Source: ਸੁੰਨ ਸਮਾਧ ਅਤੇ ਸਹਜ ਸਮਾਧ

सुंन समाध अते सहज समाध

लोकां नूं लगदा अखां बंद करके धिआन लौण नाल सुंन समाध लगदी। किसे नूं लगदा गुफा जां भोरे विच बैठण नाल सुंन समाध जां सहज समाध लगदी। बाणी तों पड़्ह के विचारीए तां पता लगदा है इह भगत दी उस अवसथा दा नाम है जदों भगत नूं नाम (सोझी) प्रापत हो जावे ते परमेसर दे हुकम नाल एका हो जावे। अखां मीट के बह जाण नूं गुरमति ने समांध लौण नहीं मंनिआ "कल महि राम नामु सारु॥ अखी त मीटहि नाक पकड़हि ठगण कउ संसारु॥, "जिस नो परतीति होवै तिस का गाविआ थाइ पवै सो पावै दरगह मानु॥ जो बिनु परतीती कपटी कूड़ी कूड़ी अखी मीटदे उन का उतरि जाइगा झूठु गुमानु॥३॥, "अखी मीटि चलिआ अंधिआरा घर दरु दिसै न भाई॥ जम दरि बाधा ठउर न पावै अपुना कीआ कमाई॥ – अखां बंद कीतिआं घरु (घट अंदरला जोत दा निवास सथान) ते दर (दरगाह जोतां दा एका) नहीं दिसदा। दसम पातिस़ाह आखदे "न नैनं मिचाऊं॥ न डिंभं दिखाऊं॥ न कुकरमं कमाऊं॥ न भेखी कहाऊं॥ ते प्रचारक प्रचार करी जांदे ने के जी दसम पातिस़ाह ने पिछले जनम विच अखां बंद करके तप कीता सी। जीव आपणे सिर उते विकारां दी पंड चुकी फिरदा है "आल जाल माइआ जंजाल॥ हउमै मोह भरम भै भार॥ दूख सूख मान अपमान॥ जदों तक गिआन नाल इह भार खतम नहीं हुंदे उदों तक गल नहीं बणदी। केवल गिआन तों प्रापत सोझी राहीं सुंन समाध ते सहज समाध लगदी है। अखां बंद करके थोड़ी देर लई भावें लगे के धिआन दुनीआ तों हट गिआ है पर मन दे फुरने बंद नहीं हुंदे। मन स़ांत नहीं हुंदा। सहज विच आउण नाल अखां बंद कीते बिनां वी मन स़ांत रहिंदा है। गुरबाणी दसदी है के सहज धिआन किवें लगदा है "पूरा सतिगुरु जे मिलै पाईऐ सबदु निधानु॥ करि किरपा प्रभ आपणी जपीऐ अंम्रित नामु॥ जनम मरण दुखु काटीऐ लागै सहजि धिआनु॥। नाम की है समझण लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?

"जीवन मिरतु न दुखु सुखु बिआपै सुंन समाधि दोऊ तह नाही॥१॥ – ना जीवन दी ना मौत दी परवाह, ना दुख ना सुख बिआपै, मनुख नूं सब हुकम ही जापै उस अवसथा दा नाम सुंन समाध है। सुंन समाधि (समाधि – समाध अंदर) विच भैं नहीं हुंदे। गिआन, नाम (सोझी) हुंदी है। जिवें कोई छत्री होवे जिस नूं गिआन होवे स़सतरां दा उह निरभै हो के लड़दा है। गिआन नां होवे तां चिंता रहिंदी है के दुस़मन ने हावी हो जाणा। इदां ही जीव नूं हुकम दी सोझी हो जाण ते विकारां नाल लड़ना सौखा हो जांदा है, जनम मरन, लाभ हानी, नफ़ा नुकसान दी चिंता मिट जांदी है। मन सहज विच रहिंदा है। विकारां तों सुंन।

"जब धारी आपन सुंन समाधि॥ तब बैर बिरोध किसु संगि कमाति॥ – जदों जीव ने सुंन समाध नाम (सोझी) प्रापती नाल धारण कर लई उसदे वैर विरोध किसे नाल नहीं रहिंदे। सारिआं विच के जोत दिसदी ते जो हो रहिआ है उह भाणा, परमेसर दा हुकम जापदा।

"सुंन समाधि रहहि लिव लागे एका एकी सबदु बीचार॥ – लिव दा अरथ है धिआन। जदों एक (परमेसर) नाल एका हो जांदा सबद विचार राहीं गिआन, नाम राहीं लिव लगदी है तां सुंन समाध वल ही धिआन रहिंदा है।

"मिलि जलु जलहि खटाना राम॥ संगि जोती जोति मिलाना राम॥ संमाइ पूरन पुरख करते आपि आपहि जाणीऐ॥ तह सुंनि सहजि समाधि लागी एकु एकु वखाणीऐ॥ आपि गुपता आपि मुकता आपि आपु वखाना॥ नानक भ्रम भै गुण बिनासे मिलि जलु जलहि खटाना॥

"डिगि न डोलै कतहू न धावै॥ गुर प्रसादि को इहु महलु पावै॥ भ्रम भै मोह न माइआ जाल॥ सुंन समाधि प्रभू किरपाल॥३॥ ता का अंतु न पारावारु॥ आपे गुपतु आपे पासारु॥ जा कै अंतरि हरि हरि सुआदु॥ कहनु न जाई नानक बिसमादु॥

"सुंन समाधि सहजि मनु राता॥ तजि हउ लोभा एको जाता॥ गुर चेले अपना मनु मानिआ॥ नानक दूजा मेटि समानिआ॥ – सहज विच आउण नाल सुंन समाध लगदी है। हउ (हउमै) , लोभा (लोभ) तजि (छडिआं) एको (परमेसर, परवान जोतां दा एका) जाता (जाणिआ) जांदा है। अखां बंद करके इह अवसथा प्रापत नहीं हुंदी। इह तां केवल नाम (गिआन/सोझी) नाल ही प्रापत हुंदी है। अकसर अखां बंद करके बैठण वाले, धिआन लौण दा दाअवा करन वाले होर वी जिआदा हउमै दे स़िकार हुंदे ने। निराकार अखां बंद करके नहीं दिसदा, जिसदा रूप ना रंग, जो त्रै गुण माइआ तों भिंन है उसनूं केवल उसदे गुणां राहीं देखिआ ते प्रापत कीता जा सकदा है। जो अंदर बैठा है उसनूं सरीर दीआं अखां बंद करके नहीं वेखिआ जा सकदा "कबीर जा कउ खोजते पाइओ सोई ठउरु॥ सोई फिरि कै तू भइआ जा कउ कहता अउरु॥, "दिल महि खोजि दिलै दिलि खोजहु एही ठउर मुकामा॥"। गिआन अंजन नाल "गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु॥। सरीर दीआं अखां वखरीआं ने केवल संसार नूं वेखण लई हन। गिआन अंजन गुर (गुण) राहीं प्रापत हुंदा है।

"जिन अंतरि सबदु आपु पछाणहि गति मिति तिन ही पाई॥१५॥ एहु मनूआ सुंन समाधि लगावै जोती जोति मिलाई॥१६॥ सुणि सुणि गुरमुखि नामु वखाणहि सतसंगति मेलाई॥ – असल विच मन ही जोत सरूप है "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥ मन हरि जी तेरै नालि है गुरमती रंगु माणु॥ पर अगिआनता, विकारां अते दलिदर कारण मैला है। असीं अकसर आख दिंदे हां के मेरा मन नहीं करदा जां मन नहीं मंनदा। मन कोई वखरी हसती नहीं है ना अंदर कोई फौज बैठी है जीव विच। मन वी तूं है जदो अगिआनता है, हरि वी तूं हैं जदों गिआन नाल हरिआ होइआ, राम वी तूं जदों गुण विच रमिआ गिआ। विकार वी तेरे ने गुण वी तेरे ने। बस दोस़ आपणे उते ना लैणा होवे तां मन नूं अगे कर दिंदा। जदों इह अगिआनता दूर हुंदी है तां जीव नूं आपणी होंद दा पता लगदा है "मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु॥, "जनम जनम की इसु मन कउ मलु लागी काला होआ सिआहु॥। मन ने गिआन नाल ही निरमल (मल रहित) होणा है "गुर सेवा ते मनु निरमलु होवै अगिआनु अंधेरा जाइ॥ इस गिआन नाल ही इसदी सुंन समाध लगणी, धिआन हुकम वल रहिणा।

"पंच सहाई जन की सोभा भलो भलो न कहावउगो॥ नामा कहै चितु हरि सिउ राता सुंन समाधि समाउगो॥ – जदों मन हरि सिउ राता , हरि दे गुणां नूं धारण कर लिआ तां सुंन समाध विच समाउगो।

"सतिगुर ते पाए वीचारा॥ सुंन समाधि सचे घर बारा॥ नानक निरमल नादु सबद धुनि सचु रामै नामि समाइदा॥

"देही नगरी ऊतम थाना॥ पंच लोक वसहि परधाना॥ ऊपरि एकंकारु निरालमु सुंन समाधि लगाइआ॥३॥"देही गुपत बिदेही दीसै॥, निराकारी देही (घट) नूं ऊतम थान दसिआ है। जिस ऊपर एकंकार (प्रभ/हरि/राम/जोत) संसारी धिआन/मति तों दूर हुकम नाल एका करदिआं सुंन समाध लगा के बैठा है।

सुंन समाध उदों है जदों त्रै गुण माइआ, संसर, अवगुणां, विकारां वलों धिआन हट के गिआन वल होवे। जदों दुख सुख, मान अपमान, लाभ हानी दा फरक ना पवे। जीव नूं हुकम दी सोझी हो जावे। इस अवसथा नूं सहज वी आखदे ने। ते इह अवसथा सुते जागदे, बहिंदे उठदे हर समे लगातार निरंतर रहिंदी है। इस अवसथा लई जोर नहीं लाणा पैंदा सहजे ही प्रापत ते बणी रहिंदी है। इस अवसथा लई अखां बंद करके तपसिआ नहीं करनी पैंदी। जिवें अपरेस़न करन वेले बलेड नाल कटण ते दरद ना होवे इस लई आपरेस़न वाली थां नूं सुंन कर दिंदे हन डाकटर फेर दरद नहीं हुंदा, उसे तरह ही दुख सुख, मान अपमान, लाभ हानी मनुख नूं एके वल धिआन तों दूर विचलित रखदे हन ते नाम (सोझी) नाल जीव दा मन सुंन हो के इहनां विकारां तो दूर रहिंदा है।

सहज समाध

सहज समाध नूं समझण तो पहिलां सहज नूं समझणा जरूरी है। सहज हुंदा है ठहराव। मन दे विच फुरने उठणे बंद हो जाण। गुरमति आखदी "भाई रे गुर बिनु सहजु न होइ॥ सबदै ही ते सहजु ऊपजै हरि पाइआ सचु सोइ॥ – गुर दा अरथ हुंदा गुण। जदों सचे दे गुण वीचार लए समझ लए धारण कर लए तां सबद (हुकम) दी सोझी हुंदी है। सबद है परमेसर दा हुकम, जीव लई नाम (गिआन/सोझी)। जदों गुण धारण कर के मन ने हरिआ होणा "हरि का नामु धिआइ कै होहु हरिआ भाई ॥ हरि होणा उदों सहज उपजणा। उदों मन नूं आपणे जोत सरूप होण दा भाव होणा। फेर जो हो रहिआ दुनिआवी ते अंतरीव उह सब भाणे विच हुंदा दिसण लग पैणा। मन दे चिंता रोग मिट जाणे। जदों जीव ने गुणां नूं मुख रख के विचरना सिख लिआ उदों सहज अवसथा बण जाणी "गुरमुखि नामु मिलै मनु भीजै सहजि समाधि लगावणिआ॥, "हउमै रोगु गइआ दुखु लाथा हरि सहजि समाधि लगाई॥ ना अखां बंद कर के बह जाण नाल हउमै जांदी है नां इक स़बद नूं बार बार रटण नाल। हउमैं जांदी है केवल नाम (गिआन/सोझी) नाल।

जपि हरि हरि जपि हरि हरि नामु मेरै मनि भाइआ राम॥ मुखि गुरमुखि मुखि गुरमुखि जपि सभि रोग गवाइआ राम॥ गुरमुखि जपि सभि रोग गवाइआ अरोगत भए सरीरा॥ अनदिनु सहज समाधि हरि लागी हरि जपिआ गहिर गंभीरा॥ – सहज समाध दा अनदिन, लगातार निरंतर लगदी है। हरि जपिआं (पछाणिआं)। जदों देही नूं लगे विकारां दे रोग गिआन ते सोझी नाल खतम हो जाण।

पिरु सचा मिलै आए साचु कमाए साचि सबदि धन राती॥ कदे न रांड सदा सोहागणि अंतरि सहज समाधी॥ पिरु रहिआ भरपूरे वेखु हदूरे रंगु माणे सहजि सुभाए॥ – बुध जदों अगिआनता विच फसी है, विकारां कारण भजी फिरदी है दुहागण है रांड है। जदों नाम (गिआन तों प्रापत सोझी) दुआरा उसनूं घट अंदर ही राम (गुणां विच रमिआ होइआ), हरि (सोझी दे अंम्रित नाल हरिआ होइआ) पिर, खसम हदूरे (घट अंदर) विखण लग जावे तां उह सुहागण हुंदी है। फेर बुध दा धिआन किते नहीं जांदा सहज समाध तां लगदी है। "सहज समाधि उपाधि रहत फुनि बडै भागि लिव लागी॥ कहि रविदास प्रगासु रिदै धरि जनम मरन भै भागी॥

सहज समाधि अनंद सूख पूरे गुरि दीन॥ सदा सहाई संगि प्रभ अंम्रित गुण चीन॥

गुर के चरन रिदै उरि धारे॥ अगनि सागर ते उतरे पारे॥ जनम मरण सभ मिटी उपाधि॥ प्रभ सिउ लागी सहजि समाधि॥२॥

हउमै रोगु गइआ सुखु पाइआ हरि सहजि समाधि लगाईऐ॥

जीअ दानु देइ त्रिपतासे सचै नामि समाही॥ अनदिनु हरि रविआ रिद अंतरि सहजि समाधि लगाही॥

जदों घट अंदर गिआन दा चानणा, सवेरा हो जावे जदों जीव अगिआनता दी नींद विचों जाग जावे उह सहज अवसथा है "जनम जनम के महा पराछत दरसनु भेटि मिटाहिओ॥ भइओ प्रगासु अनद उजीआरा सहजि समाधि समाहिओ॥

इह सिखां नूं सोचण दी लोड़ है के पातिस़ाह ने सानूं सुतिआं नूं जगाइआ है। गुरबाणी राहीं समझाइआ है के घट बार छड के जंगल विच, परबतां ते समाध लगाण लई भज जाण नाल, अखां बंद करके बह जाण नाल समाध नहीं लगदी, धिआन नहीं लगदा। गिआन दी प्रापती नाल गुणां वल हर वेले जो धिआन रहे, चिंता मुक जावे, मन विच विकार उठणे बंद हो जाण नाल, हुकम दी सोझी नाल जो स़ांत अवसथा मन दी बणदी है उह सहज ते सुंन समाध है। इस लई बार बार बेनती करदे हां के आप बाणी विचों खोजो। "गुर गिआनु पदारथु नामु है हरि नामो देइ द्रड़ाइ॥ जिसु परापति सो लहै गुर चरणी लागै आइ॥

गुरबाणी तो सिखणा है, गुरबाणी गिआन है, जे पड़्ह के भाव अरथ नही समझणे तां मतलब गिआन नही लै रहे, गुरबाणी सच खंड दा हुकम है, अते इह हुकम सानूं कहि रिहा कि गुर की मति लवो नही तां डुब जावोंगे, गुर की मति है गिआन।

"गुर की मति तूं लेहि इआने॥ भगति बिना बहु डूबे सिआने॥ – गुर की मति लैणा ही भगती है।

गुरबाणी साडे लई गिआन दा, नाम दा सोझी दा बहुत वडा खजाना परमेसर वलों बखस़िआ गिआ है। हरेक सिख वीर भैण गुरमति दी विचार करे ता के सानूं इह सोझी प्रापत हो सके। हजारां दुबिधा सिखां दे मन विच चल रहीआं हन। दूजीआं मतां दी चंगी तरह बुध विच खिचड़ी बणी पई है, उतों मन विच हजारां खिआल, फ़ुरने उठदे रहिंदे हन। स़ोभा दी लालसा वी नाल नाल चली जांदी है। कदे किसे नूं सुण लिआ कदे किसे नूं आपणा प्रेरणा दा सरोत मंन लिआ। अरथ टीकिआं वाले, दुनिआवी जां आपणी मनमति तों कर लए। कदे किसे नूं खुस़ करन लई हां विच हां मिला दिती। लोकाचारी ते लोक पचारे विच फस गए। जे गुरमति तों कुझ वी सिखिआ नहीं तां फेर सिख अखौण दा हक है सानूं? भाई गुरमति दा फुरमान है "गुरमति सुनि कछु गिआनु न उपजिओ पसु जिउ उदरु भरउ॥ कहु नानक प्रभ बिरदु पछानउ तब हउ पतित तरउ॥


Source: ਸੁੰਨ ਸਮਾਧ ਅਤੇ ਸਹਜ ਸਮਾਧ