Source: ਦੁਨਿਆਵੀ ਉਪਾਧੀਆਂ ਬਨਾਮ ਗੁਰਮਤਿ ਉਪਾਧੀਆਂ
की अज दे सिख दे मन विच इह विचार कदे आइआ के जिंनां ने गुरू नूं सीस भेंट कीता ते पंज पिआरे थापे गए उहनां दे नाम अगे भाई लगदा, जिहड़े गुरू फ़रज़ंद हन उहनां दे नाम अगे बाबा लगदा पर गुर इतिहास विच किसे दे नाम अगे गिआनी, ब्रहम गिआनी, संत, साध, महां पुरख किउं नहीं लगिआ? अज तुरे फिरदे किसे वी कथावाचक, कीरतनीए दे नाम अगे गिआनी किवें लग जांदा है? किसे नूं वी पातिस़ाह, ब्रहम गिआनी कही जांदे हां। इसदी गुरमति कसवटी की है? वेखदे हां गुरबाणी किस नूं इह उपाधीआं बखस़दी है। पातिस़ाह दा आरथ हुंदा है पाति(राह) दा स़ाह किसने परमेसर तक जाण दी राह नूं जित लिआ होवे। उदां ही जिदां बादि (विवाद/झगड़ा) जितण वाले नूं बादिस़ाह आखदे हन। "मन मंधे प्रभु अवगाहीआ॥ एहि रस भोगण पातिसाहीआ॥ मंदा मूलि न उपजिओ तरे सची कारै लागि जीउ॥६॥ सच दा गिरमति अरथ पता होवे तां सची कारै दा पता लगे। गुरबाणी तां आखदी उपाधी रहित रहिणा है। सखी (बुध) नूं आदेस़ है "सुणि सखीए इह भली बिनंती एहु मतांतु पकाईऐ॥ सहजि सुभाइ उपाधि रहत होइ गीत गोविंदहि गाईऐ॥ ते फेर गुरमति विच स़बद लैके उपाधीआं रखण वालिआं ने इह किउं नहीं विचारिआ। होर वी बाणी है उपाध रहित होण बारे
"सहज समाधि उपाधि रहत फुनि बडै भागि लिव लागी॥कहि रविदास प्रगासु रिदै धरि जनम मरन भै भागी॥,
"गोबिदु सिमरि होआ कलिआणु॥ मिटी उपाधि भइआ सुखु साचा अंतरजामी सिमरिआ जाणु॥१॥,
"गुर के चरन रिदै उरि धारे॥ अगनि सागर ते उतरे पारे॥ जनम मरण सभ मिटी उपाधि॥ प्रभ सिउ लागी सहजि समाधि॥२॥,
"गुर बचनाति कमात क्रिपा ते बहुरि न कतहू धाइओ॥ रहत उपाधि समाधि सुख आसन भगति वछलु ग्रिहि पाइओ॥१॥
गिआनी
गुरमति वाला गिआनी कौण है "गुण वीचारे गिआनी सोइ॥ गुण महि गिआनु परापति होइ॥ (म १, रागु रामकली, ९३१) – जो गुणां दी विचार करे गुरमति अनुसार उसनूं गिआन प्रापत हुंदा है। गुण किसदे विचारने हन? गुण सच दे विचारने हन ते सच है अकाल, काल ते हुकम। इह कोई डिगरी नहीं है के २-४ साल किसे संसथा तों पड़्ह लिआ ते डिगरी मिल गई। गुरबाणी दा फुरमान है "जजा जानै हउ कछु हूआ॥ बाधिओ जिउ नलिनी भ्रमि सूआ॥ जउ जानै हउ भगतु गिआनी॥ आगै ठाकुरि तिलु नही मानी॥ जउ जानै मै कथनी करता॥ बिआपारी बसुधा जिउ फिरता॥ साधसंगि जिह हउमै मारी॥ नानक ता कउ मिले मुरारी॥ – जदों किसे नूं इह लगे के मैं कुझ बण गिआ हां गिआनी बण गिआ हां तां उह भरम विच फसिआ है ते अगे ठाकुर ने फेर उसदी नहीं मंनणी। जे कुझ प्रचार करदा झूठीआं साखीआं, अरथ गलत करदा बाणी दे उसनूं वपारी आखिआ है। पर जे गुणां दी विचार करे, साध संग करे, साध संग है साधिआ होइआ मन "ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ॥ – जो साधे होए मन दा संग करे, मुरारी (प्रभ, हरि, राम) उसनूं मिलदा। हरि बारे जानण लई पड़्हो "हरि।
गुरबाणी तां इह वी दसदी के गिआनी किहो जिहा होणा चाहीदा "प्रणवति नानक गिआनी कैसा होइ॥ आपु पछाणै बूझै सोइ॥ गुर परसादि करे बीचारु॥ सो गिआनी दरगह परवाणु॥ – गिआनी उह जो आपणे आप दी खोज करे ते परमेसर नूं बूझे, उसदे गुणां न समझे। पर अज दा गिआनी कहाउण वाला की करदा "मन के अंधे आपि न बूझहु काहि बुझावहु भाई॥ माइआ कारन बिदिआ बेचहु जनमु अबिरथा जाई॥३॥
गुरबाणी विच सवाल जवाब वी हन, पंजवें पातिस़ाह तों पुछिआ "कउणु सु गिआनी कउणु सु बकता॥ तां जवाब दिता "गुरमुखि गिआनी गुरमुखि बकता॥ – गुणां नूं मुख (अगे/ धिआन विच) रखण वाला गिआनी है। नानक पातिस़ाह ने कहिआ "आपु बीचारे सु गिआनी होई॥, गुरु तेग बहादर साहिब जी महाराज नूं पुछिआ तां बाणी विच दसदे हन "दुखु सुखु ए बाधे जिह नाहनि तिह तुम जानउ गिआनी॥ – जिस नूं हुकम दी सोझी हो गई होवे, ना दुख संतापे ना सुख बंधन बणे उह गिआनी है। बाणी आखदी "मनि साचा मुखि साचा सोइ॥ अवरु न पेखै एकसु बिनु कोइ॥ नानक इह लछण ब्रहम गिआनी होइ॥१॥, "गिआनीआ नो सभु सचु है सचु सोझी होई॥ ओइ भुलाए किसै दे न भुलन॑ी सचु जाणनि सोई॥। भगत कबीर जी महाराज दा फुरमान है "करु रे गिआनी ब्रहम बीचारु॥ जोती अंतरि धरिआ पसारु॥
सोई गिआनी जि सिमरै एक॥ सो धनवंता जिसु बुधि बिबेक॥ सो कुलवंता जि सिमरै सुआमी॥ सो पतिवंता जि आपु पछानी॥२॥ – गिआनी उह है जिसनूं एक दा पता होवे। एक समझण लई "एक, एकु, इक, इकु अते अनेक दा अंतर
गुरमति वाला गिआनी उह है जिस नूं नाम (सोझी) प्रापत है। इह दुनिआवी उपाधी नहीं है। गिआनी होण दा "सरटीफिकेट किसे पाठस़ाला तों नहीं मिलदा ते लोकां दे मंन लैण नाल जां कहण मातर नाल कोई गिआनी नहीं हो जांदा। "भगतु गिआनी तपा जिसु किरपा करै॥ जिस ते उह (परमेसर) आप किरपा करे नाम (सोझी) बखस़े।
ब्रहम गिआनी
अकसर देखदे हां के लोक किसे नूं वी ब्रहम गिआनी आख दिंदे हन जदों ब्रहम की है नहीं पता हुंदा। ब्रहम कौण है? इसदा गिआन की है? उसदे गिआनी दी अवसथा की है गुरमति अनुसार इह नहीं पता हुंदा। गुरबाणी विच ब्रहम, ब्रहमा, पारब्रहम, पूरनब्रहम वरतिआ गिआ है पर इहनां दे अरथां तों अज ज़िआदातर सिख वांझे हन। इहनां दे अरथ समझण लई वेखो "ब्रहम, ब्रहमा, पारब्रहम, पूरनब्रहम। बाणी विच खोजो इहनां दे अरथ। ब्रहम है जीव दे अंदर वसदी परमेसर दी जोत। जिस बारे गुरबाणी विच आखिआ "अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी॥। जदों मन ने पछाण लिआ के उह आप जोत सरूप है उसनूं गिआन हो गिआ के उह हाड मास दा बणिआ सरीर नहीं आप अकाल सरूप है तां इसनूं ब्रहम दा गिआन होणा "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥ मन हरि जी तेरै नालि है गुरमती रंगु माणु॥ मूलु पछाणहि तां सहु जाणहि मरण जीवण की सोझी होई॥ गुरपरसादी एको जाणहि तां दूजा भाउ न होई॥ मनि सांति आई वजी वधाई ता होआ परवाणु॥ इउ कहै नानकु मन तूं जोति सरूपु है अपणा मूलु पछाणु॥। जीव दे घट विच ही हरि वसदा। समझण लई पड़्हो "हरि। सवाल बणदा के जिंनां नूं ब्रहम बारे पता ही नहीं उह दूजिआ नूं ब्रहम गिआनी दी उपाधी किवें दे सकदे हन? इह चापलूसी, लोक पचारे लई तां नहीं? गुरबाणी तां आखदी ब्रहम गिआनी नूं ब्रहम गिआनी ही पछाण सकदा "ब्रहम गिआनी की गति ब्रहम गिआनी जानै॥
ब्रहम गिआनी दे लछण गुरबाणी विच दसे हन। नीचे दिती बाणी दी उदाहरण नूं सारे पड़्हदे हन पर कोई विचारदा नहीं। कुझ हिसे हाईलतईट कीते हन धीरज नाल पड़्ह के वेखो जिस मनुख नूं ब्रहम गिआनी आख रहे हां उह इहनां ते पूरा उतरदा है?
"मनि साचा मुखि साचा सोइ॥ अवरु न पेखै एकसु बिनु कोइ॥ नानक इह लछण ब्रहम गिआनी होइ॥१॥असटपदी॥ ब्रहम गिआनी सदा निरलेप॥ जैसे जल महि कमल अलेप॥ ब्रहम गिआनी सदा निरदोख॥ जैसे सूरु सरब कउ सोख॥ ब्रहम गिआनी कै द्रिसटि समानि॥ जैसे राज रंक कउ लागै तुलि पवान॥ ब्रहम गिआनी कै धीरजु एक॥ जिउ बसुधा कोऊ खोदै कोऊ चंदन लेप॥ ब्रहम गिआनी का इहै गुनाउ॥ नानक जिउ पावक का सहज सुभाउ॥१॥ ब्रहम गिआनी निरमल ते निरमला॥ जैसे मैलु न लागै जला॥ ब्रहम गिआनी कै मनि होइ प्रगासु॥ जैसे धर ऊपरि आकासु॥ ब्रहम गिआनी कै मित्र सत्रु समानि॥ ब्रहम गिआनी कै नाही अभिमान॥ ब्रहम गिआनी ऊच ते ऊचा॥ मनि अपनै है सभ ते नीचा॥ ब्रहम गिआनी से जन भए॥ नानक जिन प्रभु आपि करेइ॥२॥ ब्रहम गिआनी सगल की रीना॥ आतम रसु ब्रहम गिआनी चीना॥ ब्रहम गिआनी की सभ ऊपरि मइआ॥ ब्रहम गिआनी ते कछु बुरा न भइआ॥ ब्रहम गिआनी सदा समदरसी॥ ब्रहम गिआनी की द्रिसटि अंम्रितु बरसी॥ ब्रहम गिआनी बंधन ते मुकता॥ ब्रहम गिआनी की निरमल जुगता॥ ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन॥ नानक ब्रहम गिआनी का ब्रहम धिआनु॥३॥ ब्रहम गिआनी एक ऊपरि आस॥ ब्रहम गिआनी का नही बिनास॥ ब्रहम गिआनी कै गरीबी समाहा॥ ब्रहम गिआनी परउपकार उमाहा॥ ब्रहम गिआनी कै नाही धंधा॥ ब्रहम गिआनी ले धावतु बंधा॥ ब्रहम गिआनी कै होइ सु भला॥ ब्रहम गिआनी सुफल फला॥ ब्रहम गिआनी संगि सगल उधारु॥ नानक ब्रहम गिआनी जपै सगल संसारु॥४॥ ब्रहम गिआनी कै एकै रंग॥ ब्रहम गिआनी कै बसै प्रभु संग॥ ब्रहम गिआनी कै नामु आधारु॥ ब्रहम गिआनी कै नामु परवारु॥ ब्रहम गिआनी सदा सद जागत॥ ब्रहम गिआनी अहंबुधि तिआगत॥ ब्रहम गिआनी कै मनि परमानंद॥ ब्रहम गिआनी कै घरि सदा अनंद॥ ब्रहम गिआनी सुख सहज निवास॥ नानक ब्रहम गिआनी का नही बिनास॥५॥ ब्रहम गिआनी ब्रहम का बेता॥ ब्रहम गिआनी एक संगि हेता॥ ब्रहम गिआनी कै होइ अचिंत॥ ब्रहम गिआनी का निरमल मंत॥ ब्रहम गिआनी जिसु करै प्रभु आपि॥ ब्रहम गिआनी का बड परताप॥ ब्रहम गिआनी का दरसु बडभागी पाईऐ॥ ब्रहम गिआनी कउ बलि बलि जाईऐ॥ ब्रहम गिआनी कउ खोजहि महेसुर॥ नानक ब्रहम गिआनी आपि परमेसुर॥६॥ ब्रहम गिआनी की कीमति नाहि॥ ब्रहम गिआनी कै सगल मन माहि॥ ब्रहम गिआनी का कउन जानै भेदु॥ ब्रहम गिआनी कउ सदा अदेसु॥ ब्रहम गिआनी का कथिआ न जाइ अधाखॵरु॥ ब्रहम गिआनी सरब का ठाकुरु॥ ब्रहम गिआनी की मिति कउनु बखानै॥ ब्रहम गिआनी की गति ब्रहम गिआनी जानै॥ ब्रहम गिआनी का अंतु न पारु॥ नानक ब्रहम गिआनी कउ सदा नमसकारु॥७॥ ब्रहम गिआनी सभ स्रिसटि का करता॥ ब्रहम गिआनी सद जीवै नही मरता॥ ब्रहम गिआनी मुकति जुगति जीअ का दाता॥ ब्रहम गिआनी पूरन पुरखु बिधाता॥ ब्रहम गिआनी अनाथ का नाथु॥ ब्रहम गिआनी का सभ ऊपरि हाथु॥ ब्रहम गिआनी का सगल अकारु॥ ब्रहम गिआनी आपि निरंकारु॥ ब्रहम गिआनी की सोभा ब्रहम गिआनी बनी॥ नानक ब्रहम गिआनी सरब का धनी॥"
महा पुरख
सनातन मति विच छे प्रमुख मतां जिहनां नूं दरस़न वी कहिआ है, हन जिहनां विचों सांख मति दा मंनणा है के पुरुस़ केवल इक (परमेसर) है ते बाकी सारे जीवां दी जोत इसत्री है ते इहनां इसत्रीआं ने पुरुस़ नूं मिलणा है। अज सनातन मति विच वी ते सिखां विच वी नामसझी कारण इहनां मतां दी खिचड़ी बणी होई है। इह खिचड़ी गुरुआं ते भगतां समे वी सी ते बाणी ने आखिआ "छिअ घर छिअ गुर छिअ उपदेस॥ गुरु गुरु एको वेस अनेक॥१॥ बाबा जै घरि करते कीरति होइ॥ सो घरु राखु वडाई तोइ॥१॥ अरथ इह जिहड़े छिअ घर हन इहनां विच गुणां नूं दसण ते समझााउण दी कोस़िस़ कीती गई है पर गुर (गुण) एक ही हन। ते जिहड़े घर विच तेरे नाम (सोझी) दी वडिआई होवे उस घर विच तूं आप रख। जे सांख मति नूं मंनदे हां तां "इसु जग महि पुरखु एकु है होर सगली नारि सबाई॥ सभि घट भोगवै अलिपतु रहै अलखु न लखणा जाई॥ पूरै गुरि वेखालिआ सबदे सोझी पाई॥ पुरखै सेवहि से पुरख होवहि जिनी हउमै सबदि जलाई॥ तिस का सरीकु को नही ना को कंटकु वैराई॥ निहचल राजु है सदा तिसु केरा ना आवै ना जाई॥ अनदिनु सेवकु सेवा करे हरि सचे के गुण गाई॥ नानकु वेखि विगसिआ हरि सचे की वडिआई॥२॥" आखदे जिस नूं घट भीतर ब्रहम दी सोझी हो जावे, हरि दा मंदर इह सरीर है समझ आ जावे उह जोत आप ही पुरख हो जांदी है। "हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ॥मनमुख मूलु न जाणनी माणसि हरि मंदरु न होइ॥२॥ हरि मंदरु हरि जीउ साजिआ रखिआ हुकमि सवारि॥ धुरि लेखु लिखिआ सु कमावणा कोइ न मेटणहारु॥ पर असीं हरि मंदर बाहर वाला मंन लिआ। हरिमंदर स़बद दी वरतो नानक पातिस़ाह ने वी कीती है जदों अंम्रितसर विखे सथापित गुरू घर दी नींव वी नही रखी गई सी "प्रभु हरिमंदरु सोहणा तिसु महि माणक लाल॥ मोती हीरा निरमला कंचन कोट रीसाल॥ बिनु पउड़ी गड़ि किउ चड़उ गुर हरि धिआन निहाल॥२॥ (म १, रागु सिरी रागु, १७)। सोचण वाली गल है के गुरूघर सथापित करन वाले गुरु साहिब ने इसदा नाम हरि मंदिर नहीं रखिआ सी, इह तां पंडित दी स़रारत लगदी के गुरबाणी पड़्हदिआ हरिमंदर स़बद आवे तां धिआन इमारत वल जावे गिआन तों दूर रखण लई।
महा पुरख दी परिभास़ा गुरमति विच की है? गुरबाणी विच दरज है के "सतिगुर सेवहि से महापुरख संसारे॥ आपि उधरे कुल सगल निसतारे॥ हरि का नामु रखहि उर धारे॥ नामि रते भउजल उतरहि पारे॥ – जिहड़े सति (सच) गुर (गुणां) दी सेवा करे अरथ सबद विचार करे "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ हउमै मारे करणी सारु॥। हरि दा नाम (सोझी) नूं धारण करे ते इस नाम (सोझी) विच रते (भिजे) होण उह भवजल पार उतरदे हन। इह संसार तों निरलेप हो के धिआन गुणां वल रखदे हन। पर इह सौखा नहीं। घट अंदर वसदे हरि नूं महा पुरख आखिआ है बाणी विच "हरि हरि महा पुरखु गुरु मेलहु गुर नानक नामि सुखु होई राम॥। अगे आखदे हन के "बाणी बिरलउ बीचारसी जे को गुरमुखि होइ॥ इह बाणी महा पुरख की निज घरि वासा होइ॥ गुरुआं ने भगतां ने बाणी लिखण दा क्रैडिट आपणे उते नही लिआ, आखदे "जिनि एहि लिखे तिसु सिरि नाहि॥ जिव फुरमाए तिव तिव पाहि॥ अते "जैसी मै आवै खसम की बाणी तैसड़ा करी गिआनु वे लालो॥ ते लालो कौण है? मनघड़ंत साखी वाला लालो बंदा है पर गुरमति वाला लालो है "गुरमुखि लालो लालु है जिउ रंगि मजीठ सचड़ाउ॥ जिसनूं गिआन दी लाली होवे।
सो परमेसर दे गुणां नूं धारण करन वाला, गुणां नूं मुख रखण वाला, हरि, लालो महा पुरख है "सतिगुरु महा पुरखु है पारसु जो लागै सो फलु पावैगो॥ जिउ गुर उपदेसि तरे प्रहिलादा गुरु सेवक पैज रखावैगो॥१॥ अते "बाणी मंत्रु महा पुरखन की मनहि उतारन मांन कउ॥ खोजि लहिओ नानक सुख थानां हरि नामा बिस्राम कउ॥।
सो महा पुरख सनातन दे इक दरस़न तों उदाहरण लैके समझाउण लई वरतिआ है बाणी विच। असल विच इह बहुत उची अवसथा दा नाम है। गुरमति अनुसार महा पुरख अकाल दी अवसथा वाला चाहीदा "हरि जनु ऐसा चाहीऐ जैसा हरि ही होइ॥ वैसे ही महा पुरख इदां दा चाहीदां जिदां दा गुरबाणी ने महा पुरख दसिआ है।
साध अते संत
अज दा सिख अगिआनता कारण किसे वी माड़ी जही चंगी गल करन वाले नूं साध जां संत मन के मथे टेकणा स़ुरू कर दिंदा है। इसदा कारण है असीं Morality (नैतिकता) नूं Spirituality (अधिआतमिकता) मंन लिआ है। नैतिकता बाहरी स्वभाव, सामाजिक व्यवहार केवल सामाजिक करम है जिसदा अधिआतमिकता के नाल कोई रिस़ता नहीं है। अधिआतमिकता खोज है अपने आप दी। मैं कौण? मन जां जोत? ख़ुदा नूं खुद विच खोजणा "हरि का सेवकु सो हरि जेहा॥ भेदु न जाणहु माणस देहा॥ जिउ जल तरंग उठहि बहु भाती फिरि सललै सलल समाइदा॥। आपणे मन नूं निरमल (मल रहित) करके विकारां तो मुकत होण दी विधी है अधिआतमिकता। अधिआतमिकता नाम (सोझी/गिआन) नाल इह सपस़ट होणा है के करता कौण है। संसार नूं किसदे हुकम विच चलाइआ जा रहिआ है। विकारां दा समाजिक रिस़ता ज़रूर है मनुख दे बाल पर जदों तक विकार मौजूद हन, मनोदस़ा ठीक नहीं है उदों तक अधिआतमिक गिआन नहीं हो सकदा। इस लई हर धरम ने केवल विकारां वल ही धिआन दिता ता के सामाजिक सुधार हो सके। पर उह आप ही इह वी मंनदे हन के विकार कदे मुकदे नहीं काबू कीते जा सकदे हन। घट कीते जा सकदे हन। इस लई दुनीआ तों दूर रहिणा, भोरे विच समाधी लाउणा, टल खड़काउणा, स़ंख नाद करना, अखां बंद करके इक ल़फ़ज़ नूं बार बार रटणा विधी दसी है। गुरमति ने इह सब खारिज कर दिते हन। गुरबाणी ही दसदी है केवल के विकार किवें खतम हो सकदे हन। आदि बाणी विच अते दसम बाणी विच विकारां दी मां (बुध) ते धिआन दिता है जिथों विकार पैदा हुंदे हन। विकारां दी मां नूं काबू कीता है नाम (सोझी) नाल।
जदों तक मन बाहर मुखी है अधिआतमिक सोच नहीं हो सकदी। जदों तक नैतिकता वल धिआन रहेगा अधिआतमिक सोच नहीं हो सकदी। नैतिकता कदे पूरन तरीके नाल हो ही नहीं सकदी। साडा सामाजिक बिउहार लोकां दे साडे नाल वरतण ते निरभर करदा है। नैतिकता, विकारां दी सोच वाली पंड सिर तों लाह के ही अंदर वल नूं धिआन दिता जा सकदा है। इक विकार खतम करन दी कोस़िस़ विच दूजा भारी हो जांदा है। सारे विकार खतम कर वी दिते तां हंकार वध जांदा है। इस लई इहनां सारे विकारां नूं इक साथ खतम करन दी विधी गुरमति ने दसी है। जिहड़ा सवभाव विच जिआदा ही नरम होवे समझ लवो उह लोक पचारे विच फसिआ है। अधिआतम वाला तां गल सिधी करदा, सच दी करदा भावें लोक चंगा समझण के ना। लोकां दी परवाह ही नहीं करदा। भावें सिर कट जावे भावें तती तवी ते बैठणा पवे। निवणा चंगी गल हुंदी है सवभाव विच निमरता चंगी गल है पर इसदा इह मतलब नहीं के सारिआं दी हां विच हां मिलाई जाईए के तूं भी ठीक उह बी ठीक। "अपराधी दूणा निवै जो हंता मिरगाहि॥
जिंनां नूं हरि कौण है पता नहीं, भुलेखा है के दूजी मति विच प्रचारे देवते हरि हन उहनां नूं बाहरी भेख, बिउहार, बोल चाल, करम कांड, पखंड नाल भुलेखा पैणा सुभाविक है। ना आदि बाणी विच ना दसम बाणी विच देवी देवतिआं नूं मंनिआ गिआ है। वेखो "दसम बाणी विच देवी देवतिआं दी पूजा है?। आदि बाणी मूरती पूजा नूं नहीं मंनदी। ना ही कोई भगत मूरती पूजक सी। नीचे दसे पोसट वी पड़्हो ते विचारो।
की भगत नामदेव जी मूरती पूजक सी?
स्री दसम ग्रंथ साहिब जी दा विरोध (Anti-Dasam Garanth)
सो संत मनुख दे मन ने होणा है सोझी लैके, मन साधिआ गिआ नाम (गिआन/सोझी) लैके तां साध अखौणा। "हरि के संत जना हरि जपिओ तिन का दूखु भरमु भउ भागी॥ – हरि दे संत उह हन जिंना ने हर जपिओ (पछाण लिआ)। जपण दा अरथ समझण लई वेखो "जपणा ते सिमरन करना ? नाम जापण दी गुरमति विधी की है ?
जदों सिख गुरबाणी नूं पड़्ह के विचार के समझण लग पिआ, खोजी हो गिआ ते मन दे दलिदर नूं तिआग के आप बाणी तों गिआन लैण लग पिआ तां असल भेद समझ आउणा। जदों गुरबाणी ने इह कहि दिता के "जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ॥ सिरि सिरि रिजकु संबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ॥२॥ तां फेर ठाकुर दे इलावा किसे होर दे अगे मथे टेकणे किस कंम दे ने? गुरबाणी दे लड़्ह लगो गुरुआं भगतां ते गुरमुखां ने सिधा रिस़ता परमेसर नाल ही रखिआ है। जिहड़े आप मंगते हुंदे ने उह दूजिआं नूं कुझ नहीं दे सकदे। गुरबाणी ने सपस़ट ही कहिआ है "मानुख की टेक ब्रिथी सभ जानु॥देवन कउ एकै भगवानु॥। गुरबाणी आखदी है के देण वाला केवल एक है जो सब नूं दे रहिआ है।
ददा दाता एकु है सभ कउ देवनहार॥ देंदे तोटि न आवई अगनत भरे भंडार॥ दैनहारु सद जीवनहारा॥ मन मूरख किउ ताहि बिसारा॥ दोसु नही काहू कउ मीता॥ माइआ मोह बंधु प्रभि कीता॥ दरद निवारहि जा के आपे॥ नानक ते ते गुरमुखि ध्रापे॥
असीं इह वी वेखदे हां के लोक बिनां समझे जिआदा तों जिआदा स़बद पड़्हन दी कोस़िस़ करदे हन, बाणी रटण ते कंठ करन दी कोस़िस़ करदे हन। इह लोक पचारे लई तां चल जाणा पर इसदा गुरमति समझण विच कोई लाभ नही होणा ते ना इस नाल विकार ही काबू होणे। इह रटण सिखां तों पहिलां दूजे धरमां विच वी हुंदा रहिआ है। हिंदू राम राम करी जांदे सी ते मुसलमान अलाह अलाह। अखां बंद करके धिआन लाउण दी कोस़िस़ वी करदे सी ते पातिस़ाह आखदे
बिन हरि नाम न बाचन पैहै॥ चौदहि लोक जाहि बस कीने ता ते कहां पलै है॥१॥ रहाउ॥ राम रहीम उबार न सकहै जा कर नाम रटै है॥ ब्रहमा बिसन रुद्र सूरज ससि ते बसि काल सबै है॥१॥ बेद पुरान कुरान सबै मत जा कह नेत कहै है॥ इंद्र फनिंद्र मुनिंद्र कलप बहु धिआवत धिआन न ऐहै॥२॥ जा कर रूप रंग नहि जनियत सो किम स्याम कहै है॥ छुटहो काल जाल ते तब ही तांहि चरन लपटै है॥३॥२॥१०॥(रागु देवगंधारी पातिसाही १०, ७१२)
अते
न नैनं मिचाऊं॥ न डिंभं दिखाऊं॥ न कुकरमं कमाऊं॥ न भेखी कहाऊं॥५२॥
सिखी ना भेख दी है ना लोकां नूं प्रभावित करन लई है, ना उपाधीआं दी। सिखी तां आतम दरस़न आप करन दी विधी है। सो बाणी आप पड़्हो ते विचारो। सिधा बाणी दे लड़ लगो।