Source: ਕੀਰਤਨੁ ਅਤੇ ਗੁਣ ਕਿਵੇ ਗਉਣੇ ਹਨ

कीरतनु अते गुण किवे गउणे हन

गुण गाउणा की है? किदां गुण गाउणे हन? कीरतन की है?

गुण गाउण नाल मैं मरूगी, आओ वीचार करदे हां।

"असथिरु करता तू धणी तिस ही की मै ओट॥ गुण की मारी हउ मुई सबदि रती मनि चोट॥ (पंना ९३६)

मै मै करना हउमै है, गुणा ने हउमै मार के हउमै दी थां लै लई। अगलीआं पंकतीआं विच कबीर जी दसदे ने किवे मरी हउ हउ मै मै,

"कबीर तूं तूं करता तू हूआ मुझ महि रहा न हूं॥ जब आपा पर का मिटि गइआ जत देखउ तत तू॥( पंना १३७५)

गुणा दा भार वध जाणा, हउमै दा नामु नाल विरोध है। नामु तों भाव हुकम नाल, अते गुण गाउंदे गाउंदे ही नामु दा परगास हो जाणा।

"गुण गावत होवत परगासु॥ चरन कमल महि होइ निवास॥ ( पंना ९०१)

"करमी सहजु न ऊपजै विणु सहजै सहसा न जाइ॥ नह जाइ सहसा कितै संजमि रहे करम कमाए॥( पंना ९१९)

सहसे ( भरम ) करके जीउ भाव मन मलीन है, अते इहनू धोणा है सबदु नाल, सबदु विचार नाल, गुण गउण नाल, गुण गउदे गउदे मैल उतरनी है। इथे बरीकी है, पहिला गुण विचारने जरूरी हन, विचारके ही गिआन होणा है।

"गुण विचारे गिआनी सोइ॥ गुण महि गिआन परापति होइ॥( पंना ९३१)

गुणा दी विचार है गुरबाणी, अते इह गुण विचारदे भाव गुरबाणी विचारदे होए गिआन होणा हुॳमै बारे, त्रै गुणा बारे, आध बिआध उपाध बारे, हुण जदो विचार लए समझ लग गई तां फिर गुण गउणे हन, उही विचारे होए गुण गावेगा गुरबाणी वाले। तां मैल उतरेगी।

"गुन गावत तेरी उतरस मैल॥ बिनसि जाइ हउमै बिखु फैल॥ ( पंना २८९)

जिहड़ी इह लिव है जी, सहिज समाध वाली, इह इस तरां नही है कि घंटा कु लगी अते टुट गई, इह पकी ही लगेगी, जिहदे नाल लउणी है, जदो पता लग गिआ कि सभे घट उही बोलदा, सभ दे हिरदे उही बोलदा, सरभविआपी है, किहड़ी थां है जिथे उुह ही है, तां फिर लिव टुटण दा सवाल ही नही। फरक इना है सिरफ कि गुण विचारके समझके आपणी हउमे छड होणी है, करता भाव छड होणा, फिर कहेगा जिथे देखदां इह तां तूही है, तुही तुही तुही, अंदर बाहर सभ थां।

"अभू तुहीं॥ अभै तुहीं॥ अछू तुहीं॥ अछै तुहीं॥ जतस तुहीं॥ ब्रतस तुहीं॥ गतस तुहीं॥ मतस तुहीं॥ तुहीं तुहीं॥ तुहीं तुहीं॥ तुहीं तुहीं॥ तुहीं तुहीं॥ तुहीं तुहीं॥ तुहीं तुहीं॥ तुहीं तुहीं॥ तुहीं तुहीं॥

रागु आसा विच पंना नं ३५० ते नानक पातस़ाह दे बचन हन "वाजा मति पखावजु भाउ॥ मति अरथ बुध दा वाजा होवे पखावज मनुख दा भाॳ भावनी होवे ते अनहद धुन हर समे हुकम दी सोझी दी वजदी होवे उह निरबाण कीरतन है। असली अखंड कीरतन इह है। इक दुनिआवी कीरतन है वाजे ढोलक वाला जिस बारे गुरमति आखदी "कोई गावै रागी नादी बेदी बहु भाति करि नही हरि हरि भीजै राम राजे॥, "वादु पड़ै रागी जगु भीजै॥ त्रै गुण बिखिआ जनमि मरीजै॥ राम नाम बिनु दूखु सहीजै॥२॥", "न भीजै रागी नादी बेदि॥ न भीजै सुरती गिआनी जोगि॥ न भीजै सोगी कीतै रोजि॥ न भीजै रूपीं मालीं रंगि॥ न भीजै तीरथि भविऐ नंगि॥ न भीजै दातीं कीतै पुंनि॥ न भीजै बाहरि बैठिआ सुंनि॥ न भीजै भेड़ि मरहि भिड़ि सूर॥ न भीजै केते होवहि धूड़॥ लेखा लिखीऐ मन कै भाइ॥ नानक भीजै साचै नाइ॥२॥ इक कीरतन गाइन है हुकम विच "सतु संतोखु वजहि दुइ ताल॥ पैरी वाजा सदा निहाल॥ रागु नादु नही दूजा भाउ॥ इतु रंगि नाचहु रखि रखि पाउ॥२॥ सारी स्रिस़टी गा रही है हुकम मंन के, हुकम विच चल के किउंके "वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे॥ इस कारण "गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे॥ गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे॥ गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे॥ गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले॥ गावहि सिध समाधी अंदरि गावनि साध विचारे॥ गावनि जती सती संतोखी गावहि वीर करारे॥ गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले॥ गावहि मोहणीआ मनु मोहनि सुरगा मछ पइआले॥ गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले॥ गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे॥ गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे॥ सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले॥ असीं कदे सोचिआ जां धिआन नहीं दिता "खंड मंडल किवें सिफत गा रहे ने, "पउणु पाणी किवें गा रहे ने। इह गा रहे ने उसदे हुकम विच रह के। हुकम तों बाहर नहीं जा सकदे, हुकम मंनणा ही उसदी सिफत ते कीरती गाउणा है। इही अखंड कीरतन है। "गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे॥ खाणी दा अरथ हुंदा स़्रेणी। चारे स़्रेणीआं दे जीव अंडज (अंडे तो पैदा होण वाले), सेतज (जरासीम/ germs/ पसीने तों पैदा होण वाले जीव), जेरज (मात गरभ तों पैदा होण वाले जीव), उतभुज (धरती तों उपजण वाले पेड़ पौदे) सब हर वेले परमेसर दा भाणा मंन के उसदे गुण गा रहे ने हर वेले।

"ऐसा कीरतनु करि मन मेरे॥ ईहा ऊहा जो कामि तेरै ॥१॥

आओ गुरमति दी रोस़नी विच निरबाणु कीरतनु दे अरथां दा ख़ुलासा करन दा यतन करीए।

१) कीरतनु किसने करन? मन ने

२) कीरतनु किसदा करन? आपणे मूल (प्रभ ) दा

३) प्रभ दे कुझ गुण की हन? "अगम अगोचर प्रभ निरबानी (पंना २८८)

जदों मन आपणे मूल (प्रभ) दे गुणां नूं जपदा (जाणू हुंदा) है, अते फिर किरती बण के गुर (प्रभ) के भाणे विच चलदा है।

मन निरबानी (माइक पदारथां तों इछा रहित या मुकत) हो जांदा है।

गुरमति विच इस सहिज या मुकति अवसथा नूं “निरबाणु कीरतनु” कहिआ जांदा है।

इस अवसथा विच जीव नूं दो पादरथ प्रापत हो जांदे हन

१) गिआन पदारथ

२) मुकति पदारथ

"लोगु जानै इहु गीतु है इहु तउ ब्रहम बीचार॥ – अज दे सिखां ने गुरबाणी गाइन नूं कीरतन मंन लिआ। गीत वांग गा रहे ने, आपणी वारी लई लड़्हदे ने बिनां कीरतन दा अरथ समझे। कीरतन हर जस गाइन नाल तां सारे दूख मिट जांदे हन असीं अहंकार दा जरीआ बणा लिआ। गुरमति दा मंनणा है के परमेसर नूं साडे गुण गाइन दी लोड़ नहीं, सानूं लोड़ है उसदे गुण समझ के धारन करन दी। गुरबाणी तां आखदी "जे सभि मिलि कै आखण पाहि॥ वडा न होवै घाटि न जाइ॥२॥ – भाव जे सारे जीव मिल के आखण लगण, उसदे गुण गान करन लगण तां उसने वडा नहीं हो जाणा ते जे ना करन तां उसने छोटा नहीं हो जाणा।

"संत जना मिलि हरि जसु गाइओ॥ कोटि जनम के दूख गवाइओ॥१॥ रहाउ॥ जो चाहत सोई मनि पाइओ॥ करि किरपा हरि नामु दिवाइओ॥१॥ सरब सूख हरि नामि वडाई॥ गुर प्रसादि नानक मति पाई॥२॥१॥७॥

असीं लोका दे इकठ नूं कदे साधसंगत आखी जांदे कदे सति संगत आखी जांदे। बिना सवाल कीते के जिहड़े लोग विकारां नाल भरे ने, ठगी करदे ने झूठ बोलदे ने, साध जां संत किवें हो गए गुरू घर आ के? गुरमति साध किसनूं आखदी सच किसनूं मंनदी ना खोजिआ ना सवाल कीता ना विचार कीती। जे साडे दुख कलेस़ विकार मुके नहीं तां हजे सति दी संगत नहीं मिली, साध दी संगत नहीं मिली। खैर, इस ते असीं विचार इक दूजे बलाग विच कीती है। इह चेते रहे के गुण गाइन हर वेले करना है हुकम विच रह के, जो हो रहिआ है भाणे विच हो रहिआ है मंन के। गुरमति दा फुरमान है के गुण गाउण नाल "गुन गावत तेरी उतरसि मैलु॥

"बेद पुरान सिंम्रिति सभ खोजे कहू न ऊबरना॥ कहु कबीर इउ रामहि जंपउ मेटि जनम मरना॥४॥५॥ आसा॥ फीलु रबाबी बलदु पखावज कऊआ ताल बजावै॥ पहिरि चोलना गदहा नाचै भैसा भगति करावै॥१॥

गिआनी धिआनी बहु उपदेसी इहु जगु सगलो धंधा॥ कहि कबीर इक राम नाम बिनु इआ जगु माइआ अंधा॥

भलो भलो रे कीरतनीआ॥ राम रमा रामा गुन गाउ॥ छोडि माइआ के धंध सुआउ॥१॥

दसम बाणी विच वी इह गल होई है। पातिस़ाह सवाल पुछदे हन "कहा रंक राजा कवन हरख सोग है कवन॥ को रोगी रागी कवन कहो तत मुहि तवन॥६॥२०६॥

गुण किवे गउणे हन

कीरतन नाम रख के गा तां बहुत लोग रहे हन समझदे घट ही हन। कईआं नूं आपणे कीरतन करन दा माण वी है, हउमै ही है। पातिस़ाह आखदे

"इकि गावत रहे मनि सादु न पाइ॥ हउमै विचि गावहि बिरथा जाइ॥ गावणि गावहि जिन नाम पिआरु॥ साची बाणी सबद बीचारु॥१॥

गुरबाणी विच १( इक) दे ही गुण गाए होए हन। अकाल उसतति विच अकाल दी ॳसतति है, गुण गाए हन, सोहले गाए होए हन, किसे दी वाह वाह करनी है गुण गाइन करना, गुणा बारे दसके वाह वाह करनी ही असल वडिआई करनी है। चौपई साहिब विच इक मन इक चित होके जिहदे अगे अरदास करके कहिंदे हां असी कि साडी रछिआ करो उस दे गुण गउणे हन।

"हमरी करो हाथ दै रछा॥ पूरन होइ चित की इछा॥

अगे वालीआं पंकतीआं विच इह वी दसता कि चित की इछा की है,

"तव चरनन मन रहै हमारा॥ अपना जान करो प्रतिपारा॥

तव चरनन भाव हुकम नाल मेरा मन जुड़िआ रहे, तेरे गुण गावां मेरे ते किरपा कर। जाप साहिब विच सारे नाम गुणवाचक ही हन, किउ कि परमेसर दा कोई खास नाम ( Name) नही है, गुणवाचक नाम ही हन, इह प्रमाण जाप साहिब विचो़ देखो,, चक्र चिहन अरु बरन जाति अरु पाति नहिन जिह॥ रूप रंग अरु रेख भेख कोऊ कहि न सकत किह॥ ( जाप साहिब)

कोई खास चिन्ह नही है रंग नही रूप नही, भेख नही अते इस लई कोई Name वी नही गुण वाचक नाम ही हन, बेअंत दे गुण देख के गउणे हन भाव समझ के अकल वाली अख नाल देख के गउणे हन,

"जब देखा तब गावा॥ तउ जन धीरज पावा॥ ( पंना ६५६) – अकाल नूं अकाल मूरत नूं किवें देखणा इह गुरमति समझाउंदी है।

साडे अंदर सवाल उठणा चाहीदा कि गुण किउ गाउणे हन की होवेगा इस नाल ? जिहना ने हुण तक वाहिगुरू वाहिगुरू करिआ है उहना दी की प्रापती है, अवसथा किथे पहुंची?

विसथार नाल विचारदे हां चलो, गुरबाणी दसदी है कि जैसा सेवदे हां असी वैसे हो जाने आ, जिथे साडा धिआन हुंदा है, अते धिआन दुआरा जो गिआन अते जाणकारी साडे अंदर जांदी है उहनूं सेवणा कहिंदे हन। जे दुरमति विच धिआन है तां दुरमति सेवदे हां, अते दुरमति विचो जो तत अंदर टिकेगा उस नाल सुभाउ मनमुख वाला हो जावेगा,

निज घर वापिस जाण लई, मूल विच समाउण लई सानूं परमेसर वरगा ही सुभाउ बणाउणा पैणा उसदे गुण गाउंदे गाउंदे (हुकम विच रहिंदिआं) जदो ॳही गुण साडे विच आ गए, जिवें निरवैर, निरभउ, दिआल, किरपाल रहिके प्रेम वाले गुण तां फिर उदों ही साडा वी खास रूप खालसा होवेगा, उदों ही सबदु विच समा के सबदु सरूप हो सकदे हां असी। जिवें तेल तत है अते तेल विच पाणी जां दुध नही मिल सकदा, तेल विच तेल ही मिल सकदा। मै मेरा खतम करके तुही तुही तुही हो जाणा है, इह किवें संभव है इहदी विधी की है अगे विचार करदे आं आजो, गुरबाणी दा फुरमान है

"सतिगुर सेवे सो जोगी होइ॥ भै रचि रहै सु निरभउ होइ॥

"जैसा सेवै तैसो होइ॥ ( पंना २२३)

सेवदे उदो हां जदो उस गुण दी विचार करदे होए उस नूं निराकारी अख नाल पेखदे वी हां, संसार विच वी जैसी संगत करदे हां वैसी रंगत चड़्ह जांदी है, नचण टपण गउण वालिआ नूं देखण वालिआं दे मन उपर वी उही रंग चड़्ह जांदा है अते गवईए, रैपर, नचार इह कुछ बण जांदे हन।

जो वी गिआन इंदरिआं नाल देखदे पड़्हदे जां सुणदे हां असी उह गिआन हुंदा है, information हुंदी है, उस विच जो तत हुंदा है उह साडे हिरदे विच टिकदा है, जो टिकिआ अंदर उह सेवेआ है, जेसा सेवे तैसा होए।

उस नाल जो अवसथा विच सुभाउ विच बदलाव आउदां है उह है तैसा होइ,, उदाहरण है, जिवे निरभउ कर देण वाले गुरबाणी गिआन नूं विचारिआ जदो तां उह है जैसा सेवेआ, उस गिआन विचों तत निकलेगा उही हिरदे विच टिकेगा जाके, अते उस तत गिआन नाल डर वाला सुभाउ दूर होवेगा निरभउ हो जावांगे, मन दे जिंने हिसे विच डर सी हनेरा सी उस डर दी जगह निरभउ वाला तत टिक गिआ अते हनेरे दी थां चानण हो गिआ। इस तरां इह अवसथा दा बदल जाणा ही जैसा सेवे तों बाअद तैसा हो जाणा है । जदों बिना स़बद अरथ अते भाव अरथ तों गिआन पड़्हदे हां असीं उदो तत नही हुंदा उस विच , सुभाउ / अवसथा विच वी बदलाव नही आउणा,हां लेकिन हंकार वी असवथा है उस विच वाधा हो जावेगा कि मैं १०० पाठ कर लिआ है।

असल विच उही गाइआ होइआ परवाण है जो अंदरली अख भाव अकल वाले नेत्र नाल देख के गाइआ है। गुण वी विचार के कले कहिण नाल बोलण नाल वी प्रपती नही है ।

"कबीर चरन कमल की मउज को कहि कैसे उनमान॥ कहिबे कउ सोभा नही देखा ही परवानु ॥ ( पंना १३७०)

जदो सही जुगती नाल गुर की सेवा करदा है, फिर जैसा सेवदा है तैसा ही हुंदा है, गुर की सेवा सबदु विचार गिआन विचार है।

"गुर की सेवा सबदु विचारु॥ हउमै मारे करणी सारु॥ ( पंना २२३)

जदो अंदरली अख नाल देख के गुण गाऊगा उदो ही उह गुण आपणे विच आ जांदा हन, तां करके किहा है कबीर जी ने कि देखा ही प्रवाण है कले कहिण नाल नही गल बणनी।

गुण विचारदे विचारदे हरि जसु गाउंदे गाउंदे मै नही रहिणी हउमै नही रहिणी, किउं कि वडे दे गुण गाउण नाल ही आपणे आप नूं वडा समझण वाला हंकार खतम होणा है, जदो अकल वाली अख नाल उह नथ देख लई जिहड़ी हुकम दी नथ नाल कटपुतलीआं नचदीआं हन, फिर तूही तूही तूही तूही होण लग जाणी, जिहनू मै कहिंदा सी फिर उहनू वी तूही कहूगा।

हउमे किवे मरूगी गुण गाउण नाल, अगे देखो

"असथिरु करता तू धणी तिस ही की मै ओट॥ गुण की मारी हउ मुई सबदि रती मनि चोट ॥ ( पंना ९३६)

मै मै करना हउमै है, गुणा ने हउमै मार के हउमै दी थां लै लई ।अगलीआं पंकतीआं विच कबीर जी दसदे ने किवे मरी हउ हउ मै मै,

"कबीर तूं तूं करता तू हूआ मुझ महि रहा न हूं॥ जब आपा पर का मिटि गइआ जत देखउ तत तू ॥( पंना १३७५)

गुणा दा भार वध जाणा हउमै दा नामु नाल विरोध है। नामु तों भाव हुकम नाल, अते गुण गउदे गउदे ही नामु दा परगास हो जाणा।

"गुण गावत होवत परगासु॥ चरन कमल महि होइ निवास॥ ( पंना ९०१)

गुण गाए होए प्रवाण किहड़े हन उह उपर आपां विचारिआ है, देखा ही परवाण है, भाव तुसी कोई मैच देख रहे हो अते बहुत intresting match है तुहाडे लई, फिर तुसी अंदरो खुस़ होके मैच विच खुब के मगन होके मैच देखदे होए ताड़ीआं मारदे मारदे कहोंगे वाह किआ बात है, नजारा आ गिआ, कई वार नचदे वी आ लोक,, इह जिहड़ा हुण नजारा आइआ इह बिना देखे नही आउणा सी, मैच नूं बिनां देखे कोई ताड़ीआं मारी जावे अते झूठा ही कही जावे वाहु वाहु नजारा आ गिआ , उह फिर आपणे आप नूं धोखा दे रहिआ है। इसे तरां 50 साल तो तोता रटण करन वालिआं दे अंदर जो ब्रहमगिआन प्रगट होइआ है उह दसण? कोई संत महापुरख कहाउण वाला आवे गिआन चरचा दे मैदान विच गिआन खड़ग्ह लैके, किउ कि गुरबाणी कहिंदी है कि गुण गाउण नाल परगास होवेगा अंदर, ब्रहमगिआनी के मन परगास होवेगा, जे कोई कहिंदा दसिआ नही जा सकदा इह वी झूठ है, किउ कि इह तां दस ही सकदा कि भरम की है, संसार सुपना की है? मुकत किवे होऊ ? बिमारी की सी, किवे स़ांत होइआ मन, की की परहेज कीता, इह सभ टैसट करन दे तरीके गुरबाणी ने दसे हन, नकली संत, खालसे, बाबे सभ फड़े जाणगे हुण।

खैर अगे देखदे आ की होवेगा जदो गुण गउण नाल हनेरे दी थां चानण हो जावेगा, अगे फिर पूरन जोति जगण ते खालसा हो जावेगा ….

"पूरन जोत जगै घट मै तब खालस ताहि नखालस जानै॥ ( स्री दसम गरंथ)

नखालस खोट हउमै नही रहिणी, किउ कि हउमै दा नामु नाल विरोध है, नामु है हुकम, इस अवसथा ते पुज के हरि जन बणदा है, हरि का सेवक बणदा है, हरि गुण गाउदा गाउंदा ।

"हरि का सेवकु सो हरि जेहा॥ भेदु ना जाणहु माणस देहा॥

हरि का सेवक हरि वरगा हो जांदा, हरि नही हुंदा, हरि जेहा कहिण तो भाव है सुभाउ / अवसथा करके। आपणी कोई इछा नही हुंदी हरि जन दी, बुलाइआ ही बोलदा है हरि जन ।

इसदे उलट है हंकार वाला हउमै वाला, किउ कि हउमे दा नामु भाव हुकम नाल विरोध है, हउमै वाले नूं लगदा मेरा हुकम वी चलदा/ वरतदा है, परमेसर दे मुकाबले, लेकिन मूंह भना के मुड़ जांदे ने हउमै वाले बार बार, भगवंत नूं जानण वाला भगउती है खालसा है इस अवसथा तक पहुंच के ही भगतां ने गुरबाणी रची है गुण गाइन कीता है।

राग, सुर अते धुन

आम कहावतां हन जिवें "धुन का पक्का, आपणी धुन विच मसत रहिणा, धुन सवार होना, धुन का पूरा होणा
धुन दॲ अरथ मौज/सोच/लगन वी हुंदा है। निराकार दे हुकम विच मगन रहण दी मौज नूं गुरमति विच सहज धुनि कहिआ गिआ है। इसनूं किते सरीर दे कंन तों सुणे जाण वाली वसतू ना समझ लैणा।

बिलावलु तब ही कीजीऐ जब मुखि होवै नामु॥ राग नाद सबदि सोहणे जा लागै सहजि धिआनु॥ राग नाद छोडि हरि सेवीऐ ता दरगह पाईऐ मानु॥ नानक गुरमुखि ब्रहमु बीचारीऐ चूकै मनि अभिमानु॥२॥

गावहि गीते चीति अनीते॥ राग सुणाइ कहावहि बीते॥ बिनु नावै मनि झूठु अनीते॥१॥

गुरमुखि राग सुआद अन तिआगे॥ गुरमुखि इहु मनु भगती जागे॥ अनहद सुणि मानिआ सबदु वीचारी॥ आतमु चीनि॑ भए निरंकारी॥७॥

गावहि राग भाति बहु बोलहि इहु मनूआ खेलै खेल॥ जोवहि कूप सिंचन कउ बसुधा उठि बैल गए चरि बेल॥२॥

भगति नारदी रिदै न आई काछि कूछि तनु दीना॥ राग रागनी डिंभ होइ बैठा उनि हरि पहि किआ लीना॥३॥

सभ कै मधि सभ हू ते बाहरि राग दोख ते निआरो॥ नानक दास गोबिंद सरणाई हरि प्रीतमु मनहि सधारो॥

गीत राग घन ताल सि कूरे॥ त्रिहु गुण उपजै बिनसै दूरे॥ दूजी दुरमति दरदु न जाइ॥ छूटै गुरमुखि दारू गुण गाइ॥३॥

राग रतन परीआ परवार॥ तिसु विचि उपजै अंम्रितु सार॥ नानक करते का इहु धनु मालु॥ जे को बूझै एहु बीचारु॥

कब कोऊ मेलै पंच सत गाइण कब को राग धुनि उठावै॥ मेलत चुनत खिनु पलु चसा लागै तब लगु मेरा मनु राम गुन गावै॥

सचा अलख अभेउ हठि न पतीजई॥ इकि गावहि राग परीआ रागि न भीजई॥ इकि नचि नचि पूरहि ताल भगति न कीजई॥ इकि अंनु न खाहि मूरख तिना किआ कीजई॥ त्रिसना होई बहुतु किवै न धीजई॥ करम वधहि कै लोअ खपि मरीजई॥ लाहा नामु संसारि अंम्रितु पीजई॥ हरि भगती असनेहि गुरमुखि घीजई॥१७॥

सभना रागां विचि सो भला भाई जितु वसिआ मनि आइ॥ रागु नादु सभु सचु है कीमति कही न जाइ॥ रागै नादै बाहरा इनी हुकमु न बूझिआ जाइ॥ नानक हुकमै बूझै तिना रासि होइ सतिगुर ते सोझी पाइ॥ सभु किछु तिस ते होइआ जिउ तिसै दी रजाइ॥२४॥

मलारु सीतल रागु है हरि धिआइऐ सांति होॲ॥ हरि जीउ अपणी क्रिपा करे तां वरतै सभ लोइ॥ वुठै जीआ जुगति होइ धरणी नो सीगारु होइ॥ नानक इहु जगतु सभु जलु है जल ही ते सभ कोइ॥ गुरपरसादी को विरला बूझै सो जनु मुकतु सदा होइ॥२॥

राग एक संगि पंच बरंगन॥ संगि अलापहि आठउ नंदन॥ प्रथम राग भैरउ वै करही॥ पंच रागनी संगि उचरही॥ प्रथम भैरवी बिलावली॥ पुंनिआकी गावहि बंगली॥ पुनि असलेखी की भई बारी॥ ए भैरउ की पाचउ नारी॥ पंचम हरख दिसाख सुनावहि॥ बंगालम मधु माधव गावहि॥१॥

हरि उतमु हरि प्रभु गाविआ करि नादु बिलावलु रागु॥ उपदेसु गुरू सुणि मंनिआ धुरि मसतकि पूरा भागु॥ सभ दिनसु रैणि गुण उचरै हरि हरि हरि उरि लिव लागु॥ सभु तनु मनु हरिआ होइआ मनु खिड़िआ हरिआ बागु॥ अगिआनु अंधेरा मिटि गइआ गुर चानणु गिआनु चरागु॥ जनु नानकु जीवै देखि हरि इक निमख घड़ी मुखि लागु॥१॥

गुर कै सबदि अराधीऐ नामि रंगि बैरागु॥ जीते पंच बैराईआ नानक सफल मारू इहु रागु॥३॥

इह जो हुण लिखिआ है सभ इह वी गुण ही गाए हन, अते इह बेअंत दी अकथ कथा है खतम नही हो सकदी continue ही रहूगी……

To Continue…


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