Source: ਮਾਯਾ ਅਤੇ ਸਿੱਧ

माया अते सिध

सिझंत सूर जुझंत चाव ॥
निरखंत सिध चारण अनंत ॥
उचरंत क्रित जोधन बिअंत ॥४२२॥
(कलकी अवतार स्री दसम ग्रंथ साहिब जी)

Explanation
इथे सुरमिआं नूं आ रही सोझी दी गल कर रहे ने पातस़ाह । इस लई सूरमे बड़े चा नाल गिआन चरचा कर रहे ने । सूरमिआं दा रुझान ते चाव हमेस़ा जूजण विच ही हुंदा । सुरमे विकारां नाल हर वेले जूजदे ने ते इस नूं ही गुरू पातस़ाह असली अनंत सिधी मनदे ने । जिउं जिउं सूरमे गिआन चरचा करदे ने उदों उदों उह सिधी प्रापत करदे ने । माया मोह जादू टोने नूं माया दे पदारथां नूं प्रापत करन वाले गिआन नूं सिधी नहीं कह सकदे । परमिसर दे हुकम नूं भाणे नूं मंनण दे गिआन नूं गुरबाणी असली सिध मंनदी है । सिधी उह हुंदी जिस नाल माया दी भुख रहे ही ना । "सभे इछा पूरीआ जा पाइआ अगम अपारा ॥ इह वाली अवसथा सिधी है । जो पदारथ मंगदा मिल जांदा सिधी नहीं है उह भुख है "भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥ । "कहि कबीर बुधि हरि लई मेरी बुधि बदली सिधि पाई ॥२॥२१॥७२॥ । माया दी भुख तिआग के बुध बदली तां सिध पाई । सिध मिलण ते अनंत गिआन (परमेसर दा दुनिआवी नहीं) प्रापत होणा । "चारण अनंत भाव इह सिध प्रापत होण ते इंनां अनंत खजाना मिलना जो खतम नहीं होणा "खावहि खरचहि रलि मिलि भाई ॥ तोटि न आवै वधदो जाई ॥३॥ । जिहड़ा खजाना खरच करन ते वधे उही खजाना या उसदी समझ ही असली सिधी है ।

"उचरंत क्रित जोधन बिअंत
जोधिआं दी असली किरत मन जित के इह सिधी नूं पा लैणा ही है । कबी जी अखदे "मनु जीते जगु जीतिआ जां ते बिखिआ ते होइ उदासु ॥२॥ । "मनि जीतै जगु जीतु ॥

To be continued…


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