि के मन मधि गुही है॥ कीनो है कंचन लोह जगत्र मै पारस मूरति जाहि छुही है॥४॥

मीणे मसंद ते कई धिड़े जो दसम बाणी दा विरोध करदे ने, चंडी नूं भगउती नूं इसतरी, देवी जां किरपान मंनदे ने उहनां ने जां तां गुरमति पड़्ही नहीं, पड़्ही तां विचारी नहीं ते जे पड़्ह के विचार के बूझ के वी लोकां नूं भरम पाउंदे ने तां वडे अपराधी हन। चंडी ते भगउती बिबेक बुध नूं, सोझी नूं कहिआ ते सपस़ट लिखिआ।

"प्रमुद करन सभ भै हरन नामु चंडिका जासु॥ रचो चरित्र बचित्र तुअ करो सबुधि प्रकास॥५॥

"सो भगउती जोु भगवंतै जाणै॥, "भगउती भगवंत भगति का रंगु॥

गुरु नानक पातस़ाह अते दसम पातसाह दोवें चंडी दी गल करदे, किवें?

जिस “गिआन खड़ग” दी जंग चंडी दी वार विच दसी है दसम पातस़ाह ने, दूरगा (गुरमुख दा होरदा दुरग है जिसनूं घट वी कहिआ ते इस दी मति दुरगा है) दी जंग देव (गुणां) अते दानवां (अवगुण, विकार, त्रै गुण माइआ) विच उह जंग आदि बाणी विच वी बिआन कीती है गुरु नानक पातस़ाह ने।

दुरमति हरणाखसु दुराचारी॥ प्रभु नाराइणु गरब प्रहारी॥ प्रहलाद उधारे किरपा धारी॥४॥ भूलो रावणु मुगधु अचेति॥ लूटी लंका सीस समेति॥ गरबि गइआ बिनु सतिगुर हेति॥५॥ सहसबाहु मधु कीट महिखासा॥ हरणाखसु ले नखहु बिधासा॥ दैत संघारे बिनु भगति अभिआसा॥६॥ जरासंधि कालजमुन संघारे॥ रकतबीजु कालुनेमु बिदारे॥ दैत संघारि संत निसतारे॥७॥(रागु गउड़ी, म १, २२४) – दुरमति नूम हरणाखसु आखिआ नानक पातिसाह ने।

जिहड़ी पंगती आई सी दसम बाणी विच "मधु ते कीट उही आदि बानी विच वी दसी गई है।

ओपरली पंगती दे अरथ

दैत संघारे, दुरगा (गुरमुख दी बुध) ने, दो बिनु भगति दे अभिआसा तों सी सखणे सी, ब्रहम गिआन तों उहनां नूं भगति (गुरमति) दी सोझी दे के मधु ते कैटभ, संघार दिते, महाखासूर, सूंभ निसूंभ दा राजा वी आपनी तलवार (गिआन खड़ग) नाल संघार दिता।

धिआन देवो के इह गल दसम बाणी विच नहीं हो रहीं, आदि बाणी दी पंगती दी विचार चल रही है।

राकतबीजु नाल दा दानव चंडी दी वार विच वी आइआ है, जिसदे बारे आदि बानी की कहिदी है वेखो

जरासंधि कालजमुन संघारे ॥ रकतबीजु कालुनेमु बिदारे॥ दैत संघारि संत निसतारे॥ ७॥(रागु गउड़ी, म १, २२४)

दूरगा ( गुरमुखि ) ने रकतबीजु (भरम च पाउण वाले मनमुख बिरती) मनमति दा संघार कीता।

अगली पंगती विच पड़्हो जिस दूरगा दी गल चल रही उह कोण है

“दैत संघारे संत निसतारे॥

गुरमुखि (दुरगा) ने दैतां नूं मारिआ भाव मनमति कढ के गुरमति दा गिआन करवा दिता उसे बिरती गुरमुखि संत बिरती बणा के भव सागर तार दिते।

दुरगा = गिआन गिआता = गिआन खड़ग = गुरमति, प्रचंड गिआन ( विवेक बुधी) गुरमुखि

होर वी सभ दैतां (विकारां) दा वरणन आदि बाणी विच है अते आदि ने वी “चंडी” बिबेक बुधी नूं मंनिआ। बाणी पड़्हन, समझण अते विचारन ते ही आदि बाणी ते दसम बाणी दोवें ब्रहम गिआन दी गल करदे इसदा पता लगदा। जिहनां नूं इस गल दी समझ नहीं उही दसम बाणी ते स़ंका करदे ने किंतू परंतू करदे ने।

कालका कोण है?

गुसे आई कालका हथि सजे लै तरवार कउ॥ एदू पारउ ओत पार हरनाकसि कई हजार कउ॥ जिण इका रही कंधार कउ॥ सद रहमत तेरे वार कउ॥

कालका कोई औरत नही हुंदी। “चंडी” हिरदे चो चड़ कि कालका बण कि त्रकुटी विच आ कि बोलदी है। काल बणके। चंडी हिरदे विच परगट प्रचंड गिआन है जिस ने माईआ जां सरीर नाल जुड़ के अपणी ग़ल मनबुधि (मनमुखा) नुं दसणी है जिथे बिबेक बुधि है ओह चंडी है फिर परगट हो कि कालका सरूप बोलदी है गुरमुख विच।

की कोई इक जनानी लड़े ते तलवार दा वार कई हज़ार राकस़ मार देवे की इह हो सकदा? कदे वी किंने आदमीआं विचों लंघ सकदी है तलवार इक वार विच। कई हज़ार विचों किवे लंघ जावेगी? कतार विच खड़्हे होण, ऐदां किवें संभव है? असल ग़ल कोई होर है। भरम इक होवे, हज़ारां नूं होवे, ब्रहम गिआन दी इको गल, इको नुकता दसिआं हज़ारां दा भरम मार दिता, कट दिता, आह गल है असली। इह तरवार नाल तां हो सकदा है, तलवार नाल नहीं। चंडी की है? सभ ने जाण लैणा है, करोड़ां दा भरम कट हो जाणा है। "गुसे आई कालका हथि सजे लै तरवार कउ, हुण सजा हथ है, ते तलवार है, खंडा नहीं, सजे हथ तलवार तों भाव निरोल ब्रहम गिआन दी गल कीती जा रही है, केवल गुरमत दी गल है, खंडा हुंदा तां दूजी मत वी होणी सी दो धारी होणा सी, हुण तलवार नही, तरवार लफज़ वरतिआ है, भेद दी गल है, तर वार है, जिसदे वार विचों नाम रस टपकेगा, वार वी है, पर रस वी आवेगा, जिहड़ा इहनूं तलवार कहि रिहा है, उह विदवान जां पंडित है, बुधी जो ऐसी है, तलवारां वी वरतिआ है, पर ऐथे तरवार किउं वरतिआं, "कासी मै जाइ पड़िओ अति ही बहु बेदन को करि सार न आयो॥

"एदू पारउ ओत पार हरनाकसि कई हजार कउ॥

कासी मत वाले पंडित दा प्रहलाद ते हरनाकस़ तां इक है ? पर एथे कई हज़ार है, ना प्रहलाद इक है, जिहड़ा गुरमुख है जां बणन दी इछा है उह प्रहलाद है भगत है, गुरमति दा फुरमान है "प्रहलाद उधारे अनिक बार॥ बाणी कहि रही है किंने प्रहलाद उबारे। जिहड़ा विरोधी है, साकत है, (मनमुख) मन हरनाकस़ है, गुण ते औगुणवाचक नाम ने, हिरनाकस़यप दा मतलब की है ? हिरन दी खल काली चमड़ी, काला हिरन हुंदा है इक, मोती हिरन कहिंदे हन, काली चमड़ी वाला, मन उह हिरन है जिस दी भरम दी काली खल लाह के, चित उस उपर बहि के तप करदा है। गल इह सी। मन दा भरम लाह के उपर बैठीदा है। भरम जित के तप हुंदा है। मन दा भरम लाहुणा है। मन दी कालख उतारनी है।

जिण इका रही कंधार कउ॥ सद रहमत तेरे वार कउ॥

इको वार नाल कंधार जित लिआ, तेरे वार विच रहिमत है। जिसते वार कीता। उस ते रहिमत हो गई। किसे नूं तलवार मारो तां की बखस़िस़ होई ए कदे ? "फूटे अंडा भरम का मनहि पिआ प्रगासा॥ गिआन हो गिआ हनेरा दूर हो गिआ ,टीके, विदवान प्रचारक नहीं समझे के ग़ल की है। बुरे दा भला कीता है गुरमत ने, नाम दिता, गिआन कराइआ, रहिमतां दा भरिआ वार हुंदा चंडी दा अगिआनता तों उबारण लई।

चंडी औरत नही हुंदी चंडी प्रचंड गिआन विवेक बुधि है। दानव देवते दोवैं की हन अते हुकम ने ही पैदा कीते ने ।

"सिरजे दानो देवते तिन अंदरि बादु रचाइआ॥

मन अते चित दे विच वादु रचाइआ है, सारिआं अंदर ही इह विवाद है। पर बाहर वी एहो विवाद है सच अते झूठ दी लड़ाई है। देवते अते दैंत संसार विच ने जिहड़े इह संसारी राज पिछे लड़दे ने। लेकिन चंडी दोवां नूं गिआन नाल़ खड़का दिंदी है दोहा नू गिआन नाल़ कुटदी है। फैसला कौण करू,चंडी गिआन खडक जदों मिआनों बाहर आ गई,दोनों धिरां अगिआनी ने, जद तक बिबेक बुध पैदा नहीं हुंदी, गुरमत दी पूरन सोझी नहीं हुंदी, कोई हल नहीं इस विवाद दा।

दसम दी बाणी गुरमत की है, परचंड गिआन की करदा है, चंडी की है, इसदा गिआन कराउंदी है।

चंडी / दुरगा / गुरमुख वी साजिआ है इहना नूं गिआन देण वासते "तै ही दुरगा साजि कै दैता दा नासु कराइआ॥ जदों कोई दुरमत छड के गुरमत धारन करदा है तांघड़ दिंदा है इक होर दुरगा, गुरमुख, भगत, फेर करा दिंदा है दैतां दा नास। बाणी दे बचनीं बाण ने, हुण बाणां नाल दहसिर घाइआ, भरम दे सिर लाह के मारिआ धरती ते,
सतिगुर सूरमे ने ॲैसा बाण मारिआ , सारा माण लोभ रत कढ के मारिआ बाहर।

"कबीर सतिगुर सूरमे बाहिआ बानु जु एकु॥ लागत ही भुइ गिरि परिआ परा करेजे छेकु॥

चंडी च्रितर विच वी इह दसिआ है के सुर (गुण) अते असुर (विकारां) दोवां विच जंग करवाई है, हुण टीमां दोवे ने असी देखणा साडी की भुख है, परमारथ दी इछा है कि जां फिर सवारथ दी।

सरब काल है पिता अपारा॥ देबि कालिका मात हमारा॥ मनूआ गुर मुरि मनसा माई॥ जिनि मो को सुभ क्रिआ पड़ाई॥५॥ बचित्र नाटक अ. १४ – ५ – स्री दसम ग्रंथ साहिब

इही गल आदि बाणी विच मिलदी है

काहे गरबसि मूड़े माइआ॥ पित सुतो सगल कालत्र माता तेरे होहि न अंति सखाइआ॥ रहाउ॥ बिखै बिकार दुसट किरखा करे इन तजि आतमै होइ धिआई॥ जपु तपु संजमु होहि जब राखे कमलु बिगसै मधु आस्रमाई॥२॥(म १, सिरी राग, २३)

प्रेम भगति परवाह प्रीति पुबली न हुटइ॥ सतिगुर सबदु अथाहु अमिअ धारा रसु गुटइ॥ मति माता संतोखु पिता सरि सहज समायउ॥आजोनी संभविअउ जगतु गुर बचनि तरायउ॥ अबिगत अगोचरु अपरपरु मनि गुरसबदु वसाइअउ॥ गुर रामदास कलॵुचरै तै जगत उधारणु पाइअउ॥८॥(भट कलॵ सहार, सवईए महले चउथे के, १३९७)

दसम विरोधी अकसर इह आखदे हन के चंडी दे मथे तों काली किवें प्रकट होई ते हवाले वजों इक किताब स़ेअर करदे हन जिस विच तसवीर कुझ इहो जिही है

बाणी दीआं पंकतिआ दे गलत ते संसारी अरथ करके सिध करन दी कोस़िस़ करदे हन के इह कोई देवी माता है। पंकतीआं हन "सूरी संघरि रचिआ ढोल संख नगारे वाइ कै॥ चंड चितारी कालका मन बाहला रोस बढाइ कै॥ निकली मथा फोड़ि कै जन फते नीसाण बजाइ कै॥ जाग सु जंमी जुध नूं जरवाणा जण मरड़ाइ कै॥। जिहड़े सवाल पुछदे हन उहनां दा कोई बैर है दसम बाणी नाल जां स़ाइद उहनां नूं अलंकार समझ नहीं लगदे जां कोई सोची समझी साजिस़ जापदी है। इह इक कथा है महिखासुर अते रकतबीज दी। पातोस़ाह ने इथे दैत रकतबीज विकारां नूं मंनिआ है जिवें रकत दी बूंद जिथे डिगदी है कहाणी विच दसिआ उथों कई दैत पैदा हो जांदे हन। जिवें इक विकाॲ खतम होवे दूजा नाल ही पैदा हो जांदा है। इहनां नूं मारन लई कालका (गुरमति / काल दी सोझी) दुआरा चंडी होई बुध मन रूपी हरनाकस दैत नूं संघारदी है, सारे दैत एक साथ खतम कर दिंदी है उस गल नूं कविता/कहाणी दे रूप विच दरसाइआ गिआ है। जे इहनां दसम विरोधीआं ने आदि ग्रंथ दी विचार कीती हुंदी तां पता लगदा के इह रकतबीज वाला प्रसंग उथे वी आइआ है, प्रमाण

सहसबाहु मधु कीट महिखासा॥ हरणाखसु ले नखहु बिधासा॥ दैत संघारे बिनु भगति अभिआसा॥६॥ जरासंधि कालजमुन संघारे॥ रकतबीजु कालुनेमु बिदारे॥ दैत संघारि संत निसतारे॥७॥ आपे सतिगुरु सबदु बीचारे॥ रागु गउड़ी॥दूजै भाइ दैत संघारे॥ गुरमुखि साचि भगति निसतारे॥८॥(म १, रागु गउड़ी, २२५)

जे कोई बाणी विचारे ही ना आदि बाणी पड़्ह के आख देवे जी ठीक है उथे अलंकार है मंन रहे हां पर जी दसम बाणी विच अलंकार नहीं है उथे तां कहाणी ही है, फेर इस गल दा जवाब कोई की दे सलदा है। सुते नूं जगाइआ जा सकदा है, सौण दे नाटक करन वाले नूं नहीं।


Source: ਚੰਡੀ ਅਤੇ ਕਾਲਕਾ