
Source: ਮਹਾਕਾਲ
जी हां असीं महाकाल दे पुजारी हां। उसी महाकाल दे पुजारी जिस दी गल दसम पातिस़ाह साहिब स्री गुरू गोबिंद सिंघ महाराज जी करदे हन। जिहड़े समझदे विचारदे नहीं अखौती विदवान गुरू निंदक उहनां नूं भुलेखा है के महाकाल हिंदू मति विच पूजण वाले पुरख रूप विच दिखाए देवता मंने जाण वाले महाकाल दी गल हो रही है। असल विच सनातन मति विच वी किसे मनुख नूं महाकाल नहीं मंनिआ गिआ है। इह आपां इस लेख विच अगे विचारांगे। दसम पातिस़ाह मूरती पूजा, सिव लिंग पूजा नूं रद करदे आखदे हन "काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकाइओ॥ काहू लखिओ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीसु निवाइओ॥"। फेर आखदे हन महादेव नूं सदा सिव मंनण वाले नूं महा मूड़ हन "ता को करि पाहन अनुमानत॥ महा मूड़्ह कछु भेद न जानत॥ महादेव को कहत सदा सिव॥ निरंकार का चीनत नहि भिव॥३९२॥ जिहड़े समझदे नहीं जां लाईलग हन उहनां नूं अखौती विदवान इस बारे नहीं दसदे ते आप वी लुका के जां गल घुमा के दसदे हन स़रारत, बेईमानी जां बेअकली विच। अखौती विदवान ताहीं लोकां नूं जाप बाणी, अकाल उसतति पड़्हन तों रोकदे हन किउंके इहनां नूं पड़्ह, विचार ते समझ के लोकां नूं दसम पातिस़ाह दी अकाल बारे विचार समझ लग जाणी ते अगे पड़्हदिआं गल सौखी समझ आउण लग जाणी के महाकाल दसम पातिस़ाह किस नूं मंनदे हन। साहिब स्री गुरू नानक देव पातिस़ाह जी महाराज आखदे हन "जह देखा तह रवि रहे सिव सकती का मेलु॥ इही सिव ते सकती दी गल दसम पातिस़ाह वी कर रहे हन। निंदिआ ते वैर विरोध विच अखौती विदवान इह समझणा ही नहीं चाहुंदे।
पाइ ठगउली सभु जगु जोहिआ॥ ब्रहमा बिसनु महादेउ मोहिआ॥ गुरमुखि नामि लगे से सोहिआ॥(म ४, रागु आसा, ३९४) – इहनां पंकतीआं विच दसो महादेउ कौण है? इथे किवें मंन लैंदे ना महादेउ नूं अकाल।
जे साहिब स़्री गुरू ग्रंथ साहिब विच दिते हुकम अनुसार वेद कतेब नूं झूठा कहिण दी थां पड़्ह लिआ हुंदा तां गल समझ आउणी सी के उथे वी इही लिखिआ के स़िव स़कती दा नाम है किसे मनुख रूपी देह धारी दा नहीं। स़िव पुराण की आखदी है वेखो
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सर्वह विस़्वं विस़्वमूरतिर्विस़्वरूपस़्च स़ंकरह।
Sarvaᴥ viśvaᵃ viśvamūrtir viśvarūpaś ca Śaᵅkaraᴥ
"He is all (Sarvaᴥ), the universe (Viśvaᵃ), the embodiment of the universe (Viśvamūrti), and the one whose form is the universe (Viśvarūpaᴥ)ἔthat is Śaᵅkara (Shiva).
"एको देवः स़िवो नित्यः सरवविआपी न संग्रहः। एको रुद्रो न द्वितीयाय तस्थुर्ह्यपि यः।
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Eko devaᴥ śivo nityaᴥ sarvavyāpī na saᵅgrahaᴥ।
Eko rudro na dvitīyāya tasthur yapi yaᴥ॥
भाव
सार:
स़िव पुराण अनुसार, स़िव परम ब्रहम है जो अजनमा, अद्वितीय, अनासकत, अते सभ विच विआपक है। उह सरब-उतपती, संभाल, अते संहार दा मूल है। विसथार विच जानण लई पड़्हो "गुरमति वाला सिव / स़िव
दसम पातिस़ाह वी सपस़ट आखदे हन के
एकै महाकाल हम मानै ॥ महा रुद्र कह कछू न जानै॥
एके महाकाल़ दा मतलब (हाकम )एक जो पारब्रहम प्रमेसर, जिस दा तिनां लोकां विच (हुकम) चलदा है, जिस अकाल ने काल पैदा कीता है, ” काल अकाल खसम का कीना ” खसम है महाकाल़ हाकम, जिस ने काल अकाल दी खेड बणा के, खंडा प्रिथमै साज कै जिन सभि संसार उपाइआ। खंडे दीआ दो धारा हन, २ तरा दे हुकम पैदा कर के, काल वस इह (मन) दा हुकम विरोधी असुर है, अकाल ( चित) जो साडा सतिगुर है ओस दा हुकम जो प्रमेसर दा है, सुर(गुण) ते असुर (अवगुण) पैदा कर के स्रिसटी दी रचना कीती, ओस माहाकाल़ दी ग़ल कर रहे ने दसम पातसह, “एकै महाकाल हम मानै” एक महाकाल़ हाकम नूं मंनिआ है जिसदा अकाल सरूपी हुकम चलदा है, “महा रुद्र कह कछू न जानै” जिस नूं महा रुदर आखदे ने अवतार होइआ दता त्रेय जो स़िव स़ंकर है सभु वी आखदे ने ओस बारे कुछ वी जाणिआ ना, असी जे जाणिआं है केवल ओस पारब्रहम प्रमेसर नूं अकाल नूं महाकाल मंनदे हां। किरतम नामां विचों इक नाम अकाल दा है महाकाल। अकाल/महाकाल है करतार, जिसदी इछा स़कती है संविधान है काल ते काल दा वरतारा है हुकम।
ब्रहम बिसन की सेव न करही ॥ तिन ते हम कबहूं नही डरही ॥
ब्रहम बिसन दी सेव नही करी कदे ? जे सेव करी वी है ता ओह वी स़बद विचार दी करी है, “गुर की सेवा स़बद विचार ” अपणे अंदर ही स़बद दी विचार करनी असल उही सेव है साडी। “तिन ते हम कबहूं नही डरही” आखदे असी कदे वी नही डरे ओहनां तौ जिना दा लोकी भै मंनदे ने, पंडित विदवान सी जो ओह लोका नूं देवि देवतिआ दा भै दिंदे सी जिवें हुण साडे सिख पंडित विदवान वी संता महपुरस़ां दा डर दे आम लोका नू डराउण लग जांदे ने करमकांड वल ला रहे ने अज वी लोका नूं। इक पासे इह अनपड़्ह हन ते दूजे पासे अखौती विदवान जो इह समझण समझाउण दी थां आपणे ग्रंथ आप रद करन तुर पए उह कूपड़्ह हन।
महाकाल कालिका अराधी॥ इहि बिधि करत तपसिआ भयो॥ द्वै ते एक रूप ह्वै गयो॥
महकाल है हाकम कालिका ओस दा हुकम है, गिआन उसदी बुध है, स़बद गुरू जिस दी अराधना करनी है हिरदे विच, त्रकुटी चो सुरित टुट के हिरदे विच टिक जाणी फिर चंडी (बिबेक बुध/ चंडी होई मति) परगट हुंदी है। अंतर बैठ के हेमकुंट (ठंडक दा कुड जिथे गुसा नहीं, वैर विरोध नहीं) है हिरदा है भाव हिवा घर। साडा ओथे सुरित नूं जोड़ देणा बाहरो संसार तों हटा के, "इहि बिधि करत तपसिआ भयो” एस बिधी नाल़ तपसिआ करी है दसम पातसाह ने, (ओह झूठ केह रहे ने कि चोकडा मार के अख़ा बंद कर के तपसिआ कीती ), द्वै ते एक रूप ह्वै गयो ॥ २ तौ १ इस बिधी नाल़ असी एक होइ हा परमेसर दे हुकम नाल। इह रसता सानूं दस के गए ने २ तौ १ होण दा।
दुबिधा विच पैणा ते दूजे नूं पाउणा बहुत सौखा है, इस लई अगिआनता, वैर, विरोध, लाईलग प्रविरती, गुसा, आपणे आप नूं सिआणा मंन के दूजे नूं मूरख समझण दी मति, गुरू नूं जवाक समझण दी बुध ही चाहीदी। पर असल भेद तक पहुंचण लई पहिलां विकार, आपणी मति छड के, निरपख हो के विचारना पैंदा। गुरूआं नूं, गुरबाणी नूं आपणे तों अते आपणी मति तों वडा समझणा पैंदा है। जे केवल आदि गुरू ग्रंथ साहिब दी विचारधारा दा थोड़ा जिहा वी असर बुध दे हो जावे ते गुरबाणी दी इंन बिंन गल मंन लिती जावे तां दसम बाणी सौखी समझ आणी स़ुरू हो जांदी है। सो दसम बाणी नूं पड़्हन विचारन तों पहिलां चेते रखो "भांडा धोइ बैसि धूपु देवहु तउ दूधै कउ जावहु॥ दूधु करम फुनि सुरति समाइणु होइ निरास जमावहु॥ भाव बुध दे भांडे नूं गुणां नाल धो के सुका लवो भाव कोई रती मातर वी वैर विरोध द्वेस़ ना रहे तां गुरबाणी पड़्हनी है। निरपख निरवैर हो के पूरी इमानदारी नाल। जे विकारां दा, आपणी निज मति दा रती मातर वी भाव रहि गिआ तां गल समझ नहीं लगणी। आस करदा हां के वीर भैणां जो बाणी तों सिखिआ लैणा चाहुंदे हन इस सलाह ते गौर करनगे। अगे विचारन लई वेखो
आदि अते दसम बाणी विच देवी देवतिआं दी अते मूरती पूजा है?
स्री दसम ग्रंथ साहिब जी दा विरोध (Anti-Dasam Garanth)

Source: ਮਹਾਕਾਲ