Source: ਖੰਡ, ਭੰਡ ਅਤੇ ਭਾਂਡਾ
गुरबाणी विच धरम खंड, सरम खंड, करम खंड, गिआन खंड, सच खंड दी गल हुंदी है। खंड दा स़बदी अरथ टीकिआं ने टुकड़ा कीता है। जे खंड दा अरथ टुकड़ा करदे हां तां "सच खंडि वसै निरंकारु॥ दा अरथ करदिआं भुलेखा लग सकदा है के निरंकार किसे इक सच नाम दे टुकड़े विच है जां सच नूं खंडिआं निरंकार दी प्रापती होणी। इहनां खंडां बारे गल करदिआं बाणी ने साफ़ कहिआ है के "मै बहु बिधि पेखिओ दूजा नाही री कोऊ॥ खंड दीप सभ भीतरि रविआ पूरि रहिओ सभ लोऊ॥१॥ जिसदा अरथ बणदा मैं बहुत बिध (तरीके) नाल वेखिआ पर होर कोई दूजा है नहीं, खंड दीप (दीवा) सभ भीतर रविआ (प्रकास़मान) है ते सारिआं विच ही है। इसनूं होर समझाउण लई कहिआ "सभ किछु घर महि बाहरि नाही॥ बाहरि टोलै सो भरमि भुलाही॥ गुर परसादी जिनी अंतरि पाइआ सो अंतरि बाहरि सुहेला जीउ ॥१॥" – जो वी खोज रहे हां, जिसनूं वी लब रहे हां उह भीतर ही है। "कबीर जा कउ खोजते पाइओ सोई ठउरु॥ सोई फिरि कै तू भइआ जा कउ कहता अउरु॥८७॥ इहनां पंकतीआं तो सिध हुंदा है के खंड वी घट दा ही हिसा हन। जे भंड समझ आ जावे तां होर सपस़ट हो जाणा। भंड समझण तों पहिलां इह समझ लईए के खंड बुध दे ही हिसे हन ते घट इक भांडे वांग है। समझण लई घट (भांडा) जिस विच बुध दा वास है। बुध मनमति जां गुरमति हो सकदी है। भांडे विच कितना गिआन है सोझी है इह बुध दा मापदंड है। गुरमति आखदी "भांडा धोइ बैसि धूपु देवहु तउ दूधै कउ जावहु ॥ – इस भांडे नूं गिआन नाल धोणा है, सोझी इतनी होवे के अवगण ना होण मनमति दा इक कण वी ना रहे फेर दूधै (प्रभ, हरि, राम, मूल) कोल जाउ जे नाम (सोझी) गुर (गुण) प्रसाद चाहीदा तां। इह दूध करम (चंगे करम) हुकम दी सोझी सूरति विच समाउण लई निरासा(बिनां आस) होणा पैणा । "दूधु करम फुनि सुरति समाइणु होइ निरास जमावहु॥१॥
जदों इह पता लग गिआ के खंड घट भीतर ही गिआन दी अवसथा है। बुध दा उह हिसा उह सोच जिस विच करम, धरम, सरम, गिआन, पाखंड/पखंड, अघखंडु ते सच प्रधान हन उहनां नूं बाणी ने खंड आखिआ है। विचार करदे हां इहनां बुध दे खंडां बारे।
धरम खंड का एहो धरमु॥ गिआन खंड का आखहु करमु॥ – धरम बारे असीं चरचा कीती है के धरम किसनूं मंनिआ है गुरमति ने, इस बारे पड़्हन लई वेखो "धरम की है। संखेप विच समझदे हां "सरब धरम महि स्रेसट धरमु॥ हरि को नामु जपि निरमल करमु॥, गुरमति नाम (गिआन/सोझी) लैण दे करम (जतन) नूं ही बुध दे उस खंड दा धरम मंनदी है।
"गिआन खंड महि गिआनु परचंडु॥ – बुध दे गिआन खंड विच प्रचंड गिआन हुंदा है जो अवगुणां नूं उपजण नहीं दिंदा। "अगिआनु अंधेरा कटिआ गुर गिआनु प्रचंडु बलाइआ॥ अते "गिआनु प्रचंडु बलिआ घटि चानणु घर मंदर सोहाइआ॥। गिआन होण ते सरीर ने ही हरि दा मंदर बण जाणा "हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ॥
"सरम खंड की बाणी रूपु॥ तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु॥ ता कीआ गला कथीआ ना जाहि॥ जे को कहै पिछै पछुताइ॥ तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि॥ तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि॥३६॥ – सरम दा सबदी अरथ है लाज कीता है टीकिआं ने। विचारन लई गुरबाणी आखदी "सिफति सरम का कपड़ा मांगउ हरि गुण नानक रवतु रहै ॥ अते "सरमु गइआ घरि आपणै पति उठि चली नालि॥ जिसतों सपस़ट हुंदा है के सरम आपणी होंद दी पछाण है। इस पछाण दा पता तां लगदा है जे नाम (सोझी) दा धन कोल होवे "सरमु धरमु दुइ नानका जे धनु पलै पाइ॥ धन नाम धन है। नाम धन की है किवें मिलदा समझण लई पड़्हो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?
"करम खंड की बाणी जोरु॥ तिथै होरु न कोई होरु॥ तिथै जोध महाबल सूर॥ तिन महि रामु रहिआ भरपूर॥ तिथै सीतो सीता महिमा माहि॥ ता के रूप न कथने जाहि॥ ना ओहि मरहि न ठागे जाहि॥ जिन कै रामु वसै मन माहि॥ तिथै भगत वसहि के लोअ॥ करहि अनंदु सचा मनि सोइ॥ – करम दा अरथ है क्रीआ, गुरबाणी आखदी "करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु॥ कुझ करन दी इछा, इह सोच की मैं कुझ कर सकदा हां इस नाल जीव नूं कपड़ा (सरीर) धारन करके जनम मरन दी खेड चलदी रहिंदी है। कपड़ा समझाइआ है गुरमति ने "कपड़ु रूपु सुहावणा छडि दुनीआ अंदरि जावणा ॥, गुरबाणी आखदी जे मनुख नूं करम करन दी इछा जागदी रहिंदी है तां उसदा आवागमन नहीं रुकदा। पर गिआन होण ते जदों इही करम हुकम नाल रल जांदे हन उसदी रजा विच हुंदे हन तां फेर करम किरपा बण जांदी है "बैसनो सो जिसु ऊपरि सुप्रसंन॥ बिसन की माइआ ते होइ भिंन॥ करम करत होवै निहकरम॥ तिसु बैसनो का निरमल धरम॥ काहू फल की इछा नही बाछै॥ केवल भगति कीरतन संगि राचै॥ मन तन अंतरि सिमरन गोपाल॥ सभ ऊपरि होवत किरपाल॥ आपि द्रिड़ै अवरह नामु जपावै॥ नानक ओहु बैसनो परम गति पावै॥२॥ इही गल करम खंड दीआं पंकतीआं जप बाणी विच समझा रहीआं हन।
"सच खंडि वसै निरंकारु॥ करि करि वेखै नदरि निहाल॥ तिथै खंड मंडल वरभंड॥ जे को कथै त अंत न अंत॥ तिथै लोअ लोअ आकार॥ जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार॥ वेखै विगसै करि वीचारु॥ नानक कथना करड़ा सारु॥३७॥- सच खंड बुध दा उह प्रकास़मान भाग है जिस विच परमेसर निरंकार दा गिआन है सोच है। बुध ने ही सारी मनमति तिआग के आपणी बुध नूं सच खंड बणाउणा है जिस विच हरि दा राम दा वास होवे। मनुख बुध दे भांडे विच अहोई नार रख के बैठा है। इह अहोई नार (बुध) तिआग के गुरमति गिआन नाल संपूरन सुचजी नार (गुरमति वाली बुध) नाल विआह (रिस़ता) सथापित करना पैणा। इस नूं अगे समझांगे।
"तिस कउ खंड ब्रहमंड नमसकारु करहि जिस कै मसतकि हथु धरिआ गुरि पूरै सो पूरा होई॥ – खंड बुध दीआं अवसथावां हन। गुरमति दा फुरमान है "खंड ब्रहमंड का एको ठाणा गुरि परदा खोलि दिखाइओ॥ नउ निधि नामु निधानु इक ठाई तउ बाहरि कैठै जाइओ॥ सो खंड ते ब्रहमंड दोवें घट भीतर ही हन।
भंड दा अरथ
भंड दा अरथ टीकिआं ने इसत्री कीता है इस स़बद कारण "भंडि जंमीऐ भंडि निंमीऐ भंडि मंगणु वीआहु॥ भंडहु होवै दोसती भंडहु चलै राहु॥ भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु॥ सो किउ मंदा आखीऐ जितु जंमहि राजान॥ भंडहु ही भंडु ऊपजै भंडै बाझु न कोइ॥ नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ॥ जितु मुखि सदा सालाहीऐ भागा रती चारि॥ नानक ते मुख ऊजले तितु सचै दरबारि॥२॥ सभु को आखै आपणा जिसु नाही सो चुणि कढीऐ॥ कीता आपो आपणा आपे ही लेखा संढीऐ॥ जा रहणा नाही ऐतु जगि ता काइतु गारबि हंढीऐ॥ मंदा किसै न आखीऐ पड़ि अखरु एहो बुझीऐ॥ मूरखै नालि न लुझीऐ॥१९॥ इहनां पंकतीआं नूं सही तरीके नाल गुरमति दी रौस़नी विच विचारन दी लोड़ है। इसदे अगले पिछले स़बद विच कोई ऐसी गल नहीं हो रही के विचार दे प्रवाह विच इसत्री दी गल होवे। सोचण वाली गल है के देस़ दे किहड़े हिसे विच इसत्री नूं भंड आखदे हन? भंड दा अरथ लभण लई गौर करना है इस पंकती ते "नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ॥, भंडे क्रीआ है। फेर भंड दा अरथ है रद करना खारिज करना। भंड दा अरथ खारिज/रद करना लैके विचारदे हां स़बद नूं। इसतो अगलीआं पंकतीआं वी अंतरीव ही हन "सलोकु मः १॥ नानक फिकै बोलिऐ तनु मनु फिका होइ॥ फिको फिका सदीऐ फिके फिकी सोइ॥ फिका दरगह सटीऐ मुहि थुका फिके पाइ॥ फिका मूरखु आखीऐ पाणा लहै सजाइ॥१॥। इह स़बद आसा रागु विच है। बाणी विच आसा राग विच सारी बाणी गुण, गिआन, बुध, अगिआनता कटी जावे इही आस दे आधार ते लिखी गई है। पूरी बाणी अंतरीव भाव विच है। ते विचारे जा रहे स़बद तों पहिलां ते इसदे अगले स़बद विच वी इही लड़ी चल रही है।
बुध विच मनमति भंड के ही जीव दे हिरदे विच नाम जंमणा, मनमति भंड के ही निमणा। मनमति भंड के ही हरि नाल विआह मंगिआ जाणा। मनमति भंड के ही दोसती (दो सति सरूप मनु ते बुध दी प्रभ नाल मेल) होणा। मनमति भंड के ही गुरमति दे राह ते चलिआ जाणा। मनमति नूं ही मारना, इछा, आस विकारां नूं ही मारना भाल के। जे इसत्री वी मंन लईए भंड नूं तां इह दुनिआवी रिस़ते दी गल नहीं है। मनमति वाली कुचजी बुध दी ही गल हो रही है।
भंडि ->जंमीऐ जो पावै भांडे विच वसतु सा निकले कीआ को करे, हुण चाहे मन पैदा हो रहिआ है अगिआन नाल चाहे गयान चों पैदा हो रिहा मनु दोनो पैदा मूल चों हो रहे तां जमना है भड चों।
भंडि निंमीऐ – "हुकमै अंदरि निंमिआ पिआरे हुकमै उदर मझारि॥ हुकमै अंदरि जंमिआ पिआरे ऊधउ सिर कै भारि॥
भंडि मंगणु वीआहु – गुरमति वाला विआह तां बुध दा हरि नाल दरसाइआ है बाणी विच "वीआहु होआ मेरे बाबुला गुरमुखे हरि पाइआ॥ जदों गुर (गुणां) नूं मुख रखिआं हरि पाइआ हरि दी प्रापती हो गई। "अगिआनु अंधेरा कटिआ गुर गिआनु प्रचंडु बलाइआ॥ दुनिआवी रिस़ते वेले विआह वेले इह स़बद तां पड़्ह लैंदे हां पर अगिआन अंधेरा किस दा कटिआ गिआ। अगे वी वेख लवो "बलिआ गुर गिआनु अंधेरा बिनसिआ हरि रतनु पदारथु लाधा॥ हउमै रोगु गइआ दुखु लाथा आपु आपै गुरमति खाधा॥ अकाल मूरति वरु पाइआ अबिनासी ना कदे मरै न जाइआ॥ वीआहु होआ मेरे बाबोला गुरमुखे हरि पाइआ॥२॥ – अभिनासी वर किसनूं मिलिआ दुनिआवी विआह वेले? सो गुरबाणी तां अंतरीव गल ही कर रही है टीकिआं ने अरथ संसारी करके धिआन ही भटकाइआ है।
भांडा
"कीता आपो आपणा आपे ही लेखा संढीऐ॥ ओही गल चल रही भंड बुध लई वरत के देखो। भंडु, भंडार, वरभंड, भंडारन सारे रलदे ने। बुध भांडा है जिस विच गिआन पैणा, सोझी इकतर होणी जिस विच नाम पाइआ जाणा। मनमति दा भांडा तिआग के गुरमति दा भांडा घट विच तिआर हो रहिआ है। "नानक सचु भांडा जिसु सबद पिआस॥ अते "तिसना छानि परी धर ऊपरि दुरमति भांडा फूटा ॥१॥। जे इह भांडा धोता गिआ, फुट गिआ, अगिआनता, दलिदर, विकार ना होण तां प्रभ नूं भाउणा तां गिआन दी प्रापती होणी "भांडा आणगु रासि जां तिसु भावसी॥ परम जोति जागाइ वाजा वावसी॥१४॥
भांडा धोइ बैसि धूपु देवहु तउ दूधै कउ जावहु॥ दूधु करम फुनि सुरति समाइणु होइ निरास जमावहु॥१॥ – इथे भांडे दा अरथ हिरदा है। हिरदे नूं चंगी तरह साफ़ करना पैणा जे इस विच नाम (दुध) पाणा। दुध है अंम्रित गिआन "दूधु करमु संतोखु घीउ करि ऐसा मांगउ दानु ॥३॥ इसी दूध दी गल भगत जी कर रहे ने "दूधु पीउ मेरो मनु पतीआइ॥ अते "दूधु पीआइ भगतु घरि गइआ॥। जे थोड़ा जिही वी विकार, अगिआनता दी मल रहे तां सुरत नहीं टिकणी, दुध विच विस़ (विकार) रल जाणे। इही गल समझाई है "सचु ता परु जाणीऐ जा रिदै सचा होइ॥ कूड़ की मलु उतरै तनु करे हछा धोइ॥ सचु ता परु जाणीऐ जा सचि धरे पिआरु॥ नाउ सुणि मनु रहसीऐ ता पाए मोख दुआरु॥ सचु ता परु जाणीऐ जा जुगति जाणै जीउ॥ धरति काइआ साधि कै विचि देइ करता बीउ॥ सचु ता परु जाणीऐ जा सिख सची लेइ॥ दइआ जाणै जीअ की किछु पुंनु दानु करेइ॥ सचु तां परु जाणीऐ जा आतम तीरथि करे निवासु॥ सतिगुरू नो पुछि कै बहि रहै करे निवासु॥ सचु सभना होइ दारू पाप कढै धोइ॥ नानकु वखाणै बेनती जिन सचु पलै होइ॥२॥ – हिरदे नूं सुध करन दी स़रत है। इही स़ुध भांडे दी गल नानक पातिस़ाह दे इस स़बद विच होई है "धंनु सु कागदु कलम धंनु धनु भांडा धनु मसु॥ धनु लेखारी नानका जिनि नामु लिखाइआ सचु॥१॥
इह भांडा ही सोइन कटोरी है "सोुइन कटोरी अंम्रित भरी॥ लै नामै हरि आगै धरी॥२॥ एकु भगतु मेरे हिरदे बसै॥ नामे देखि नराइनु हसै॥३॥ दूधु पीआइ भगतु घरि गइआ॥ नामे हरि का दरसनु भइआ॥४॥३॥
सोुइन कटोरी – जीव दा हिरदा, भांडा
अंम्रित भरी – नाम, गुरमति गिआन दी सोझी नाल भरी "भांडा धोइ बैसि धूपु देवहु तउ दूधै कउ जावहु॥ वाली
दूधु पीआइ – सोझी देके
घरि गिआ – सुख सागर गिआ। "जीवत पावहु मोख दुआर ॥
हरि – हिरदे वसदा मूल। गिआन नाल हरिआ होइआ मनु।
गुरबाणी केवल पड़्हन सुणन गाउण नाल गल नहीं बणनी। विचारनी वी पैणी तां के गिआन होवे। इस गिआन नूं केवल विचार के वी हल नही बणनी, सुरत विच लागू वी करनी पैणी। जप (पहिचान) के अगे सिमरन (चेते) याद रखणा वी पैणा, धिआउणा (धिआन) विच रखणा पैणा ते नाल अराधणा (समझण उपरंत बूझणा, समझे ते टिके रहिणा) वी पैणा। पड़्ह पड़्ह गडी नहीं लधणा। गुरबाणी दा फुरमान है "किआ पड़ीऐ किआ गुनीऐ॥ किआ बेद पुरानां सुनीऐ॥ पड़े सुने किआ होई॥ जउ सहज न मिलिओ सोई॥१॥, अते "पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ॥ पड़ि पड़ि बेड़ी पाईऐ पड़ि पड़ि गडीअहि खात॥ पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास॥ पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास॥ नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख॥१॥। कई गा वी रहे हन ते चंगा गाउण दा मान वी करी जांदे हन "कोई गावै रागी नादी बेदी बहु भाति करि नही हरि हरि भीजै राम राजे॥ जिना अंतरि कपटु विकारु है तिना रोइ किआ कीजै॥ हरि करता सभु किछु जाणदा सिरि रोग हथु दीजै॥ जिना नानक गुरमुखि हिरदा सुधु है हरि भगति हरि लीजै॥
बाणी दी विचार आप करो, पड़्हो ते समझो। गुरबाणी आपणे आप विच संपूरन है सच खड दी राह बखस़ण लई। भरोसा होवे। स़रधा नाल गल नहीं बणदी।
Source: ਖੰਡ, ਭੰਡ ਅਤੇ ਭਾਂਡਾ