Source: ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨ ਅਤੇ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰ

ब्रहम गिआन अते ब्रहम बीचार

गुरमति ब्रहम गिआन है ते ब्रहम विदिआ है इह तां लगभग हरेक सिख ने सुणिआ ही होणा। बहुते मंनदे वी हन पर बहुत घट लोग हन जो इह जाणदे हन के ब्रहम की है। कोई ब्रहमांड नूं ब्रहम मंनदा कोई पूरी स्रिसटी, द्रिसटमान संसार नूं ब्रहम मंनदा ते कोई सनातन मति वाले ब्रहमां (देवते) नूं ब्रहम मंनदा। बहुत घट खोजी हन जो गुरबाणी विचों खोजदे हन के ब्रहम की है। ब्रहम ते ब्रहम दी विचार तों पहिलां जाणदे हां के इह भुलेखा किथों आइआ। सनातन मति विच ६ दरस़न (विचार) मंने जांदे हन जो इक दूसरे तों भिंन हन। इह दरस़न रब तक पहुंचण दे मारग मंने जांदे हन। मोकस़/मुकती दे मारग। मोकस़ भाव आनंद दी अवसथा जिथे दुख दरद कलेस़ ना होण। कोई मंनदा के मर के मुकती मिलदी पर गुरमति मंनदी इह जीवित ही मिल जादी नाम प्रापती नाल। इहनां सारिआं मतां ने ही आपणे हिसाब नाल जतन कीते हन। सारे संसारी धरम मंनण वाले आपणे आप नूं उच मंनदे हन ते बिनां विचार तों इक दूजे नूं नीवां दिखाउण विच लगे हन। बाणी दा फुरमान है "बेद कतेब कहहु मत झूठे झूठा जो न बिचारै॥ भाव वेदां नूं कुरान नूं झूठा ना कहो झूठा उह है जो इहनां दी विचार नहीं करदा। विचार करन ते ही गिआन प्रापत हुंदा है, कमीआं अते चंगीआं गलां दा पता लगदा है। जे कोई त्रुटी नज़र आउंदी है तां उस ते विचार करके सुधार कीता जा सकदा है। पहिलां सनातन मति दे दरस़नां बारे जाणदे हां। इहनां बारे ही बाणी आखदी "छिअ घर छिअ गुर छिअ उपदेस॥ गुर गुरु एको वेस अनेक॥१॥ जै घरि करते कीरति होइ॥ सो घरु राखु वडाई तोहि॥१॥ – भाव – ६ घर (६ दरसन) हन ६ गुर (गुण) ते ६ ही इहनां विच उपदेस हन। इह गुर (गुण) इहनां दे गुरु (धारणी) एको (एकता) विच हन पर इहनां दे वेस अलग अलग हन भाव समझाउण ते तरीके वखरे हन। सो बाबा (करता) सारिआं विच ही तेरा गिआन है पर मैनूं उस घर विच रख जिथे तेरे नाम (सोझी) दी वडिआई हुंदी होवे। सारे धरमां दी आपो आपणी कोस़िस़ है सच नूं जानण दी इस लई सारे ही आदर दे हकदार हन। सारे धरमां नूं रल के विचार करनी चाहीदी है ते आपणी आपणी खोज ते विचार सांझे करन दी लोड़ है। कई स़रारती अनसर हन हरेक ही धरम विच जिहनां ने गिआन दी गल नूं लुको के करमकांड ते पखंड अगे कर दिते। जिवें वेद लुको के सिम्रित सासत्र अगे रख दिते जिस बारे गुरमति दा फुरमान है "सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी॥ततै सार न जाणी गुरू बाझहु ततै सार न जाणी॥। पाप पुंन बारे गुरमति दा की फुरमान है समझण लई वेखो "पाप पुंन (paap/punn) ते पखंड बारे वेखो "सिखी अते पखंड

सनातन धरम दे छे दरस़न हन जो भारती दरस़न स़ासतर दे मुख सिधांत हन। इह हन:

  1. निआय: इह दरस़न तरक अते तरकस़ीलता ‘ते धिआन केंदरित करदा है। इस दे संसथापक गौतम मुनी हन। निआय दरस़न विच तरकस़ीलता अते तरक दे सिधांतां दी विस़ेस़ता है। इस विच प्रमाणां दी चरचा कीती जांदी है जो सचाई दी पछाण करन विच सहाइक हुंदे हन।
  2. वैस़ेस़िक: इह दरस़न पदारथ अते उस दे गुणां दी विस़ेस़ता ‘ते धिआन दिंदा है। इस दे संसथापक कणाद मुनी हन। वैस़ेस़िक दरस़न विच पदारथ दे सवरूप अते उस दे गुणां दी विस़ेस़ता दी चरचा कीती जांदी है। इस विच अणूवाद अते पदारथ दे सवरूप दी विस़ेस़ता है।
  3. सांखिआ: इह दरस़न प्रक्रिती अते पुरुस़ दे दवैतवाद ‘ते आधारित है। इस दे संसथापक कपिल मुनी हन। सांखिआ दरस़न विच प्रक्रिती अते पुरुस़ दे दवैतवाद दी चरचा कीती जांदी है। इस विच प्रक्रिती दे ततां अते पुरुस़ दे सवरूप दी विस़ेस़ता है।
  4. योग: इह दरस़न स़रीर दे साधन दुआरा आतम-अनुभव दी प्रापती ‘ते धिआन दिंदा है। इस दे संसथापक पतंजली हन। योग दरस़न विच मन अते स़रीर दे साधन दुआरा आतम-अनुभव दी प्रापती दी चरचा कीती जांदी है। इस विच योग दे अंगां अते साधन दी विस़ेस़ता है।
  5. मीमांसा: इह दरस़न वेदां दे मूल भाव अते रीतीआं दी विआखिआ करदा है। इस दे संसथापक जैमीनी हन। मीमांसा दरस़न विच वेदां दे मूल भाव अते रीतीआं दी विस़ेस़ता दी चरचा कीती जांदी है। इस विच यगनां अते रीतीआं दी विस़ेस़ता है।
  6. वेदांत: इह दरस़न आतम अते ब्रहम दे एकता ‘ते धिआन केंदरित करदा है। इस दे संसथापक बादरायण हन। वेदांत दरस़न विच आतम अते ब्रहम दे एकता दी चरचा कीती जांदी है। इस विच ब्रहम दे सवरूप अते आतम दे सवरूप दी विस़ेस़ता है।

इह छे दरस़न सनातन धरम दे मुख सिधांतां नूं समझण विच मदद करदे हन। इहनां दरस़ना विच बहुत कुझ समझ आउंदा है पर अखीर इहनां सारिआं ने ही आपणे आपणे तरीके दसे हन विकारां नूं काबू करन दे पर बहुत हद तक नैतिकता विच सीमित रहि गए लगदे ने अधिआतम मारग नैतिकता नूं ही मंन रहे जापदे हन। योग साधना राहीं, देही नूं साधन नाल, खान पीण दीआं वसतूआं नाल ही परमेसर प्रापती नहीं हुंदी। गुरमति मन दे भोजन गिआन दी गल करदी है। इहनां ६ दरस़नां दा मंनणा है के विकार घटा तां सकदे हां पर खतम नहीं हो सकदे। "खटु दरसन जोगी संनिआसी बिनु गुर भरमि भुलाए॥ सतिगुरु सेवहि ता गति मिति पावहि हरि जीउ मंनि वसाए॥ सची बाणी सिउ चितु लागै आवणु जाणु रहाए॥५॥" ते गुरमति ने गुर की सेवा सबद वीचार नूं मंनिआ है। इहनां ६ मता कारण लोक संनिआस लैके बन/जंगलां नूं तुर पैंदे सी ते गुरमति ने कहिआ है के "इकि कंद मूलु चुणि खाहि वण खंडि वासा॥ इकि भगवा वेसु करि फिरहि जोगी संनिआसा॥ अंदरि त्रिसना बहुतु छादन भोजन की आसा॥ बिरथा जनमु गवाइ न गिरही न उदासा॥ जमकालु सिरहु न उतरै त्रिबिधि मनसा॥ गुरमती कालु न आवै नेड़ै जा होवै दासनि दासा॥ सचा सबदु सचु मनि घर ही माहि उदासा॥ नानक सतिगुरु सेवनि आपणा से आसा ते निरासा॥५॥। गुरमति ने इहनां तों अगे दी गल करदिआं आखिआ है के विकार खतम हो सकदे हन जे उहनां दी मां (बुध) नूं काबू कीता जावे। नाम (गिआन तों प्रापत सोझी) नाल मन निरमल (विकारां दी मल रहित) हो सकदा है। गुरमति मंनदी है के करते तक पहुंचण दे कई मारग हन "केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस॥ केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद॥ केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद॥ केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंतु न अंतु॥३५॥ – नरिंद तक पहुंचण दे केते ही पात (रसते) हन। असीं पातिस़ाह वी इस लई वरतदे हां उसदे लई जिसनूं सच दा पात (राह) पता होवे। साडे गुरू बादस़ाह नहीं हन किउंके बाद (वाद/विवाद/झगड़ा) विच नहीं पैंदे सी । गुरमति दा इहनां दरस़नां नूं समझ के फैसला इह है के "सनकादिक नारद मुनि सेखा॥ तिन भी तन महि मनु नही पेखा॥३॥ – सनातन मति दे रिस़ी मुनीआं ने तन दे अंदर मन नूं नहीं खोजिआ ते पछाणिआ, बुध अते जैन विचारधारा ने तां परमेसर दी होंद नूं ही नकार दिता ते केवल कुदरत ते ऊरजा नूं ही सब तों उपर दसिआ है। गुरमति दा फुरमान है "जेवडु आपि तेवड तेरी दाति॥ जिनि दिनु करि कै कीती राति॥ खसमु विसारहि ते कमजाति॥ नानक नावै बाझु सनाति॥" – भाव सनात (सनातन मति) नावै (नाम भाव हुकम दी सोझी तों) बाझ (वांझी) है, किउंके ना मन दी खोज कीती है सनातन मति ने ते ना ही करते दे हुकम दी गल कीती है। करम तक तां पहुंच गए पर अगे हुकम दी गल नहीं कीती। गुरमति ने करम नूं कटिआ है ते सब कुझ करते दे हुकम बध दसिआ है। गुरमति वाला करम (किरपा) है, इसे लई कबीर जी ने आखिआ है के हुकम दी गल करके आपणी मैं मुका के उहनां दा मन सनातन मति तों उलट हो गिआ है "अब मनु उलटि सनातनु हूआ॥ तब जानिआ जब जीवत मूआ॥ कहु कबीर सुखि सहजि समावउ॥ आपि न डरउ न अवर डरावउ॥ ते नानक पातिस़ाह ने इह वी मंनिआ है के सनातन मति विच ही कुझ भगत होए हन जिहनां सनातन मति तों अगे दी गल कीती है "जाति कुलीनु सेवकु जे होइ॥ ता का कहणा कहहु न कोइ॥ विचि सनातीं सेवकु होइ॥ नानक पण्हीआ पहिरै सोइ॥ । गुरमति दा फुरमान है के विकार पैदा हुंदे ने मन (अगिआनता) विचों। ते बुध विकारां दी मां है। जे बुध विच नाम (गुरमति गिआन दी सोझी) दा चानणा होवे "मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी॥ तां विकार ना सिरफ़ काबू हुंदे, विकार मुक जांदे हन। गुरमति नूं भगउती (भगतां दी मति "सो भगउती जोु भगवंतै जाणै॥) दा मन खोज मारग दसिआ है।

रागु सिरीरागु महला ५ घरु ५॥ जानउ नही भावै कवन बाता॥ मन खोजि मारगु॥१॥ रहाउ॥ धिआनी धिआनु लावहि॥ गिआनी गिआनु कमावहि॥ प्रभु किन ही जाता॥१॥ भगउती रहत जुगता॥ जोगी कहत मुकता॥ तपसी तपहि राता॥२॥ मोनी मोनिधारी॥ सनिआसी ब्रहमचारी॥ उदासी उदासि राता॥३॥ भगति नवै परकारा॥ पंडितु वेदु पुकारा॥ गिरसती गिरसति धरमाता॥४॥ इक सबदी बहु रूपि अवधूता॥ कापड़ी कउते जागूता॥ इकि तीरथि नाता॥५॥ निरहार वरती आपरसा॥ इकि लूकि न देवहि दरसा॥ इकि मन ही गिआता॥६॥ घाटि न किन ही कहाइआ॥ सभ कहते है पाइआ॥ जिसु मेले सो भगता॥७॥ सगल उकति उपावा॥ तिआगी सरनि पावा॥ नानकु गुर चरणि पराता॥८॥२॥२७॥॥" – मन किथे गवाचिआ है जिसनूं खोजणा पैणा? इह सोझी गुरमति तों प्रापत हुंदी है।

सिम्रित स़ासतरां ने वेद पिछे लुको के लोकां नूं करमकांड, मूरती पूजा, जाती वाद, पाप पुंन, की खाणा की नहीं खाणा, अखा बंद करके रब नूं धिआउणा, इक स़बद नूं बार बार रटण करना, पूजा, बली आदी वल लगा दिता। गुरमति आखदी है "कवन रूपु तेरा आराधउ॥ कवन जोग काइआ ले साधउ॥१॥ कवन गुनु जो तुझु लै गावउ॥ कवन बोल पारब्रहम रीझावउ॥१॥ रहाउ॥ कवन सु पूजा तेरी करउ॥ कवन सु बिधि जितु भवजल तरउ॥२॥ कवन तपु जितु तपीआ होइ॥ कवनु सु नामु हउमै मलु खोइ॥३॥ गुण पूजा गिआन धिआन नानक सगल घाल॥ जिसु करि किरपा सतिगुरु मिलै दइआल॥४॥ तिस ही गुनु तिन ही प्रभु जाता॥ जिस की मानि लेइ सुखदाता॥१॥" – गुरमति ने गुणां नूं पूजा मंनिआ है, गिआन नूं ही धिआन मंनिआ है। सनातन मति विच अनेक प्रकार दे जतन करदे सी मुकती लई। कई तां सरीर दे अंग कटा दिंदे सी, आरिआं वाले खूह विच छाल वी मारदे सी। जैन मारग आदी लई गुरबाणी दा फुरमान है "जाप ताप गिआन सभि धिआन॥ खट सासत्र सिम्रिति वखिआन॥ जोग अभिआस करम ध्रम किरिआ॥ सगल तिआगि बन मधे फिरिआ॥ अनिक प्रकार कीए बहु जतना॥ पुंन दान होमे बहु रतना॥ सरीरु कटाइ होमै करि राती॥ वरत नेम करै बहु भाती॥ नही तुलि राम नाम बीचार॥ नानक गुरमुखि नामु जपीऐ इक बार॥१॥ नउ खंड प्रिथमी फिरै चिरु जीवै॥ महा उदासु तपीसरु थीवै॥ अगनि माहि होमत परान॥ कनिक अस्व हैवर भूमि दान॥ निउली करम करै बहु आसन॥ जैन मारग संजम अति साधन॥ निमख निमख करि सरीरु कटावै॥ तउ भी हउमै मैलु न जावै॥ हरि के नाम समसरि कछु नाहि॥ नानक गुरमुखि नामु जपत गति पाहि॥२॥ मन कामना तीरथ देह छुटै॥ गरबु गुमानु न मन ते हुटै॥ सोच करै दिनसु अरु राति॥ मन की मैलु न तन ते जाति॥ इसु देही कउ बहु साधना करै॥ मन ते कबहू न बिखिआ टरै॥ जलि धोवै बहु देह अनीति॥ सुध कहा होइ काची भीति॥ मन हरि के नाम की महिमा ऊच॥ नानक नामि उधरे पतित बहु मूच॥३॥ अते "नगन फिरत जौ पाईऐ जोगु॥ बन का मिरगु मुकति सभु होगु॥१॥ किआ नागे किआ बाधे चाम॥ जब नही चीनसि आतम राम॥१॥ रहाउ॥ मूड मुंडाए जौ सिधि पाई॥ मुकती भेड न गईआ काई॥२॥ बिंदु राखि जौ तरीऐ भाई॥ खुसरै किउ न परम गति पाई॥३॥ कहु कबीर सुनहु नर भाई॥ राम नाम बिनु किनि गति पाई॥। इहनां परमाणां नूं निंदिआ ना मंन के समझण दी लोड़ है के गुरमति गिआन लैण लई प्रेरित कर रही है। सारिआं नूं सांझा उपदेस है के नाम (सोझी) नूं जपो (पछाणो) ते धिआवो (धिआन विच रखो) "सो पंडितु जो मनु परबोधै॥ राम नामु आतम महि सोधै॥ राम नाम सारु रसु पीवै॥ उसु पंडित कै उपदेसि जगु जीवै॥ हरि की कथा हिरदै बसावै॥ सो पंडितु फिरि जोनि न आवै॥ बेद पुरान सिम्रिति बूझै मूल॥ सूखम महि जानै असथूलु॥ चहु वरना कउ दे उपदेसु॥ नानक उसु पंडित कउ सदा अदेसु॥४॥ बीज मंत्रु सरब को गिआनु॥ चहु वरना महि जपै कोऊ नामु॥ जो जो जपै तिस की गति होइ॥ अते "खत्री ब्राहमण सूद वैस उपदेसु चहु वरना कउ साझा॥ गुरमुखि नामु जपै उधरै सो कलि महि घटि घटि नानक माझा॥"

ब्रहम

अज दा सिख ब्रहम बारे नहीं जाणदा। कदे विचारदा नहीं के ब्रहम जे पूरन है तां पूरनब्रहम किस नूं आखिआ गुरमति ने, ते पारब्रहम की है? इस बारे असीं पहिलां वी इक लेख विच गल कीती है "ब्रहम, ब्रहमा, पारब्रहम, पूरनब्रहम। गुरमति ब्रहम जीव दे घट (हिरदे) अंदर जगी गिआन/नाम(सोझी) दी जोत नूं मंनदी है। "ना तिसु मात पिता सुत बंधप ना तिसु कामु न नारी॥ अकुल निरंजन अपर परंपरु सगली जोति तुमारी॥२॥ घट घट अंतरि ब्रहमु लुकाइआ घटि घटि जोति सबाई॥ बजर कपाट मुकते गुरमती निरभै ताड़ी लाई॥३॥ अते "अकुल पुरख इकु चलितु उपाइआ॥ घटि घटि अंतरि ब्रहमु लुकाइआ॥१॥ जीअ की जोति न जानै कोई॥ तै मै कीआ सु मालूमु होई॥ होर वी परमाण हन जिवें

देखै सुणै हदूरि सद घटि घटि ब्रहमु रविंदु॥

ववा वैरु न करीऐ काहू॥ घट घट अंतरि ब्रहम समाहू॥

अंतरु मलि निरमलु नही कीना बाहरि भेख उदासी॥ हिरदै कमलु घटि ब्रहमु न चीन॑ा काहे भइआ संनिआसी॥१॥

घट घट अंतरि ब्रहमु लुकाइआ घटि घटि जोति सबाई॥ बजर कपाट मुकते गुरमती निरभै ताड़ी लाई॥३॥

मेरा तेरा छोडीऐ भाई होईऐ सभ की धूरि॥ घटि घटि ब्रहमु पसारिआ भाई पेखै सुणै हजूरि॥ जितु दिनि विसरै पारब्रहमु भाई तितु दिनि मरीऐ झूरि॥ करन करावन समरथो भाई सरब कला भरपूरि॥

एक बिना दूजा नही जानै॥ घट घट अंतरि पारब्रहमु पछानै॥२॥ जो किछु करै सोई भल मानै॥ आदि अंत की कीमति जानै॥३॥

पंडितु पड़ि पड़ि उचा कूकदा माइआ मोहि पिआरु॥ अंतरि ब्रहमु न चीनई मनि मूरखु गावारु॥ दूजै भाइ जगतु परबोधदा ना बूझै बीचारु॥ बिरथा जनमु गवाइआ मरि जंमै वारो वार॥१॥

सो जीव दे घट (हिरदे / बुध, सूखम सरीर, देही) अंदर जिहड़ी गिआन दी जोत जगदी है उह ब्रहम है। ते गुरमति वाला ब्रहमा है "बबा ब्रहमु जानत ते ब्रहमा॥। जदों ब्रहमा (मन) नूं आपणी होंद दा पता लग जावे, गिआन पूरन हो जावे तां इस ब्रहम ने पूरन ब्रहम होणा है। जदों हुकम दी सोझी हो गई, हरि दा गिआन हरि दे गुणा नूं समझ के हरिआ हो गिआ, अंम्रित (कदे ना मरन/खतम होण वाला) गिआन हासिल कर लिआ, गिआन विच रमिआ राम हो गिआ तां इसने पारब्रहम आप ही होणा है। इही खालस अवसथा है। "द्रिसटि धारि अपना दासु सवारिआ॥ घट घट अंतरि पारब्रहमु नमसकारिआ॥ इकसु विणु होरु दूजा नाही बाबा नानक इह मति सारी जीउ॥

ब्रहम बीचार

गुरमति ब्रहम दी बीचार है। कोई मंतरां वांग पड़्ह रहिआ, कोई गा रहिआ कोई अखंड पाठ कर रहिआ पर विचारदा कोई विरला ही है। गुरबाणी आखदी "लोगु जानै इहु गीतु है इहु तउ ब्रहम बीचार॥ अते सबद चौकी नूं ही कीरतन समझ लिआ इह नहीं पड़्ह के वीचारिआ के "कोई गावै रागी नादी बेदी बहु भाति करि नही हरि हरि भीजै राम राजे॥, "गावहु गीतु न बिरहड़ा नानक ब्रहम बीचारो॥। असल कीरतन की है ते किवें हुंदा बारे जानण लई वेखो "कीरतनु अते गुण किवे गउणे हन

जिहनां ने हरि दी सोझी लई ब्रहम दी बीचार (विचार) कीती उहनां दा ही जनम सवरिआ है "जिन कउ साधू संगु नाम हरि रंगु तिनी ब्रहमु बीचारिआ जीउ॥ ब्रहमु बीचारिआ जनमु सवारिआ पूरन किरपा प्रभि करी॥ – साध कौण है जिसदा संग करना है समझण लई वेखो "संगत, साध संगत अते सति संगत। ब्रहम दी बिचार उही कर सकदा है जिस उते किरपा होवे नहीं तां सारे ही भजदे हन गिआन तों "कहु नानक जिसु किरपा धारै॥ हिरदा सुधु ब्रहमु बीचारै॥, "जा कउ भए क्रिपाल क्रिपा निधि॥ तिसु भई खलासी होई सगल सिधि॥ गुरि दुबिधा जा की है मारी॥ कहु नानक सो ब्रहम बीचारी॥। इह किरपा करनी प्रभ (हरि/ राम) ने ही है नहीं तां बाणी आखदी "आखणि जोरु चुपै नह जोरु॥ जोरु न मंगणि देणि न जोरु॥ जोरु न जीवणि मरणि नह जोरु॥ जोरु न राजि मालि मनि सोरु॥ जोरु न सुरती गिआनि वीचारि॥ जोरु न जुगती छुटै संसारु॥ जिसु हथि जोरु करि वेखै सोइ॥ नानक उतमु नीचु न कोइ॥

इस का बलु नाही इसु हाथ॥ करन करावन सरब को नाथ॥ आगिआकारी बपुरा जीउ॥ जो तिसु भावै सोई फुनि थीउ॥ कबहू ऊच नीच महि बसै॥ कबहू सोग हरख रंगि हसै॥ कबहू निंद चिंद बिउहार॥ कबहू ऊभ अकास पइआल॥ कबहू बेता ब्रहम बीचार॥नानक आपि मिलावणहार॥५॥ – इह प्रभ दी खेड है के जीव ने ब्रहम बीचार करनी जां नहीं। "आपन खेलु आपि करि देखै॥ खेलु संकोचै तउ नानक एकै॥

गिआन तों भजदे इस कारण हन किउं के मन नूं पता है के गिआन ने उसनूं बंन लैणा इस लई गिआन ते सोझी तों दूर भजदा सौखा रसता लभदा है "गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ॥

गुरमति अते वेदां विच दसिआ ब्राहमण अते सनातन मति वाला ब्राहमण वखरा है। गुरमति वाला ब्राहमण है जो ब्रहम दी विचार करदा, ब्रहम दा गिआता है "कहु कबीर जो ब्रहमु बीचारै॥ सो ब्राहमणु कहीअतु है हमारै॥, "सो ब्राहमणु भला आखीऐ जि बूझै ब्रहमु बीचारु॥ हरि सालाहे हरि पड़ै गुर कै सबदि वीचारि॥ ते सनातन मति वाले ब्राहमण तों गुरमति ने सवाल कीता है "जौ तूं ब्राहमणु ब्रहमणी जाइआ॥ तउ आन बाट काहे नही आइआ॥२॥ – ब्राहमण दावा करदे ने के उह रब दे मुख तों पैदा होइआ ते बाकी सारे रब दे होर अंगां तो पैदा होए हन, भगत जी सवाल पुछदे हन ब्राहमण तों के तूं आम जीवां वांग ब्राहमणी ने जंमिआ हैं, की बिपता पै गई सी मुख तों नहीं जंमिआ? आपणे आप नूं ब्राहमण दस रहिआ है ते मैनूं सूद कही जाना "जौ तूं ब्राहमणु ब्रहमणी जाइआ॥ तउ आन बाट काहे नही आइआ॥२॥ तुम कत ब्राहमण हम कत सूद॥ हम कत लोहू तुम कत दूध॥३॥ कहु कबीर जो ब्रहमु बीचारै॥ सो ब्राहमणु कहीअतु है हमारै॥

पूरी गुरमति दा आधार ही नाम (गिआन तों प्रापत सोझी) है "जनु नानकु बोले गुण बाणी गुरबाणी हरि नामि समाइआ॥। अलंकार दी वरतो राहीं गुरबाणी उपदेस़ करदी है के "काइआ ब्रहमा मनु है धोती॥ गिआनु जनेऊ धिआनु कुसपाती॥ हरि नामा जसु जाचउ नाउ॥ गुरपरसादी ब्रहमि समाउ॥१॥ पांडे ऐसा ब्रहम बीचारु॥ नामे सुचि नामो पड़उ नामे चजु आचारु॥१॥ – काइआ दा अरथ बाहरी सरीर जां बदेही नहीं है "देही गुपत बिदेही दीसै॥, साडा गिआन दा रूप है साडी बुध नाल बणिआ साडा असतितव जां होंद है जिसनूं गुरमति देही मंनदी है, बाहरी हाड मास दा सरीर तां देही दा कपड़ा है जो दुनीआं अंदर छड जाणा है "कपड़ु रूपु सुहावणा छडि दुनीआ अंदरि जावणा॥ । जदों अगिआनता है ता मन है, जदों होंद नूं मन लिआ तां मनु है। नाम (हुकम दी सोझी) ही साडा जनेऊ है, नाम (सोझी) ही सचु है, ते नाम (सोझी) ही साडा आचरण है।

इसे कारण गुरमति ने सब तों उतम सबद विचार नूं दसिआ है नाम (सोझी) दी प्रापती लई "गुर की सेवा सबदु वीचारु ॥, "गुरसबदु वीचारे हउमै मारे इन बिधि मिलहु पिआरे ॥, "महा अनंदु गुरसबदु वीचारि ॥, "सो पड़िआ सो पंडितु बीना गुर सबदि करे वीचारु॥, "पड़ै सुणावै ततु न चीनी॥ सभसै ऊपरि गुरसबदु बीचारु॥ होर कथनी बदउ न सगली छारु॥

सूहा रंगु सुपनै निसी बिनु तागे गलि हारु॥ सचा रंगु मजीठ का गुरमुखि ब्रहम बीचारु॥नानक प्रेम महा रसी सभि बुरिआईआ छारु॥ – गुरमुखि (गुणां नूम मुख रखण वाले) दी काइआ गिआन दी लाली नाल लालो लाल हुंदी है "सूहवीए सूहा सभु संसारु है जिन दुरमति दूजा भाउ॥ खिन महि झूठु सभु बिनसि जाइ जिउ टिकै न बिरख की छाउ॥ गुरमुखि लालो लालु है जिउ रंगि मजीठ सचड़ाउ॥

बिलावलु तब ही कीजीऐ जब मुखि होवै नामु॥ राग नाद सबदि सोहणे जा लागै सहजि धिआनु॥ राग नाद छोडि हरि सेवीऐ ता दरगह पाईऐ मानु॥ नानक गुरमुखि ब्रहमु बीचारीऐ चूकै मनि अभिमानु॥२॥

ब्रहम बीचारु बीचारे कोइ॥नानक ता की परम गति होइ॥

करु रे गिआनी ब्रहम बीचारु॥ जोती अंतरि धरिआ पसारु॥

सनातन मति दे दसे कुझ करम कांड जिवें अखां बंद करके, नाद वजा के, इक स़बद नूं रट के, केवल पड़्ह के, अखां बंद मौन धारण करके दुख ही प्रापत होणे "नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ ॥२॥। इहनां नूं पखंड दसिआ गुरमति ने। समझण लई वेखो "सिखी अते पखंड

गुरमति वाले मुनी दी परिभास़ा वी गुरमति ने दसी है। गुरमति ब्रहम खोज मारग है मन खोज मारग है "सो मुनि जि मन की दुबिधा मारे॥ दुबिधा मारि ब्रहमु बीचारे॥१॥ इसु मन कउ कोई खोजहु भाई॥ मनु खोजत नामु नउ निधि पाई॥

कलिजुग महि इक नामि उधारु॥ नानकु बोलै ब्रहम बीचारु॥

ब्रहम, ब्रहमा, पूरनब्रहम, पारब्रहम दी विचार, गुणां दी विचार करदिआं ही नाम (सोझी) दी प्रापती, गुरमति गिआन दी प्रापती होणी है इह गुरबाणी दा फुरमान है। इस नूं प्रापत करदिआं सारे संसे (स़ंके) दूर होणे ने ते गुरमति गिआन दी लाली, अंम्रित दी प्रापती नाल अंदर सकिआ घट हरिआ होणा, मन ने हरि हो जाणा, सोझी विच रमिआ राम घट विच ही विखणा। गुरमति बाकी सब छड गुर की सेवा सबद विचार नूं ही दस रही है। स़बद विचार तों भजणा नहीं है। गुरबाणी, गुरमति समझण दा मारग ही इह है। सानूं ता इही समझ आउंदा है। गुरबाणी पड़्ह के। गुरबाणी नूं पड़्ह के आप समझो। वेदां विच, सनातन मति ने, कुरान ने वी सारिआं ने ही आपणी आपणी खोज दसी है महा आनंद दी प्रापती लई। किसे नूं वी बिनां समझे छोटा आख देणा, घट आखणा, विवाद विच पैणा, मंदा कहिणा बाद विवाद पैदा करदा है ते परमेसर तक उसदी समझ तक पहुंचण दा पात (राह) नहीं दिखाउंदा। बिनां विचार कीतिआं झगड़ा करनां मूरखां दा कंम हुंदा है। सो आप पड़्हो, आप विचारो। समझदार मनुख विचार करदा है ते खोज करदा है।


Source: ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨ ਅਤੇ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰ