Source: ਉਤਮ ਤੇ ਨੀਚ

उतम ते नीच

सिख कहौण वालिआं विच अज वी जात पात, ऊच नीच दा कूड़ भरिआ पिआ। गुरमति दा आदेस़ है के किसे नाल वी कोई भेद भाव नहीं करना फिर वी बहुत सारे सिखां ने सिख कहाउण तो बाद वी गुरमति दा फुरमान नहीं मंनिआ। कई जथेबंदीआं ने अज वी बाटे वखरे रखे होए हन। जटां दा बाटा वखरा, रंगरेटिआं दा अते दूजिआं दा बाटा वखरा। पिछे कारण कोई वी रहिआ होवे, इतिहास दी कोई वी घटना होवे जिस कारण इह कर रहे ने पर इह गुरमति दे खिलाफ़ है। गुरबाणी विच साफ़ लिखिआ के

नानक उतमु नीचु न कोइ॥

अवलि अलह नूरु उपाइआ कुदरति के सभ बंदे॥ एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे॥१॥

असीं किऊं भुल़ गए? किउं नहीं मंनदे?

गुरमति दी परिभास़ा की है नीच दी? गुरबाणी विच इह स़बद दसदे हन के नीच कौण है

"गति रते से ऊतमा जति पति सबदे होइ॥ बिनु नावै सभ नीच जाति है बिसटा का कीड़ा होइ॥७॥

"हम नीच मैले अति अभिमानी दूजै भाइ विकार॥ गुरि पारसि मिलिऐ कंचनु होए निरमल जोति अपार॥२॥

गुरमति आधार ते नीच केवल उह है जो नाम (सोझी) तों सखणा है। फेर असीं किवें किसे नूं नीच मंन लिआ? नाम (गिआन/सोझी) लैके उतम कौण होइआ? कौण गुरबाणी दी विचार करके उतम बण रहिआ? किस गल दा अहंकार है धन, दौलत, जमीन जां ऐवें ही आपणे आप नूं अहंकार वस उतम मंनी बैठे हां। गुरबाणी विच पातिस़ाह ने दरज कीता है के

"अपराधी मतिहीनु निरगुनु अनाथु नीचु॥ सठ कठोरु कुलहीनु बिआपत मोह कीचु॥ मल भरम करम अहं ममता। मरणु चीति न आवए॥ बनिता बिनोद अनंद माइआ अगिआनता लपटावए॥ खिसै जोबनु बधै जरूआ दिन निहारे संगि मीचु॥ बिनवंति नानक आस तेरी सरणि साधू राखु नीचु॥२॥ – नीच सानूं बणाउंदे हन अगिआनता दी मल, भरम, अहंकार आदी।

नाम (गिआन/ सोझी) लैके परमेसर नाल एका करन वाला ही उतम जात है "बुनना तनना तिआगि कै प्रीति चरन कबीरा॥ नीच कुला जोलाहरा भइओ गुनीय गहीरा॥१॥ – जुलाहा (कपड़े बणाउण वाले) नूं नीच जात आखदे सी। कबीर जी ने जुलाहे दी गुरमति परिभास़ा कही जो लाहा लैण वाला होवे। "जाति जुलाहा मति का धीरु॥सहजि सहजि गुण रमै कबीरु॥

गुरबाणी आखदी हर का दास ही उतम है "माइआ के सनबंध सैन साक कित ही कामि न आइआ॥ हरि का दासु नीच कुलु ऊचा तिसु संगि मन बांछत फल पाइआ॥२॥ लाख कोटि बिखिआ के बिंजन ता महि त्रिसन न बूझी॥ सिमरत नामु कोटि उजीआरा बसतु अगोचर सूझी॥३॥

नानक पातिस़ाह आखदे संसारी उतम, नीच, चंगा माड़ा इह सोचणा विअरथ है। आखदे "ऐ जी ना हम उतम नीच न मधिम हरि सरणागति हरि के लोग॥ नाम रते केवल बैरागी सोग बिजोग बिसरजित रोग॥१॥। धन, माइआ, दुनिआवी उपाधीआं, इह किसे नूं गुरमति दी कसवटी ते उतम नहीं करदीआं "मन जिउ अपुने प्रभ भावउ॥ नीचहु नीचु नीचु अति नान॑ा होइ गरीबु बुलावउ॥१॥ रहाउ॥अनिक अडंबर माइआ के बिरथे ता सिउ प्रीति घटावउ॥ जिउ अपुनो सुआमी सुखु मानै ता महि सोभा पावउ॥१॥ दासन दास रेणु दासन की जन की टहल कमावउ॥ सरब सूख बडिआई नानक जीवउ मुखहु बुलावउ॥। जे मंनणा ही है तां आपणे आप नूं सब तों नीच मंन के चलो, आपणी हउमै नूं खतम करो। जदों तक अहंकार है उदों तक गिआन नहीं प्रापत होणा "साधू धूरि लाई मुखि मसतकि काम क्रोध बिखु जारउ॥ सभ ते नीचु आतम करि मानउ मन महि इहु सुखु धारउ॥१॥ गुन गावह ठाकुर अबिनासी कलमल सगले झारउ॥ नाम निधानु नानक दानु पावउ कंठि लाइ उरि धारउ॥ ते साधू वी बाहर नहीं हुंदे । आपणे मन नूं ही साध के सिधी प्रापत करन दा आदेस़ है, गिआन नाल हरिआ करना मन नूं ते घट अंदर ही प्रभ, साध, हरि, राम दे दरस़न होणे "ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ॥

साडे मन नूं टका नहीं है। त्रै गुण माइआ मगर भजदा। त्रै गुण की हन समझण लई वेखो "त्रै गुण माइआ, भरम अते विकार"। अगिआनता दी विकारां दी मल लगी मन नूं। रागु वडहंस विच पातिस़ाह आखदे "मनूआ दह दिस धावदा ओहु कैसे हरि गुण गावै॥ इंद्री विआपि रही अधिकाई कामु क्रोधु नित संतावै॥१॥ वाहु वाहु सहजे गुण रवीजै॥ राम नामु इसु जुग महि दुलभु है गुरमति हरि रसु पीजै॥१॥ रहाउ॥ सबदु चीनि मनु निरमलु होवै ता हरि के गुण गावै॥ गुरमती आपै आपु पछाणै ता निज घरि वासा पावै॥२॥ ए मन मेरे सदा रंगि राते सदा हरि के गुण गाउ॥ हरि निरमलु सदा सुखदाता मनि चिंदिआ फलु पाउ॥३॥ हम नीच से ऊतम भए हरि की सरणाई॥ पाथरु डुबदा काढि लीआ साची वडिआई॥४॥ बिखु से अंम्रित भए गुरमति बुधि पाई॥ अकहु परमल भए अंतरि वासना वसाई॥५॥ माणस जनमु दुलंभु है जग महि खटिआ आइ॥ पूरै भागि सतिगुरु मिलै हरि नामु धिआइ॥६॥ मनमुख भूले बिखु लगे अहिला जनमु गवाइआ॥ हरि का नामु सदा सुख सागरु साचा सबदु न भाइआ॥७॥ मुखहु हरि हरि सभु को करै विरलै हिरदै वसाइआ॥ नानक जिन कै हिरदै वसिआ मोख मुकति तिन॑ पाइआ॥८॥२॥ – हरि दे गुण धिआउणे (धिआन विच रखण) दा आदेस़ है। हरि की है कौण है समझण लई वेखो "हरि अते कीरतन की है गुण किवें गाउणे हन समझण लई वेखो "कीरतनु अते गुण किवे गउणे हन

परमेसर दी जोत घट घट (हरेक जीव दे अंदर है) विच है "अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी॥ भावें अंगज (अंडे तों पैदा होण वाला जीव होवे), जेरज (जरासीम/पसीने तों पैदा होण वाले जरमस), सेतज (मात गरभ तोॳन पैदा होण वाले जीव होण) जां उतभुज (जमीन तों उगण वाले) जीव होण। सारिआं विच परमेसर दसि जोत है। इह गल समझणा, मंन लैण नाल भेद भाव नहीं रहिणे। सारिआं विच एक जोत देखण नाल एके दी समझ लगणी। ऊच नीच जात पात दे भेदभाव दास लई खतम हो जांदे ने। पातिस़ाह आखदे "सगल बनसपति महि बैसंतरु सगल दूध महि घीआ॥ ऊच नीच महि जोति समाणी घटि घटि माधउ जीआ॥१॥ संतहु घटि घटि रहिआ समाहिओ॥ पूरन पूरि रहिओ सरब महि जलि थलि रमईआ आहिओ॥१॥ रहाउ॥ गुण निधान नानकु जसु गावै सतिगुरि भरमु चुकाइओ॥ सरब निवासी सदा अलेपा सभ महि रहिआ समाइओ॥२॥१॥२९॥ – जिवें दुध विच घिओ मिलिआ होइआ है उसे तरह स्रिसटी दे हर जीव विच परमेसर दी जोत है, भावें संसारी पधर ते किसे नूं ऊच कही जावो भावें नीच।

इस गल नूं समझे बिनां परमेसर नाल एका नहीं हो सकदा के नाम (सोझी) दी प्रापती तों बिनां कोई वी ऊचा नहीं हो सकदा "पंडित सूर छत्रपति राजा भगत बराबरि अउरु न कोइ॥ ते भगत कौण, जिसने आपणी हउमैं मार लई मन ते काबू कर लिआ "मन मारे बिनु भगति न होई॥ । बिनां नाम (गिआन/सोझी) तों सारे ही नीच हां ते उसदे हुकम विच नाम जपदिआं (गिआन/सोझी प्रापत करदिआं) नीच तों ऊच जात हुंदी "नीच जाति हरि जपतिआ उतम पदवी पाइ॥,

"नीचा ते ऊच ऊन पूरीना॥अंम्रित नामु महा रसु लीना॥३॥

आपि निरालमु गुर गम गिआना॥ जो दीसै तुझ माहि समाना॥ नानकु नीचु भिखिआ दरि जाचै मै दीजै नामु वडाई हे॥

जा की छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै॥ नीचह ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥१॥ नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै॥ कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरि जीउ ते सभै सरै॥

हम नान॑े नीच तुमे॑ बड साहिब कुदरति कउण बीचारा॥ मनु तनु सीतलु गुर दरस देखे नानक नामु अधारा॥

सेवा सुरति रहसि गुण गावा गुरमुखि गिआनु बीचारा॥ खोजी उपजै बादी बिनसै हउ बलि बलि गुर करतारा॥ हम नीच होुतो हीणमति झूठे तू सबदि सवारणहारा॥ आतम चीनि तहा तू तारण सचु तारे तारणहारा॥

हीणौ नीचु बुरौ बुरिआरु॥ नीधन कौ धनु नामु पिआरु॥ इहु धनु सारु होरु बिखिआ छारु॥

सभु को ऊचा आखीऐ नीचु न दीसै कोइ॥ इकनै भांडे साजिऐ इकु चानणु तिहु लोइ॥ करमि मिलै सचु पाईऐ धुरि बखस न मेटै कोइ॥

अगिआन बिनासन तम हरण ऊचे अगम अमाउ॥ मनु विछुड़िआ हरि मेलीऐ नानक एहु सुआउ॥ सरब कलिआणा तितु दिनि हरि परसी गुर के पाउ॥

गुरूआं ने भगतां ने निमाणा (माण तिआग के ) हो के हुकम नूं, परमेसर दे गुणां नूं धारण करन दी सलाह गुरबाणी राहीं सानूं दिती है। आप वी इही आस कीती है के भाणे विच रह के गुर (गुण) प्रापत होण सचे दे। "जेती स्रिसटि करी जगदीसरि ते सभि ऊच हम नीच बिखिआस॥ हमरे अवगुन संगि गुर मेटे जन नानक मेलि लीए प्रभ पास॥

पर अज सिख गुरबाणी समझण ते विचारन तों दूर होई जांदे ने ता हीं भटक रहे ने, कई सिख वीर इस भेद भाव तों दुखी हो के दूजे धरमां नूं वी अपनाउण लग पए ने। गुरूआं ने नीच समझी जाण वालीआं जातां नूं वी गले लाइआ सी, भेदभाव, ऊच नीच खतम करके हरेक सिख नूं बराबर दा दरजा दिता ताहीं सिखी विच वाधा होइआ। पर धीरे धीरे असीं गुरबाणी विचार के समझणी बंद कर दिती ते भुल गए के जिहड़े जात पात दा मान करदे ने बाणी आखदी परमेसर थापणे हुकम विच कदे वी ऊच नूं नीच ते नीच नूं ऊच कर सकदा "हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥ सिख इह पड़्ह रहे ने सुण रहे ने पर भुल गए इसदा अरथ कितना गहिरा है।

ऊचा ते फुनि नीचु करतु है नीच करै सुलतानु॥ जिनी जाणु सुजाणिआ जगि ते पूरे परवाणु॥

गुरबाणी आखदी इस संसार विच उसदे हुकम नूं समझण वाले विरले ही हन। ते जिसनूं उह आप वडिआई बखस़दा है उही उतम पदवी पाउंदा है "अंतरि गुरु आराधणा जिहवा जपि गुर नाउ॥ नेत्री सतिगुरु पेखणा । स्रवणी सुनणा गुर नाउ॥ सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाउ॥ कहु नानक किरपा करे जिस नो एह वथु देइ॥ जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ॥१॥ – गुरु अराधण दा अरथ है गुणां दी विचार करना। जिवहा सरीर दी जीभ नहीं है रसना, जिवहा है मनुख दी सोच ते विचार। जदों तुसीं मन विच विचारदे हो जो विचार चल रही हुंदी है उह मूह तों बोलण ते सरीर दे कंना तों सुणनी नहीं पैंदी। इह सुणना स्रवणी सुनणा है। अरथ खिआल हमेस़ा नाम (सोझी/गिआन) वल रहे। सतिगुर (सचे दे गुण) दी सोझी विच रतिआ दरगाह विच, प्रभ दी राम (रमे) होए, हरि (गिआन दे अंम्रित नाल हरे होए) दे सनमुख बहिंदा। जिसनूं इह अवसथा मिले जग दे विच विरले ही हुंदे ने। उहनां नूं ही "वडिआई " प्रापत हुंदी है।

कोई आखदा असीं छत्री कुल विच जनमे हां इस लई वडे हां। कोई आखदा असीं ब्राहमण/काजी दे घरे पैदा होए इस लई ब्राहमण/काजी हां ऊच जात हां, पर गुरबाणी आखदी जिहड़ा आपणे अवगुणां नाल, विकारां नाल, मन नाल लड़े उही छत्री है। जो ब्रहम दी विचार करे उह असल ब्राहमण है "सो जोगी जो जुगति पछाणै॥ गुरपरसादी एको जाणै॥ काजी सो जो उलटी करै॥ गुरपरसादी जीवतु मरै॥ सो ब्राहमणु जो ब्रहमु बीचारै॥आपि तरै सगले कुल तारै॥३॥ दानसबंदु सोई दिलि धोवै॥ मुसलमाणु सोई मलु खोवै॥ पड़िआ बूझै सो परवाणु॥ जिसु सिरि दरगह का नीसाणु॥ अते "सो ब्रहमणु जो बिंदै ब्रहमु॥ जपु तपु संजमु कमावै करमु॥ सील संतोख का रखै धरमु॥ बंधन तोड़ै होवै मुकतु॥ सोई ब्रहमणु पूजण जुगतु॥" – गुरबाणी दी कसवटी ते जो खरा नहीं उतर रहिआ जो विकारां नाल नहीं लड़ रहिआ उह बस बाद रचा रहिआ है। जो गिआन विचार चरचा नहीं कर रहिआ उह गिआनी नहीं है भावें नाम अगे इह पदवी कितनी वी लाई जावे "गुण वीचारे गिआनी सोइ॥ बिनां गिआन विचार तों गिआनी नहीं हो जाणा उचा नहीं हो जाणा।

जात पात लोकां नूं वंडण दा कंम करदी। किसे नूं नीच कह के मंन के वितकरा करन नाल कोई वडा नहीं जो जांदा। दुनिआवी पधर ते वी इह गलत है ते अधिआतमिक पधर ते वी इह गलत है। गुरमति गिआन दा प्रचार सही ना होण कारण समाज विच भेद भाव है, भेद भाव नाल होर अहंकार, द्वेस़ विच वाधा हुंदा। असीं जदों तक नहीं समझदे, पूरन तरीके नाल मंनदे नहीं के "कोऊ भइओ मुंडीआ संनिआसी कोऊ जोगी भइओ कोऊ ब्रहमचारी कोऊ जती अनुमानबो॥ हिंदू तुरक कोऊ राफजी इमाम साफी मानस की जात सबै एकै पहिचानबो॥करता करीम सोई राजक रहीम ओई दूसरो न भेद कोई भूल भ्रम मानबो॥ एक ही की सेव सभ ही को गुरदेव एक एक ही सरूप सबै एकै जोत जानबो॥ उदों तक गुरूआं, भगतां दे दसे समझाए समाजिक ढांचे दी बणत नहीं हो सकदी। समाज विच लड़ाई झगड़े हमेस़ा चलदे रहिणे। गरीब मारिआ जाणा होर गरीब होई जाणा, ते अमीर गोलक दे भुखे लोकां दा फाइदा कदे धरम दे नाम ते कदे ऊंच नीच दे नाम ते चकदे ही रहिणगे। गुरबाणी दा दसिआ धरम वी समझणा पैणा। वेखो गुरमति किहड़ा धरम स्रेस़ट दसदी है "धरम

इस लई भाई गुरबाणी पड़्हो विचारो ते आपणे आस पास लोकां विच गुरमति दा सही प्रचार करो। जिहड़े धरम दे ठेकेदार बणे होए ने उहनां इह कदे नहीं करना इस लई गुरू दी दसी सिखिआ सिखां नूं ही आप प्रचारनी पैणी।


Source: ਉਤਮ ਤੇ ਨੀਚ