Source: ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ

गुर के चरन

गुरबाणी निराकार दी गल करदी है। उह निराकार अकाल मूरत जिसदा रूप रंग नहीं, जो माइआ दे सरीर विच फसिआ होइआ नहीं है। कई स़रधावान सिख नासमझी विच गुरूघर पोथी दे पीड़्हे घुटन लग जांदे हन ते बार बार पोथी नूं मथा टेक के ही खुस़ होई जांदे ने। बाणी पड़्हदिआं भरम हुंदा है जे तत गिआन ना होवे, गुरबाणी आखदी "गुर के चरन मन महि धिआइ॥ अते "चरन कमल सेवी रिद अंतरि गुर पूरे कै आधारि ॥३॥ पर भुल जांदे ने ते कोई दसण समझाउण वाला नहीं के साडा गुरू गिआन गुरू है "गिआन गुरू आतम उपदेसहु नाम बिभूत लगाओ ॥१॥, ते साडे लई समझणा लाज़मी हो जांदा है के गिआन गुरू दे चरन की हुंदे हन ते गिआन गुरू दी सेवा की है। गुरबाणी आखदी है "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥

चरन की हुंदे हन ?

गुरमति अनुसार चरन बाहर सरीर, बदेही वाले पैर नहीं हन। जे गुर दा अरथ समझ आ जावे तां चरन समझणा वी सौखा है। गुर हुंदा गुण। चरन हन गुणां दी छाप, गुणां दी छोह। चरन धूड़ है गुणां दी विचार तों प्रापत सोझी। इसदा भेद पता लगदा है बाणी आखदी "गुर चरनी लागि तरिओ भव सागरु जपि नानक हरि हरि नामा ॥४॥, "साचु नामु अंम्रितु गुरि दीआ हरि चरनी लिव लागे॥, "सगल भवन तेरी माइआ मोह॥ मै अवरु न दीसै सरब तोह॥ तू सुरि नाथा देवा देव॥ हरि नामु मिलै गुर चरन सेव॥१॥

चरन चलउ मारगि गोबिंद॥

चरन बधिक जन तेऊ मुकति भए ॥ (पंना ३४५) – जिहड़े स़बद नाल जुड़ जाण, जिहड़े गुरबाणी दे गुणां नूं धारन कर लैण। ‘चरन’ दा अरथ हिसा हुंदा है छाप है। ‘बधिक’ जिहड़ा इहनां नाल बझ जावे, धारन कर लवे।

"गुर के चरन रिदै परवेसा॥ रोग सोग सभि दूख बिनासे उतरे सगल कलेसा॥१॥ – हुण सोचण ते समझण वाली गल है के गुर के चरण हिरदे विच किवें परवेस करनगे जे सरीरिक चरन होण तां? चरन अलंकार हन गुणां दी सोझी दे। आम भास़ा विच लोक कह दिंदे हन के पुतर आपणे पिओ दे नकस़े कदमां ते चलदा है तां उदा इह भाव नहीं हुंदा के पुतर ने पिओ दे पैर कट के आपणे पैरां थले ला लए ने जां पिओ ने नकस़ा बणा दिता ते पुतर बस उस नकस़े ते ही चल रहिआ है। बलके भाव हुंदा के जिहो जही सोच, जिहो जहे गुण, जिहो जहे विचार पिओ दे हन उहो जहे पुतर दे हन। उसे तरह गुर (गुणां) तों प्रापत सोझी दी वरतो हर वेले होवे। उदाहरण सचे दा गुर (गुण) है निरवैरता, इस गुर दे चरन हन निरवैरता रखणा। सारिआं विच एक जोत वेखणा। निरवैर होणा, निरभउ होणा, गुर दे दसे मारग ते चलणा है। चरन चलणा दे कुझ उदाहरण गुरमति तों वेखदे हां

गुर के चरन मन महि धिआइ॥ छोडि सगल सिआणपा साचि सबदि लिव लाइ॥१॥ – सिआणपां चतिराईआं छडणा सचे दे हुकम विच लिव लाउणा धिआन रखणा ही गुर के चरनी चलणा है।

सिमरि सिमरि सिमरि सुखु पाइआ॥ चरन कमल गुर रिदै बसाइआ॥१॥ – सिमरन करना हुंदा है याद रखणा। गुर दे हुकम, गुरमति नूं सिमरिआं चेते रखिआं ही गुर (गुणां) दी सोझी हिरदे विच बस जांदी है। इस नाल होणा की है "गुर गोबिंदु पारब्रहमु पूरा॥ तिसहि अराधि मेरा मनु धीरा॥ मन विच धीरज पैदा हुंदा है सब पासे गोबिंद, परमेसर दा बिंद विखण लग जांदा है।

भ्रम की कूई त्रिसना रस पंकज अति तीखॵण मोह की फास॥ काटनहार जगत गुर गोबिद चरन कमल ता के करहु निवास॥१॥ – गुरमति ने भार दसे हन "हउमै मोह भरम भै भार॥ दूख सूख मान अपमान॥ ते महाराज कह रहे हन के भ्रम खूह वांग है, त्रसना दे रस दा लोभ उठदा मनुख नूं पर इह रसता बहुत कठिन है मोह दे फास विच बंन लैंदा है। ते इसनूं कटदा है गोबिद परमेसर दा गिआन परमेसर दा गुण। परमेसर दे गुणां दी विचार ते सोझी हिरदे विच वसौण दा आदेस़ कर रहे ने।

प्रभ के चरन मन माहि धिआनु॥ सगल तीरथ मजन इसनानु॥१॥ – प्रभ मूल दे गुणां दा मन विच धिआन ही गुरमख लई तीरथ इसनान वांग है।

चरन साध के धोइ धोइ पीउ॥ अरपि साध कउ अपना जीउ॥ साध की धूरि करहु इसनानु॥ साध ऊपरि जाईऐ कुरबानु॥ साध सेवा वडभागी पाईऐ॥ साधसंगि हरि कीरतनु गाईऐ॥ अनिक बिघन ते साधू राखै॥ हरि गुन गाइ अंम्रित रसु चाखै॥ ओट गही संतह दरि आइआ॥ सरब सूख नानक तिह पाइआ॥६॥ – इहनां पंकतीआं नूं पड़्ह के लगदा के साध दे चरन धो के पीणे हन। पर साध है कौण? किआ दुकान ला के लोकां नूं मुकती देण दा दावा करन वाला साध है। साध दी परिभास़ा गुरमति विच मिलदी है "ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ॥ मन नूं गिआन नाल साध लैण वाला ही साधू है जिसने मन विच उठण वाले फुरने काबू कर लए। साध बाहर नहीं अंदर ही है। साधिआ होइआ मन। जदों आपणा मन साध लिआ गिआन नाल, हरि दा नाम धिआ के हरिआ हो गिआ, उस साधे होए मनु दे चरनां दी गल हो रही है। जे इह समझ आइआ तां समझ लगणी के "कहु नानक नाम रसु पाईऐ साधू चरन गहउ॥

करि किरपा अपुने पहि आइआ॥ धंनि सु रिदा जिह चरन बसाइआ॥ चरन बसाइआ संत संगाइआ अगिआन अंधेरु गवाइआ॥ भइआ प्रगासु रिदै उलासु । प्रभु लोड़ीदा पाइआ॥ दुखु नाठा सुखु घर महि वूठा महा अनंद सहजाइआ॥ कहु नानक मै पूरा पाइआ करि किरपा अपुने पहि आइआ॥ – इह सारी गल गिआन दी नाम दी प्रापती दी होई है किसे बाहरले संत ते संग दी नहीं हुंदी।

दसम बाणी विच वी पातिस़ाह इही समझा रहे ने के दुनिआवी लोकां, मूरतीआं, देवी देवते छडो ते अकाल,काल, हुकम दे गुणां वल धिआन करो। "बिन हरि नाम न बाचन पैहै॥ चौदहि लोक जाहि बस कीने ता ते कहां पलै है॥१॥ रहाउ॥ राम रहीम उबार न सकहै जा कर नाम रटै है॥ ब्रहमा बिसन रुद्र सूरज ससि ते बसि काल सबै है॥१॥ बेद पुरान कुरान सबै मत जा कह नेत कहै है॥ इंद्र फनिंद्र मुनिंद्र कलप बहु धिआवत धिआन न ऐहै॥२॥ जा कर रूप रंग नहि जनियत सो किम स्याम कहै है॥ छुटहो काल जाल ते तब ही । तांहि चरन लपटै है॥३॥२॥१०॥ बिनां हरि दे नाम दी सोझी तों भवसागर तों नहीं छुटणा। आह जिहड़े देवी देवते हन राम रहीम जिहनां दे नाम रटदे हों उबार नहीं सकदे। भावें जितना मरजी बेद पड़्ह लवो कुरान पड़्ह लवो बिनां सोझी दे कोई उबार नहीं सकदा। जिसदा कोई रूप रंग नहीं नो त्र गुण माइआ तों भिंन है उसनूं सिआम कह लवो जां कुझ होर। काल दे जाल तों ताहीं छुटिआ जाणा जदों अकाल दे चरनी पए। ते जे चरन पता ही नहीं है तां फेर मथे ही टेके जाणे बस गुणां दी विचार नहीं होणी। "संत जना का छोहरा तिसु चरणी लागि॥ माइआधारी छत्रपति तिन॑ छोडउ तिआगि॥१॥ – जे संत बाहर लभणे फेर गल इह वी समझ नहीं लगणी।

ताप पाप ते राखे आप॥ सीतल भए गुर चरनी लागे राम नाम हिरदे महि जाप॥१॥ रहाउ॥ करि किरपा हसत प्रभि दीने जगत उधार नव खंड प्रताप॥ दुख बिनसे सुख अनद प्रवेसा । त्रिसन बुझी मन तन सचु ध्राप॥१॥ – इथे राम राम रटण नूं नहीं आखिआ जा रहिआ। पातिस़ाह आखदे हिरदे विच राम दा नाम (सोझी) जाप (पछान कर)। लोक राम राम रटण नूं जाप आखदे सी पातिस़ाह आखदे "राम रहीम उबार न सकहै जा कर नाम रटै है॥ अते "रामु रामु करता सभु जगु फिरै रामु न पाइआ जाइ॥ अगमु अगोचरु अति वडा अतुलु न तुलिआ जाइ ॥"। जप (पहिचान) तां उसदे गुणां नूं विचारन नाल हौ होणी। ताहीं जप बाणी विच नानक पातिस़ाह ने इको स़बद नहीं बार बार लिखिआ बलके अकाल दे गुणां तों स़ुरू करके अकाल दे गुण ही समझाए हन।

बाणी नूं पड़्हन लगिआ जे अकाल, काल, हुकम, मूल दे गुण चेते रहण जो सानूं बाणी दस रही है, गुण विचारे जाण तां असीं बाणी दे सही अरथ गुरबाणी विचों ही खोज सकदे हां। गुरबाणी दा फुरमान है "गुण वीचारे गिआनी सोइ॥ गुण महि गिआनु परापति होइ॥। गुणां दी विचार तों ही अवगुण धोते जाणे ने "गुण वीचारी गुण संग्रहा अवगुण कढा धोइ॥। धिआन अंदर घट विच वसदे हरि दा रहे जो गिआन तों प्रापत सोझी नाल हरिआ होइआ है, राम जो गुरमति गिआन विच रमिआ होइआ है, कदे मरदा नहीं अकाल रूप जोत है। तुहानूं पखंडी साध, गोलक ते प्रचारकां कोल जाण दी लोड़ नहीं पैणी। जिहड़े कथा कहाणीआं, इतिहास सुणा के, दुनिआवी पदारथां दीआं अरदासां कर करा के तुहाडा धिआन गुरमति गिआन तों दूर रखदे ने उहनां कोलों तुहानूं गुरमति दी सोझी नहीं प्रापत होणी। "बेद कतेब सिम्रिति सभि सासत इन॑ पड़िआ मुकति न होई॥ एकु अखरु जो गुरमुखि जापै तिस की निरमल सोई॥३॥ अखर (ना खरन वाला समझणा पैणा कौण है। पड़्हो "अखर अते अखर। चेते रहे "पड़िऐ नाही भेदु बुझिऐ पावणा॥


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