Source: ਗੁਰਬਾਣੀ ਅਨੁਸਾਰ ਦਾਸ ਕੋਣ ਹੈ

गुरबाणी अनुसार दास कोण है

दास कोण हुंदा है ? बहुत सारे वीर भैणां आपणे आप नूं दास कहि लैंदे हन पर दास किवें बणना? की नाम दास रख लैणा, निमाणा जिहा बणन दा विखावा दास दी पछाण है? मनुख आप जदों किसे दूजे मनुख नूं दास बणाउंदा है जिवें बहुत सारे अफरीकी मनुखां नूं बंदी बणा के दास बणा के वेचदे सी, तां उहनां नूं बोलण तक नहीं दिंदे सी ते आपणे काबू विच रखदा पर जदों आप गुरू दा दास अखाउंदा तां मंगणों नहीं हटदा। माइआ दीआं पदारथां दीआं अरदासां करी जांदा। "अरदास की है अते गुरू तों की मंगणा है?। अज दा विस़ा है के गुरबाणी विच दास दी की परिभास़ा है इह समझीए।

भगत करनि हरि चाकरी जिनी अनदिनु नामु धिआइआ॥ दासनि दास होइ कै जिनी विचहु आपु गवाइआ॥ओना खसमै कै दरि मुख उजले सचै सबदि सुहाइआ॥ – भाव जिसनें आपणे विचों आप गवा दिता, मैं मार दिती। संपूरन समरपित है सच नूं। अज दे सिख नूं की इह पता है के गुरमति सच किसनूं आखदी? नाम की है समझण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?। अगे पड़्हन तों पहिलां वेखो हरि की है, हरि कौण है, किथे वसदा। इसदी विचार लई वेखो "हरि। नानक पातिस़ाह आपणे आप नूं हरि दा दास आख रहे हन "जत कत देखउ तत रहिआ समाइ॥ नानक दास हरि की सरणाइ॥, "जनु नानकु हरि का दासु है हरि की वडिआई ॥, "मन बच क्रम प्रभु अपना धिआई॥ नानक दास तेरी सरणाई॥, "जपु तपु संजमु मनै माहि बिनु नावै ध्रिगु जीवासु॥ गुरमती नाउ पाईऐ मनमुख मोहि विणासु॥ जिउ भावै तिउ राखु तूं नानकु तेरा दासु॥२॥

"सदा निकटि निकटि हरि जानु ॥ सो दासु दरगह परवानु॥ – भाव सूरज धुप तों किंना दूर है, बलब प्रकास़ तों किंना दूर है, इवें हरि हमेस़ा साडे नाल है। हमेस़ा निकट मंन लिओ, दूर नहीं किते, जिवें मंनी बैठे ने कि मंदिर विच है, गुरदवारे विच है, पोथी साहिब विच है, आह गुरबाणी देख लओ की कहि रही है, सदा ही निकट है हरि, सदा निकट जाणो ते हिरदे अंदर उहदे नाल जुड़ो, होर किसे नाल नहीं जुड़ना, जो उहदे नाल जुड़दा है ओही दास है, ते ओही दरगाह विच प्रवाण है, मूंहों दास बथेरे कहिंदे ने, पर प्रचार करदे ने कि फलाने संत नाल जुड़ो, जिहड़े कहिंदे गुरबाणी नाल जुड़ो, मथे टेको, जुड़न दा भाव इह दसदे ने कि होर कबर ते नी जाणा, केवल गुरबाणी दी पूजा करनी है, गुरदवारे जाणा है। उह वी जुड़ना नहीं है, जुड़ना केवल अंदरले हरि नाल है, विधी गुरबाणी विचार के समझणी है, बड़ा फरौड है सिख प्रचारकां दा वी, बड़े स़ातिर ने इह लोक, आह स़रत ते खरे नहीं कि हरि निकट है, लोकां तों डरदे गुरबाणी दा विरोध तां नहीं करदे, पर अरथां नाल धूह घड़ीस करके अनरथ करी जांदे ने, आपणे आप नूं वी सही साबित करी जांदे ने, कहिणगे असीं बाणी दा प्रचार करदे हां, सभ फरौडी माइआधारी ने, बलैकमेलर ने।

"अपुने दास कउ आपि किरपा करै ॥ तिसु दास कउ सभ सोझी परै॥ – आपणे दास नूं आप क्रिपा करदा है हरि, जिस ते क्रिपा करदा है, उहनूं सारी सोझी हो जांदी है, पूरन गिआन हो जादा है, बिबेक बुध हो जांदी है, जो दास हो जादे हन भगत अवसथा तक पहुंच जादे हन उही गुरबाणी रचदे ने, उन्हां ने ही गुरबाणी उचारी है जिन्हां नूं पूरन सोझी सी, क्रिपा अंदरला हरि ही करदा है, बाहर कोई संत नहीं, आपणा मूल नूं ही अंदर ही खोजणा है। जीवन पदवी उसे दास नूं मिलणी जिस ने आतम भाव घट अंदर अकाल दी जोत उसदे गुणां दे, नाम दे चानणे नाल परगास कर लई "जीवन पदवी हरि के दास॥ जिन मिलिआ आतम परगासु॥। नानक हरि का दास है "हरि दासन सिउ प्रीति है हरि दासन को मितु॥ हरि दासन कै वसि है जिउ जंती कै वसि जंतु॥ हरि के दास हरि धिआइदे करि प्रीतम सिउ नेहु॥ किरपा करि कै सुनहु प्रभ सभ जग महि वरसै मेहु॥ जो हरि दासन की उसतति है सा हरि की वडिआई॥ हरि आपणी वडिआई भावदी जन का जैकारु कराई॥ सो हरि जनु नामु धिआइदा हरि हरि जनु इक समानि॥ जनु नानकु हरि का दासु है हरि पैज रखहु भगवान॥

गुरबाणी दा फुरमान है के "गुरमती सो जनु तरै जो दासनि दास॥ जनि नानकि नामु धिआइआ गुरमुखि परगास॥ – भाव जो गुरमति गिआन लैके तर जावे भाव विकारां तों मुकत हो जावे उह दास है। गुरमति गिआन नूं धिआन विछ रखदिआ नाम (सोझी) प्रापत कर जिहनां गुणां नूं मुख रखिआ जिहनां नूं नाम दा परगास (चानणा) घट अंदर होइआ उह दास है। हुण इह सोचण वाली गल है के इस कसवटी ते खरा कौण उतरदा। इह दास उही बणदा जिसदे मारिआ दे विकारां दे बंधन कटे गए "प्रभ अपुने जब भए दइआल॥ पूरन होई सेवक घाल॥ बंधन काटि कीए अपने दास॥ सिमरि सिमरि सिमरि गुणतास॥३॥ – भाव जिहनां ते प्रभ दइआल होवे, जिहनां ने गुणां नूं सिमरिआ (चेते रखिआ), सिमर दा भाव याद रखणा। प्रभ कौण? समझण लई वेखो "ठाकुर अते प्रभ। नाम की है समझण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा? इसे जप विधी नाल दास प्रभ नूं जपदा (पछाणदा) है। "ठाकुर का दासु गुरमुखि होई॥ जिनि सिरि साजी तिनि फुनि गोई॥ तिसु बिनु दूजा अवरु न कोई॥ – भाव ठाकुर दा दास गुणां नूं मुख रखदा है।

साकत है मन जो गुरमति गिआन तों भजदा। गुणां दी विचार नहीं करदा। मनमती है, आपणी मति नूं गुरमति दे रंग विच रंगण दी थां आपणी मनमति नूं गुरमति सिध करन दी कोस़िस़ करदा। दास उह है जो साकत दा संग नहीं करदा, विकारां दा संग नहीं करदा, विकारां दी मल तों निरमल (मल रहित) हुंदा आपणे मन नूं गुरमति दे राम दे हरि दे रंग विच हरिआ करदा। "हरि के दास सिउ साकत नही संगु॥ ओहु बिखई ओसु राम को रंगु॥१॥। राम कौण है गुरमति वाला समझण लई वेखो "गुरमति विच राम

हरि का दास तां सदा बैराग विच हुंदा है, माइआ तों उदास (जिसने माइआ दा मोह तिआग दिता होवे), आपणी वडिआई नहीं लोचदा "हरि की भगति रते बैरागी चूके मोह पिआसा॥ नानक हउमै मारि पतीणे विरले दास उदासा॥। जिसने विकार, मोह माइआ हउमै, आपणी वडिआई तिआग के हुकम नाल एका कीता एक नूं पछाण लिआ उही दास है "हंउ कुरबाणी दास तेरे जिनी एकु पछाता॥

सो भाई दास कहि देण मातर नाल कोई दास नहीं हो जांदा। इह बड़ी उची अवसथा दा नाम है। साडे लई तां सिख बण जाणा, गुरसिख (गुणा नूं सिखण वाला), गुरमुख (गुणां नूं मुख रखण वाला) बणना ही हजे तां लंबा सफ़र है। मैं मार देणा, मन जित लैणा, गुणां दी विचार करना किहड़ा सौखा कंम है। जिवें कोई आपणे आप नूं राजा कहिण लग कावे जां नाम राजा रख लवे तां राजा थोड़े बण जाणा। उदां ही भादी दास बणन लई गुरमति विचार करनी पैणी, नाम (सोझी) प्रापत होणी तां किते जा के दास दी अवसथा बणनी। दास तां कुझ नहीं मंगदा दास तां इक ही अरदास करदा के हुकम नाल एका हो जावे।


Source: ਗੁਰਬਾਣੀ ਅਨੁਸਾਰ ਦਾਸ ਕੋਣ ਹੈ