Source: ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਅਤੇ ਖੰਡੇ ਦੀ ਪਹੁਲ (Amrit vs Khandey di Pahul)

अंम्रित अते खंडे दी पहुल (Amrit vs Khandey di Pahul)

"अंम्रितु पीवै अमरु सो होइ॥ – अंम्रितु पीण नाल अमर हो जांदा है। इह किहड़ा अंम्रित है? जो प्रचारक पिला रहे ने उह की है फेर जे पीण वाला अमर नहीं हो रहिआ?

"गुर का सबदु अंम्रितु है सभ त्रिसना भुख गवाए ॥ – जो स़बद गुरू सानू अंदरो सुणाउंदा है ओह अंम्रित है फिर किहड़ी तिख पिआस बुझदी है? जो असी अंम्रित नूं बाहरले बदेही (सरीर) वाले मूंह नाल पींदे हां ओह खंडे बाटे दी पाहुल है। पहुल ते अंम्रित विच फरक है। जो नामु अंम्रित है ओस नूं बाहरले मूंह नाल पीण दी लोड़ है। इस बारे विचार करांगे। गुरबाणी दा फुरमान है, जेकर बाहरले मूंह नाल ही अंम्रित पी हुंदा है तां फिर बाहरली बदेही (सरीर) नूं अमर होणा चाहीदा है, लेकिन इह तां बाहरला सरीर किसे दा वी अमर नही हुंदा। इथों सपस़ट हुंदा है कि अम्रित वी मन दे पीण वाला है अते अमर वी निराकारी जोति सरूप करके ही होणा है, मुकती (अगिआनता खतम होण) तो बाअद जनम पदारथ मिलणा है। इही परमपद है। गुरु अंगद देव जी महाराज सपस़ट करदे हन के "जिन वडिआई तेरे नाम की ते रते मन माहि॥ नानक अंम्रितु एकु है दूजा अंम्रितु नाहि॥ नानक अंम्रितु मनै माहि पाईऐ गुर परसादि॥ तिन॑ी पीता रंग सिउ जिन॑ कउ लिखिआ आदि॥१॥ – भाव जिंनां कोल नाम (सोझी) दी वडिआई है उह नाम नाल रते हुंदे हन, उहनां दा मन विकारां ते अगिआनता दी थां गुरमति दी, हुकम दी सोझी नाल भिजिआ हुंदा हे। पातिस़ाह आखदे परमेसर दे हुकम नाल एका ही अंम्रित गिआन है तत गिआन है। परमेसर दे हुकम नाल एका होणा ही अमर करदा, मन जोत सरूप है, जदों आपणे आप नूं जोत सरूप मंन लैंदा है तां अमर हुंदा। जोत आप अकाल रूप है। "बीज मंत्रु सरब को गिआनु॥ – इह गिआन दा, सोझी दा अंम्रित तां मन दे अंदर ही मौजूद है ते प्रापत गुणा दी किरपा नाल ही हुंदा है।

"नउ निधि अंम्रितु प्रभ का नामु॥ देही महि इस का बिस्रामु॥ – अंम्रित तां प्रभ दा नाम है ते देही (घट) विच ही इसदा निवास है।

"जिनी आतमु चीनिआ परमातमु सोई॥ एको अंम्रित बिरखु है फलु अंम्रितु होई ॥६॥ अंम्रित फलु जिनी चाखिआ सचि रहे अघाई॥ तिंना भरमु न भेदु है हरि रसन रसाई ॥७॥ – आतम चिनहित कर लैणा, पछाण लैणा, समझ लैणा के "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥ मन हरि जी तेरै नालि है गुरमती रंगु माणु॥ मूलु पछाणहि तां सहु जाणहि मरण जीवण की सोझी होई॥ गुरपरसादी एको जाणहि तां दूजा भाउ न होई॥ मनि सांति आई वजी वधाई ता होआ परवाणु॥ इउ कहै नानकु मन तूं जोति सरूपु है अपणा मूलु पछाणु॥५॥, मूल पछाण लैणा ही चीनणा है। आतम पछाण के जो सोझी प्रापत होणी है उही बिरख है जिस ते अंम्रित फल प्रापत होणा। इह अलंकार है। इथे समझाइआ जा रहिआ है के आतम पछाण करनी, फेर आतम दे गुण विचारने हन। अकाल, काल, हुकम बिरख है, गुण फल हन। जिसने इह गुणां दा अंम्रित फल चख लिआ सच दी सोझी उसनूं ही होणी।

जदों गुण धारण कर लए, गुरमति विचार राहीं सोझी मिल गई तां इस गुर प्रसाद राहीं अंम्रित दी प्रापती होणी। इसे गल नूं उपरोकत पंकतीआ विच राग आसा राहीं नानक पातिस़ाह ने वी समझाइआ है ते उहनां दी बाणी खालसा फौज साजे जाण ते खंडे दी पाहुल तों पहिलां ही सिखां नूं प्रचारी जा रही सी ते दसम पातिस़ाह नूं बाहरी अंम्रित वखरा बणाउण दी लोड़ नहीं सी ना उहनां बणाइआ। दसम पातिस़ाह ने जो खालसा फौज साजी उस विधी नूं अंम्रित नाम नहीं दिता। उसनूं खंडे दी पाहुल आखिआ जो खालसे दी फौज दा इक प्रण है के खालसा फौज खालसे दे गिआन, विचार ते खरा उतरू ते गुरमति दे विच दसे अंम्रित, गिआन, सोझी दी राखी करू। खंडे दी पहुल नूं पंडत ने ही अंम्रित दा नाम दे के निजी सवारथ लई प्रचारिआ। ता ही नौजवान उहनां दी घड़ी दसम पातिस़ाह तों वखरी पहुल नूं छक के, बाणा पा के होर वी अहंकारी हो रहे हन। बाणा, दुमाला, खंडे दी पहुल फौज दी भरती है। खालसे दी फौज ने अकाल दी फौज ने तां अहंकार खतम करना सी, मैं मारनी सी पर आपणे आप नूं बाकीआं तों जिआदा चंगा समझण लग पए, अहंकार होर वधा लिआ। दसम पातिस़ाह तां आखदे "ख़ालसा मेरो सतिगुर पूरा॥ ख़ालसा मेरो सजन सूरा ॥ ख़ालसा मेरो बुध अर गिआन॥ कौण इस कसवटी ते खरा उतरदा ते किवें? जो भगत कबीर जी ने खालसे दी परिभास़ा दिती "कहु कबीर जन भए खालसे प्रेम भगति जिह जानी॥ – किसने प्रेम भगत समझी, विचारी ते धारण कीती? गुरबाणी तां आखदी "मन मारे बिनु भगति न होई ॥" दसो कितने हन जिहनां मन (अगिआनता/ दलिदर/विकार) मारे? किसने गिआन खड़ग धारण कीती मन नाल लड़न लई "गिआन खड़गु लै मन सिउ लूझै मनसा मनहि समाई हे ॥३॥? सरबलोह दीआं किरपानां खड़ग सारे ही चकी फिरदे पर गिआन खड़ग कितनिआं कोल है? दसम पातिस़ाह आखदे "पूरन जोति जगै घट मै तब खालस ताहि न खालस जानै ॥१॥ – जोत की है किसने समझिआ? पूरन जोत जगदी किवें किस ने विचारिआ? ते बिना गुरमति दा गिआन लए पातिस़ाह आखदे "गिआन के बिहीन काल फास के अधीन सदा जुगन की चउकरी फिराए ई फिरत है ॥। बिना गिआन दे बिना सोझी दे बथेरे भेखी बाणा पा के आपणे आप नूं खालसा अखवाई जांदे ने। "भेख दिखाइ जगत को लोगन को बसि कीन॥ अंत काल काती कटिओ बासु नरक मो लीन॥। खालसे दी अवसथा तों बहुत दूर होण दे बावजूद। खालसे ने तां हउमैं तिआग के आपणा सीस (मैं) गुरमति नूं गिआन गुरू नूं संपूरन समरपित करनी सी? कौण कर रहिआ? । दसम पातिस़ाह आखदे "सुआंगन मै परमेसुर नाही॥ खोज फिरै सभ ही को काही॥ अपनो मनु कर मो जिह आना॥ पारब्रहम को तिनी पछाना॥५५॥

बाबीहा सगली धरती जे फिरहि ऊडि चड़हि आकासि॥ सतिगुरि मिलिऐ जलु पाईऐ चूकै भूख पिआस॥ जीउ पिंडु सभु तिस का सभु किछु तिस कै पासि॥ विणु बोलिआ सभु किछु जाणदा किसु आगै कीचै अरदासि॥ नानक घटि घटि एको वरतदा सबदि करे परगास॥५८॥ – बाबीहा भाव जिसनूं गिआन दी पिआस लगी है जे उह सगली धरती फिर लवे उसदी पिआस नहीं बुझदी। जदों सतिगुर (सचे दे गुण) मिलण तां जलु (अंम्रित गिआन),प्रापत हुंदा है ते उसदी भुख पिआस मिटदी है "ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन ॥

जो अज धरम सथानां ते काबिज हन उह किउं सही प्रचार नहीं कर रहे? किउं नहीं गुरमति वाले अंम्रित बारे सही प्रचार कर रहे? इक प्रचारक नूं कहिंदे सुणिआ के अंम्रित वखरे हुंदे ने। अंदरला वखरा है ते बाहरला वखरा है। जटां लई वखरा है ते रंगरेटिआं लई वखरा है। गुरबाणी तों पुछिआ तां गुरबाणी दा फुरमान है "नानक अंम्रितु एकु है दूजा अंम्रितु नाहि॥ जो आपां उपर पहिला ही विचार चुके हां। सो अंम्रित तां इको ही है, साडी बुध जिहड़ी है उह कुचजी होई पई है। दुहागण होई पई है जो मनमति करदी फिरदी।

गुरमति विच दसिआ अंम्रित तां भगतां ने ही प्रापत कीता है, जुगां जुगां तों भगतां नूं प्रापत हुंदा रहिआ है। गुरु नानक पातिस़ाह तों लैके दसम पातिस़ाह तक हरेक गुरु ने ग्रहण कीता है ते अगे वी आपणी बाणी राहीं सानूं बखस़िआ है। गुरबाणी विच भगत कबीर जी आखदे हन "बापि दिलासा मेरो कीन॑ा॥ सेज सुखाली मुखि अंम्रितु दीन॑ा॥ तिसु बाप कउ किउ मनहु विसारी॥ आगै गइआ न बाजी हारी॥१॥, "हरि का बिलोवना मन का बीचारा॥ गुर प्रसादि पावै अंम्रित धारा॥३॥ – बाप कौण? घट विच वसदा प्रभ ही पिता है, बुध ही माता है गुरमति विच "मति माता संतोखु पिता सरि सहज समायउ ॥। गुर (गुण) दे प्रसाद (सोझी) दुआरा अंम्रित सदीव रहिण वाला धारा (गिआन) प्रापत होणा है। भगत कबीर जी सवाल पुछदे हन "सूकर कूकर जोनि भ्रमे तऊ लाज न आई॥ राम नाम छाडि अंम्रित काहे बिखु खाई॥३॥ – सूकर (सूअर), कूकर (कुते) दी जोन विच फिरदा तूं आइआ है, तैनूं लाज नहीं आउंदी तूं गिआन तों भजदां। भाई जिहड़ा राम (रमे होए) दा नाम (सोझी) छड तूं बिख (माइआ, अगिआनता, विकारां) दा धिआन किउं कीता। कबीर जी आखदे ने के इह हुकम दी सोझी दा अंम्रित गिआन सुरत नूं पिलाउणा है "सुरति पिआल सुधा रसु अंम्रितु एहु महा रसु पेउ रे॥। इह वसत कबीर जी नूं गुणां ने दिती ते अगे उहनां जग नूं दिती, हुण जिसनूं इह भाग प्रापत होणगे उह ग्रहिण कर लवेगा "कोठरे महि कोठरी परम कोठी बीचारि॥ गुरि दीनी बसतु कबीर कउ लेवहु बसतु सम॑ारि॥४॥ कबीरि दीई संसार कउ लीनी जिसु मसतकि भागु॥ अंम्रित रसु जिनि पाइआ थिरु ता का सोहागु॥ – साडी बदेही (माइआ दा सरीर) विच देही (गिआन दा घट) वसदी है, इही कोठरे महि कोठरी है, जिवें पंचम पातिस़ाह आखदे हन "देही गुपत बिदेही दीसै॥ उदा ही। जे गिआन घट दी विचार करीए तां घट अंदरला गिआन हासिल होणा। इह गिआन कबीर जी ने, भगतां ने, गुरुआं ने सानूं पोथी साहिब विच दरज बाणी राही अगे दिता है। जितने वी जीव हन उहना सारिआं विच इह घट मौजूद है "अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी॥, ते कबीर जी आखदे हरेक जीव दे घट विच इह अंम्रित मौजूद है "भै बिचि भाउ भाइ कोऊ बूझहि हरि रसु पावै भाई॥ जेते घट अंम्रितु सभ ही महि भावै तिसहि पीआई॥२॥ पर इह अंम्रित गिआन पीणा उसी ने है जिसते किरपा होई। भगत नामदेव जी महाराज आखदे हन "पाछै बहुरि न आवनु पावउ॥ अंम्रित बाणी घट ते उचरउ आतम कउ समझावउ॥ आखदे "सोुइन कटोरी अंम्रित भरी॥ लै नामै हरि आगै धरी॥२॥ – सोुइन कटोरी भाव घट/देही तां अंम्रित नाल पहिला ही भरी होई है जिसनुं नामदेव जी ने हरि (घट अंदर वसदी गिआन दी जोत अगे धरी है। इह सब काव रूप विच अलंकार हन। कबीर जी तां नानक पातिस़ाह तों वी पहिलां होए हन। गुरमति दा अंम्रित दा फलसफ़ा तां आदि काल तों ही चलदा आ रहिआ है। जदों तों संसार बणिआ है इह गुरमति गिआन हमेस़ा तों ही रहिआ है। नानक पातिस़ाह वी इसे विचारधारा नूं अगे तोरदे हन ते इसदा पूरे संसार विच प्रचार करदे हन।

नानक पातिस़ाह आखदे हन के जिवें जिवें परमेसर दा, अकाल दा, हुकम दा गिआन मनुख नूं प्रापत हुंदा है ता इह नाम (सोझी) दा सदीव रहिण वाला अंम्रित पीता जांदा है "जिउ जिउ साहबु मनि वसै गुरमुखि अंम्रितु पेउ॥। जदों तक मन (अगिआनता/दलिदर/कामनावां) दी होंद है भगती नहीं हो सकदी "मन मारे बिनु भगति न होई॥२॥ ते नानक पातिस़ाह दसदे हन मन किवें मरू "चारे अगनि निवारि मरु गुरमुखि हरि जलु पाइ॥ अंतरि कमलु प्रगासिआ अंम्रितु भरिआ अघाइ॥ – गुणा नूं मिलिआं संसार दी अगन निवारी जादी है "गुरि मिलिऐ सुखु पाईऐ अगनि मरै गुण माहि ॥१॥। गुणा नूं हासल कर, गुणां दी विचार कीतिआं, अवगुण खतम होणे, बुध विच जदों गिआन दे रतन माणक होण तां मन काबू हुंदा है। मन काबू हुंदिआं ही मनमति नूं खतम कर गुरमति दा अंम्रित घट विच वसदी अकाल दी जोत नूं उजागर करदा है। जदों पातिस़ाह आखदे "हरि का नामु धिआइ कै होहु हरिआ भाई॥ तां इह अंम्रित ही है जो घट विच गिआन दी हरिआली करदा है "गुण निधान अंम्रितु हरि नामा हरि धिआइ धिआइ सुखु पाइआ जीउ ॥१॥

इह गल चेते रहे के "अंम्रितु साचा नामु है कहणा कछू न जाइ ॥,

"गुर के भाणे विचि अंम्रितु है सहजे पावै कोइ ॥,

"गुर का सबदु अंम्रितु है जितु पीतै तिख जाइ ॥,

जिहवा रती सबदि सचै अंम्रितु पीवै रसि गुण गाइ ॥,

अंदरु लगा राम नामि अंम्रित नदरि निहालु ॥१॥

"अंम्रित सदा वरसदा बूझनि बूझणहार॥ गुरमुखि जिन्ही बुझिआ हरि अंम्रित रखिआ उरि धारि॥ हरि अंम्रित पीवहि सदा रंगि राते हउमै त्रिसना मारि ॥अंम्रित हरि का नामु है वरसै किरपा धारि॥ नानक गुरमुखि नदरी आइआ हरि आतम रामु मुरारि ॥२॥ – इसदा अरथ है अंम्रित ता केवल हरि दा नाम है उसदा हुकम है जे उसदी सोहेली नदर तेरे ते होवेगी तां। जिवें परमेस़र दा फुरमान है "पंडितु पड़ै बंधन मोह बाधा नह बूझै बिखिआ पिआरि ॥ जे परमेस़र तों बिखिआ विच कुझ मंगणा है ता उसदे हुकम विच खुस़ रहिण दी कला नूं मंगणा है "अंम्रित छोडि बिखिआ लोभाणे सेवा करहि विडाणी ॥ । पर मेरे वरगे मूरख अंम्रित छड दुनिआवी पदारथ मंगी जांदे ने। पातिस़ाह आखदे "बिखिआ अंम्रित एकु है बूझै पुरखु सुजाणु ॥४८॥ – बिखिआ (भीख), माइआ दी इछा ते अंम्रित दोवें परमेसर दी दया है। सब उसने आप ही देणा जिवें दा साडा किरदार, साडी इछा होई।

अंम्रित तों भाव हुंदा है ना म्रित होण वाला, ना मरन वाला। जिस विच कोई मिलावट, कोई घाट वाध नहीं हो सकदी। सदा थिर रहिण वाला। सदीव रहिण वाला।

अंम्रित नामु मंनि वसाए॥ हउमै मेरा सभु दुखु गवाए॥ अंम्रित बाणी सदा सलाहे अंम्रिति अंम्रितु पावणिआ॥१॥

गुरमति ने नाम (परमेसर दे गुणां दे गिआन तों प्रापत सोझी) नूं अंम्रित मंनिआ है। इस नूं प्रापत कीतिआं हउमै, मेरा तेरा, सब दुख (अगिआनता कारण विकार) गवाए जांदे हन। अंम्रित बाणी दी सिफत सालाह कीतिआं, अम्रिति भाव अंम्रित (अकाल/हुकम/परमेसर) दुआरा अम्रित (घट विच वसदी अकाल मूरत जोत) नूं इह प्रापती होणी है। अंम्रित गिआन महारस है, इह अंम्रित दुआरा केवल अंम्रित नूं ही प्रापत हो सकदा है। दूजा ना कोई दे सकदा है, ना कोई लै सकदा है। दूजा असल विच कोई होर दातार है ही नहीं।

गल नूं संखेप विच रखण खातर अंम्रित दे सारे स़बदां दी विचार नहीं कर रहे पर हुण तक कीती विचार नाल अंम्रित बारे गुरबाणी दा संदेस़ सपस़ट होणा चाहीदा है। असीं आस रखदे हां के तुसीं आप इसदी विचार अगे गुरमति विचों करोंगे। बस चेते रहे के अंम्रित नाम (सोझी) नूं आखिआ है बाणी विच जो गुणा दी विचार तों गुण धारण करन नाल प्रापत होणा। ते जो दसम पातिस़ाह ने सानूं बखस़ के निहाल कीता है उह खालसे फौज विच भरती दा नीअम है ते उसनूं खंडे दी पाहुल आखदे हन। जो खालसे लई खालसे दे फलसफे लई सिर देण नूं (मैं मारन नूं) तिआर होवे, मनमति छडण नूं तिआर होवे। गिआन खड़ग लै के पहिलां अंदर जंग करे ते गुरमति गिआन दी राखी, प्रचार, ते लोक भलाई लई तिआर होवे उह खंडे दी पहुल छके। इह सिखी विच दाखला नहीं, सीस भेंट कर देण दी गवाही है। सिख तां मनुख पैंदा हुंदिआं ही है। रोज सिखदा है। सिखदे सिखदे जदों गुर (गुण) सिखण लागे तां गुरसिख है, गुण सिख के आपणे जीवन विच इहनां नूं मुख रखे तां गुरमुख है, गुरमुखि भाव जदों गुणां नूं मुख रखिआं नाम (सोझी) प्रापत करके संमपूरन समरपित हो जावे तां दास है। दास कोई आस नहीं रखदा ना राज दी नां मुकती दी "राजु न चाहउ मुकति न चाहउ मनि प्रीति चरन कमलारे॥। जिवें परमेसर रखदा उदां ही रजिंदा। सब तों अखीरली ते उच अवसथा है भगत दी "पंडित सूर छत्रपति राजा भगत बराबरि अउरु न कोइ॥ – भगत रविदास जी महाराज सचे पातिस़ाह आखदे हन के पंडित (पड़िआ लिखिआ), सूर (सूरमा), छत्रपति राजा, इह सारिआं तों उपर भगत है। भगत बराबर होर कोरी नहीं। गुर हन गुण, गुरु है गुणां दा धारणी, गुरू है जो गुणां दी सिखिआ देवे ते अगिआनता दे हनेरे तों गिआन, सोझी, सहिज, आनंद दी अवसथा, वल लैके जावे। किसे देस़ दा फौजी वरदी पा के देस़ दे संविधान तों बागी हो जावे तां की सजा है? उदां ही जे अकाल दा, खालसे दा फौजी होवे ते उह तत गिआन नूं ना समझे, गुरमति गिआन तों सोझी ना लवे, आपणे संविधान "गुरमति तों बागी होवे, बाणा पा लवे, दुमाला सजा लवे, स़सतर धारण कर लवे पर गिआन खड़ग लै के, मन नाल ना लूझे तां उस नाल की होवे?

सो भाई गुरबाणी विच जो नाम समाइआ होइआ है "जनु नानकु बोले गुण बाणी गुरबाणी हरि नामि समाइआ॥ इही नाम (गुणां दी, हुकम दी, सहिज दी सोझी) अंम्रित है "अंम्रितु साचा नामु है कहणा कछू न जाइ॥, "गुरि अंम्रित नामु पीआलिआ जनम मरन का पथु ॥ – गुरि भाव गुर (गुण) ने ही अंम्रित नाम (सदीव रहिण वाली सोझी) पिलाणा है। गुरमति तों गिआन लै के इह अंम्रित पीता जाणा है। बाहरों जो पींदे हां उह खंडे दी पाहुल है, गुरू नूं समरपित होण दा प्रण है के असीं गुरमति गिआन दी राखी आपणे घट विच करांगे। नाम दा परगास असीं आपणे हिरदे विच करांगे। ते प्रेम भगती, गुर की मति, सारिआं विच एक जोत होण दा प्रचार, मानवता दी भलाई दा संदेस़ पूरी स्रिसटी विच प्रचारांगे। जात पात तों उपर गिआन नूं रखांगे। असीं उस सच धरम दे राखे हां अकाल दी फौज हां, सजण सूरमे हां, बुध ते गिआन दे पूरे हां। परमेसर दे गुण साडे विच वास करनगे ते करदे हन। निरवैरता, निरभओता दा गिआन रखांगे। बाणी पड़्हो समझो, विचारो तां के इह अंम्रित गिआन नूं धारण कर सकीए तां के साडी भगती स़ुरू हो सके "गुर की मति तूं लेहि इआने॥ भगति बिना बहु डूबे सिआने॥


Source: ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਅਤੇ ਖੰਡੇ ਦੀ ਪਹੁਲ (Amrit vs Khandey di Pahul)