Source: ਰੋਗ ਅਤੇ ਔਸ਼ਧੀ
हाड मास दे बणे सरीर दे रोग ते मन दे रोग वखरे हन। गुरू साहिबां ने तां सरीर दे रोग दूर करन लई कई दवाखाने खोले सी पर अज पखंडीआं ने उहनां गुरूआं दा नाम वरत के लोकां नूं कुराहे ही पाइआ है। धरम दे नाम ते पखंड दा वपार कर रहे ने। धारमिक सथान रखे होए ने पखंडीआं ने सरीर दे रोगां दा इलाज करन दा दाअवा करदे ने जिवेंः
अखांः अखां दे रोगां लई नैणा देवी,
लकबां मूंह वींगा होणा : गुरूदवारा दम दमा साहिब तलवंडी साबो ,
मानसिक रोगी: डेरा वडभाग सिंघ ,
हडी, चमड़ी दे रोग : गुरूदवारा मालड़ी साहिब नकोदर, बाबा सिध सरसाई।
कोहड़ दा रोग : सरोवर दरबार साहिब अंम्रितसर,
बचे ना होणा मुख तौर ते मुंडे : गुरूदवारा बीड़ बाबा बुढा साहिब , ते गुरूदवारा भाई साल्हो जी ,
बुखार: गुरूदवारा तईआ ताप साहिब पिंड डला जिल्हा कपूरथला अते गुरदुआरा दुख निवारन, लुधिआणा।
सिहत दी कमज़ोरी ते कद ना वधणा : गुरूदवारा नानकसर वेरका जिथे भड़ोली ते डांग सुखी जांदी है।
मझ ते गावां दे सपैस़लिसट : बाबा स़ेख़ फता।
पाखंडी साध, प्रचारक, डेरेदार, गिआनी लोकां नूं मथे टेक के, तीरथ जा के, झूठा खुआ के ते किसी स़बद राहीं ठीक करन दा दाअवा करदे ने ते जदों आपणे माड़ी जही पीड़ हुंदी है ता हसपताल पहुंचे हुंदे ने। लोकां नूं स़रेआम मूरख बणाइआ जा रहिआ है गुरमति दा नाम वरत के, ते जे इही कंम ईसाई पासटर करन तुहाडी देखा देखी तां उहनां नूं पखंडी आख दिंदे ने। इह नहीं समझ आ रहिआ के साडे धरमी अखौण वालिआं दे कीते पखंड दे कारोबार कारन ही पासटरां ते डेरिआं दा कंम सौखा होइआ है। लोकां नूं जिथे वडा लालच दिसदा है उधर तुर पैंदे हन। पाखंड बारे साडा लेख पड़्हो "सिखी अते पखंड
फेर गुरमति दा नां वरत के इक पंकती "सरब रोग का अउखदु नामु॥ वरत के लोकां नूं वाहिगुरू वाहिगुरू रटण ला दिता इह कह के की "वाहिगुरू ही नाम है। सारिआं रोगां दी अउखद (औस़दी/दवाई) नाम (सोझी) है पर रटण नहीं है। जिवें पांडिआं ने आखिआ सी असीं मंतर फूकांगे ते सारे तुरक अंने हो जाणगे पर कोई नहीं होइआ, किउंके मंत्रां नाल कदे वी गल नहीं बणदी, नाम (गिआन ते सोझी ) नाल अंदरले ते बाहरले दोवें दुस़टां नाल मुकाबला करन दी जांच मिलदी है। समझण लई के गुरमति अनुसार नाम की है पोसट वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?
रोग
गुरमति आधार ते समझदे हां के गुरमति किहड़े रोगां दी गल करदी है। बिनां रोग समझे इह नहीं समझिआ जा सकदा के नाम (सोझी) अउखदु (औस़धी / दवाई) किसदी है।
त्रिसना अहिनिसि अगली हउमै रोगु विकारु॥
इकु तिलु पिआरा वीसरै रोगु वडा मन माहि ॥
बिनु गुर रोगु न तुटई हउमै पीड़ न जाइ ॥
हउमै रोगु भ्रमु कटीऐ ना आवै ना जागु॥२॥
चिंता रोगु गई हउ पीड़ा आपि करे प्रतिपाला जीउ ॥२॥
जनम मरण रोग सभि निवारे ॥
मनमुखु रोगी है संसारा॥ सुखदाता विसरिआ अगम अपारा॥ दुखीए निति फिरहि बिललादे बिनु गुर सांति न पावणिआ॥६॥
हउमै रोगु गइआ सुखु पाइआ धनु धंनु गुरू हरि राइआ ॥१॥
दूखु रोगु कछु भउ न बिआपै॥, "दूखु रोगु सोगु बिसरै जब नामु ॥
वडे वडे जो दीसहि लोग॥ तिन कउ बिआपै चिंता रोग॥१॥
रोगु भरमु भेदु मनि दूजा॥ गुर बिनु भरमि जपहि जपु दूजा॥ आदि पुरख गुर दरस न देखहि॥ विणु गुरसबदै जनमु कि लेखहि॥५॥
हउमै दीरघ रोगु है दारू भी इसु माहि ॥
नामु जपत महा सुखु पाइओ चिंता रोगु बिदारिओ ॥१॥
सहसा रोगु न छोडई दुख ही महि दुख पाहि ॥
जपु तप संजम वरत करे पूजा मनमुख रोगु न जाई॥ अंतरि रोगु महा अभिमाना दूजै भाइ खुआई॥२॥ बाहरि भेख बहुतु चतुराई मनूआ दह दिसि धावै॥ हउमै बिआपिआ सबदु न चीन॑ै फिरि फिरि जूनी आवै॥३॥
सोग रोग बिपति अति भारी॥
हउमै मेरा वड रोगु है विचहु ठाकि रहाइ॥२१॥
जीअहु मैले बाहरहु निरमल॥ बाहरहु निरमल जीअहु त मैले तिनी जनमु जूऐ हारिआ॥ एह तिसना वडा रोगु लगा मरणु मनहु विसारिआ॥ वेदा महि नामु उतमु सो सुणहि नाही फिरहि जिउ बेतालिआ॥ कहै नानकु जिन सचु तजिआ कूड़े लागे तिनी जनमु जूऐ हारिआ॥१९॥
असाध रोगु उपजिओ तन भीतरि टरत न काहू टारिओ॥प्रभ बिसरत महा दुखु पाइओ इहु नानक ततु बीचारिओ॥
दुबिधा मनमुख रोगि विआपे त्रिसना जलहि अधिकाई॥ मरि मरि जंमहि ठउर न पावहि बिरथा जनमु गवाई॥१॥ मेरे प्रीतम करि किरपा देहु बुझाई॥ हउमै रोगी जगतु उपाइआ बिनु सबदै रोगु न जाई॥१॥
गुरमति ने तां बिअंत उदाहरण दे के समझाइआ है के देही, काइआ, मन, घट दे रोग हउमे, डर, भरम, अगिआनता, दुरमति दलिदर, सहसा (स़ंका) हन, बार बार जोनी विच आउणा जंमणा मरना वी रोग हन। मान अपमान दा फरक, लाभ हानी दी चिंता, जीवन मरन दी चिंता मन दे रोग हन। ते बदेही, हाड मास दे बणे झूठ/बिनस जाण वाले सरीर दे रोग गुरमति दा विस़ा नहीं है। आणा जाणा इह तां खेल बणाइआ है परमेसर ने। सरीर दे रोगां लई गुरूआं ने दवाखाने खोले ते मन दे रोगां लई गुरमति बखस़ी सानूं। जे रोग दा पता होवे तां वैद दे दवाई वी रोग दे हिसाब नाल लभणी पैंदी है। समझण दा विस़ा है के "संसारु रोगी नामु दारू मैलु लागै सच बिना ॥ । मन दे रोगां नूं दूर करन दा तरीका दसिआ है के मैं मेरा तेरा छड गुरमति गिआन लै "रोगु गइआ प्रभि आपि गवाइआ ॥ – आप गवाइआं ही प्रभ दी प्रापती हुंदी हे ते रोग जांदा है।
"हउमै ममता रोगु न लागै॥ राम भगति जम का भउ भागै॥ जमु जंदारु न लागै मोहि॥ निरमल नामु रिदै हरि सोहि॥३॥ – जिसदे हिरदे विच नाम (गुरमति गिआन तों प्रापत सोझी) उसनूं रोग नहीं लगदा।
औस़धी/ अउखद
औस़धी दे लई वरते गुरमति स़बद हन अवखद, अवखदु, अवखध, अवखधु, अउखध, अउखधु अते अउखद, अउखदु।
सरीर दे रोगां लई दवा खाने जावो। मन दी अरोगता लई औस़धी/अउखद है हरि दा नाम (सोझी)। "वैदा वैदु सुवैदु तू पहिलां रोगु पछाणु॥ ऐसा दारू लोड़ि लहु जितु वंञै रोगा घाणि॥ जितु दारू रोग उठिअहि तनि सुखु वसै आइ॥ रोगु गवाइहि आपणा त नानक वैदु सदाइ॥।
अउखधु हरि का नामु है जितु रोगु न विआपै ॥
हरि हरि हरि आराधीऐ होईऐ आरोग ॥
रोगु मिटाइआ आपि प्रभि उपजिआ सुखु सांति॥ वड परतापु अचरज रूपु हरि कीन॑ी दाति॥१॥ गुरि गोविंदि क्रिपा करी राखिआ मेरा भाई॥ हम तिस की सरणागती जो सदा सहाई॥१॥ रहाउ॥ बिरथी कदे न होवई जन की अरदासि॥ नानक जोरु गोविंद का पूरन गुणतासि॥
जिन कै हिरदै हरि वसै हउमै रोगु गवाइ ॥
रैणि दिनसु जपउ हरि नाउ॥ आगै दरगह पावउ थाउ॥ सदा अनंदु न होवी सोगु॥ कबहू न बिआपै हउमै रोगु॥१॥
हउमै ममता रोगु न लागै॥ राम भगति जम का भउ भागै॥ जमु जंदारु न लागै मोहि॥ निरमल नामु रिदै हरि सोहि॥३॥
गुरमुखि समझै रोगु न होई॥ इह गुर की पउड़ी जाणै जनु कोई॥ जुगह जुगंतरि मुकति पराइण सो मुकति भइआ पति पाइदा॥१३॥
इस लई पखंड ते पखंडीआं दा संग छड के गुरमति विचार करिआ करो। नाम (गुरमति दी सोझी) तों बिनां दुख रोग नहीं जांदे। चिंता अते होर विकार घेर के रखदे ने। सचे दे गुण धारण होण नाल नाम प्रापती होण नाल गुरमति अनुसार महा आनंद दी प्रापती हुंदी है।
सो सतिगुरु धनु धंनु जिनि भरम गड़ु तोड़िआ॥ सो सतिगुरु वाहु वाहु जिनि हरि सिउ जोड़िआ॥ नामु निधानु अखुटु गुरु देइ दारूओ॥ महा रोगु बिकराल तिनै बिदारूओ॥ पाइआ नामु निधानु बहुतु खजानिआ॥ जिता जनमु अपारु आपु पछानिआ॥ महिमा कही न जाइ गुर समरथ देव॥ गुर पारब्रहम परमेसुर अपरंपर अलख अभेव॥
सो जदों नाम (सोझी) दी प्रापती हो जावे तां रोग दूर हो जांदा है ते फेर दुबारा नहीं लगदा। इस करना की हैः
१. परमेसर दे गुणां दी विचार करनी है "गुण वीचारे गिआनी सोइ ॥, इह गिआन लैण दा तरीका दसिआ। परमेसर दे गुण आदि बाणी विच हन, दसम बाणी विच हन। जप ते जाप बाणी विच गुण हि दसे हन। उहनां दी विचार करनी है ते उदम करना है के उह गुण समझ आवे "सगल उदम महि उदमु भला॥ हरि का नामु जपहु जीअ सदा॥ इसदे इलावा कोई उदम साडे वस विच नहीं है हुकम बध है।
२. ὠधीरज रखणा है, हुकम भाणे नूं कबूल करना है। जो हो रहिआ है उह हुकम विच हो रहिआ है। हुकम तों बाहर कुझ नहीं। मन नूं सिह समझाउण लई बाणी आप पड़ो ते विचारो। हौली हौली प्रेम नाल सहज नाल भरोसे नाल। बाणी दे अरथ बाणी विचों ही लभणे हन। "मन समझावन कारने कछूअक पड़ीऐ गिआन ॥५॥, "गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥।
Source: ਰੋਗ ਅਤੇ ਔਸ਼ਧੀ