Source: ਸੁੱਚਾ ਤੇ ਜੂਠਾ

सुचा ते जूठा

इह लेख लिखणा पै रहिआ किउंके इक वीर नाल वापरी घटना ने उसदे मन ते गहिरा झटका लाइआ सी। वीर आखदा उह इक गुरू घर गिआ जिथे हर मनुख पहिलां नलका धो रहिआ सी फेर हथ पैर धो रहिआ सी, फेर नलका धो रहिआ सी। जिहड़ा इह नहीं करदा सी उथे दे दरबान डांट के हथ पैर अते फेर नलका धोण नूं आखदे सी। इह कंम जिंनी वार उह दरस़न करन जा रहे सी करदे सी फेर बाहर निकल के वी कर रहे सी। अंदर गिआ तां इक होर टूटी वेखी जिस ते लिखिआ सी सुचे हथ धोण दी थां। फेर हथ धो के जदों परसादा पाणी छकण लई पंगत विच बैठिआ फेर परसादा इक फुट दूरों सुटिआ गिआ हथ उते के किते वरताउण वाले दे हथ जूठे ना हो जाण। इह सब देख के उसदे मन विच सवाल उठिआ के गुरमति सुचा जूठा किसनूं मंनदी। अज इसते ही विचार करांगे। गुरबाणी दा फुरमान है के

"माता जूठी पिता भी जूठा जूठे ही फल लागे ॥ आवहि जूठे जाहि भी जूठे जूठे मरहि अभागे ॥१॥ कहु पंडित सूचा कवनु ठाउ ॥ जहां बैसि हउ भोजनु खाउ ॥१॥ रहाउ ॥ जिहबा जूठी बोलत जूठा करन नेत्र सभि जूठे ॥ इंद्री की जूठि उतरसि नाही ब्रहम अगनि के लूठे ॥२॥ अगनि भी जूठी पानी जूठा जूठी बैसि पकाइआ॥ जूठी करछी परोसन लागा जूठे ही बैठि खाइआ ॥३॥ गोबरु जूठा चउका जूठा जूठी दीनी कारा ॥ कहि कबीर तेई नर सूचे साची परी बिचारा ॥४॥१॥७॥(रागु बसंतु हिंडोलु घरु २, ११९५)

उपरोकत पंकतीआं विच तां महाराज ने हरेक वसतू नूं जूठा आख दिता। आखदे केवल गुरमति दी विचार जूठी नहीं है बाकी सब जूठा ही है। जे इतनी गल समझ आ जावे के पाणी नाल पिंडा/सरीर/बदेही नाल धोण नूं गुरमति सुचा नहीं मंनदी है। आओ वेखीए होर किहड़े उदाहरण हन गुरमति विच

"सूचे एहि न आखीअहि बहनि जि पिंडा धोइ॥ सूचे सेई नानका जिन मनि वसिआ सोइ॥ – गिआन नाल विचार नाल नाम (सोझी) उसदे हुकम नूं हिरदे विच वसाउणा ही सुचमता है।

"बाहरु धोइ अंतरु मनु मैला दुइ ठउर अपुने खोए॥ ईहा कामि क्रोधि मोहि विआपिआ आगै मुसि मुसि रोए॥१॥

उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु॥ धोतिआ जूठि न उतरै जे सउ धोवा तिसु॥१॥

जदों तक मन जूटा है, नाम (गुरमति गिआन विचार तों प्रापत सोझी) नाल धोता नहीं गिआ इसदी मैल नहीं उतरनी।

मनि जूठै तनि जूठि है जिहवा जूठी होइ॥

बाहरि मलु धोवै मन की जूठि न जाए॥ (म ३, रागु सिरीरागु, ८८)

जिहड़े गुरमति गिआन दी विचार नहीं करदे उह सुचे नहीं हो सकदे। सुचमता केवल गुर सबद नाल होणी

"अंतरि जूठा किउ सुचि होइ॥ सबदी धोवै विरला कोइ॥ गुरमुखि कोई सचु कमावै॥ आवणु जाणा ठाकि रहावै॥६॥

हुण इसदा भाव इह नहीं है के बदेही दी सुचमता नहीं रखणी। सरीर दी अरोगता लई सरीर धोणा चंगी गल है। धोते लीड़े पाउणा चंगी गल है। मल मल के सरीर दी मैल धोणा अछा है। पर इस नाल गुरमति गिआन नहीं मिलणा नाम प्रापती नहीं होणी। नाम प्रापती लई मन धोणा पैणा। पर इस नालों सरीर धोणा सौखा इस कारण कई वीर भैणा सरीर धोण नूं ही धरम मंन लैंदे ने। "गुरमुखि हछे निरमले गुर कै सबदि सुभाइ॥ ओना मैलु पतंगु न लगई जि चलनि सतिगुर भाइ॥ मनमुख जूठि न उतरै जे सउ धोवण पाइ॥ नानक गुरमुखि मेलिअनु गुर कै अंकि समाइ॥४५॥

भांडा धोइ बैसि धूपु देवहु तउ दूधै कउ जावहु॥ दूधु करम फुनि सुरति समाइणु होइ निरास जमावहु॥१॥(म १, रागु सूही, ७२८)

भांडा है हिरदा। हिरदे विचों मनमति धोणी विकार धोणे ने। फेर बैसि धूपु अरथ है पवितर करना के कुझ विकार/विचार मनमति दे अनमति दे रहि तां नहीं गए। जे गुरमति दे इलावा कुझ होर रहि गिआ ते भांडा जूठा ही रहि जाणा। दुध नूं बहुत पवितर मंनिआ जांदा। पातस़ाह आखदे जिवें सुचा धोता होइआ भांडा लै के दुध लैण जाईदा गुरमति दे गिआन दा अंम्रित भरना हिरदे विच तां हीं सुरत दे विच गिआन जंमणा जिवें दुध तों दहीं जमाईदा। मैनूं होर कोई खिआल मन विच रखणे ही नहीं हन के कोई स़ंका पैदा होवे। पूरण भरोसा गुरबाणी ते है के इस विच दरगाह तों सिधा गिआन आइआ जो भगतां ने दरज कीता।

दुध नाल गुरदुआरे धो रहे हां दुध नूं पवितर जाण के, फुल चड़्हा रहे हां गुरू घरां विच। आउ देखीए गुरबाणी विच की दरज है इस बारे।

"दूधु त बछरै थनहु बिटारिओ॥फूलु भवरि जलु मीनि बिगारिओ॥१॥ माई गोबिंद पूजा कहा लै चरावउ॥ अवरु न फूलु अनूपु न पावउ॥

जिस थण चों दुध कड रहे हां गां दा उह तां बछड़े ने पहिलां ही जूठा कीता है, फुल भौरे ने (सुंघ के) ते पाणी मछी ने ख़राब जूठा कर दिता। सो दुध फुल पाणी इह तिंने ही जूठे ने। आखदे पाणी नाल धोणा, सुचे हथ वी धो धो के टूटीआं नूं ही रब धार लिआ। भगत जी आखदे

"आनीले कुंभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ॥बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ॥१॥ जत्र जाउ तत बीठलु भैला॥ महा अनंद करे सद केला॥१॥ रहाउ॥ आनीले फूल परोईले माला ठाकुर की हउ पूज करउ॥ पहिले बासु लई है भवरह बीठल भैला काइ करउ॥२॥ आनीले दूधु रीधाईले खीरं ठाकुर कउ नैवेदु करउ॥ पहिले दूधु बिटारिओ बछरै बीठलु भैला काइ करउ॥३॥ ईभै बीठलु ऊभै बीठलु बीठल बिनु संसारु नही॥ थान थनंतरि नामा प्रणवै पूरि रहिओ तूं सरब मही॥४॥२॥(रागु आसा, भगत नाम देव जी,

"आनीले कुंभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ॥बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ॥१॥" – नामदेव जी ने तां बीठल (ठाकुर) नूं इसनान करवाउण तों मना कर दिता इह कहि के की बिआली लख जीव जिस दे विच ने उसनाल मैं बीठल जूठा/मैला किउं करां।

आनीले फूल परोईले माला ठाकुर की हउ पूज करउ॥ पहिले बासु लई है भवरह बीठल भैला काइ करउ॥२॥ – आखदे मैं फुल तोड़के लै आवां ठाकुर दी पूजा करन लई पर फुल़ तों भवरे ने पहिलां ही सुंघ के खुस़बू जूठी कर दिती है।

आनीले दूधु रीधाईले खीरं ठाकुर कउ नैवेदु करउ॥ पहिले दूधु बिटारिओ बछरै बीठलु भैला काइ करउ॥३॥ – गां दा दुध चो के लै आवां पर ठाकुर लई खीर बणाउण लई पर उह वी बछड़े ने जूठा कर दिता है पहिलां ही। मैं जिथे वेखदां हां उथे ही मैनूं बीठल (रब/गोबिंद) दिसदा।

कहिण दा भाव है के जे मन सुचा नहीं तां सब कुझ कूड़ है, जूठा है।

"देही गुपत बिदेही दीसै॥ – जो दिख रिहा उह धो वी लवेंगा, धोणा देही नूं है मन नूं ते बुध नूं है गिआन नाल, बदेही नहीं।

"बाहरि धोती तूमड़ी अंदरि विसु निकोर॥ साध भले अणनातिआ चोर सि चोरा चोर॥२॥ – बाहर धोती होई है तूमड़ी (चमड़ी) पर अंदर तेरे विस़ (विकार) भरे होए ने। अंदर माइआ दा विस़ भरिआ ते बाहरली तूमड़ी धोण लगिऐ। साध (जिहनां मन सधिआ) उह नहीं परवाह करदे सरीर दे झूठ सुच दी।

पूजहु रामु एकु ही देवा॥ साचा नावणु गुर की सेवा॥१॥ रहाउ॥ जल कै मजनि जे गति होवै नित नित मेंडुक नावहि॥ जैसे मेंडुक तैसे ओइ नर फिरि फिरि जोनी आवहि॥२॥ – जे जल नाल पिंडा धोतिआं परमगति मिल जावे तां मेंडक सारे तर जाणे चा्हिदे सी, मछीआं सारीआं तर जाणीआं चाहीदीआं सी। इह समझण वाली गल है के साचा नावण गुर की सेवा है ते गुर की सेवा सबद वीचार दसी है बाणी ने।

जदों नानक पातिस़ाह ने कहिआ "तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी॥ जिसदा अरथ है तीरथ नावा जे तैनूं भावां, समझ जाणा चाहीदा सी के तीरथ नावण दी तां पता करना पएगा बाणी तों के परमेसर नूं किवें भावां (चंगा) लगां। गुरबाणी तां आखदी "तीरथि नावण जाउ तीरथु नामु है॥ तां सानूं समझ आउणी चाहीदी सी के नाम (गुरमति दी सोझी) ही तीरथ है। "मनु मंदरु तनु वेस कलंदरु घट ही तीरथि नावा॥ – मन ही मंदर है "हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ॥, घट अंदर वसदे गिआन तों प्रापत सोझी, नाम दे अंम्रित सरोवर विच ही तीरथ सनान है।

सूतक?

गुरबाणी दा फुरमान है "मन का सूतकु दूजा भाउ॥ भरमे भूले आवउ जाउ॥१॥ मनमुखि सूतकु कबहि न जाइ॥ जिचरु सबदि न भीजै हरि कै नाइ॥१॥ – दूजा भाउ है गुरमति तों उलट सोच। मनमति जां करम कांड विच फसे होणा हुकम समझण दी थां। गुरमति विचार तों भजणा। "सतिगुरु सेविऐ सूतकु जाइ॥ ते गुर की सेवा टूटी धोणा नहीं दसी, पिंडा धोणा नहीं दसिआ बलके "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥ अते "गुर का सबदु सहजि वीचारु॥ दसिआ।

"फासन की बिधि सभु कोऊ जानै छूटन की इकु कोई॥ कहि कबीर रामु रिदै बिचारै सूतकु तिनै न होई ॥३॥४१॥

छूटन की बिधि गुरमति है, जद साडे कोल छूटन की विधि है ते असीं होर किओं फंसी जा रहे हां ? गल इथे वीचारन वाली है की कारन है की माइआ रूपी जाल होर वडा होई जा रहिआ है। जो धरम दे करम असीं कर रहे आ किते ओही तां कारन नहीं ? असल विच जिहड़े असीं करन लगे होए हां ओह पाखंड दे करम हन, इह उह नहीं जो गुरबाणी ने दसे हन, इस गल दा भुलेखा गुरमति ने कढिआ है ।

जिहड़ी गल गुरबाणी मंनण नूं कहि रही सी असल विच ओह तां असीं मंनी ही नहीं अते आपणी मत अनुसार ही धरम करम विच उलझ गए। नतीजा की निकलिआ? गिआन दा परगासु ते दूर अगिआन अंधेर होर वध गिआ। कदी असीं सोचिआ ही नहीं जो कुझ असीं करण लगे होए हां की गुरू कहिंदा वी है ओह करण नूं जां असीं आपणी ही मरजी नाल लगे होए हां ? बस इथे गल है सारी इसे नूं ही गुरू कुफकड़े लगे होए कहिंदा। होर कुझ नहीं बस कुफकड़े लगे होए हन अज सारे ही । गुरू तों तां पुछिआ ही नहीं के की करना सी नतीजे अज तुहाडे साहमणे हन। इस करके जिहड़ी छूटन की विधि गुरमति आ ओहनूं अपनाओणा करीए। पातस़ाह जी दा फुरमान है।

"पहिरै बागा करि इसनाना चोआ चंदन लाए॥ निरभउ निरंकार नही चीनिआ जिउ हसती नावाए॥३॥ – बाहरी सरीर, माइआ दी देह नूं धोण ते सवारण ते पूरा जोर लगा जिवें हाथी नूं नवा रहे होईए। "मन का सूतकु लोभु है जिहवा सूतकु कूड़ु॥ ना पड़्हिआ ना समझिआ ना धोण दा कोई जतन है।

"बाहरि धोती तूमड़ी अंदरि विसु निकोर॥

"गगा गुर के बचन पछाना ॥ दूजी बात न धरई काना॥

सो भाई सौखा तरीका है तन नूं धो के खुस़ होई जावो, भावें दिन विच वार वार केसी सनान कर लवो, मन दी मैल, सूतक तां गिआन नाल ही धोती जाणी। मन निरमल (निर+मल/ मल रहित) नाम (सोझी) नाल ही होणा।बाणी पड़्ही चलो ते नाल विचार करो। कोई स़ंका होवे तां गुरमति विचों खोज लवो। केवल अरदास नहीं करनी "ἦखोज स़बद मैं लेहो खोजणा वी है।


Source: ਸੁੱਚਾ ਤੇ ਜੂਠਾ