Source: ਜੀਵ ਕੀ ਹੈ
जीव आतमा है, ब्रहम है, राम है, गोबिंद है। लेकिन अबिदिआ कारण ईस तों मल+ईस हो जांदा है, भाव मलेस़ हो जांदा , मल लग जांदा है,देही गुपत काली हो जांदी है। RAVIDAS BHAGAT JI दसदे हन कि अबिदिआ करके बबेक दीप मलीन होइआ है।
माधो अबिदिआ हित कीन ॥
बिबेक दीप मलीन ॥ {पंना 486}
जीव (ब्रहम) ?? आजो अगे विसथार विच देखीए विचार के इह है की? अते इहने ब्रहम तो पूरनब्रहम अते पारब्रहम किवे होणा ?
ब्रहम महि जनु जन महि पारब्रहमु ॥ एकहि
आपि नही कछु भरमु ॥ { पंना 287 }
ब्रहम दे विचों ही जन पैदा होइऐ…बीज विचों ही पौदा निकलदै, जन अंदर पारब्रहम है, स़बद गुरू प्रगट है, जन दे हिरदे विच हुकम प्रगट हुंदै, पौदे विच फल जां बीज हुंदै अते बीज विच पौदा हुंदै,, कुझ इस तर्हां दी गल है । मन भाव धिआन भाव सुरति तां ब्रहम विचों ही पैदा हुंदै, जदों हरि का जन बण जांदै मन तां इक है, भाव द्वैत खतम हो गॲॳि चित अते मन विच तरेड़ नही रही,,इथे फिर दाल ( द्वेत ) तों इक हो जांदा जंदों तां उही बीज सरूप उगदै ,, स़बद गुरू नाल जुड़ के ते ओही रूप बण जांदै, भाव सबदु सरूप हो जांदा, सुरति जदों सबदु गुरू नाल जिड़ जांदी है तां सबदु सरूप ही हो जांदी है, भाव जन ही पारब्रहमु बणदै ।पहिलां मन ही सुरत सी..मन ही जन बणिआ, जन हो के इक हो गिआ, जन दी सुरत ही नाम विच लीन हुंदी है। सुरत ने स़बद विच लीन होणै…जो सचखंड दी इछा है ओही अपणा लई…आपणी हउं ते मैं तां रही ही नहीं…एकहि ही है आप..इक हो के उग पिआ..सबद विच समा गिआ…ओही अवसथा नूं पहुंच जाणा जो सचखंड विच सभ दी है, सभ दा सुभाउ एक है, सभ दास हन , कोई वडा छोटा नही है।
इह अवसथा सभ तो उची है, भरम नहीं है ते प्रचंड गिआन है..पूरन ब्रहम तों पारब्रहम तक पहुंच गिआ..
इह ब्रहम नूं हरि’ नूं किथों अते किवें जाणिआ जा सकदा ?
उतर अगे है प्रमाण नाल,
हरि मंदरु, सोई आखीऐ, जिथहु, हरि, जाता ॥ मानस देह, गुर बचनी पाइआ, सभु आतम रामु पछाता ॥ बाहरि मूलि न खोजीऐ, घर माहि, बिधाता ॥ मनमुख, हरि मंदर की सार, न जाणनी, तिनी जनमु गवाता ॥ सभ महि इकु वरतदा, गुर सबदी पाइआ जाई ॥१२॥ {पंना 953}
हरि हिरदे दे विचे है अते उथे ही जपणा है उथे ही खोजणा है
जाति महि जोति, जोति महि जाता, अकल कला भरपूरि रहिआ ॥ {पंना 469}”
जाति ‘बाहरले सरीर’ नूं किहा है अते जोति ‘मन’ है,
तन महि मनूआ, मन महि साचा ॥ सो साचा मिलि साचे राचा ॥ {पंना 686}”
** जाति महि जोति’ जां ‘तन महि मनूआ’ इक ही गल है । { जोति’ = ‘मनूआ } जेकर मन ‘जोति’ है, तां जोति दा आपणा कोई वजूद नहीं हुंदा, जोति तां किसे source (वसतू) विचों पैदा/उपजी होई रौस़नी दा नाम है, जोती ( मूल़) विचो जोति ( मन) पैदा हुंदी है,, इसे करके किहा है कि ,,,
मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु ॥
किसे वी चीज दी रौस़नी जिथों पैदा हुंदी है, उसदा मूल उसदे विच ही हुंदा है, किसे वी रौस़नी नूं उसदे मूल नालों अलग नहीं कीता जा सकदा, जिवें कि सूरज अते धुप दी मिसाल है, बलब अते उस तों पैदा होई रौस़नी दी मिसाल है, इस करके किहा है
मन महि आपि, मन अपुने माहि ॥ नानक कीमति कहनु न जाइ ॥७॥ {पंना 279}”
मन महि ‘आपि’, इह ‘आपि’ कौण है ? आपां उपर विचार कर चुके हां, कि “हरि, वसै मन माहि” जां “सो ब्रहमु, बताइओ गुर, मन ही माहि ॥” जां “हरि मंदर महि, हरि, वसै” ।
हरि जां ‘ब्रहम आप ही आपणे मन विच है “मन अपुने माहि”, भाव कि इह हरि दा ही मन है, ‘हरि’ ने आप ही आपणा आपा आपणे ‘मन’ दे रूप विच उपाइआ है अते हरि ही मन दा पिता-माता है,
आपन आपु, आपहि उपाइओ ॥ आपहि बाप, आप ही माइओ ॥ {पंना 250}
जां फिर होर प्रमाण है
हरि, आपे माता आपे पिता, जिनि, जीउ उपाइ, जगतु दिखाइआ ॥ {पंना 921}
हिरदे ने ही बेगमपुरा अते हेमकुंट बणना है।
Source: ਜੀਵ ਕੀ ਹੈ