Source: ਜਾਤ ਗੋਤ ਕੁਲ

जात गोत कुल

गुरमति विच सिखां लई जात गोत कुल वरजित है। गुरमति ब्रहम दा गिआन है ते सारे मनुखां विच एक जोत (समान जोत) देखण दा ही आदेस़ है। ना जात, ना कुल, ना गोत, ना रंग ना ही कोई होर भेद भाव मंनण दी माड़ी जही वी छूट है। पर असीं गुरू घर वखरे रखे होए ने अते असीं वेखिआ इक बहुत वडे रागी जदों अकाल चलाणा कर गए तां उहनां दा संसकार करन लई दो गज ज़मीन वी किसे ना दिती। अज वी बाटे वखरे रखे होए ने कई गुरसिख कहाउण वाले धिड़िआं ने। जे पुछो तां आखदे ने के रंगरेटिआं ने इक युध विच धोखा कीता सी इस कारण उहनां दा उदों तो बाटा वखरा है। भरोसा नहीं कर सकदे। ते मैं पुछिआ इक गलती पिछे तुसीं सारिआं दा बाटा वखरा कर दिता? भुल गए के रंगरेटा गुरू का बेटा वी इतिहास विच दरज है। गुरबाणी तों ता कोई इह भेदभाव खतम करन दा फुरमान कोई सुणदा नहीं। आपां विचार करांगे के गुरबाणी विच जात गोत कुल आदी बारे की कहिआ। ते सिख दी जाति की होणी चाहीदी गुरमति दे आधार ते इह वी समझांगे।

जाति जुलाहा मति का धीरु॥ सहजि सहजि गुण रमै कबीरु॥ – इहनां पंकतीआं नूं पड़्ह के लगदा की कबीर जी आपणी जात दस रहे ने। इथे अलंकार दी वरतो है। जुलाहा उहनां खास कहिआ ते अगे सपस़ट कीता है के जुलाहा दा अरथ "जो लाहा लवे उह जुलाहा है। किवें "ओछी मति मेरी जाति जुलाहा॥ हरि का नामु लहिओ मै लाहा॥३॥ अते "कबीर जाति जुलाहा किआ करै हिरदै बसे गुपाल॥ कबीर रमईआ कंठि मिलु चूकहि सरब जंजाल॥८२॥। उह तां हरि दे नाम (सोझी) दा लाहा लैण दी गल करदे पए ने। "नामा छीबा कबीरु जोुलाहा पूरे गुर ते गति पाई॥ ब्रहम के बेते सबदु पछाणहि हउमै जाति गवाई॥

उलटि जाति कुल दोऊ बिसारी॥ सुंन सहज महि बुनत हमारी॥१॥ – कबीर जी आखदे ने के जात अते कुल दोनों बिसार दितीआं हन।

जिहड़े माण नाल आपणी जात गोत कुल आदी दसदे ने उहनां नूं गुरमति दा संदेस़ है के अगे दरगाह विच ना जात ना देह जाणी उथे तां केवल जोत ने जाणा ते जोत दी कोई वखरी पछाण नहीं रहणी। पछाण तां सरीर कारण है इथे ही रहे जाणी सरीर/देह नाल सड़ जाणी "देही जाति न आगै जाए॥ जिथै लेखा मंगीऐ तिथै छुटै सचु कमाए॥ सतिगुरु सेवनि से धनवंते ऐथै ओथै नामि समावणिआ॥३॥ अगे तां सच (नाम/सोझी/हुकम/गुण) ही नाल जाणा।गुरमुखि जाति पति सभु आपे॥ नानक गुरमुखि नामु धिआए नामे नामि समावणिआ॥, "वदी सु वजगि नानका सचा वेखै सोइ॥ सभनी छाला मारीआ करता करे सु होइ॥ अगै जाति न जोरु है अगै जीउ नवे॥ जिन की लेखै पति पवै चंगे सेई केइ॥३॥

जाति वरन तुरक अरु हिंदू॥ पसु पंखी अनिक जोनि जिंदू॥ सगल पासारु दीसै पासारा॥ बिनसि जाइगो सगल आकारा॥५॥ – मनुख नूं चेते कराइआ जा रहिआ है के जाति वरन तुरक हिंदू जोनि संसार पसारा इह सब बिनस जाणा ते केवल जोत ही अजर अमर है। माइआ तो परे। "जाणहु जोति न पूछहु जाती आगै जाति न हे॥१॥, "आगै जाति रूपु न जाइ॥ तेहा होवै जेहे करम कमाइ॥ सबदे ऊचो ऊचा होइ॥ नानक साचि समावै सोइ॥

नाम (गुरमति गिआन दी सोझी) तो बिनां सब ही नीवीं जात है "भगति रते से ऊतमा जति पति सबदे होइ॥ बिनु नावै सभ नीच जाति है बिसटा का कीड़ा होइ॥७॥, कईआं ने वाहिगुरू वाहिगुरू ना रटण वालिआं नूं नीची जाति समझ के हंकार वधा लिआ। बिनां समझे के गुरमति नाम किसनूं आखदी। "पहिली करूपि कुजाति कुलखनी साहुरै पेईऐ बुरी॥ अब की सरूपि सुजानि सुलखनी सहजे उदरि धरी॥१॥  – इहनां पंकतीआं विच किसे औरत नूं कुजाति कुलखणी नहीं कहिआ। इथे बुध दी गल हो रही है जिस पहिली बुध नुं गिआन नहीं , अहंकार है, हौमे है, माइआ मगर भज रही है, सरूपि सुजान सुलखणी है नाम (सोझी) प्रापत कर चुकी बुध जिसनूं हुकम दी सोझी पै गई है, विकारां दे रोग नहीं हन।ए मना अति लोभीआ नित लोभे राता॥ माइआ मनसा मोहणी दह दिस फिराता॥ अगै नाउ जाति न जाइसी मनमुखि दुखु खाता॥ रसना हरि रसु न चखिओ फीका बोलाता॥ जिना गुरमुखि अंम्रितु चाखिआ से जन त्रिपताता॥१५॥

गुरमुखि जाति पति सचु सोइ॥ गुरमुखि अंतरि सखाई प्रभु होइ॥२॥ – गुरमुखि – गुणां नूं मुख रखण वालिआं दी जात केवल सच है, सच केवल नाम/सोझी/गिआन, हुकम, अकाल है जो कदे नहीं खरदा। गुणां नूं मुख रखण वालिआं दी सखाई (दोसती) प्रभ नाल हुंदी है। दोसती हुंदी दो + सती अरथ दो सति सरूपां दा एका। भगत जी तां आपणे आप नूं नीच जात आखदे हन, भावें उहनां कोल ब्रहम दा गिआन सी।

"मेरी जाति कमीनी पांति कमीनी ओछा जनमु हमारा॥ तुम सरनागति राजा राम चंद कहि रविदास चमारा॥५॥६॥,

"नामु जाति नामु मेरी पति है नामु मेरै परवारै॥ नामु सखाई सदा मेरै संगि हरि नामु मो कउ निसतारै॥१॥

हमरी जाति पाति गुरु सतिगुरु हम वेचिओ सिरु गुर के॥ जन नानक नामु परिओ गुर चेला गुर राखहु लाज जन के॥

कबीर को ठाकुरु अनद बिनोदी जाति न काहू की मानी॥

नीच जाति हरि जपतिआ उतम पदवी पाइ॥ – आखदे नीच जात सी, हरि जपतिआ (हरि दे नाम दी सोझी लिआं, हरि नूं पछाणदिआ) उतम पदवी पाई है।

गुरबाणी विच स़बद आउंदा है "नीच जाति हरि जपतिआ उतम पदवी पाइ॥ पूछहु बिदर दासी सुतै किसनु उतरिआ घरि जिसु जाइ॥ – इहनां पंकतीआं नूं पड़्ह के भुलेखा लग सकदा है के गुरमति जात पात नूं प्रवानगी दिंदी है। इह गल सरासर गलत है। गुरमति विच नीच जात उही है जो गिआन ना लवे। नाम (सोझी) दी विचार ना करे। माइआ मगर भजे। हरि समझण लई वेखो "हरि। इथे दसिआ इह जा रहिआ है के मनमुख वी गिआन लैके, नाम दा अंम्रित लैके हरिआ हो जांदा है ते उतम पदवी पा लैंदा है।

ते साडे विचों कई वीर भैण टेवे मिला रहे हुंदे ने दुनिआवी जाति गोत आदी वेख के। इह तां सपस़ट हो रहिआ है के गुरू वाली सिखी दा प्रचार तां अज हो नहीं रहिआ। सिखी तां परमेसर नूं "अजाते आख रही है, नानक पातिस़ाह कह रहे ने "एकम एकंकारु निराला॥ अमरु अजोनी जाति न जाला॥ अगम अगोचरु रूपु न रेखिआ॥ खोजत खोजत घटि घटि देखिआ॥, नानक पातिस़ाह तां परमेसर नूं एकंकार नूं घट घट (हरेक जीव) विच देख रहे ने ते असीं जात पात छड नहीं पा रहे। मनुखां नूं जाति पाति रंग उहदा वेख ते वंड रहे हां। "ओहु सभ ते ऊचा सभ ते सूचा जा कै हिरदै वसिआ भगवानु॥ जन नानकु तिस के चरन पखालै जो हरि जनु नीचु जाति सेवकाणु॥४॥४॥ हुण इह साडी मरज़ी है के असीं इह पड़्ह के वी जात पात मंनणी है जां नहीं। "ना मै जाति न पति है ना मै थेहु न थाउ॥ सबदि भेदि भ्रमु कटिआ गुरि नामु दीआ समझाइ॥२॥

आदि निरंजनु प्रभु निरंकारा॥ सभ महि वरतै आपि निरारा॥ वरनु जाति चिहनु नही कोई सभ हुकमे स्रिसटि उपाइदा॥१॥ लख चउरासीह जोनि सबाई॥ माणस कउ प्रभि दीई वडिआई॥ इसु पउड़ी ते जो नरु चूकै सो आइ जाइ दुखु पाइदा॥२॥

इह गल उसनूं ही समझ आउणी है जिस नूं नाम समझा दिता गुर ने ते भरम कट दिता आपणी मनुख होण दी गल उसनूं समझ आउणी जिसनूं आप जोत सरूप होण दा पता चल गिआ।

हरेक मनुख आपणी जाति नूं उतम दसदा, जट आखदे असीं उतम, भापे, तरखाण, ब्राहमण इह सब नाम मनुख दे दिते होए ने। पुछो तुसीं उतम किवें? तुहाडा खून लाल नहीं? सिर ते कलगी लै के पैदा हुंदे? तुहाडे विच लोग हंकार नहीं करदे, चोरी ठगी कतल नहीं करदे? लालच नहीं करदे जां होर किसे कारण आपणे आप नूं उतम मंनी बैठे हों? इही गल भगत जी ने ब्राहमण तो पुछी "जौ तूं ब्राहमणु ब्रहमणी जाइआ॥ तउ आन बाट काहे नही आइआ॥२॥", ब्राहमण प्रचार करदे ने के ब्राहमण ब्रहमा दे मूह तों जंमे हन, भगत जी पुछदे जे तूं ब्रहमणी दा जाइआ है तां ब्रहमणी दे मुख तों किउं नहीं जनमिआ आम मनुख वांग किउं पैदा होइआ।

पतित जाति उतमु भइआ चारि वरन पए पगि आइ॥२॥ नामदेअ प्रीति लगी हरि सेती लोकु छीपा कहै बुलाइ॥ खत्री ब्राहमण पिठि दे छोडे हरि नामदेउ लीआ मुखि लाइ॥३॥ – भगत जी नूं पतित जाति आखदे सी, आखदे मैं तां उतम हो गिआ चारे वरन हुन पैरां विच हन जदों तों प्रीत हरि नाल लगी भावें लोग छीपा कहण। मैं ब्राहमण खत्री लई पिठ फेर लई है सारे छड दिते हन जदों तों हरि नूं हरि दे गुणां नूं मुख (अगे) रखिआ है अरथ माइआ वल धिआन छड हुकम दे गिआन दा धिआन है। हरि ही हरि दे भगत दी जाति हुंदी है।

हरि भगता की जाति पति है भगत हरि कै नामि समाणे राम॥ हरि भगति करहि विचहु आपु गवावहि जिन गुण अवगण पछाणे राम॥ गुण अउगण पछाणै हरि नामु वखाणै भै भगति मीठी लागी॥ अनदिनु भगति करहि दिनु राती घर ही महि बैरागी॥ भगती राते सदा मनु निरमलु हरि जीउ वेखहि सदा नाले॥ नानक से भगत हरि कै दरि साचे अनदिनु नामु सम॑ाले॥२॥ 

जाति का गरबु न करीअहु कोई॥ब्रहमु बिंदे सो ब्राहमणु होई॥१॥ जाति का गरबु न करि मूरख गवारा॥ इसु गरब ते चलहि बहुतु विकारा॥१॥ रहाउ॥ चारे वरन आखै सभु कोई॥ ब्रहमु बिंद ते सभ ओपति होई॥२॥ माटी एक सगल संसारा॥ बहु बिधि भांडे घड़ै कुम॑ारा॥३॥ पंच ततु मिलि देही का आकारा॥ घटि वधि को करै बीचारा॥४॥ कहतु नानक इहु जीउ करम बंधु होई॥ बिनु सतिगुर भेटे मुकति न होई॥५॥१॥" – जात दा गरब करन तों साफ़ ही मनाही है। ते पातिस़ाह आखदे ने के हरेक दी उतमती ब्रहम बिंद तों होई है। सब गोबिंद है। जो वी जात दा गरब करदा है मूरख गवार अगिआनता विच करदा है। सारिआं दी एको मिटी दा आकार है जिवें इको मिटी नाल घुमार वख वख भांडे बणाउंदा है उदां ही प्रभ ने सारे जीव घड़े हन। कोड़ घट है कौण वध इसदा फैसला असीं किवें कर सकदे हां। किसनूं जिआदा पिआर करदा रब किसनूं घट इह तां उसनूं ही पता है। जे आपणी सोच जे आपणी मति आपणी मैं, आपणा सिर सचे दे गुणां नूं भेंट नहीं कीता तां भवसागर, जम दे डंड, विकारां तों मुकती नहीं होणी। "हरि सिमरन की सगली बेला॥ हरि सिमरनु बहु माहि इकेला॥ जाति अजाति जपै जनु कोइ॥ जो जापै तिस की गति होइ॥३॥ – मनुख दी असल जाति है नाम (सोझी "नामे ही सभ जाति पति नामे गति पाई॥), ते परमेसर आप अजात है जात वरन तों बाहर है इह जो जाप (पछाण) लैंदा है समझ लैंदा है उसदी ही गति हुंदी है। "तुम॑रा जनु जाति अविजाता हरि जपिओ पतित पवीछे॥ हरि कीओ सगल भवन ते ऊपरि हरि सोभा हरि प्रभ दिनछे॥

इन बिधि हरि मिलीऐ वर कामनि धन सोहागु पिआरी॥ जाति बरन कुल सहसा चूका गुरमति सबदि बीचारी॥१॥ – गुर मति सबदि दी विचार राहीं बरन कुल जाति दा सहसा (स़ंका) खतम हो जांदा है ते इही हरि नूं मिलण दा तरीका है। जिवें कोई वधू वर आपणा सोहाग लभदी है, जीव दी बुध दा सुहाग हरि है। "मातर पितर तिआगि कै मनु संतन पाहि बेचाइओ॥ जाति जनम कुल खोईऐ हउ गावउ हरि हरी॥१॥

मनुख नूं विकार ठगदे हन। गुरमति दा फुरमान है "राजु मालु रूपु जाति जोबनु पंजे ठग॥ एनी ठगीं जगु ठगिआ किनै न रखी लज॥ एना ठगनि॑ ठग से जि गुर की पैरी पाहि॥ नानक करमा बाहरे होरि केते मुठे जाहि॥२॥ पर इह गल समझण वाले घट ही हन "ऐसे जन विरले जग अंदरि परखि खजानै पाइआ॥ जाति वरन ते भए अतीता ममता लोभु चुकाइआ॥७॥

नाम (गुरमति दी सोझी) ही जीव दी असली जात है पछाण है। कबीर जी आखदे "कबीर मेरी जाति कउ सभु को हसनेहारु॥ बलिहारी इस जाति कउ जिह जपिओ सिरजनहारु॥२॥ इह जो नाम है सोझी है इसदे दुआरा मैं सिरजणहार जपिओ अरथ जप लिआ है पछाण लिआ है। "कबीर डगमग किआ करहि कहा डुलावहि जीउ॥ सरब सूख को नाइको राम नाम रसु पीउ॥३॥ नाम दी गिआन दी सोझी दी प्रीत ऐसी है के हुकम, गोबिंद, परमेसर दे गुण समझ आ जांदे हन ते फेर किसे जीव नाल भेदभाव नहीं रहिंदा सारिआं विच एक जोत एक नूर दिसदा है। पता लग जांदा है के एक नूर ते ही सब जग उपजिआ है कोई मंदा नहीं कोई माड़ा नहीं सब हुकम विच है। आखदे "कबीर हरदी पीरतनु हरै चून चिहनु न रहाइ॥ बलिहारी इह प्रीति कउ जिह जाति बरनु कुलु जाइ॥५७॥ फेर आखदे जदों मैं मर गई मेरी मेरी खतम हो गई तां केवल तूं ही तूं दिसण लग पिआ। "कबीर ना मोुहि छानि न छापरी ना मोुहि घरु नही गाउ॥ मत हरि पूछै कउनु है मेरे जाति न नाउ॥६०॥

कबीर जाति जुलाहा किआ करै हिरदै बसे गुपाल॥ कबीर रमईआ कंठि मिलु चूकहि सरब जंजाल॥८२॥

जे कोई आखे मैं सिख हां मैनूं गुरमति नाल पिआर है। मैं गुरू का सिख हां गुरू नाल प्रेम करदा हां तां फेर गुरू दी गल पड़्ह के, समझ के मंनणी वी पैणी नहीं तां सहसा नहीं चूकणा। विकारां ने खैड़ा नहीं छडणा। गुरू नूं प्रेम करन वाले वीर भैण बाणी नूं समझ लैण ते जात पात दे जंजाल तों निकलण, इही प्रचार होणा चाहीदा।

अकसर असीं निहंग सिंघां से बोलिआ विच सुणदे हां

चौपई॥ ना हम चूड़्हा ना घुमिआर॥ ना जट अर नाही लुहार॥ ना तरखाण ना हम खत्री॥ हम हैं सिंघ भुजंगन छत्री॥ जात गोत सिंघन की दंगा॥ दंगा इन सतिगुर ते मंगा॥ खालसो हमरो बड धरम॥ मन दंगो करनो हमरो करम॥ मूरख जो गरब जात का करै॥ वहि भेडू मे हैं भेडन ररै॥ जात अर पात गुरू हमरो मिटाई॥ जब पांच सिंघ हम पहुल पिआई॥ सीधे दाड़्हे हमरो कूंडे मूछहिरे॥ सदा रहैं हम स़सत्रन पहिरे॥ हम गीदों गुरू स़ेर बनाइओ॥ जीवणे की है राहु बताइओ॥

सति गुर ने सानूं नाम (सोझी) दी गिआन खड़ग फड़ाई है। इसी गिआन खड़्हग नाल मन (अगिआनता) नाल लड़ाई करनी है विकारां नाल नित जंग, विकारां नाल दंगा /दंगल हुंदा "कामु क्रोधु अहंकारु निवारे॥ तसकर पंच सबदि संघारे॥ गिआन खड़गु लै मन सिउ लूझै मनसा मनहि समाई हे॥३॥


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