Source: ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵੇਲਾ, ਰਹਿਰਾਸ ਅਤੇ ਗੁਰਬਾਣੀ ਪੜ੍ਹਨ ਦਾ ਸਹੀ ਸਮਾ

अंम्रित वेला, रहिरास अते गुरबाणी पड़्हन दा सही समा

अज सिखां विच कई भुलेखे पाए होए ने पाखंड भगती करन कराउण वालिआं ने जिहनां विचों इक है अंम्रित वेला। अंम्रित दा अरथ हुंदा है जो म्रित ना होवे जां जो मरे ना, सदीव रहे। कोई आखदा २ वजे उठो, कोई आखदा ४ वजे अंम्रित वेला हुंदा, कोई आखदा १२-१२ः३० सवेर दे अंम्रित वेला हुंदा। पहिलां इह समझणा है के अंम्रित की है "अंम्रितु हरि का नामु है वरसै किरपा धारि ॥ – अंम्रित तां हरि दा नाम (हरि दा गिआन हरि दी सोझी) है।

इह गल ठीक है के सवेरे उठ के बाणी पड़्ह के छेती समझ आ सकदी है किउंके सरीर ते दिमाग थके नहीं हुंदे। पर जे सवेर दा समा अंम्रित वेला होवे तां कदे खतम ना होवे जां फेर उस समे किसे दी मौत नहीं होणी चाहीदी। गुरबाणी अंम्रित वेला समझाउंदी है। गुरबाणी पाठ करन दे समे बारे की आखदी आओ विचारीए।

"अंम्रित वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु॥ – हर उह वेला (समा) जदों सचे दे नाउ (गिआन/सोझी) दी वडिआई होवे वीचारु होवे उह समा अंम्रित वेला है। दिन दे किसे पहिर विच गुरबाणी पड़्ही सुणी विचारी जावे समझी जावे उह समा परवान है मरदा नहीं उह घड़ीआं सफ़ल ने जोत दे नाल जाणीआं दरगाह विच। बाणी इह वी आखदी के जे समे दी विचार करीए तां भगती नहीं हो सकदी। दूजे धरमां दे लोग समा देख के रब दा नाम लैंदे सी साडे वाले वी उही कर रहे ने। जिवें मुसलमान वी फ़ज़र दी नमाज़ सवेरे पंज वजे पड़्हदे हन साडे वाले वी इही करदे ने। गुरबाणी दा फुरमान है के

"जे वेला वखतु वीचारीऐ ता कितु वेला भगति होइ॥ अनदिनु नामे रतिआ सचे सची सोइ॥ इकु तिलु पिआरा विसरै भगति किनेही होइ॥ मनु तनु सीतलु साच सिउ सासु न बिरथा कोइ॥१॥

हर उह वेला धंन है जदों सचे दे गुणां दी विचार करे गुण हासिल कीते जाण।

"धंनु सु वेला जितु मै सतिगुरु मिलिआ॥ सफलु दरसनु नेत्र पेखत तरिआ॥ धंनु मूरत चसे पल घड़ीआ धंनि सु ओइ संजोगा जीउ॥१॥

गुर परसादि किनै विरलै जाणी॥ धंनु सु वेला जितु हरि गावत सुनणा आए ते परवाना जीउ॥१॥

वेला वखत सभि सुहाइआ॥ जितु सचा मेरे मनि भाइआ॥ सचे सेविऐ सचु वडिआई गुर किरपा ते सचु पावणिआ॥२॥

दरगह नामु हदूरि गुरमुखि जाणसी॥ वेला सचु परवाणु सबदु पछाणसी॥४॥

धंनु सु वेला जितु मै सतिगुरु मिलिआ सो सहु चिति आइआ॥ महा अनंदु सहजु भइआ मनि तनि सुखु पाइआ॥

सा वेला सो मूरतु सा घड़ी सो मुहतु सफलु है मेरी जिंदुड़ीए जितु हरि मेरा चिति आवै राम॥

सचु वेला मूरतु सचु जितु सचे नालि पिआरु॥

कुरबाणु जाई उसु वेला सुहावी जितु तुमरै दुआरै आइआ॥

सभे वखत सभे करि वेला॥ खालकु यादि दिलै महि मउला॥ तसबी यादि करहु दस मरदनु सुंनति सीलु बंधानि बरा॥७॥

हरि अंम्रित नामु भोजनु नित भुंचहु सरब वेला मुखि पावहु॥ जरा मरा तापु सभु नाठा गुण गोबिंद नित गावहु॥३॥” – हरि दा नामु अंम्रित है इही गुरमुखां दा ब्रहम दे गिआनवान दा भोजन है जो हर समे मुखि विच पाउणा है "ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन॥। जिवें सरीर दा भोजन असीं दाल रोटी छकदे हां उदां ही मनु दा भोजन गिआन है जो इसदा धिआन इसदी सुरत नूं सोझी वल परमेसर वल टिका के रखदा है "गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआंनु न होइ ॥५॥

जे इक पल वी उह विसर जावे उसदा हुकम उसदे गुण विसर जाण तां उह पल बिरथा जांदा है।

नानक जितु वेला विसरै मेरा सुआमी तितु वेलै मरि जाइ जीउ मेरा ॥५॥

इकु दमु साचा वीसरै सा वेला बिरथा जाइ॥

इकु तिलु पिआरा विसरै भगति किनेही होइ॥

हुण इह सानूं सोचणा है के असीं दिन दे इक समे नूं ही अंम्रित वेला मंनणा है जां हर समे हर पल हुकम चेते रखणा है। गुरमति तां मनुखी जीवन नूं ही नींद मंनदी है जिस विच जीव संसा (स़ंका), अगिआनता दी नींद सुता मंनदी "मेरा मेरा करि करि विगूता॥ आतमु न चीन॑ै भरमै विचि सूता॥१॥। अते गिआन तों प्रापत सोझी नूं भलका मंनदी है जदों थोड़ीआं थोड़ीआं अखां खुलदीआं गुरमति गिआन दे चानणे नाल

तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी॥ गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अंम्रित बाणी॥ गुरबाणी दा फुरमान है "जाग लेहु रे मना   जाग लेहु।  कहा गाफल सोइआ॥। दीवाना होणा पैंदा है नानक वांग, गिआन तों सोझी मिलण लई गुरमति विचार विच भिजणा पैंदा है।

भिंनी रैनड़ीऐ चामकनि तारे॥ – जदों रात दे हनेरे विच गुण तारिआं वांग दिसण लग जांदे ने।

बाबीहा भिंनी रैणि बोलिआ सहजे सचि सुभाइ॥

गुरबाणी दा फुरमान है के जीव दे घट विच ही गिआन दा अंम्रित भरिआ। भलके (स़ंके/अगिआनता दी नींद तों) जाग के इस अंम्रित सरोवर विच सनान करना है हुकम दी सोझी लैणी है।

हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ॥

जेते घट अंम्रितु सभ ही महि भावै तिसहि पीआई ॥२॥

घट अंतरि अंम्रितु रखिओनु गुरमुखि किसै पिआई॥९॥

बाहरि ढूढत बहुतु दुखु पावहि घरि अंम्रितु घट माही जीउ ॥

मनु मंदरु तनु वेस कलंदरु घट ही तीरथि नावा॥

गुर सतिगुर का जो सिखु अखाए सु भलके उठि हरि नामु धिआवै॥ उदमु करे भलके परभाती इसनानु करे अंम्रित सरि नावै॥ उपदेसि गुरू हरि हरि जपु जापै सभि किलविख पाप दोख लहि जावै॥ फिरि चड़ै दिवसु गुरबाणी गावै बहदिआ उठदिआ हरि नामु धिआवै॥

जदों अंम्रित समझ आ गिआ, समा समझ आ गिआ उदों पता लगणा के हर समे ही गुरमति तों प्रापत सोझी चेते रखणी है।

गुरबाणी अंदर मनुखी-जीवन दी रात नूं चार पहिरिआं विच वंडिआ गिआ है।

पहिलै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा हुकमि पइआ गरभासि॥
पहिलै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा बालक बुधि अचेतु॥
पहिलै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा हरि पाइआ उदर मंझारि॥
पहिलै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा धरि पाइता उदरै माहि॥

दूजे पहिरे।
दूजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा विसरि गइआ धिआनु॥
दूजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा भरि जोबनि मै मति॥
दूजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा मनु लागा दूजै भाइ॥
दूजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा भरि जुआनी लहरी देइ॥

तीजे पहिरे।

तीजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा धन जोबन सिउ चितु॥
तीजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा सरि हंस उलथड़े आइ॥
तीजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा मनु लगा आलि जंजालि॥
तीजै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा बिखु संचै अंधु अगिआनु॥

चौथे पहिरे।

चउथै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा लावी आइआ खेतु॥
चउथै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा बिरधि भइआ तनु खीणु॥
चउथै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा हरि चलण वेला आदी॥
चउथै पहरै रैणि कै वणजारिआ मित्रा दिनु नेड़ै आइआ सोइ॥

गुरबाणी गुरमत गिआन फलस़फे अनुसार ἘगुरबाणीἙ अंदर किधरे वी अजेहा {हठ जपु} करन लई नहीं किहा गिआ। गुरबाणी संसारी समे दे किसे ख़ास पहिरे नूं अहिमीअत नहीं दिंदा, बलकि मनुखी-जीवन काल दे हर समें नूं सफ़ला बनाउंण दी हदाइत करदी है। अंम्रिवेले, दुपहिरे-चौपहिरे कटणे, गुरबाणी गुरमत फलस़फे अनुसार नहीं हन। इक भेडचाल बण गई है। आपणी दुकानदारी चलाउंण लई पाखंडी डेरेदार अजेहे फालतू कंमां दा प्रचार बड़ै ज़ोर-स़ौर नाल करदे हन अते अगिआनी जनता बेवाकूफ़ बण जांदी है।

"करम धरम पाखंड जो दीसहि तिन जमु जागाती लूटै॥ निरबाण कीरतनु गावहु करते का निमख सिमरत जितु छूटै॥१॥ संतहु सागरु पारि उतरीऐ॥ जे को बचनु कमावै संतन का सो गुर परसादी तरीऐ॥१॥ रहाउ ॥ कोटि तीरथ मजन इसनाना इसु कलि महि मैलु भरीजै ॥ साधसंगि जो हरि गुण गावै सो निरमलु करि लीजै ॥२॥ बेद कतेब सिम्रिति सभि सासत इन्ह्ह पड़िआ मुकति न होई ॥ एकु अखरु जो गुरमुखि जापै तिस की निरमल सोई ॥३॥ खत्री ब्राहमण सूद वैस उपदेसु चहु वरना कउ साझा ॥ गुरमुखि नामु जपै उधरै सो कलि महि घटि घटि नानक माझा ॥४॥३॥५०॥

“मनहठि किनै न पाइआ करि उपाव थके सभु कोइ ॥ सहस सिआणप करि रहे मनि कोरै रंगु न होइ ॥ कूड़ि कपटि किनै न पाइओ जो बीजै खावै सोइ ॥३॥”

दुपहिरे-चौपहिरे कटणे, गुरबाणी गुरमत फलस़फे अनुसार नहीं हन। इक भेडचाल बण गई है। आपणी दुकानदारी चलाउंण लई पाखंडी डेरेदार अजेहे फालतू कंमां दा प्रचार बड़ै ज़ोर-स़ौर नाल करदे हन अते अगिआनी जनता बेवाकूफ़ बण जांदी है।

धुपे बैठ के पाठ करन नाल कोई लाभ नहीं होण वाला। बलकि तुसीं बीमार जरूर हो सकदे हो। अजेहे फालतू पाखंडां तों तुसीं आप बचणा है पाखंडी साधड़े तां चहूंदे हन कि आम संगत बेवाकूफ़ बणी रहे अते उहनां दी जी हज़ूरी करदे रहे।

गुरबाणी पाठ करन दा लाहा लिआ जा सकदा है, केवल सबद-विचार करके। गुणां दी विचार करके।

रहिरास

सिखां विच संसारी समे अनुसार स़ाम नूं कीते गए गुरबाणी पाठ नूं रहिरास साहिब आखदे हन। रहिरास दा अरथ किसे ने विचारन दी कोस़िस़ कीती होवे तां पता लगे के इह दो स़बदां दा मेल है। रहि अते रास अरथ उसदी रजा विच रहिणा। हुकम विच रहिणा। बाणी दे विच ही दसिआ

"गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥

इसदा अरथ बणदा गुरमति गिआन/सोझी मेरे प्राणां दी मितर (सखा) है अते हरि दी कीरत मेरी रजा है। हुण इह तां हर समे ही होणी चाहीदी है ना के स़ाम दे समे ही। रहिरास बारे बाणी दा फुरमान है।

“मनि प्रीति लगी तिना गुरमुखा हरि नामु जिना रहरासि ॥१॥ “

“साहु पातिसाहु सभु हरि का कीआ सभि जन कउ आइ करहि रहरासि॥”

“हरि कीरति रहरासि हमारी गुरमुखि पंथु अतीतं ॥३॥”

“रहरासि हमारी गुर गोपाला॥”

“तिसु आगै रहरासि हमारी साचा अपर अपारो ॥”

फेर कुझ धरमां विच "संधिआ कीती जांदी सी। के जी संदीआ काल दी आरती करो। गुरमति दा फुरमान है

“नानक संधिआ करै मनमुखी जीउ न टिकै मरि जंमै होइ खुआरु॥१॥”

“एहा संधिआ परवाणु है जितु हरि प्रभु मेरा चिति आवै॥”

“गुरपरसादी दुबिधा मरै मनूआ असथिरु संधिआ करे वीचारु॥”

“हरि जन हरि हरि चउदिआ सरु संधिआ गावार॥”

“पड़ि॑ पुस्तक संधिआ बादं॥ सिल पूजसि बगुल समाधं॥ मुखि झूठु बिभूखन सारं॥ त्रैपाल तिहाल बिचारं॥ गलि माला तिलक लिलाटं॥ दुइ धोती बसत्र कपाटं॥ जो जानसि ब्रहमं करमं॥ सभ फोकट निसचै करमं॥ कहु नानक निसचौ धॵिावै॥ बिनु सतिगुर बाट न पावै॥१॥ “

इस कारण बाणी सोझी प्रापत करन लई पड़्हनी है ते विचारनी है जिस विच संसारी समे नालों विचार जिआदा ज़रूरी है।साडा नित दा नेम होवे असीं बाणी पड़्ह के नाल समझीए के उपदेस की मिल रहिआ है नहीं तां बाणी पड़्हनी विअरथ है।

भावें असीं रहिरास बाणी पड़्हदिआं इह पंकतीआं ना पड़्हीए पर इहनां नूं समझ के रहिरास रखणी है। समे दी चिंता छड कोस़िस़ कीती जावे के जो बाणी असीं पड़्ह रहे हां उसदा भाव सानूं समझ आवे, चेते रहे ते साडे हिरदे विच वस जावे।

इक सजण मितर नाल गल हुंदी सी जिसदी सेहत दिन पर दिन विगड़ रही सी। आखदा अंम्रित वेला सांभण दी कोस़िस़ करदा हां। डिऊटी करड़ी है लगभग १४ घंटे कंम करदा हां, रात नूं घरे मुड़दे हां, नौकरी छड नहीं सकदे। इक घंटा सिमरन करन लई आखिआ है बाबिआं ने, नाले अंम्रित वेला सांभण दे कारण बस ३-४ घंटे ही नींद मिलदी है। जुआक छोटे ने इस कारण सवेरे उहनां नूं सकूल वी छडणा हुंदा। अगले दी भावना वेख के दिल खुस़ हुंदा पर डिगदी सिहत वेख के तरस वी आउंदा। मितर नूं इह समझाइआ गुरबाणी तों उदाहरण दिते ते आखिआ भाई जे तेरा प्रेम इतना है तां तूं बाणी पड़्ह के नित दा नेम (नीअम) रख, बाणी विचार पर सवेरे २ः३० वजे ना पाठ करके जे थोड़ा लेट वी पड़्ह लवेंगा तां तैनूं कोई सजा नहीं मिलणी। उह इतना निरदई नहीं है के २ः३० वजे जे तूं उसनूं नहीं पूजिआ तां उसने नाराज़ हो जाणा। बाणी असीं उसनूं जगाउण लई नहीं पड़्हनी बलके आपणी सोझी लई पड़्हनी है। तेरे सवेरे पाठ करन नाल बार बार इको सबद रटण नाल ना उसने वडा होणा ते तेरे ना पड़्हन नाल उसने छोटा नहीं हो जाणा "वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥। जिहड़ी मनुखा देह तैनूं मिली है बाणी आखदी "माणस जनमु दुलंभु है जग महि खटिआ आइ॥ जे मिलिआ है तां बूझण लई मिलिआ है "आवन आए स्रिसटि महि बिनु बूझे पसु ढोर॥ नानक गुरमुखि सो बुझै जा कै भाग मथोर॥ ते बाणी दी विचार कर, बाणी समझ बूझ इही गुर दी सची सेवा है "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥। जे जैनीआं वांग सरीर नूं कस़ट दे के, थोड़ा थोड़ा करके सीस वी कटा लवेंगा तां वी हउमै दी मैल नहीं जाणी "निमख निमख करि सरीरु कटावै॥ तउ भी हउमै मैलु न जावै॥ धरमी दिसण वाले पहिरावे वी पा लए उुसदा वी कोई लाभ नहीं "बहु भेख कीआ देही दुखु दीआ॥। धरमी होण दा भेख कीतिआं गल नहीं बणनी "चेत रे चेत अचेत महा जड़ भेख के कीने अलेख न पै है ॥१९॥। धरमी होण दा भेख दिखा के लोकां नूं ता खुस़ कर लवांगे पर दरगाह विच इसदा कोई लाभ नहीं होणा "भेख दिखाइ जगत को लोगन को बसि कीन॥ अंति काल काती कटिओ बासु नरक मो लीन ॥५६॥"

जे नीअम रख सकदे हों जरूर रखो इह सेहत लई वी चंगा हुंदा है पर जे तुहानूं कोई वी कंम बंधन बण जावे मजबूरी बण जावे तां उह ना सेहत लई चंगा है ना उसनूं करन नाल गिआन विच वाधा होणा। उसनूं तां गल समझ आ गई पर फेर सोचदा हां कितने ही होर प्राणी हन जिंनां नूं पखंडीआं ने भुलेखे विच धक दिता है। कई सिखां दी सेहत खराब रहण लग पई है, कईआं नूं पोस़ण ततां दी कमीं रहिंदी है। किसे दा आएरन घट है किसे दा बी-१२ घटिआ। जो पंडत करदे सी समाज नूं कमजोर रखण लई के लोग राजे ते उहनां मुहरे बगावत ना कर देण, उही कंम अज दे बाबे कर रहे ने। जिहड़ा सरीर दुरलभ देही कहिआ है बाणी विच उसनूं परमेसर तों परापत वरदान समझण दी थां तकलीफ़ दे के परमेसर नूं ही खुस़ करन दा दाअवा करदे। खाओ पौस़टेक भोजन, सिहत दा धिआन रखो तां के दिमाग तंदुरुसत रहे हैलदी रहे ते बाणी समझणी सौखी होवे। पाखंडीआं ने सरीर दे भोजन नूं मनु दे भोजन नाल जोड़ दिता। बिमार सरीर ते मन बाणी समझण विच धिआन किवें ला सकेगा? गुरबाणी तां आखदी "प्रभ जी तू मेरो सुखदाता॥ बंधन काटि करे मनु निरमलु पूरन पुरखु बिधाता॥।

गुरबाणी समझणी समझाउणी औखी है जिस विच समा लगदा, ज़ोर लगदा। जिहड़े आप नहीं गुरमति नूं समझदे उह लोकां नूं वी करम कांडां वल धक दिंदे हन ता के ना कोई सवाल करे ना पुछे। मंत्रां वांग बाणी पड़्ह के, इह सोच के की असीं २ः३० वजे उठ जांदे हां इस लई धरमी हां, धारमिक कपड़े पा रहे हां बाणे दुमाले गातरे पा के ही धरमी हो गए हा, रोज केसी सनान करदे हां इस लई धरमी हां, कदे पड़्हिआ नहीं के बाणी आखदी "जल कै मजनि जे गति होवै नित नित मेंडुक नावहि॥ जैसे मेंडुक तैसे ओइ नर फिरि फिरि जोनी आवहि॥२॥, कीरतन कर लैंदे हां इस कारण धरमी हां। इह दुनिआवी लोक पचारे लई तां ठीक है, लोकां नूं मगर लौण लई तां ठीक है पर इस नाल दरगाह विच कोई लाभ नहीं। उथे तां इही देखिआ जाणा के सोझी कितनी है, विकार किंने धोते, गुरमति दा गिआन अते सोझी कितनी लई। गुण कितने हन।

बाणी पड़्हो, नित दा नीअम वी रखो, पर बाणी नूं समझो, विचार करो ते गुरउपदेस़ नूं आपणे जीवन विच ढालो।


Source: ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵੇਲਾ, ਰਹਿਰਾਸ ਅਤੇ ਗੁਰਬਾਣੀ ਪੜ੍ਹਨ ਦਾ ਸਹੀ ਸਮਾ