Source: ਪ੍ਰੇਮ, ਪ੍ਰੀਤ ਅਤੇ ਮੋਹ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ

प्रेम, प्रीत अते मोह विच अंतर

असीं अकसर लोकां नूं इह आखदे सुणदे हां के परमेसर नाल प्रेम करो। इक भैण जी नाल चरचा दौरान आखदे की तुसीं विदवानां वांग गुरबाणी दे अरथ समझण विच लगे होए हों। बस परमेसर नूं क्रिस़न वांग समझो ते उसदे नाल गोपीआं वांग प्रेम करो। आखदे प्रेम अंनां हुंदा है, दिलों हुंदा है दिमाग नाल नहीं। उहनां तों इह पुछणा बणदा सी के गुरबाणी ने पाखंड प्रेम वी कहिआ है ते सब तों उतम गुर स़बद दी विचार नूं दसिआ है। जिहड़ी मीरा दे क्रिस़न नाल प्रेम दी उदाहरण भैण जी ने दिती उहनां ते इह पुछदा बणदा सी के जिहो जिहा क्रिस़न नूं दरसा रहे ने उस वरगा मुंडा होवे ते मीरा तुहाडी आपणी धी राजे भोजराज नाल विहाई हुंदी तां मा पिओ दे तौर ते आपणी बची नूं की आखदे? किसे दूजे धरम ते टिपणी करना सानूं स़ोभा नहीं दिंदा पर जिहड़े सूरमे ते गिआनी जिसने गीता उचारी होवे, द्रौपदी दी लाज रखी होवे उस नूं चरितरहीण दसदे हन गोपीआं दे नाल रासलीला रचाउंदे दसदे हन ओदां दे मुडे नाल आपणी धी नहीं तोरना चाहुणगे। जे अज कोई मुंडा इह कहे के मैं गोपीआं नाल रासलीला रचाउंदा हां ते कोई वी मां पिओ उस नाल आपणी कुड़ी नहीं तोरनगे। इस विच की क्रिस़न ते जा मीरा दा प्रेम दिसदा है?

आपणे पिर नूं जाणे, उसदे गुणां दे गिआन दे, उस नाल प्रेम नहीं हो सकदा। जिस नूं असीं चंगी तरह जाणदे नहीं उस नाल प्रेम नहीं मोह हो सकदा है, अंना प्रेम हो सकदा है पर उस नाल दिलों प्रेम नहीं हो सकदा। गुरमति दा फुरमान साफ़ है

गणत गणावणि आईआ सूहा वेसु विकारु॥ पाखंडि प्रेमु न पाईऐ खोटा पाजु खुआरु॥१॥

निउली करम भुइअंगम भाठी॥ रेचक कुंभक पूरक मन हाठी॥ पाखंड धरमु प्रीति नही हरि सउ गुरसबद महा रसु पाइआ॥१४॥। जो निराकार है, किसे दे वस विच नहीं हुंदा उह गुरसबद दुआरा ही गुर (गुण) प्रसाद (नाम/ गिआन तों प्रापत सोझी) नाल ही मिल सकदा।

बहुतिआं नूं प्रेम (love), मनहठ (obstinacy) अते मोह (infatuation) दा अंतर ही नहीं पता। मनहठ नाल तां उह मिलदा नहीं। कईआं नूं केवल डिंभ ही करना हुंदा। निमरता, निमाणे होण दा बाहरी नाटक हुंदा बस। प्रेम भगती दा कख वी गिआन नहीं। गुरमति तों समझिआ ही नहीं।

साडे विचों बहुत घट हन जो प्रेम दे सही मतलब नूं समझदे हन। प्रेम आतमा तो हुंदा है गुणां नाल। जो माया है अखां नाल दिसदी है उस वसतू नाल प्रेम नहीं हुंदा उस नाल केवल मोह हुंदा है। प्रेम केवल ना दिखण वाले गुणां नाल हुंदा गुर नाल हुंदा। प्रेम दा रिस़ता अटुट हुंदा दो तरफा हुंदा। कदी घटदा वधदा नहीं। प्रेम विच डर नहीं हुंदा तिआग हुंदा। मोह घट वध हुंदा। मोह दा रिस़ता लालच जान जुड़िआ हुंदा प्रेम दा रिस़ता तिआग नाल जुड़िआ हंदा। प्रेम विच बंदा आपणा सोचण तो पहिला जिस नाल प्रेम हुंदा उस बारे सोचदा। मोह भीड़ पैंदे ही मुक जांदी। जे किसे नाल प्रेम होवे बंदा उसदे मुहरे हो डाल बणके खड़दा जे केवल मोह होवे तां मुसीबत पैंदे ही मैदान छड के भज जांदा। प्रेम होवे जीवण मरन तो उपर हुंदा मोह टुटदे ही रिस़ता खतम। गुरबाणी आखदी प्रेम होणा चाहीदा जिवें दुध ते पाणी दा रिस़ता। प्रेम करना आतम राम नाल परमेसर नाल हरि दे नाल बाकी सब मोह है माया दे बंधन। मोह विच सुख नहीं हुंदा, टैंस़न हुंदी डर हुंदा वसतू दे विछोड़े दा। प्रेम विच तिआग हुंदा भरोसा हुंदा अनंद हुंदा भावें जिस नाल प्रेम होवे उह दूर होवे कोल होवे अखां तो दिसे या ना दिसे। जो निराकार है, सरब विआपी है, जिस तों संसार दा कोई जीव वांझा नहीं है। सारिआं विच बराबर है "उआ का अंतु न काहू पाइआ॥ कीट हसति महि पूर समाने॥ प्रगट पुरख सभ ठाऊ जाने॥ उस नाल प्रेम किवें बणेगा? इह केवल कहिण नाल नहीं होणा, इसनूं मंनणा पैणा, द्रिड़ करना पैणा। आपणी सोच पवितर रख उसदे गुण हासल करने पैणे, विचारने पैणे। इह बुध पवितर करनी पैणी।

हुण इह समझण दे बाद बाणी दा असली भाव समझ आउंदा

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी चात्रिक मेह॥

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी चकवी सूर॥

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी जल दुध होइ॥

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी जल कमलेहि॥

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी मछुली नीर॥

"एह माइआ मोहणी जिनि एतु भरमि भुलाइआ॥

"त्रै गुण बिखिआ अंधु है माइआ मोह गुबार॥

"पुतु कलतु मोहु बिखु है अंति बेली कोइ न होइ ॥१॥ रहाउ ॥ गुरमति हरि लिव उबरे अलिपतु रहे सरणाइ॥

"एकस बिनु सभ धंधु है सभ मिथिआ मोहु माइ ॥१॥

"माइआ मोह परीति ध्रिगु सुखी न दीसै कोइ ॥१॥

भगत उसदे नाम (गुणां दा गिआन, हुकम दी सोझी) दे इलावा कोई होर आस नहीं रखदा। हुकम मंनदा, जो हो रहिआ उस दी वी वाहु वाहु करदा, जो अगे होणा उसदी वी वाहु वाहु करदा। निराकार नाल सनेह दा भाव ही उसदी सेवा है। सेवा है "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥। दुख सुख सब उसदी मिहर दिसदी है भगत नूं। इह ही प्रेम है परमेसर नाल। केवल बोलण नाल प्रेम नहीं हुंदा। गुरबाणी ने प्रेम पदारथ ही नाम नूं दसिआ है फोके अहिसास जां मोह नूं नहीं "प्रेम पदारथु नामु है भाई माइआ मोह बिनासु॥ तिसु भावै ता मेलि लए भाई हिरदै नाम निवासु॥ नाम नूं समझण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा? जदों नाम समझ आ जावे, उसदे गुण विचारे जाण, भगत दी टोटल सरैंडर वाली अवसथा बण जावे तां प्रेम होणा, तां निराकार दी प्रापती होणी, फेर समझ लगणी पातिस़ाह ने किउं कहिआ "कहा भयो जो दोऊ लोचन मूंद कै बैठि रहिओ बक धिआन लगाइओ॥ न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रनि लोक गयो परलोक गवाइओ॥ बास कीओ बिखिआन सों बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइओ॥ साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभु पाइओ॥९॥२९॥। अखां बंद करके नहीं गिआन दे नेत्र खोल के प्रेम होणा। तीरथां विच थां थां भटकण दी थां समझ लगणी "तीरथि नावण जाउ तीरथु नामु है॥ तीरथु सबद बीचारु अंतरि गिआनु है॥ गुर गिआनु साचा थानु तीरथु दस पुरब सदा दसाहरा॥। केवल बखिआन नहीं है प्रेम।

मन विच मोह रखके, चार गलां सिख के, मनहठ अते बिनां गिआन दे फोकी फीलिंग नाल आख दिंदे हन के जे असीं प्रेम करदे हां परमेसर नाल। उसदी मूरती मन विच बणा लैंदे हन कदे राजे राम, कदे क्रिस़न, कदे स़िव, कदे नानक, कदे गोबिंद कदे कुझ होर रूप मन विच केवल जो फोटूआं मूरतीआं बदेही दीआं अखां नाल वेखीआं हुंदीआं हन उह सोच के। कदे उहनां दे गुण नहीं विचारे ना समझे ना धारण कीते। ताहीं महाराज ने आखिआ है "गिआन के बिहीन काल फास के अधीन सदा जुगन की चउकरी फिराए ई फिरत है॥

गुरबाणी दा फुरमान है के मन मारे बिनां भगती नहीं हुंदी। गुण विचारे बिनां भगती नहीं हुंदी। भगती बिनां प्रेम नहीं हुंदा। गुणां नूं जपण (जाणे) दों बिनां प्रेम नहीं हुंदा। भोजन दे बिबेक नाल प्रेम नहीं हुंदा। वेखो "गुरमति विच बिबेक दे अरथ की हन?। बुध दे बिबेक नाल प्रेम हुंदा। "मन रे राम जपहु सुखु होइ॥ बिनु गुर प्रेमु न पाईऐ सबदि मिलै रंगु होइ॥ – गुर तों भाव गुण। जप दा अरथ जानणा, समझणा। मन नूं निरमल (विकारां दी मल तों रहित) करना पैणा तां प्रेम होणा। नाम (गुणा दी सोझी) नूं हर वेले धिआन विच रखणा पैणा "जिनि जिनि नामु धिआइआ तिन के काज सरे॥ हरि गुरु पूरा आराधिआ दरगह सचि खरे॥ सरब सुखा निधि चरण हरि भउजलु बिखमु तरे॥ प्रेम भगति तिन पाईआ बिखिआ नाहि जरे॥ कूड़ गए दुबिधा नसी पूरन सचि भरे॥ पारब्रहमु प्रभु सेवदे मन अंदरि एकु धरे॥ माह दिवस मूरत भले जिस कउ नदरि करे॥ नानकु मंगै दरस दानु किरपा करहु हरे॥

उपजी प्रीति प्रेम रसु चाउ॥ मन तन अंतरि इही सुआउ॥ नेत्रहु पेखि दरसु सुखु होइ॥ मनु बिगसै साध चरन धोइ॥ भगत जना कै मनि तनि रंगु॥ बिरला कोऊ पावै संगु॥ एक बसतु दीजै करि मइआ॥ गुर प्रसादि नामु जपि लइआ॥ ता की उपमा कही न जाइ॥ नानक रहिआ सरब समाइ॥६॥

जिथे विकारां दी मल, अगिआनता है उथे परमेसर प्रेम नहीं पैदा होणा। हिरदा स़ुध करना पैणा। नाम (सोझी) तों बिनां प्रेम नहीं हुंदा "मेरै मनि तनि प्रेमु नामु आधारु॥ नामु जपी नामो सुख सारु॥१॥ नामु जपहु मेरे साजन सैना॥ नाम बिना मै अवरु न कोई वडै भागि गुरमुखि हरि लैना॥१॥ रहाउ॥ नाम बिना नही जीविआ जाइ॥ वडै भागि गुरमुखि हरि पाइ॥२॥ नामहीन कालख मुखि माइआ॥ नाम बिना ध्रिगु ध्रिगु जीवाइआ॥३॥

सो भाई गलां नाल नहीं सरना। अंनी स़रधा नाल गल नहीं बणनी "किरपा करे गुरु पाईऐ हरि नामो देइ द्रिड़ाइ॥ बिनु गुर किनै न पाइओ बिरथा जनमु गवाइ॥ मनमुख करम कमावणे दरगह मिलै सजाइ॥, हरि रस चखे बिनां गल नहीं बणदी "गुरमती हरि रसु चाखिआ से पुंन पराणी॥ बिनु गुर किनै न पाइओ पचि मुए अजाणी॥। गुरमति विचार के हरि, राम, गोबिंद, ठाकुर, अकाल, प्रभ नूं समझीए। गुण अवगुण दी विचार कर, हुकम नूं समझ के निराकर दे गुणां नाल उसदे हुकम नाल प्रेम धारण करीए। जे सरीर (बदेही), जात पात, अमीर गरीब, रूप रंग आदी वेख के कोई वडा छोटा, घट वध दिसदा तां परमेसर प्रेम तों बहुत दूर हां। असीं गुरबाणी बणना है "तू वेपरवाहु अथाहु है अतुलु किउ तुलीऐ॥ से वडभागी जि तुधु धिआइदे जिन सतिगुरु मिलीऐ॥ सतिगुर की बाणी सति सरूपु है गुरबाणी बणीऐ॥। जिसनूं बाहर लभ रहे हां उह निराकार आपणे गुणां, आपणे गिआन राहीं साडे घट विच वसणा चाहीदा है। हुकम समझ के मंनणा ही प्रेम है।


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