Source: ਆਖਿਰ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਹੋ ਰਿਹਾ ਗੁਰੂ ਦੇ ਕਹੇ ਵਾਲਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ?
1) जे लोकां नूं पता लग गिआ कि “ऊहां तउ जाईऐ जउ ईहां न होइ“
जां “तीरथि नावण जाउ तीरथु नामु है॥ तीरथु सबद बीचारु अंतरि गिआनु है॥“
तां उह तीरथां ‘ते जाणो हट जाणगे अते इहनां दा चलाइआ होइआ कारोबार बंद हो जावेगा ।
2) जे लोका नूं दस दिता कि गुरबाणी भाणा मंनण ‘ते जोर दिंदी है “भाणा मंने सदा सुखु होइ“
जां “भाणा मंने सो सुखु पाए भाणे विचि सुखु पाइदा“
जां “तेरा भाणा मंने सु मिलै तुधु आए“
जां “भाणा न मंने बहुतु दुखु पाई“
जां “सोई होआ जो तिसु भाणा अवरु न किन ही कीता“
जां “प्रभ का भाणा सति करि सहहु“
जां “गुरमुखि होवै सु भाणा मंने सहजे हरि रसु पीजै“
तां लोक अखंड पाठ, सहिज पाठ जां संपट पाठ नूं कोई जादू टूणा समझ के करवाउणो हट जाणगे अते इहनां नूं तां बहुत घाटा पै जावेगा ।
3) जे लोकां नूं दस दिता कि “विणु तुधु होरु जि मंगणा सिरि दुखा कै दुख॥ देहि नामु संतोखीआ उतरै मन की भुख॥
जां “सतु संतोखु होवै अरदासि॥ ता सुणि सदि बहाले पासि॥“
जां “माइआ होई नागनी जगति रही लपटाइ॥ इस की सेवा जो करे तिस ही कउ फिरि खाइ॥“
जां “जे सुखु देहि त तुझहि अराधी दुखि भी तुझै धिआई॥२॥ जे भुख देहि त इत ही राजा दुख विचि सूख मनाई॥“
जां "गिआनी की होइ वरती दासि॥ कर जोड़े सेवा करे अरदासि॥ जो तूं कहहि सु कार कमावा॥ जन नानक गुरमुख नेड़ि न आवा॥४॥१॥
जां “नानक बोलणु झखणा दुख छडि मंगीअहि सुख॥ सुखु दुखु दुइ दरि कपड़े पहिरहि जाइ मनुख ॥ जिथै बोलणि हारीऐ तिथै चंगी चुप ॥“
तां लोक उहनां कोलों अरदास करवाउणो हट जाणगे अते उहनां नूं अरदास तों हुंदी मोटी कमाई बंद हो जावेगी।
4) जे लोकां नूं पता लग गिआ कि “गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ“
जां “नानक गुरु संतोखु रुखु धरमु फुलु फल गिआनु“
जां “कबीरा जहा गिआनु तह धरमु है“
तां लोक वाहिगुरू वाहिगुरू करना छड के, गुरबाणी तों समझ के गिआन लैण लग जाणगे अते इहनां दे झूठ प्रचार दा परदाफास़ कर देणगे ।
5) जे लोकां नूं पता लग गिआ कि “गुर की सेवा सबदु वीचारु” है,
तां लोक इहनां दुआरा चलाईआं होईआं अनेकां ‘मन-घड़त’ सेवावां छड के ‘सबदु वीचारु’ वाली सेवा विच जुड़ जाणगे तां इहनां दा तां विचारिआं दा कारोबार ही ठप हो जावेगा, आमदन बंद हो जावेगी अते इह विचारे बे-रुजगार हो जाणगे ।
धरम नूं ‘धंदा’ बणाउण वाले कदे वी सच दा सही प्रचार नहीं कर सकदे। सो लोड़ है इस धंदे नूं बंद करन दी तां कि “प्रथमे मनु परबोधै अपना पाछै अवर रीझावै” वाले गुरसिख अगे आ के सच दा सही प्रचार कर सकण।
6) जे संगतां नूं पता लग गिआ "पुत्री कउलु न पालिओ करि पीरहु कंन्ह मुरटीऐ ॥
"दिलि खोटै आकी फिरन्हि बंन्हि भारु उचाइन्हि छटीऐ ॥
तां स्री चंद नूं मंनणा छड के संगत १ नाल़ जुड़ जावेगी। स्री चंद दीआं फोटवां ते मूरतीआं ग्रंथ दे बराबर रखणा बंद कर देणगे लोग।