Source: ਮਨ, ਪੰਚ ਅਤੇ ਮਨਮੁਖ
जीव दा आकार इक माइआ दा बणिआ सरीर है ते दूजा है उसदे बुध दा आकार। माइआ दा बणिआ सरीर रोटी पाणी अंन आदी खाण दीआं वसतूआं नाल वधदा है। पर दूजा बुध दा आकार गिआन नाल सोझी नाल वधदा है। गुरमति आखदी "देही गुपत बिदेही दीसै॥। बिदेही है मनुख दा बाहरला हाड मास दा बणिआ सरीर ते देही है जिसनूं गुरमति विच घट, घर, भांडा, भंड वी आखिआ गिआ है। समझण लई पड़्हो "खंड, भंड अते भांडा। गुरमति आखदी "इसु देही अंदरि पंच चोर वसहि कामु क्रोधु लोभु मोहु अहंकारा॥, अते "इहु मनु पंच तत को जीउ पंच दा अरथ हुंदा है उतम सब तों वडे। इह विकार रूपी चोर गिआन तों धिआन बेमुख करदे हन। जदों कोई आखदा मेरा मन नहीं करदा तां मन नूं ढाल वांग वरत के जीव बस आपणे उते कोई दोस़ ना आवे इसदा जतन कर रहिआ हुंदा है। असल विच मन कोई वखरी हसती नहीं है घट विच। इह अगिआनता दा, दलिदर दा रूप है जीव दा। गुरमति जीव नूं इही समझा रही है मन नूं इही समझा रही है के तूं ही जोत सरूप हैं "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥, पर मन गिआन तों सोझी तों भजदा है, ता ही गिआन दी जदों गल हुंदी है तां मन दे खिआल भजदे हन ते जीव नूं नींद वी आउण लगदी है। मन हर कोस़िस़ करदा है, बहाने लभदा है, सौखा रसता लभदा है गिआन तों भजण दा। मन (अगिआनता) नूं पता है के गिआन ने इसनूं बंन लैणा है "गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥। मन नाम (गिआन/सोझी) तों भजदा इस लई नाम (सोझी) नहीं जपदा (पहिचान करदा)। मन लई गुरमति आखदी
"इहु मनु करमा इहु मनु धरमा॥ इहु मनु पंच ततु ते जनमा॥ साकतु लोभी इहु मनु मूड़ा॥ गुरमुखि नामु जपै मनु रूड़ा॥३॥
मनमुख उह है जो मन (अगिआनता) नूं ते पंच चोरां नूं अरथ विकारां नूं मुख रख के चलदा। जो वी सोचदा करदा है उह लालच, काम, कोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईरखा, द्वेस़, झूठ, निंदा, चुगली ते होर कई विकारां कारण। गुरमुख उह है जो गिआन नूं, नाम नूं, गुणां नूं मुख रखके करदा जो वी करदा। मनमुख नूं सच (अकाल/हुकम,जोत जो कदे नहीं खरदे अखर हन, कदे नहीं मरदे, जरदे) नहीं भाउंदा। गुरबाणी आखदी।
"कलरि खेती बीजीऐ किउ लाहा पावै॥ मनमुखु सचि न भीजई कूड़ु कूड़ि गडावै॥४॥ लालचु छोडहु अंधिहो लालचि दुखु भारी॥ साचौ साहिबु मनि वसै हउमै बिखु मारी॥५॥ दुबिधा छोडि कुवाटड़ी मूसहुगे भाई॥ अहिनिसि नामु सलाहीऐ सतिगुर सरणाई॥६॥ मनमुख पथरु सैलु है ध्रिगु जीवणु फीका॥ जल महि केता राखीऐ अभ अंतरि सूका॥७॥ – मनमुख सैल पथर वांग है पाणी (मनमुख अंम्रित/सोझी) विच जितना मरजी रख लवो पथर सूका ही रहिंदा उदां ही मनमुख जिंना मरज़ी बाणी सुण, पड़्ह लवे, गुरूघर जा के मथे टेक लवे, अरदासां कर लवे, सेवा कर लवे उसदे मन दी मैल नहीं जाणी। मन ने निरमल (मल रहित) नहीं होणा।
"इसु देही अंदरि पंच चोर वसहि कामु क्रोधु लोभु मोहु अहंकारा॥ अंम्रितु लूटहि मनमुख नही बूझहि कोइ न सुणै पूकारा॥ अंधा जगतु अंधु वरतारा बाझु गुरू गुबारा॥
इहनां पंच (उतम) चोरां दे इलावा वी कई अवगुण हन जो जीव नूं आपणे मूल, प्रभ तों हुकम नाल एके तों दूर करदे हन " जेता समुंदु सागरु नीरि भरिआ तेते अउगण हमारे॥। गुणां तों बिना अवगुण दूर नहीं हुंदे ते नाम (सोझी) परमेसर दे हुकम उसदी रजा नाल नहीं मिलदी। भगत दी अरदास वी इस लई केवल सोझी दी ही हुंदी " जेता समुंदु सागरु नीरि भरिआ तेते अउगण हमारे॥ दइआ करहु किछु मिहर उपावहु डुबदे पथर तारे॥५॥ जीअड़ा अगनि बराबरि तपै भीतरि वगै काती॥ प्रणवति नानकु हुकमु पछाणै सुखु होवै दिनु राती॥ अते जदों तक मन (अगिआनता) दूर नहीं हुंदी उदों तक भगती स़ुरू नहीं हुंदी "मन मारे बिनु भगति न होई॥ । असल विच मन मारन दा अरथ है अगिआनता नूं खतम करना अंदर कोई डमदूजा जीव, कीड़ा जां कोई होर हसती नहीं है जिसनूं मारना है। जदों मन मंन गिआ तां मनु होणा। किउंके मन जीव अंदर कोई वखरी हसती नहीं है जीव आप ही है, इसदा परमेसर दे हुकम नाल एका होण ते ही इसने सहज विच आउणा। अगिआनता खतम होण ते मनु ने गुण मुख रखके चलना स़ुरू करना। फेर इसनूं हउमे, मोह, भरम ते भै नहीं रहिणे। गुरमति दा सारा गिआन मन नूं इही समझाउण लई है "मन समझावन कारने कछूअक पड़ीऐ गिआन॥ मन नूं समझावण खातर हौली हौली, धिआन नाल, पड़्ह के समझ के विचार के गिआन प्रापती करनी है।
मनु ही पंच (उतम) तत दा जीव है अरथ जोत सरूप है। जोत ही गोबिंद है अकाल है जो कदे नहीं मरदा। "इहु मनु सकती इहु मनु सीउ॥ इहु मनु पंच तत को जीउ॥ इहु मनु ले जउ उनमनि रहै॥ तउ तीनि लोक की बातै कहै॥, इसनूं आपणे गुण भुले होए ने, गुरमति गिआन राहीं मन नूं इह समझ आउणा है ते इसने हरिआ होणा है गिआन नाल। इही गल समझाई है के मन नूं आपणे मुल़ नूं समझण नाल की होणा। जदों मन ने हुकम नाम एका कर लिआ की होणा "मंनै सुरति होवै मनि बुधि॥मंनै सगल भवण की सुधि॥ मंनै मुहि चोटा ना खाइ॥ मंनै जम कै साथि न जाइ॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ॥१३॥ मंनै मारगि ठाक न पाइ॥ मंनै पति सिउ परगटु जाइ॥ मंनै मगुन चलै पंथु॥ मंनै धरम सेती सनबंधु॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ॥१४॥ मंनै पावहि मोखु दुआरु॥ मंनै परवारै साधारु॥ मंनै तरै तारे गुरु सिख॥ मंनै नानक भवहि न भिख॥ ऐसा नामु निरंजनु होइ॥ जे को मंनि जाणै मनि कोइ॥१५॥, इहनां पंकतीआं नूं धीरे धीरे कई वार पड़्ह ते समझ लवो। साडी सरीरक उमर तां घटदी जांदी है, समा थोड़ा ही है ते गिआन लैण लई ही मनुखा जनम मिलिआ है "अउध घटै दिनसु रैणारे॥ मन गुर मिलि काज सवारे॥१॥, मन नूं समझाइआ जा रहिआ है के गुर (गुणां) नूं मिल के ही हासिल करके ही तेरे काज सवारे जाणे ने। इह संसार बिकार ही संसे (स़ंके) विच परेस़ान तुरिआ फिरदा है भटकिआ फिरदा है ते गुर (गिणां) ने ही इसदा सहाइक होणा है "इहु संसारु बिकारु संसे महि तरिओ ब्रहम गिआनी॥ जिसहि जगाइ पीआवै इहु रसु अकथ कथा तिनि जानी॥
जदों मन ने गिआन लैके एके विच मनु (मंन) होणा उदों "इहु मनु साचि संतोखिआ नदरि करे तिसु माहि॥ पंच भूत सचि भै रते जोति सची मन माहि॥ नानक अउगण वीसरे गुरि राखे पति ताहि॥"
मनु बैरागी घरि वसै सच भै राता होइ॥ गिआन महारसु भोगवै बाहुड़ि भूख न होइ॥ नानक इहु मनु मारि मिलु भी फिरि दुखु न होइ॥
मन नूं हमेस़ा विकारां कारण माइआ दी भुख हुंदी है। मनमुख त्रै गुण माइआ रजो गुण (राज, पैसा, दौलत, महिल दी इछा), सतो गुण (धरमी दिसण दी इछा, लोक चंगा इनसान समझण इसदी इछा), तमो गुण ( सरीर दी भुख, काम, रिस़तिआं वल रुझान) विच फसिआ हुंदा है। गुरबाणी आखदी "मन रे त्रै गुण छोडि चउथै चितु लाइ॥ हरि जीउ तेरै मनि वसै भाई सदा हरि के गुण गाइ॥ अते "त्रै गुण मेटै सबदु वसाए ता मनि चूकै अहंकारो॥ अंतरि बाहरि एको जाणै ता हरि नामि लगै पिआरो॥। त्रै गुण समझण लई पड़्हो "त्रै गुण माइआ, भरम अते विकार अते हरि बारे समझण लई पड़्हो "हरि। मन लोभ विच फसिआ है इस करके सबद (परमेसर दे हुकम) तों वांझा है "एहु मनो मूरखु लोभीआ लोभे लगा लोुभानु॥ सबदि न भीजै साकता दुरमति आवनु जानु॥। मन नूं ही मूरख कहिआ, साकत वी कहिआ जे हुकम नूं ना समझे अगिआनता ना छडे तां किउंके मन (अगिआनता/ विकारां) कारण जीव नूं आनंद दी प्रापती नहीं हुंदी हर वेले चिंता रहिंदी है "मनमुखि सुखु न पाईऐ गुरमुखि सुखु सुभानु॥३॥, सचे दे गुणां नूं समझ के मुख रखण वाले नूं आनंद दी अवसथा मिलदी है जो आनंद बाणी विच विसथार नाल समझाइआ गिआ है। मनमुख बिनां गिआन लए जिंनी वार मरजी आनंद बाणी पड़्ह लवे अंदरों आनंद नहीं बणना। दुनिआवी उदाहरण दिंदे हां, जे किसे नवीं भरती दे फौजी नूं जंग दे मैदान विच बिनां तिआरी दे भेज दिता जावे तां दुस़मन हावी हो जाणा भावें फौजी कितनी वी कोस़िस़ करके लड़े। पर जे उसनूं स़सतरां दा गिआन होवे, बचण दा गिआन होवे, ज़खमी होण ते मरम पटी किवें करनी पता होवे तां कितने वडे सूरमे बहादर साहमणे होण फौजी आपणे गिआन राहीं लड़ के बच सकदा। गुरमति गिआन विकारां नाल लड़न दा तरीका दसदी है। किवें माइआ विच रहिंदिआं माइआ तों बचणा, लोभ लालच तों बचणा। दसम बाणी विच चरित्रां ते कथा कहाणीआं राहीं काम किवें हावी हुंदा समझाइआ गिआ है। इह वी दसिआ के फसण नाल की हो सकदा ते बचणा किवें है। बुध नूं इसत्री रूप, देवी, सुहागण, दुहागण दे उदाहरणां नाल संबोधित कीता गिआ है। भगउती उतम मति उतम बुध लई वरतिआ गिआ है, इह भगत दी बुध लई है। विसथार नाल जाणकारी लई पड़्हो "भगउती कौण/की है ? भगउती नूं दुरगा वी कहिआ गिआ है किउंके मन दुरग (किले) वांग है जिसते मनमति दा कबजा है ते दुरगा/भगउती उह उतम बुध है जिसने इस दुरग ते गिआन नाल कबज़ा करना है। भगत कबीर जी ने इस दुरग ते जित दा उदाहरण दिता है। आखदे मन इक गढि (गड़/ किले) वांग है, आपणे विकारां दी खाई बणा के बैठा है।
"किउ लीजै गढु बंका भाई॥ दोवर कोट अरु तेवर खाई॥१॥ रहाउ॥ पांच पचीस मोह मद मतसर आडी परबल माइआ॥ जन गरीब को जोरु न पहुचै कहा करउ रघुराइआ॥१॥ कामु किवारी दुखु सुखु दरवानी पापु पुंनु दरवाजा॥ क्रोधु प्रधानु महा बड दुंदर तह मनु मावासी राजा॥२॥ स्वाद सनाह टोपु ममता को कुबुधि कमान चढाई॥ तिसना तीर रहे घट भीतरि इउ गढु लीओ न जाई॥३॥ प्रेम पलीता सुरति हवाई गोला गिआनु चलाइआ॥ ब्रहम अगनि सहजे परजाली एकहि चोट सिझाइआ॥४॥ सतु संतोखु लै लरने लागा तोरे दुइ दरवाजा॥ साधसंगति अरु गुर की क्रिपा ते पकरिओ गढ को राजा॥५॥ भगवत भीरि सकति सिमरन की कटी काल भै फासी॥ दासु कमीरु चड़ि॑ओ गड़॑ ऊपरि राजु लीओ अबिनासी॥६॥९॥१७॥(भगत कबीर जी॥, रागु भैरउ, ११६१)
असीं भगती दी गल करदे हां, गुरमति आखदी इकु तिलु पिआरा वीसरै रोगु वडा मन माहि॥ किउ दरगह पति पाईऐ जा हरि न वसै मन माहि॥ गुरि मिलिऐ सुखु पाईऐ अगनि मरै गुण माहि॥१॥ मन रे अहिनिसि हरि गुण सारि॥ जिन खिनु पलु नामु न वीसरै ते जन विरले संसारि॥१॥। नाम (सोझी) हर पल चेते रखणी है। इक पल दी वी ढिल नहीं करनी। गुरमति हर उस वेले नूं जिस वेले परमेसर नाल एके दा धिआन होवे, हुकम दी सोझी होवे उस वेले नूं अंम्रित वेला मंनदी है। वेखो "अंम्रित वेला, रहिरास अते गुरबाणी पड़्हन दा सही समा
गुरमति विच एक ते इक विच फरक है। एक दा भाव हुंदा एका। मन नूं समझाउण खातर एके दी समझ जरूरी है। एका भाव हुकम नाल एक मति होणा। हुकम नूं समझणा ते हर जीव दे घट विच वसदी जोत नूं बराबर समझणा। इसनूं होर समझण लई वेखो "एक, एकु, इक, इकु अते अनेक दा अंतर। मन ने एकु समझ के धिउणा है अरथ एकु दा धिआन रखणा है "आखणु सुनणा पउण की बाणी इहु मनु रता माइआ॥ खसम की नदरि दिलहि पसिंदे जिनी करि एकु धिआइआ॥ अते "सतिगुरु सेवी आपणा इक मनि इक चिति भाइ॥ सतिगुरु मन कामना तीरथु है जिस नो देइ बुझाइ॥ मन चिंदिआ वरु पावणा जो इछै सो फलु पाइ॥ नाउ धिआईऐ नाउ मंगीऐ नामे सहजि समाइ॥१॥ मन मेरे हरि रसु चाखु तिख जाइ॥ जिनी गुरमुखि चाखिआ सहजे रहे समाइ॥१॥
गुरबाणी दा फुरमान साफ़ है के गुरमति गिआन राहीं मन (अगिआनता) दी मैल गिआन राहीं उतरनी है ते गुण हासल करने हन "जनम जनम की इसु मन कउ मलु लागी काला होआ सिआहु॥खंनली धोती उजली न होवई जे सउ धोवणि पाहु॥ गुरपरसादी जीवतु मरै उलटी होवै मति बदलाहु॥ नानक मैलु न लगई ना फिरि जोनी पाहु॥ जीवत मरन दा भाव है हउमै तिआगणा। जीवत मरै दा अरथ है साह लैंदिआं आपणी मनमति तिआगणा, मैं तो मुकत होणा। निरमल दा अरथ है मल रहित। "मन का सूतकु लोभु है जिहवा सूतकु कूड़ु॥ अखी सूतकु वेखणा पर त्रिअ पर धन रूपु॥ कंनी सूतकु कंनि पै लाइतबारी खाहि॥ नानक हंसा आदमी बधे जम पुरि जाहि॥२॥ सभो सूतकु भरमु है दूजै लगै जाइ॥ जिहड़ी मन नूं अगिआनता दी मल लगी है उह केवल गिआन नाल ही धोती जा सकदी है अगिआनता दा सूतक जो मन नूं लगिआ है उसदी विधी गुरमति दसदी है "नानक सूतकु एव न उतरै गिआनु उतारे धोइ॥
सचा साहिबु सेवीऐ सचु वडिआई देइ॥ गुरपरसादी मनि वसै हउमै दूरि करेइ॥ इहु मनु धावतु ता रहै जा आपे नदरि करेइ॥१॥ भाई रे गुरमुखि हरि नामु धिआइ॥ नामु निधानु सद मनि वसै महली पावै थाउ॥१॥ रहाउ॥ मनमुख मनु तनु अंधु है तिस नउ ठउर न ठाउ॥ बहु जोनी भउदा फिरै जिउ सुंञैं घरि काउ॥ गुरमती घटि चानणा सबदि मिलै हरि नाउ॥२॥ त्रै गुण बिखिआ अंधु है माइआ मोह गुबार॥ लोभी अन कउ सेवदे पड़ि वेदा करै पूकार॥ बिखिआ अंदरि पचि मुए ना उरवारु न पारु॥३॥ माइआ मोहि विसारिआ जगत पिता प्रतिपालि॥ बाझहु गुरू अचेतु है सभ बधी जमकालि॥ नानक गुरमति उबरे सचा नामु समालि॥४॥१०॥४३॥ (रागु सिरीरागु महला ३)
इस लई गुर की सेवा "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ ही इक राह है नाम प्रापती दा गुणां नूं हासल करन दा। सिख लई गुरबाणी खजाना है, जे समझ ना आवे गुरू दी गल तां सिख लाहा किवें लै सकदा है? गुरमति नूं पड़्ह के समझणा, विचारना ते लागू करना ही इक मारग है सिख लई। सो भाई बाणी पड़्हो वेखो गुरबाणी की समझा रही है। मन दे रोगां तों आरोग अवसथा प्रापत करन लई बाणी दी सोझी ज़रूरी है "गइआ करोधु ममता तनि नाठी पाखंडु भरमु गवाइआ॥ हउमै पीर गई सुखु पाइआ आरोगत भए सरीरा॥गुरपरसादी ब्रहमु पछाता नानक गुणी गहीरा॥। रोग अते औस़धी समझण लई पड़्हो "रोग अते औस़धी
अज दे जो हालात बणे होए ने किसे ढाडी, रागी, कथावाचक, कीरतनीए, प्रचारक, विदवान, गिआनी, संत, डेरेदार, साध, जथेदार ने बाणी नहीं समझाउणी। आप जतन करना पैणा है सिखा नूं। जो आप फसे ने ते माइआ, मोह, खिआती लई बाणी वरत रहे ने, इतिहास दे उदाहरण लोकां नूं सिरफ़ भावुक करके नोक कठे करन लगे ने, इक इक प्रोगराम दे लखां लै रहे ने उहनां ने नहीं समझाउणा "मन के अंधे आपि न बूझहु काहि बुझावहु भाई॥ माइआ कारन बिदिआ बेचहु जनमु अबिरथा जाई॥ अते "करतूति पसू की मानस जाति॥ लोक पचारा करै दिनु राति॥ बाहरि भेख अंतरि मलु माइआ॥ छपसि नाहि कछु करै छपाइआ॥ बाहरि गिआन धिआन इसनान॥ अंतरि बिआपै लोभु सुआनु॥ अंतरि अगनि बाहरि तनु सुआह॥ गलि पाथर कैसे तरै अथाह॥ जा कै अंतरि बसै प्रभु आपि॥ नानक ते जन सहजि समाति॥५॥। बाणी आप पड़्हो विचारो ते समझो। आपणे अते गुरू विच किसे नूं वी नहीं आउण देणा। गुरू समरथ है। आपणा गिआन आप समझा सकदा है जे उसते भरोसा होवे तां।
Source: ਮਨ, ਪੰਚ ਅਤੇ ਮਨਮੁਖ