Source: ਅਖੰਡ ਅਤੇ ਸਹਜ

अखंड अते सहज

अखंड कीरतन, अखंड पाठ, सहज पाठ अते सहज धारी इहो जिहे कई ल़फ़ज़ सिख आम वरतो करदे हन। किसे दे सिर ते केस ना होण जां कोई केस कटदा होवे उसनूं सहज धारी आख दिता जांदा है। गुरमति अखंड किसनूं आखदी अते सहज की है इह कदे गुरमति तों समझण दी लोड़्ह नहीं पई किसे नूं। कुझ दिन पहिलां किसे नाल इस बारे गल हुंदी सी तां इह विचार बणी के अखंड अते सहज बारे गुरमति जो आखदी है उस बारे खोज करके लिखिआ जावे। गुरमति विच अखंड दी वरतो की समझाउण लई कीती है विचार करदे हां। अखंड आदि बाणी विच कुल ८ वार आइआ है।

जिन कउ सतिगुरि थापिआ तिन मेटि न सकै कोइ॥ ओना अंदरि नामु निधानु है नामो परगटु होइ॥ नाउ पूजीऐ नाउ मंनीऐ अखंडु सदा सचु सोइ॥३॥ – सच है अकाल जो कदे बदलदा नहीं उह सदा थिर है, अजर है जरदा नहीं, अखर है खरदा नहीं, अमर है कदे मरदा नहीं। नाउ (नाम) है उसदा गिआन उसदी सोझी जो हमेस़ा थिर है अखंड है खंडित नहीं हुंदा। इह नहीं के कुझ समे लई है ते फेर ना होवे। उह है सी ते रहेगा ॳह "थापिआ न जाइ कीता न होइ॥ आपे आपि निरंजनु सोइ॥ बाकी जग रचना, मनुख, माइआ, विकार बिनस जांदे हन इस लई इहनां नूं गुरमति झूठ आखदी है "जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत॥ कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति ॥४९॥"। प्रभ/ठाकुर घट अंदरली जोत, हर जीव दे अंदर वसदी जोत नूं परमेसर ने आप थापिआ है जदों सरीर (बदेही) दा नास हो जांदा है तां जोत (देही) नहीं खरदी। घट अंदर ही सारिआं नूं नाम (सोझी) दा अंम्रित मिलिआ है जिसनूं नाम (सोझी) नाल ही प्रगट करना है "बीज मंत्रु सरब को गिआनु॥ चहु वरना महि जपै कोऊ नामु॥ इसनूं पछाणदा कोई कोई विरला ही है। जो प्रापत कर लै दा है "जो जो जपै तिस की गति होइ ॥"

गुरि सुभ द्रिसटि सभ ऊपरि करी॥ जिस कै हिरदै मंत्रु दे हरी॥ अखंड कीरतनु तिनि भोजनु चूरा॥ कहु नानक जिसु सतिगुरु पूरा॥ – सारिआं उपर परमेसर दी नज़र है ते सैल पथर विच वसदे जंतां तक उसदा हुकम निरंतर चलदा। जिसदे हिरदे विच हरि दा मंत्र/नाम/सोझी है उह अखंड (सदीव) रहण वाला कीरतन (कीरती) करदा। हुकम मंनणा नाम उसदा भोजन है "ब्रहम गिअानी का भोजनु गिआन॥। जिवें जीव दी खुराक अंन है मास है उदां ही मनु दी खुराक नाम (सोझी) है। इह हुकम मंनण दा गुण प्रापत उसनूं ही होणा जिस विच सचे दा पूरा गुण होवे।

बार बार हरि के गुन गावउ॥ गुर गमि भेदु सु हरि का पावउ॥१॥ रहाउ॥ आदित करै भगति आरंभ॥ काइआ मंदर मनसा थंभ॥ अहिनिसि अखंड सुरही जाइ॥ तउ अनहद बेणु सहज महि बाइ॥१॥ – गुण गाउणा की है कीरतन की है समझण लई पोसट पड़ौ "कीरतन अते गुण किवें गउणे हन। जो गुण गाइण करदा है हुकम विच रहिंदा है उसदे अंदर भगती अरंभ हुंदी है। इह उह अवसथा है जदों मन मर जांदा ते विकार काबू विच हो जांदे हन "मन मारे बिनु भगति न होई ॥२॥ मनसा थम जांदी है रुक जांदी है। सुरत अखंड रहिंदी लिव हुकम विच रहिंदी है। फेर खंडित नहीं हुंदी।

नानक दास ता की सरनाई जा को सबदु अखंड अपार॥ – सबदु (परमेसर दा हुकम) अखंड है, कदे नहीं खतम हुंदी, रुकदा नहीं, अनहद है, ते नानक पातिस़ाह कह रहे ने के मैं उसदा दास हां। इही गल दसम बाणी विच दसम पातिस़ाह ने कही है "मै हो परम पुरख को दासा॥ अते "आदि अंति एकै अवतारा॥ सोई गुरू समझियहु हमारा ॥३८५॥"। कई वीर भैणां स़रदा विच गुसा वी कर सकदे हन के नानक किवें दास हो सकदा है। नानक पातिस़ाह आप कह रहे ने "ऐ जी ना हम उतम नीच न मधिम हरि सरणागति हरि के लोग॥ नाम रते केवल बैरागी सोग बिजोग बिसरजित रोग ॥१॥"

बेद पुरान सासत्र आनंता गीत कबित न गावउगो॥ अखंड मंडल निरंकार महि अनहद बेनु बजावउगो॥१॥ बैरागी रामहि गावउगो॥ सबदि अतीत अनाहदि राता आकुल कै घरि जाउगो॥१॥ कितने ही बेद पुरान सासत्र हन, अनंत हन इह सारे गीत (गाइन) नहीं करदे इहनॳां विचला निरंकार दा गिआन हुकम मंनण लई ला सकदा है जो के गुण गाइन है। जदों सुरत हुकम विच रम जावे उही अनहद बेन बजाउणा है। बैरागी कौण जिसने हुकम मंन लिआ, मन मार के भगती कर रहिआ है "भगती रता सदा बैरागी आपु मारि मिलावणिआ॥ हुण उह राम दे ही गुण गा रहिआ है।

"अटल अखंड प्राण सुखदाई इक निमख नही तुझु गाइओ॥४॥ जहा जाणा सो थानु विसारिओ इक निमख नही मनु लाइओ॥५॥ – परमेसर ते उसदा हुकम अटल है पर इसदा हुकम इक पल नहीं गाइओ (मंनिआ)। सारी स्रिसटी हर पल हुकम मंन के उसदे गुण गा रही है ते असीं वाजे ढोलकी नूं मूह तों गाउण नूं कीरतन मंन लिआ। उह मूह तों गाणा कीरतन नहीं मंनदा। उसदे हुकम विच चलणा ही उसदा कीरतन है। "कोई गावै रागी नादी बेदी बहु भाति करि नही हरि हरि भीजै राम राजे॥ जिना अंतरि कपटु विकारु है तिना रोइ किआ कीजै॥ हरि करता सभु किछु जाणदा सिरि रोग हथु दीजै॥ जिना नानक गुरमुखि हिरदा सुधु है हरि भगति हरि लीजै ॥४॥११॥१८॥" हिरदा सुध करना पैणा अरथ काम क्रोध लोभ मोह अहंकार आदी विकार छडणे पैणे। बस मंत्रां वाग जां झूठा बाहरी दिखावा करके जां कहण मात्र नाल के "जेता समुंदु सागरु नीरि भरिआ तेते अउगण हमारे॥ नाल गल नहीं बणनी। गुरमति विचार करके गुणां दी विचार राहीं ही विकारां ते अखंड काबू हो सकदा उह वी उदों जे उसदी नदर होवे तां जा के "अखंड मंडल निरंकार महि अनहद बेनु बजावउगो ॥१॥

प्रभि दास रखे करि जतनु आपि॥ अखंड पूरन जा को प्रतापु॥ गुण गोबिंद नित रसन गाइ॥ नानकु जीवै हरि चरण धिआइ॥

जोग जुगति गिआन भुगति सुरति सबद तत बेते जपु तपु अखंडली॥ओति पोति मिलि जोति नानक कछू दुखु न डंडली॥

अखंड पाठ कोई दूजा साडे लई करे तां सानूं गुरमति दी सोझी नहीं मिलणी। जिवें सकूल जाण वाला बचा कहे के मेरी थां कोई होर बह के पड़्ह लवे ते मैं टी वी वेख लवां, तुसीं उस बचे नूं की कहोंगे। गुरमति कोई मंत्र उचारण नहीं है के पैसे दे के जां तुसीं किसे दूजे मनुख नूं रौल देके पाठ करा लिआ ते तुहानूं गुरमति दा गिआन मिल जावे जां सोझी हो जावे। अखंड पाठ उहनां स़ुरू कीता जो गुरमति दा गिआन रखदे सी ते जंग ते जाण तों पहिलां पड़्ह के फेर आपणे आप नूं चेते कराउंदे सी के जो होणा हुकम विच होणा। हुण लोकां इसनूं पैसे कमाउण दा जरीआ बणा लिआ है। हाल इह है के लोक अखंड पाठ रखाउंदे हन पर पाठी सिंघ नहीं मिलदे। गुरूघरां दीआं कमेटीआं लोकां तों पैसे पूरे लैके वी पाठीआं नूं पैसे नहीं दिंदे। कुझ साल पहिलां मैं बंबई गिआ होइआ सी किसे दी मौत तों बाद अखंड पाठ रखिआ होइआ सी। पाठी सिंघ बैल वजाई जावे, ४-५ घंटे तों बैठा सी। बाथरूम जाणा सी ते थक वी बहुत गिआ सी बजुरग। अगले पाठी ने हाजरी नहीं लाई। जदों फोन कीते घर दे मैंबर नूं पाठ करन लई बिठाइआ तां बजुरग पाठी तों पता लगा कमेटी अधे पैसे वी पाठी नूं नहीं दे रही ते अगले वी घट पैसे दे कारण आ नहीं रहे। दूजी जगह तों सिंघां नूं कठा करना पिआ जिवें तिवें अखंड पाठ संमपूरण होइआ। अज दे हालात इह हन के घर दे मैंनर बाणी दी इक पंकती वी आप नहीं पड़ सकदे समझणा तां बहुत दूर दी गल है। कई पाठी अज मूह विच गुण गुण करके बाणी पड़्हदे ने नां बाणी पड़्हन, समझण, विचारण दा चा पाठी नूं ते ना पाठ कराउण वाले नूं है। इक वार तां असीं इक पाठी नूं फ़ड़िआ जिसनूं गुरमुखी आउंदी ही नहीं सी बस उह मुह ते कपड़ा रख गुण गुण करी जांदा सी। जिहनां नूं अउंदी वी है पड़्हनी उह केवल स़ुध उचारण वल ही धिआन दिंदे ने ता के सुणन नूं चंगी लगे। स़ुध उचारण बहुत चंगी गल है पर उसतों अगला पड़ाव है बाणी नूं पड़्ह लिआ हुण विचार करो। विचार तों अज दा सिख दूर भजदा।

परमेसर दा हुकम मंनणा भाणे विच रहिणा अखंड भगती है जो हमेस़ा रहिंदी। सुते, जागदे, तुरदे, फिरदे हर समे। अखंड पाठ अखंड कीरतन नाम लई चंगे लगदे ने। मन नूं कुझ देर तक सकून वी दे सकदे हन पर जो अखंड भगती गुरमति दस रही है उह इह नहीं है।

हुण कुझ वीर भैणां सहिज पाठ वी करदे हन। कई वार सहज पाठ अखंड पाठ वांग ही हुंदा है दोसत मितर रिस़तेदार आ के थोड़ा थोड़ा समा ला के पाठ करके जांदे हन, इस नाल वी गिआन दी प्रापती तुहानूं नहीं होणी। आप पड़्हो सहज नाल, विचार करदिआं होइआं। इह ना सोचो के कितने अखंड पाठ लर लए जां कर लए। कितने सहज पाठ करा लाे जां कर लए। धिआन इस वल रहे के गुरमति दी गल कितनी समझ आई। बाणी पड़्हदिआं कई सबद जोहनां दे अरथ समझ नहीं आए वेखो बाणी विच उह सबद किथे आइआ है, उसदे की अरथ निकल रहे हन, दुनिआवी अरथ हन जां अलंकार दी वरतो है। बाणी आपणे अरथ आप दसदी है किसे टीके दी लोड़ नहीं। बस संमपूरन भरोसा इह रखो के धुर की बाणी है धिरों आई है ते आपणे आप विच समरथ है। भगतां कोल सहज सी, भरोसा सी जिस कारण उहनां नूं गुरमति समझण लॲॳि किसे विदवान दी किसे टीके दी लोड़ नहीं पई। इको गल नूं कई तरीकिआं नाल उदाहरणां नाल इक तो जिआदा वार समझाइआ गिआ है। आपणा भरोसा बाणी ते अखंड रखो।

सहज

सहज तां मन दी बड़ी उची अवसथा दा नाम है। इस अवसथा विच मन ठहराव विच हुंदा है। जदों मन विच विकार ना उठण, भाणा मंन लिआ। हुकम दी सोझी हो गई। नाम (गिआन/सोझी) दी प्रापती हो गई। जदों सरीर दा मोह वी नहीं रहिआ। उस अवसथा दा नाम है सहज। असीं गुरबाणी नूं पड़्ह के विचार कीता हुंदा तां सानूं इह पता हुंदा। गुरबाणी दीआं कुझ पंकतीआं विचारदे हां।

गुर सेवा सुखु पाईऐ हरि वरु सहजि सीगारु॥ – गुर (गुण) दी सेवा (विचार) कीतिआं सहज दी प्रापती हुंदी है। "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ हउमै मारे करणी सारु ॥७॥",

आपे नदरि करे भाउ लाए गुरसबदी बीचारि॥ सतिगुरु सेविऐ सहजु ऊपजै हउमै त्रिसना मारि॥ हरि गुणदाता सद मनि वसै सचु रखिआ उर धारि॥६॥ – जदों उसदी नदर होवे तां गुरमति गिआन दे विचार दा भाव जीव नूं हुंदा गुरसबद दी विचार राहीं। गुणां दी विचार राहीं सहज उपजदा है ते हउमै त्रिसना वरगे रोग दूर हुंदे हन।

"तेरे गुण गावहि सहजि समावहि सबदे मेलि मिलाए॥

गुरमुखि बुढे कदे नाही जिन॑ा अंतरि सुरति गिआनु॥ सदा सदा हरि गुण रवहि अंतरि सहज धिआनु॥ ओइ सदा अनंदि बिबेक रहहि दुखि सुखि एक समानि॥ तिना नदरी इको आइआ सभु आतम रामु पछानु॥४४॥

निरगुण नामु निधानु है सहजे सोझी होइ॥ गुणवंती सालाहिआ सचे सची सोइ॥ भुलिआ सहजि मिलाइसी सबदि मिलावा होइ॥७॥

निरगुण नामु निधानु है सहजे सोझी होइ॥ गुणवंती सालाहिआ सचे सची सोइ॥ भुलिआ सहजि मिलाइसी सबदि मिलावा होइ॥७॥

हउ वारी हउ वारणै भाई सतिगुर कउ सद बलिहारै जाउ॥ नामु निधानु जिनि दिता भाई गुरमति सहजि समाउ॥४॥ गुर बिनु सहजु न ऊपजै भाई पूछहु गिआनीआ जाइ॥ सतिगुर की सेवा सदा करि भाई विचहु आपु गवाइ॥५॥ – हउ (हउमै) वारनी पैणी, आप गवाउणा पैणा, मैं मारनी पैणी। गुणां दी विचार करनी पैणी। गुरमति गिआन तदी विचार कीतिआं गुणां दी विचार कीतिआं ही सहज उपजणा।

केस कटिआं जां ना कटिअआ सहज नहीं हुंदा "कबीर प्रीति इक सिउ कीए आन दुबिधा जाइ॥ भावै लांबे केस करु भावै घररि मुडाइ ॥२५॥"। भाई सहज दी प्रापती लई गुणां दी विचार करो गुरमति दी विचार करो "गुण वीचारे गिआनी सोइ॥ गुण महि गिआनु परापति होइ॥

To continueἦ


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