Source: ਸਿੱਖੀ ਅਤੇ ਪਖੰਡ
जदों तो इस दुनीआ विच इनसान दा आगमन होइआ है उदों तों ही किसे ना किसे डर जां भरम कारन इनसान नूं पखंड दा सहारा लैणा पिआ है। आपणे तों वडे जानवर जां दुस़मन नूं डराउण लई कदे डरावने मुखौटे पौणा, कदे सिर उते दूजे जानवर दा सिर लगा लैणा जां खंब लगा लैणा तां के जानवरां नूं दुस़मन नूं डरा के बच सकीए। फेर आपणे आप नूं अमीर दसण लई गहणे पा लैणा, वंन सुवंने कपड़े पहरावा करना, खुंखार जानवर दी खल बंन लैणा इह सब भेख दूजे नूं लुभौण नूं कीते जांदे रहे ने। अज वी धरमी दिसण दे कुझ खास बसतर बणे होए ने। जे तुहानूं इह बाहरी भेख देख के कोई अमीर, गरीब, निमाणा, आपणे तों वडा, छोटा जां फेर धरमी दिसदा इसदा अरथ है तुसीं भरम विच फसे होए हों। इदां ही कुझ करम कांड हन जो पहिलां किसे कारण वरते जांदे सी, फेर रिवाज बण गए अज बिनां गिआन दे पखंड बण चुके हन। जिवें हवन विच बालण वाली अग जानवर नूं दूर रखण लई सी, धूप मछरां तों बचण लई बाली जांदी सी अज धरम दे करम बण गए ने। इनसान दे पसीने दी बो नाल मछर पैंदे सी तां धूप दे धूएं दे कारण अते खुस़बो कारण मछर नहीं सी लड़दा। पहिलां लोकां नूं इह समझ सी, गिआन दी वरतो कर मछरां तो बच जांदे सी। अज धरम दे नाम ते डर विच इह कंम करदे हन। दीवा बालदे सी हनेरे विच चानणा करमे पड़्हन लई, कंम करन लई, बह के विचार करन लई अज घिओ दे दीवे बालदे ने रब नूं खुस़ करन लई। गुरबाणी विचारी होवे तां पता लगे के गुरमति तां दीवा गिआन नूं मंनणी है "दीवा मेरा एकु नामु दुखु विचि पाइआ तेलु॥ उनि चानणि ओहु सोखिआ चूका जम सिउ मेलु॥१॥ अते गिआन दा दीवा बालण ते इह हनेरा जाणा "दीवा बलै अंधेरा जाइ॥, "गुर गिआनु प्रचंडु बलाइआ अगिआनु अंधेरा जाइ ॥२॥। पुछो आपणे आप नूं सारी स्रिसटी जिसने रची होवे? हर प्रकार दी खुस़बो जिसदे वस होवे उसनूं तुहाडी धूप बती दी की लोड़ है? तुहाडे दीवे दी की लोड़ है? जे इह धूप/बती, बली, हवन ना कीता तां रब ने नाराज़ हो जाणा? की रिह सब करन नाल रब ने जिआदा खुस़ हो जाणा? उसनूं तुहाडी धूप, हवन, बली दी की लोड़ है? अज लोड़ है फेर सोचण दी के नानक पातिस़ाह ने उदासीआं दौरान, आपणी बाणी राहीं, उपदेस़ां राहीं लोकां दे किहड़े भरम तोड़े, भगतां ने किहड़े कंमां कारन पांडे नूं, धरम दे ठेकेदारां नूं लताड़िआ सी। जिहनां नूं धरम दे करम आख के करदे सी, गुरूआं ने रोकिआ ते की असीं फेर उही ता नहीं कर रहे?
"पाखंड भरम उपाव करि थाके रिद अंतरि माइआ माइआ॥ साधू पुरखु पुरखपति पाइआ अगिआन अंधेरु गवाइआ॥३॥ – कई तरह दे उपाव, पाखंड भरम करके मनुख थक गिआ हिरदे विच माइआ दा मोह भरिआ पिआ, साधू (साधिआ होइआ मन), पुरखपति (प्रभ) दी प्रापती तां अगिआनता दा हनेरा जीव दे घट विचों मुकण ते ही पाइआ जाणा। अगिआनता दूर हुंदी गुरमति गिआन दे चानणे तों।
इक समा इहो जहिआ वी सी के स़रमन ब्राहमण मुकती दी आस रणखण वाले मनुखां दे सिर कट दिंदे सी ते प्रचारदा सी के ब्राहमण हथीं मौत होण ते मुकती मिल जांदी है। खूह विच आरे लाए हुंदे सी ते मुकती दी आस रखण वाले नूं खूह विच छाल मरवा दिंदे सी। बाणी विच दरज है "जाप ताप गिआन सभि धिआन॥ खट सासत्र सिम्रिति वखिआन॥ जोग अभिआस करम ध्रम किरिआ॥ सगल तिआगि बन मधे फिरिआ॥ अनिक प्रकार कीए बहु जतना॥ पुंन दान होमे बहु रतना॥ सरीरु कटाइ होमै करि राती॥ वरत नेम करै बहु भाती॥ नही तुलि राम नाम बीचार॥ नानक गुरमुखि नामु जपीऐ इक बार॥१॥ अते "निमख निमख करि सरीरु कटावै॥ तउ भी हउमै मैलु न जावै॥ हरि के नाम समसरि कछु नाहि॥ नानक गुरमुखि नामु जपत गति पाहि॥२॥ – जे निमख निमख (थोड़ा थोड़ा) करके वी सरीर कटा लवेंगा तांवी तेरी मैल नहीं जाणी। हरि दा गिआन लए बिनां गल नहीं बणदी। जप बाणी विच महाराज आखदे ने "आखणि जोरु चुपै नह जोरु॥ जोरु न मंगणि देणि न जोरु॥ जोरु न जीवणि मरणि नह जोरु॥ जोरु न राजि मालि मनि सोरु॥ जोरु न सुरती गिआनि वीचारि॥ जोरु न जुगती छुटै संसारु॥ जिसु हथि जोरु करि वेखै सोइ॥ नानक उतमु नीचु न कोइ॥ संसार तों छुटण दी कोई जुगत नहीं है ते किसे नूं जोर नाल गिआन विचार वी नहीं दे सकदे। गुरमति हुकम मंनण दी गल करदी है।
सिखी विच पखंड अते पखंड भगती दी कोई थां नहीं। गुरमति दा सपस़ट फुरमान है के "आचारी नही जीतिआ जाइ॥ पाठ पड़ै नही कीमति पाइ॥ । किसे खास आचरण नाल परमेसर प्रापती नहीं हुंदी ना ही कोई पाठ पड़्हन नाल उसदी कीमत पाई जांदी है। उसदी भगती बड़ा सिधा तरीका दसिआ है, उसदी प्रापती दा मारग दसिआ है हुकम मंनण नाल "हुकमि मंनिऐ होवै परवाणु ता खसमै का महलु पाइसी॥, गुरबाणी ने बाकी सब करम कांड रद करते। ना तीरथ यात्रा, ना अखां बंद करके धिआन लौण नाल, ना रटण नाल, ना मथे रगड़न नाल ना अरदासां नाल, ना ही नचण टपण नाल, ना भुखे रह के, ना बिंद रख के(कुवारे रह के जां ग्रहसत जीवन दा तिआग करके), ना सहीदीआं प्रापता करके, ना दान करके, ना लंगर वरताए। हां इहनां विचों कुझ संसारी कंम इनसानीअत दा फरज हो सकदे हन। गलत नहीं हन। कुझ करमां करके संसार विच रहिणा भावें सौखा लगदा होवे पर हुकम रजाई चलणा ही सिख दा इको धरम है। उसदे हुकम उसदी रजा मंन लैणा दास दी इको अरदास है।
महाराज आखदे "किसू न भेख भीज हों॥ अते "चेत रे चेत अचेत महा जड़ भेख के कीने अलेख न पै है ॥१९॥ फेर बाहरी भेख नाल धरमी दिसण नाल लोकां नूं मूरख बणा सकदा हैं अकाल नूं नहीं।
"राज भोग अरु छत्र सिंघासन बहु सुंदरि रमना॥ पान कपूर सुबासक चंदन अंति तऊ मरना॥३॥ बेद पुरान सिंम्रिति सभ खोजे कहू न ऊबरना॥ कहु कबीर इउ रामहि जंपउ मेटि जनम मरना॥४॥५॥ फीलु रबाबी बलदु पखावज कऊआ ताल बजावै॥ पहिरि चोलना गदहा नाचै भैसा भगति करावै॥१॥
"तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी॥ कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी ॥२७॥ – सारा संसार भरम दी, अगिआनता दी कामनावां दी नींद सुता पिआ है। ते जिसनूं परमेसर दा, हरि दा गिआन, तत गिआन प्रापत होणा उसने ही जागणा। इह इक सबद दी रटण नाल नहीं होणा। "नींद विआपिआ कामि संतापिआ मुखहु हरि हरि कहावै॥ बैसनो नामु करम हउ जुगता तुह कुटे किआ फलु पावै॥ – मन दी बेहोस़ी या अगिआनता वाली नींद, किसे अखर रटण नाल नहीं टुट सकदी। केवल ओचे दरजे दी लगातार होण वाली सबद वीचार ही, मन नूं इस गहिरी नींद विचों जगा सकदी है।
नाम (सोझी) प्रापत करना औखा। कौण पड़्हे समझे ते विचार करे, लोक दलिदर वस सौखा रसता लभदे इस लई पखंड विच छेती फस जांदे ने। अते पांडे, ठग, गोलक दे लालची, भेखी, दुनिआवी पाखंडी साध, डेरेदार लोकां नूं होर भरम विच धक दिंदे ने। उहनां नूं आप तां इह बाणी दीआं पंकतीआं चेते नहीं हुंदीआं के "नानक दुनीआ कीआं वडिआईआं अगी सेती जालि ॥ एनी जलीईं नामु विसारिआ इक न चलीआ नालि॥ ते दूजिआं नूं वी नहीं समझाउंदे। दुनीआं विच मनुखां तों खटीआं होईआं वडिआइआं किते नाल नहीं जांदीआं अते नाल (सोझी) नूं विसार के फेर विकारां वल ही लै के जांदीआं ने।
आओ वेखदे हां गुरबाणी पखंड भगती किसनूं आखदी ते भगती किहड़ी परवान है।
न नैनं मिचाऊं॥ न डिंभं दिखाऊं॥ न कुकरमं कमाऊं॥ न भेखी कहाऊं॥५२॥
कल महि राम नामु सारु॥ अखी त मीटहि नाक पकड़हि ठगण कउ संसारु॥१॥ – अखां बंद करके नाटक करदां लोकां नूं धरमी दिसण लई। कलयुग विच केवल राम नाम (राग दा गिआन राम दी सोझी) ही सार है। गुरमति तां गिआन दे चानण नाल अखां खोलदी है। "अखी मीटि चलिआ अंधिआरा घरु दरु दिसै न भाई॥, "जो बिनु परतीती कपटी कूड़ी कूड़ी अखी मीटदे उन का उतरि जाइगा झूठु गुमानु॥३॥। अखां बंद करके धिआन लौणा जोग मति दा कंम सी। पातस़ाह आखदे जो हर जगह है, जिसदा कोई रूप रंग नहीं उसदा धिआन अखां बंद करके नहीं सोझी नाल गिआन नाल हुकम मंन के लगदा।
धिआन की है? अज दा सिख आखदा अखां बंद करके धिआन लगदा। मैं उदाहरण नाल समझाउंदा हां के अखां बंद करना धिआन नहीं है। "सचो सचा आखीऐ सचे सचा थानु॥ जिनी सचा मंनिआ तिन मनि सचु धिआनु॥ मनि मुखि सूचे जाणीअहि गुरमुखि जिना गिआनु ॥४॥(म १, रागु सिरीरागु, ५५)। जदों असीं किसे सफ़र ते जांदे नूं आखदे हां धिआन नाल जाईं धिआन रखीं तां की उसदा अरथ हुंदा की अखां बंद कर के बैठीं या अखां बंद कर के गडी चलाईं, फेर अखां बंद कर के धिआन किदां लगणा मन तां कदे चुप होणा ही नहीं "चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार॥। धिआन दा अरथ हुंदा हर वेले सुरत विच एकागरता रखणी है। गुरबाणी विच दरज है किवें धिआन रखणा।
आनीले कागदु काटीले गूडी आकास मधे भरमीअले॥ पंच जना सिउ बात बतऊआ चीतु सु डोरी राखीअले॥१॥ मनु राम नामा बेधीअले॥ जैसे कनिक कला चितु मांडीअले॥१॥ रहाउ॥आनीले कुंभु भराईले ऊदक राज कुआरि पुरंदरीए॥ हसत बिनोद बीचार करती है चीतु सु गागरि राखीअले ॥२॥ मंदरु एकु दुआर दस जा के गऊ चरावन छाडीअले॥ पांच कोस पर गऊ चरावत चीतु सु बछरा राखीअले॥३॥ कहत नामदेउ सुनहु तिलोचन बालकु पालन पउढीअले॥ अंतरि बाहरि काज बिरूधी चीतु सु बारिक राखीअले॥४॥१॥ (भगत कबीर जी, रागु रामकली, ९७२)
उपरोकत स़बद विच दसिआ जिवें गोपीआं मटके विच पाणी भर के सिर ते रख के तुरीआं जांदीआं गलां करदीआं वी हर वेले धिआन मटकी वल हुंदा, मटके ते मटका वी रखिआ होवे डिगदा नहीं। फेर दूजा उदाहरण है गउ नूं चरन लई छड देवो, पंज कोस दूर वी चरदी होवे उसदा धिआन बछरे वल हुंदा। की उह अखां बंद करके बछड़े वल धिआन रखदी है। असीं जदों गडी चला रहे गलां कर रहे हुंदे हां धिआन सड़क ते हुंदा, गढी चलाउंदे समे सुरत विच गिआन होण कारण आपे कलच ब्रेक सहजे ही वरतदे उहनां नूं देखण दी लोड़ नहीं पैंदी जां कलच ब्रेक दा धिआन अखां बंद करके नहीं रखदे। इसे तरह गुरमति गिआन तों मिली सोझी हर वेले धिआन विच रखणी। सत संतोख हुकम दी सोझी माइआ तों धिआन हटा के परमेसर दे गुणां वल रखणां। गुण धारण कीते बिनां गल नहीं बणदी "बिनु गुर किनै न पाइओ हरि नामु हरि सते॥ ततु गिआनु वीचारिआ हरि जपि हरि गते॥१९॥
हरि भगति हरि का पिआरु है जे गुरमुखि करे बीचारु॥ पाखंडि भगति न होवई दुबिधा बोलु खुआरु॥ सो जनु रलाइआ ना रलै जिसु अंतरि बिबेक बीचारु॥२॥ सो सेवकु हरि आखीऐ जो हरि राखै उरि धारि॥ मनु तनु सउपे आगै धरे हउमै विचहु मारि॥ धनु गुरमुखि सो परवाणु है जि कदे न आवै हारि॥३॥
अंतरि कपटु भगउती कहाए॥ पाखंडि पारब्रहमु कदे न पाए॥ पर निंदा करे अंतरि मलु लाए॥ बाहरि मलु धोवै मन की जूठि न जाए॥ सतसंगति सिउ बादु रचाए॥ अनदिनु दुखीआ दूजै भाइ रचाए॥ हरि नामु न चेतै बहु करम कमाए॥ पूरब लिखिआ सु मेटणा न जाए॥ नानक बिनु सतिगुर सेवे मोखु न पाए॥३॥ – अते गुर की सेवा की है? "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ हउमै मारे करणी सारु ॥७॥"
कई वीर भैण अथरू टेर चीकां मार मार नाटक करदे ने बाणी दी इक खास पंकती औण ते, गुरमति आखदी "मेरे मन बैरागीआ तूं बैरागु करि किसु दिखावहि॥ हरि सोहिला तिन॑ सद सदा जो हरि गुण गावहि॥ करि बैरागु तूं छोडि पाखंडु सो सहु सभु किछु जाणए॥ जलि थलि महीअलि एको सोई गुरमुखि हुकमु पछाणए॥ जिनि हुकमु पछाता हरी केरा सोई सरब सुख पावए॥ इव कहै नानकु सो बैरागी अनदिनु हरि लिव लावए॥२॥
बेदु बादु न पाखंडु अउधू गुरमुखि सबदि बीचारी॥१९॥गुरमुखि जोगु कमावै अउधू जतु सतु सबदि वीचारी॥२०॥
भाणे ते सभि सुख पावै संतहु अंते नामु सखाई॥१२॥ अपणा आपु न पछाणहि संतहु कूड़ि करहि वडिआई॥१३॥ पाखंडि कीनै जमु नही छोडै लै जासी पति गवाई॥१४॥जिन अंतरि सबदु आपु पछाणहि गति मिति तिन ही पाई॥१५॥
कंचन के कोट दतु करी बहु हैवर गैवर दानु॥ भूमि दानु गऊआ घणी भी अंतरि गरबु गुमानु॥ राम नामि मनु बेधिआ गुरि दीआ सचु दानु॥४॥ – पैसे गोलक विच पा के हंकार करन वाले सुण लैण बाणी की आखदी। कंचन के कोट अरथ सोने दे महल, भूम (जमीन) दान, गऊ, पसू मझां घोड़े आदी, इहनां नाल वी मुकती नहीं मिलणी। गुमान (हंकार) नहीं मुकणा।
तीरथि नावण जाउ तीरथु नामु है॥ तीरथु सबद बीचारु अंतरि गिआनु है॥ – तीरथ करन वाले, सपैस़ल थां गुरू घर जाके मथा टेकण वाले सुण लैण के गुरमति तीरथ हरि का नाम (सोझी) नूं आखदी पई है। "बाहरु धोइ अंतरु मनु मैला दुइ ठउर अपुने खोए॥ ईहा कामि क्रोधि मोहि विआपिआ आगै मुसि मुसि रोए॥१॥
वैसे तां कीरतन दी गुरमति परिभास़ा कुझ होर है पर आम तौर ते गुरबाणी गाइन नूं कीरतन आख दिंदे हन। इक जगह कीरतन चलदा सी तां अचानक इक माता जी चीकां मार दिंदे सी। आस पास बैठे लोकां तो पुछिआ ता आखदे माता जी नूं बैराग उठदा गुरबाणी सुण के। मैं सोचिआ गुरबाणी तां आखदी "मेरे मन बैरागीआ तूं बैरागु करि किसु दिखावहि॥ हरि सोहिला तिन॑ सद सदा जो हरि गुण गावहि॥ करि बैरागु तूं छोडि पाखंडु सो सहु सभु किछु जाणए॥ जलि थलि महीअलि एको सोई गुरमुखि हुकमु पछाणए॥ जिनि हुकमु पछाता हरी केरा सोई सरब सुख पावए॥ इव कहै नानकु सो बैरागी अनदिनु हरि लिव लावए॥२॥- असल बैराग तां मोह माइआ तिआग के हुकम मंन के होणा। लोकां नूं ढिंब करके विखाउंदे ने कई लोग। मन नहीं मारिआ जांणा काबू कीता जांदा ते पखंड नूं ही बैराग कही जांदे ने "जो मनु मारहि आपणा से पुरख बैरागी राम ॥। वेखदा रहिआ थोड़ी देर बाद उही चुगलीआं पई करदे सी लंगर छकदे छकदे।
अनेकां प्रकार दे पखंड करदे हन कोई बिहंगम रहण दा दाअणा करदे ने ते पातिस़ाह ने इॳ बारे वी कहिआ "बिंदु राखि जौ तरीऐ भाई॥ खुसरै किउ न परम गति पाई॥३॥
कई वीर भैण खाण पीण दा बिबेक करदे हन। बिबेक भोजन दा करना सी जां गुरमति बिबेक कुझ होर दसदी है? "हउमै करै निहकरमी न होवै॥ गुरपरसादी हउमै खोवै॥ अंतरि बिबेकु सदा आपु वीचारे गुरसबदी गुण गावणिआ॥३॥, "करन करावन सभु किछु एकै॥ आपे बुधि बीचारि बिबेकै॥ दूरि न नेरै सभ कै संगा॥ सचु सालाहणु नानक हरि रंगा॥८॥१॥, " मन तन रंगि रते रंग एकै॥ नानक जन कै बिरति बिबेकै॥५॥, "गुरमुखि गिआनु बिबेक बुधि होइ॥ हरि गुण गावै हिरदै हारु परोइ॥ पवितु पावनु परम बीचारी॥, "जिसु अंदरि बुधि बिबेकु है हरि नामु मुरारी॥ सो सतिगुरु सभना का मितु है सभ तिसहि पिआरी॥ सभु आतम रामु पसारिआ गुर बुधि बीचारी॥९॥ बुध बिबेकी रखणी सी असीं भोजन दा बिबेक रख के खुस़ होई जांदे। आखदे असीं किसे दे हथ दा बणिआ नहीं छकदे। भाई फेर पाणी वी आपणा आप कढो, अनाज आपणा बीजो, खाद आपणी तिआर करो, हवा वी जूठी है तुहाडे सामणे किसे दे सरीर तों निकल के वातावरण विच मिली है। कपड़े लई कपाह वी आप बीजो, कपड़ा आपणा बणाओ ते पहिरो। बाणी तों गिआन वल धिआन देवो बुध बिबेकी आप हो जाणी। "नदरि करे ता सतिगुरु मेले अनदिनु बिबेक बुधि बिचरै ॥, "बिबेक बुधि सतिगुर ते पाई गुर गिआनु गुरू प्रभ केरा॥, "सोई गिआनी जि सिमरै एक॥ सो धनवंता जिसु बुधि बिबेक॥ सो कुलवंता जि सिमरै सुआमी॥ सो पतिवंता जि आपु पछानी॥२॥
लेट लेट के बार बार थां थां ते मथे टेकण वालिआं लई लिखिआ भाई हिरदा सुध करे बिनां गल नहीं बणनी "अपराधी दूणा निवै जो हंता मिरगाहि॥ सीसि निवाइऐ किआ थीऐ जा रिदै कुसुधे जाहि॥१॥
कोई बोलै राम राम कोई खुदाइ॥ कोई सेवै गुसईआ कोई अलाहि॥१॥ कारण करण करीम॥ किरपा धारि रहीम॥१॥ रहाउ॥ कोई नावै तीरथि कोई हज जाइ॥ कोई करै पूजा कोई सिरु निवाइ॥२॥ कोई पड़ै बेद कोई कतेब॥ कोई ओढै नील कोई सुपेद॥३॥ कोई कहै तुरकु कोई कहै हिंदू॥ कोई बाछै भिसतु कोई सुरगिंदू॥४॥ कहु नानक जिनि हुकमु पछाता॥ प्रभ साहिब का तिनि भेदु जाता॥५॥९॥
गल सारी हुकम मंनण दी सी "हुकमि मंनिऐ होवै परवाणु ता खसमै का महलु पाइसी॥ पर इह औखा इस करके पखंड दा रसता फड़दा मनुख। सारी दुनीआं दी माइआ, पदारथ, धन मंगदा पर गुरमति तों इह नहीं समझणा चहुंदा के आइआ की करण सी। किस कारण जग ते भेजिआ गिआ सी। "प्राणी तूं आइआ लाहा लैणि॥ लगा कितु कुफकड़े सभ मुकदी चली रैणि॥१॥ रहाउ॥ कुदम करे पसु पंखीआ दिसै नाही कालु॥ ओतै साथि मनुखु है फाथा माइआ जालि॥ मुकते सेई भालीअहि जि सचा नामु समालि॥२॥
अज दा सिख बाणी दी विचार नहीं करदा। मंत्रां वांग बाणी नूं पड़्हदा है, जी मैं इतने सहज पाठ कर लए, जी मैं इतने अखंड पाठ लर लए। नित नेम नित दा नीअम सी तआ के बाणी दा भाव तत गिआन चेते रहे पर अज सिख सवेरे उठ के बस जलदी जलदी पड़्ह के ही कंमां नूं तुर पैंदा है। जी मैनूं ५ बाणीआं कंठ हो गईआं मैनूं दस बाणीआं कंठ हो गईआं। कितनी बाणी समझ आई कितनी सोझी मिली इस दा पता ही नहीं। लोकां नूं प्रभावित करन दा जोर है बस। की इह पखंड नहीं? "हरि के संत सुणहु जन भाई हरि सतिगुर की इक साखी॥ जिसु धुरि भागु होवै मुखि मसतकि तिनि जनि लै हिरदै राखी॥ हरि अंम्रित कथा सरेसट ऊतम गुर बचनी सहजे चाखी॥ तह भइआ प्रगासु मिटिआ अंधिआरा जिउ सूरज रैणि किराखी॥ अदिसटु अगोचरु अलखु निरंजनु सो देखिआ गुरमुखि आखी॥ अते बाणी दा फुरमान है "किआ पड़ीऐ किआ गुनीऐ॥ किआ बेद पुरानां सुनीऐ॥ पड़े सुने किआ होई॥ जउ सहज न मिलिओ सोई॥१॥। बाणी तां आखदी सहजे पड़्हो अते विचार करो पड़्ह पड़्ह गडी ना लदी जाओ कोई फाइदा नहीं।
पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ॥ पड़ि पड़ि बेड़ी पाईऐ पड़ि पड़ि गडीअहि खात॥ पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास॥ पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास॥ नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख॥१॥ लिखि लिखि पड़िआ॥ तेता कड़िआ॥ बहु तीरथ भविआ॥ तेतो लविआ॥ बहु भेख कीआ देही दुखु दीआ॥ सहु वे जीआ अपणा कीआ॥ अंनु न खाइआ सादु गवाइआ॥ बहु दुखु पाइआ दूजा भाइआ॥ बसत्र न पहिरै॥ अहिनिसि कहरै॥ मोनि विगूता॥ किउ जागै गुर बिनु सूता॥ पग उपेताणा॥ अपणा कीआ कमाणा॥ अलु मलु खाई सिरि छाई पाई॥ मूरखि अंधै पति गवाई॥ विणु नावै किछु थाइ न पाई॥ रहै बेबाणी मड़ी मसाणी॥ अंधु न जाणै फिरि पछुताणी॥ सतिगुरु भेटे सो सुखु पाए॥ हरि का नामु मंनि वसाए॥ नानक नदरि करे सो पाए॥ आस अंदेसे ते निहकेवलु हउमै सबदि जलाए॥२॥
"खोजत खोजत खोजि बीचारिओ राम नामु ततु सारा॥ – जे नाम (सोझी) नहीं है रटण है बार बार उचारना है तां खोजण दी गल किउं कीती गुरबाणी ने राम (मूल) दा नाम (सोझी) तत सार है जीव लई। मुडला गिआन है नहीं तां पहिलां ही लोग रटण करदे सी जिस कारण गुरबाणी ने कहिआ "रामु रामु करता सभु जगु फिरै रामु न पाइआ जाइ॥ अते "नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ॥२॥
नादी – जिहड़े नाद वजा के परमेसर नूं पुकारदे जां याद करदे ने परमेसर प्रापती लई।
बेदी – जिहड़े बेद (वेद/ग्रंथ/पोथीआं/किताबां) पड़्हदे ता हन पर विचार नहीं करदे। गिआन रस ते सोझी नहीं प्रापत करदे। नाम ("गुर गिआनु पदारथु नामु है हरि नामो देइ द्रिड़ाइ॥) तों भजदे ने।
सबदी – जिहड़े इक सबद नूं मंतरां वांग बार बार रट के परमेसर प्रापती दा दावा करदे हन "रामु रामु करता सभु जगु फिरै रामु न पाइआ जाइ॥ ते इंज ही वाहिगुरू वाहिगुरू कहण मातर नाल वाहिगुरू दी प्रापती नहीं हुंदी।
मोनी – जिहड़े मौन धारण करके परमेसर नूं खुस़ करन दा दावा करदे ने।
मन नूं अगिआनता दा सूतक लगिआ है "मन का सूतकु लोभु है जिहवा सूतकु कूड़ु॥ । इस सूतक नूं पखंड नाल नहीं धोता जा सकदा। "नानक सूतकु एव न उतरै गिआनु उतारे धोइ ॥१॥ – गिआन लैण दा कोई सौखा रसता नहीं हुंदा कोई पखंड गिआन प्रदान नहीं कर सकदा।
कई दाअवा करदे ने के जी असीं सूरज ते हो आए, असीं निराकार रब नूं परतख वेख लिआ, सुरग विचों हो के वापस आ गए। इह तां बहुत सौखा है। पहिलां खाणा पीणा बंद कर देवो। सरीर विचों सारे पौस़टिक तत घटा देवो। फेर सोणा बंद कर देवो। दिन विच दो घंटे तों वध नहीं सोणा। हो सके तां उह वी बंद कर देवो। फेर अखां बंद करके चौकड़ा मार लवो ते कोई वी इक ल़फ़ज़ फड़ लवो ते उची उची उसनूं बोलणा स़ुरू कर देवो। जदों अखां विचों अथरू निकलण लग जाण तां देखिओ कमाल हुंदा। तुसीं जो वी सोचणा तुहानूं परतख दिखणा स़ुरू हो जाणा भावें अखां बंद होण जां खुलीआं। हुण दसदां इह किउं हुंदा। इसनूं अंग्रेजी विच Hallucination आखदे हन ते गुरमति विच भरम। इह इक दिमागी बिमारी है जो सरीर विच पोस़ण दी कमी नाल हुंदी है। इस तरीके नूं भोली भाली जनता नहीं जाणदी। पखंडी साध, डेरेदार, पासटर, प्रचारक जाणदे हन के इह भरम है पर आपणी गोलक लई लोकां नूं भरम विच धकदे हन। इह जाण लवो के रब तां नहीं दिसणा उह निराकार है, इस तरीके नाल पखंड विच वाधा जरूर हुंदा है ते मनुख नूं मिलिआ दुरलभ जीवन विअरथ बिमारी नाल गवाइआ जाणा। कुपोस़ण दे नाल पीड़ित लोकां दा जो हाल मैं आपणे आस पास वेखिआ है उह बहुत भिआनक है। ४० साल दी ३ बचिआं दी मां नूं ब्रेन हैमरेज हुंदे वेखिआ है। ५० साल दी बीबी अचानक ब्रेन विच बलीडिंग होण नाल कोमा विच चली गई ते डाकटरां ने जवाब दे दिता। बचिआं दां बचपन पखंड ने तबाह कर दिता। पखंड दे खिलाफ़ पातिस़ाह ने किंना समझाइआ असीं कौडी दा मुल नहीं पाइआ उस सोझी दा। गुरमति पखंड तों रोकदी है ते असीं पखंड नूं ही धरम बणा लिआ।
पैंचकां
सिखां विच कई पखंड दूजे धरमां तों आए हन असीं इस बारे पहिलां वी विचार कीती है। उदाहरण दे तौर ते सिख "पैंचकां बारे विचार करदे हन। ‘पैचकां’ असल विच खेतरी रूप विच पैदा होइआ लफ़ज़ है, जो संसक्रित दे ‘पंचक:’ तों बणिआ है। ‘पंचक लफ़ज़ दा स़ाबदिक अरथ है ‘पंज दिन’। सनातन धरम दे छे स़ासतरां विचों इक स़ासतर ‘मिमांसा’ विच इस संबंधी पता लगदा है। मिमांसा मति अनुसार धरती मां है। इह मिथे दिन धरती माता नूं ‘मांहवारी’ आई हुंदी तां करके उह अपवित्र हुंदी है। संबंधत दिनां विच धरती जोतणी, कुझ बनाउणा, वरजित है। मिमांसा अनुसार इहनां दिनां विच धरती ‘ते बैठणा वी अवगिआ है। इही रवईआ औरत प्रती सनातन दा मांहवारी वाले दिन्हां विच हुंदा है। मंनू ने आपणी सिम्रती विच मांहवारी वाले दिनां विच औरत नूं अपवित्र मंनिआ है। सो, इथों ‘पंचक’ वाली घिनोणी रीत सनातन विच पुजारी ने प्रचलत कीती। गाहे ब-गाहे सिखां विच भी इह पखंड घर कर गिआ है। गुरमति विच उकत पखंड नूं कोई थाउ नहीं। इस बारे सानूं मिमांसा स़ासतर तों पता लगदा है। ते होर विसथार नाल जाणकारी प्रापत करन लई गीता प्रैस गोरखपुर दी छापी किताब मिमानसा स़ासत्र तो जाणकारी प्रापत कीती जा सकदी है पर चेते रहे इस रीत दी गुरमति विच कोई थां नहीं। गुरबाणी तां सनातन मति ते सिमरत स़ासतर नूं नाम (सोझी) तों सखणां मंनदी है "सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी ॥ पर अज वी सिख पैंचकां दी विचार कर रहे हुंदे ने। गुरूघरां विच गातरे पा के अते गुरबाणी पड़्हन वाले ग्रंथी वी पैचकां दी अरदासा करदे विख जाणगे। ना सिख सवाल करदे ने ना गुरूघर दे वजीर अखौण वाले इह दसदे ने के गुरबाणी इस पखंड नूं नहीं मंनदी। ना औरत महावारी कारण अपिवितर है ते ना धरती नूं महावारी हुंदी है। अपवितर है विकारां कारण, अगिआनता कारण मनुख दी बुध। जिहड़े मां, धी, भैण नूं अपवितर दस रहे ने उही गां दे गूंह/टटी नूं पवितर मंन रहे हुंदे ने। गुरबाणी केवल नाम (गिआन सोझी) बारे गल करदी है ते पखंड तों दूर करदी है। जिहड़े इहनां पखंडां कारण धन जोड़दे हन, लोकां नूं कुराहे पाउंदे हन उह आपणा ते दूजिआ दा जनम अकारथ करदे हन।
इस करके भाई बाहरी भेख नालो, बाहरी मल धोण नालों, बाहरी भज नठ, पखंड नालो गुरमति दी विचार करिआ करो। बाणी नूं सहजे पड़्ह के समझ के, बाणी दे अरथ बाणी तों ही लभ के विचार करो। बाणी आपणे आप विच आपणे भेद आपणे अरथ समझाउण लई संपूरन गिआन है। गुरमति दा फुरमान है "बिसटा असत रकतु परेटे चाम॥ इसु ऊपरि ले राखिओ गुमान॥३॥ एक वसतु बूझहि ता होवहि पाक॥ बिनु बूझे तूं सदा नापाक॥४॥ – बिनां गुरमति नूं समझे, बिनां गिआन दे सदा ही नापाक रहिणा मनुख ने।
इक स़बदु है नानक पातिस़ाह दा जो कई वीर भैण बारात औण ते जां किसे दे घरे औण ते ऐवें ही गा दिंदे हन। इसनूं हौली हौली पड़झ के विचारो इक वार
ॴ सतिगुर प्रसादि॥ हम घरि साजन आए॥ साचै मेलि मिलाए॥ सहजि मिलाए हरि मनि भाए पंच मिले सुखु पाइआ॥ साई वसतु परापति होई जिसु सेती मनु लाइआ॥ अनदिनु मेलु भइआ मनु मानिआ घर मंदर सोहाए॥ पंच सबद धुनि अनहद वाजे हम घरि साजन आए॥१॥ आवहु मीत पिआरे॥ मंगल गावहु नारे॥ सचु मंगलु गावहु ता प्रभ भावहु सोहिलड़ा जुग चारे॥ अपनै घरि आइआ थानि सुहाइआ कारज सबदि सवारे॥ गिआन महा रसु नेत्री अंजनु । त्रिभवण रूपु दिखाइआ॥ सखी मिलहु रसि मंगलु गावहु हम घरि साजनु आइआ॥२॥ मनु तनु अंम्रिति भिंना॥ अंतरि प्रेमु रतंना॥ अंतरि रतनु पदारथु मेरै परम ततु वीचारो॥ जंत भेख तू सफलिओ दाता सिरि सिरि देवणहारो॥ तू जानु गिआनी अंतरजामी आपे कारणु कीना॥ सुनहु सखी मनु मोहनि मोहिआ तनु मनु अंम्रिति भीना॥३॥ आतम रामु संसारा॥ साचा खेलु तुम॑ारा॥ सचु खेलु तुम॑ारा अगम अपारा तुधु बिनु कउणु बुझाए॥ सिध साधिक सिआणे केते तुझ बिनु कवणु कहाए॥ कालु बिकालु भए देवाने मनु राखिआ गुरि ठाए॥ नानक अवगण सबदि जलाए गुण संगमि प्रभु पाए॥४॥१॥२॥ (रागु सूही महला १ छंतु घरु २, ७६४)।
स़बदु नूं पड़ के विचारिओ के साजण कौण, सखी कौण, पंच कौण, नारे कौण? अनहद धुन किहड़ी है? विचारिओ जरूर।
तनु तपै तनूर जिउ बालणु हड बलंनि॑॥ पैरी थकां सिरि जुलां जे मूं पिरी मिलंनि॑॥११९॥ तनु न तपाइ तनूर जिउ बालणु हड न बालि॥ सिरि पैरी किआ फेड़िआ अंदरि पिरी निहालि॥१२०॥
अरथ: कुझ दरस़ना विच स़रीर नूं कस़ट दे के रब नूं मिलण दी कोस़िस़ कीती जांदी रही है। मंनणा है के स़रीर नूं कस़ट दे के रब दा दिल पसीच जाणा ते उसने दया करके परगट हो जाणा। लोक सरीर नूं गरम कोइले ते साड़दे सी, गरम गरम राख स़रीर ते मलदे सी। स़ेख फरीद जी आखदे ने के सरीर नूं तंदूर वांग बालण/तपाउण नाल भगती नहीं लोकां नूं मूरख बनाउण वाला पाखंड है। सिर पैरी की फड़दा हैं अरथ तप दे वख वख ढंग लबदां हैं, जिहड़ा पिर (हरि/राम/ठाकुर/बीठल) घर/घट अंदर वसदा है निहाल है, उसनूं लभ उसदे गिआन दी सोझी दी पकड़ बणा।
(Update 5, 1/4/2024)
नीचे भाई स्रेस़ठ सिंघ दे विचार सांझे कीते ३१ अगसत २०२४
जिस तरीके नाल दूजे धरमां विच पुजारी इह तैअ करदा है, कि बचे दा नाम किहड़े अखर तों रखणा है इसे तरहां अज सिखां विच वी पुजारी ने आपणे अधिकार नूं मुख रखदिआं होइआं इह दाअवा कीता कि मैं जिहड़ा ‘हुकमनामा’ लवांगा उहदे पहिले अखर तों ही नाम रखिआ जा सकदा है, इह वी मनुखता नूं बंन्हण लई पुजारी दी इक चाल है कि मेरी मरज़ी तों बिनां तेरा नाम वी नहीं रखिआ जा सकदा ? नानक दा धरम पुजारी तों आज़ाद कराउंदा है पर अज नानक दे नाम ते इंनी वडी दुकान चल पई है जदों तक पुजारी नूं पैसे ना दे दईए ते उहदे तों अरदास करवा के हुकमनामा ना सुण लईए उदों तक असीं आपणे बचे दा नाम वी नहीं रख सकदे । पर इस नूं गुरू ने बाणी विच रद कीता है “पंडित वाचहि पोथीआ ना बूझहि वीचारु॥अन कउ मती दे चलहि माइआ का वापारु॥ कथनी झूठी जगु भवै रहणी सबदु सु सारु॥६॥( रागु सिरी, म १, ५६)
भाई स्रेस़ठ सिंघ
휽� 31/08/2024
Source: ਸਿੱਖੀ ਅਤੇ ਪਖੰਡ