Source: ਉਤਪਤਿ ਪਰਲਉ

उतपति परलउ

उतपति दा अरथ हुंदा है होंद विच आउणा। परलउ हुंदी है जदों नास हो जांदा है। असीं संसारी उतपति परलउ बारे अंदाज़े ही लगा सकदे हां। संसार दी रचना किवें होई कदों होई। मनख दी धरती ते ओतपति तों वी पहिलां कई करोड साल होई संसारी उतपति ते परलो जां आउण वाली परलो बारे गुरमति दस रही है यां गुरमति विच दसी उतपति परलो दा मकसद कुझ होर ही है? जे "गुरबाणी दा विस़ा की है? समझ आ जावे तां उतपति परलो सौखी समझ आ जादी है। जीव संसार, माइआ, भरम, विकार, अगिआनता, अहं (अहंकार) कारण आपणे आप, आपणे मूल (प्रभ) नूं भुली बैठा है। आपणा मूल़ पधभ घट (हिरदे) विच ही मौजूद है इह मन भुली बैठा है "प्रभु निकटि वसै सभना घट अंतरि गुरमुखि विरलै जाता ॥

"बसंतु हिंडोल महला ५॥ मूलु न बूझै आपु न सूझै भरमि बिआपी अहं मनी॥१॥ पिता पारब्रहम प्रभ धनी॥ मोहि निसतारहु निरगुनी॥१॥ रहाउ॥ ओपति परलउ प्रभ ते होवै इह बीचारी हरि जनी॥२॥ नाम प्रभू के जो रंगि राते कलि महि सुखीए से गनी॥३॥ अवरु उपाउ न कोई सूझै नानक तरीऐ गुर बचनी॥४॥३॥२१॥ – भाव जो प्रभ (हरि।राम) हिरदे/घट/देही विच वस रहिआ है उही पारब्रहम है। "ब्रहम, ब्रहमा, पारब्रहम, पूरनब्रहम दा फरक समझण लई वेखो "ब्रहम, ब्रहमा, पारब्रहम, पूरनब्रहम। इस प्रभ दे हुकम नाल ही ओपति अते परलो हुंदी है। फिर की इह ओपति, उतपति अते परलो संसारी है जां अंतरीव इस बारे होर खोज करदे हां। पहिलां घट घट विच वस रहे पारब्रहम नूं समझदे हां।

"द्रिसटि धारि अपना दासु सवारिआ॥ घट घट अंतरि पारब्रहमु नमसकारिआ॥ इकसु विणु होरु दूजा नाही बाबा नानक इह मति सारी जीउ॥ – भाव घट घट विच प्रभ वसदा है "घट घट मै हरि जू बसै संतन कहिओ पुकारि॥। इस लई पारब्रहम अते हरि इको ही हन। मन, मनु, ब्रहम, ब्रहमा, पूरनब्रहम ते पारब्रहम इह सब मन दी ही गिआन दी अवसथा दे नाम हन। नाम (सोझी) ने ही ब्रहम तों पारब्रहम दा फ़ासला तै हुंदा। नाम बारे होर जानण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?

"उतपति परलउ सबदे होवै॥ – भाव उतपति परलउ दोवें सबद दुआरा हुंदीआं हन। इह सबद ही निराकार दा हुकम है। सबद है करतार दा संविधान ते हुकम है इसदा वरतारा। समझण लई वेखो "अकाल, काल, सबद अते हुकम

"आदि पुरख करतार करण कारण सभ आपे॥ सरब रहिओ भरपूरि सगल घट रहिओ बिआपे॥ बॵापतु देखीऐ जगति जानै कउनु तेरी गति सरब की रखॵा करै आपे हरि पति॥ अबिनासी अबिगत आपे आपि उतपति॥ – प्रभ भाव मन आप ही करतार है। आपणी मौज विच आप ही मन होइआ है "आपन खेलु आपि करि देखै॥ खेलु संकोचै तउ नानक एकै॥७॥, इह आप ही विसरिआ है ते विसरना ही परलो है ते जदों आप खेल संकोचदा है, नाम दी उतपती घट विच हुंदी है उसनूं ही गुरमति ने ओपत मंनिआं है। "जे इकु होइ त उगवै रुती हू रुति होइ॥

हुण तक दा भाव – पिता पारब्रहम तां घट घट विच पसरिआ है। घट हर स्रेणी दे जीव दा हिरदा है "अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी॥, "अंडज जेरज सेतज उतभुज सभि वरन रूप जीअ जंत उपईआ॥। जिसदे सबद (हुकम) नाल उतपति परलो हुंदी है। पर उतपति परलो किस वसतू दी? इह समझदे हां होर विसतार नाल।

"सति पुरख सभ माहि समाणी॥ सति करमु जा की रचना सति॥ मूलु सति सति उतपति॥भाव – सति तां हमेस़ा रहिंदा। पर इसदी सोझी हिरदे विच उपजण नूं गुरमति ने उतपति कहिआ है। होर उदाहरण

"अंतरि उतभुजु अवरु न कोई॥ जो कहीऐ सो प्रभ ते होई॥ जुगह जुगंतरि साहिबु सचु सोई॥ उतपति परलउ अवरु न कोई॥१॥,

ओपति परलउ प्रभ ते होवै इह बीचारी हरि जनी॥२॥

अंम्रित प्रवाह सरि अतुल भंडार भरि परै ही ते परै अपर अपार परि॥ आपुनो भावनु करि मंत्रि न दूसरो धरि ओपति परलौ एकै निमख तु घरि॥आन नाही समसरि उजीआरो निरमरि कोटि पराछत जाहि नाम लीए हरि हरि॥ जनु नानकु भगतु दरि तुलि ब्रहम समसरि एक जीह किआ बखानै॥ हां कि बलि बलि बलि बलि सद बलिहारि॥२॥ – भाव उतपति परलौ नाम (सोझी) दी घरि (घट अंदर ही) हुंदी है।

"से हरि नामु धिआवहि जो हरि रतिआ॥ हरि इकु धिआवहि इकु इको हरि सतिआ॥ हरि इको वरतै इकु इको उतपतिआ॥ जो हरि नामु धिआवहि तिन डरु सटि घतिआ॥ गुरमती देवै आपि गुरमुखि हरि जपिआ॥ – भाव – इसने गुरमति दुआरा चेते करना आपणी होंद नूं, आपणा मूल पछानणा तां नाल दी उतपति हिरदे विच होणी है।

हउमै सभु सरीरु है हउमै ओपति होइ॥ हउमै वडा गुबारु है हउमै विचि बुझि न सकै कोइ॥२॥

हउमै एहा जाति है हउमै करम कमाहि॥ हउमै एई बंधना फिरि फिरि जोनी पाहि॥ हउमै किथहु ऊपजै कितु संजमि इह जाइ॥ हउमै एहो हुकमु है पइऐ किरति फिराहि॥ हउमै दीरघ रोगु है दारू भी इसु माहि॥ किरपा करे जे आपणी ता गुर का सबदु कमाहि॥ नानकु कहै सुणहु जनहु इतु संजमि दुख जाहि॥ – भाव, हउमै रोग है ते इस हउमैं विच ही दारू है, जिसदा जवाब मिलदा है काइआ अंदरि ब्रहमा बिसनु महेसा सभ ओपति जितु संसारा॥ सचै आपणा खेलु रचाइआ आवा गउणु पासारा॥ पूरै सतिगुरि आपि दिखाइआ सचि नामि निसतारा॥७॥ सा काइआ जो सतिगुरु सेवै सचै आपि सवारी॥ विणु नावै दरि ढोई नाही ता जमु करे खुआरी॥ नानक सचु वडिआई पाए जिस नो हरि किरपा धारी॥

ओतपति परलो नाम नाल जुड़े हन संसार नाल नहीं उदों तक समझ नहीं सकदे जदों तक इह समझ ना आवे के गुरमति विच वरते स़बद किस दा अलंकार जां उदाहरण हन। जिवें इक स़बद है "गुरमुखि धरती साचै साजी॥ तिस महि ओपति खपति सु बाजी॥ गुर कै सबदि रपै रंगु लाइ॥ जे अलंकार दा ना पता होवे तां किसे नूं लग सकदा है के धरती प्रिथवी जां संसार लई वरतिआ। ताहीं "पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु॥ समझ नहीं आउंदा। इह धरती मति/अकल लई वरती गई है । पवण है हुकम/गिआन/नाम, पाणी है अंम्रित गिआन/सोझी, माता है मति जिथे नाम दी खेती करनी है। उदाहरण "अमलु करि धरती बीजु सबदो करि सच की आब नित देहि पाणी॥ होइ किरसाणु ईमानु जंमाइ लै भिसतु दोजकु मूड़े एव जाणी॥१॥ – अमल दा अरथ हुंदा है कारज। ते पातिस़ाह आखदे हन मति/सोच ते कंम कर, सबद (हुकम दी सोझी) दा बीज, सच दा पाणी/अंम्रित गिआन दे, गुरमुख (गुणां नूं मुख रखण वाले दा) इस किरसानी नाल इमान पैदा होणा। साबत सिदक अमाल पैदा होणा हिरदे घट विच। इसदे होर वी उदाहरण मिलदे हन गुरमति विच। जिवें

सहजे खेती राहीऐ सचु नामु बीजु पाइ॥ खेती जंमी अगली मनूआ रजा सहजि सुभाइ॥ गुर का सबदु अंम्रितु है जितु पीतै तिख जाइ॥ इहु मनु साचा सचि रता सचे रहिआ समाइ॥२॥

नामो बीजे नामो जंमै नामो मंनि वसाए॥

हरि प्रभ का सभु खेतु है हरि आपि किरसाणी लाइआ॥ गुरमुखि बखसि जमाईअनु मनमुखी मूलु गवाइआ॥ सभु को बीजे आपणे भले नो हरि भावै सो खेतु जमाइआ॥ गुरसिखी हरि अंम्रितु बीजिआ हरि अंम्रित नामु फलु अंम्रितु पाइआ॥ जमु चूहा किरस नित कुरकदा हरि करतै मारि कढाइआ॥ किरसाणी जंमी भाउ करि हरि बोहल बखस जमाइआ॥ तिन का काड़ा अंदेसा सभु लाहिओनु जिनी सतिगुरु पुरखु धिआइआ॥ जन नानक नामु अराधिआ आपि तरिआ सभु जगतु तराइआ॥

सो ओतपति परलो घट अंदर दी गल है। इसदे अनेक उदाहरण हन गुरमति विच।

निंदु बिंदु नही जीउ न जिंदो॥ ना तदि गोरखु ना माछिंदो॥ ना तदि गिआनु धिआनु कुल ओपति ना को गणत गणाइदा॥९॥

सुंनहु राति दिनसु दुइ कीए॥ ओपति खपति सुखा दुख दीए॥ सुख दुख ही ते अमरु अतीता गुरमुखि निज घरु पाइदा॥८॥भाव रात वी अगिआनता दी रात दी गल हुंदी है ते मन गाफ़ल सुता पिआ है। जागणा उतपति है ते सौणा परलो।

कीमति कहणु न जाईऐ सचु साह अडोलै॥ सिध साधिक गिआनी धिआनीआ कउणु तुधुनो तोलै॥ भंनण घड़ण समरथु है ओपति सभ परलै॥ करण कारण समरथु है घटि घटि सभ बोलै॥ रिजकु समाहे सभसै किआ माणसु डोलै॥ गहिर गभीरु अथाहु तू गुण गिआन अमोलै॥ सोई कंमु कमावणा कीआ धुरि मउलै॥ तुधहु बाहरि किछु नही नानकु गुण बोलै॥

बार बार इह सवाल उठदा है ते तंज वी कसे जांदे ने के किहड़ी गल अंतरीव है किहड़ी बाहर दी। ते किहड़ी एके दी ते किहड़ी नहीं। हर गल नूं तोलणा औखा हुंदा। गुरमति ब्रहम दा गिआन है इस तों कोई मुनकर नहीं है। ते ब्रहम गुरमति ने अंतरीव दसिआ, घट/घर/हिरदे/देही दे अंदर ही दसिआ।

जिहड़ा बाहर भटक रहिआ है संसार विच धिआन है विकारां कारण उस नूं बाहरी उदाहरण दे के कहिआ जा रहिआ है के बाहर कुझ नहीं लभणा, घट अंदरली जोत, मूल नूं खोजणा ते घट अंदरले अंम्रित सरोवर वल धिआन कराइआ जा रहिआ है। कई उदाहरण हन गुरबाणी विच। कुझ उदाहरण

"सभ किछु घर महि बाहरि नाही॥ बाहरि टोलै सो भरमि भुलाही॥ गुरपरसादी जिनी अंतरि पाइआ सो अंतरि बाहरि सुहेला जीउ॥
"अंदरु खोजै ततु लहै पाए मोख दुआरु॥
"आपु खोजि खोजि मिले कबीरा ॥४॥७॥
"गुरमुखि होवै सु काइआ खोजै होर सभ भरमि भुलाई॥
"हरि खोजहु वडभागीहो मिलि साधू संगे राम॥
"खोजहु संतहु हरि ब्रहम गिआनी॥
"गुरमति खोजहि सबदि बीचारा ॥
"पुहप मधि जिउ बासु बसतु है मुकर माहि जैसे छाई॥ तैसे ही हरि बसे निरंतरि घट ही खोजहु भाई॥१॥
"खोजत खोजत सहजु उपजिआ फिरि जनमि न मरणा॥
"खोजत खोजत प्रभ मिले हरि करुणा धारे॥
"मनु खोजत नामु नउ निधि पाई ॥१॥
"गुरमुखि होवै मनु खोजि सुणाए ॥
"एका खोजै एक प्रीति॥ दरसन परसन हीत चीति॥ हरि रंग रंगा सहजि माणु॥ नानक दास तिसु जन कुरबाणु॥
"जो ब्रहमंडे सोई पिंडे जो खोजै सो पावै ॥
"खोजत खोजत ततु बीचारिओ दास गोविंद पराइण॥
"त्रिभवणु खोजि ढंढोलिआ गुरमुखि खोजि निहालि॥
"जानउ नही भावै कवन बाता॥ मन खोजि मारगु॥१॥ रहाउ॥ धिआनी धिआनु लावहि॥ जानउ नही भावै कवन बाता॥ मन खोजि मारगु॥१॥ रहाउ॥ धिआनी धिआनु लावहि॥ गिआनी गिआनु कमावहि॥ प्रभु किन ही जाता॥१॥
"जा कउ खोजहि सरब उपाए॥ वडभागी दरसनु को विरला पाए॥ ऊच अपार अगोचर थाना ओहु महलु गुरू देखाई जीउ॥३॥
"नानक दूजी कार न करणी सेवै सिखु सु खोजि लहै॥
"तनु मनु खोजे ता नाउ पाए॥
"बाहरु खोजि मुए सभि साकत हरि गुरमती घरि पाइआ ॥३॥
"खोजत खोजत निज घरु पाइआ॥ अमोल रतनु साचु दिखलाइआ॥ करि किरपा जब मेले साहि॥ कहु नानक गुर कै वेसाहि॥
"जिन गुरमुखि खोजि ढंढोलिआ तिन अंदरहु ही सचु लाधिआ ॥
"इसु मन कउ कोई खोजहु भाई॥ तन छूटे मनु कहा समाई॥४॥
"खखा खोजि परै जउ कोई॥ जो खोजै सो बहुरि न होई॥ खोज बूझि जउ करै बीचारा॥ तउ भवजल तरत न लावै बारा॥४०॥
"खोजत खोजत खोजि बीचारिओ ततु नानक इहु जाना रे ॥
"गुरमुखि खोजि लहै घरु आपे ॥१॥
"जा कउ खोजहि असंख मुनी अनेक तपे॥ ब्रहमे कोटि अराधहि गिआनी जाप जपे॥
"ए मन ऐसा सतिगुरु खोजि लहु जितु सेविऐ जनम मरण दुखु जाइ ॥
"खोजत खोजत मारगु पाइओ साधू सेव करीजै ॥
"खोजत खोजत खोजि बीचारिओ राम नामु ततु सारा ॥
"मेरे राम हउ सो थानु भालण आइआ॥ खोजत खोजत भइआ साधसंगु तिन॑ सरणाई पाइआ॥१॥
"सेवक गुरमुखि खोजिआ से हंसुले नामु लहंनि ॥२॥
"वडभागी घरु खोजिआ पाइआ नामु निधानु ॥
"मै खोजत खोजत जी हरि निहचलु सु घरु पाइआ॥
"खोजत खोजत खोजिआ नामै बिनु कूरु ॥
"खोजत खोजत घटि घटि देखिआ ॥
"खोजी खोजि लधा हरि संतन पाहा राम ॥
"जा महि सभि निधान सो हरि जपि मन मेरे गुरमुखि खोजि लहहु हरि रतना ॥
"खोजत खोजत दुआरे आइआ॥ ता नानक जोगी महलु घरु पाइआ॥
"काइआ नगरी सबदे खोजे नामु नवं निधि पाई ॥२२॥
"सुरि नर मुनि जन अंम्रितु खोजदे सु अंम्रितु गुर ते पाइआ ॥
"खोजत खोजत अंम्रितु पीआ ॥
"गुरमुखि खोजत भए उदासी॥
"बाहरि मूलि न खोजीऐ घर माहि बिधाता ॥
"मै मनु तनु खोजि ढंढोलिआ किउ पाईऐ अकथ कहाणी ॥
"इह बिधि खोजी बहु परकारा बिनु संतन नही पाए ॥
"ग्रिहि सरीरु गुरमती खोजे नामु पदारथु पाए ॥८॥
"गुरपरसादी काइआ खोजे पाए जगजीवनु दाता हे ॥८॥
"अंदरु खोजे सबदु सालाहे बाहरि काहे जाहा हे ॥६॥
"दिल महि खोजि दिलै दिलि खोजहु एही ठउर मुकामा ॥२॥
"जहा जाईऐ तह जल पखान॥ तू पूरि रहिओ है सभ समान॥ बेद पुरान सभ देखे जोइ॥ ऊहां तउ जाईऐ जउ ईहां न होइ॥२॥
"दखन देसि हरी का बासा पछिमि अलह मुकामा॥ दिल महि खोजि दिलै दिलि खोजहु एही ठउर मुकामा॥२॥

सो भाई गुरमति गिआन लवो, हुकम दी सोझी लवो, गुणां दी विचार करिआ करो। गुरबाणी तों ही गुरबाणी दे अरथ खोजो। बाहर जिहड़ा संसार सरीर दीआं अखां नाल दिसदा है वखरा है घट अंदरला गिआन सोझी दे अंजन/नेत्रा नाल दिसदा है "गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु॥हरि किरपा ते संत भेटिआ नानक मनि परगासु॥१॥। सो बाणी नूं आप पड़्हो, बाणी विचों बाणी दे अरथ खोजो। संपूरन भरोसा गुरमति ते आस रखो। गुरबाणी ब्रहम दा गिआन है। मानुख दी टेक गुरमति विच वरजित है। इस लई गुरबाणी दा उपदेस़ है "रिदै इखलासु निरखि ले मीरा॥ आपु खोजि खोजि मिले कबीरा॥भाव आपणे हिरदे विच इखलास (भरोसा), रख मीरा (बुध), आप खोजण ते जो खोज रहे हां मिल जांदा है।


Source: ਉਤਪਤਿ ਪਰਲਉ