Source: ਧੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ

धुर की बाणी

गुरबाणी धुर की बाणी है "धुर की बाणी आई॥। भगतां ने गुरूआं ने इसदा क्रैडिट आपणे ते नहीं लिआ। आपणे आप नूं दास ही कहिआ "बिनवंति नानकु दासु हरि का तेरी चाल सुहावी मधुराड़ी बाणी ॥८॥२॥( (म १, रागु वडहंसु, ५६७) । असीं आपणे आप नूं दास कह के गुरूआं दा भगतां दा मुकाबला हंकार वस करदे हां जद के दास दा दरजा बहुत वडा है। दास उह है जिसने आपणी मति तिआग दिती है ते हुण संमपूरण समरपित है परमेसर नूं। हुकम विच है। आपणे आप नूं परमेसर नहीं कहिआ भगतां नें। बाणी विच ८ वार आइआ है "जनु नानकु हरि का दासु हैἦ.। दास हुकम विच हुंदा है। मालिक ते पूरण भरोसा हुंदा है। भगतां ने गुरूआं ने मैं दी वरतो, हंकार दी वरतो नहीं कीती। भगतां ने धुरों सबद (हुकम) होइआ उही लिखिआ है। उहनां जो लिखिआ आपणे उते नहीं लिआ ना ही बाणी ते कोई कलेम कीता। गुरूआं दी मति अकाल दे सबद/हुकम नाल रलदी है इस कारण गुरूआं ते भगतां दा दरजा अकाल रूप है।

"हउ आपहु बोलि न जाणदा मै कहिआ सभु हुकमाउ जीउ॥ हरि भगति खजाना बखसिआ गुरि नानकि कीआ पसाउ जीउ॥(म ५, ७६३) – अरथ मैं आप बोलणा नहीं जाणदा ते उही कह रहिआ हां जो हुकम होइआ। हरि ने भगत नूं इह खजाना बखस़िआ है, गुण ने नानक विच पसारा कीता है।

"जिनि एहि लिखे तिसु सिरि नाहि॥ जिव फुरमाए तिव तिव पाहि॥(म १, ४) – जो इह लिख रिहा है क्रैडिट ना दे बैठणा, जिवें परमेसर फ़रमा रिहा है मैं उही लिख रिहा हां।

"जो हम को परमेसर उचरिहैं॥ ते सभ नरक कुंड महि परिहैं॥

"जैसी मै आवै खसम की बाणी तैसड़ा करी गिआनु वे लालो॥( लालो कौण, गुरमुखि लालो लालु है जिउ रंगि मजीठ सचड़ाउ॥) – जिदां खसम दी बाणी खसम तों आवे उदां ही गिआन लैणा।

"मै हो परम पुरख को दासा॥ देखन आयो जगत तमासा॥

"हउ ढाढी हरि प्रभ खसम का हरि कै दरि आइआ॥

"धुर की बाणी आई॥ तिनि सगली चिंत मिटाई॥ दइआल पुरख मिहरवाना॥ हरि नानक साचु वखाना॥२॥

पूरी गुरमति मैं मनमति अहंकार खतम करण ते टिकी है परमेसर दे हुकम विच आउण ते टिकी है।

"तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥ – करता तूं हैं मैं नहीं, जे चाहां वी ते कुझ कर नहीं सकदा।

"तुम समरथ सदा सुखदाते ॥

"तूं मेरा मीतु साजनु मेरा सुआमी तुधु बिनु अवरु न जानणिआ ॥६॥

"तूं साचा साहिबु दासु तेरा गोला ॥

तूं आदि पुरखु अपरंपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई॥

"तूं ऊच अथाहु अपारु अमोला ॥

"तू ठाकुरु तुम पहि अरदासि ॥

तू करता सभु को तेरै जोरि॥ एकु सबदु बीचारीऐ जा तू ता किआ होरि॥१॥ 

"आदि जुगादि दइआलु तू ठाकुर तेरी सरणा ॥१॥

बिनवंति नानक दासु तेरा सभि जीअ तेरे तू करता॥२॥

बाणी बिरलउ बीचारसी जे को गुरमुखि होइ॥ इह बाणी महा पुरख की निज घरि वासा होइ॥४०॥

भगति करहि मरजीवड़े गुरमुखि भगति सदा होइ॥ ओना कउ धुरि भगति खजाना बखसिआ मेटि न सकै कोइ॥ गुण निधानु मनि पाइआ एको सचा सोइ॥ नानक गुरमुखि मिलि रहे फिरि विछोड़ा कदे न होइ॥१॥

इतना गिआन, इतनी सोझी होवे। बाबा आप अकाल रूप होवे ते लिख देवे "ऐ जी ना हम उतम नीच न मधिम हरि सरणागति हरि के लोग॥ नाम रते केवल बैरागी सोग बिजोग बिसरजित रोग॥१॥ ते साडे विचो कई हन जो माड़ा मोटा गिआन लैके, लीड़े पा के ही धरमी अखाउंदे हन। आपणे आप नूं दास कहाउंदे हन ते फेर करम कांड वी करी जांदे। बाणी दी विचार राहीं हुकम विच आ के दास बणना सी पर संसारी कंमां दे बंधनां तो ही मुकत नहीं होए। गुसा भरिआ, द्वेस़, ईरखा नाल भरे होए ने। आपणे मान अपमान, लाभ हानी, जीवन मरण, खिआती दे चकर विच फसे होए ने॥ माड़ा जहिआ माण ना मिले किते तां डोल जांदे ने। बाणी नूं विचार के गुण धारण होणे ने।

किआ जपु किआ तपु किआ ब्रत पूजा॥ जा कै रिदै भाउ है दूजा॥ रे जन मनु माधउ सिउ लाईऐ॥ चतुराई न चतुरभुजु पाईऐ ॥

अनहद बाणी गुरमुखि जाणी बिरलो को अरथावै ॥ पंना ९४५

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