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धरम

गुरबाणी अनुसार धरम की है? सब तों स्रेस़ट / उतम धरम किहड़ा है? सिख दा धरम की है? धरम अते religion विच कोई फरक है जां दोवें इको ही हन? धरम दे नाम ते लड़ाई किउं हुंदी? इहनां बारे गुरमति तों खोज करीए।

Religion दी परिभास़ा है "the belief in and worship of a superhuman power or powers, especially a God or gods. a particular system of faith and worship.", रिलिजन ता बिलीफ सिसटम है, विस़वास जां स़रधा दा विस़ा है। मनुख ने जिसनूं देखिआ नहीं, जाणदा नहीं समझदा नहीं अंनी स़रधा विच उह कंम करदा है जो उसनूं गिआन तों, सोझी तों दूर रखदे हन। वख वख स़रधा कारण लोकां ने मारग वखरे वखरे बणा लए। जितनी तरह दी स़रधा उतने वखरे मारग, फेर धिड़े बंदीआं, जथे, जिहनां विच वी होर निके निके जथे ते ग्रुप बणी जांदे ने। मुसलमान मुसलम इमान = इमान दा पका होण दा मारग सी उहनां विच वंड है स़रधा कारण। इसाई मति विच सैकड़िआ धिड़े बण गए, हिदूआं विच वी कई धिड़े बण गए, सिख (सिखण) वाले तों कदों रिलिजन बण गिआ सिखां नूं पता ही नहीं लगिआ ते कदों इस विच कई धिड़े बण गए ते बणी जा रहे ने इसदा पता ही नहीं लग रहिआ। सारिआं विच इक होड़ है आपणे नंमबर आपणी गिणती वधाउण दी।

किआ धरम दी वी इही परिभास़ा है। जे है तां पुत्र धरम, पती धरम, इसत्री धरम, राज धरम दी गल हुंदी रही है उह किउं? धरम दे विच स़रधा दी थां नहीं हुंदी। धरम दा अरथ हुंदा फ़रज़। जे राज करना है तां राज किवें करिआ जांदा है सिखणा पैणा होर कोई राह नहीं। पुतर नूं आपणे फ़रज़ पूरे करन लई समझणा पैणा के मां बाप नूं की चाहीदा ते सेवा किवें करनी है। अखां बंद करके, धूफ़ बती करके ना राज चलणा, ना घर, ना ग्रहसती जीवन। इह सब दुनिआवी आचार बिउहार है। संसार विच विचरण दी विधी तां के संसारी कारज बखूबी चलदे रहण।

मनुखा धरम इहनां सारिआं धरमां तों उपर है। संसार विच सारे कारज करदिआं सही दिस़ा विच सुखी जीवन चलदा रहे आनंद दी अवसथा बणी रहे इस लई किहड़ा धरम है? गुरमति दी द्रिसटी विच धरम की है? अधिआतम दे मारग ते पूरी मनुख जाती दा इको धरम है उह किहड़ा है?

सरब धरम महि स्रेसट धरमु॥ हरि को नामु जपि निरमल करमु॥ – इह गुरमति दा ब्रहम गिआन दा फुरमान है के सब तों वडा धरम है हरि दा नाम (गिआन/सोझी) जपि – जपदिआं (पहचान करदिआ समझदिआ) आपणे करम निरमल ( निर मल – मल रहित) विकार रहित करना। काम क्रोध लोभ मोह अहंकार ईरखा द्वेस़ झूठ निंदा चुगली आदी विकार छड हुकम दी सोझी लैणा। इह पूरी मानवता नूं आदेस़ है। एक (एकता) दे सूत विच परो के सारिआं नूं समान समझणा। "ऊठत बैठत हरि जापु॥ बिनसै सगल संतापु॥ बैरी सभि होवहि मीत॥ निरमलु तेरा होवै चीत॥२॥ सभ ते ऊतम इहु करमु॥ सगल धरम महि स्रेसट धरमु॥हरि सिमरनि तेरा होइ उधारु॥ जनम जनम का उतरै भारु॥३॥ पूरन तेरी होवै आस॥ जम की कटीऐ तेरी फास॥ गुर का उपदेसु सुनीजै॥ नानक सुखि सहजि समीजै॥ – गिआन, सोझी अरथ नाम दी प्रापती तां सारे संताप सारे दुख दूर करदी है। हुकम दी सोझी सारिआं विच एक जोत दा आभास सारिआं नूं आपणे मीत बणा दिंदी है। इही "अमुलु धरमु धरम है नानक पातिस़ाह दा दसिआ मारग। इही समझाइआ है "धरम खंड का एहो धरमु॥ गिआन खंड का आखहु करमु॥

कबीरा जहा गिआनु तह धरमु है जहा झूठु तह पापु॥ जहा लोभु तह कालु है जहा खिमा तह आपि॥ – हुण इसतों सपस़ट होर की हो सकदा है।

पर मनुख गिआन छड की करदा? स़रधा विच आपणे मन दी मरजी करन लग पैंदा, गिआन तों भजदा। "अंम्रितु छोडि बिखिआ लोभाणे सेवा करहि विडाणी॥ आपणा धरमु गवावहि बूझहि नाही अनदिनु दुखि विहाणी॥ मनमुख अंध न चेतही डूबि मुए बिनु पाणी॥। अंम्रित की है नहीं जाणदा "अंम्रितु हरि का नामु है जितु पीतै तिख जाइ॥। गुर दी सेवा नहीं करदा ते सच धरम गवा लैंदा है हरि दा नाम नहीं जपदा (पछाणदा) हउमे विच वाधा करदा। "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ हउमै मारे करणी सारु ॥७॥"

जिहनां दा विस़ा अधिआतम है spirituality है उहनां लई कहिआ "अधिआतमी हरि गुण तासु मनि जपहि एकु मुरारि॥ तिन की सेवा धरम राइ करै धंनु सवारणहारु॥२॥

पातिस़ाह आखदे "मै बधी सचु धरम साल है॥ गुरसिखा लहदा भालि कै॥ – सचु दी धरमसाल है हुकम दे गिआन दी सिखिआ देण वाली पाठस़ाला। जग रचना झूठ है बिनस जांदी है "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति॥४९॥" – जग रचना रेते दी कंध वांग है बिनस जआदी है। सच है सदीव रहण वाला परमेसर दा नाम (गिआन), उसदा हुकम। इह सच धरम दी धरमसाल, गुणां नूं मुख रखण वाला लभ लैंदा है।

नानक गुरु संतोखु रुखु धरमु फुलु फल गिआनु॥ रसि रसिआ हरिआ सदा पकै करमि धिआनि॥ पति के साद खादा लहै दाना कै सिरि दानु॥१॥ – गुर दा अरथ हुंदा गुण, गुरु गुणां दा धारणी, गुरू गुण देण वाला। संतोख दा धारणी गुरु है, जो धरम (सच) दे रुख वांग है जिसते गिआन दे फुल फल लगदे हन। इस विच नाम (सोझी) दा अंम्रित रस भरिआ हुंदा ते पकण ते द्रिड़ होण ते करम (परमेसर दी दया) नाल हुकम वल धिआन रहिंदा है।

इसु जुग महि राम नामि निसतारा॥ विरला को पाए गुर सबदि वीचारा॥ आपि तरै सगले कुल उधारा॥३॥ इसु कलिजुग महि करम धरमु न कोई॥ कली का जनमु चंडाल कै घरि होई॥ नानक नाम बिना को मुकति न होई॥"

जो तुधु भावै सो निरमल करमा॥ जो तुधु भावै सो सचु धरमा॥ सरब निधान गुण तुम ही पासि॥ तूं साहिबु सेवक अरदासि॥३॥ – निरमल करम, निरमल हुंदा मल रहित, विकार रहित, प्रभ नूं की भाउंदा है? जो उसनूं भाउंदा है उसदे अनुसार उह हुकम करदा है। सो जो उसदा हुकम है उही सच है ते उही होणा किउंके सानूं पता है के "हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ॥ फेर आह दुनिआवी धरम जो असीं मंने बैठे हां उह सच धरम नहीं हो सकदे। ताहीं गुरमति दा आदेस़ है के सारे भरम नास होण मनुख दे नाम (सोझी) होवे हुकम दा तां ही सच धरम अटल है "तजि सभि भरम भजिओ पारब्रहमु॥ कहु नानक अटल इहु धरमु॥। दुनिआवी मंने होए धरम स़रधा केवल मनुख दे घड़े होए ने "करम धरम नेम ब्रत पूजा॥ पारब्रहम बिनु जानु न दूजा॥ ना नानक पातिस़ाह ने सिखी धरम बणाइआ, सिखण दा धरम तां आदि तों है भगत जन, केते प्रहलाध जन होए ने सारे ही सिख सन, ना मुहमद जी ने इसलाम/ मुसलमान धरम चलाइआ मनुख नूं इमान दा मुसलम /मुकमल/ पूरॲ होणा तां आदि तों ही आदेस़ है अलाह दा, यहूदी, इसाई आदि जितने वी अज मंने जाण वाले धरम हन इहनां दे पीर पैगंबर केवल सच दे राह ते चलण नूं ही आखदे रहे ने। उहनां दे जाण तों बाद ही दुनिआवी लोकां ने दूजिआं नूं इहनां पैगंबरां दा, अलाह दे पुतरां दा नाम वरत के भीड़ ही कठी करन दा कंम कीता है गोलक लई, पर उहनां दा संदेस़ सच दे राज दा, सच धरम दा भुल ही गए हन।

जुगि जुगि आपो आपणा धरमु है सोधि देखहु बेद पुराना॥ गुरमुखि जिनी धिआइआ हरि हरि जगि ते पूरे परवाना॥३॥

बिनु गुर गरबु न मेटिआ जाइ॥ गुरमति धरमु धीरजु हरि नाइ॥ नानक नामु मिलै गुण गाइ॥

इसु जुग का धरमु पड़हु तुम भाई॥ पूरै गुरि सभ सोझी पाई॥ ऐथै अगै हरि नामु सखाई॥१॥

ना हम करम न धरम सुच प्रभि गहि भुजा आपाइओ॥४॥भउ खंडनु दुख भंजनो भगति वछल हरि नाइओ॥५॥

"हरि पहिलड़ी लाव परविरती करम द्रिड़ाइआ बलि राम जीउ॥ बाणी ब्रहमा वेदु धरमु द्रिड़हु पाप तजाइआ बलि राम जीउ॥ धरमु द्रिड़हु हरि नामु धिआवहु सिम्रिति नामु द्रिड़ाइआ॥ सतिगुरु गुरु पूरा आराधहु सभि किलविख पाप गवाइआ॥ सहज अनंदु होआ वडभागी मनि हरि हरि मीठा लाइआ॥ जनु कहै नानकु लाव पहिली आरंभु काजु रचाइआ॥१॥" – वेद धरम द्रिड़ करण दा आदेस़ सी। वेद धरम सच धरम है। वेद दा अरथ book, किताब जां उह थां जिथे गिआन होवे। इही हरि दा नाम, नाम (सोझी) होणा ही धरम द्रिड़ करना है। सिम्रित दा अरथ हुंदा आपणी सुरत विच चेते रखणा। चेते रखणा ही नाम (सोझी) द्रिड़ करना है जिस नाल सहज अनंद दी प्रापती हुंदी है।

धरम नूं धंदा, धरम दे नाम ते माइआ दा वापार, धरम नूं लोकां नूं वंडण दी थां सच धरम दा प्रचार किसे ने नहीं करना। गुरमति दा नाम वरत के वी किहड़ा धरम चंगा किहड़ा मंदा बस इही वीचार करदे अज सारे। जे गुरमति दी विचार होवे तां सारे ही आपणे दिसणे। कोई धरम चंगा माड़ा नहीं दिसणा ते सारिआं नाल प्रेम भावना पैदा होणी। इस लई ज़रूरी है के गुरमति दी विचार कीती जावे। भगतां ने गुरुआं ने इही कीता तां ही सारे दुनिआवी धरमां नूं मंनण वाले गुरुआं दे नाल प्रेम करदे सी, नाल जंगां वी लड़ीआं। जिहड़े धरम दा वापार करदे सी उह हमेस़ा विरोध करदे रहे। सच धरम नूं पछाणन वाले विरले ही रहे ने।

परमेसर दा हुकम, परमेसर दा गिआन ही सच धरम है "जो तुधु भावै सो निरमल करमा॥ जो तुधु भावै सो सचु धरमा॥ सरब निधान गुण तुम ही पासि॥ तूं साहिबु सेवक अरदासि॥३॥ जो उसनूं भाउंदा है उह उही हुकम चलाउंदा है। दुनिआवी पाखंड तां छडण दा आदेस़ है गुरमति विच "करम धरम नेम ब्रत पूजा॥ पारब्रहम बिनु जानु न दूजा॥२॥। इह सब छड के नाम(सोझी) दी गल करदे ने पातिस़ाह "इसु जुग का धरमु पड़हु तुम भाई॥ पूरै गुरि सभ सोझी पाई॥ ऐथै अगै हरि नामु सखाई॥१॥

नाहिन गुनु नाहिन कछु बिदिआ धरमु कउनु गजि कीना॥ नानक बिरदु राम का देखहु अभै दानु तिह दीना॥

ना तिसु गिआनु न धिआनु है ना तिसु धरमु धिआनु॥ विणु नावै निरभउ कहा किआ जाणा अभिमानु॥

इसु जुग का धरमु पड़हु तुम भाई॥ पूरै गुरि सभ सोझी पाई॥ ऐथै अगै हरि नामु सखाई॥१॥

असीं दान, भोजन दे लंगर लौण, सोना दान करन नूं सिखी मंन लिआ इस बारे पातिस़ाह आखदे "धनवंता होइ करि गरबावै॥ त्रिण समानि कछु संगि न जावै॥ बहु लसकर मानुख ऊपरि करे आस॥ पल भीतरि ता का होइ बिनास॥ सभ ते आप जानै बलवंतु॥ खिन महि होइ जाइ भसमंतु॥ किसै न बदै आपि अहंकारी॥ धरम राइ तिसु करे खुआरी॥ गुर प्रसादि जा का मिटै अभिमानु॥ सो जनु नानक दरगह परवानु॥२॥, "करम धरम जुगति बहु करता करणैहारु न जानै॥

"आसा मनसा बंधनी भाई करम धरम बंधकारी॥ पापि पुंनि जगु जाइआ भाई बिनसै नामु विसारी॥ इह माइआ जगि मोहणी भाई करम सभे वेकारी॥१॥

तीरथ नाइ न उतरसि मैलु॥ करम धरम सभि हउमै फैलु॥ लोक पचारै गति नही होइ॥ नाम बिहूणे चलसहि रोइ॥

निउली करम भुइअंगम भाठी॥ रेचक कुंभक पूरक मन हाठी॥ पाखंड धरमु प्रीति नही हरि सउ गुरसबद महा रसु पाइआ॥

जिनि आतम ततु न चीनि॑आ॥ सभ फोकट धरम अबीनिआ॥ कहु बेणी गुरमुखि धिआवै॥ बिनु सतिगुर बाट न पावै॥५॥१॥ – सचे दे गुणां नूं विचारे, प्रापत कीते बिने बाट ना पावे, सही राह दा पता नहीं लगणा।

मनमुखि माइआ मोहु है नामि न लगै पिआरु॥ कूड़ु कमावै कूड़ु संघरै कूड़ि करै आहारु॥ बिखु माइआ धनु संचि मरहि अंति होइ सभु छारु॥ करम धरम सुचि संजमु करहि अंतरि लोभु विकार॥नानक मनमुखि जि कमावै सु थाइ न पवै दरगह होइ खुआरु॥

असीं चिटे कपड़िआं नूं, पग, दुमाले बाणे नूं धरम मंन लिआ। सवेरे उठ के ही पाठ करन नूं धरम मंन लिआ पर गिआन तों भजदे रहे, बाणी दा फुरमान है "आचारी नही जीतिआ जाइ॥ पाठ पड़ै नही कीमति पाइ॥ असट दसी चहु भेदु न पाइआ॥ नानक सतिगुरि ब्रहमु दिखाइआ॥, सति गुर (सचे दे गिण) ने ही ब्रहम दिखाउणा घट विच ही हरि दी मूरत जोत दिखाउणी।

बेद सासत्र जन धिआवहि तरण कउ संसारु॥ करम धरम अनेक किरिआ सभ ऊपरि नामु अचारु॥२॥ – नाम आचार हुंदा सोझी, गिआन दा आचरण। दुनिआवी आचर कंम नहीं आउंदा। लोकां नूं दिखावा करके आचरण रखिआं मगर लाइआ जा सकदा पर परमेसर नूं नहीं। पंचम पातिस़ाह आखदे "माई मेरे मन की प्रीति॥ एही करम धरम जप एही राम नाम निरमल है रीति॥ रहाउ॥प्रान अधार जीवन धन मोरै देखन कउ दरसन प्रभ नीति॥

गुरमुख ने धरती (हिरदे) विच अंम्रित (नाम/ सोझी/गिआन) दा बूटा लाउणा है "सतिगुरु धरती धरम है तिसु विचि जेहा को बीजे तेहा फलु पाए॥ गुरसिखी अंम्रितु बीजिआ तिन अंम्रित फलु हरि पाए॥ ओना हलति पलति मुख उजले ओइ हरि दरगह सची पैनाए॥ इकन॑ा अंदरि खोटु नित खोटु कमावहि ओहु जेहा बीजे तेहा फलु खाए॥। मनुख दा हिरदा ही सच धरम है "इहु सरीरु सभु धरमु है जिसु अंदरि सचे की विचि जोति॥ जिस विच जोत, परमेसर दा बिंद वसदा। हिरदे नूं ही मंदर बणा के गिआन दी मूरत घड़नी सी "हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ ॥ जिस नाल सच धरम साल हिरदे विच ही बण सके। पर साडा धिआन सारा बाहर नूं है।

सच (हुकम/सोझी) धरम आदि तों चल रहिआ है जो अकाल ने आप थापिआ "नानक जीअ उपाइ कै लिखि नावै धरमु बहालिआ॥ ओथै सचे ही सचि निबड़ै चुणि वखि कढे जजमालिआ॥, सच दे इलावा कुझ वी होर धरम मंनणा ही मनुख लई दोज़ख (नरक) है। विकारां दी अग है।

धीरजु धरमु गुरमति हरि पाइआ नित हरि नामै हरि सिउ चितु लावै॥ अंम्रित बचन सतिगुर की बाणी जो बोलै सो मुखि अंम्रितु पावै॥२॥ निरमलु नामु जितु मैलु न लागै गुरमति नामु जपै लिव लावै॥ नामु पदारथु जिन नर नही पाइआ से भागहीण मुए मरि जावै॥३॥

हरि हरि करत मिटे सभि भरमा॥ हरि को नामु लै ऊतम धरमा॥ हरि हरि करत जाति कुल हरी॥ सो हरि अंधुले की लाकरी॥१॥ – इहनां पंकतीआं नूं पड़्ह के कईआं नूं लगणा के हरि हरि ही उचारी जाण नूं कहिआ गिआ है। पर इथे हरि दे गिआन नूं समझण दी गल हो रही है।

तेरा वखतु सुहावा अंम्रितु तेरी बाणी॥ सेवक सेवहि भाउ करि लागा साउ पराणी॥ साउ प्राणी तिना लागा जिनी अंम्रितु पाइआ॥ नामि तेरै जोइ राते नित चड़हि सवाइआ॥ इकु करमु धरमु न होइ संजमु जामि न एकु पछाणी॥ वखतु सुहावा सदा तेरा अंम्रित तेरी बाणी॥३॥

सतु संतोखु दइआ धरमु सीगारु बनावउ॥ सफल सुहागणि नानका अपुने प्रभ भावउ॥ – उही सुहागण जो नाम/ गिआन/सोझी दी धारणी हंकार अते विकार रहित बुध है सफल है प्रभ (हरि) नूं भाउंदी है जिसने सतु (हुकम दी सोझी), संतोख (इह समझ के संतुस़टी है के सब हुकम विच हो रहिआ), दइआ दे धरम नूं सिगार बणाइआ है।

गुरमति दा आदेस़ है के हुकम मंन के सच धरम नूं पठापत कीता जावे। गुरमति विचार राहीं। गुरबाणी पड़्हदिआं समझदिआं सानूं सच धरम अरथ हुकम दी सोझी प्रापत होणी जिस नाल साडा जीवन सुखी किवें होवे पता लगे। बाणी पड़्हो समझो विचारो ते सच धरमी बणो। "निरगुणु मुगधु अजाणु अगिआनी करम धरम नही जाणा॥ दइआ करहु नानकु गुण गावै मिठा लगै तेरा भाणा॥


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