Source: ਮਾਲਾ ਫੇਰਨਿ

माला फेरनि

चौपई॥
इक तसबी इक माला धरही
एक कुरान पुरान उचरही ॥
करत बिरुध गए मर मूड़ा ॥
प्रभ को रंगु न लागा गूड़ा ॥२०॥
(Gur Gobind Singh, Chobis Avtar, Dasam Granth)

दसम पातसाह केहदे तुरकु ता तसबी फेरदे ने हिंदू माला फेरदे ने कई तुरकु कुरान उच्रदे ने कई हिंदू पुराण पड़दे ने इहो किरिआ करम करदे बुढे हो कि मर गए मूरख पर अपने मूल जोति ( प्रभ ) दा रंग़ न्ही चड़िआ फिर वी अंदिर दी दुबिधा खतम न्ही कर सके । इहो हाल़ अज अखौती सिखा दा माला फेरनि उची उची लौडसपीकर च एही कुछ हो रिहा ,,,, ? आंहदे आ अखे माला फेरो मन टिकदा है,,दसो कोहलू दे आसे पासे बलदां वांग घुंमण नाल किवें टिकदा मन?? गुरबाणी कहिंदी

गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥

इस मन नूं गिआन दे धागे नाल बंन्हणा है,,बाहरी किरिआवां नाल मन नी बंन्हिआ जांदा। भगत कबीर जी नूं जदों गिआन होइआ तां ओहनां ने माला छड दिती अते किहा

भूखे भगति न कीजै ॥यह माला अपनी लीजै ॥


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