Source: ਸ਼ਰਧਾ, ਕਰਮ, ਤੀਰਥ ਤੇ ਪਰਮੇਸਰ ਪ੍ਰਾਪਤੀ

स़रधा, करम, तीरथ ते परमेसर प्रापती

कई जीव स़रधा नाल हजारां तरीकिआं नाल परमेसर प्रापती दे जतन करदे हन। कोई गा के, कोई रो के, कोई अखां बंद कर के, कोई काठ दी रोटी खा के, कोई सरीर दे बंद बंद कटा के, कोई सीस कटा के, कोई तीरथ सनान कर के होर हजारां जतनां राहीं मुकती प्रापती दे जतन करदे रहे ने हमेस़ा तों पर गुरमति दा फुरमान है के बिना नाम (अरथ गिआन तों प्रापत सोझी) दे बिनां गुर (गुणां) दी प्रापती दे मुकती नहीं मिल सकदी ना ही परमेसर प्रापती हो सकदी। दसम पातिस़ाह ने कई उदाहरण दिते ने इहनां जतना बारे फेर दसिआ है जे इहनां नाल कुझ प्रपाती होणी जा नहीं।

इह भाति सरब छित के न्रिपाल॥ संन्यास जोग लागे उताल॥ इक करै लागि निवलि आदि करम॥ इक धरत धिआन लै बसत्र चरम॥१४२॥ इक धरत बसत्र बलकलन अंगि॥ इक रहत कलप इसथित उतंग॥ इक करत अलप दुगधा अहार॥ इक रहत बरख बहु निराहार॥१४३॥ इक रहत मोन मोनी महान॥ इक करत न्यास तजि खान पान॥ इक रहत एक पग निराधार॥ इक बसत ग्राम कानन पहार॥१४४॥ इक करत कसट कर धूम्र पान॥ इक करत भाति भातिन सनान॥ इक रहत इक पग जुग प्रमान॥ कई ऊरध बाह मुनि मन महान॥१४५॥ इक रहत बैठि जलि मधि जाइ॥ इक तपत आगि ऊरध जराइ॥ इक करत न्यास बहु बिधि प्रकार॥ इक रहत एक आसा अधार॥१४६॥ केई कबहूं नीच नही करत डीठ॥ केई तपत आगि पर जार पीठ॥ केई बैठ करत ब्रत चरज दान॥ केई धरत चित एकै निधान॥१४७॥ केई करत जगि अरु होम दान॥ केई भाति भाति बिधवति इसनान॥ केई धरत जाइ लै पिसट पान॥ केई देत करम की छाडि बान॥१४८॥ केई करत बैठि परमं प्रकास॥ केई भ्रमत पब बनि बनि उदास॥ केई रहत एक आसन अडोल॥ केई जपत बैठि मुख मंत्र अमोल॥१४९॥ केई करत बैठि हरि हरि उचार॥ केई करत पाठ मुनि मन उदार॥ केई भगति भाव भगवत भजंत॥ केई रिचा बेद सिंम्रित रटंत॥१५०॥ केई एक पान असथित अडोल॥ केई जपत जाप मनि चित खोलि॥ केई रहत एक मन निराहार॥ इक भछत पउन मुनि मन उदार॥१५१॥ इक करत निआस आसा बिहीन॥ इक रहत एक भगवत अधीन॥ इक करत नैकु बन फल अहार॥ इक रटत नाम सिआमा अपार॥१५२॥ इक एक आस आसा बिरहत॥ इक बहुत भाति दुख देह सहत॥ इक कहत एक हरि को कथान॥ इक मुकत पत्र पावत निदान॥१५३॥ इक परे सरणि हरि के दुआर॥ इक रहत तासु नामै अधार॥ इक जपत नाम ता को दुरंत॥ इक अंति मुकति पावत बिअंत॥१५४॥ इक करत नामु निस दिन उचार॥ इक अगनि होत्र ब्रहमा बिचार॥ इक सासत्र सरब सिम्रिति रटंत॥ इक साध रीति निस दिन चलंत॥१५५॥ इक होम दान अरु बेद रीति॥ इक रटत बैठि खट सासत्र मीत॥ इक करत बेद चारो उचार॥ इक गिआन गाथ महिमा अपार॥१५६॥ इक भाति भाति मिसटान भोज॥ बहु दीन बोलि भछ देत रोज॥ केई करत बैठि बहु भाति पाठ॥ कई अंनि तिआगि चाबंत काठ॥१५७॥ पाधड़ी छंद॥ केई भाति भाति सो धरत धिआन॥ केई करत बैठि हरि क्रित कानि॥ केई सुनत पाठ परमं पुनीत॥ नही मुरत कलप बहुत जात बीत॥१५८॥ केई बैठ करत जलि को अहार॥ केई भ्रमत देस देसन पहार॥ केई जपत मध कंदरी दीह॥ केई ब्रहमचरज सरता मझीह॥१५९॥ केई रहत बैठि मध नीर जाइ॥ केई अगन जारि तापत बनाइ॥ केई रहत सिधि मुख मोन ठान॥ अनि आस चित इक आस मान॥१६०॥ अनडोल गात अबिकार अंग॥ महिमा महान आभा अभंग॥ अनभै सरूप अनभव प्रकास॥ अबयकत तेज निस दिन उदास॥१६१॥ इह भाति जोगि कीने अपार॥ गुर बाझ यौ न होवै उधार॥ तब परे दत के चरनि आनि॥ कहि देहि जोग के गुर बिधान॥१६२॥(स्री दसम ग्रंथ, रूद्र अवतार)

लोकी अखां बंद कर के धिआन लौण दा दाअवा करदे पर गुरमति आखी "सत संतोख का धरहु धिआन॥ कथनी कथीऐ ब्रहम गिआन ॥१५॥ अते अखां बंद करके धिआन धरण दा दाअवा करदे उहनां लई आखदी "आंख मूंदि कोऊ डिंभ दिखावै॥ आंधर की पदवी कहि पावै॥ आंखि मीच मग सूझ न जाई॥ ताहि अनंत मिलै किम भाई॥६२॥ आदि बाणी विच आखदे "अखी त मीटहि नाक पकड़हि ठगण कउ संसारु ॥१॥.। दसम पातिस़ाह आखदे "न नैनं मिचाऊं॥ न डिंभं दिखाऊं॥ न कुकरमं कमाऊं॥ न भेखी कहाऊं॥५२॥। भगत कबीर जी आखदे ना मै जोग धिआन चितु लाइआ॥ बिनु बैराग न छूटसि माइआ॥१॥ कैसे जीवनु होइ हमारा॥ जब न होइ राम नाम अधारा॥१॥

कई इक स़बद दा रटन करदे ने। महाराज बाणी विच आखदे "जाप के कीए ते जो पै पायत अजाप देव पूदना सदीव तुहीं तुहीं उचरत हैं॥ आखदे जे बार बार रटण नाल परमेसर प्रापती हो जांदी ता पूदना सारा दिन तूही तूही पुकारदी है उसनूं परमेसर प्रापती हो जाणी सी। इदां ही कई सरीर नूं कस़ट दिंदे हन उहनां नूं आखदे "ताप के सहे ते जो पै पाईऐ अताप नाथ तापना अनेक तन घाइल सहत हैं॥। बाणी विच उहनां दसिआ लोकां स़रदा दे नाम ते होर की की करदे "नभ के उडे ते जो पै नाराइण पाईयत अनल अकास पंछी डोलबो करत हैं॥ आग मै जरे ते गति रांड की परत कर पताल के बासी किउ भुजंग न तरत हैं॥१४॥८४॥ कोऊ भइओ मुंडीआ संनिआसी कोऊ जोगी भइओ कोऊ ब्रहमचारी कोऊ जती अनुमानबो॥ हिंदू तुरक कोऊ राफजी इमाम साफी मानस की जात सबै एकै पहिचानबो॥ करता करीम सोई राजक रहीम ओई दूसरो न भेद कोई भूल भ्रम मानबो॥ एक ही की सेव सभ ही को गुरदेव एक एक ही सरूप सबै एकै जोत जानबो॥१५॥८५॥ देहरा मसीत सोई पूजा औ निवाज ओई मानस सबै एक पै अनेक को भ्रमाउ है॥ देवता अदेव जछ गंध्रब तुरक हिंदू निआरे निआरे देसन के भेस को प्रभाउ है॥ एकै नैन एकै कान एकै देह एकै बान खाक बाद आतस औ आब को रलाउ है॥ अलह अभेख सोई पुरान औ कुरान ओई एक ही सरूप सभै एक ही बनाउ है॥१६॥८६॥।

अज दे सिख दे हालात इह हन के ना तां बाणी समझणा चाहुंदे ना विचारना। डर इतना है मन विच के कोई तरक सुणना ही नहीं चाहुंदे। इसनूं अंग्रेजी विच fear of missing out वी आखदे ने के पता नहीं दूजा जो कंम कर रहिआ है मैं ना कीता ते रब मेरे कोलों नाराज ही ना हो जावे। बाणी तो उदाहरण देवो, भावें सपस़ट लिखिआ होवे पर फेर वी लोक पचारे विच जो बाकी करी जांदे बस बिना सोचे, अखां, कंन, मूह बंद करके बस भेड चाल चली जांदे। अज जो वी भगतां ने गुरूआं ने दसिआ उसतों उलट ही करी जांदे ने। बाणी दा फुरमान सी के "रामु रामु करता सभु जगु फिरै रामु न पाइआ जाइ॥ अगमु अगोचरु अति वडा अतुलु न तुलिआ जाइ॥ अते मुसलमान अलाह अलाह करदे सी, साडे वाहिगुरू वाहिगुरू रटण लग पए। इतने संपट पाठ करलो इतने जपजी साहिब करलो पर कदे बाणी नूं पड़ के विचारिआ ही नहीं के खाली पड़्हन नाल गल नहीं बणदी। बाणी इह जरूर आखदी है के "आइओ सुनन पड़न कउ बाणी॥ नामु विसारि लगहि अन लालचि बिरथा जनमु पराणी॥१॥ पर नाल इह वी हिदाइत करदी है "पड़े सुने किआ होई॥ जउ सहज न मिलिओ सोई ॥१॥"

तीरथ सनान नाल मुकती दसी जांदे बाणी आखदी सचा नावण की है "पूजहु रामु एकु ही देवा॥ साचा नावणु गुर की सेवा॥१॥ ते गुर की सेवा दसी है गुर सबद दी विचार। महाराज बाणी विच आखदे "जल कै मजनि जे गति होवै नित नित मेंडुक नावहि॥ जैसे मेंडुक तैसे ओइ नर फिरि फिरि जोनी आवहि॥२॥। तीरथ की है फेर "हरि पड़ीऐ हरि बुझीऐ गुरमती नामि उधारा॥ गुरि पूरै पूरी मति है पूरै सबदि बीचारा॥ अठसठि तीरथ हरि नामु है किलविख काटणहारा॥२॥। इह रोज पड़्ह के वी नहीं विचारिआ के "तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी ॥ ते उसनूं किहड़े नावण नाल खुस़ होणा? बाकी दुनिआवी सनान बारे होर कहिआ "नावण चले तीरथी मनि खोटै तनि चोर॥ इकु भाउ लथी नातिआ दुइ भा चड़ीअसु होर॥ बाहरि धोती तूमड़ी अंदरि विसु निकोर॥ साध भले अणनातिआ चोर सि चोरा चोर॥२॥ अते "बाहरु धोइ अंतरु मनु मैला दुइ ठउर अपुने खोए॥ ईहा कामि क्रोधि मोहि विआपिआ आगै मुसि मुसि रोए॥१॥। मैं जी रोज सवेरे केसी सनान करदा हां, मैं जी दिन विछ चार वार सनान करदा हां, भाई देखीं किते हउमे विच वाधा ता नहीं हो रहिआ। बाहर तूमड़ी तां धोती जांदी अंदर विकतरां हउमै दा विस़ तां नहीं कठा करी जांदा। जी मैं सरीर सुचा करदां भगत जी ने बीठल नूं सनान कराउण तों मना कर दिता सी इह आख के "आनीले कुंभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ॥ बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ॥१॥ जत्र जाउ तत बीठलु भैला॥ महा अनंद करे सद केला॥१॥ 

बाणी दी विचार तों घट अंदर ही अंम्रित दा सरोवर मिलणा जिस विच सनान दा अरथ है सोझी प्रापत करना नाम प्रापत करना। हुकम बूझणा छड के करम दे मगर पए ने, रोज पड़ी वी जांदे के "करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु॥ कपड़ा बदेही नूं आखिआ "कपड़ु रूपु सुहावणा छडि दुनीआ अंदरि जावणा॥ जे आपणे आप नूं करमवंत अखाउना है हुकम नूं भुलदा है, जी मैं आह करदां जी मैं सेदां सेवा करदां, तां बाणी आखदी "आपस कउ करमवंतु कहावै॥ जनमि मरै बहु जोनि भ्रमावै॥

परमेसर प्रापती दा केवल इहो मारग है उह है गिआन लैणा, गिआन तों सोझी प्रापत करना, हुकम विच उसदी रजा विच खुस़ रहिणा। मनुख बहुत चलाक जीव है। चाहुंदा है के माइआ नाल मोह वी बणिआ रहे ते परमेसर प्रापती वी हो जावे। बिनां संमपूरण भरोसे दे परमेसर प्रापती नहीं हुंदी। दुख विच सुख विच आनंद चड़्हदीकला विच रहिणा। भेद भाव खतम करना। निरासा रहिणा। बाणी पड़्हो, विचारो, गुरू ते पूरन भरोसा अडोल भरोसा रखो।

स़रधा किस विच रखणी है?

स़रधा केवल नाम (गिआन / सोझी) दी रखणी है। स़रधा केवल गिआन प्रापती दी रखणी है।

चीति आवै तां सरधा पूरी॥

हरि हरि क्रिपा करहु जगजीवन मै सरधा नामि लगावैगो ॥

जिन सरधा राम नामि लगी तिन॑ दूजै चितु न लाइआ राम॥ जे धरती सभ कंचनु करि दीजै बिनु नावै अवरु न भाइआ राम॥


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