Source: ਕਾਮ ਅਤੇ ਬਿਹੰਗਮ

काम अते बिहंगम

गुरबाणी विच कई विकार समझाए हन ते दसिआ है के उहनां तों किवें बचणा है। इहनां विकारां विचों इक है काम। समाज विच चल रहे कई भरमां कारण लोग इसनूं समझदे नहीं हन। बहुत सारीआं धारनावां बणीआं हन। जे कोई विआह ना करावे उसनूं बिहंगम आख दिंदे हन। कई वीर भैण सोचदे हन के विआह ना कराउण नाल मनुख रब दे जिआदा लागे हो जांदा है काम तों दूर रहिंदा है। वेखदे हां के गुरबाणी विच इस बारे की कहिआ गिआ है।

"बिंदु राखि जौ तरीऐ भाई॥ खुसरै किउ न परम गति पाई॥३॥ कहु कबीर सुनहु नर भाई॥ राम नाम बिनु किनि गति पाई॥४॥४॥ – कबीर जी ने तां सपस़ट ही आख दिता के जे बिंद रखिआं मनुख तर जांदा तां खुसरे सारे मुकत हो जाणे सी। आखदे राम नाम अरथ राम दे गिआन राम दी सोझी तों बिनां गती नहीं मिलणी। समझणा पैणा गुरमति दे गिआन नूं। जिसनूं लोग ब्रहमचारी आखदे हन उसदा स़बदी अरथ हुंदा है ब्रहम आचरण रखणा। ब्रहम वाला आचरण। ग्रिहसत तिआगणा ब्रहम आचरण नहीं है। अज दे सिख नूं नहीं पता के गुरबाणी विच दसिआ ब्रहम, ब्रहमा, पूरनब्रहम अते पातरब्रहम दी परिभास़ा की है। जानण लई पड़्हो "ब्रहम, ब्रहमा, पारब्रहम, पूरनब्रहम। ब्रहम आचरण है ब्रहम दी विचार "कहु कबीर जो ब्रहमु बीचारै॥ सो ब्राहमणु कहीअतु है हमारै॥। ब्रहमचारी अखौण वालिआं लई बाणी दा फुरमान है "तपसी करि कै देही साधी मनूआ दह दिस धाना॥ ब्रहमचारि ब्रहमचजु कीना हिरदै भइआ गुमाना॥ संनिआसी होइ कै तीरथि भ्रमिओ उसु महि क्रोधु बिगाना॥२॥। तपसिआ करके देही स़ाध लैण वालिआं वी मन नहीं साधिआ हुंदा ते मन दह दिस अरथ दस दिस़ा विच भटक रहिआ हुंदा है। मन विच अहंकार भरिआ हुंदा है। बिंद रखिआं ग्रहिसत तिआगण वालिआं लई बाणी आखदी है। दसम बाणी विच वी सपस़ट दरज है "किते नास मूंदे भए ब्रहमचारी॥ किते कंठ कंठी जटा सीस धारी॥ किते चीर कानं जुगीसं कहायं॥ सभै फोकटं धरम कामं न आयं॥६३॥। आदि बाणी दी अगे विचार करदे हां।

इकि बिंदु जतन करि राखदे से जती कहावहि॥ बिनु गुरसबद न छूटही भ्रमि आवहि जावहि॥६॥ इकि गिरही सेवक साधिका गुरमती लागे॥ नामु दानु इसनानु द्रिड़ु हरि भगति सु जागे॥७॥ – महाराज आखदे इक बिंद रखिआ जतन कर रहे ने ते जती कहा रहे ने पर बिनां गुरसबद दी सोझी तों छुटणगे नहीं भावें कितने वी जतन कर लैण। उहनां दा आउणा जाणा लगिआ रहिणा। दूजे पासे उह ने जो गिरही (ग्रिसत जीवन) रहिंदिआं सेवा करदे हन (गुर की सेवा सबदु वीचारु॥) ते गुरमत नूं धारण करदे हन। जिहनां नूं नाम द्रिड़ है उह भगत ही असल विच जागदे हन। नाम बारे लेख पड़्हन लई वेखो "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?। गुरबाणी मनुखे जीवन नूं नींद/रात मंनदी है ते गुरमति गिआन दी सोझी लैण नूं जागणा ते उस समे जिस समे गिआन प्रापत होवे उस वेले नूं अंम्रित वेला मंनदी है। "अंम्रित वेला, रहिरास अते गुरबाणी पड़्हन दा सही समा

कई वीर भैण देह धारी डेरेदार, संत, साध अखाउण वाले लई आखदे ने जी बाबा जी ने विआह नहीं कराइआ बाबा जी तां बिहंगम हन। बिहंगम जां विहंगम स़बद दा स़बदी अरथ हुंदा है आकास़ विच उडण वाला। गुरबाणी विच पंकतीआं हन पर कई टीकिआं ने ते लोकां ने कूड़ प्रचार नाल इसदे अरथ गलत कीते हन। स़बद है "गगा गुर के बचन पछाना॥ दूजी बात न धरई काना॥ रहै बिहंगम कतहि न जाई॥ अगह गहै गहि गगन रहाई॥ अते बिहंगम दा अरथ करन वाले ने इह स़बद नहीं पड़्हिआ "तरवर बिरख बिहंग भुइअंगम घरि पिरु धन सोहागै॥२॥ जिस नाल बिहंगम दे अरथ सपस़ट हुंदे हन। तरवर दा अरथ पंछी हुंदा है, बिरख पेड़ नूं आखदे हन ते भुइअंगम धरती ते वास करन वाले नूं आखदे हन। बिहंग दा अरथ आकास़ है।

काम ते कामना इछा दे रूप हन ते इहनां दा रिस़ता तमो गुण नाल है। त्रै गुण माइआ बारे विसथार विच गल कीती है वेखो "त्रै गुण माइआ, भरम अते विकार"। सरीर दी भुख कई प्रकार दी है, जिवें स़राब, नस़े भोजन, मिठा अते काम, इहनां विचों किसे विच वी ज़रूरत तों ज़िआदा इज़ाफ़ा, इछा जां लोभ नुकसान करदा है। सरीरिक संमबंध आपणे आप विच माड़ी गल नहीं है, इह इसत्री ते पुरख दे मेल दा पवितर रिस़ता है ते इस नाल स्रिस़टी दी रचना होई है पर इही जदों काम ते वास़ना बण जावे तां मनुख नूं कुराहे पाउंदी है उसे तरह जिवें मिठा जिआदा होवे तां स़ूगर दा रोग हो जांदा है। काम की है ते किवें वरतदा है इस बारे आदि बाणी विच गल होई है पर दसम बाणी ने इसनूं चरितरां दे राहीं बहुत विसथार विच समझाइआ है।

काम वास़ना नूं कटण दा टरीका गुरमति ने ग्रिहसत जीवन तिआगणा नहीं दसिआ, ग्रहिसत तिआगण नाल कुझ प्रापती नहीं होणी। गुरमति दा फुरमान है "कामु क्रोधु किलबिख गुरि काटे पूरन होई आसा जीउ॥३॥ – गुर अरथ गुणां ने इहनां नूं कटणा है। नाम दुआरा प्रापत सोझी नाल काम क्रोध अते कई होर रोग/विकार ठीक हुंदे हन।

परहरि काम क्रोधु झूठु निंदा तजि माइआ अहंकारु चुकावै॥ तजि कामु कामिनी मोहु तजै ता अंजन माहि निरंजनु पावै॥ तजि मानु अभिमानु प्रीति सुत दारा तजि पिआस आस राम लिव लावै॥ नानक साचा मनि वसै साच सबदि हरि नामि समावै॥२॥

काम तों छुटण दी विधी ग्रहिसत जीवन तिआगणा नहीं है। सरीर दे मोह, बंधन तिआग बन विच भज जाणा सौखा है पर विकार तिआगण लई मन जितणा पैंदा है। "अवगण तिआगि समाईऐ गुरमति पूरा सोइ॥। ग्रहिसत तिआग कोई बन विच पहुंच जांदा कोई तीरथ तुर जांदा गुरबाणी आखदी "काहे रे बन खोजन जाई॥ सरब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई॥१॥ अते "समझ न परी बिखै रस रचिओ जसु हरि को बिसराइओ॥ संगि सुआमी सो जानिओ नाहिन बनु खोजन कउ धाइओ॥१॥ आपणे अंदर जोत नूं खोजण दी जगह मारिआ मारिआ फिरदा जीव। कदे किसे तीरथ कदे किसे दूजे मनुख, देह धारी बाबिआं दे साधां दे चरनां विच। ना ता काम काबू हुंदा ना ही कोई होर विकार। जदों आदि बाणी विचों तत गिआन दी सोझी हो जावे तां दसम बाणी विचों चरितर समझणे ते विचारने ज़रूरी हन तां के पता लग सके के काम किवें किवें मनुख ते हावी हो सकदा है। बाणी दा उपदेस़ है "बन खंड जाइ जोगु तपु कीनो कंद मूलु चुनि खाइआ॥ नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ॥२॥। दसम बाणी विच वी महाराज आखदे हन "छत्री को पूत हौ बामन को नहि कै तपु आवत है जु करो॥ अरु अउर जंजार जितो ग्रिह को तुहि तिआगि कहा चित ता मै धरो॥ अब रीझि कै देहु वहै हम कउ जोऊ हउ बिनती कर जोरि करो॥ जब आउ की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझि मरो ॥२४८९॥"।

गुरमति दा फुरमान है "कामु क्रोधु मनि मोहु सरीरा॥ लबु लोभु अहंकारु सु पीरा॥ राम नाम बिनु किउ मनु धीरा॥२॥ अंतरि नावणु साचु पछाणै॥ अंतर की गति गुरमुखि जाणै॥ साच सबद बिनु महलु न पछाणै॥३॥ राम नाम (राम दी सोझी) तों बिनां मन नूं धीरज नहीं मिलदा पर अज दे सिख नूं राम दा पता ही नहीं है। राम कौण है ते उसदा नाम की है "गुरमति विच राम पड़्हो। नाम की है पड़ौ "नाम, जप अते नाम द्रिड़्ह किवें हुंदा?

सो जिहड़े आखदे हन के ग्रहिसत जीवन तिआग के कोई परमेसर दे जिआदा लागे हो जांदा है तां इह सरासर गलत है। काम वास़ना राजिआं दे हथिआर हुंदे सन इसतरीआं, कुड़ीआं (अपणीआं धीआं) , दासीआं ते सुंदरता नूं हथिआर बणा के दुस़मण मुहरे पेस़ करदे दी उहनां नूं काम राहीं आपणे वस करन दा ज़रीआ बणाउंदे सी, संधीआं करदे सी। वडे वडे तपी जिहड़े आखदे कई सौ साल तो अखां बंद कर तप कर रहे सी इसत्री ते काम दे मोह विच फस गए। वडे वडे सूरमे काम वास़ना दे स़िकार होए हन ते साडे कोल उदाहरण है सिख इतिहास विच वी आपणे निस़चे नूं छड के गुरू घर तों वी बाघी होए हन। पर खालसे ने जिसने आदि बाणी अते दसम बाणी पड़्ही होवे, समझी ते विचारी होवे उह नहीं फसदा काम वास़ना दे जाल विच। ग्रहिसत तिआगे बिनां उहनां काम वास़ना तों आपणे आप नूं दूर रखिआ है। महाराज आखदे हन "संनिआसी बिभूत लाइ देह सवारी॥ पर त्रिअ तिआगु करी ब्रहमचारी॥ मै मूरख हरि आस तुमारी॥२॥। दसम बाणी विच दरज अकाल उसतति विच पातिस़ाह आखदे हन "बिस्वपाल जगत काल दीन दिआल बैरी साल सदा प्रतपाल जम जाल ते रहत हैं॥ जोगी जटाधारी सती साचे बडे ब्रहमचारी धिआन काज भूख पिआस देह पै सहत हैं॥ निउली करम जल होम पावक पवन होम अधो मुख एक पाइ ठाढे न बहत हैं॥ मानव फनिंद देव दानव न पावै भेद बेद औ कतेब नेत नेत कै कहत हैं॥५॥७५॥ जिस दा अरथ बणदा अकाल दा भेद जप तप ब्रहमचारी जोग जटाधारण आदी नाल प्रापत नहीं होणा। "जैसे एक स्वांगी कहूं जोगीआ बैरागी बनै कबहूं सनिआस भेस बन कै दिखावई॥ कहूं पउनहारी कहूं बैठे लाइ तारी कहूं लोभ की खुमारी सौं अनेक गुन गावई॥ कहूं ब्रहमचारी कहूं हाथ पै लगावै बारी कहूं डंड धारी हुइ कै लोगन भ्रमावई॥ कामना अधीन परिओ नाचत है नाचन सों गिआन के बिहीन कैसे ब्रहम लोक पावई॥

सो भाई गुरमति दी विचार करो, गुरबाणी नूं समझो ते जीवन दा आधार बणाओ। अंन, ग्रहिसत तिआगण दी थां काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान आदी तिआगो गुरमति दी सोझी लै के। बाणी नूं पड़्ह के विचारो। दसम बाणी विच दसे चरितर पड़्ह के विचारो। बाणी केवल पड़्हिआं, रटिआं, सुणिआं ते गा के गल नहीं बणनी। बाणी नूं समझ के विचार के गुण प्रापत करने पैणे।

ॴ सतिगुर प्रसादि॥ रागु आसा छंत महला ४ घरु २॥ हरि हरि करता दूख बिनासनु पतित पावनु हरि नामु जीउ॥ हरि सेवा भाई परम गति पाई हरि ऊतमु हरि हरि कामु जीउ॥ हरि ऊतमु कामु जपीऐ हरि नामु हरि जपीऐ असथिरु होवै॥ जनम मरण दोवै दुख मेटे सहजे ही सुखि सोवै॥ हरि हरि किरपा धारहु ठाकुर हरि जपीऐ आतम रामु जीउ॥ हरि हरि करता दूख बिनासनु पतित पावनु हरि नामु जीउ॥१॥ हरि नामु पदारथु कलिजुगि ऊतमु हरि जपीऐ सतिगुर भाइ जीउ॥ गुरमुखि हरि पड़ीऐ गुरमुखि हरि सुणीऐ हरि जपत सुणत दुखु जाइ जीउ॥ हरि हरि नामु जपिआ दुखु बिनसिआ हरि नामु परम सुखु पाइआ॥ सतिगुर गिआनु बलिआ घटि चानणु अगिआनु अंधेरु गवाइआ॥ हरि हरि नामु तिनी आराधिआ जिन मसतकि धुरि लिखि पाइ जीउ॥ हरि नामु पदारथु कलिजुगि ऊतमु हरि जपीऐ सतिगुर भाइ जीउ॥२॥ हरि हरि मनि भाइआ परम सुख पाइआ हरि लाहा पदु निरबाणु जीउ॥ हरि प्रीति लगाई हरि नामु सखाई । भ्रमु चूका आवणु जाणु जीउ॥ कलिजुगु हरि कीआ पग त्रै खिसकीआ पगु चउथा टिकै टिकाइ जीउ॥ गुरसबदु कमाइआ अउखधु हरि पाइआ हरि कीरति हरि सांति पाइ जीउ॥ हरि कीरति रुति आई हरि नामु वडाई हरि हरि नामु खेतु जमाइआ॥ कलिजुगि बीजु बीजे बिनु नावै सभु लाहा मूलु गवाइआ॥ जन नानकि गुरु पूरा पाइआ मनि हिरदै नामु लखाइ जीउ॥ कलजुगु हरि कीआ पग । त्रै खिसकीआ पगु चउथा टिकै टिकाइ जीउ॥४॥४॥११॥ – हरि समझण लई पड़्हो "हरि


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