Source: ਮੂਰਖ ਸਿਆਣਾ

मूरख सिआणा

मूरख कौण है ते कौण सिआणा? अकसर किसे नाल असहमती होवे उसनूं मूरख आख दिता जांदा है। जिथे तरक ना करना होवे जां विचार ना मिलदे होण इक दूजे दी गल नूं कटण लई मूरख आख दिंदे हन। जिवें मास बारे गुरमति तों विचार करन दी थां आपणी गल मनवाणी होवे धके नाल तां इह पंकती दा हवाला दे के गल वी नहीं करदे "मासु मासु करि मूरखु झगड़े गिआनु धिआनु नही जाणै॥ भावें गिआन दा धिआन आप वी ना करदे होण। अज दा मुदा गुरमति आधार ते इह पता करन दा है कौण मूरख है अते कौण सिआणा है।अज दा मुदा मास नहीं है पर जे किसे ने मास बारे गुरमति की आखदी है पड़्हना होवे तां वेख सकदा है "मास खाणा (Eating Meat) अते झटका (Jhatka)। मूरख बारे गुरबाणी आखदी

"ना को पड़िआ पंडितु बीना ना को मूरखु मंदा॥ बंदी अंदरि सिफति कराए ता कउ कहीऐ बंदा॥

"मूरखु सिआणा एकु है एक जोति दुइ नाउ॥

"हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआणा॥ मोख मुकति की सार न जाणा॥

एहु मनो मूरखु लोभीआ लोभे लगा लोुभानु॥

अंतरि ब्रहमु न चीनई मनि मूरखु गावारु॥

तेरे गुण बहुते मै एकु न जाणिआ मै मूरख किछु दीजै॥ प्रणवति नानक सुणि मेरे साहिबा डुबदा पथरु लीजै॥

सो मिलिआ जि हरि मनि भाइआ॥ सो भूला जि प्रभू भुलाइआ॥ नह आपहु मूरखु गिआनी॥ जि करावै सु नामु वखानी॥ तेरा अंतु न पारावारा॥ जन नानक सद बलिहारा॥

जीअ जंत सभि तिस दे सभना का सोई॥ मंदा किस नो आखीऐ जे दूजा होई॥४॥ – सारिआं विच एक परमेसर दी जोत है। मंदा तां किसे नूं आखीए जे कोई दूजा होवे।

मन दी मति (अगिआनता) विच आपणे विकारां मगर आपणी सोच नूं रखण वाला मूरख है। जे आतम गिआन ना लवे, अधिआतमिक सोझी ना होवे तां मन मूरख है। हुण सोचण वाली गल है के इस कसवटी ते कौण खरा उतरदा है। जे गिआन ना लवे, लोभ लालच विच फसिआ है, भावें दुनिआवी पड़्हाई किंनी वी कीती होवे गुरमति आधार ते मूरख ही रहू। इक दूजे नूं मूरख आखण दी थां जे गुरमति गिआन लवे तां किते सिआणप होवे नाम प्रापत कीतिआं। बाकी जे संसारी पधर ते आखदे "सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि॥

मैं मेरी तेरी दी सोच वाला मूरख है। वेखो मैं, मेरा, तेरा, वयकतीगत, विआपक की है?। जे करतार, करनेहार नूं विसार दिता तां मूरख है गवार है "हम कीआ हम करहगे हम मूरख गावार॥करणै वाला विसरिआ दूजै भाइ पिआरु॥ माइआ जेवडु दुखु नही सभि भवि थके संसारु॥ गुरमती सुखु पाईऐ सचु नामु उर धारि॥३॥ – आपणे आप नूं करता मंनी बैठा। मैं जी उह करना, मैं जी ऐदां करांगा तां मोख दुआरा मिल जाणा। अनिक जतन करदा मनुख मूरखता विच पर गिआन विचार तों भजदा।

कोई अखंड पाठ, कोई अखंड कीरतन, कोई मातरा, कोई उचारण विच फसिआ। बाणी समझण ते विचारन वल धिआन नहीं है। पंडितु पड़ि पड़ि उचा कूकदा माइआ मोहि पिआरु॥ अंतरि ब्रहमु न चीनई मनि मूरखु गावारु॥ दूजै भाइ जगतु परबोधदा ना बूझै बीचारु॥ बिरथा जनमु गवाइआ मरि जंमै वारो वार॥१॥ – पंडत वेद पाठ उची करके लोकां नूं प्रभावित करदा पर अंदरों माइआ इकठी करन दा सोचदा है। "मन के अंधे आपि न बूझहु काहि बुझावहु भाई॥ माइआ कारन बिदिआ बेचहु जनमु अबिरथा जाई॥३॥। अज दा प्रचारक वी इही करदा। जीव घट अंदर जिहड़ा ब्रहम बैठा ना उसदी खोज करदा, ना विचार करदा, सोझी ना आप लैंदा ना दूजिआं नूं गिआन लैण लई प्रेरित करदा उसनूं गुरमति मूरख मंनदी ते आखदी उह आपणा जीवन विअरथ गवा रहिआ है।

जे कोई तुहाडे प्रचार दे तरीके नाल सहमत ना होवे। रटण ना करे, उची उची वाजे वजा के स़बद गाइन ना करे उसनूं मूरख समझदे हन। जे कोई गिआन दी विचार कर रहिआ है ते उह रटण करन वाले नूं मूरख समझे, गाइन करन वाले नूं मूरख समझे इह वी गलत हे। जो दुमाला बनदा पग बनण वाले नूं मूरख आखदा। जो पग बनदा उह दाड़्हा बनण वाले नूं मूरख मंनदा। जो दाड़्ही बनदा उह दाड़्ही कटण वाले नूं मूरख समझदा। गिआन कितना है, गुरमति दी विचार कितनी हो रही है सोचण दी थां बस बाहरी भेख वल धिआन है जिसदे आधार ते मूरख सिआणे दी तुलना सारे ही करी जांदे। जे अज दे समे विच नानक पातिस़ाह आप आ के प्रचार करन तां लोकां ने फेर सेली टोपी वेखणी ते गिआन नहीं सुणना। गुरबाणी आखदी "ना को मूरखु ना को सिआणा॥ वरतै सभ किछु तेरा भाणा॥ अगम अगोचर बेअंत अथाहा तेरी कीमति कहणु न जाई जीउ॥३॥। इह खेड प्रभ दी रची होई है किसे नूं किसे धंदे लाइआ किसे नूं किसे होर पासे। जे कोई अगिआनता विच भटकिआ उह वी भाणा ते जे कोई गिआन विचार करदा उह वी भाणा "अपनै रंगि करता केल॥ आपि बिछोरै आपे मेल॥ इकि भरमे इकि भगती लाए॥ अपणा कीआ आपि जणाए॥३॥ ते किते रटण नूं, सबद गाइन नूं भगती ना मंन लिउ। गुरमति परिभास़ा भगती दी गुरमति। विचों खोज लिओ। "मन मारे बिनु भगति न होई ॥२॥ ते मन मारना अरथ जदों मन विच विकार उठणे बंद हो जाण। ते रटणा नाम प्रापती नहीं है नाम (सोझी) दी प्रापती हुंदी है गिआन नाल "पड़िआ मूरखु आखीऐ जिसु लबु लोभु अहंकारा॥ नाउ पड़ीऐ नाउ बुझीऐ गुरमती वीचारा॥ गुरमती नामु धनु खटिआ भगती भरे भंडारा॥ निरमलु नामु मंनिआ दरि सचै सचिआरा॥ जिस दा जीउ पराणु है अंतरि जोति अपारा॥ सचा साहु इकु तूं होरु जगतु वणजारा॥। नाम (सोझी) बूझण दी वसतू है "सतिगुरि नामु बुझाइआ विणु नावै भुख न जाई॥ इसनूं पदारथ वी कहिआ गुरबाणी विच। नाम बारे होर जानण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा? अते कीरतन की है "कीरतनु अते गुण किवे गउणे हन। पातिस़ाह तां आप फुरमाउंदे हन के "ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुगधा जनमु भइआ॥ प्रणवति नानक तिन॑ की सरणा जिन॑ तूं नाही वीसरिआ॥ कई होर उदाहरण दिंदे हन ते करतार तों आस करदे हन गिआन दी जिवें।

पंडितु सासत सिम्रिति पड़िआ॥ जोगी गोरखु गोरखु करिआ॥ मै मूरख हरि हरि जपु पड़िआ॥१॥ – आखदे पंडित ने सासत सिम्रित बेद पड़्हे (पर समझे नहीं), जोगी जोग मति वाले गोरख गोरख करदे रहे जिवें, सनातनी राम राम रटदे सी, सूफी अलाह अलाह करदे सी ते आखदे मैं मूरख हां जिसने हरि हरि जप (पछानण) दी पड़्हाई कीती। जपणा की है समझण लई वेखो "जपणा ते सिमरन करना ? नाम जापण दी गुरमति विधी की है ?। इदां ही फेर आखदे "संनिआसी बिभूत लाइ देह सवारी॥ पर त्रिअ तिआगु करी ब्रहमचारी॥ मै मूरख हरि आस तुमारी॥२॥ खत्री करम करे सूरतणु पावै॥ सूदु वैसु पर किरति कमावै॥ मै मूरख हरि नामु छडावै॥

राम नाम बिनु को थिरु नाही जीउ बाजी है संसारा॥ द्रिड़ु भगति सची जीउ राम नामु वापारा॥ राम नामु वापारा अगम अपारा गुरमती धनु पाईऐ॥ सेवा सुरति भगति इह साची विचहु आपु गवाईऐ॥ हम मति हीण मूरख मुगध अंधे सतिगुरि मारगि पाए॥ नानक गुरमुखि सबदि सुहावे अनदिनु हरि गुण गाए॥३॥ – आखदे राम नाम (राम दे गिआन दी सोझी) तों बिनां कोई थिर नहीं है। द्रिड़ भगती है मन वेच के राम दे नाम (सोझी) नूं प्रापत करना। इही सची भगत है आप गवाउणा ते सोझी लैणा। राम नाम बार बार राम राम रटणा नहीं है । इस बारे गुरमति दा सपस़ट फुरमान है "रामु रामु करता सभु जगु फिरै रामु न पाइआ जाइ॥, जिवें अखा बंद करके रोटी रोटी पुकारन नाल रोटी प्रकट नहीं हो जाणी, राम राम रटण नाल राम दी सोझी नहीं हुंदी। राम बारे जानण लई वेखो "गुरमति विच राम

मूरख उह वी है जिस विच अभिमान होवे। अभिमान राज, धन, जोबन, सुंदरता दा वी हो सकदा है ते गिआनी, पड़्हिआ लिखिआ, ग्रंथ रटे होण दा वी हो सकदा है। "जिस कै अंतरि राज अभिमानु॥ सो नरकपाती होवत सुआनु॥ जो जानै मै जोबनवंतु॥ सो होवत बिसटा का जंतु॥ आपस कउ करमवंतु कहावै॥ जनमि मरै बहु जोनि भ्रमावै॥ धन भूमि का जो करै गुमानु॥ सो मूरखु अंधा अगिआनु॥ करि किरपा जिस कै हिरदै गरीबी बसावै॥ नानक ईहा मुकतु आगै सुखु पावै॥१॥

मूरख मुगध अगिआन अवीचारी॥ नाम तेरे की आस मनि धारी॥२॥ जपु तपु संजमु करम न साधा॥ नामु प्रभू का मनहि अराधा॥३॥ किछू न जाना मति मेरी थोरी॥ बिनवति नानक ओट प्रभ तोरी॥

तीनि भवन महि एका माइआ॥ मूरखि पड़ि पड़ि दूजा भाउ द्रिड़ाइआ॥ बहु करम कमावै दुखु सबाइआ॥ सतिगुरु सेवि सदा सुखु पाइआ॥ – मनुख दे मन विच कई मतां दी खिचड़ी पकी होई है। किसे धरम विच मंनदे हन के जिहो जिहा असी भोजन खांदे हां साडा किरदार वैसा हो जांदा है। गुरमति इस गल नूं रद करदी है। सरीर दे भोजन दा मन दे भोजन (गिआन) नाल कोई लैणा देणा नहीं है। जोगी इक स़बद रटदे सी, साडे वी रटण लग पए। कई अखा बंद कर दे तपसिआ करदे सी, गुरबाणी इस नूं कटदी है "कल महि राम नामु सारु॥ अखी त मीटहि नाक पकड़हि ठगण कउ संसारु॥। इहनां विचों किसे नाल सुख नहीं प्रापत हुंदा, केवल सतिगुर दी सेवा नाल हुंदा है। ते सतिगुर दी सेवा गुरबाणी ने दसी है "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ -गुणां दी विचार, सबदु (हुकम) दी विचार। पर इह औखा कंम है इस लई इसनूं विरला ही कोई करदा बाकी तां सारे भजदे हन सौखा रसता लभण लई। कौण गुरबाणी पड़्ह के विचार के समझू, रब दे एजंट पहिलां आप थाप दिते फेर उहनां तों अरदासा करा लईआं ते आप बस मथा टेक के घरे तुर पए।

हम मूरख मुगध सरणागती मिलु गोविंद रंगा राम राजे॥ गुरि पूरै हरि पाइआ हरि भगति इक मंगा॥ मेरा मनु तनु सबदि विगासिआ जपि अनत तरंगा॥ मिलि संत जना हरि पाइआ नानक सतसंगा॥३

पंडित मैलु न चुकई जे वेद पड़ै जुग चारि॥ त्रै गुण माइआ मूलु है विचि हउमै नामु विसारि॥ पंडित भूले दूजै लागे माइआ कै वापारि॥ अंतरि त्रिसना भुख है मूरख भुखिआ मुए गवार॥ सतिगुरि सेविऐ सुखु पाइआ सचै सबदि वीचारि॥ अंदरहु त्रिसना भुख गई सचै नाइ पिआरि॥ नानक नामि रते सहजे रजे जिना हरि रखिआ उरि धारि॥ । सबद विचार ही गुर दी सेवा है ते नाम (सोझी सिआणप) प्रदान करदी है "अंम्रित नामु सदा सुखदाता अंते होइ सखाई॥ बाझु गुरू जगतु बउराना नावै सार न पाई॥ सतिगुरु सेवहि से परवाणु जिन॑ जोती जोति मिलाई॥ सो साहिबु सो सेवकु तेहा जिसु भाणा मंनि वसाई॥ आपणै भाणै कहु किनि सुखु पाइआ अंधा अंधु कमाई॥ बिखिआ कदे ही रजै नाही मूरख भुख न जाई॥

मूरख सिआणे वाली सोच हउमै विचों पैदा हुंदी है। हउमे विच ही कोई आपणे आप नूं सिआणा ते दूजे नूं मूरख समझदा है। "हउ विचि आइआ हउ विचि गइआ॥ हउ विचि जंमिआ हउ विचि मुआ॥ हउ विचि दिता हउ विचि लइआ॥ हउ विचि खटिआ हउ विचि गइआ॥ हउ विचि सचिआरु कूड़िआरु॥ हउ विचि पाप पुंन वीचारु॥ हउ विचि नरकि सुरगि अवतारु॥ हउ विचि हसै हउ विचि रोवै॥ हउ विचि भरीऐ हउ विचि धोवै॥ हउ विचि जाती जिनसी खोवै॥ हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआणा॥ मोख मुकति की सार न जाणा॥ हउ विचि माइआ हउ विचि छाइआ॥ हउमै करि करि जंत उपाइआ॥ हउमै बूझै ता दरु सूझै॥ गिआन विहूणा कथि कथि लूझै॥ नानक हुकमी लिखीऐ लेखु॥ जेहा वेखहि तेहा वेखु॥१॥

संसारी वसतूआं नूं सच मंनदा। गल बात विच सच ते झूठ लबदा। पता ही नहीं के गुरमति किस नूं सच ते किस नूं झूठ आखदी है। इसनूं मूरखता मंनिआ है गुरबाणी ने "सचा साहिबु एकु तूं जिनि सचो सचु वरताइआ॥ जिसु तूं देहि तिसु मिलै सचु ता तिन॑ी सचु कमाइआ॥ सतिगुरि मिलिऐ सचु पाइआ जिन॑ कै हिरदै सचु वसाइआ॥ मूरख सचु न जाणन॑ी मनमुखी जनमु गवाइआ॥ विचि दुनीआ काहे आइआ॥८॥। हर संसारी वसतू बिनस जांदी इस लई गुरमति ने झूठ मंनिआ है "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति॥ ते सच है अकाल, हुकम ते जोत जो सदीव रहिंदी है। जो आपणी होंद दी पछाण ना करे, आपणे घट अंदर वसदी जोत नूं ना पछाणे उसनूं मूरख आखिआ है। मन मूरख है किउंके भुला बैठा है के आप जोत सरूप है "सुणि सासत्र तूं न बुझही ता फिरहि बारो बार॥ सो मूरखु जो आपु न पछाणई सचि न धरे पिआरु॥४॥ सचै जगतु डहकाइआ कहणा कछू न जाइ॥ नानक जो तिसु भावै सो करे जिउ तिस की रजाइ॥। "मन मूरख अजहू नह समझत सिख दै हारिओ नीत॥ नानक भउजलु पारि परै जउ गावै प्रभ के गीत॥, अते "मनु जोगी मनु भोगीआ मनु मूरखु गावारु॥ मनु दाता मनु मंगता मन सिरि गुरु करतारु॥ पंच मारि सुखु पाइआ ऐसा ब्रहमु वीचारु॥। गुण गाइन दी विधी दसी है गुरमति ने। सारी स्रिसटी हुकम मंन के करते दे गुण गा रही है। जिंनां नूं हुकम दा गिआन हो गिआ जिहनां नूं इह सोझी (नाम) प्रापत हो गिआ उही सुखी रहिंदे हन "नानक नामि रते तिन सदा सुखु पाइआ होरि मूरख कूकि मुए गावारा॥३॥ 

आपे ही बलु आपि है पिआरा बलु भंनै मूरख मुगधाहा॥३॥

इहु संसारु सभु आवण जाणा मन मूरख चेति अजाणा॥ हरि जीउ क्रिपा करहु गुरु मेलहु ता हरि नामि समाणा॥२॥

कोटि ब्रहमंड को ठाकुरु सुआमी सरब जीआ का दाता रे॥ प्रतिपालै नित सारि समालै इकु गुनु नही मूरखि जाता रे॥१॥

हम मैले तुम ऊजल करते हम निरगुन तू दाता॥ हम मूरख तुम चतुर सिआणे तू सरब कला का गिआता॥१॥ – पंचम पातिस़ाह किसनूं चतुर सिआणा आख रहे ने, कौण करता है? किसनूं ऊजल करता आख रहे ने? कदे गुरमति दी खोज तां करीए।

कई पखंड करदे हन। भगतां बराबर आपणे आप नूं समझदे हन। डेरे बणा लए, गुरदुआरे बणा के प्रचार गुरू दे नाम दा करन दा दाअवा करदे हन पर लोकां नूं मगर ला के गिआन तों वांझा रखदे हन। गुरमति दा फुरमान है "धुरि भगत जना कउ बखसिआ हरि अंम्रित भगति भंडारा॥ मूरखु होवै सु उन की रीस करे तिसु हलति पलति मुहु कारा॥२॥से भगत से सेवका जिना हरि नामु पिआरा॥ तिन की सेवा ते हरि पाईऐ सिरि निंदक कै पवै छारा॥३॥। गुरमुख गुणां नूं मुख रखदा है ते इहो जहे ठगां दे मगर नहीं लगदा "मूरखु होवै सो सुणै मूरख का कहणा॥ मूरख के किआ लखण है किआ मूरख का करणा॥ मूरखु ओहु जि मुगधु है अहंकारे मरणा॥ एतु कमाणै सदा दुखु दुख ही महि रहणा॥ अति पिआरा पवै खूहि किहु संजमु करणा॥ गुरमुखि होइ सु करे वीचारु ओसु अलिपतो रहणा॥ हरि नामु जपै आपि उधरै ओसु पिछै डुबदे भी तरणा॥ नानक जो तिसु भावै सो करे जो देइ सु सहणा॥१॥

सिम्रिति सासत्र बहुतु बिसथारा॥ माइआ मोहु पसरिआ पासारा॥ मूरख पड़हि सबदु न बूझहि गुरमुखि विरलै जाता हे॥१५॥ आपे करता करे कराए॥ सची बाणी सचु द्रिड़ाए॥ नानक नामु मिलै वडिआई जुगि जुगि एको जाता हे॥

सो किसे नूं वी मूरख नहीं मंनणा, जे किसे कोल हजे गिआन नहीं है तां इह अरथ है के हजे हुकम नहीं होइआ उसनूं गिआन प्रापती दा। किसे नूं वी चार गलां जां संसारी नैतिकता कारण सिआणा नहीं मंन लैणा। अधिआतमिक गिआन गुरमति दी सोझी प्रापत होण ते कोई मूरख जां सिआणा नहीं दिसणा। असीं सारे ही जीवन भर सिखदे हां। सिखदे उह हां जो प्रभ दी आगिआ होवे। हां किसे दे मगर लग के पखंड ना करना ते गुरबाणी नूं ब्रहम दा गिआन समझ के पड़्हना है। गुरू, उसदे गिआन ते आपणे विच दा फ़ासला सानूं खतम करना है। मानुख की टेक नहीं करनी। जो अगले नूं समझ आइआ, जा नहीं समझ आइआ, अगला उही दस सकदा है। गुरू ते भरोसा रखण वाला गुणां दी, सबदु दी विचार आप करदा। गुरबाणी तों ही गुरबाणी दे अरथ खोजदा। आपणे आप विच गुरबाणी समरथ है गिआन दा घट विच उजिआरा करन लई। बाणी आप पड़्हो, समझो ते विचारो। इही गुर की सेवा है इही सिआणप है। गुरबाणी दा आदेस़ है "सोई धिआईऐ जीअड़े सिरि साहां पातिसाहु॥ तिस ही की करि आस मन जिस का सभसु वेसाहु॥ सभि सिआणपा छडि कै गुर की चरणी पाहु॥१॥

इहु मनु सुंदरि आपणा हरि नामि मजीठै रंगि री॥ तिआगि सिआणप चातुरी तूं जाणु गुपालहि संगि री॥१॥

मै मनि तेरी टेक मेरे पिआरे मै मनि तेरी टेक॥ अवर सिआणपा बिरथीआ पिआरे राखन कउ तुम एक॥१॥

तउ देवाना जाणीऐ जा एका कार कमाइ॥ हुकमु पछाणै खसम का दूजी अवर सिआणप काइ॥३॥

छोडि सगल सिआणपा मिलि साध तिआगि गुमानु॥अवरु सभु किछु मिथिआ रसना राम राम वखानु॥१॥

अमरु वेपरवाहु है तिसु नालि सिआणप न चलई न हुजति करणी जाइ॥ आपु छोडि सरणाइ पवै मंनि लए रजाइ॥ गुरमुखि जम डंडु न लगई हउमै विचहु जाइ॥ नानक सेवकु सोई आखीऐ जि सचि रहै लिव लाइ॥

दाति जोति सभ सूरति तेरी॥ बहुतु सिआणप हउमै मेरी॥ बहु करम कमावहि लोभि मोहि विआपे हउमै कदे न चूकै फेरी॥ नानक आपि कराए करता जो तिसु भावै साई गल चंगेरी॥

अवर सिआणप सगली पाजु॥ जै बखसे तै पूरा काजु॥

सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि॥ किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि॥ हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि॥१॥ – लख सिआणपा करलै इक नहीं चलणी। ते फेर सचिआरा किवें होणा? हुकम रजा विच चलणा जो धुरों लिखिआ है मंन लैण नाल सचिआरा होणा।


Source: ਮੂਰਖ ਸਿਆਣਾ