Source: ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ (ਸਚ ਵਾਪਾਰ)
गुरबाणी ने सच दी परिभास़ा दसी है जो कदे बिनसे नहीं, सदा रहण वाला ते जग रचना नूं झूठ दसिआ है गुरमति ने। फेर साधां नूं भोजन छकाउणा सचा सौदा किवें है? भुखे नूं भोजन छकाउणा समाजिक करम हो सकदा है ते इनसान दा मूल फ़रज़ है। पर सच दा वापारी तां सच दा ही वपार करेगा। नानक पातिस़ाह ने ना केवल साधां नूं, सिध कहाउण वालिआं नूं गिआन दा भोजन छकाइआ बलके गुरमति राहीं संसार नूं इह नाम (गिआन/सोझी) दा भोजन बखस़िआ है। दाल परसादा तां भावें मुक वी जावे पर गुरमति गिआन दा भोजन अतुट है "लंगरु चलै गुर सबदि हरि तोटि न आवी खटीऐ॥। नानक पातिस़ाह ने सचा भोजन दसिआ है, रागु माझ विच आखदे "सचा अंम्रित नामु भोजनु आइआ॥ गुरमती खाधा रजि तिनि सुखु पाइआ॥ ढाढी करे पसाउ सबदु वजाइआ॥ नानक सचु सालाहि पूरा पाइआ॥ अते रागु गउड़ी विच आखदे हन "भोजनु नामु निरंजन सारु॥। होर वी उदाहरण हन
"गिआनु गुड़ु सालाह मंडे भउ मासु आहारु॥ नानक इहु भोजनु सचु है सचु नामु आधारु॥२॥।
नामु जपै भउ भोजनु खाइ॥
सचा भोजनु भाउ सचु सचु नामु अधारा॥
साचा हरखु नाही तिसु सोगु॥ अंम्रितु गिआनु महा रसु भोगु॥ पंच समाई सुखी सभु लोगु॥३॥
भोजन गिआनु महा रसु मीठा॥ जिनि चाखिआ तिनि दरसनु डीठा॥ दरसनु देखि मिले बैरागी मनु मनसा मारि समाता हे॥१६॥
सचु वरतु संतोखु तीरथु गिआनु धिआनु इसनानु॥ दइआ देवता खिमा जपमाली ते माणस परधान॥ जुगति धोती सुरति चउका तिलकु करणी होइ॥ भाउ भोजनु नानका विरला त कोई कोइ॥१॥
ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन॥
नाम दा अरथ है गिआन तों प्रापत सोझी। बुध दा भोजन गिआन है,जिवें सरीर दा भोजन परसादा पाणी। गिआन मन नूं बंन के रखदा, विकारा वल नहीं जाण दिंदा "गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ॥। नाम बारे समझण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?। साडा नाम (सोझी),वल धिआन नहीं है। झूठीआं साखीआं सुण दस के, लोकां नूं भावुक करके घरे तुर पैंदा हां। गुरबाणी दा फुरमान है "गुरि कहिआ सा कार कमावहु॥ गुर की करणी काहे धावहु॥नानक गुरमति साचि समावहु॥ – गुर ने की कीता दी थां गुर ने की समझाइआ वल धिआन देणा औखा है तां ही लोकां नूं मूरख बणाउणा सौखा है धरम दे वापारीआं लई। कबीर जी ने आखिआ "कोठरे महि कोठरी परम कोठी बीचारि॥ गुरि दीनी बसतु कबीर कउ लेवहु बसतु सम॑ारि॥४॥ कबीरि दीई संसार कउ लीनी जिसु मसतकि भागु॥ अंम्रित रसु जिनि पाइआ थिरु ता का सोहागु॥ – जो बसत (बसतू) (नाम/सोझी/गिआन) कभीर जी महाराज नूं गुर ने बखस़ी है उह संसार नूं उहनां अगे दिती है पर लैणी उहने ही है जिस दे भाग होण नहीं तां मंगण ते देण ते जीव दा आपणा जोर नहीं है "जोरु न मंगणि देणि न जोरु॥
गुरबाणी ने सचा सौदा अरथ सच वापार वी समझाइआ है।
तेरा नामु सचा जीउ सबदु सचा वीचारो॥ तेरा महलु सचा जीउ नामु सचा वापारो॥ नाम का वापारु मीठा भगति लाहा अनदिनो॥ तिसु बाझु वखरु कोइ न सूझै नामु लेवहु खिनु खिनो॥ परखि लेखा नदरि साची करमि पूरै पाइआ॥ नानक नामु महा रसु मीठा गुरि पूरै सचु पाइआ॥
हाटी बाटी नीद न आवै पर घरि चितु न डोुलाई॥ बिनु नावै मनु टेक न टिकई नानक भूख न जाई॥ हाटु पटणु घरु गुरू दिखाइआ सहजे सचु वापारो॥ खंडित निद्रा अलप अहारं नानक ततु बीचारो॥
सचा वखरु नामु है सचा वापारा॥ लाहा नामु संसारि है गुरमती वीचारा॥ दूजै भाइ कार कमावणी नित तोटा सैसारा॥५॥
प्रेम पदारथु लहै अमोलो॥ कब ही न घाटसि पूरा तोलो॥ सचे का वापारी होवै सचो सउदा पाइदा॥८॥
कंचन सिउ पाईऐ नही तोलि॥ मनु दे रामु लीआ है मोलि॥१॥ – उसदा मोल कंचन (सोने) नाल तोल के नहीं पैंदा। मनु देके रामु लैणा पैंदा है।
इह है सचा वापार सचा सौदा जो नानक पातिस़ाह ने कीता। सौदा जां वापार उह हुंदा है जिस विच वेचण वाले नूं ते खरीदण वाले नूं दोहां नूं बराबर कुझ प्रापत होवे। सानूं आपणा मन गुर नूं कीमत देणी पैंदी है नाम (सोझी) परापत करन लई। की देणा पैणा नाम दे बदले इह वी समझाइआ है
तनु मनु गुर पहि वेचिआ मनु दीआ सिरु नालि॥
आपनड़ा मनु वेचीऐ सिरु दीजै नाले॥ गुरमुखि वसतु पछाणीऐ अपना घरु भाले॥५॥
अनदिनु लाले चाकरी गोले सिरि मीरा॥ गुर बचनी मनु वेचिआ सबदि मनु धीरा॥
गुर पूरे साबासि है काटै मन पीरा॥२॥
सो सचा सौदा है अवगुण, मन, तन, विकार, डर, संसा (स़ंका) गुर नूं दे के बदले विच नाम (सोझी) लैणा। हुकम नूं मंन लैणा। आसा मनसा गुरू नूं दे के बदले विच सहज, संजम, धरम ("सरब धरम महि स्रेसट धरमु॥ हरि को नामु जपि निरमल करमु॥) प्रापत करना। संसारी पदारथां दा सौदा करन वाले गुरू नूं संसारी पदारथ भेंट कर संसारी पदारथ ही मंगदे हन। भगत केवल भगवंत नाल प्रीत मंगदे हन।
बाणी नूं पड़्हो, विचारो, गुरमति दी सोझी लवो। सच दा वापार करो। भगतां ने वी इही कीता। संसारी पदारथ तां उसने वैसे ही दे देणे ने जे उसदी रजा होई।
Source: ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ (ਸਚ ਵਾਪਾਰ)