Source: ਆਦਿ ਅਤੇ ਦਸਮ ਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਦੇਵੀ ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੀ ਅਤੇ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਹੈ?

आदि अते दसम बाणी विच देवी देवतिआं दी अते मूरती पूजा है?

गुरमति दा विस़ा किसे देवी देवते दी पूजा नहीं है। सिखां विच दुबिधा है के अदि जां दसम बाणी विच देवी देवतिआं दी पूजा है। जिहनां ने गुरबाणी नहीं पड़्ही समझी ते विचारी उहनां नूं स़ंका छेती हुंदी है। असीं पहिलां ही दसम बाणी, भगौती अते होर कई विस़िआं बारे गल कीती है। देवी देवतिआं दी पूजा दे विस़े तों पहिलां असीं आस रखदे हां के तुसीं आह नीचे दसे पोसट पड़्हे होणगे।

चंडी अते कालका

भगउती कौण/की है ?

की भगत नामदेव जी मूरती पूजक सी?

स्री दसम ग्रंथ साहिब जी दा विरोध (Anti-Dasam Garanth)

गुरबाणी दा विस़ा की है?

अरदास की है अते गुरू तों की मंगणा है?

पहिलां ही सपस़ट कर देणा बणदा है के देवी दी गल आदि बाणी विच वी होई है पर इह बुध लई अलंकार है। बाणी तों प्रमाण

"सभ परवारै माहि सरेसट॥ मती देवी देवर जेसट॥ धंनु सु ग्रिहु जितु प्रगटी आइ॥ जन नानक सुखे सुखि विहाइ॥ – भाव मती (बुध) नूं देवी मंनिआ है गुरमति ने। दुनिआवी देवी देवते रद कीते हन "देवी देवा पूजीऐ भाई किआ मागउ किआ देहि॥ पाहणु नीरि पखालीऐ भाई जल महि बूडहि तेहि॥६॥

आदि बाणी अते दसम बाणी दोहां विच देवी देवतिआं दे नाम आए जापदे ने जे गिआन ना होवे तां इह लग सकदा है के गुरमति विच सनातन मति दे देवी देवतिआं दी गल हुंदी है। दसम बाणी दा सपस़ट फुरमान है, चउबीस अवतार विच पातिस़ाह आखदे ने "मै न गनेसहि प्रिथम मनाऊ॥किसन बिसन कबहूं न धिआऊ॥ कानि सुने पहिचान ना तिन सो॥ लिव लागी मोरी पग इन सो॥"। पहिलां ही सपस़ट कर दईए के आदि बाणी विच दरज है "कोटि बिसन कीने अवतार॥ कोटि ब्रहमंड जा के ध्रमसाल॥ कोटि महेस उपाइ समाए॥ कोटि ब्रहमे जगु साजण लाए॥१॥ – भाव करोड़ां ही अनेकां ही बिसन (विस़नू), महेस़ ब्रहमे अवतरित कीते ने अकाल ने जिहनां ने जग दी रचना विच हिसे पाए हन। इह सारे ही जीव दे घट विच गिआन दी अवसथा दे ही रूप हन। इही गल दसम बाणी विच वी कही है "हरि जनम मरन बिहीन॥ दस चार चार प्रबीन॥ अकलंक रूप अपार॥ अनछिज तेज उदार॥१॥३१॥ अनभिज रूप दुरंत॥ सभ जगत भगत महंत॥ जस तिलक भूभ्रित भान॥ दस चार चार निधान॥२॥३२॥ अकलंक रूप अपार॥ सभ लोक सोक बिदार॥ कल काल करम बिहीन॥ सभ करम धरम प्रबीन॥३॥३३॥ अनखंड अतुल प्रताप॥ सभ थापिओ जिह थाप॥ अनखेद भेद अछेद॥ मुखचार गावत बेद॥४॥३४॥ जिह नेत निगम कहंत॥ मुखचार बकत बिअंत॥ अनभिज अतुल प्रताप॥ अनखंड अमित अथाप॥५॥३५॥ जिह कीन जगत पसार॥ रचिओ बिचार बिचार॥ अनंत रूप अखंड॥ अतुल प्रताप प्रचंड॥६॥३६॥ जिह अंड ते ब्रहमंड॥ कीने सु चौदह खंड॥ सभ कीन जगत पसार॥ अबियकत रूप उदार॥७॥३७॥ जिह कोटि इंद्र न्रिपार॥ कई ब्रहम बिसन बिचार॥ कई राम क्रिसन रसूल॥ बिनु भगत को न कबूल॥८॥३८॥ कई सिंध बिंध नगिंद्र॥ कई मछ कछ फनिंद्र॥ कई देव आदि कुमार॥ कई क्रिसन बिसन अवतार॥९॥३९॥ कई इंद्र बार बुहार॥ कई बेद अउ मुखचार॥ कई रुद्र छुद्र सरूप॥ कई राम क्रिसन अनूप॥१०॥४०॥ कई कोक काब भणंत॥ कई बेद भेद कहंत॥ कई सासत्र सिंम्रिति बखान॥ कहूं कथत ही सु पुरान॥११॥४१॥ कई अगन होत्र करंत॥ कई उरध ताप दुरंत॥ कई उरध बाहु संनिआस॥ कहूं जोग भेस उदास॥१२॥४२॥ कहूं निवली करम करंत॥ कहूं पउन अहार दुरंत॥ कहूं तीरथ दान अपार॥ कहूं जग करम उदार॥१३॥४३॥ कहूं अगन होत्र अनूप॥ कहूं निआइ राज बिभूत॥ कहूं सासत्र सिंम्रिति रीत॥ कहूं बेद सिउ बिप्रीत॥१४॥४४॥ कई देस देस फिरंत॥ कई एक ठौर इसथंत॥ कहूं करत जल महि जाप॥ कहूं सहत तन पर ताप॥१५॥४५॥ कहूं बास बनहि करंत॥ कहूं ताप तनहि सहंत॥ कहूं ग्रिहसत धरम अपार॥ कहूं राज रीत उदार॥१६॥४६॥ कहूं रोग रहत अभरम॥ कहूं करम करत अकरम॥ कहूं सेख ब्रहम सरूप॥ कहूं नीत राज अनूप॥१७॥४७॥ कहूं रोग सोग बिहीन॥ कहूं एक भगत अधीन॥ कहूं रंक राज कुमार॥ कहूं बेद बिआस अवतार॥१८॥४८॥ कई ब्रहम बेद रटंत॥ कई सेख नाम उचरंत॥ बैराग कहूं संनिआस॥ कहूं फिरत रूप उदास॥१९॥४९॥ सभ करम फोकट जान॥ सभ धरम निहफल मान॥ बिन एक नाम अधार॥ सभ करम भरम बिचार॥२०॥५०॥

राम, सीता, लखमण, लछमण, हरि, अलाह, काली, बीठल, क्रिसन, स़िव (सिव) आदी, आदि बाणी विच वी वरते ने पर इह हिंदू देवी देवतिआं लई नहीं वरते। जिवें

राम – रमिआ होइआ मन। मंनिआ होइआ मन (मनु हो चुका)। हुकम दे नाल सहमती, एका होण उपरंत। "राम राम राम रमे रमि रहीऐ॥। आखदे दसम बाणी विच रामावतार लिख के दस़रथ पुतर राम दी वडिआई कीती है। दसम पातस़ाह ने रामावतार लिखिआ, पर इस नूं धिआन नाल पड़ो जी । रामावतार विच रामचंदर दी उसतति नहीं कीती गई है। वडिआई तां लव कुस़ दी कीती है। राम दा तां बध करता लव कुस़ ने "देखि सीआ पति मुख रो दीना ॥ कहयो पूत बिधवा मुहि कीना ॥८१९॥ इति स्री बचित्र नाटके रामवतार लव बाज बाधवे राम बधह॥। दसम पातस़ाह दी रामाइण निराकारी है। इथे राम नूं मारके जींदा वी कीता जांदा है । "अथ सीता ने सभ जीवाए कथनं॥ – इह सारी निराकारी गल है पर तूसीं रामचंदर दी ही उसतति करन लग पए । फिर दसम पातस़ाह रामचंदर नूं अवतार तां मंनदे नहीं। "एक सिव भए एक गए एक फेर भए रामचंद्र क्रिसन के अवतार भी अनेक है॥। गुतमति वाले राम बारे होर जानण लई वेखो "गुरमति विच राम

गुरबाणी वाला वासु देव सारिआं विच ते सरव विआपी है

"वासुदेव सरबत्र मै ऊन न कतहू ठाइ॥ अंतरि बाहरि संगि है नानक काइ दुराइ॥१॥

हरि – नाम (गिआन तों प्रापत सोझी) दे अंम्रित नाल हरिआ होइआ। "हरि का नामु धिआइ कै होहु हरिआ भाई॥। जिसने सबद दुआरा गुरू नूं पछान लिआ उही हरि है "जिन सबदि गुरू सुणि मंनिआ तिन मनि धिआइआ हरि सोइ॥। गुरमति वाला हरि तां जन मरन तों बिहीन है "हरि जनम मरन बिहीन॥ ते हरेक जीव दे घट विच वसदा है। हरि बारे जानण लई वेखो "हरि

सीता – बुध (राम) दी पछाण करन वाली। गिआन कारण सुहागण मति। "मन महि झूरै रामचंदु सीता लछमण जोगु॥, "रामु झुरै दल मेलवै अंतरि बलु अधिकार॥ बंतर की सैना सेवीऐ मनि तनि जुझु अपारु॥ सीता लै गइआ दहसिरो लछमणु मूओ सरापि॥ नानक करता करणहारु करि वेखै थापि उथापि॥। मन बांदर है, विकार उसदी सैना (फौज) है। लखमण/ लछमण वी मन लई वरतिआ। छेती गुसा आ जांदा है, सीता ल़छमण राम तों विछड़े होण कारण ही मन भटकिआ फिरदा। "रोवै रामु निकाला भइआ॥ सीता लखमणु विछुड़ि गइआ॥

अलाह – अकाल। "अलाह पाकं पाक है सक करउ जे दूसर होइ॥, पातिस़ाह आखदे अलाह सब तों पाक है, मैं स़क तां करां जे कोई होर होवे। "अलाहु अलखु अगंमु कादरु करणहारु करीमु॥

सिव (स़िव) – जोत, अकाल, प्रभ लई वरतिआ है। जीव अंदर दी जोत अकाल रूप है कदे खरदी नहीं अखर है। कदे मरदी नहीं। "आपे सुरि नर गण गंधरबा आपे खट दरसन की बाणी॥ आपे सिव संकर महेसा आपे गुरमुखि अकथ कहाणी॥ आपे जोगी आपे भोगी आपे संनिआसी फिरै बिबाणी॥ आपै नालि गोसटि आपि उपदेसै आपे सुघड़ु सरूपु सिआणी॥ आपणा चोजु करि वेखै आपे आपे सभना जीआ का है जाणी॥, "जह देखा तह रवि रहे सिव सकती का मेलु॥

आदि बाणी विच पंचम पातिस़ाह लिखदे हन "दस मिरगी सहजे बंधि आनी॥ पांच मिरग बेधे सिव की बानी॥१॥ संतसंगि ले चड़िओ सिकार॥ म्रिग पकरे बिनु घोर हथीआर॥ – भाव पांच मिरगपंज मिरग रूपी विकारां नूं सिव (प्रभ/राम/हरि/निराकार) दी बाणी ने बेधिआ। सिव नूं आदि बाणी अते दसम बाणी दोहां ने निराकार परमेसर मंनिआ है।

"सिव सकति आपि उपाइ कै करता आपे हुकमु वरताए॥ हुकमु वरताए आपि वेखै गुरमुखि किसै बुझाए॥ इस जोत रूपी सिव दी स़कती किसने उपाई इसदा जवाब दसम बाणी विच मिलदा है के करता कौण है? "केवल कालई करतार॥ आदि अंत अनंत मूरति गड़्हन भंजनहार॥१॥, जिहड़ी बाणी काल नूं करतार आखे उह बाणी देवी देवतिआं दी पूजा किउं करे इह सूझवान सिखां नूं विचारना चाहीदा है। आदि बाणी विच कबीर जी ने समझाइआ है के काल नूं थापण वाला अकाल है। काल अकाल दी इछा स़कती दा नाम है ते हुकम काल दा वरतारा है "कालु अकालु खसम का कीन्हा। सनातन मति विच मंने काण वाले सिव ते होर देवी देवतिआं लई दसम पातिस़ाह लिखदे हन "कोटक इंद्र करे जिह के कई कोटि उपिंद्र बनाइ खपायो॥ दानव देव फनिंद्र धराधर पछ पसू नहि जाति गनायो॥ आज लगे तपु साधत है सिव ऊ ब्रहमा कछु पार न पायो॥ बेद कतेब न भेद लखयो जिह सोऊ गुरू गुर मोहि बतायो॥१७॥

बीठल – जोत लई वरतिआ है। "कहु नानक हउमै भीति गुरि खोई तउ दइआरु बीठलो पाइओ ॥४॥, हउमे छड घट/हिरदे अंदर ही बीठल दे दरस़न हुंदे हन। भगत जी नूं हर जीव विच बीठल दिसदा सी ता ही आंखदे "ईभै बीठलु ऊभै बीठलु बीठल बिनु संसारु नही ॥

भगौती/ भगउती – उतम भगती। भगती वाली बुध जिसनूं भगवंत/प्रभ दा गिआन है।सो भगउती जोु भगवंतै जाणै ॥, "भगउती भगवंत भगति का रंगु ॥, "भगउती रहत जुगता॥ – भगउती, भगती वाली उतम बुध ही रहत दा मारग दसदी। इसी उतम भगती वाली बुध नूम दसम बाणी ने प्रिथम धिआउण (विचारन) लई कहिआ है "प्रिथम भगौती सिमरि कै गुर नानक लई धिआइ॥ फिर अंगद गुर ते अमरदासु रामदासै होई सहाइ॥ गुर नानक पातिस़ाह ने वी इही धिआई (धिआन विच रखी) ते गुर अमरदास अते रामदास पातिसाह लई वी सहाई होई है। फेर अगे आखदे "स्री हरिक्रिस़न धिआईऐ जिस डिठे सभि दुखि जाइ॥ तेग बहादर सिमरीॲै घर नउ निधि आवै धाइ॥ सभ थाईं होइ सहाइ॥ इही भगौती गुरु हरिक्रिस़न महाराज ने वी धिआई है अते गुर तेग बहादर साहिब ने वी सिमरी है। कई इस बाणी नूं पड़ के समझदे हन के गुरुआं ने बाणी राहीं लोकां नूं अकाल दे, परमेसर दे लड़ नहीं आपणे मगर लाइआ है। इस गल नूं आदि बाणी अते दसम बाणी विच पातिस़ाह आप रद करदे हन "जो हम को परमेसर उचरिहैं॥ ते सभ नरक कुंड महि परिहैं॥ अते आदि बाणी विच आखदे हन "ऐ जी ना हम उतम नीच न मधिम हरि सरणागति हरि के लोग॥ नाम रते केवल बैरागी सोग बिजोग बिसरजित रोग ॥१॥"

दैत – गुरबाणी विच दैत स़बद दी वरतो घट अंदरले विकारां लई होई है। आदि बाणी अते दसम बाणी विच लिखे दैत विकारां जां दूजे भाव (गुरमति तों उलट मनमति) लई अलंकार हन। प्रमाण "रकतबीजु कालुनेमु बिदारे॥ दैत संघारि संत निसतारे॥७॥ आपे सतिगुरु सबदु बीचारे॥ दूजै भाइ दैत संघारे ॥ गुरमुखि साचि भगति निसतारे॥८॥। इस रकतबीज( इक विकार मरदे ही उसदी थां अनेक विकार पैदा हो जांदे हन) नूं दुरगा (मन रूपी दरग ते काबिज गुरमति प्रापत बुध) काली (काल दे हुकम विच लड़न वाली) ने मरिआ इह मिथ भाव नाटकी रूपांतरण वी लिखी है गुरबाणी विच। असल विच जे मनुख इक सोचदा है के मेरे कोल गिआन है ते हुण गुसा नहीं आउंदा इह अहंकार रूपी विकतर गुसे दसि थां लै लैंदा है इसदा रूपांतरण रकतबीज है। सारे धरम ग्रंथ इस कारण आखदे हन के विकतर खतम नहीं हो सकदे पर गुरमति आखदी हो सकदे हन, रकतबीज नूं खतम करन दा तरीका है बुध विच गुरमति (गुणां दी मति) दा होणा घट रूपी दुरग ते इस बुध दा गिआन दा कबजा होणा। इस बुध विचों ही विकार जंमदे हन ते बुध (दुरगा) ने ही संघारने हन।

जिवें आदि बाणी विच देवी देवतिआं, देहधारी मनुखां दी, मूरती पुजा, पथर पूजा नहीं होई ते जिहड़े आम प्रचलित नाम सी, वरत के अकाल, काल, हुकम, सोझी दी गल होई है उदां ही दसम बाणी विच वी इदां दे नाम मन, बुध दे सोझी दी अवसथा नूं दरसाउण लई वरते हन। पहिली गल तां इह है के दसम ग्रंथ दी बाणी आम लोकां लई है ही नहीं खास उहनां लई तां बिलकुल नहीं जिहनां नूं लिखत पड़्ह के ही काम वास़ना काबू कर लवे। गुरमुखां लई है जिहनां ने गुण विचारे हन ते गुणां नूं मुख रख के चलदे हन ते जिहनां नूं आदि बाणी दी पूरन समझ है। मन अते विकारां ते गिआन अते नाम (सोझी) कारण काबू है। उपर दिते दसम ग्रंथ वाले पोसट विच बहुत विसथार नाल कई उधारहरण दिते हन। दसम पातिस़ाह ने दसम बाणी विच वी बाकी गुरुआं भगतां वांग आम प्रचलित नाम वरत के ही लोकां नूं ब्रहम गिआन दी गल समझाई है। दसम ग्रंथ विच आउण वाले कुझ देवी देवतिआं दे लगण वाले नाम ते उहनां दे सही अरथ हन।

दसम बाणी विच पातिस़ाह आखदे हन "तैथों ही बलु राम लै नाल बाणा दहसिरु घाइआ॥ तैथों ही बलु क्रिसन लै कंसु केसी पकड़ि गिराइआ॥ सोचण वाली गल इह है के "तैथों किस लई आखिआ? इह बाणी चंडी दी वार विचों है।

इक ब्राहमण दसम पातिस़ाह कोल आइआ ते आ के कहिंदा महाराज मुगलां ने किंनी तबाही मचाई है ते लोकां नूं किंना परेस़ान कीता होइआ है। महाराज ने पुछिआ तुसीं दसो की होणा चाहीदा? ब्राहमण आखदा महाराज वडी पूजा करनी पैणी है ते देवी/चंडी प्रगट करनी पैणी। महाराज ने सिंघां नूं आखिआ जो वी ब्राहमण आखदा है इसनूं दे देवो। ब्राहमण सारी समगरी लै के नैना देवी दे मंदर विच हवन करन लग पिआ। ३०-४० दिन बीत गए ते महाराज ने सिंघां तों पुछिआ के ब्राहमण दी कोई खबर आई। जदों पता लगिआ के कोई चंडी प्रगट नहीं होई तां महाराज आखदे चलो सिंघो चल के वेखीए की बणदा। जदों पातिस़ाह गए तां ब्राहमण कहिंदा महाराज चंढी ता नाराज़ है तां प्रगट नहीं हो रही। किसे वडे नूं बली देणी पैणी। महाराज ने कहिआ ब्राहमण जी तुहाडी ही बली दिंदे हां आओ। ब्राहमण धोती फड़ के नैना देवी दे पहाड़ तों थले नूं भजिआ। महाराज ने सारी समगरी चक के हवन कुंड विच सुट दिती ते आखिआ इह सब आडंबर है। कोई देवी नहीं प्रगट होणी। हवन दा समान अग विच पैंदिआं ही तेज लपटां उठण लग पईआं। पंडत ने लोकां विच प्रचार करता के देवी प्रगट होई है। ते नासमझ लोक नैना देवी नूं मंनण लग पए।

दूजे पासे दसम पातिस़ाह ने चंडी दी वार उचारी ते सिंघां नूं दसिआ के चंडी होर कोई नहीं भगउती है बिबेक बुध है। आदि बाणी विच दसी गिआन खड़ग फड़ी होई है चंडी ने।

चंडी ἓ चंडी होई बुध जिसनूं हुकम दी सोझी है। जो दानव (विकारां) नाल जंग करके जीव दे हिरदे विच सुचमता रखदी है। चंडी दी वार दी पहिली पंकती है "आदि अपार अलेख अनंत अकाल अभेख अलख अनासा॥ ἓ चंडी गुरमति गिआन है किउंकी आदि काल तों अकाल दी थापी होई है। अपार जिसदा पार ना होवे। अलेख जिसनुम लेखा नहीं देणा। अनंत भाव जिसदा अंत नहीं है, जेकिरपान होवे तां टुट जांदी, जंग लग जांदा, पुराणी हुंदी। इह बिबेक बुध है जो अंत तों परे है। जे अभेख होवे तां इह इसत्री जां देवी लई किवें हो सकदा है? बुध दी गल है किउंके बुध दा भेख जां आकार नहीं हुंदा। अपार देवी किवें हो सकदी है? चंडी चरित्र पड़्ह के समझण लई पहिलां आदि बाणी तों गुरमति गिआन गुर बाणी तों सुहागण बुध दा गिआन होवे तां किते चंडी समझ आवे। तां ही तां विकार रूपी दैतां दा संघार करे। कथा कहाणीआं राही गल समझाई गई है, लोकां दा विकारां ते काबू है नहीं ते लिखें स़बदां विच ही काम दिसण लग पैंदा। किंतू परंतू करन वालिआं ने आदि बाणी वी नहीं विचारी नहीं तां उहनां नूं आदि बाणी दीआं कुझ पंकतीआं पड़्ह के अस़लीलता दिखणी सी।

कालका – काल नूं पछानण वाली। चंडी होई बुध दा ही नाम कालका है जो दुबिधा दूर कर सके। दुबिधा अरथ स़ंका। "वहै कालका असुर खपाए॥ मारि दुबहिया धूरि मिलाए॥ पुनि पुनि उठै प्रहारै बाना॥ तिन ते धरत असुर तन नाना॥६४॥

असुर/दैत/राकस/दुसट – जिहनां दा सुर विगड़िआ। हुकम तों बागी है जिहनां दी सोच। मन मैला होण कारण मन विच संका है। बाणी आखदी जीव जंतु, पूरी स्रिसटी एक धुन एक राग अलाप रही है, परमेसर दे गुण गा रही है। मनुख दुबिधा कारण विकारां कारन हुकम दा विरोध करदा। हुकम ना मंनण वाली सोच, मनुख दे मन अंदर उठण वाले फुरने ही असुर हन। इहनां दा संघार कालका, नाम (सोझी) दी धारणी बुध/कालका करदी है।

दसम विरोधी अकसर इह आखदे हन के चंडी दे मथे तों काली किवें प्रकट होई ते हवाले वजों इक किताब स़ेअर करदे हन जिस विच तसवीर कुझ इहो जिही है

बाणी दीआं पंकतिआ दे गलत ते संसारी अरथ करके सिध करन दी कोस़िस़ करदे हन के इह कोई देवी माता है। पंकतीआं हन "सूरी संघरि रचिआ ढोल संख नगारे वाइ कै॥ चंड चितारी कालका मन बाहला रोस बढाइ कै॥ निकली मथा फोड़ि कै जन फते नीसाण बजाइ कै॥ जाग सु जंमी जुध नूं जरवाणा जण मरड़ाइ कै॥। जिहड़े सवाल पुछदे हन उहनां दा कोई बैर है दसम बाणी नाल जां स़ाइद उहनां नूं अलंकार समझ नहीं लगदे जां कोई सोची समझी साजिस़ जापदी है। इह इक कथा है महिखासुर अते रकतबीज दी। पातोस़ाह ने इथे दैत रकतबीज विकारां नूं मंनिआ है जिवें रकत दी बूंद जिथे डिगदी है कहाणी विच दसिआ उथों कई दैत पैदा हो जांदे हन। जिवें इक विकाॲ खतम होवे दूजा नाल ही पैदा हो जांदा है। इहनां नूं मारन लई कालका (गुरमति / काल दी सोझी) दुआरा चंडी होई बुध मन रूपी हरनाकस दैत नूं संघारदी है, सारे दैत एक साथ खतम कर दिंदी है उस गल नूं कविता/कहाणी दे रूप विच दरसाइआ गिआ है। जे इहनां दसम विरोधीआं ने आदि ग्रंथ दी विचार कीती हुंदी तां पता लगदा के इह रकतबीज वाला प्रसंग उथे वी आइआ है, प्रमाण

सहसबाहु मधु कीट महिखासा॥ हरणाखसु ले नखहु बिधासा॥ दैत संघारे बिनु भगति अभिआसा॥६॥ जरासंधि कालजमुन संघारे॥ रकतबीजु कालुनेमु बिदारे॥ दैत संघारि संत निसतारे॥७॥ आपे सतिगुरु सबदु बीचारे॥ रागु गउड़ी॥दूजै भाइ दैत संघारे॥ गुरमुखि साचि भगति निसतारे॥८॥(म १, रागु गउड़ी, २२५)

जे कोई बाणी विचारे ही ना आदि बाणी पड़्ह के आख देवे जी ठीक है उथे अलंकार है मंन रहे हां पर जी दसम बाणी विच अलंकार नहीं है उथे तां कहाणी ही है, फेर इस गल दा जवाब कोई की दे सलदा है। सुते नूं जगाइआ जा सकदा है, सौण दे नाटक करन वाले नूं नहीं।

सीतला – गुर अते गिआन दी धारणी बुध जो गिआन कारण सीतल है, जिस कारण मन विच विकारां दी अग दा ताप नहीं लगदा। "केते उपज सीतला मरे॥ केते अगिनि बाव ते जरे॥ भरम चित केते ह्वै मरे॥ उदर रोग केते अरि टरे॥२४१॥, चौपई बाणी विच जिहड़े "हमरे दुसट सभै तुम घावहु॥ इह पता होवे किहड़े हन हमरे दुसट (विकार) तां इहनां दुसटअ दा विकारां दा संघार सीतला करदी है। "मिड़ा मारजनी सूरतवी मोह करता॥ परा पसटणी पारबती दुसट हरता॥ नमो हिंगुला पिंगुला तोतलायं॥ नमो कारतिक्रयानी सिवा सीतलायं॥, आदि बाणी विच नाम (सोझी) सीतल करदी है दसिआ है "महा कसट काटै खिन भीतरि रसना नामु चितारे॥ सीतल सांति सूख हरि सरणी जलती अगनि निवारे॥१॥

दुरगा – साडा घट/हिरदा/मन दुरग है। दुरग हुंदा किला। कबीर जी दी बाणी विच इसनूं गड़्ह वी कहिआ आदि बाणी विच। दुरग उस बुध दा गिआन दा नाम है जो मन रूपी गड़, दुरग ते कबज़ा/राज होवे। "दुरगा सभ संघारे राकसि खड़ग लै॥, राकस हन विकार। खड़ग किहड़ी? गिआन दी खड़ग "कामु क्रोधु अहंकारु निवारे॥ तसकर पंच सबदि संघारे॥ गिआन खड़गु लै मन सिउ लूझै मनसा मनहि समाई हे ॥३॥"

इह वेखो कि जिवें आदि स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी विच "दुरगा मरदन करै "दुरगा कोटि जा कै मरदनु करै॥" आइआ है तां दसम विच आइआ है चरन सरन जा के बसत भवानी सो इथे तक इह पता चलदा है कि देवी दुरगा भवानी बारे कोई अंतर नहीं दोनो जगा। "लई भगउती दुरगसाह वर जागन भारी॥ – दुरगा (मन रूपी दुरग दी मालिक भाव बुध) ने भगउती (उतम भगती दी मति) लई भारी वर रूप विच। इह समझ के ही तैथों समझ लगदा है इहनां पंकतीआं विच "तै ही दुरगा साजि कै दैता दा नासु कराइआ॥ तैथों ही बलु राम लै नाल बाणा दहसिरु घाइआ॥ तैथों ही बलु क्रिसन लै कंसु केसी पकड़ि गिराइआ॥ बडे बडे मुनि देवते कई जुग तिनी तनु ताइआ॥ किनी तेरा अंतु न पाइआ॥

भवानी – भवान दा अरथ वरतमान हुंदा है। भवानी दा अरथ बणदा जो ताकत हजे सारे पासे पूरे पसारे विच विचर रही है। भवानी है परमेसर दी स़कती जो पूरी स्रिसटी विच मौजूद है

इसनूं कलीअर कीता है दसम पातिस़ाह ने अकाल उसतति विच

"भव भूत भविख भवान तुअं ॥

तूं ही भूत काल, भविखबते वरतमान हैं। भवानी इस लिहाज नाल वरतमान विच वरत रही स़कती है। सरव विआपी अते अकाल उसतति विच ही कलीअर कीता है

अनहद रूप अनाहद बानी॥ चरन सरन जिह बसत भवानी॥ ब्रहमा बिसन अंतु नही पाइओ॥ नेत नेत मुखचार बताइओ॥

जिस दिन निरपख हो के विचार करन लग जावोंगे सपस़ट दिसणा स़ुरू हो जावेगा।

होर गहिराई नाल समझणा चाहों तां प्रेम नाल विचार कॲके देखो अकाल उसतति दीआं इहनां पंकतीआं नूं "कहूं ससत्रधारी कहूं बिदिआ के बिचारी कहूं मारत अहारी कहूं नार के निकेत हो॥ कहूं देवबानी कहूं सारदा भवानी कहूं मंगला मिड़ानी कहूं सिआम कहूं सेत हो॥ कहूं धरम धामी कहूं सरब ठउर गामी कहूं जती कहूं कामी कहूं देत कहूं लेत हो॥ कहूं बेद रीत कहूं ता सिउ बिप्रीत कहूं त्रिगुन अतीत कहूं सुरगुन समेत हो॥

दसम बाणी दे विरोधी अकसर आदि बाणी दी पंकती "तू कहीअत ही आदि भवानी॥ मुकति की बरीआ कहा छपानी॥ दा हवाला दे के कहिंदे हन के भवानी रद कीती होई है आदि बाणी ने। जे गौर नाल वेखिआ जावे तां इथे केवल सवाल है के जे कोई इसत्री रूपी देवी नूं भवानी कहि रहिआ है तां मुकती दे समें इह किथे लुक जांदी है। इथे केवल सवाल है रद नहीं कीता गिआ है। इह तां भगत जी ही जाणदे हन के उह दसम पातिस़ाह वांग परमेसर दी स़कती नूं भवानी मंनदे हन जां किसे इसत्री रूप विच मंनी जाण वाली देवी नूं।

भैरों – मन है जिस विचों विकार रूपी दानव, पिसाच, आदी पैदा हुंदे हन।

महा काल – कुझ लोग समझदे हन के महाकाल पातिस़ाह ने सनातन मति दे स़िव नूं आखिआ है। दसम बाणी पड़्ह के विचारदे तां पात लगदा के "महा काल ही को गुरू कै पछाना॥। अकाल दी उसतति लिखदिआं आखदे हन "गिआन हूं के गिआता महां बुधिता के दाता देव काल हूं के काल महा काल हूं के काल हैं ॥। फेर आखदे हन के जिस काल नूं अकाल ने थापिआ मैं केवल उसनूं मंनदा हां ते कोई होर रूद्र देव आदी सिव सुव नूं मैं नहीं मंनदा "एकै महा काल हम मानै॥ महा रुद्र कह कछू न जानै॥ ब्रहम बिसन की सेव न करही॥ तिन ते हम कबहूं नही डरही॥

दसम पातिस़ाह ने नाम (सोझी) प्रापत बुध नूं चंडी, कालका कहि के संबोधन कीता है ते खालसे वी इही बुध (चंडी, कालका) दी अराधणा करदा है आदि बाणी अते दसम बाणी राहीं। भैरों, सीतला, दुरगा सब गिआन ते मन दीआं अवसथावां हन ते अलंकार पखों वरते होए नाम हन। जदों सनातन मति चंडी देवी नूं आखदी सी पातिस़ाह ने बुध नूं गिआन खड़ग नूं चंडी है समझाउण लई चंडी की वार उचारी ते सिखां लई बाणी लिख के चंडी प्रकट कीती जिसदी अग विच अज वी विकार सड़ जांदे हन जे समझ आ जावे तां। साडे विच कई हन जिनां नूं गल ही समझ नहीं लगी ते चडी, सीतला, दुरगा औरत नूं दसी जांदे हन ते दसम बाणी बिनां पड़्हे अते विचारे ही किंतू परंतू करन लग जांदे हन। भाई आदि बाणी नाल जे प्रेम है तां इही समझ लैंदे पहिलां "पड़िऐ नाही भेदु बुझिऐ पावणा ॥, ना आदि बाणी बूझदे ना दॳम बाणी बस रौला पाइआ होइआ है।

मूरती पूजा

आदि बाणी अते दसम बाणी दोहा विच मूरती पूजा दी सखत मनाही है। प्रमाण

दसम बाणी विचों

पाइ परो परमेसर के जड़ पाहन मैं परमेसर नाही ॥९९॥

काहे कउ पूजत पाहन कउ कछु पाहन मै परमेसर नाही ॥

पाइ परो परमेस्वर के पसु पाहन मै परमेस्वर नाही ॥१२॥

ब्यापक है सभ ही के बिखै कछु पाहन मै परमेस्ववर नाही ॥१३॥

लैनौ होइ सु लै दिज मुहि न झुठाइयै॥ पाहन मै परमेस्वर न भाखि सुनाइयै॥ इन लोगन पाहन महि सिव ठहराइ कै॥ हो मूड़न लीजहु लूट हरख उपजाइ कै॥७४॥

आदि बाणी विचों

पड़ि पुसतक संधिआ बादं॥ सिल पूजसि बगुल समाधं॥ मुखि झूठ बिभूखण सारं॥ त्रैपाल तिहाल बिचारं॥ गलि माला तिलकु लिलाटं॥ दुइ धोती बसत्र कपाटं॥ जे जाणसि ब्रहमं करमं॥ सभि फोकट निसचउ करमं॥ कहु नानक निहचउ धिआवै॥ विणु सतिगुर वाट न पावै॥२॥

पाखान गढि कै मूरति कीन॑ी दे कै छाती पाउ॥ जे एह मूरति साची है तउ गड़्हणहारे खाउ॥३॥

पाती तोरै मालिनी पाती पाती जीउ॥ जिसु पाहन कउ पाती तोरै सो पाहन निरजीउ॥१॥

जो पाथर कउ कहते देव॥ ता की बिरथा होवै सेव॥ जो पाथर की पांई पाइ॥ तिस की घाल अजांई जाइ॥१॥

जे सोझी ना होवे तां आदि बाणी विचों वी देवी देवतिआं दे नाम पड़्ह के भुलेखे होणे के आदि बाणी वी सनातनी देवी देवतिआं नूं मंन रही है। झगड़ा नासमझी ते बेअकली कारण हो सकदा है पर आपणी घट अकल कारण बाणी नूं ही रद कर देणा मूरखां दा कंम है पातिस़ाह तां दूजे धरमां दे ग्रंथ पड़्ह के विचारन दा आदेस़ करदे हन तां के उहनां दी गल समझ के जो गुरबाणी विच उदाहरण हन छेती समझ आउणे "बेद कतेब कहहु मत झूठे झूठा जो न बिचारै॥ बिनां बिचार कीते बिनां बूझे दे पार नहीं पाइआ जाणा "बिनु बूझे कैसे पावहि पारु॥। मीणिआं ने मसंदां ने आदि बाणी विच आउण वाले नामां नूं सनातन मति दे देवी देवते आख के सनातन मति नाल हां विच हां मिलां देणी ते दसम बाणी दे खिलाफ़ तां उह गुरुआं दे समे तों ही रहे हन। इस नाल लोकां दा स़िआन बाद बिबाद विच लगिआ रहिंदा, आम जनता गिआन तों दूर रहिंदी है ते उहनां दा कारोबार चलदा रहिंदा। धरम दा धंदा करण लई सिआणे, सूझवान, गुरमति दे धारणी लोग नहीं चाहीदे उहनां नूं।

जे गुरू नाल गुरू दी बाणी नाल प्रेम है। समझणा है के भगतां ने गुरुआं ने की समझाउणा चाहिआ है तां बाणी पड़्ह के विचार के समझ के धारन करनी पैणी। स़ंका दा निवारण गल समझ के होणा। बाणी दे अरथ बाणी तों खोजो। दूजिआं दी सुणी सुणाई गल बिनां तथ दे बिनां खोज दे ना मंन के गुरू ते भरोसा रखो।

राग देवगंधारी पातिसाही १०॥ बिन हरि नाम न बाचन पैहै॥ चौदहि लोक जाहि बस कीने ता ते कहां पलै है॥१॥ रहाउ॥ राम रहीम उबार न सकहै जा कर नाम रटै है॥ ब्रहमा बिसन रुद्र सूरज ससि ते बसि काल सबै है॥१॥ बेद पुरान कुरान सबै मत जा कह नेत कहै है॥ इंद्र फनिंद्र मुनिंद्र कलप बहु धिआवत धिआन न ऐहै॥२॥ जा कर रूप रंग नहि जनियत सो किम स्याम कहै है॥ छुटहो काल जाल ते तब ही तांहि चरन लपटै है॥३॥२॥१०॥(स़बद हज़ारे पाः १०, ७१२)

अनहद रूप अनाहद बानी॥ चरन सरन जिह बसत भवानी॥ ब्रहमा बिसन अंतु नही पाइओ॥ नेत नेत मुखचार बताइओ॥५॥ कोटि इंद्र उपइंद्र बनाए॥ ब्रहमा रुद्र उपाइ खपाए॥ लोक चत्र दस खेल रचाइओ॥ बहुर आप ही बीच मिलाइओ॥६॥ – सोचण वाली गल है के इह सब पंडत दा लिखिआ हो सकदा है?

"चेत रे चेत अचेत महा जड़ भेख के कीने अलेख न पै है॥१९॥ काहे कउ पूजत पाहन कउ कछु पाहन मै परमेसर नाही॥ ताही को पूज प्रभू करि के जिह पूजत ही अघ ओघ मिटाही॥ आधि बिआधि के बंधन जेतक नाम के लेत सबै छुटि जाही॥ ताही को धयानु प्रमान सदा इन फोकट धरम करे फलु नाही॥२०॥ फोकट धरम भयो फल हीन जु पूज सिला जुगि कोटि गवाई॥ सिधि कहा सिल के परसै बलु ब्रिध घटी नव निधि न पाई॥ आज ही आजु समो जु बितयो नहि काजि सरयो कछु लाजि न आई॥ स्री भगवंत भजयो न अरे जड़ ऐसे ही ऐसे सु बैस गवाई॥२१॥ जौ जुग ते कर है तपसा कुछ तोहि प्रसंनु न पाहन कै है॥ हाथि उठाइ भली बिधि सो जड़ तोहि कछू बरदानु न दै है॥ कउन भरोसो भया इह को कहु भीर परी नहि आनि बचै है॥ जानु रे जानु अजान हठी इह फोकट धरम सु भरम गवै है॥२२॥ जाल बधे सब ही म्रित के कोऊ राम रसूल न बाचन पाए॥ दानव देव फनिंद धराधर भूत भविख उपाइ मिटाए॥ अंत मरे पछुताइ प्रिथी परि जे जग मै अवतार कहाए॥ रे मन लैल इकेल ही काल के लागत काहि न पाइन धाए॥२३॥

काहूं लै ठोकि बधे उरि ठाकुर काहूं महेस को एस बखानयो॥ काहू कहियो हरि मंदर मै हरि काहू मसीत कै बीच प्रमानयो॥ काहूं ने राम कहयो क्रिसना कहु काहू मनै अवतारन मानयो॥ फोकट धरम बिसार सबै करतार ही कउ करता जीअ जानयो॥१२॥ जौ कहो राम अजोनि अजै अति काहे कौ कौसलि कुख जयो जू॥ काल हूं काल कहो जिह कौ किहि कारण काल ते दीन भयो जू॥ सति सरूप बिबैर कहाइ सु कयों पथ को रथ हाकि धयो जू॥

दसम बाणी दे विरोधी सवाल करदे हन के दसम बाणी दुरगा माता दी पूजा करदी है। कई सवाल खड़े कीते। सवाल दे जवाब नीचे दिते हन के दुरगा की है।

देवी दुरगा (गुरसिख लई दुरगा है गुरमति जो मन रूपी दुरग ते राज करदी। देवी तों भाव हुंदा देण वाली, दिंदी की? गिआन, सोझी सुबुध देवी बरु लाइक सुबुधि हू की दाइक सु देह बरु पाइक बनावै ग्रंथ हाल है ॥७॥) दी उसतति करदी रचना अथ देवी जू की उसतति कथनं

१)- जाप पंना २:-
नमो सरब सोखं ॥ नमो सरब पोखं॥ २७॥

नमसकार है सरब (सारे) सुख देण वाली नूं। मती देवी जिहड़ी सरेसट वर देवे "सभ परवारै माहि सरेसट॥ मती देवी देवर जेसट॥ (म५, रागु आसा, ३७१)। नमसकार है उसनूं जो सारे पोस़ण (घट दे विकास दे) प्रदान करदी है।

देवी उसतति पंना ११६:-
नमो पोखणी सोखणी दरभ भरणी॥१६॥

नमसकार है उस देवी (गुरमति) दा जो पोस़ण करदी है गिआन दे के। ब्रहम गिआनी दा भोजन गिआन है इस कारण। सोखणी – आनंद/सुख देण वाली। दरभ भरणी – सोड़ी दे बूटे नूं हरिआ रखदी।

२)- जाप पंना २:-
नमो जोग जोगे॥ नमो भोग भोगे ॥

नमसकार है उसनूं जिसदे कारण जीव ने जोग कीते। सच दी प्रापती जोग है "सचु संतति कहु नानक जोगु॥। सोझी दा भोग कराउण वाली "हिरदै नामु नित हरि रस भोग ॥१॥

देवी उसतति पंना ११७:-
नमो जोगणी भोगणी परम प्रगया ॥

नमसकार है उसनूं जिसदे कारण जीव ने जोग कीते। सच दी प्रापती जोग है "सचु संतति कहु नानक जोगु॥। सोझी दा भोग कराउण वाली "हिरदै नामु नित हरि रस भोग ॥१॥। परम तों भाव स्रेसट, प्रगया अरथ हुंदा है “बुधी,” “समझ,” जां “सूझ-बूझ।”

३)- जाप पंना ३:-
नमो ससत्रपाणे ॥ नमो असत्रमाणे॥५१॥

नमसकार है उसनूं जिस कोल विकारां नाल लड़न दे स़सतर हन। नमसकार है उसनूं असुर (विकार) मारन दी काबलीअत दा माण प्रापत है।

देवी उसतति पंना ११६:-
नमो स़सत्रणी असत्रणी करम करता॥२३३॥

-नमसकार है उसनूं किसनूं स़सत्र प्रदान करके चंगे करम कारण दी करता होण दा मान प्रापत है।
अते
पंना ३०९:-
तुही असत्रणी स़सत्रणी आप रूपा॥४२१॥
– गुरमति ही आप परमेसर दा गुण रूप है

४)- जाप पंना ३:-
नमो नित नाराइणे क्रूर करमे॥५४॥

नाराइण दा स़बदी अरथ हुंदा है जल विच रहिण वाला। गुरमति जल अंम्रित/गिआन/नाम/सोझी नूं मंनदी है। नाराइणे – गुरमति (दुरगा देवी) नूं नमसकार है जो मनुख दे घट विच इस जल नूं
बणाइ रखदे है, बुध नूं सोझी विछ भिजिआ रखदी है। क्रूर करमे तों कंम विकारां नूं क्रुरता नाल मसल के रखदी है।
देवी उसतति पंना ११६:-
(ॳ):- नमो परम रूपा नमो क्रूर करमा॥२२५॥

परम सस़ेसट रूप है गुरमति गिआन दा। नमसकार है जो बेरहिमी नाल विकारां नाल दुरमति नाल जंग करदी है।
(अ):- नमो नित नाराइणी दुस़ट दरणी॥२३६॥
नमसकार है इस नतराइणी (अरथ उपर कीते हन) नूं जो दुस़ट (विकारा) नूं मथा टिका के सिर नीचे करा के भाव दबा के रखदी है।

५)- जाप पंना ३:-
*नमो लोक माता॥५२॥

गुरमति (दुरगा देवी) नूं नमसकार है जो पूरे लोक दी मां है, मां वांग धिआन रखदी है।

देवी उसतति पंना ११८:-
नमो भीम रूपा॥ नमो लोक माता॥२५४॥

नमसकार है उसनूं जो बलवान है, ताकतवर है ते सरब लोक दी मां है।

६)- जाप पंना ४:-
अछेदी अभेदी अनामं अकामं॥६१॥

इह अछेद है, इसतों ताकतवर कोई नहीं, इसनूं हराउण दा भेद किसे कोल नहीं है, अनामं इसदा कोई इक नाम नहीं है, अकामं इह त्रै गुण माइआ तों करम दी खेड तों परे है॥

देवी उसतति पंना ११८:-
अछेदं अभेदं अकरमं सुधरमं॥

इह अछेद है, इसतों ताकतवर कोई नहीं, इसनूं हराउण दा भेद किसे कोल नहीं है। इह करम दी खेड तों बाहर है। सुधरमं – इह सु (चंगा) धरम (सोझी) गिआन नाम बखस़दी है।

७)- जाप पंना १:-
अरूप है ॥ अनूप है॥ अनाम है॥ अकाम है॥३०॥

इसदा कोई रूप नहीं किउंके इह माइआ रूप विच, सरीर रूप विच नहीं है। इह अनूप भाव लासानी है बेमिसाल है। इसनूं इक नाम नाल संबोधित नहीं कर सक। इह कामना तों परे है।

देवी उसतति पंना ११८:-
अरूपं अनूपं अनामं अठामं॥२५१॥

अठामं – इसनूं इक थां ते कैद नहीं कीता जा सकदा। जिथे अकाल दा पसारा है इह उथे है।

८)- जाप पंना १०:-
रिपु तापन हैं॥ जपु जापन हैं॥१८२॥

इह ताप हरदी है। गुरमति गिआन (दुरगा देवी) जीव नूं लगे ताप (विकार) हरदी है। इसनूं जप (अकाल नूं जानण दी क्रिआ) दा भेद पता है।

देवी उसतति पंना ११७:-
रिपं तापणी जापणी सरब लोगा॥२४३॥

इह गुरमति गिआन है, ताप हरन वाली है, इह घट घट दी अवसथा जाणदी है।

९)- जाप पंना १०:-
नमो राजसं तामसं स़ात रूपे॥१८६॥

नमसकार है जो राजे साजदी, तमों गुण स़ांत करदी।

देवी उसतति पंना ३०९:-
तुही राजसी सातकी तामसी है॥४२८॥

इहु आप ही त्रै गुण जाणदी है।

१०)- जाप पंना १:-
नमसतं अजीते ॥ नमसतं अभीते॥६॥

नमसकार है इसनूं किउखे इस नूं कोई हरा नहीं सकदा। नमसकार है इसनूं। किउंके इह किसे तों नहीं डरदी

देवी उसतति पंना ११८:-
अभीतं अजीतं महां धरम धामं॥३२॥

११)- जाप पंना ८:-
गरीबुल निवाज हैं॥

गरीबां दी रखिआ करदी।

देवी उसतति पंना ३१०:-
आपे आपु गरीब निवाजा॥४३८॥

आप इहु गरीबां नूं नवाजदी

१२)- जाप पंना १०:-
अजै॥ अलै॥ अभै॥ अबै॥१८९॥

जिती नहीं जा सकदी। सीमां नहीं है इसदी, भै रहित है। इह है, हुणे वी नाल ही है।

देवी उसतति पंना ११८:-
अजेयं अभेयं निरंकार नितयं॥२५२॥

जिती नहीं जा सकदी। सब तों ताकरवर है। अभेअं – निरभै, अगिग है। अकार तों परे है। माइआ दे आकार तों परे है।

दसम बाणी दी इक पंकती है "देह अनित न नित रहै जसु नाव चड़ै भव सागर तारै॥ भाव देह अनित है, नित रहिण वाली नहीं है। संसार विच जस खट लवो, भवसागर तर जाणा। जस की है?

जस – परमेसर दा गिआन, उसदा नाम, उसदी सोझी ही जस है "तूंही रस तूंही जस तूंही रूप तूही रंग ॥ आस ओट प्रभ तोरी ॥१॥

कोटि बिसन कीने अवतार॥ कोटि ब्रहमंड जाके ध्रमसाल॥ कोटि महेस उपाइ समाए॥ कोटि ब्रहमे जगु साजना लाए॥ ऐसो धणी गुविंदु हमारा॥ बरनि न साकउ गुण बिसथारा॥ पंना 1156

कोटि सूर जा कै परगास॥ कोटि महादेव अरु कबिलास॥ दुरगा कोटि जा के मरदनु करे॥ ब्रहमा कोटि बेद उचरै॥ जउ जाचउ तउ केवल राम॥ आन देव सिउ नाही काम॥ पंना 1162

Note – गुरबाणी मुताबक रमै राम अते दस़रथ पुतर राम विच अंतर थोड़े दिन पहिलां विचारिआ सी। इह सारे 33 करोड़े बांझ झोटे झोटीआं हन। इहनां कोलों दुध दी कोई आस ना करे।

इह स़बद दसम बाणी विच वी हन

त्व प्रसादि ॥ चोपई ॥
प्रणवो आदि एकंकारा ॥
जल थल महीअल कीओ पसारा ॥
आदि पुरख अबिगति अबिनासी ॥
लोक चत्र दस जोति प्रकासी ॥१॥
हसति कीट के बीच समाना ॥
राव रंक जिह इकसर जाना ॥
अद्रै अलख पुरख अबिगामी ॥
सभ घट घट के अंतरजामी ॥२॥
अलख रूप अछै अनभेखा ॥
राग रंग जिह रूप न रेखा ॥
बरन चिहन सबहूं ते निआरा ॥
आदि पुरख अद्रै अबिकारा ॥३॥


अनहद रूप अनाहद बानी ॥
चरन सरन जिह बसत भवानी ॥
ब्रहमा बिसन अंत नही पाइओ ॥
नेत नेत मुख चार बताइओ ॥५॥
कोटि इंद्र उपइंद्र बनाए ॥
ब्रहमा रुद्र उपाइ खपाए ॥
लोक चत्र दस खेल रचाइओ ॥
बहुर आप ही बीच मिलाइओ॥६॥ दसम बाणी

एक सिव भए एक गए एक फेर भए रामचंद्र क्रिसन के अवतार भी अनेक हैं॥ब्रहमा अरु बिसन केते बेद औ पुरान केते सिंम्रिति समूहन कै हुइ हुइ बितए हैं॥ मोनदी मदार केते असुनी कुमार केते अंसा अवतार केते काल बस भए हैं॥ पीर औ पिकांबर केते गने न परत एते भूम ही ते हुइ कै फेरि भूमि ही मिलए हैं॥

अद्वैखं अभेखं अजोनी सरूपे ॥
नमो एक रूपे नमो एक रूपे ॥

Someone pinged me and said that Murar and Gobind words have been used to describe Krishna. My response was

गोबिंद मुरार वरगे स़बद आदि काल तों वरतो विच हन। गोबिंद दा भाव हुंदा है परमेसर (गो) दा बिंद (बीज)। पूरी स्रिसटी ही परमेसर दा बिंद है। गोपाल भाव परमेसर जो पाल (पालक/पालणा करन वाला है। मुरार भाव मुर (दुसट) दा नास करन वाला। तुसीं आपणे पुरातन वेद पड़्ह के वेख लवो उथे वी तुहानूं गोबिंद मुरार इह सब सरव विआपक निराकारी परमेसर दे रूप ही मिलणगे। इहनां नूं इसत्री जां पुरख दी मूरती रूप देण वाला राजा रवी वरमा होइआ है। इस तों पहिलां इह सब कालपनिक कथा कहाणीआं दुआरा गुण रूप विच परमेसर दी होंद ते स़कती रूप विच ही समझे ते दरसाए जांदे सी।

अज वी तुसीं वेद पड़्ह के वेख लवो उथे स़कती रूपेण लिखिआ मुलूगा। कांती रूपेण, दइआ रूपेण इह सब गुण हन। "या देवी सरव भूतेस़ु बुधी रूपेण संसथिता । या देवी सरव भूतेस़ु कांती रूपेण संसथिता । या देवी सरव भूतेस़ु दइआ रूपेण संसथिता ।

वेद वी पड़्ह के समझ लवो। वेखो किते वेदां विच दसे निराकार परमेसर नूं गुण रूप तों हटा के किसे ने दूजे रूप विच देखण लई तां नहीं भटकाइआ।

पूरी स्रिसटी विच मौजूद परमातमा दी जागदी जोत सरव विआपी रूप विच ही विखणी फेर पता लगू के वेद अते गुरमति इको सरव विआपक सरव स़कतीमान निराकार परमेसर दी ही गल करदे हन। पूरी स्रिसटी ही गोबिंद है। परमेसर आप ओत पोत है पूरीं स्रिसटी विच। तुहाडे विच मेरे विच ते सारिआं विच। “सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई॥ सूतु एकु मणि सत सहंस जैसे ओति पोति प्रभु सोई॥”

वेद साफ आखदे हन के

यजुरवेद 32.3 – ࠨ ࠤ࠸ࡍ࠯ ࠪࡍ࠰ࠤ࠿࠮࠾ ࠅ࠸ࡍࠤ࠿ (na tasya pratima asti)
"उस दी कोई मूरती नहीं है। इह सपस़ट करदा है कि परमातमा दी कोई रूप-मूरती नहीं बणाई जा सकदी।

यजुरवेद 32.3 – ࠨ ࠤ࠸ࡍ࠯ ࠪࡍ࠰ࠤ࠿࠮࠾ ࠅ࠸ࡍࠤ࠿ (na tasya pratima asti)
"उस दी कोई मूरती नहीं है।। इह सपस़ट करदा है कि परमातमा दी कोई रूप-मूरती नहीं बणाई जा सकदी।

भगवद गीता 7.24 – ࠅ࠵ࡍ࠯ࠕࡍࠤࠂ ࠵ࡍ࠯ࠕࡍࠤ࠿࠮࠾ࠪࠨࡍࠨࠂ ࠮ࠨࡍ࠯ࠨࡍࠤࡇ ࠮࠾࠮ࠬࡁࠦࡍࠧ࠯ࠃ (avyaktaᵁ vyaktim āpannaᵁ manyante mām abuddhayaᴥ)
"अजाण लोक सोचदे हन कि अविअकत निराकार परमातमा ने मनुख दा रूप धार लिआ है।। इह रूपवान भगवान दी धारना नूं अगिआनता नाल जोड़दा है।

ब्रहमा संहिता 5.1 ࠈ࠶ࡍ࠵࠰ࠃ ࠪ࠰࠮ࠃ ࠕࡃ࠷ࡍࠣࠃ ࠸ࠚࡍࠚ࠿ࠦ࠾ࠨࠨࡍࠦ࠵࠿ࠗࡍ࠰࠹ࠃ । ࠅࠨ࠾ࠦ࠿࠰࠾ࠦ࠿࠰ࡍࠗࡋ࠵࠿ࠨࡍࠦࠃ ࠸࠰ࡍ࠵ࠕ࠾࠰ࠣࠕ࠾࠰ࠣ࠮ࡍ ॥ (īśvaraᴥ paramaᴥ kᵛᵣᵇaᴥ sac-cid-ānanda-vigrahaᴥ. anādir ādir govindaᴥ sarva-kāraᵇa-kāraᵇam)
"क्रिस़न ही परम इस़वर है, उह सच-चित-आनंद रूप है, "गोबिंद = सभ कारनां दा मूल कारण सरवविआपी, अनादि, निरगुण-सगुण एकता है।

विस़नु सहस्रनाम (नाम #187, #539) ࠗࡋ࠵࠿ࠨࡍࠦࠃ ࠗࡋ࠵࠿ࠦ࠾ࠂ ࠪࠤ࠿ࠃ (govindaᴥ govidāᵁ patiᴥ)
"गो = इंद्रीआं, गिआन, "विंद = जाणन वाला, गोबिंद = जो सभ इंद्रीआं दा मालक है, जो गिआन देण वाला है।

मुरारी (࠮ࡁ࠰࠾࠰࠿) ἔ असुर नासक, आतमिक मुकतीदाता
हरिवंस़ पुराण (विस़नु खंड) – ࠮ࡁ࠰ࠂ ࠚ ࠨ࠾࠰ࠕࠂ ࠚࡈ࠵ ࠹ࠤࡍ࠵࠾ ࠮ࡁ࠰࠾࠰࠿࠰࠭ࡂࠨࡍ࠮ࠨࠃ ॥ (muraᵁ ca nārakaᵁ caiva hatvā murārira bhūn manaᴥ)
"मुर = असुर, अहंकार, मोह, "आरी = नास करन वाला, मुरारी = जो असुरां, अहंकार, मोह दा नास करदा है, क्रिस़न दा रूप, जो आतमिक मुकती देण वाला है।

भगवत गीता 11.38 – ࠤࡍ࠵࠮ࠕࡍ࠷࠰ࠂ ࠪ࠰࠮ࠂ ࠵ࡇࠦ࠿ࠤ࠵ࡍ࠯ࠂ । ࠤࡍ࠵࠮࠸ࡍ࠯ ࠵࠿࠶ࡍ࠵࠸ࡍ࠯ ࠪ࠰ࠂ ࠨ࠿ࠧ࠾ࠨ࠮ࡍ । ࠤࡍ࠵࠮࠵ࡍ࠯࠯ࠃ ࠶࠾࠶ࡍ࠵ࠤࠧ࠰ࡍ࠮ࠗࡋࠪࡍࠤ࠾ । ࠸ࠨ࠾ࠤࠨ࠸ࡍࠤࡍ࠵ࠂ ࠪࡁ࠰ࡁ࠷ࡋ ࠮ࡁ࠰࠾࠰࠿ ॥
तूं अकस़र (अविनासी) परम तत हैं, तूं सारे विस़व दा आधार हैं, तूं सनातन पुरुस़ हैं । मुरारी इथे "मुरारी = सरवविआपी है।

वैदिक अते उपनिस़दिक संदरभ: "असुर = अंदरले विकार – ࠆࠤࡍ࠮࠾ࠨࠂ ࠰ࠥ࠿ࠨࠂ ࠵࠿ࠦࡍࠧ࠿ ࠶࠰ࡀ࠰ࠂ ࠰ࠥ࠮ࡇ࠵ ࠤࡁ । ࠬࡁࠦࡍࠧ࠿ࠂ ࠤࡁ ࠸࠾࠰ࠥ࠿ࠂ ࠵࠿ࠦࡍࠧ࠿ ࠮ࠨࠃ ࠪࡍ࠰ࠗࡍ࠰࠹࠮ࡇ࠵ ࠚ ॥ (ātmānaᵁ rathinaᵁ viddhi śarīraᵁ ratham eva tu, buddhiᵁ tu sāraᵭhiᵁ viddhi manaᴥ pragraham eva ca)
इथे मन नूं रथ दे लगाम वजों दरसाइआ गिआ है जे मन विकारां वल खिचिआ जांदा है, तां आतमा "असुर रूप विकारां दी गिरफ़त विच आ जांदा है।

मुंडक उपनिस़द 3.1.1 – ࠦࡍ࠵࠾ ࠸ࡁࠪ࠰ࡍࠣ࠾ ࠸࠯ࡁࠜ࠾ ࠸ࠖ࠾࠯࠾ । ࠸࠮࠾ࠨࠂ ࠵ࡃࠕࡍ࠷ࠂ ࠪ࠰࠿࠷࠸ࡍ࠵ࠜ࠾ࠤࡇ । (dvā suparᵇā sayujā sakhāyā, samānaᵁ vᵛkᵣaᵁ pariᵣasvajāte)
दो पंछी ἔ इक भोगी (विकारां वाला), दूजा दरस़ी (साधक) – इह असुर-देव संघरस़ मन दे अंदर ही है।

भगवत गीता 16.4ἓ16.20: "दैवी अते "आसुरी प्रक्रिती – ࠦ࠮ࡍ࠭ࡋ ࠦ࠰ࡍࠪࡋ ࠅ࠭࠿࠮࠾ࠨ࠶ࡍࠚ ࠕࡍ࠰ࡋࠧࠃ ࠪ࠾࠰ࡁ࠷ࡍ࠯࠮ࡇ࠵ ࠚ । ࠅࠜࡍࠞ࠾ࠨࠂ ࠚ࠾࠭࠿ࠜ࠾ࠤ࠸ࡍ࠯ ࠪ࠾࠰ࡍࠥ ࠸࠮ࡍࠪࠦ࠾࠮࠾࠸ࡁ࠰ࡀ࠮ࡍ ॥ (dambho darpo abhimānaś ca krodhaᴥ pāruᵣyam eva ca, ajñānaᵁ cābhijātasya pārtha sampadām āsurīm)
"आसुरी संपती = अहंकार, क्रोध, अगिआनता, दंभ – इह सभ असुर रूप विकार हन, जो मनुखी मन विच वसदे हन।

दरस़निक विवेचना – "असुर = "अ + "सुर ₒ जो "सुर (प्रकास़, गिआन) तों वांझा है। वैदिक काल विच "असुर कई वार देवतिआं लई वी वरतिआ गिआ (जिवें इंद्र, वरुण), पर बाअद विच इह स़बद "विकारां अते "अहंकार वाले रूपां लई वरतिआ गिआ। भगवत गीता अते उपनिस़दां विच इह सिधा मनुखी अंदरूनी संघरस़ नूं दरसाउंदा है – देव = गिआन, असुर = अविवेक/विकार।

सो गुरबाणी ते टिपणी करन तों पहिलां वेद पड़्ह के विचार लवो फेर गुरबाणी नूं वी विचार लवो। खोज विचार नाल भाईचारा सुहिरद दी भावना वधाई जा सकदी है। बिनां पड़्हे खोजे, झगड़ा ही होणा। गुरबाणी ने वेदां नूं झूठा नहीं कहिआ है, विचार ना करन वाले नूं झूठा कहिआ है "बेद कतेब कहहु मत झूठे झूठा जो न बिचारै॥। इह सारे वेदां विच वी किरतम नाम ही सी। किसे ने ईस़वर ते स़कती दी देह रूप विच पुरख ते औरत दी मूरती बणा दिती ते जिहड़े निराकतर रूप नूं समझण विच असमरथ सी मगर तुर पए। हुण मैं तां गुरबाणी दे फुरमान कारण वेद वी विचार लए ने किउंके झूठा नहीं अखवाउणा चाहुंदा हा। बेनती है तुसीं वी समां कढ के वेद वीचार लवो। जदों तुहानूं लगे के गुरबाणी वीचार करनी चाहीदी है तुसीं मैनूं मैसेज कर लैणा जी।


Source: ਆਦਿ ਅਤੇ ਦਸਮ ਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਦੇਵੀ ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੀ ਅਤੇ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਹੈ?