Source: ਮੈਂ, ਮੇਰਾ, ਤੇਰਾ, ਵਯਕਤੀਗਤ, ਵਿਆਪਕ ਕੀ ਹੈ?

मैं, मेरा, तेरा, वयकतीगत, विआपक की है?

कुझ समा पहिलां असीं विचार कीती सी "एक, एकु, इक, इकु अते अनेक दा अंतर दी पर बार बार इह सवाल आ रहे ने के फेर वयकतीगत की है? मेरा की है? किहड़ी वसतू जां आदेस़ गुरबाणी विच वयकतीगत है ते किहड़ा विआपक।

गुरबाणी अधिआतमिक लैवल ते किसे वी तरां दे वयकतीगत, मेर तेर दी विचार तों जीव नूं मना करदी है ते विचारन उपरंत इस सोच तो मुकत करदी है। गुरबाणी दा फुरमान है के "मान मोह मेर तेर बिबरजित एहु मारगु खंडे धार॥३॥ गुरमति मेर तेर बिबरजित (मना) करदी है। जदों तक मेर, तेर, वयकतीगत, मैं दी सोच है उदों तक जीव नूं गिआन नहीं हो सकदा। गुरबाणी तों होर उदाहरण हन।

मेरा तेरा छोडीऐ भाई होईऐ सभ की धूरि॥ घटि घटि ब्रहमु पसारिआ भाई पेखै सुणै हजूरि॥

"आपु गइआ सोझी पई गुरसबदी मेला॥

"ए मन तेरा को नही करि वेखु सबदि वीचारु॥ हरि सरणाई भजि पउ पाइहि मोख दुआरु॥३॥

मेर तेर तजउ अभिमाना सरनि सुआमी की परत॥

"जीवतु मरै ता सबदु बीचारै ता सचु पावै कोई ॥७॥ – जीवत मरन दा अरथ है हउमै, मैं, मेरा, मेरे लई, वयकतीगत आदी वाली सोच नूं तिआगणा। जदो मैं नहीं सी आदेस़ उदों वी सारे जीवां लई समान सी, जदों कल मैं नहीं होणा ता वी आदेस़ उही रहिणा। जीव आपणी होंद, मैं मेरा मन (अगिआनता) अते मनमति कारण मंनी बैठा है ते "मन मारे बिनु भगति न होई॥, जदों तक अगिआनता दलिदर मनमति नहीं मुकदी उदों तक इसनूं नाम (सोझी) नहीं प्रापत हो सकदी। गुरबाणी दा उपदेस़ पूरी मानवता लई समान है "खत्री ब्राहमण सूद वैस उपदेसु चहु वरना कउ साझा॥ गुरमुखि नामु जपै उधरै सो कलि महि घटि घटि नानक माझा॥"। मेरा तेरा दी सोच बैरी मीत दी सोच नूं जनम दिंदी है। इह मेरे हन, उह मेरे नहीं हन। मैं इह करना मैं उह करना तां रब मिलणा। सानूं इदां करना उदां करना ता हरि जां राम मिलना, मेरा वयकतीगत हरि ते बाकीआं दा जां विआपक हरि इदां मिलणा इह सब मन दी अगिआनता दी सोच है मनमति है "जब लगु जानै मुझ ते कछु होइ॥ तब इस कउ सुखु नाही कोइ॥ जब इह जानै मै किछु करता॥ तब लगु गरभ जोनि महि फिरता॥ जब धारै कोऊ बैरी मीतु॥ तब लगु निहचलु नाही चीतु॥ जब लगु मोह मगन संगि माइ॥ तब लगु धरम राइ देइ सजाइ॥ 

"आपु गवाइआ ता पिरु पाइआ गुर कै सबदि समाइआ ॥ – विचारन दी लोड़ है के आप गवाइआ दा की अरथ है। आप है की? कदे असीं विचारिआ? ना गुरू तों पुछिआ ना गुरबाणी तों खोज कीती।

प्रानी किआ मेरा किआ तेरा॥ जैसे तरवर पंखि बसेरा॥१॥

कबीर जी ने तां इह वी आख दिता "कबीर मेरा मुझ महि किछु नही जो किछु है सो तेरा॥ तेरा तुझ कउ सउपते किआ लागै मेरा॥२०३॥ जदों मेरा है ही कुझ नहीं, सरीर, विकार, बुध, गिआन, हुकम, संसारी पदारथ, जोत, संसारी राज, जात, कुल कुझ वी मेरा नहीं है तां फेर कोई वी वसतू, गुण, गिआन, आदेस़, हुकम मेरा जां वयकतीगत हो ही नहीं सकदा। जदों तक वयकतीगत मेरा तेरा कुझ वी मंन के चल रहिआ है जीव उदों तक अगिआनी है बंधन विच है "मेरा तेरा जानता तब ही ते बंधा॥ गुरि काटी अगिआनता तब छुटके फंधा॥२॥ – तब ही ते बंधा अरथ, उदों तक बंधन विच है ते गुरमति एके दी मति दे के बंधन मुकत करदी मन नूं हउमै दी मल नूं धो के निरमल करदी है "प्रभ जी तू मेरो सुखदाता॥ बंधन काटि करे मनु निरमलु पूरन पुरखु बिधाता॥। गुरबाणी तां आखदी पाप पुंन वी साडे वस नहीं हन "पाप पुंन हमरै वसि नाहि॥, विसथार विच जानण लई पड़्हो "पाप पुंन (paap/punn)

मेरा तेरा वयकतीगत वाली सोच बिमारी है जो गिआन नाल दूर होणी है "रागु सोरठि महला ५ पंचपदा॥ बिनसै मोहु मेरा अरु तेरा बिनसै अपनी धारी॥१॥ संतहु इहा बतावहु कारी॥ जितु हउमै गरबु निवारी॥१॥ रहाउ॥ सरब भूत पारब्रहमु करि मानिआ होवां सगल रेनारी॥२॥ पेखिओ प्रभ जीउ अपुनै संगे चूकै भीति भ्रमारी॥३॥ अउखधु नामु निरमल जलु अंम्रितु पाईऐ गुरू दुआरी॥४॥ कहु नानक जिसु मसतकि लिखिआ तिसु गुर मिलि रोग बिदारी॥५॥१७॥२८॥"

जो मेरा दिख रहिआ है तेरा दिख रहिआ है उह करते दा ही कीता होइआ है उसदे हुकम दी खेड है "मेरा तेरा तुधु आपे कीआ॥ सभि तेरे जंत तेरे सभि जीआ॥ नानक नामु समालि सदा तू गुरमती मंनि वसाइदा॥

जीव माइआ, हउमै मेर तेर विच ऐसा फसिआ होइआ है कई मतां, मनमति दी ऐसी खिचड़ी बुध विच बणा के बैठा है के परमेसर दे हुकम नूं, सबद नूं भुली बैठा है। वेदां दा गिआन, गुरमति दा वडमुला खजाना होण ते वी विचारन दी थां संसारी मनुखां नूं आपणा प्रेरना दा स्रोत मंन के बैठा। भुल गिआ के संसार विच लैके कुझ नहीं आइआ सी, दो ढाई किलो दा सरीर जिस नाल पैदा होइआ उह संसार विच आके मात गरभ तों मिलिआ। उथे कौण पालन कर रहिआ सी? जदों जाणा तां मिटी दी ढेरी रह जाणी। संसार नूं ता संसा (स़ंका) कह रही है गुरमति ते जीव नूं अगिआनता विच सुता दस रही है "संसा इहु संसारु है सुतिआ रैणि विहाइ॥ इकि आपणै भाणै कढि लइअनु आपे लइओनु मिलाइ॥ आपे ही आपि मनि वसिआ माइआ मोहु चुकाइ॥ आपि वडाई दितीअनु गुरमुखि देइ बुझाइ॥। जागणा गुर (गुण) किरपा नाल है "गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अंम्रित बाणी॥ फेर तूं आप वयकतीगत कर की सकदा है? दुनिआवी गिआन, माइआ, ममता, रिस़तिआं, धन पदारथ कठे करन विच इह भुल गिआ के नाल कुझ नहीं जाणा। जिहड़ा सरीर आपणा मंन के बैठा, कहिंदा है वयकतीगत, उह राख दी ढेरी बण के रह जाणा। आखदे इहु वेला एके नाल मिलण दा है "सुणि मन मित्र पिआरिआ मिलु वेला है एह॥ जब लगु जोबनि सासु है तब लगु इहु तनु देह॥ बिनु गुण कामि न आवई ढहि ढेरी तनु खेह॥१॥ ते जिहड़ा तन आपणा मंनी बैठा हैं "इहु तनु होइगो भसम की ढेरी॥३॥। आइआ सी एके लई ते मोह लिआ माइआ ने मस़हूरी ते खिआती दी इछा ने "या जुग महि एकहि कउ आइआ॥ जनमत मोहिओ मोहनी माइआ॥

वयकतीगत, मैं मेरा तिआग के "रहै अतीतु जाणै सभु तिस का॥ तनु मनु अरपै है इहु जिस का॥ ना ओहु आवै ना ओहु जाइ॥ नानक साचे साचि समाइ॥। मुकत होण दी जुगत दसी है "मिथिआ तनु साचो करि मानिओ इह बिधि आपु बंधावै॥ जन नानक सोऊ जनु मुकता राम भजन चितु लावै॥। कबीर जी आखदे अगिआनता विच अंधे नूं इह समझ नहीं आउंदी "कबीर ऐसा को नही इहु तनु देवै फूकि॥ अंधा लोगु न जानई रहिओ कबीरा कूकि॥८४॥

गुरबाणी आखदी "साधो इहु तनु मिथिआ जानउ॥ या भीतरि जो रामु बसतु है साचो ताहि पछानो॥१॥, "इहु तनु तुम॑रा सभु ग्रिहु धनु तुमरा हींउ कीओ कुरबानां॥१॥

जीव हुकम नूं भुल के मंनी बैठा के कोई वसतू विस़ा वयकतीगत है पर गुरबाणी ने सपस़ट करता के "सतिगुरि मिलिऐ सदा सुखु जिस नो आपे मेले सोइ॥ सुखै एहु बिबेकु है अंतरु निरमलु होइ॥ अगिआन का भ्रमु कटीऐ गिआनु परापति होइ॥ नानक एको नदरी आइआ जह देखा तह सोइ॥३॥, आपणा जोर लाके कुझ नहीं कर सकदा मिलणा उसनूं "जिस नो आपे मेले सोइ, नाले जप बाणी विच कहिआ "आखणि जोरु चुपै नह जोरु॥ जोरु न मंगणि देणि न जोरु॥ जोरु न जीवणि मरणि नह जोरु॥ जोरु न राजि मालि मनि सोरु॥ जोरु न सुरती गिआनि वीचारि॥ जोरु न जुगती छुटै संसारु॥ जिसु हथि जोरु करि वेखै सोइ॥ नानक उतमु नीचु न कोइ॥ ते फेर मैने करना है, मैने लेना है, मैं हूं, ये करना है वो करना है, ॲैसे करना है वैसे करना है, इस सोच ने किते नहीं लैके जाणा। गुरमति आखदी जो मिलणा सब हुकम विच मिलणा, असीं आपणी सोच नाल कुझ नहीं कर सकदे "हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ॥। जे गुरबाणी पड़्ह के विचारी हुंदी ता पता लगदा "हम कीआ हम करहगे हम मूरख गावार॥ करणै वाला विसरिआ दूजै भाइ पिआरु॥ जो करन वाला है विसार के आपणे आप नूं करता मंनी बैठा जीव। जदो तक इह समझ नहीं लगदी के जो होणा हुकम विच होणा उदों तक हउमे, मैं मेरा, वयकतीगत करम, वयकतीगत वसतू, मेरा तेरा नहीं मुकणी "हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ॥ नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ॥। आप नूं अगला साह आउणा के नहीं पता नहीं है पर वयकतीगत इछा लाई बैठा।

जदों धिआन मैं, मेरा, वयकतीगत, माइआ दे सरीर तों हटू तां पता लगणा के "सभ महि जीउ जीउ है सोई घटि घटि रहिआ समाई॥ गुर परसादि घर ही परगासिआ सहजे सहजि समाई॥ अते "सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई॥ सूतु एकु मणि सत सहंस जैसे ओति पोति प्रभु सोई॥१॥। सो चेते रहे "साधो मन का मानु तिआगउ॥ कामु क्रोधु संगति दुरजन की ता ते अहिनिसि भागउ॥१॥ रहाउ॥ सुखु दुखु दोनो सम करि जानै अउरु मानु अपमाना॥ हरख सोग ते रहै अतीता तिनि जगि ततु पछाना॥१॥ उसतति निंदा दोऊ तिआगै खोजै पदु निरबाना॥ जन नानक इहु खेलु कठनु है किनहूं गुरमुखि जाना॥२॥१॥

इक सवाल फेर वी रहि जांदा है के विआपक की है जीव नूं की विआपदा है? विआपक है जग रचना, संसार, माइआ, मनमति, विकार, चिंता, मेर तेर जिसने जग नूं छलिआ लुटिआ है। जे धिआन माइआ वल है तां मेर तेर विआपक होणी। जदों गिआन नाल धिआन एके वल होइआ, जदों मन चित हो गिआ, सोझी हो गई तां राम, हरि, गिआन, नाम बुध विच विआपक हो जाणा।

अहंकारु करहि अहंकारीआ विआपिआ मन की मति॥ तिनि प्रभि आपि भुलाइआ ना तिसु जाति न पति॥

मनमुखु मोहि विआपिआ बैरागु उदासी न होइ॥

घड़ी मुहत का पाहुणा काज सवारणहारु॥ माइआ कामि विआपिआ समझै नाही गावारु॥ उठि चलिआ पछुताइआ परिआ वसि जंदार॥१॥ अंधे तूं बैठा कंधी पाहि॥ जे होवी पूरबि लिखिआ ता गुर का बचनु कमाहि॥१॥

कामि क्रोधि अहंकारि माते विआपिआ संसारु॥ पउ संत सरणी लागु चरणी मिटै दूखु अंधारु॥२॥ सतु संतोखु दइआ कमावै एह करणी सार॥ आपु छोडि सभ होइ रेणा जिसु देइ प्रभु निरंकारु॥३॥ जो दीसै सो सगल तूंहै पसरिआ पासारु॥ कहु नानक गुरि भरमु काटिआ सगल ब्रहम बीचारु॥

माइआ भूले सिध फिरहि समाधि न लगै सुभाइ॥ तीने लोअ विआपत है अधिक रही लपटाइ॥ बिनु गुर मुकति न पाईऐ ना दुबिधा माइआ जाइ॥५॥ माइआ किस नो आखीऐ किआ माइआ करम कमाइ॥ दुखि सुखि एहु जीउ बधु है हउमै करम कमाइ॥ बिनु सबदै भरमु न चूकई ना विचहु हउमै जाइ॥६॥ बिनु प्रीती भगति न होवई बिनु सबदै थाइ न पाइ॥ सबदे हउमै मारीऐ माइआ का भ्रमु जाइ॥ नामु पदारथु पाईऐ गुरमुखि सहजि सुभाइ॥७॥ बिनु गुर गुण न जापनी बिनु गुण भगति न होइ॥ भगति वछलु हरि मनि वसिआ सहजि मिलिआ प्रभु सोइ॥ नानक सबदे हरि सालाहीऐ करमि परापति होइ॥

परमेसर ते भुलिआं विआपनि सभे रोग॥ वेमुख होए राम ते लगनि जनम विजोग॥ खिन महि कउड़े होइ गए जितड़े माइआ भोग॥ विचु न कोई करि सकै किस थै रोवहि रोज॥ कीता किछू न होवई लिखिआ धुरि संजोग॥ वडभागी मेरा प्रभु मिलै तां उतरहि सभि बिओग॥

सो भाई गुणां दी विचार करो। माइआ मोह मेर तेर सब तिआग के गुर (गुण) दे चरनी लगो। सब परमेसर हुकम विच होणा, गिआन, सोझी, माइआ, ममता सब काल वस है इह चेते रहे। "अकाल, काल, सबद अते हुकम नूं जाणो। जो संसारी कंम कर रहे हां उह करी जाणे हन पर चीत निरंजन नाल रखणा है चेते रखणा है के जो होणा है उह हुकम विच होणा है "हाथ पाउ करि कामु सभु चीतु निरंजन नालि॥, खालसा फौज जदों लड़दी सी पातिस़ाह वेले, निरभै हो के लड़दी सी के मेरा कंम है गिआन दी राखी जीणा मरना परमेसर हथ है। ना मैं मार सकदा हां ना दूजा धिड़ा। मेरे अंदर वी जोत है उहनां अंदर वी जोत है। हुकम विच जिसदा जीणा मरना लिखिआ होओ उह जित जाणा। इस सोच नाल मन विच भै ना होण कारण वडे तों वडे सूरमे बहादर नाल लड़ना सौखा हो जांदा सी। फेर भावें साहमणे मसत हाथी ही किउं ना होवे, नागणी मथे नूं चीर जांदी। सो वयकतीगत, विआपक, मेर तेर छडो, हुकम रजाई रहो। परमेसर दे गुणां दी विचार करिआ करो।

बंग के बंगाली फिरहंग के फिरंगा वाली दिली के दिलवाली तेरी आगिआ मै चलत हैं॥ रोह के रुहेले माघ देस के मघेले बीर बंग सी बुंदेले पाप पुंज को मलत हैं॥ गोखा गुन गावै चीन मचीन के सीस न्यावै तिबती धिआइ दोख देह के दलत हैं॥ जिनै तोहि धिआइओ तिनै पूरन प्रताप पाइओ सरब धन धाम फल फूल सों फलत हैं॥३॥२५५॥ देव देवतान कौ सुरेस दानवान कौ महेस गंग धान कौ अभेस कहीअतु हैं॥ रंग मैं रंगीन राग रूप मैं प्रबीन और काहू पै न दीन साध अधीन कहीअतु हैं॥ पाईऐ न पार तेज पुंज मैं अपार सरब बिदिआ के उदार हैं अपार कहीअतु हैं॥ हाथी की पुकार पल पाछै पहुचत ताहि चीटी की चिंघार पहिले ही सुनीअतु हैं॥


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